Friday, 14 November 2025

कला संसार के अँजोर शिवकुमार दीपक

15 नवंबर जयंती//
छत्तीसगढ़ी कला संसार के अँजोर शिवकुमार 'दीपक'
    छत्तीसगढ़ी कला संसार म जे मन अपन अभिनय के माध्यम ले लोगन के हिरदय म सम्मान जनक ठउर बनाइन उनमा शिवकुमार दीपक जी के नॉव अगुवा के रूप म आथे. वइसे तो उँकर जादातर चिन्हारी हास्य कलाकार के रूप म हावय फेर मैं उनला एक बहुत ही गंभीर विषय म एकाभिनय करत देखे हौं.
    भिलाई स्थित सेक्टर 7 के कुर्मी भवन के मंच म तब उँकर सम्मान होवइया रिहिसे, सौभाग्य ले महूँ ल ए कार्यक्रम म पहुना के रूप म नेवते गे रिहिसे तब हम दूनों मंच म सँघरा बइठे रेहेन. संयोग ले वो मंच म मोला आदरणीय दीपक जी ल सम्मानित करे के सौभाग्य मिले रिहिसे.
   सम्मान के ए कार्यक्रम म शिवकुमार जी डॉ. खूबचंद बघेल जी के लिखे नाटक 'ठाकुर जनरैल सिंह' के मंचन करे रिहीन हें. ए नाटक म जनरैल सिंह के माध्यम ले भारतीय थल सेना म 'छत्तीसगढ़ रेजीमेंट' के गोठ करे गे रिहिसे. मैं व्यक्तिगत रूप ले ए 'छत्तीसगढ़ रेजीमेंट' के अवधारणा के जबर समर्थक अउ प्रशंसक रेहेंव तेकर सेती रायपुर ले प्रकाशित होवइया अखबार मन म कतकों पइत विज्ञप्ति के माध्यम ले भारतीय थल सेना म 'छत्तीसगढ़ रेजीमेंट' बनाए के माँग करत रेहेंव.
   बछर 1933 म 15 नवंबर के दुर्ग के पोटियाकला वार्ड म शिक्षक प्रेमसिंह साव जी के घर जनमे शिवकुमार जी नान्हे उमर ले ही अभिनय जगत म पाँव रख डारे रिहीन हें. वो मन गाँव म होवइया नाचा अउ लीला रास आदि ल रात-रात भर देखँय तहाँ  ले अपन संगी जउँरिहा मन जगा कोनो सुन्ना जगा देख के वोकर नकल कर के देखावँय.
   शिवकुमार जी के स्कूली नॉव शिवकुमार साहू हे. वो मन अपन नॉव संग जुड़े साहू शब्द के ठउर म दीपक शब्द ल जोड़े के संबंध म बतावँय- बछर 1957 म नागपुर म अखिल भारतीय युवा महोत्सव के आयोजन होय रिहिसे, जेमा वो मन अपन एकाभिनय के प्रदर्शन करे रिहीन हें. तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ह उँकर वो अभिनय के जबर प्रशंसा करे रिहीन हें अउ कहे रिहीन हें- 'तैं ह डाकू मन के अँधियार जिनगी म दीपक बरोबर बर के अँजोर बगरा दिए. तैं तो अइसे दीपक अस.. अइसे दीपक समाज म फेर परिवर्तन लावव.. अँजोर बगरावाव'. फेर का रिहिस.. शिवकुमार जी ल ए बात जँच गे तहाँ ले वो मन अपन नॉव संग जुड़े साहू शब्द के ठउर म 'दीपक' लिखे लगिन.
    कक्षा पाँचवीं म पढ़त बेरा शिवकुमार जी अपन पहला नाटक 'शहंशाह' करीन, जेमा वो मन 'धुंधमार' के भूमिका निभाए रिहीन हें. वो मन हिंदी के संगे-संग छत्तीसगढ़ी कला संसार म घलो अपन अभिनय क्षमता ल देखावत रिहीन हें. इहाँ के सांस्कृतिक जगत म इतिहास बन के अमर होय चंदैनी गोंदा, नवा बिहान, सोनहा बिहान, हरेली जइसन लोकनाट्य मन म महत्वपूर्ण भूमिका निभाए रिहीन हें. शिवकुमार जी के एकाभिनय के संसार घलो जबर पोठ हे. वोकर मन के द्वारा करे गे 9 प्रमुख नाटक हें- हरितक्रांति, ठाकुर जनरैल सिंह, लमसेना, जीवन पुष्प, सौत झगरा, एक था   गाँधी, बटोरन लाल, छत्तीसगढ़ी महतारी अउ श्री 420.
   छत्तीसगढ़ी फिलिम जगत म घलो उन एकर शुरुआत ले ही जुड़े रिहीन हें. छत्तीसगढ़ी भाखा के पहला सिनेमा 'कहि देबे संदेश' अउ दूसरा सिनेमा 'घर द्वार' ले लेके जिनगी के आखिरी साँस तक सरलग बनत छत्तीसगढ़ी सिनेमा मन म अपन अभिनय जौहर के प्रदर्शन करत रिहीन. वो मन हिंदी, छत्तीसगढ़ी अउ मालवी सिनेमा मन के करीब चार कोरी अकन फिलिम म अभिनय करिन. मुंबई म बन के प्रदर्शित होवइया एक दू हिंदी धारावाहिक मन म घलो वो मन अभिनय करे रिहीन हें.
   शिवकुमार जी ल अनेकों सामाजिक अउ सांस्कृतिक संस्था मन द्वारा सम्मानित करे जावत रिहिसे. एकर संगे-संग वो मनला लोगन के मया-दुलार अउ सम्मान मिलत रिहिसे तेन ह सबले अनमोल हे. जिनगी के आखिरी साँस तक कला संसार म सक्रिय रहे शिवकुमार जी 25 जुलाई 2024 के ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी लेके परमधाम के रद्दा धर लिए रिहीन हें. उँकर सुरता ल पैलगी जोहार.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर

