Thursday, 1 December 2022

अगहन बिरस्पत कहानी 5

अगहन बिरस्पत कहनी-5
पछतावा..

     एक गाँव म बाम्हन बम्हनिन रहीन । उंखर दू झन बेटी रहिस । बड़ सुन्दर , सुशील । बम्हनीन अगहन बिरस्पत के उपास रहय । बिरस्पत के लक्ष्मी महारानी ल  लगाय बर फरा, चीला, बबरा , रकम रकम के कलेवा बनाय। लइका मन ल थोड़कन परसाद  दय।लइका मन के जी ललचाय ।अउ खातेंन कहय । फेर वो कंजूसनीन मांगे म घलो नइ देवय । एक दिन दूनों बहिनी गोठियायिन । दाई ह हमन ल थोरेछ कन देथे अउ मांगे ले नई देवय । रहा ; ए दरी बीरस्पत के भोग लगाही , अउ थोरको एती वोती जाही तहाँ ले हमन सब्बो भोग ल हेर के खा लेबो। दूनो बहिनी सुनता सलाह होगें। बिरस्पत आईस , बम्हनीन 12 बजे लछमी दाई के  सुन्दर पूजा पाठ करके भोग लगाइस ।बोबरा बनाय रहय । बम्हनीन ओ मेर ले गीस तहाँ दूनों बहिनी भोग ल निकालीन अउ उत्ता-धुर्रा खा डरिन ।
उंकर दाई आईस देखीस भोग परसाद नई हे। बड़ बगियागे.
अपन गोसइंया ल पूछिस- भोग कहाँ हे?
मैं नइ  जनवौं । बिलाइ , मुसवा ले गीस होही ।
बेटी मन ल पूछिस -भोग परसाद कहां हे?
बेटी मन एती ओती करीन ।
जादा डांट डपट परिस त मारे डर के बताईंन।
तैं ह दाई हमन ल थोर थोर परसाद देथस । हमर मन नइ भरय त हमन हेर के सबे ल खा डारेन ।
अतका सुनिस तहाँ ले का पूछे बर हे - बेटी मन ऊपर भड़कगे ।अपन गोसाईंया ल कहिस ऐमन ल घर ले निकाल।
बाम्हन कहिस - खा लीन तो का होंगे अपने लइका तय।मन लगीस होही खाय के ।
अइसन अतियाचार झन कर। बेटी घर के लक्ष्मी होथे । भरे अगहन महीना म बेटी मन ल घर ले निकाल के पाप झन करवा मोर मेर।
बम्हनीन मनाबे नई करीस।
आखरी म हार खाके बाम्हन ह बेटी मन ल घर ले निकाले के मन बनाइस। अउ बहुत दुखी मन से बिचारे लगीस कइसे करौं , का करौं, बेटी मन ल घर ले कइसे निकालौं?
बिचारत बिचारत एक ठन उपाय ओखर मन म आइस ।बेटी मन ल फुसलाइस, चलो बेटी घूमे बर जाबो ।
बेटी मन घूमे के नाम म खुश होगें। घूमे बर तइयार होगें ।
बड़ भारी मन से बेटी मन ल जंगल कोती घुमाय बर लेगीस।
बाम्हन के मन म बड़ उथल पुथल मचे रहय। बड़ असमंजस म का करय, का न करय । बेटी मन ल छोड़े के मन नहीं , नइ छोड़त हे त घर वाली के डर।
बेटी मन ल छोड़ के जाय तो जाय कइसे । फेर का करय दिल ल कड़ा करिस । दिल म पथरा रख के बड़ भारी मन से बेटी मन से बोलीस -
बेटी हो मैं थोरकुन बाहिर बट्टा ले आवत हौं, तुमन एहि मेर रहियव।
बेटी मन हव ददा  कहिन. हमन एहि मेर रहिबो । कोनो कोती नई जान ।
बाम्हन बपुरा बड़ भारी मन से रोवत रोवत बेटी मन ल घना जंगल म छोड़ के घर लहुट गे।
एती बेटी मन ददा के रद्दा देखत रहय । बड़ बेर होंगे , का होगे ददा कइसे नई आवत हे , कुछु होत हुआ तो नई होगे हे। एती ओती चारों मुड़ा ल देखय कोनों कोती ददा दिखही । आस पास ल देख डरीन फेर दिखबे न करय ।दूनों बहिनी रोय लगीन। अइसे ताइसे सांझ होंगे, अंधियार होय लग गे । घनघोर जंगल । जी के डर सबेला होथे । बड़की कहिथे बहिनी रतिया होगेहे ददा ह दिखते ही नई हे । हमन का करन , रद्दा ल बरोबर जानन घलो नहीं, ऊपर ले घुप अंधियार । बघवा-भालू  के घलो डर । चुप हो जा बहिनी , थोरकुन हिम्मत कर , चल एदे पेड़ में चढ़ जथन ।कइसनो करके रात ल काटे ल लगही । दूनों बहिनी पेड़ म चढ़गें।
