छत्तीसगढ के मूल संस्कृति म होरी परब, जे असल म काम-दहन के रूप म मनाए जाथे, वो ह बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक करीब 40 दिन के परब होथे, जेला हम वसंतोत्सव के रूप म घलो जानथन।
इहां के मूल संस्कृति म रंग-पंचमी या धुर-पंचमी के कोनो ठउर नइए। ए असल म बाहिरी संस्कृति, जेला हम होलिका दहन के रूप म सुनथन तेकर अंग आय। होलिका दहन फागुन पुन्नी ले लेके चैत अंधियारी पाख के पंचमी तक मनाए जाथे। जबकि हमर इहां के मूल संस्कृति ल बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक।
जे मन इहां के भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता ल लेके काम करत हें, वो मनला चेत राखे के जरूरत हे, कोन हमर मूल संस्कृति आय अउ कोन हमर मूड़ म थोपे गे बाहिरी संस्कृति। तभे हमर मूल संस्कृति के आरुग चिन्हारी हो सकथे।
-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान, रायपुर
मुंहाचाही : 9826992811
इहां के मूल संस्कृति म रंग-पंचमी या धुर-पंचमी के कोनो ठउर नइए। ए असल म बाहिरी संस्कृति, जेला हम होलिका दहन के रूप म सुनथन तेकर अंग आय। होलिका दहन फागुन पुन्नी ले लेके चैत अंधियारी पाख के पंचमी तक मनाए जाथे। जबकि हमर इहां के मूल संस्कृति ल बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक।
जे मन इहां के भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता ल लेके काम करत हें, वो मनला चेत राखे के जरूरत हे, कोन हमर मूल संस्कृति आय अउ कोन हमर मूड़ म थोपे गे बाहिरी संस्कृति। तभे हमर मूल संस्कृति के आरुग चिन्हारी हो सकथे।
-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान, रायपुर
मुंहाचाही : 9826992811
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