Monday, 13 December 2021

मोक्षदा एकादशी गीता जयंती की बधाई


मोक्षदा एकादशी : गीता जयंती विशेष..

🐚 सृष्टि का आदि धर्मशास्त्र गीता है। ‘इमं विवस्वते योगं’ (गीता, 4/1)- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि “इस अविनाशी योग को मैंने आदि में सूर्य से कहा। सूर्य से मनु, मनु से इक्ष्वाकु और इक्ष्वाकु से राजऋषियों तक पहुँचते-पहुँचते यह इस पृथ्वी में लुप्त हो गया था। वही पुरातन अविनाशी योग मैं तेरे प्रति कहने जा रहा हूँ।” इस प्रकार लगभग 5200 वर्षों पूर्व उसी आदिज्ञान का पुनः प्रसारण मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी ‘मोक्षदा एकादशी’ को कुरुक्षेत्र (भारत) में हुआ।

🐚 परमात्मा ही सनातन है। उस सनातन का उपासक होने से ही आर्य सनातनधर्मी कहलाये। सनातन एकमात्र परमात्मा सबके हृदय में निवास करता है- ‘हृद्देशेर्जुन तिष्ठति’ (गीता, 18/61) -हृदयस्थ उस परमात्मा का उपासक होने से वही हिंदू कहलाये। तीनों शब्दों (आर्य, सनातनी व हिंदू) का अर्थ एक है और इनका आदिशास्त्र गीता है।

🐚 ‘गीता’ का सिद्धांत है- एक आत्मा ही सत्य है, परम तत्व है, अमृत स्वरूप है, कण-कण में व्याप्त है एवं ज्योतिर्मय है। उस आत्मा को प्राप्त करने की नियत विधि  है।

🐚 ‘यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः’ ( गीता, 3/9 ) इस योग विधि यज्ञ के अतिरिक्त अन्य जो कुछ किया जाता है,वह इसी लोक का एक बंधन है,न कि कर्म। इस नियत कर्म को करके तू अशुभ अर्थात संसार बंधन से मुक्त हो जायेगा।अस्तु ,कर्म अर्थात् आराधना, चिंतन। एक ही चिंतन कर्म को योगेश्वर ने चार श्रेणियों में बाँटा, जिनका नाम वर्ण है। यह एक ही साधना के क्रमोन्नत सोपान हैं। जिसमें साधक को प्रवेश कर क्रमशः चारों सोपानो को पार कर लक्ष्य विदित करना होता है।

🐚 “अर्जुन ! यदि तू संपूर्ण पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है तब भी गीतोक्त ज्ञान रूपी नौका द्वारा नि:संदेह पार हो जायेगा।” अतः गीता पाप का निवारण है। “अत्यंत दुराचारी भी अनन्य भाव से मुझे भजता है तो वह साधु मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय से लग गया है।” अतः गीता सदाचारी और दुराचारी में दरार नहीं डालती।

🐚 ‘गीता’ के अनुसार, मनुष्य मात्र दो प्रकार का होता है – दैव और असुर। जिसके हृदय में दैवी संपद कार्यरत है वह देवताओं जैसा है और जिसके हृदय में आसुरी संपद कार्य करती है वह असुरों जैसा है। दैवी स्वभाव परम कल्याणकारी परमात्मा की तरफ तथा आसुरी स्वभाव प्रकृति के अंधकार में भटकाता है। सृष्टि में मनुष्य की यही दो जातियाँ हैं अन्य कोई तीसरी जाति नहीं।

🐚 संसार की सभी समस्याओं का समाधान गीता से है। गीता जाति-पाँति, छुआछूत, भेदभाव से मुक्त है; क्योंकि जीव भगवान का विशुद्ध अंश है- उतना ही पावन जितना स्वयं भगवान। तो फिर अस्पृश्य कैसे? यह हीन भावनाओं से मुक्ति का शास्त्र है। यह संप्रदाय मुक्त है। इसमें किसी संप्रदाय का विरोध या समर्थन नहीं है। इसमें रूढ़ियों, परंपराओं अथवा प्रथाओं का किंचित भी समावेश नहीं है। यह इन सब से मुक्त मानव- दर्शन है।

🐚 भारत के संविधान में भारतीय संस्कृति व दर्शन के 22 उद्बोधक चित्रों में एक चित्र श्रीकृष्ण का गांडीवधारी अर्जुन को गीता उपदेश देते हुए भी था। न केवल भारत अपितु विश्व के श्रेष्ठतम विद्वानों, दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, चिंतकों तथा संतों ने इसकी मुक्त कंठ से स्तुति की है।

धरम के मारग अइसे नइहे के बस जोगड़ा बन जावन
बन के बोझा समाज ऊपर बस माँग-माँग के खावन
ए तो कोनो धरम नइ होइस न आदर्श असन जीवन
जेला कहिथन भगवान हम उंकर कर्मयोग अपनावन

मोक्षदा एकादशी गीता जयंती के गाड़ा-गाड़ा बधाई अउ जोहार 🙏
-सुशील भोले-9826992811
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