Sunday, 9 November 2025

कोंदा भैरा के गोठ-36

कोंदा भैरा के गोठ-36
1-
-आज 20 अगस्त के रेडियो प्रसारण दिवस के सेती मोला सुरता आवत हे जी भैरा.. अब मनोरंजन के कतकों साधन आगे हवय तभो रेडियो सुनई ह अभो निक जनाथे ना? 
   -सिरतोन आय जी कोंदा.. जइसे समाचार मन के सोर-खबर ले खातिर कतकों न्यूज़ चैनल आगे हवय, तभो अखबार ल पढ़े बिन मन नइ मानय तइसे केहे कस. 
   -हव जी.. मोला तब के सुरता हे संगी जब हमर गाँव म पारा भर म सिरिफ हमरे घर भर रेडियो रिहिसे. संझौती बेरा जब बॉंस गीत आवय, त रेडियो ल घर ले हेर के बाहिर के कुआँ पार म मढ़ावन, तहाँ ले पारा भर के लोगन जुरिया के सुनँय.
   -अइसने मोला अपन  पहला कविता प्रसारण के सुरता हे संगी.. वो बखत अभी असन कविता मनला रिकार्डिंग कर के नइ राखत रिहिन हें. तब जीवंत प्रसारण होवय. बरसाती भइया, बिसाहू भइया मन संग चौपाल कार्यक्रम म मोला बइठारे रिहिन हें, एती ले हमन बोलत जावन.. वोती लोगन ल रेडियो म सुनावत जावय, बाद म मोर पहला कहानी 'ढेंकी' के प्रसारण होइस, त वोला पहिली रिकॉर्ड करे गे रिहिसे.
   -हाँ अब तो सबो ल पहिली रिकॉर्ड कर लिए जाथे, पाछू वोकर प्रसारण होथे.
   -रेडियो सुनइया जम्मो संगी मनला रेडियो प्रसारण दिवस के बधाई अउ जोहार.
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2-
-गणपति महराज के बिराजे के संग ही पोंगा-चोंगा मन ले आनीबानी के गीत सुनाए लगिस जी भैरा.
   -अरे नेवरिया लइका मनला कतकों बरज फेर अंते-तंते के गीत बजई ल नइ छोड़ँय जी कोंदा.
   -हव जी.. डीजे वाले मनला घलो चेताय रिहिन हें कहूँ गणपति महराज ल लानत-लेगत बेरा डीजे बजाहू ते लाख रुपिया जुर्माना लागही, फेर कोनो भी नियम के पालन बने असन कहाँ हो पाथे.. दस दिन ले भाइगे चोरो-बोरो तो आय.
   -हव जी.. अउ तैं जानथस गणपति महराज के उत्सव ल 10 दिन तक ही काबर मनाए जाथे?
   -कोन जनी संगी.. ए मुड़ा तो कभू चेत नइ करे रेहेन.
   -वइसे तो कतकों कारण बताए जाथे, फेर एमा प्रमुख हे- जब महर्षि वेदव्यास जी ह गणेश जी ले महाभारत लिखे के अरजी करिस त भगवान गणेश ह दस दिन तक बिन रुके सरलग लिखइच करीन.. एकर ले गणेश जी के देंह के तापमान बाढ़गे रिहिसे.
   -बाढ़बेच करही.. दस दिन ले बिन थिराय लिखइच करही त.
   -हव.. एकरे सेती वेदव्यास जी उनला दसवाँ दिन नँदिया म बने खलखल ले नहवाए रिहिन हें.. बताथें के इही ह परंपरा बनगे.. दस दिन बने उत्सव मनाथें यहाँ ले दसवाँ दिन विसर्जित कर देथें।
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3-
-हमर छत्तीसगढ़ म एक ले बढ़ के एक परंपरा देखे सुने ले मिलथे जी भैरा.
   -हाँ.. ए बात तो हे जी कोंदा.. तभे तो हमन छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी संस्कृति ल अद्भुत कहिथन.
   -सही आय संगी.. अब कालेच देख ले गरियाबंद जिला के गाँव देवरी म उहाँ के साँवरा समिति ह साँप मन के शोभायात्रा निकाले रिहिसे, जेमा हजारों के संख्या ल साँप रिहिसे.. लोगन घलो हजारों के संख्या म जुरियाय रिहिन हें, जे मन शोभायात्रा के जगा-जगा पूजा करत रिहिन हें.
   -गजब हे संगी.
   -हव.. हर बछर ऋषिपंचमी के दिन इहाँ साँप मन के पूजा कर के शोभायात्रा निकाले जाथे, जेमा तीर-तखार गाँव के मन घलो सँघरथें.. अउ तैं जानत हावस?
   -बताना भई.
   -ए जम्मो साँप मनला गाँव वाले मन अपन घर या खेत-खार म निकलथे तेने ल धर के उँकर संरक्षण कर के राखथें, तहाँ ले फेर ऋषिपंचमी के दिन सबो के सामूहिक रूप ले पूजा कर के शोभायात्रा निकाले जाथे.. शोभायात्रा निकाले के बाद फेर सबो साँप मनला जंगल म ढील दिए जाथे.
   -मारय-पीटय नहीं कहिदे.
   -नहीं संगी.. जेकर पूजा करथें वोला मारहीं कइसे.. कतकों बछर ले ए परंपरा चलत हे.. एकरे सेती इहाँ अभी तक कोनो किसम के साँप चाबे के घटना नइ घटे हे.
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4-
-हमर छत्तीसगढ़ जेला तइहा बेरा म दक्षिण कोसल के नॉव ले जाने जावय इहाँ कविता पाठ के बड़ा पोठलग परंपरा हावय जी भैरा.
   -हव.. हावय न जी कोंदा.. बछर 1983 ले तो महूँ ह एमा सँघरत हावँव.. फेर हमर इहाँ जेन लोकगीत अउ साहित्य के पोठलग परंपरा देखे ले मिलथे तेन ह तभे तो सिरजे अउ आगू बाढ़त रेहे होही.
   -सही कहे.. इतिहास के जुन्ना पन्ना लहुटाए ले इहू जानबा होथे के महाकवि कालिदास ह इहें के रामडोंगरी जेन ह सरगुजा संभाग म आथे उहें अपन अमरकृति 'मेघदूतम' के सिरजन करे हें..
   -हव जी सही आय.. मैं ह मेघदूतम के छत्तीसगढ़ी अनुवाद जेला छायावाद के प्रवर्तक कवि पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय जी करे रिहिन हें तेला पढ़े हौं.
   हाँ.. अउ तैं जानथस.. हमर इहाँ महाकवि कालिदास जी के बेरा ले ही कविता पाठ के जानबा मिलथे.. रामगढ़ पर्वत म ही एक गुफा हे, जेला सीता बेंगरा के नॉव ले जाने जाथे.. इही गुफा के एक कोठ म ब्राम्हीलिपि म लिखाय एक शिलालेख हे, जेमा कवि मन के रतिहा बेरा कविता पाठ करे के उल्लेख हे.
   -ददा रे.. तब के इहाँ कविता पाठ के परंपरा हे कहिदे!
   -हव.. दू हजार बछर अकन होगे हे वो बेरा ल.
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5-
-हिंदी दिवस के दिन लकठाथे तहाँ ले कतकों लोगन छत्तीसगढ़ी ल बोली आय कहिके कोचके-हुदरे के कोशिश करथें जी भैरा.
  -वो मनला भाखा के मानक के जानकारी नइ होही जी कोंदा.. जे भाखा के माध्यम ले हम अपन मन-अंतस के बात ल कोनो भी दूसर मनखे ल जस के तस समझा सकन वो सबो ह भाखा  कहाथे.
   -फेर लोगन तो जेकर व्याकरण अउ लिपि होथे, तेने ल भाखा कहे जाथे कहिथें.
   -जिहाँ तक व्याकरण के बात हे, त छत्तीसगढ़ी के व्याकरण ह बछर 1880 ले 1885 के बीच म काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के द्वारा लिखे गे रिहिसे, जेला तब के बड़का व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन ह बछर 1890 म छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी म समिलहा छपवाए रिहिसे.. तब तक हिंदी के व्याकरण नइ बन पाए रिहिसे. हिंदी के व्याकरण ह बछर 1920 म कामता प्रसाद गुरु के माध्यम ले आइस. 
   -अच्छा.. माने छत्तीसगढ़ी के व्याकरण ह हिंदी ले पहिली बने हे. फेर लिपि तो नइए न छत्तीसगढ़ी के? 
   --कोनो भी भाखा खातिर लिपि के होना जरूरी नइए. हिंदी के लिपि कहाँ हे? एला तो नागरी लिपि म लिखे जाथे. संस्कृत, मराठी आदि ल घलो नागरी म ही लिखे जाथे.. हाँ, छत्तीसगढ़ी के पहिली लिपि रहिसे जेला हर्ष लिपि कहे जाय, इहाँ के जुन्ना मंदिर मन म वोला अभी घलो शिलालेख के रूप म देखे जा सकथे. तैं राजिम के राजीव लोचन मंदिर जाबे, उहाँ सीढ़िया चघ के मंदिर भीतर जाबे त डेरी हाथ के कोठ म एक बड़का शिलालेख पाबे. वोहा जेन लिपि म लिखाय हे, उही आय हर्ष लिपि.
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-छत्तीसगढ़ म नवरात परब म दुर्गा बइठारे के परंपरा पहिली नइ रिहिसे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. फेर अब तो गाँव गँवई म घलो चार पाँच जगा दुर्गा पंडाल दिख जाथे.
   -सही कहे.. जइसे गणपति महराज ल पंडाल म बइठारे के शुरुआत आजादी के आन्दोलन के बखत महाराष्ट्र ले होय हे, वइसने दुर्गा पंडाल के परंपरा प. बंगाल ले होय हे अइसे सियान मन बताथें.. अउ तैं जानथस.. हमर रायपुर म अभी जेन दुर्गा प्रतिमा बनत हे वोमा वेश्यालय के माटी के प्रयोग अनिवार्य होथे?
   -कोन जनी संगी.. मैं पहिली पइत अइसन सुनत हौं!
   -इहाँ कोलकाता के सोनागाछी (रेडलाइट एरिया) ले माटी लाने जाथे, जेला पुण्य माटी कहिथें.. मूर्तिकार मन बताथें के सोनागाछी के माटी ले ही महतारी के मुड़ी बनाए जाथे.
   -एकर कुछू विशेष कारण होही?
   -माने जाथे के वेश्यालय म जवइया मन अपन जम्मो किसम के पवित्रता ल बाहिर म छोड़ जाथें, तेकर सेती उहाँ के माटी पवित्र हो जाथे. एक लोककथा बताथें- एक वेश्या माँ दुर्गा के जबर भक्त रिहिसे, जेन समाज के तिरस्कार ले दुखी राहय. वो महतारी जगा अरजी करिस, तब दाई वरदान दिस के जब तक वोकर मूर्ति वेश्या के अँगना के माटी ले नइ बनही, तब तक वो मूर्ति म बसेरा नइ करय.
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-छत्तीसगढ़ी परब-तिहार अउ परंपरा मन म अब आने राज ले आए परंपरा मन घलो निंगत जावत हें जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. भारी साँझर-मिंझर होय लगे हे.. लोगन एक-दूसर के देखा-सिखी सबोच ल अमरे असन कर डारथें.. अब देख लेना हिंदी सिनेमा मन के देखा-सिखी इहाँ करवा चौथ के उपास ह माईलोगिन मन म बनेच हमावत जावत हे.. ठउका अइसने अभी एक ठ नवा परंपरा देखे ले मिलिस- 'बेटा जितिया'.
   -ए नॉव ह मोला नवा सुने अस जनावत हे.
   -हव.. नवच तो आय, फेर पश्चिम ओडिशा ले लगे क्षेत्र के मन एला बनेच मनाथें.. उत्तर प्रदेश, बिहार अउ बंगाल म घलो एला मनाय जाथे बताथें.. पितरपाख माने कुँवार अँधियारी पाख के आठे तिथि म मनाथें बेटा जितिया ल.. अपन बेटा मन के लम्बा उमर खातिर महतारी मन निर्जला उपास रहिथें.
    -मोला लागथे संगी के हमर छत्तीसगढ़ के पुरखौती परंपरा म पितरपाख म पितर मन के परघनी सुमरनी के छोड़े अउ कुछू नइ करे जाय.. जिहाँ तक बेटा मन खातिर उपास रहे के बात हे त वो तो इहाँ महतारी मन कमरछठ म करथें.. कोनो कोनो. सकट म घलो रहिथें.
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-तुँहर फैक्ट्री म काली विश्वकर्मा जयंती बड़ा जोर-सोर ले मनाइन हें कहिथें जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. हर बछर सृजन के देवता विश्वकर्मा जी के पूजा ल जोरदार मनाए जाथे.. छत्तीसगढ़ी के रंगझाझर कार्यक्रम घलो राखे रेहेन.. फेर तैं जानथस संगी.. काली जेन परब रिहिसे वो ह विश्वकर्मा जी के जयंती के परब नोहय.. सिरिफ पूजा के तिथि आय जेमा कल-कारखाना अउ आने श्रम साधक मन अपन-अपन कार्यस्थल म उँकर पूजा कर सकँय.
   -अच्छा.. अइसे.. फेर कतकों लोगन तो जयंती काहत रिहिन हें!
   -विश्वकर्मा जी के जयंती माघ महीना के अँजोरी पाख म तेरस के होथे.. कहूँ उँकर जयंती मनातीन त भारतीय पद्धति के मुताबिक माघ महीना म अँजोरी तेरस के मनातीन.. असल म कामगार मनला विश्वकर्मा पूजा खातिर एक अलग से तिथि जोंगे गे रिहिसे, जे हा अँगरेजी तारीख के अनुसार हर बछर 17 सितंबर के आथे.
   -वाह भई..!
   -हव.. हमर भारतीय परंपरा म सावन, भादो, कुँवार, कातिक के मुताबिक देवता धामी मन के परब तिहार या जयंती आथे न.. ठउका अइसने इहू ह आतीस कहूँ जयंती परब होतीस त.
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-तोला सुन के भले ताज्जुब लागही जी भैरा फेर ए ह सोला आना सच आय के एक झन देवी के मुड़ी ह आने जगा स्थापित हावय त वोकर बाँचे देंह ह आने जगा स्थापित हे अउ दूनोंच जगा उँकर पूरा भक्ति भाव ले पूजा आराधना अउ मान-गौन होथे.
   -सिरतोन जी कोंदा.. ताज्जुब लागे के तो बातेच आय.
   -हव.. हमर छत्तीसगढ़ म ही बिराजे देवी आय.. रतनपुर के महामाया देवी अउ अंबिकापुर के महामाया देवी दूनों एकेच आय, जेकर देंह ह अंबिकापुर म स्थापित हावय त मुड़ी ह रतनपुर म स्थापित हे.
    -आखिर अइसे कइसे होगे संगी?
   -एकर संबंध म एक दंतकथा बताए जाथे, तेकर मुताबिक मराठा सैनिक मन अंबिकापुर के देवी दाई के मूर्ति ल अपन संग म ले जाना चाहत रिहिन हें, फेर सफल नइ हो पाइन त उन रिस के मारे मूर्ति के मुड़ी ल काट के रतनपुर डहार आगू बढ़िन.. तब देवी दाई के प्रकोप ले हर कोस म वोमा के एक सैनिक मरत गिस अइसे किसम आखिर म रतनपुर
 म आके उँकर मुड़ी स्थापित होगे.
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-हमर छत्तीसगढ़ म नवरात परब म माता के सुमरनी अरजी ह जस गीत के माध्यम ले ही होवत रिहिसे जी भैरा.. फेर जइसे-जइसे शहरी सभ्यता के नॉव म आने राज के चलागन मन इहाँ निंगत जावत हें वइसे-वइसे भक्ति भाव अउ श्रद्धा के ए चलागन म फूहड़ता अउ अश्लीलता ह घलो अपन ठउर बनावत जावत हे.
   -सही कहे जी कोंदा.. ए बखत अभी डाँडिया/गरबा के सोर जादा आवत हे.. फेर एमा भक्ति भाव कम अउ आडंबर अश्लीलता के नजारा जादा देखे म आवत हे.
   -वाजिब कहे संगी.. सोशलमीडिया म अभी शांतिनगर लोकांगन भिलाई के  एक ठ विडीयो वायरल होवत हे, जे ह गरबा के नॉव म करबा नाच कस जनावत हे.
   -हव जी महूँ आकब करे हौं.. उहाँ के विधायक ही ह वो आयोजन के माईमुड़ी आय.. अउ अश्लील गीत संग बेहूदा किसम के नाचत लोगन ल वो विधायक ही ह आगू म मुस्कीढारत बइठे घलो दिखत हे.
   -हमर छत्तीसगढ़ के शालीन अउ गरिमामय संस्कृति म संस्कृति के नॉव म अइसन उजबक प्रदर्शन ल कभू स्वीकार नइ करे जा सकय संगी.. फेर आजकाल के लोगन ल चारों मुड़ा ले भेंड़ियाधसान बने देखथौं तेनो ह ताज्जुब बरोबर जनाथे.
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-मोर नाती पूछत रिहिसे जी भैरा के दशहरा के दिन टेहर्रा चिरई ल देखे ल काबर शुभ माने जाथे?
   -तोला पाछू बछर बताए रेहेंव न जी कोंदा के विजयादशमी अउ दशहरा दू अलग-अलग परब आय.
   -हव गा बताए रेहे.. फेर काय करबे खेती-किसानी के चिभिक म बूड़े तहाँ ले सब बिसरा जथे.
   -जिहाँ तक टेहर्रा चिरई जेला नीलकंठ पक्षी घलो कहिथन.. तेकर दरस करई ल ए दिन भगवान भोलेनाथ के दरस करे बरोबर शुभ माने जाथे.. काबर के वो मन इही दंसहरा तिथि म जब समुद्र मंथन होए रिहिसे तेमा ले निकले विष या दंस ल पी के अपन टोटा म स्थापित कर लिए रिहिन हें, एकरे सेती उँकर टोटा नीला होगे रिहिसे.
   -अच्छा.. एकरे सेती नीलकंठ पक्षी ल ए दिन भगवान नीलकंठ के प्रतीक माने जाथे कहिदे..अउ लोगन रावन भाँठा म रावन के पुतला म आगी ढीले के बाद सोन पान घलो तो बाँटथें.
   -हाँ सोन पान ना.. जेला शमी पत्ता घलो कहिथें.. एला रावण के सोन के लंका ऊपर विजय प्राप्त करे के प्रतीक स्वरूप बाँटे जाथे, एकरे सेती तो एला सोन पान कहिथें.
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-नवरात म अभी कतकों जगा माता भवानी के सुमरनी ल सुवा गीत नृत्य जइसन पारंपरिक गीत मन के माध्यम ले करे जावत हे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. महूँ ल दू चार ठउर ले अइसन सोर-खबर मिले हे.. आने राज के चलागन ले आए गरबा-डाँडिया आदि के विकल्प के रूप म इहाँ भाखा-संस्कृति के मयारुक मन पंडाल बना के अइसन आयोजन करत हें अउ वोला लोगन के गजब मया घलो मिलत हे.. दिन के दिन उहाँ सँघरइया लोगन के संख्या म बढ़वार देखे जावत हे.
   -ए तो बने बात आय संगी.. अपन भाखा संस्कृति अउ परंपरा खातिर तो सब के मन म मया अउ उछाह होना चाही.. फेर मोला लागथे के अइसन पंडाल मन म अभी जेन गीत म नृत्य करे जाथे हे वो मन म सुधार करे जाना चाही.
   -अच्छा.. अइसे काबर?
   -अभी जेन पहिली ले रिकार्डेड गीत हे तेने म सामूहिक रूप ले नृत्य करे जावत हे.. जबकि होना ए चाही के माता के सुमरनी के जम्मो गीत मनला माता ऊपर ही आधारित होना चाही.
   -हाँ.. ए बात तो हे.. सुवा, करमा, पंथी, ददरिया आदि सबो गीत मन म माता के जस गायन होनी चाही.. धुन भले जम्मो पारंपरिक गीत के राहय फेर वोमा शब्द ह माता के महिमा अउ उपासना ले संबंधित होनी चाही.