एती एक झन राजा एही जंगल म लाव लश्कर सहित सिकार करे बर आय रहिस ।शिकार करत करत रतिया होंगे । मंत्री कहिस -राजा साहब रात अड़बड़ होंगे हे , जंगल बड़ घना हे । रात बिकाल जंगली जानवर  मन विचरथें । आपके आज्ञा हो तो इहें डेरा डार देथन, भिनसरहा ले चल देबो ।
राजा ल मंत्री के सलाह ह जंचगे । डेरा डाले के अनुमति दे दीस ।
सब दल बल सहित राजा के डेरा लगगे ।
राजा के डेरा-डंगरी ल देख दूनो बहिनी मारे डर के रोय लगिन उंखर आँखी ले आंसू टप टप बरसा के बूंद बरोबर गिरे लगीस ।
राजा के डेरा ठाऊका उही रुख के नीचे रहिस । आंसू राजा के ऊपर गिरिस, त राजा एती ओती देखे लगीस. मौसम तो साफ हे फेर पानी कहां ले गिरत हे । मोला  पानी गिरे के भरम कइसे होत हे । फेर आंसू टपकिस। राजा कहिस मोला भरम नई हे. पेंड़ ऊपर कुछु हे । मंत्री ल कहिस -  मंत्री पेंड़ म देखौ कुछ है , पानी टपकत हे ।
मंत्री - एती ओती चारों कोती देखीस अउ कहिस -कुछु नई हे महाराज , आप ल भरम होगे होही ।
राजा ऊपर फेर आंसू टपकिस ।
राजा कहिन- देख मंत्री फेर मोर ऊपर पानी टपकिस ।कुछु न कुछु बात हे । ध्यान से देखो ।
पानी के बूंद ल देख के मंत्री घलो अचंभित होगे ।
सिपाही मन ल आदेश दिस ।कहाँ ले पानी गिरत हे , ए पेंड़ म का हे , तुरते पता लगावव।
सबे सिपाही अउ संग आये जम्मो झन एती ओती देखे लगिन , फेर कोनो ल कुछु नई दिखिस ।
एक तो घनघोर जंगल ऊपर ले अंधियारी  रात ।
दूनो बहिनी मारे डर के पेड़ के फुनगी में चढ़गे रहंय । डारा पाना म अपन ल तोप ले रहंय अउ मनमाने रोवत रहंय।
अचानक राजा के नाऊ  चिल्लय लगीस महाराज -दिखगे , दिखगे ।
नाऊ के एक आँखी म बरोबर दिखय नई । ओखर बात ल कोनो पतियात नई रहय ।
मंत्री ओखर ऊपर झिड़किस -काय दिखगे , दिखगे करत हस ।क्षकाय ए, कुछु बोलबे के भईगे चिल्लाबे बस ।
नाऊ कहिस -श्रमहाराज दू झन सुंदरी हे पेंड़ ऊपर ।
ओखर बात ल सुन के सबे झन हांसे लगिन फेर राजा के डर म हांसे नइज्ञसकत रहीन।
मंत्री- बने देखे हस । कइसे बात करथस याहा घनघोर जंगल ऊपर ले अंधियारी रात में कोन माईलोगिन पेड़ ऊपर रहिह ।
नाऊ लबारी नइ मारत हंव महाराज , सिरतोन म मैं दू झन मोटियारी ल देखेंव।
राजा- नाऊ सही कहत होही, मंत्री ये पेड़ ल बने असन देखव ।
मंत्री ह आदेश दीस  मशाल के रोशनी ल बढ़ावव अउ पेड़ कोती करव। 
दूनों बहिनी अउ हड़बड़ा गे  जोर जोर से रोय लगिन।
उंखर रोय के आवाज सुनई दे लगीस ।
रोय के आवाज ल सुन के सबे घबरागे , कोनों परेतिन -वरेतिन तो नोहय?
मंत्री - जोर से कड़क आवाज म कहिस कोन हे , नीचे आवौ।
दूनो बहिनी अउ लदलद कांपे लगिन , रोय के आवाज अउ बढ़गे।
राजा - जो भी हो नीचे आओ । हम कुछ नइ करेंगे ।
नाऊ- ओ देखो महाराज  फुनगी में दू झन सुंदरी बइठे हे ।
मंत्री अउ राजा घलो ध्यान से देखिन ।
उहू मन ल दिखगे।
राजा  दू झन सिपाही ल आदेश दीस कि सुंदरी मनला पेंड़  के नीचे लाओ ।
सिपाही मन ल पेंड़ म चघत देख के दूनों बहिनी आधा डर अउ आधा बल करके नीचे उतर गिन।
राजा - डरे के कोई बात नई हे।
तुमन कोन हो , कहाँ रहिथवव ?क्षये जंगल म का करत रेहेंव ?