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-भले नवरात म हमन महिषासुर जेला हमन भैंसासुर कहिथन के वध के उछाह मनाए रेहेन जी भैरा..  फेर हमर छत्तीसगढ़ म अइसनो लोगन हें, जे मन दुर्गा दाई के नहीं भलुक भैंसासुर के पूजा करथें अउ अपनआप ल वोकर वंशज मानथें.. अउ ए नवरात ल शोक के रूप म मनाथें.
   -हमर ग्राम्य संस्कृति म तो भैंसासुर के पूजा होवत मैं चारों मुड़ा देखथौं जी कोंदा.. हर गाँव के खेत के मेड़ म वोकर ठउर रहिथे जे मेर पूजा करे बिन कोनो किसान वो मेर ले बुलकय नहीं.. धान लुवई के शुरुआत घलो भैंसासुर के पूजा बिन करय नहीं.
   -हाँ.. फेर ए अब धीरे-धीरे नँदाय असन जनावत हे.. हमन जोत-जँवारा के विसर्जन के बेरा कोनो मनखे ल भैंसासुर बन के जोत मन के आँवर-भाँवर किंजरत घलो देखे हावन.. जशपुर जिला के मनोरा विकासखंड के हाड़ीकोना, जरहापाठ, बुर्जुपाठ, अउ दौनापान के मूल निवासी मन नवरात म देवी पूजा के परंपरा ले दुरिहा रहिथें, भलुक वो मन शोक मनाथें अउ भैंसासुर ल अपन पूर्वज मान के वोकर पूजा करथें.. उँकर मानना हे के भैंसासुर के वध ह केवल एक छल आय, जेमा दुर्गा ह देवता मन संग मिलके उँकर पूर्वज के हत्या करे रिहिसे.. ए मन होरी देवारी जइसन परब म घलो भैंसासुर के ही पूजा करथें.
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-तुँहर इहाँ के बहुरिया मन आजकाल के नवा चलागन वाला उपास-धास रहिथें नहीं जी भैरा? 
   -कइसन ढंग के नवा चलागन वाला जी कोंदा?
   -अरे.. सिनेमा उनिमा वाले मनला देख दुखा के करवाचौथ वाले नइ राहयंँ जी? 
   -टार बुजा ल.. कइसे गोठियाथस तैं ह.. अरे भई हमर इहाँ तो एकर ले बढ़ के तीजा के उपास रहिथें तब ए सब नवा-नवा चोचला काबर? 
   -हमर इहाँ के नेवरिन बहुरिया मन तो जिहाँ कोनो ल कुछू नवा चलागन म देखिन तहाँ उहू मन उम्हियाय परथें.
   -ए सब हीनता अउ छोटे पन के चिन्हारी आय जी संगी.. जे मन अपन आप ल छोटे अउ पिछड़ा समझथें ना उही मन दूसर के पिछलग्गू बने म अपन गरब समझथें. फेर मोर तो कहना हे- जिहाँ तक सम्मान के बात हे, त सबो के संस्कृति अउ परंपरा के सम्मान करना चाही, फेर जीना चाही सिरिफ अपन संस्कृति ल.. काबर ते सिरिफ अपन संस्कृति ही ह आत्मगौरव के बोध कराथे, जबकि दूसर के संस्कृति ह गुलामी के रद्दा देखाथे.
   -सिरतोन कहे संगी.. दूसर के संस्कृति ह सिरिफ गुलामी के दहरा म बोरथे.
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-कतकों लोगन अभी घलो सुवा गीत ल नारी विरह के गीत कहिथें अउ लिखथें घलो जी भैरा.
   -अइसन उही मन कहिथें जी कोंदा जे मन इहाँ के मूल संस्कृति ल बने पोठ असन नइ जानँय समझँय.
   -अइसे का?
   -हव.. अच्छा तहीं बता.. कोनो विरह गीत ल तारी बजा-बजा के अउ नाच-नाच के गाए जाथे का?
   -विरह गीत तो रोनहा-धोनहा होथे जी संगी वोमा कइसे कोनो नाचहीं-कूदहीं.
   -हाँ... वइसने एला बारों महीना घलो नइ गाए जाय.. सिरिफ कातिक महीना के अँधियारी पाख म गौरा-ईसरदेव के बिहाव होवत ले ही गाथें.. जबकि दूसर विरह गीत ल बारों महीना गाए जाथे.
   -सही कहे संगी.
   -असल म सुवा गीत ह गौरा-ईसरदेव परब के संदेश गीत आय.. तोला सुरता हे नहीं.. लइकई म कातिक लगय तहाँ मुँदरहा ले कातिक नहाय बर जावन अउ संझा बेरा सुवा नाचे बर?
   -हव जी.. नोनी मन सुवा नाचँय अउ हमन उँकर सेर-चाउँर धरे के टोपली अउ झोला-झंगड़ मनला धरे राहन.
   -ठउका सुरता करे.. असल म ए सब ह गौरा-ईसरदेव के बिहाव खातिर होथे.. गीत-नृत्य के माध्यम ले बिहाव म सँघरे के संदेश दिए जाथे अउ सेर-चाँउर ल वो दिन होवइया खर्चा के व्यवस्था खातिर सकेले जाथे.
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-बाहिर ले धरम के सँवागा खापे आवत लोगन मन इहाँ के जम्मो देव-ठिकाना मन म धीरे-धीरे कब्जा जमावत हें जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. अउ देव-ठिकाना म कब्जा करे के संगे-संग इहाँ के मूल परंपरा मन म बदलाव घलो करत हें.
   -हव जी.. अभी मैं इहाँ के जुन्ना मंदिर के पुजारी के गोठ ल सुनत रेहेंव.. वो काहत रिहिसे- हमन मंदिर म नवरात के जोत ल कुवाँरी नोनी मन जगा चकमक पखरा ले जलवाथन कहिके.
   -चकमक पखरा ले तो सबो जगा जोत जलवाथें संगी फेर वोला कुवाँरी नोनी मन जगा नहीं, भलुक मंत्रसिद्ध बइगा मन द्वारा जलवाए जाथे.. मंत्रसिद्ध बइगा मन के इहाँ के संस्कृति म जबर महत्व हे.
   -सही कहे.. मंत्रसिद्ध बइगा ह वो जोत ल सिरिफ जलावय भर नहीं भलुक अभिमंत्रित घलो करथे.. तभे वो जोत के महत्व होथे.
   -वाजिब कहे.. बिना अभिमंत्रित करे जोत जलाय के वतका महत्व नइए जतका अभिमंत्रित करे के होथे.. फेर कुवाँरी नोनी.. जे मन मंत्रसिद्धि नइ कर पाए हें, वइसन मन जगा जोत जलवाए के कोनो खास महत्व नइए.
   -बाहरी ले आए लोगन इहाँ के धारमिक अउ सांस्कृतिक भावना संग सरलग खिलवाड़ करत हें.. एकर मन के खिलाफ सबो मूल निवासी मनला एकफेंट होके आगू आए बर लागही.
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-कातिक अमावस के होवइया गौरा-ईसरदेव बिहाव परब के बेरा म तैं ह काँसी डोरी वाला सोंटा मरवाथस नहीं जी भैरा? 
   -इहू ह पूछे के बात आय जी कोंदा.. हर बछर मैं गौरा-ईसरदेव के आशीर्वाद पाए बर सोंटा मरवाथौं.
   -बहुत बढ़िया.. वइसे ए ह आय तो हमर पुरखा मन के बनाए एक परंपरा ही, फेर ए ह वैज्ञानिक दृष्टि ले घलो बड़ महत्तम के होथे.
   -अच्छा.. अइसे का जी? 
   -हहो.. ए सोंटा ल काँसी के काँदी (सुक्खा पैरा) के डोरी ल बने पाँच दिन तक तेल म बोर के राखे जाथे, जेकर हाथ म सटाक ले परे ले हमर नस के सफेद रक्त कोशिका  (white blood cells) मन ह सक्रिय हो जाथें.. सफेद रक्त कोशिका मन के सक्रिय होय ले करीब पचास किसम के बीमारी मन अपने अपन ठीक हो जाथें.. ए सोंटा के माध्यम ले शरीर ल मिले एक्यूप्रेशर के क्रिया ले कैंसर के लक्षण कहूँ जनावत होही त उहू ल ए सफेद रक्त कोशिका मन खतम कर देथें.
   -वाह भई.. तब तो अब मैं ह हर बछर अपन घर के लइका मनला घलो सोंटा मरवाए बर कइहौं.
   -जरूरी हे.. हमर पुरखा मन जे  परंपरा बनाए हें वो मन आध्यात्मिक के संगे-संग वैज्ञानिक महत्व के घलो हे.
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-हमन अभी कातिक अमावस के गौरा-ईसरदेव के बिहाव परब मनाए हावन न जी भैरा.. एमा ईशर राजा ह तो बइला के सवारी करथे फेर गौरा दाई ह कछुआ म बइठे रहिथे.
   -हव कछुआ म ही उनला बइठारे जाथे जी कोंदा.
   -हाँ इही ह हमर पुरखौती परंपरा आय.. अउ तैं जानथस.. धमतरी जिला के गाँव लोहारपथरा म हर बछर एक सिरतोन के कछुआ ह गौरा-ईशर बिहाव परब के बेरा म जेन घर म एकर मन के मूर्ति ल बनाए जाथे, उहिच घर म आके वो पूजा ठउर म बइठ जाथे.
   -वाह भई.. ए तो कोनो दैवीय घटना बरोबर हे!
   -हव जी तीस बछर ले आगर होगे हे बताथे गाँव वाले मन हर बछर गौरा-ईशर के मूर्ति बने के जगा आ के बइठ जाथे, तहाँ ले गाँव वाले मन वो जीयत कछुआ ल मूर्ति म ही बइठार के गाँव भर किंजारथें पूजा करथें अउ आखिर म कोनो तरिया म ढील देथें.
   -ए ह गौरा-ईशर के साक्षात आशीष बरोबर जनावत हे संगी.
   -गाँव के मन एला बहुत शुभ मानथें.. अउ तैं जानथस.. ए बछर एके संग तीन ठ कछुआ आगे रिहिन हें बताथें.. गाँव वह मन तीनों ल मूर्ति संग बइठार के पूजा करिन.. गाँव भर किंजारिन अउ तहाँ ले तरिया म ढील देइन.
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-नवा रायपुर म छत्तीसगढ़ विधानसभा के नवा भवन के लोकार्पण प्रधानमंत्री ह राज्य स्थापना दिवस के दिन करही काहत हें जी भैरा.
   -हव जी कोंदा महूँ अइसने सुने हावँव.. फेर मैं ए गुनत रेहेंव के नवा विधानसभा भवन के नॉव ल काकर नॉव म रखे जाही ते?
   -अब एला तो सत्ताधारी मन जोगथें संगी.. तोला सुरता हे नहीं.. जीरो पाइंट बरौदा वाले विधानसभा भवन के नामकरण के बेरा म तब के मुख्यमंत्री ह कइसे इहाँ के दू बड़का समाज ल लड़ाय के उदिम करे रिहिसे?
   -सुरता कइसे नइ रइही संगी.. पहिली कुर्मी समाज के महाधिवेशन म मुख्यअतिथि के हैसियत ले वो ह छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल के नॉव म विधानसभा भवन ल करे के घोषणा करे रिहिसे.. अउ तहाँ ले दूसर दिन सतनामी समाज के कार्यक्रम म मिनीमाता के नॉव म घोषणा कर दिस.. एकरे सेती कुर्मी समाज अउ सतनामी समाज जबर धरना प्रदर्शन करे रिहिन हें.
   -हव जी मोला सब सुरता हे.. अउ इहू सुरता हे के इहाँ के दू प्रमुख व्यक्तित्व के नॉव म दू बड़का समाज ल लड़वाय के उदिम करे के सेती वो मुख्यमंत्री ल छत्तीसगढ़ महतारी ह राजनीतिक रूप ले लतिया दे रिहिसे.. उहें ले वोकर राजनीतिक पतन चालू होय रिहिसे.
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-महर्षि वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड म "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"  माने जननी अउ जन्मभूमि ल स्वर्ग ले घलो उँचहा अउ महान कहे गे हवय जी भैरा.
   -हव जी कोंदा महूँ अइसने पढ़े रेहेंव.. वोमा भगवान राम ह अइसन कहे हे.
   -तब मैं गुनथौं के अभी छत्तीसगढ़ महतारी के मूर्ति ल टोरे के घटना होय रिहिसे, तब वो मन कइसे अचेत सूते रिहिन, जे मन अग्रसेन अउ झूलेलाल के नॉव म बोंबियावत हें?
   -सही आय जी.. छत्तीसगढ़ महतारी के अपमान उनला नइ दिखिस अउ जेकर मन के योगदान छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन ले लेके एकर निर्माण अउ सजाए सँवारे म चिटिको नइए वोकर मन बर कुछ भावनात्मक शब्द निकलगे तेकर बर उमियागे हें.. का ए मन वाजिब म छत्तीसगढ़ के निवासी आयँ.. अपन आप ल छत्तीसगढ़ महतारी के सपूत मानथें.. अउ कहूँ अपन कर्म अउ आचरण ले अइसन साबित नइ करँय त ए मनला छत्तीसगढ़ म रहे के.. इहाँ के उपजे अन्न-जल ल खा-पी के जीए के का अधिकार हे?
   -बिल्कुल नइए.. जे मन छत्तीसगढ़ ल मातृभूमि नइ मानँय.. जे मन छत्तीसगढ़ ल महतारी नइ मानँय.. वो मनला इहाँ रहे या जीए के कोनो नैतिक अधिकार नइए.. अइसन मन के कोनो मुलाजा नइ करे जाना चाही.
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-छत्तीसगढ़ जोहार जी भैरा.. आज नवा छत्तीसगढ़ ल बने पचीस बछर होगे.
   -हव जी कोंदा.. नवा नक्शा सिरजे के जोहार हे.. फेर हमन जेन उद्देश्य ल लेके छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन म सँघरे रेहेन तेन ह आज घलो छाहित नइ हो पाय हे.
   -कइसे कहिथस संगी.. सरकार तो गजब विकास होय हे कहिके तुतरू बजावत रहिथे.. उँकर पँदोली देवइया रागी मन घलो भारी लाम-लाम गोठियाथें.
   -हव जी विकास होय हे.. फेर कटाकट घपटे जंगल मनला उजार के बड़का-बड़का खदान कोड़े म होय हे.. उपजाऊ खेत मनला उजार के उहाँ क्रांकीट के जंगल के रूप म कालोनी मन के बसाय म होय हे.. डोंगरी-पहार मनला उजार के वोकर तरी म लुकाय खनिज संपदा मनला निकाले के बुता म विकास होय हे.. फेर इहाँ के भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता तो आजो चार-धार के रोवत हे.
   -हव जी ए बात सही आय.. आज तक भाखा ल संवैधानिक दर्जा नइ मिल पाय हे.. संस्कृति के अलग चिन्हारी नइ बन पाए हे..  अस्मिता के तो कहूँ मेर आरो तक मिले ले नइ धरय.. अउ जब तक ए सब पूरा नइ हो जाय तब तक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के अवधारणा अधूरा ही रइही.. काबर ते छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन के नेंव म इही मन प्राथमिकता रिहिसे.. इही सब आस के सेती हमन राज्य आन्दोलन म सँघरे रेहेन.
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-काली जेठौनी परब के रतिहा तुमन जुन्ना झेंझरी, झँउहा, टुकना, सूपा जइसन बाँस ले बने जिनिस मन के भुर्री बार के आगी तापेव नहीं जी भैरा?
   -हमर पुरखौती परंपरा आय जी कोंदा तापबो कइसे नहीं.. भले अब जाड़ ह पहिली असन पोठ जनावय नहीं, तभो नेंग ल तो करेच हावन.
   -हव संगी हमूँ मन आगी तापे के नेंग ल करे हावन.. सियान मन बतावँय के बाँस के आगी म कफ नाशक के जबर गुन होथे.. तइहा बेरा म कोनो लइका ल निमोनिया हो जावय त वोला बाँस के आगी म ही सेंके जावय.. जाड़ के मौसम म रतिहा बेरा बाँस के लकड़ी के आगी के आँच ह अमरित बरोबर गुनकारी होथे कहिके बतावयँ सियान मन.
   -अच्छा.. एकरे सेती जेठौनी के रतिहा बाँस ले बने जुन्ना जिनिस मनला बार के भुर्री तापे जाथे कहिदे?
   -हव.. अउ हमर कृषि संस्कृति म जेठौनी के रतिहा अँगना म धान अउ कुसियार ल बने निक बानी के सजा के खड़ा करे जाय.. तहाँ ले वोकर सात भाँवर किंजर के लुए के नेंग करे जाय..
   -हव.. अउ तोला सुरता हे नहीं.. डोकरी दाई ह जुन्ना बाँस के जिनिस के भुर्री के राख ल सकेल के वोमा अंडी तेल  मिंझारय तहाँ ले नवा सूपा आदि मन म वार्निश बरोबर चुपर के सूखो देवय.
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-हमर देश म हर बछर 26 नवंबर के संविधान दिवस मनाए जाथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. बछर 1949 म 26 नवंबर के भारत गणराज्य के संविधान बन के तइयार होय रिहिसे.. संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर के 125 वाँ जयंती के बेरा म 26 नवंबर 2015 म पहिली बेर भारत सरकार द्वारा संविधान दिवस मनाए गे रिहिसे तब ले अब हर बछर 26 नवंबर के संविधान दिवस मनाए जाथे.
   -सही कहे.. अउ का तैं इहू बात ल जानत हावस के संविधान के हिंदी प्रारूप समिति के अध्यक्ष हमर दुरुग के पुरखा घनश्याम सिंह गुप्त जी ह रिहिन हें, जे मन 24 जनवरी 1950 के संविधान के हिंदी प्रति ल डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ल सौंपे रिहिन हें.
   -अद्भुत हे संगी.. मतलब भारतीय संविधान के निर्माण म हमर छत्तीसगढ़ के घलो योगदान हे कहिदे.
   -संविधान के हिंदी अनुवाद के बेरा के संस्मरण ल साहित्यकार दानेश्वर शर्मा जी ठउका बतावँय- घनश्याम गुप्ता जी हिंदी प्रारूप समिति के जम्मो सदस्य मनला काहँय के तुमन ल हिंदी या आने भाखा म अंगरेजी शब्द के उपयुक्त शब्द नइ मिलही त मोला बताहू.. मैं छत्तीसगढ़ी म वोकर शब्द बता देहूँ.
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-कातिक पुन्नी के दिन गुरु नानक देव जी के प्रकाश परब ल पूरा देश अउ दुनिया के संग छत्तीसगढ़ म घलो आस्था अउ श्रद्धा के संग मनाए गे रिहिसे जी भैरा.. फेर का तैं ए बात ल जानथस के गुरु नानक देव जी जब अमरकंटक ले जगन्नाथपुरी के यात्रा म रहिन त हमर छत्तीसगढ़ म घलो उन दू दिन रूके रिहिन हें?
   -ए बात ले तो मैं अनचिन्हार हौं संगी.
   -बछर 1506 ई. के बात आय महासमुंद जिला के गाँव गढ़फुलझर म एक पीपर पेंड़ के खाल्हे उन दू दिन रूके रिहिन हें.. ए गाँव ल आजकाल नानकसागर के नॉव ले घलो जाने जाथे.. ए गाँव के करीब पाँच एकड़ जमीन भूमि राजस्व रिकॉर्ड म गुरु नानक देव जी के नॉव म दर्ज हे.
   -ए तो सिरतोन अद्भुत बात आय संगी.
   -हव.. ए गाँव म लोगन के एकता अउ पवित्रता घलो देखते च बनथे.. गाँव म अभी तक कोनो किसम के लड़ई-झगरा या विवाद देखे ले नइ मिलय, एकरे सेती  इहाँ ले आज तक कोनो थाना कछेरी म एफआईआर दर्ज नइ होय हे.
   -ताज्जुब के बात हे संगी!
   -जेन पीपर के खाल्हे म नानक देव रूके रिहीन हें, उही चौंरा म बइठ के सियान मन लोगन के समस्या के समाधान करथें.. लोगन बताथें के वो चौरा म बइठे ले मन म अद्भुत शांति जनाथे.
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Saturday, 20 September 2025

सादगी और साहित्य.. सुशील वर्मा भोले

सादगी और साहित्य साधक का दूसरा नाम है सुशील वर्मा भोले

आलेख -कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

  छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में सुशील वर्मा भोले एक ऐसा नाम है। जिसके बारे में कहा जा सकता है कि उनका लेखन हर विषय पर शोध परक होता है।छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, लोक कला, लोक जीवन और मानवीय संवेदनाओं को उभारने में विशेष स्थान रखता है। उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा में कविता, कहानी, व्यंग्य, संस्मरण और विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की हैं।उनका कलम छत्तीसगढ़ी अस्मिता और स्वाभिमान के लिए एक सिपाही के रूप खड़ा होता है।वे किसी भी विषय पर आलेख लिखते समय उसे यथार्थ की धरातल में परखते हैं।चाहे ठेठरी खुरमी को शिवलिंग और जलहरी की बात हो या श्राद्ध में तरपन का महत्व हो या किसी मंदिर वा पर्यटन स्थल का आलेख हो उसमें वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के दर्शन होते हैं।उनका भगवान शिव पर अटल विश्वास है।
   छत्तीसगढ़ साहित्य में उनका योगदान वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए सदैव प्रेरणादायक रहेगा।वे लम्बे समय तक एक कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम संपूर्ण मासिक पत्रिका "मयारू माटी" के संपादक थे।साथ ही उन्होंने दैनिक अग्रदूत,तरुण छत्तीसगढ़,अमृत संदेश आदि समाचार पत्रों के सह संपादक के रूप में कुशल भूमिका भी निभाई है।
     प्रत्येक साहित्यकार का एक सपना होता है कि उसके साहित्य को लोग जाने पहचाने और पाठ्यक्रम में शामिल हो।भोले जी की छत्तीसगढ़ी कहानी 'ढेंकी' को पं.रविशंकर शुक्ल विवि.द्वारा एम ए छत्तीसगढ़ी के सेमेस्टर 2 में शामिल किया गया है।
   दरस के साध(लंबी कविता)जिनगी के रंग- (गीत और भजन संकलन)
कहानी संग्रह
 ढेकी (कहानी संकलन),छितका कुरिया(काब्य संग्रह),
 भोले के गोले(व्यंग्य संग्रह)
सुरता के संसार (संस्मरण संग्रह)आखरअंजोर(छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों का संकलन है।
सुशील भोले की रचनाओं में छत्तीसगढ़ी भाषा की मिठास और लोकजीवन के यथार्थ स्वरूप दोनों के जीवंत रूप के दर्शन होते हैं । उनकी कहानियाँ और व्यंग्य संग्रह सामाजिक मुद्दों पर तीखा कटाक्ष करते हैं और पाठकों को सोचने पर मजबूर करते हैं। उनके लेखन में छत्तीसगढ़ी तीज-त्योहार, ग्रामीण जीवन, और लोक परंपराओं का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। समसामयिक मुद्दों को लेकर प्रतिदिन लिखने वाले उनके लघु आलेख "कोंदा भैरा के गोठ" भी काफी लोकप्रिय हैं जो सरलग जारी है।
पेशे से कुशल पत्रकार रहे आदरणीय सुशील भोले भैया अपनी तमाम शारीरिक परेशानियों को मात देते हुए आज भी उम्र के इस पड़ाव में सतत् लेखन कार्य कर रहे हैं। ईश्वर उसे दीर्घायु प्रदान करें ताकि वे हमेशा अपनी कलम से छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा करते रहें।
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आलेख -
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
(छग.साहित्यकार, छंदकार)
कटंगी-गंडई जिला केसीजी छत्तीसगढ़-9977533375
04-09-2025

Thursday, 11 September 2025

रामचंद्र वर्मा संक्षिप्त परिचय..

   स्व. श्री रामचंद्र वर्मा का जन्म ग्राम नगरगाँव, थाना धरसींवा, जिला रायपुर के किसान स्व. बुधराम वर्मा एवं 
माता दया बाई के घर पर हुआ था.
   वे दो भाई और दो बहनों के भरेपूरे परिवार में सबसे बड़े थे. रामचंद्र वर्मा और अनुज देवचरण वर्मा दोनों ही शिक्षक थे. रामचंद्र की शिक्षक के रूप में प्रथम नियुक्ति ग्राम कूँरा (कुँवरगढ़), थाना धरसींवा जिला रायपुर में हुई थी. उसके पश्चात उनका स्थानांतरण ग्राम सिनोधा (नेवरा) में हुआ था, फिर भाठापारा शहर के मेन हिंदी स्कूल में स्थानांतरित होकर आए.
   यहीं मेन हिंदी स्कूल में शिक्षकीय कार्य करने के दौरान ही उन्होंने प्राथमिक हिंदी व्याकरण एवं रचना किताब कक्षा 3 री, चौथी एवं पाँचवीं का लेखन किया था, जिसे उस समय सभी शालाओं में पाठ्यपुस्तक के रूप में शामिल किया गया था. 
   भाठापारा शहर के ही एक शिक्षक आत्माराम जी जो अपने पिताजी के नाम पर अनुपम प्रकाशन के नाम से पुस्तक प्रकाशन का व्यवसाय करते थे, उनके ही प्रोत्साहन पर उन तीनों किताबों की रचना हुई थी, इसलिए उन किताबों का प्रकाशन अधिकार भी अनुपम प्रकाशन को दिया गया था.
   रामचंद वर्मा के अनुज देवचरण वर्मा का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो जाने के कारण उनके माता पिता असहाय से रहने लगे थे, इसलिए उन्होंने अपना स्थानांतरण भाठापारा से रायपुर करवा लिया था. रायपुर में तेलीबांधा रविग्राम स्कूल में उनका स्थानांतरण हुआ था. उसके पश्चात रामकुंड रायपुर स्थित सखाराम दुबे स्कूल में प्रधान पाठक के रूप में स्थानांतरण हुआ जहाँ से वे प्रधान पाठक के रूप में ही सेवानिवृत्त हुए.
   रामचंद्र वर्मा भाठापारा के हथनीपारा वार्ड में रहते थे, उस समय वहाँ घासीराम जी साव पार्षद थे. घासीराम जी का अत्यंत स्नेह रामचंद्र वर्मा को प्राप्त था, इसीलिए रामचंद्र के घर बहुत पूजा पाठ और तप जप के पश्चात आठ वर्षों के अंतराल पर उनका मझला सुपुत्र सुशील (छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ साहित्यकार सुशील वर्मा भोले का) जन्म हुआ तो उसकी छट्ठी बरही सब घासीराम जी ने अपने ही घर पर अपने देखरेख और संरक्षण में करवाया था.
   रामचंद्र वर्मा के द्वितीय सुपुत्र साहित्यकार सुशील वर्मा भोले बताते हैं कि उनके पिताजी प्राथमिक व्याकरण रचना किताब को प्रतिवर्ष संशोधित करते थे. गरमी के दिनों में शालाओं का अवकाश होता था, तब वे उन तीनों किताबों का संशोधन संवर्धन करते थे. सुशील वर्मा भोले कहते हैं कि मैं उन्हें गरमी की छुट्टी भर लिखते पढ़ते ही देखता था. उनके इसी गतिविधियों को देख देख कर ही मेरे मन में भी लेखन के प्रति आकर्षण उत्पन्न हुआ.