दूनों बहिनी  रो-रो के अपन आप बीती ल बताइन ।
राजा - घर के पता बताओ ।पहुँचा देते हैं ।
दूनों बहिनी कहीन चाहे कुछु हो जाय अब हमन घर नइ जान । इहें परान दे देबो ।
राजा उंखर आपबीती ल सुन के अउ उंखर निश्चय ल देख के पसीजगे ।
अपन संग म लेगे के निर्णय लीन ।
संग म अपन राज म लेगे ।
दूनों बहिनी अपूर्व सुंदरी रहीन । उंखर सुंदरता म राजा मोहागे रहय।
दूनों के आय के खबर सुन के राज म काना-फूसी होय लगीस । बात राजा के कान तक पहुंचगे ।
राजा विचारिस बात आगू झन बढ़य ।
ये मन कोनो भले घर के लगथे । मोर सरन म हें।
इंखर मान-सम्मान म कुछु आंच झन आवय।
का करे जाए । अड़बड़ सोच विचार के  निर्णय लीस।
मंत्री से मंत्रणा करीस।
राजा ह बड़े बहिनी से अउ मंत्री ह छोटे बहिनी से बिहाव करेके के निर्णय लीन ।
दूनों बहिनी से बात करीन। दूनों झन राजी-खुसी बिहाव करेबर तइयार होगीं ।
पंडित ह शुभ मुहूरत निकालीस ।
शुभ मुहूरत म बने राजी खुशी बिहाव होगे ।
दूनों बहिनी सुखपूर्वक राजी खुशी रेहे लागिन।
  एती बेटी मन ल घर ले निकल दे  के बाद बाम्हन -बम्हनीन के सबे सम्पत्ति धीरे धीरे सिराय लगीस कतकोन कमाय , घर म बरकत न होय । खाय के लाले पड़ गीस ।एक लांघन दू फरहार होगे ।जब तब बाम्हन मूड़ धर के रोवय । बम्हनीन ल कहाय -कहां-कहां तोर बात म आगेंव । लक्ष्मी असन बेटी मन ल घनघोर जंगल म छोड़ देंव। मोर बेटी मन कहाँ होहीं। कोन हाल म होहीं।जियत हे कि नहीं, कोनों शेर भालू तो नई खा डरिस । हे भगवान मैं बड़ चंडाल, मोर असन कोनों दुष्ट बाप नइ होही मैं करम छड़हा अपने हाथ ले अपने जियाय बेटी मन ल शेर चीता के खाय बर छोड़ आएंव। बम्हनीन घलो पछतावय । फेर अब पछतावत होत काय जब चिरई चुग गे खेत ।
राजा के बिहाव अउ दूनों बहिनी के रूप के भारी चर्चा होय लगीस । उंखर रूप के चर्चा फइलत-फईलत बाम्हन बम्हनीन के कान तक पहुँच गे। बम्हनीन कहिस अइसन रूप तो हमार बेटी मन के रहिस । कहूँ हमर बेटी तो नोहय।  सोर खबर लेतेव  थोड़कुन। बाम्हन खिसियाइस । तोर मति म आके भरे घनघोर जंगल म छोड़े रहेंव फूल असन लइका मन ल । तेन कहाँ होही।
बम्हनीन जिद करे लगीस।गांव वाले मन बतात रहीन हमरे बेटी बरोबर दिखथे ।
बाम्हन के मन म घलो बेटी मन से मिले के चाह रहीस।पूछत पूछत उही राज म पहुंच गे । उहाँ तरिया म हाथ मुंह ल धोइस । फेर उही घाट तीर म बइठ गे।  मने मन गुने लगीस पहली छोटे बेटी घर जाहूं सीधा बड़े के घर जाना ठीक नई हे ।
लोगन मन ल मंत्री के घर जाय के रद्दा पूछे लगीस । कहय मोर बेटी हे । कोनो ओखर  बात ल नई पतियावय उल्टा ओखर हंसी उड़ावय । कहां ये अउ कहाँ मंत्राणी जी।
लम्बा सफर ऊपर ले कई दिन ले बरोबर खाय पिये के ठिकाना नहीं । एकदम दीन-हीन ,क्षजर्जर काया , झुके कनिहा।
एक झन ल ओखर ऊपर दया आगे कहिस चल बबा मैं तोला मंत्री जी के घर बतावथ हैं।
उहाँ उंकर छोटे बेटी जेन मंत्रानी बनगे रिहिस, तेन ह अपन दाई-ददा ल चिन्ह डारिस अउ उनला पोटार के रोवत अपन घर भीतर लेगिस. तहाँ ले बड़े बहिनी के बारे म घलो बताइस.
    बाम्हन बम्हनिन दूनों झनला अपन गलती खातिर पछतावा होइस. आखिर म सब भूल-चूक माफ होगे. सब खुशी खुशी रहिन खाइन.

मोर कहानी पुरगे.. दार भात चुरगे
प्रस्तुति : सुशील भोले
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