Saturday, 16 August 2025

कोंदा भैरा के गोठ-35

कोंदा भैरा के गोठ-35

-तोला कइसे लागथे जी भैरा.. अपन भाखा ल कोनो मनखे ल मार-पीट के बरपेली बोलवाए जा सकथे?
   -हव.. मुँह के आगू म तो बोलवाए जा सकथे जी कोंदा, फेर अंतस म वोकर बर ठउर नइ बनवाए जा सकय. 
   -सही कहे संगी.. अभी महाराष्ट्र म राज ठाकरे के कार्यकर्ता मन जइसन करत हें तेकर ले मराठी भाखा ल आत्मसात करे के रद्दा नइ निकल सकय.
   -हव सही आय.. हमर छत्तीसगढ़ म घलो राज्य आन्दोलन के बखत कुछ लोगन इहाँ के रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि मन म छत्तीसगढ़ी भाखा म एनाउंसमेंट करे के नॉव म तोड़फोड़ अउ आगजनी जइसन उदिम करे रिहिन हें, फेर वो मनला जनसमर्थन नइ मिल पावत रिहिसे.
   -लोकतंत्र म अइसन उग्रता ल कोनो समर्थन नइ देवँय.. जइसे हमन लोकतांत्रिक तरीका ले ही छत्तीसगढ़ राज ल पाएन.. घोषित रूप म राजभाषा पाएन.. ठउका अइसने   आठवीं अनुसूची म ठउर अउ शिक्षा संग राजकाज के माध्यम घलो पाबोन.. बस जइसे भाखा खातिर सरलग जनजागरण अउ सरकार ल चेत कराए के उदिम चलत हे वोला सरलग चलावत रेहे बर लागही.
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-नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के कहना हे जी भैरा के भगवान राम के जनम नेपाल म होय रिहिसे.. वोकर कहना हे के भगवान शिव अउ विश्वामित्र घलो  नेपाल के ही रहिन हें.
   -मोला वोकर गोठ ह पतियाय असन नइ जनावत हे संगी कोंदा.
   -तोला चाहे कुछू जनावय.. वोकर कहना हे के वो ह ए बात ल महर्षि वाल्मीकि के लिखे रामायण के आधार म काहत हे अउ वाल्मीकि रामायण ही असली हे..  वोकर इहू कहना हे के वो बखत नेपाल म वो क्षेत्र ह रिहिस होही ते नहीं, फेर आज वो क्षेत्र ह नेपाल म हावय.. वाल्मीकि रामायण म लिखाय हवय तेमा विश्वामित्र काहत हे- राम कोसी नदी पार कर के पश्चिम डहर गिस अउ लक्ष्मण ल शिक्षा दिस.. ए सब नेपाल के सुनसरी जिला के वर्तमान क्षेत्र ले जुड़े हे.. विश्वामित्र चतरा के रिहिसे ए बात रामायण म लिखाय हे.
   -हमन ल जम्मो जुन्ना इतिहास मनला नवा संदर्भ संग फेर पढ़े बर लागही का संगी?
   -वोकर कहना हे- राम के जनम ठउर ह थारू गाँव आय शायद, जेन ह अब नेपाल म हवय.. अब राम ह भगवान आय ते नहीं ए लोगन के आस्था ये, फेर उँकर मन बर थारू ह पवित्र हे.. हमला एकर प्रचार करना हे.. बिना संकोच अउ डर के.
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-संगी भैरा.. सावन आथे तहाँ ले तोर मेछा-डाढ़ी बाढ़े लागथे.. अइसे काबर.. एकर कोनो महत्व हे का?
   -देख जी कोंदा.. पहिली तो महूँ ह तोरे असन एकर महत्व ल नइ समझत रेहेंव, फेर जब ले वैज्ञानिक के संगे-संग आध्यात्मिक महत्व ल समझेंव तब ले हर बछर पूरा सावन भर साँवर नइ बनावौं.
   -अच्छा.. अइसे का महत्व हे एकर?
   -एकर आध्यात्मिक या कहिन मनोवैज्ञानिक कारण तो ए हे के ए महीना ल शिव जी के भक्ति, उपासना अउ साधना के महीना माने जाथे.. मेछा-डाढ़ी बाढ़े ले मनखे के ध्यान बाहरी आकर्षक या सजावट डहार नइ अभर के आध्यात्मिक चिंतन म हरहिंछा होके लगे रहिथे.
   -अच्छा.. अउ वैज्ञानिक कारण?
   -वैज्ञानिक कारण ए हे के बरखा के मौसम म हमर शरीर के पाचन अग्नि (मेटाबॉलिज्म) ह थोकन कमजोरहा रहिथे, तेकर सेती ए बखत अनावश्यक शारीरिक बदलाव जइसे मेछा-डाढ़ी या साँवर बनवाना आदि ले बाँचना चाही.
   -वाह भई..!
   -हव.. कभू मेछा-डाढ़ी बनावत थोर-बहुत कटा-छोला घलो जाथे, जेकर ले कई किसम के संक्रमण के खतरा घलो बाढ़ जाथे.. अब तहीं बता ए सबला देखत-समझत महीना भर मरदनिया तीर नइ ओधबे त कुछू नुकसान हो जाही?
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-जब कभू कोनो मनखे नवा रद्दा गढ़े के कोशिश करथे, त लोगन वोला जकला-बइहा काहत भरमाए अउ भटकाए के उदिम तो करबे करथें जी भैरा.
    -हव ए बात तो सिरतोन आय जी कोंदा.. पहिली बात तो ए हे के लोगन वोकर कारज के उद्देश्य ल नइ समझ पावँय तभो अंते-तंते गोठियाथें, त कभू कोनो मनखे वोकर ए कारज ल इरखा भाव ले देखत घलो वोकर रद्दा म अटघा डारे के उदिम करथे.
   -सही आय जी.. अइसन मनखे के रद्दा म अटघा डरइया मन जादा जनाथें, फेर एक बात तो हे संगी.. नदिया के पानी कस सरलग बोहावत रहिबे, त तोर रद्दा म अइसन जतका अटघा डरइया काड़ी-कचरा बरोबर लोगन आथें, सब अपने अपन तिरिया जाथें.
   -अच्छा अइसे? 
   -हहो.. माउंटेन मेन के नॉव ले प्रसिद्ध दशरथ मॉंझी के नॉव ल सुने हावस नहीं.. वोकर जिनगी अउ ठोस इरादा ले करे बुता ह ए बात के सउँहे उदाहरण आय.. लोगन वोकर कारज ल देख के कतकों हाँसिन.. बेलबेली मढ़ाइन फेर जब तक वो ह अपन सुवारी के सुविधा खातिर आए जाए बर पहाड़ ल काट के रद्दा नइ बना लेइस, तब तक न थिराइस न हरहिंछा होके बइठिस.
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-कभू-कभू अंधविश्वास ह मूर्खता के जम्मो डेहरी मनला नाहकत जनाथे जी भैरा.
   -कइसे का होगे जी कोंदा?
   -अरे का कहिबे संगी.. बलरामपुर जिला के सामरी थाना क्षेत्र के गाँव चटनिया कटईडीह के 40 बछर के राजू कोरवा ह अपन बेटा के मिर्गी के बीमारी ल बने करे के नॉव म गाँव झलबासा के एक अढ़ई बछर के बाबू के बलि दे दिए रिहिसे.
   -वाह भई.. अपन बेटा के मिर्गी के बीमारी ल ठीक करे बर आन के लइका के बलि!
   -हव भई.. सुनब म अकबकासी लागत हे.. पहिली टोनही-टमनहिन.. तंत्र-मंत्र.. बइगा-गुनिया के नॉव म बलि के गोठ सुना जावत रिहिसे, फेर ए मिर्गी जइसन रोग ल बने करे बर बलि के गोठ ह पहिली बेर सुने ले मिले हे.
    -फेर मैं तो कहिथँव संगी.. बलि ह कोनो भी समस्या के समाधान नोहय.
   -बिल्कुल नोहय.. मैं तो देवता-धामी अउ परंपरा के नॉव म जेन बलि दिए जाथे तेनो ल उचित नइ मानँव.
   -बिल्कुल उचित नोहय.. जे देव-शक्ति मन लोगन ल जिनगी देथें.. उनला जीए के सहारा अउ रद्दा देखाथें, उही च मन उनला मारे-काटे के नॉव म खुश कइसे हो सकथें?
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-हमर छत्तीसगढ़ के पहला तिहार हरेली ल बने-बने मनाए के जोखा चलत हे जी भैरा? 
   -हौ जी कोंदा.. बने-बने जोखा चलत हे गा, फेर ए हरेली परब ह हमर संस्कृति के पहला परब नोहय जी संगी.
   -अच्छा! कतकों झन तो हरेली ल ही छत्तीसगढ़ी संस्कृति के पहला परब आय कहिके लोगन ल जनवावत हावँय जी.. एकर नॉव म कतकों किसम के आयोजन घलो करत हावँय.
   -असल म का हे ना.. जे मन इहाँ के मूल परब-तिहार के मुड़ी-पूछी तक ल नइ जानॅंय, तेही मन इहाँ के संस्कृति के अगुवा बने फोकटइहा म मटमटावत रहिथें, ए सब वोकरे मन के नादानी के सेती बगरे बात आय. असल म हमर संस्कृति के पहला परब अक्ती ह आय जी संगी, जे दिन 'मूठ धरे' के रूप म किसानी के शुरुआत होथे, जम्मो पौनी-पसानी अउ खेतिहर श्रमिक मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति होथे. एकर पाछू फेर जुड़वास आथे जेला माता पहुंचनी घलो कहिथन अउ वोकर बाद सवनाही आथे, तेकर पाछू फेर हरेली आथे जी संगी.
   -अच्छा.. माने हरेली ह चौथइया नंबर म आथे कहि दे.
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-सावन सोमवारी जोहार जी भैरा.
   -जोहार संगी कोंदा.. अरे.. यहा अतेक लम्हरी अगसी ल धर के कहाँ चले जी?
   -एदे मंडल पारा डहार जाथौं.. उँकर अँगना म बने सुग्घर-सुग्घर फूल फुले रहिथें न उही मनला अमर के टोरे बर.
   -अच्छा.. माने महादेव म चढ़ाए खातिर फूल पान टोरे बर जावत हावस.. अउ उहू म लुका-चोरी?
   -अब परदा के ए पार ले जतका अमरा जाथे ते मनला टोरे म का हे गा?
   -अइसन ल चोरी कहे जाय संगी.. अउ भगवान म चोराए फूल-पान ल चढ़ाए म तोर जम्मो पुन्न के फल ह तो अधिया जाही.
   -अधिया काबर जाही जी?
   -जेकर घर-बारी ले बिन पूछे-सरेखे फूल टोरत हावस ते हा आधा ल नइ पाही जी.
   -अच्छा.. अइसनो होथे का?
   -हव.. होही कइसे नहीं.. अरे भई तोला आन के बारी-बखरी ले फूल-पान टोरनच हे, त एक भाखा उँकर जगा पूछ लेते.
   -अइसे.. तब मोर पूजा-पैलगी के फल ह पूरा मिलही?
   -हव.. तोर घर पूजा खातिर कुछू जिनिस ह नइए त या तो वोला पइसा देके बिसा ले.. अउ नहीं त वो घर-बारी के मालिक जगा पूछ के अनुमति ले ले तभे तोर पूजा के फल तोला पूरा मिलही.
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-नवरात जोहार जी भैरा.
   -जोहार संगी कोंदा.. तैं जानथस हमर देश म जेन 51 शक्तिपीठ हे, तेमा के एक शक्तिपीठ ह आज पाकिस्तान के बलूचिस्तान म हे.. अउ सबले खास बात ए आय के इहाँ दाई सती के मुड़ी ह गिरे रिहिसे.
   -अच्छा.
   -हव.. ए ठउर ल अभी हम सब हिंगलाज के नॉव ले जानथन.
   -हव.. जसगीत म हिंगलाज भवानी कहिके गाथन न नवरात भर.
   -हव.. हिंगलाज भवानी ल जतका हम हिंदू मन मानथन वतकेच मुसलमान मन घलो मानथें.
   -अच्छा.. अइसे?
   -हव..मुसलमान मन एला 'नानी मंदिर' कहिथें कतकों झन वोला नानी पीर या नानी के हज के रूप म घलो चिन्हारी करथें.. इहाँ पाकिस्तान अउ अफगानिस्तान के संगे-संग मिस्र अउ ईरान के मुसलमान मन घलो आथें.
   -ए तो बने बात आय जी संगी.. आज चारोंमुड़ा धरम के नॉव म जेन दुवा-भेद अउ तिरिक-तीरा देखे ले मिलथे तेकर ले तो बनेच हे.. हमर तो मनसुभा हे के पूरा दुनिया म अइसन नजारा देखे ले मिलय.
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-ए बछर हमर छत्तीसगढ़ राज ल बने 25 बछर हो जाही जी भैरा.. सरकार के जम्मो विभाग डहार ले ए मौका म 15 अगस्त ले लेके 6 फरवरी'26 तक सरलग कार्यक्रम करे जाही काहत हें.
   -सरकारी विभाग वाले मन अतकेच तो करथें जी कोंदा.. उनला अपन निर्धारित बजट ल कइसनो कर के समोना होथे, भले वोकर संदर्भ म करे गे कार्यक्रम के आम जनता या इहाँ के अस्मिता खातिर कोनो महत्व झन राहय.
   -अब गिनती के मुताबिक भले हमन 25 बछर ल अमर डारे हन जी संगी, फेर पुरखा मन संग हमूँ मन जेन अस्मिता ऊपर आधारित राज्य निर्माण के अवधारणा संग राज्य आन्दोलन म सँघरे रेहेन ते ह आज ले सिध नइ परे हे.
   -तोर कहना वाजिब हे संगी.. एक स्वतंत्र ईकाइ के रूप म छत्तीसगढ़ के एक अलगे नक्शा तो बनगे हवय, फेर भाखा अउ संस्कृति के रूप म जेन अलग चिन्हारी के सपना देखत हमन राज्य आन्दोलन म सँघरे रेहेन तेन ह आजो ले अधूरा हे.
   -तोर बात म मोरो हुँकारू हे.. जब तक छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति.. संस्कृति माने इहाँ आध्यात्मिक संस्कृति के स्वतंत्र चिन्हारी नइ बन जाही, तब तक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के अवधारणा अधूरा ही रइही, चाहे अइसन कतकों रजत, स्वर्ण या हीरक जयंती मना लेवन.
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-हरेली परब के दिन 'पाटजात्रा'  पूजा रसम करे के संग विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के शुरूआत होगे जी भैरा.
   -ए तो बने बात आय जी कोंदा.. अच्छा ए बछर कुल कतेक दिन तक चलही ए परब ह?
   -पाँच घाट चार कोरी.. माने कुल 75 दिन.. 7अक्टूबर के परही वो तिथि ह जे दिन मावली माता के बिदागरी होही.
   -अच्छा.. पाटजात्रा रसम म रथ बनाय खातिर उपयोग होवइया औजार ठुरलू खोटला संग अउ आने जम्मो औजार मन के पूजा करे जाथे न?
   -हव.. परंपरा के मुताबिक रथ बनइया मन के मुखिया दलपति अउ आन कारीगर मन बोकरा के पूजवन करत महुआ के मँद तरपन करिन अउ दशहरा के शुरूआत करिन.
   -सब बने-बने जनाथे जी संगी, फेर मोला इही पूजवन के परंपरा भर ह थोकिन अनफभिक जनाथे.
   -अब कइसे करबे संगी.. पुरखौती परंपरा तो आस्था ऊपर आधारित होथे.. एमा कोनो किसम के तर्क-वितर्क अउ ज्ञान चर्चा बर ठउर नइ राहय.
   -तोरो कहना वाजिब हे.. तभो मोला जनाथे के हमर इहाँ के अइसन परंपरा अउ मान्यता मन म देश, काल अउ परिस्थिति के मुताबिक समीक्षा अउ संशोधन होवत रहना चाही.
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-मध्यप्रदेश सरकार ह नर्मदा उद्गम अमरकंटक म छत्तीसगढ़ ल पाँच एकड़ जमीन दिही काहत हे जी भैरा.
   -होना तो उल्टा रिहिसे जी कोंदा.. हमर सरकार जगा मध्यप्रदेश सरकार ह अनुरोध करतीस के उँकर श्रद्धालु मन के सुविधा खातिर उनला अमरकंटक म ठउर दिए जाय कहिके.
   -अच्छा..?
   -हव.. काबर के नर्मदा उद्गम स्थल अमरकंटक ह असल म छत्तीसगढ़ के पोगरौती भुइयाँ आय जिहाँ मध्यप्रदेश ह बँटवारा के बेरा ले ही अवैध कब्जा कर के बइठे हे.
   -वाह भई.. हमला तो ए बात के जानबा ही नइ रिहिसे..!
   -अमरकंटक ह जुन्ना छत्तीसगढ़ के ही अंग आय एकरे सेती इहाँ के पहला मुख्यमंत्री अजीत जोगी ह जब अलग छत्तीसगढ़ राज्य बनिस त अमरकंटक ल छत्तीसगढ़ म सँघारे खातिर जबर कोशिश करे रिहिसे.. लगातार एकर बर आवाज उठावत रिहिसे.. फेर वोकर बाद जतका मुखिया बनीन उनमा काकरो समझ इहाँ के जुन्ना भौगोलिक स्थिति के बारे म नइ रिहिस तेकर सेती मध्यप्रदेश ह लगातार कनघटोरी करत बइठे रिहिसे.. आज स्थिति ए आगे के इहाँ के मुख्यमंत्री ह हमर पुरखौती भुइयाँ म थोर-बहुत जमीन दे के अरजी करे हे त कहूँ जा के मध्यप्रदेश सरकार ह अहसान करे बरोबर 5 एकड़ भुइयाँ अमरकंटक म दे के हुँकारू भरे हे.
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-नागदेवता के पूजा परब बने-बने मनाएव जी भैरा.
   -कहाँ जी कोंदा.. अब तो भइगे नेंग छुटई भर होवत हे.. हमर परोस म हरदेव लाला मंदिर हे जिहाँ हर बछर छत्तीसगढ़ स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता होवय तेनो अब तइहा के बात बरोबर होगे.
   -सही आय जी.. पहिली अइसने कुश्ती वाले अखाड़ा के पवित्र माटी ल नागपंचमी के दिन कुश्ती झरे के बाद लोगन अपन-अपन घर लेगयँ तहाँ ले उही माटी म भोजली बोवँय.
   -हव जी अब तो सबो परंपरा ह  नँदावत बरोबर जनाथे.. लोगन भोजली अभी घलो बोथें फेर अखाड़ा के पवित्र माटी जेमा दूध, मही, सरसों के तेल, हरदी अउ लिमऊ रस मिंझार के फुरहुर कोंवर बनाए जाय वोला अब कहाँ पाबे.. अब तो सिंथेटिक मैट के जमाना हे.
   -मोला लागथे संगी जइसे इहाँ के सरकार ह भाखा के बढ़वार बर राजभाषा आयोग बनाय हे, जम्मो पारंपरिक चिकित्सा पद्धति मन के संरक्षण  खातिर अभी छत्तीसगढ़ पादप बोर्ड के गठन करे हे, ठउका अइसनेच इहाँ के जम्मो पारंपरिक आध्यात्मिक संस्कृति के संरक्षण खातिर घलो एकाद आयोग या बोर्ड बना के इँकरो बढ़वार के बुता करतीस.
   -तोर सुझाव महूँ ल वाजिब जनावत हे संगी.. इहाँ के आध्यात्मिक संस्कृति के बढ़वार बहुते जरूरी हे.
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-संस्कृति विभाग द्वारा हर बछर राज्योत्सव के बेरा म दे जाने वाला राज्य अलंकरण खातिर अरजी पठोए के विज्ञापन छपगे हे जी भैरा.
   -तैं ह तो जानत हावस जी कोंदा मैं ह आरुग छत्तीसगढ़ी म लिखथौं-पढ़थौं अउ एकर खातिर तो काकरो नॉव ले अलग ले अलंकरण खातिर नॉव नइ दिखत हे.. पहिली पं. सुंदरलाल शर्मा सम्मान दिए जावय तेमा छत्तीसगढ़ी ल घलो समोवत रिहिन हें, फेर अब तो वो सम्मान ल निमगा हिंदी खातिर चिन्हारी कर दिए हे.
   -लाला जगदलपुरी के नॉव म घलो तो हावय.. वो ह आंचलिक साहित्य/ लोक कविता खातिर हे.
   -देख संगी हमर राज म हिंदी के संग छत्तीसगढ़ी ल घलो राजभाषा के दर्जा मिले हे, त एकरो बर हिंदी बरोबर स्वतंत्र रूप ले एक अलंकरण काबर नहीं? आने क्षेत्रीय भाखा मन संग छत्तीसगढ़ी ल संघारना तो एकर अपमान बरोबर हे.. फेर मैं ह राज्य अलंकरण खातिर आवेदन दे के नियम ल उचित नइ मानँव.. संबंधित विभाग वाले मनला अपन इहाँ पंजीकृत समिति मन ले सुझाव माँगना चाही अउ फेर वो सुझाव ल चयन समिति के आगू म मढ़ा देना चाही, जेमा ले चयन समिति ह योग्यता, वरिष्ठता अउ उँकर द्वारा करे गे कारज के आधार म चयन कर लेतीस.
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-आजकाल जतका अधकचरा किसम के लोगन हें, तेनेच मन चारों मुड़ा के मंच मन म जा जा के मटमटावत हें जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. महूँ आकब करे हौं.. भाखा संस्कृति के बात होय या अउ कुछू के लोगन अइसने मनला विशेषज्ञ के रूप म बलाथें अउ वाजिब ए इहू मन भारी जानकर बरोबर गोठियाथें घलो.
   -हव जी.. अभी एक न्यूज चैनल म 'रील' बनाए के जेन चलन चलत हे तेकर ऊपर चर्चा चलत रिहिसे, जेमा देवेश बजाज नॉव के एक लइका ह होशियारी देखावत काहत रिहिसे- छत्तीसगढ़ी ल पहिली 'लोवर कास्ट' वाले मन के भाखा माने जाय फेर जब ले ए मन रील बना के सोशलमीडिया म पोस्ट करत हें तब ले जम्मो वर्ग के लोगन वोला देखत हें.
   -अच्छा.. एकर मन के रील बनाए के सेती छत्तीसगढ़ी के लोकप्रियता बाढ़े हे?
   -वोकर कहे के मतलब तो अइसने रिहिसे.
   -वो लइका ल छत्तीसगढ़ी के विराटता के समझ नइए संगी.. हमर इहाँ तो देश के आजादी के आन्दोलन अउ छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन दूनों ल ही छत्तीसगढ़ी भाखा के माध्यम ले लड़े गे हवय त फेर ए ह लोवर कास्ट के भाखा कइसे होइस?
   -कार्यक्रम के संचालन करत एंकर ह घलो वोला तुरते टोके रिहिसे.. नहीं-नहीं अइसन झन बोलव.. इहाँ ले अइसन संदेश नइ जाना चाही.. छत्तीसगढ़ी बहुत सम्मानित भाषा आय.
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-बाहिर ले आए लोगन इहाँ के पुरखौती परंपरा, इतिहास अउ नॉव आदि ल बदल के अपन डहार ले लाने चिन्हारी ल थोपे के चंडाली म भारी बिधुन दिखथें जी भैरा.
   -हव जी.. अभी अइसने हमर पुरखौती चिन्हारी बस्तर के नॉव ल बदल के दंडकारण्य करे के माँग करत हें, धर्म स्थापना कौंसिल के सभापति डॉ. सौरभ निर्वाणी ह मुख्यमंत्री ल पाती लिखे हे.. उँकर कहना हे- भगवान राम ह वनवास काल म इहाँ आय रिहिसे.
   -तब तो छत्तीसगढ़ ल फेर दक्षिण कोसल कहे बर लागही.. फेर अभी एक विश्वविद्यालय द्वारा बस्तर के जुन्ना पखरा मन के शोध कारज करे गे हवय, तेकर मुताबिक तो बस्तर के इतिहास ह सत्तर हजार बछर ले जादा के बताए गे हे, त सिरिफ पाँच हजार बछर जुन्ना बेरा के नॉव काबर.. सत्तर हजार बछर जुन्ना वाले नॉव काबर नहीं?
   -छत्तीसगढ़ ल बाहिर ले पोथी-पथरा धर के आए लोगन गजब भरमावत हें संगी.
   -हव जी जबकि छत्तीसगढ़ ह धार्मिक, सांस्कृतिक अउ आध्यात्मिक रूप ले अतका समृद्ध हावय ते हमला बाहिर के न कोनो संत के जरूरत हे, न कोनो ग्रंथ के जरूरत हे, न ही कोनो भगवान के. जरूरत हे ते सिरिफ अपन पुरखौती परंपरा, लोकदेवता अउ जीवन पद्धति ल जाने समझे अउ वोला फिर से आत्मसात करे के.
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-हमर छत्तीसगढ़ म एक परंपरा हे जी भैरा जेला हमन लमसेना के नॉव ले जानथन. 
   -हव.. हावय न जी कोंदा.. कतकों झन एला घरजियाँ घलो कहि देथे ना.
   -हाँ दूनों ह मिलती-जुलती जिनिस आय, फेर लमसेना बने बर छोकरा ल नोनी के घर म रहिके अपन कार्यकुशलता अउ आदत-व्यवहार के परीक्षा दे बर लागथे.. नोनी के घर वाले मन जब पूरा मापदंड म खरा पाथें तब वोकर बिहाव ल घर के नोनी संग कर देथें.
   -अच्छा.. हव.
   -अउ तैं जानथस.. इहाँ लमसेना देवता (लमसेना डोकरा) घलो होथे?
   -वाह भई.. ए ह नवा सुने असन लागत हे.
   -कांकेर जिला के गाँव आँछीडोंगरी म हावय लमसेना डोकरा/देवता ह. ए जगा कोनो मंदिर देवाला नइए चारों मुड़ा ले खुल्ला जगा हे जेमा एक भाला धरे सियनहा के मूर्ति खड़े हे, वोकर दूनों मुड़ा म दू झन बघवा मन खड़े हें.. उही तीर म लोहा के एक बोर्ड गड़े हे, जेमा लिखाय हे- जय लमसेना डोकरा ग्राम आँछीडोंगरी.
   -अद्भुत हे संगी.. हमर इहाँ परंपरा अउ मान्यता ह.
   -हव.. लोगन मनोकामना माँगे खातिर त कतकों मनोकामना पूरा होय के बाद इहाँ नरियर चघा के आशीर्वाद लेवत रहिथें.
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-कतकों लोगन अपन इतिहास अउ संस्कृति ल बिगाड़े अउ भरमाए के बात करत रहिथें जी भैरा.
   -अब ए बात ल तो उही मन जान अउ समझ सकथें जी कोंदा जेकर मन के बारे म कुछू लिखे या बताए गे होथे.
   -हाँ जी.. बने काहत हावस.. त फेर वो मन खुद अपन इतिहास अउ संस्कृति ल काबर नइ लिखँय जे मन अइसन गोठ करत रहिथें.
   -हमर इहाँ कतकों समाज अइसन जे मन शिक्षा के अँजोर ले दुरिहा रिहिन.. आज जब वो मन थोक-बहुत पढ़े के चिभिक म आवत हें त अपन बारे म दूसर मन के द्वारा लिखे जिनिस मनला गलत काहत अउ समझत हें.
   -अच्छा अइसे..?
   -हव.. अच्छा अब तहीं बता.. जब तक हिरण ह अपन इतिहास ल खुद नइ लिखही तब तक हिरण मन के इतिहास म शिकारी के चंडाली ल उँकर शौर्य गाथा के रूप म लिखे जाही के नहीं?
   -कहे बर तो वाजिब काहत हावस संगी.. शिकार करइया मन ही कहूँ मरइया मन के इतिहास ल लिखहीं त उन मरइया के दुख-पीरा, अधिकार अउ उँकर गौरव ल लिखे ल छोड़ के अपन खुद के बहादुरी के गाथा ही लिखही.
   -हाँ... हमर इहाँ के बहुत अकन इतिहास अउ पंरपरा ल अइसने बानी के लिखे गे हवय, जेला वोकर ले संबंधित लोगन गलत बतावत रहिथें.
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-ए बछर ले स्वास्थ्य विभाग ह अंगदान करइया मन के परिवार वाले मन के सम्मान करे के नवा परंपरा के शुरुआत करत हे जी भैरा.
   -ए तो गजब सँहराय के लइक बात आय जी कोंदा.. एकर ले अंगदान करइया मनला बने प्रोत्साहन मिलही.
   -सही कहे जी.. अभी स्वास्थ्य सचिव ह जिला कलेक्टर मनला पाती पठोए हे जेमा कहे गे हवय के स्वतंत्रता दिवस के पबरित बेरा म सार्वजनिक मंच ले राज्य अउ जिला स्तर म अंगदान करइया मन के नता-रिश्ता मनला प्रमाण पत्र/प्रशस्ति पत्र दिए जाय.
   -बहुत बढ़िया संगी.. मोला परोसी राज मध्यप्रदेश के सुरता आवत हे... उहाँ अंगदान करइया मन के परिवार वाले मनला तो सम्मानित करे ही जाही संग म जे मनखे ह अंगदान करही तेकर अंतिम संस्कार ल राजकीय सम्मान के साथ करे जाही.
   -बहुत बढ़िया संगी.. आज अंगदान ले कतकों लोगन ल नवा जिनगी मिलत हे, फेर अभी घलो जागरूकता अउ उचित मार्गदर्शन के अभाव म कतकों लोगन चाह के घलो अंगदान नइ कर पावत हें.. जरूरी हे के शासन डहर ले अइसन कई किसम के उदिम करे जावय, जेकर ले लोगन अंगदान खातिर प्रोत्साहित तो होवँय संग म उनला उचित मार्गदर्शन घलो मिलत राहय.
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-मोर नाती ह आज पूछ परिस जी भैरा के परब अउ तिहार म का अंतर होथे.
   -एमा का अंतर जी कोंदा.. उही परब अउ उही तिहार.
   -चिटिक अंतर होथे सगी.. वोकर गुरुजी बतावत रिहिसे कहिथें- जेन तिहार ल सिरिफ उत्सव मंगल के रूप म मनाथन वो तिहार अउ जेमा पूजा-पाठ उपास-धास करथन ते ह परब.
   -हमन तो आजतक जम्मो च ल एकमई सरेखत रेहेन संगी.. यहा बुढ़त काल म अइसन सुने-गुने ले मिलही तेकर कभू सरेखा नइ करे रेहेन.
   -सिरतोन आय जी.. उँकर कहे के मतलब हे- जइसे हमन नवरात म जबर पूजा-पाठ, उपास-धास करथन तेला परब कहि सकथन.
   -अच्छा.. नवरात जइसन उपास-धास वाले मन परब कहाही?
   -हव.. अउ जइसे देवारी म बिना उपास-धास करे सिरिफ उत्सव-मंगल मनाथन वो ह तिहार कहाही.
   -गुने के लइक बात आय संगी अब चेत राखे बर लागही.. कोन-कोन ह परब आय अउ कोन ह तिहार.
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-बस्तर म किसानी के संगे-संग कतकों लोगन के कुलदेवता के रूप म पूजे जाने वाले भीमादेव ल रुद्रशिव ही आय कहिथें जी भैरा.
   -अच्छा.. जेकर अभी सावन म गजब पूजा वंदन करे जावत रिहिसे तेने भीमादेव ल जी कोंदा?
   -हव.. बस्तर के पत्रकार हेमंत कश्यप के अभी एक लेख पढ़त रेहेंव, जेमा उन बतावत हें- बिलासपुर जिला के ताला म जेन रुद्रशिव के मूर्ति हे, लगभग वइसनेच साज-श्रृंगार भीमादेव के घलो हे. 
   -अच्छा..!
   -हव.. ताला म रुद्रशिव के जेन मूर्ति हे तेकर एक अनुकृति जगदलपुर संग्रहालय म घलो हे.. भीमादेव के अलंकरण के संबंध म उन जानकारी दिए हें- उँकर मुड़ी म महामंडल साँप के पगड़ी बँधे हे. टोकी-बोंड़की साँप के उन जनेऊ पहिने हे. दूधनाग के कौपीन धारण करे हें. बंदूक माना साँप के कमरपट्टा कनिहा म लपेटे हें अउ सुपली साँप वोकर पाँव के पैजन बने हे.
   -ददा रे.. अतेक भयानक..!
   -हव.. अतेक भयानक अलंकरण हे भीमादेव के.. रुद्रशिव के अलंकरण घलो लगभग अइसने हे.. उँकर पूरा देंह म कतकों जीवजंतु अउ देवता मन हवँय.
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Thursday, 3 July 2025

कोंदा भैरा के गोठ-34

कोंदा भैरा के गोठ-34

-कोरोना वायरस के फेर बगरे के सोर सुनावत हे जी भैरा.
   -हव.. सुनावत तो हे जी कोंदा, फेर जादा चिंता करे के बात नइए.. वैज्ञानिक मन के कहना हे के सावचेत रहना भर जरूरी हे.
   -वैज्ञानिक मन के बरजे बात ल  धरम के लंबरदार मन थोरहे पतियाथें संगी.. वो मन तो अपन उपाय म ही भरोसा करथें.. देख ले अभी इही बुधवार के ओडिसा के कटक जिला के गाँव बंधहुडा म उहाँ के माँ ब्राम्हणी देवी मंदिर के पुजारी संसारी ओझा ह कोरोना वायरस ल चुकता सिरवाय के नॉव म नरबलि दे दिस.
   -कइसे उजबक बानी के गोठियाथस संगी.. नरबलि दे म कोरोना वायरस सिरा जाही?
   -पुलिस ह वो पुजारी ल गिरफ्तार करे हे, जेकर जगा वो कबूल करे हे के रतिहा सपना म भगवान ह मोला कहे रिहिसे के नरबलि दे म कोरोना सिरा जाही, येकरे सेती मैं मंदिर म बलि दे हावौं.. वो मनखे के मुड़ी ल काट के चढ़ाए रेहेंव.
   -करलई हे संगी.. मोला तो ए ह अंधविश्वास के पराकाष्ठा बरोबर जनावत हे.
   -अंधविश्वास ही आय.. कोनो भी देवी देवता ह जीवहत्या के रद्दा नइ बतावय.. अइसन लोगन अपन नासमझी ल धर्म अउ देवी देवता के आड़ म तोपे के उदिम करथें.
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-जेल म हत्या जइसन कतकों अपराध म धँधाय कैदी मन अपन सजा ल पूरा भोगे के बाद जब बाहिर आहीं न जी भैरा तहाँ ले आयुर्वेद अउ ज्योतिष विद्या के संग कर्मकांडी पुरोहित के बुता करहीं.
   -वाह जी कोंदा.. फेर अइसन गरकट्टा जेलयात्री मनला अपन घर पुरोहित के रूप म कोन बलाही?
   -अब ए तो लोगन के सोच अउ समझ ऊपर हे.. वइसे जम्मो लोगन ल सुधरे अउ सम्मानजनक बुता करे के अवसर मिलना चाही.. महर्षि वाल्मीकि के किस्सा ल तैं जानत हावस ते नहीं?
   -जानत हँव संगी.. पहिली उहू मन डाकू अउ गरकट्टा रिहिन हें कहिथें.
   -हाँ सही कहे.. अउ जब उनला  असली ज्ञान के जानबा होइस त फेर कतका बड़का महात्मा अउ आदर्श मनखे बनगे.
   -हव जी सही आय.
   -हाँ.. हो सकथे अइसने इहाँ जेल म सजा भोग के निकले के बाद इहों के कैदी मन सुग्घर रद्दा अपना लेवँय एकरे सेती अइसन 44 बंदी मनला वेदपाठ संग ज्योतिष पद्धति ले आयुर्वेद उपचार, पुरोहित ज्ञान आदि के शिक्षा दिए जावत हे.. जेल अधीक्षक योगेश सिंह के मुताबिक जेल म बंदी मन बर अइसन अउ कतकों किसम के पाठ्यक्रम चलाए जावत हे जेमा कुल 291 बंदी पढ़ई करत हें.
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-भाखा खातिर मया अउ निष्ठा ह जतका आने राज म देखे ले मिलथे तेन ह हमर राज म काबर नइ देखे बर मिलय तेने ह थोकन अलकरहा बानी के जनाथे जी भैरा.
   -हमर इहाँ भाखा, संस्कृति, अस्मिता कुछू खातिर वो भाव देखे ले नइ मिलय जी कोंदा जेन अंते देखे ले मिलथे.
   -हव भई.. एदे अभीच्चे देख ले अभिनेता कमल हासन ह अपन एक बयान म बस अतके कहि दिस के कन्नड़ भाखा के जनम ह तमिल भाखा ले होय हे.. जम्मो कन्नड़ प्रेमी मन वोकर ऊपर चघे लेवत हें.. उनला माफी माँगे बर हुदरत कोचकत हें.
   -ए ह कन्नड़ भासी लोगन के अपन भाखा खातिर मया अउ निष्ठा के चिन्हारी आय संगी.. उन ए नइ देखत हें के कमल हासन के बात ह सही आय ते नोहय.. उन सिरिफ ए देखत हें के उँकर भाखा ल आने भाखा के पेट ले उद्गरे बतावत हे, जे ह असहनीय हे.
   -हमर भाखा संस्कृति के संबंध म कभू अइसन देखे ले मिले हे?
   -अरे.. हमर इहाँ तो अतलंगी हे संगी.. पद पदवी म बइठे लोगन ही अंते तंते गोठियावत रहिथें.. तभे तो आज घलो इहाँ सिरिफ 6 प्रतिशत लोगन के महतारी भाखा ह राजभाषा के आसन म बिराजे हे अउ 66 प्रतिशत लोगन के महतारी भाखा ह नेवरिया बहू बरोबर मुड़ढक्की करे अपन ओसरी के अगोरा करत हे.
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-किन्नर मनला न तो पुरुष माने जावय अउ न ही स्त्री अइसन म कहूँ ए मन एकाद लइका बिया डारहीं त वो लइका के दाई अउ ददा के नॉव म काकर नॉव ल लिखे जाही जी भैरा.. सुप्रीम कोर्ट ह तो वो मनला 15 अप्रैल 2014 के तृतीय लिंग के चिन्हारी दे डारे हे.
   -बड़ा अलकरहा बात पूछे जी कोंदा!
   -अलकरहा नहीं जी संगी.. अभी केरल के कोझिकोड म अइसने एक मामला आए रिहिसे, जेमा हाईकोर्ट ह ऐतिहासिक निर्णय दिए हे.. वो ह लइका के जन्मप्रमाण पत्र म दाई अउ ददा के नॉव के कॉलम म लिंग-तथस्थ लिखे बर कहे हे.
   -अच्छा..!
   -हव.. असल म 8 फरवरी 2023 के कोझिकोड के एक सरकारी अस्पताल म ट्रांस पुरुष जहाद अउ ट्रांस महिला जिया पावल के लइका होय रिहिसे, तेकर सेती अस्पताल के अधिकारी मन जाहद ल पिता अउ जिया ल माता बतावत जन्मप्रमाण पत्र दिए रिहिन हें, जेला हाईकोर्ट म अरजी दे के दाई ददा के नॉव ल अलग अलग लिखे के बलदा दूनों झनला संयुक्त रूप ले दाई ददा लिखे बर गोहराय गे रिहिसे.. हाईकोर्ट ह ट्रांस जोड़ी ल अलग से कोनो भी लिंग के रूप म चिन्हारी नइ करे के बात कहे हे, तेकर सेती प्रमाण पत्र म अब ककरो लिंग के उल्लेख नइए.. अब वो मन समिलहा दाई घलो यें अउ ददा घलो.
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-महादेव घाट के खारून खँड़ म गंगा आरती के नॉव म पाखंड रचइया वीरेंद्र तोमर अउ वोकर भाई ह अभी पुलिस के डर म भागे भागे फिरत हे कहिथें जी भैरा.
   -बाहिर ले जतका गुरुघंटाल मन गुरु के चोला अउ गरकट्टा चंडाल मन सनातनी के सँवागा खापे इहाँ गुलछर्रा उड़ावत किंजरत हें ना.. एक दिन सबो के इही हाल होवइया हे जी कोंदा.. काबर ते ए मन धरम के रक्षक नहीं भलुक धरम के नॉव म अपन करिया चरित्तर ल लुका के किंजरइया.. लोगन ल भरम जाल म अरझइया आयँ.
   -हव जी महूँ ल अइसने जनाथे,  फेर एक चीज अचरज लागथे संगी.. हमर इहाँ के लोगन अपन तीर-तखार के सिद्ध पुरुष मनला जोगड़ा के नजर ले देखत काबर उँकर उपेक्षा करथें अउ बाहिर ले आए जोगड़ा मनला सिद्ध पुरुष समझ के मुड़ी म बइठार के किंजरथें?
   -छत्तीसगढ़ ह आज राजनीति के संगे-संग धार्मिक अउ सांस्कृतिक गुलामी भोगत हे तेकर असल कारण तो इही आय जी.. जबकि हमर छत्तीसगढ़ आध्यात्मिक रूप ले अतका समृद्ध हे ते हमला बाहिर के न कोनो संत के जरूरत हे न ग्रंथ के अउ न ही कोनो भगवान के.
   -सिरतोन कहे संगी.. लोगन इहाँ के पुरखौती परंपरा, जीवन पद्धति अउ उपासना विधि ल फेर  उजरा के आत्मसात कर लेवय तहाँ काकरो मुँह देखे के जरूरत हे, न काकरो पाछू किंजरे के.
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-खुद के घर ह भले अज्ञान के अँधरौटी म कुलुप तोपाय राहय फेर लोगन दूसर जगा ज्ञान के अँजोर बगराय म कमी नइ करय जी भैरा.
   -सही कहे जी कोंदा.. फोकटइहा छाप अक्कल बाँटे म लोगन ल विशेषता मिले हे.. अब ए मुसलमान मन के कुर्बानी वाले परब बकरीद ल ही देख लेना.. ए परब ह जिहाँ लकठाथे तहाँ ले आने धरम-पंथ के पशुप्रेमी मन के बयान ह सोशलमीडिया के संगे-संग टीवी पेपर सबो म दिखे लगथे.
   -सही आय जी.. जबकि इँकर मन के खुद के देव-ठिकाना मन म पूजवन अउ बलि के पुरखौती परंपरा के नॉव म सैकड़ों जीव ल भेंट कर दिए जाथे.
   -अतकेच नहीं संगी.. कभू पहिलाँवत लइका के नॉव म त कभू जेठ बेटा के बरात निकाले के नॉव म.. कुछू भी ओढ़र कर के पूजवन के परंपरा ल पोंसत पोटारे बइठे हें, फेर ए सब बर उँकर मुँह ले बक्का नइ फूटय.. बस आने के परंपरा म ही खोट दिखथे.
   -तोर कहना वाजिब हे संगी.. चाहे कोनो भी धरम-पंथ या समाज के बात होय फेर मोला ए पूजवन के परंपरा ह एको नइ सुहाय न तर्क संगत जनावय.
    -कहाँ ले जनाही जी.. कोनो भी देवी देवता ह जीवहत्या के रद्दा ल न तो स्वीकार करय न प्रोत्साहित करय.
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-गुरु पुन्नी जोहार जी भैरा.
   -जोहार संगी कोंदा.
   -तैं ए बात ल तो गाँठ बाँध के धर ले जी संगी के परमात्मा के छोड़े अउ कोनो दूसर ह न तो हमर सग लागमानी ए अउ न हितवा संगवारी.
   -बात तो तोर सोला आना सच आय जी फेर हमन उही हमर सग लागमानी जेला परमात्मा कहिथन तेने ल छोड़ के बाकी सब माया-मोह के दुनिया म उनडइया खेलत रहिथन.
    -पूरा दुनिया के इही चलागन हे  संगी.. भले हमन अपन आप ल कतकों बड़े ज्ञानी अउ चतुरा समझत राहन फेर माया के फाँदा म अरझी जाथन.
    -अरे ददा.. बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी अउ तपस्वी मन वोकर लपेटा म अरहझ जाथें त हमर असन मन के का गिनती हे.
    -तभो ले जी संगी.. सद्गुरु के देखाए चातर रद्दा ल धर के परमात्मा के किरपा पाए के उदिम करे म माया के फाँदा ले मुक्ति के रद्दा जरूर निकलथे.
   -हाँ ए बात तो हे.. फेर असल सद्गुरु ह घलो बिन परमात्मा के किरपा के नइ मिलय.. देखत तो हावस आजकाल गुरुघंटाल मन कइसन कइसन सँवागा खापे एती-वोती मटमटावत रहिथें.
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-पहलगाम म होय आतंकी घटना के बाद हमर सेना के जवान मन आपरेशन सिंदूर के अंतर्गत पाकिस्तान म खुसर के उहाँ के आतंकवादी ठीहा मन के जब ले छर्री-दर्री करे हे तब ले देश भर म सिंदूर के गजब गोठ होवत हे जी भैरा.
   -सिरतोन कहे जी कोंदा.. कतकों सामाजिक संस्था मन किसम किसम के कार्यक्रम कर के देश के सेना ल सलाम करे हें.
   -हव जी.. ए बछर पर्यावरण दिवस के दिन प्रधानमंत्री के संगे-संग अउ कतकों लोगन सिंदूर के पौधा लगाए हें.
   -वो सब तो बने बात आय संगी, फेर तैं जानथस हमर छत्तीसगढ़ म जे किसान मन सिंदूर के खेती करथें, ते मन जबर शोषण अउ उपेक्षा के शिकार हें.
   -अरे.. ददा रे.. ए तो करलई कस बात बतावत हावस संगी.. का सिरतोन म अइसन होवत हे?
   -हव.. बस्तर म सिंदूर ल स्थानीय भाखा म 'जापरा' कहिथें. जापरा के खेती करइया मनला एक किलो सिंदूर के बलदा परोसी राज ओडिशा के व्यापारी मन सिरिफ 90 रुपिया देथें.
   -अचरज के बात आय संगी!
   -हव.. असल म का हे ना.. सरकार ह 50 किसम के वनोपज मन के खरीदी खातिर जेन सरकारी दर तय करे हे, तेमा जापरा या कहिन सिंदूर के नॉव शामिल नइए, एकरे सेती व्यापारी मन औने पौने म किसान मन ल ठगत रहिथें.
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-कइसे आँखी ल फरका के निटोर दिए रे बादर
मोर धनहा-डोली के आसा ल टोर दिए रे बादर
अब्बड़ सोर सुनावत रिहिसे तोर सनसनावत आए के
फेर कोन मेर तैं लरघिया के धपोर दिए रे बादर
   -का बात हे जी संगी कोंदा.. आज तो तोर बोली ह कवि कस बोली जनावत हे.
   -अंतस के पीरा ह सबो गढ़न जनाथे जी भैरा.. देखना ए बछर पंदरही आगू मानसून आगे कहिके मौसम विज्ञानी मन संग जम्मो लोगन नाचत रिहिन हें, फेर ए बुजा ल अठोरिया होगे कोन मेर अरहज गे हावय ते.
   -दंतेवाड़ा म रद्दा भूलागे हे कहिथें गा.. हो सकथे माई दंतेसरी के पूजा आरती म मगन होगे होही मानसून ह.
   -फेर मौसम विभाग वाले मन तो हवा के दिशा बलदगे हावय तेकर सेती लरघिया गे हे कहिथें जी.
   -कुछू होवय संगी हमर छत्तीसगढ़ के ए चातर मुड़ा म 15 जून तक ही अभरथे मानसून ह एकरे सेती इहाँ पेड़ पौधा रोपई  ल 15 जून ले 20 जुलाई के बीच करना चाही कहिथें.
   -त अभी 5 जून के पर्यावरण दिवस के दिन जेन लाखों पौधा लगाए गिस तेकर मन के का होही?
   -आने बछर असन इहू बछर लोगन के फोटू खिंचवाए के माध्यम भर बनही.. तहाँ ले भइगे.. छेरी पठरू मन के चगलन बनही या फेर सूखा के.
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-महिला सशक्तिकरण के तैं कतकों गोठ कर ले जी भैरा फेर खुद माईलोगिन मन ही नइ मानँय के आदमी के पँदोली के बिना वो मन कुछूच नइ कर सकँय.
   -पँदोली तो आदमी मनला घलो लागथे जी कोंदा तभे तो कहिथें ना के हर सफल पुरुष के पाछू वोकर सुवारी, महतारी या बहिनी के हाथ होथे.. माने सफलता म नारी शक्ति के पँदोली जरूर होथे.
   -तोर कहना तो वाजिब हे, फेर कोनो आदमी ह अपन आफिस के बइठका म अपन सुवारी ल घलो सँघार कहि के तो जिद नइ करय न जइसे काली मनेंद्रगढ़ जनपद पंचायत के महिला सदस्य मन अपन आदमी मनला बइठक म सँघारे बर अँड़ दिन.. बइठका ल आदमी मन बिन होने च नइ दिन.
   -अइसन बइठका म तो जेन सदस्य होथे उही ल सँघरना चाही जी.
   -हव सही आय.. फेर उहाँ के महिला सदस्य मन कहि दिन के उँकर जम्मो काम मनला तो उँकर पति मन ही करथें.. अउ ते अउ हमन चुनाव ल घलो उँकरे च मन के फोटो ल देखा के जीते हावन.. लोगन हमला फलाना के सुवारी आय कहि के वोट देइन हें.. त अइसन म हमन उँकर बिना बइठका म कइसे सँघर सकथन?
   -करलई हे संगी.. कुछ दिन पहिली कबीरधाम जिला ले सरपंच पति मन के शपथ ले के घलो खबर आए रिहिसे.. जय हो लोकतंत्र.. अइसने म तैं कइसे छाहित होबे ददा?
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-ददा दिवस के जोहार जी भैरा.
   -यहा का नवा चरित्तर ए जी कोंदा.. दिन न बादर अउ ददा ल जोहार.. हमन पितर पाख म दाई ददा मनला जोहारथन गा.
   -अरे बइहा.. ए ह जीयत ददा अउ ददा जइसन आने नता जे मन हमर जिनगी म पालक के भूमिका निभाए रहिथें, ते मनला जोहारे के माने आभार व्यक्त करे के दिवस आय.. हर बछर जून महीना के तीसरइया इतवार के जोहारे जाथे.. अउ एला पूरा दुनिया भर मनाए जाथे.
   -अच्छा.. अइसे..  माने जइसे महतारी मनला उँकर सेवा त्याग के आभार व्यक्त करे बर मदर्स डे मनाए जाथे तइसने.
   -अब ठउका समझे भई.. ठीक हे हमन अपन छत्तीसगढ़ के परंपरा ल मानथन अउ जीथन, तभो दुनिया संग घलो जेन वाजिब जनाथे तइसन परंपरा म खाँध जोर के रेंगबो तभे तो बनही जी.
   -सही कहे.. जम्मो च जगा कुँआ के मेचका बन के रेहे म नइ बनय.. फेर हमर इहाँ तो वसुधैव कुटुम्बकम माने पूरा दुनिया एक परिवार आय के अवधारणा प्रचलित हे, त वोमा सँघरबे तभे तो ए अवधारणा ह सिध परही.
   -सिरतोन कहे संगी.. तहूँ ल हैप्पी फादर्स डे.
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-बादर तो एकदमेच नटेर दिए हे जी भैरा.. बरखारानी ल हब ले बलाए बर हमर एती काँही ठुआँ-टोटका नइ करे जाय का?
   -कइसे गढ़न के केहे जी कोंदा?
   -अरे.. जइसे मध्यप्रदेश अउ महाराष्ट्र के कुछ भाग म मेचका मेचकी के बिहाव करे जाथे.. तहाँ ले वो बिहाव वाले मेचका जोड़ा के मुँह ल अगास कोती कर के बरखा के देवता ले हब ले पानी गिराए बर अरजी करे जाथे.
   -अच्छा.. अइसने जुन्ना इलाहाबाद जेला आजकाल प्रयागराज कहे जाथे उहाँ के जवनहा छोकरा मन चिखला म नँगत के घोंनडइया मारथें तहाँ ले वइसने चिखला म छबड़ाय ही खड़ा होके दूनों हाथ ल जोर के बरखा के देवता ले अरजी करथें. कर्नाटक म पाछू बछर पुतरा पुतरी के बिहाव कर के अरजी करे रिहिन हें.
   -हमर छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल म भीमादेव अउ भीमिन के बिहाव करे जाथे जी.. भीमादेव ल बरखा के देवता तो माने ही जाथे संग म उनला कुल देवता घलो मानथें.
   -त चलव भीमा-भीमिन के ही बिहाव करवाए जाय.
   -अरे.. फेर ए बिहाव के परंपरा ल तो वोती सावन महीना म संपन्न करे जाथे संगी.. अभी  लगती असाढ़ म अनफभिक  हो जाही.
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-रथयात्रा के दिन जब तक भगवान जगन्नाथ अउ वोकर भाई बलराम बहिनी सुभद्रा के रथ ल नइ तीरबे.. वोमा नइ चढ़बे तब तक रथयात्रा परब ल मनाए अस नइ लागय जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. हमन तो मिडिल स्कूल म पढ़त रेहेन तब ले पुरानी बस्ती वाले रथ ल तीरत अउ चघत आए हन.. कभू कभू गजामूँग ल घलो हमीं मन हेर के बाँट देवत रेहेन.
   -फेर ए बछर पुरी के श्रद्धालु मन अइसन नइ कर सकँय संगी.. उहाँ के सरकार ह लोगन ल अइसन करे ले चेताय हे.. नवा नियम बनाय हे.
   -बड़ा अचरज हे भई.. भगवान के दर्शन अउ सेवा टहल बर घलो सरकार के बरजना!
   -हव.. ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ह घोषणा करे हे- ए बछर सिरिफ सेवादार मन ही रथ म चघ पाहीं उहू म वो मन जेकर मन के नॉव ह उँकर सूची म रइही.. कहूँ कोनो आने मनखे जादा भक्ति भाव देखावत रथ म चढ़ जाही त वोला तुरते गिरफ्तार कर लिए जाही.
   -मरना हे गा.
   -उँकरे कहना हे- सुरक्षा के लिहाज ले अइसन नियम बनाय ले परे हे.. वो मन बताइन के रथ म चढ़इया सेवादार मनला मोबाइल धरे के परमिशन घलो नइ राहय.
   -कतकों उदिम करिन फेर वीआईपी कल्चर के सेती रथयात्र के भगल म 3 लोगन मर गिन अउ कतकों घायल होगें.
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-हमर इहाँ कतकों अइसन परब होथे जी भैरा जेला कोनो क्षेत्र विशेष म ही देखे ले मिलथे.. आने डहार के लोगन वोकर मुड़ी पूछी ल घलो बने गढ़न के नइ जानँय. 
   -हाँ.. ए बात तो हे जी कोंदा.. जइसे हमर इहाँ भाखा के संबंध म कहे जाथे ना.. कोस कोस म पानी बदलय अउ चार कोस म बानी.. ठउका अइसनेच परंपरा के संबंध म घलो हे.
   -सही आय जी.. अइसने अभी मोला परोसी राज ओडिशा ले लगे फुलझर अंचल के एक तिहार 'रजस्थला' के संबंध म नवा जानबा होइस हे.. उहाँ असाढ़ महीना के संक्रांति के दिन जब सुरूज नरायण ह मिथुन राशि म निंगथे, रजस्थला तिहार मनाए जाथे. ए दिन धरती दाई ल कोनो किसम के कोड़े या खाने नइ जाय.. रापा, कुदारी, नाँगर आदि सबो के उपयोग के मनाही होथे.
   -अच्छा..
   -हव.. अइसे मान्यता हावय के ए दिन धरती दाई ह महीना बइठथे, जइसे माईलोगिन मन के हर महीना माहवारी आथे .. वइसने बछर म एक दिन धरती दाई के घलो आथे, तेकर सेती उँकर सम्मान म ए दिन धरती ल कोनो किसम के कोड़े खने के मनाही रहिथे.. एकर संबंध म मान्यता इहू हवय के जेन शेषनाग ह धरती ल अपन मुड़ी म या कहिन फन म बोहे हे वो ह ए दिन अपन गुड़री ल बलदथे.
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-ए बछर जनगणना होही काहत हें जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. केंद्र सरकार ह अधिसूचना ढील डारे हे.
   -तोला कइसे जनाथे.. ए जाति के जनगणना ले कोन ल जादा नफा या नुकसान होही?
   -जाति-पाती के सरेखा ल अभी छोड़ संगी.. हमला छत्तीसगढ़िया अउ छत्तीसगढ़ी के संख्या ऊपर चेत करना हे. हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के बोलइया ए राज म 66 प्रतिशत लोगन हें, तभो इहाँ लेद-बरेद 6 प्रतिशत लोगन के महतारी भाखा हिंदी ल राजभाषा घोषित करे गे हवय.. ए ह षडयंत्र आय. अभी होवइया जनगणना ह ठउका अवसर ए छत्तीसगढ़ी महतारी भाखा वाले मन के संख्या म निश्चित रूप ले अउ बढ़ोत्तरी होही.
   -हव बने काहत हावस.
   -तैं तो जानते हावस 28 नवंबर बछर 2007 म छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दर्जा मिलगे हावय, फेर अभी तक ए ह सिरिफ खानापूर्ति म ही दिखथे.. शिक्षा अउ राजकाज के ठीहा म मौसीदाई बरोबर तिरिया दिए जाथे.
   -सोला आना गोठ कहे.. ए बखत हमेरी झड़इया मनला घलो महतारी भाखा के खँड़ म छत्तीसगढ़ी लिखवाय खातिर कोचकबो.
   -जरूरी हे.. हर वर्ग अउ समाज के लोगन ल अपन भाखा खातिर कोनो भी कारण ले भरे गे हीनता ले निकले बर लागही.. पूरा गरब अउ आत्मविश्वास के संग महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी लिखवाय बर परही.
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-तोर सुझाव के छत्तीसगढ़ सरकार ऊपर जबर प्रभाव परे हे जी भैरा.. अब इहाँ के पुलिस विभाग के लिखा-पढ़ी म उर्दू अउ फारसी शब्द मन के जगा हिंदी शब्द बउरे जाही.
   -मैं तो पहिलीच ले गोठियावत रेहे हौं जी कोंदा.. जेन शब्द मन के मतलब ल लोगन समझय बूझय नहीं, ते मनला परंपरा के रूप म लादे रखना बने थोरहे आय तेमा.
   -हव भई नोहय.. तभे तो इहाँ के गृह मंत्री ह वइसन शब्द मन के बलदा हिंदी शब्द बउरे बर केहे हे.
   -मोर तो इहू कहना हे संगी.. हिंदी के घलो आम बोलचाल के शब्द मन के ही उपयोग करे जावय, कहूँ एकरो उर्दू अउ फारसी जइसन भारी-भरकम टॉंठ असन शब्द मनला लिखा-पढ़ी म खुसेरहीं, त उहू ह अलकर हो जाही.. जादा अच्छा तो ए हे के छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी अउ सरगुजिया जइसन स्थानीय भाखा के शब्द मनला लिखा-पढ़ी म जादा बउरे जाय, तेमा गाँव-गंवई के आम लोगन घलो वो लिखे गे शब्द अउ वोकर अरथ ल समझ सकय.
   -सही कहे संगी.. जे मनखे के संबंध म तैं लिखा-पढ़ी करत हावस कहूँ उहिच ह तोर लिखा ल समझ नइ पाइस त फेर वोकर मतलब ही का होइस?
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-बाहिर ले आए अपराधी किसम के लोगन धरम के सँवाँगा  खापे पहिली सरकारी जमीन म ही अवैध रूप ले कब्जा करत रिहिन हें जी भैरा फेर अब तो ए मन लोगन के निजी जमीन म घलो बरपेली कब्जा करे लगे हें.
   -अइसे का जी कोंदा?
   -अरे हव भई.. अभी हमर रायपुर के सड्ढू ले खबर आय हे.. उहाँ के किसान हरीश पांडे के महतारी शांतिदेवी के नॉव म 3.249 हेक्टेयर जमीन हे, एकर बाजू म एक आने मनखे के जमीन हे.. उही बाजू जमीन वाले मन मंगलवार के मँझनिया पहुँचिन जेमा के कुछ लोगन साधु मन बरोबर सँवाँगा खापे रिहिन हें. वो मन हरीश के जमीन म आश्रम बनाबो कहिके उहाँ लगे सिरमिट के खंभा अउ फेसिंग तार मनला टोरे लागिन.
   -ताज्जुब हे संगी!
   -हव.. हरीश ल जब ए बात के जानबा होइस, त वो ह थाना म शिकायत करिस.. पुलिस ह मामला ल राजस्व संबंधी बता के तहसील कार्यालय म आरो करे हे.. अब देखौ जमीन के नापजोख के बाद का होथे ते?
   -नापजोख म चाहे कुछू होवय संगी, फेर सिरमिट के खंभा अउ फेसिंग तार मनला टोर के वोमा कब्जा कर के उदिम ही ह अपराध आय.. धरम के नॉव म अभी जेन देखे सुने ले मिलत हे ना.. ए सब अनफभिक अउ अधरम ए.
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-मानसून के मयारुक बरखा संग जब प्रकृति नाचे अउ हरियाए लगथे तब एक विशेष किसम के मेचका मन घलो चटकदार पिंवरा रंग म दिखे लगथे जी भैरा.. अइसे जनाथे जस ए मन कोनो सुग्घर खेलौना आयँ.
   -हव जी कोंदा.. तरिया, नँदिया, झील झरना, ढोंड़गी नरवा मन तीर महूँ अइसने आकब करे हावौं.. आम बोलचाल के भाखा म हमन ए मनला घिंधोल कहि देथन ना?
   -हव.. हर बछर ए मन दिखथें..  वैज्ञानिक मन के भाखा म ए मनला 'इंडियन बुल फ्रॉग' कहे जाथे.. जीव विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. शैल जोशी जी बताइन के ए मन नर मेचका होथें, जे मन मादा मेचकी मनला आकर्षित करे बर बछर म एक पइत रंग बलदथें अउ खास किसम के आवाज निकालथें.
   -गजब हे संगी.!
   -हव.. मादा मेचकी मन म अइसन रंग बलदे के गुण नइ राहय.. बरखा के दिन ह एकर मन के प्रजनन काल के बेरा होथे, तेकर सेती प्राकृतिक रूप ले ए मन अइसन करथें.. ए ह जेनेटिक बदलाव होथे.
   -प्रकृति ह अपन सरलग संचालन खातिर जम्मो जीव जगत ल कुछू न कुछू खास गुण अउ समझ दिए हावय न.
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-बरखा के मौसम आइस तहाँ ले भिंभोरा या खेत के मेड़ आदि म पिहरी फूटे के चालू हो जाथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. गजब सुहाथे ना.. ए हमर प्राकृतिक मशरूम ह.. एला कोनो पुटू त कोनो फुटू त कोनो अउ कुछू आने नॉव ले जानथें, फेर हमर ए चातर मुड़ा पिहरी कहिथन.
   -हव.. ए तो बने बात आय फेर इहू म सबोच फुटू मन खाए के लाइक नइ होय.. कतकों मन जहरीला होथे, तेकर सेती देख समझ के ही उँनला राँधना चाही.
   -अच्छा.. अइसे?
   -हव.. हमर छत्तीसगढ़ म पाए जाने वाला फुटू मन ऊपर शोध करे बॉयोटेक वैज्ञानिक डॉ. प्रशांत शर्मा बताथें के 40 किसम के प्राकृतिक मशरूम मन के प्रयोगशाला म जाँच करे गे हवय, जेमा पाए गिस के चिरको, सुगा, छेरकी, भैसा, बाँस, भुडू, जाम, दुधिया, चरचरी, कठवा, करीया, तीतावर, पिवरा, झरिया, कुम्हा अउ झरकेनी जइसन प्रजाति मन खाए के लइक होथे.. उहें बिलाई खुखड़ी, गंजिया खुखड़ी, लकड़ी खुखड़ी, लाल बादर अउ बनपिवरी जइसन फुटू मन बहुत हानिकारक होथे.
   -तभे तो कतकों जगा ले फुटू खाय के सेती बीमार परे के खबर आवत रहिथे.
   -हव.. उँकर कहना हे के चटक रंग जइसे लाल, नीला, पीला, हरा, बैगनी अउ नारंगी रंग के फुटू मन के सेवन नइ करना चाही.
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-लोकतंत्र सेनानी के नॉव म अभी एक नवा पेंशन योजना चालू करे गे हवय जी भैरा जेकर अंतर्गत वो मनला पेंशन दिए जाथे जे मन आंतरिक सुरक्षा कानून अधिनियम (मीसा) के अंतर्गत जेल म धँधाय रिहिन हें.
   -हव जी कोंदा.. आपातकाल के नॉव ले जाने जाने वाला वो बेरा ल लोगन लोकतंत्र के करिया दिवस के रूप म आजो सुरता करथें.
   -अभी अवइया 25 जून के वो करिया दिवस ल पचास बछर पूरा हो जाही.
    -अच्छा..!
   -हव.. 25 जून 1975 के लागू होय रिहिसे आपातकाल ह जब लोगन ल बरपेली जेल म धाँध दिए जावत रिहिसे या फेर उँकर नसबंदी कर दिए जावत रिहिसे.
   -वो पइत इहू सुने ल मिलय संगी के नसबंदी के कोटा ल पूरा करे खातिर कतकों कुवाँरा लइका मन के घलो नसबंदी कर दिए जावय.
   -कतकों झन तो अपन नौकरी ल बचाय राखे के डर म ही नसबंदी करवावत रिहिन हें.
   -सही आय जी.. कुल 21 महीना चले वो अतलंगी बेरा ल ए देश कभू भुला नइ पावय.
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-कतकों टीवी चैनल मन म ज्योतिष ले समस्या के समाधान वाले कार्यक्रम देखाथें नहीं जी भैरा.. अब अइसनो मन ले बाँच के रहे के जरूरत हे.
   -कइसे जी कोंदा.. वो मन अंते-तंते बता देथें का?
  -अंते-तंते तो बताथेंच संग म डर-भय देखा के ठगी घलो करथें.
   -वाह भई.. आजकाल तो सबोच टीवी चैनल मन म कोनो न कोनो ज्योतिष ल समस्या के समाधान बतावत देखाबे करथें.
   -हव.. कांकेर के मीरा साहू नॉव के एक माईलोगिन ह अभी डीडी फ्री डिश चैनल म प्रसारित जय माँ कामाख्या संस्थान के राघवेंद्र आचार्य धीरज रावत ले 28 लाख रुपिया के ठगी के शिकार होगे.
   -मरना हे गा.. अइसन प्रतिष्ठित  संस्थान के नॉव म घलो ठगी.!
   -हव.. मीरा साहू ह वो कार्यक्रम के बेरा फोन लगा के गोठबात करे रिहिसे उही नंबर म फेर वो ज्योतिष ह घेरीभेरी फोन कर कर के मीरा के घर म अकाल मृत्यु के डर देखा देखा के 28 लाख रुपिया अपन खाता म मँगवा डारे रिहिसे.. कई पइत के इही चरित्तर म हलाकान होके मीरा ह पुलिस म ए बात के रिपोर्ट करिस त कांकेर पुलिस ह वो ज्योतिष ल दिल्ली ले गिरफ्तार कर के लाने हे.
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-आदमी जब एको अपराध म धँधाय अस हो जाथे त वोमा ले बोचके बर कुछू भी बहाना बनाय के उदिम करथे जी भैरा भले वो ह अनफभिक राहय.
   -हव जी कोंदा ए बात तो हे.. अभीच्चे देख ले अमृतसर के अदालत ले राष्ट्रीय राइफल्स म ब्लैक कैट कमांडो बलविंदर सिंह ल अपन सुवारी ल दहेज म फटफटी नइ दे के सेती वोकर टोटा ल मसक के मार डारे के सेती दोषी ठहराए गिस त वो ह सुप्रीम कोर्ट म ए दलील देवत अरजी लगाय रिहिसे के वो ह 'आपरेशन सिंदूर' म भाग ले हावय तेकर वोला आत्मसमर्पण करे के छूट दिए जाय.
   -अच्छा.. मतलब आत्मसमर्पण करे के मापदंड म वोला कमती सजा मिलय.
   -हव.. फेर शीर्ष अदालत ह वोकर सजा ल जस के तस राखत कहे हे- आपरेशन सिंदूर म भाग ले के सेती तोला अपन घर म अत्याचार करे के छूट नइ मिल जाय.
   -बने कहे हे.. शीर्ष अदालत ह.. कानून के नजर म सब बरोबर होथे.. चाहे वो आमलोगन होवय ते देश के सेना म सेवा देवत कोनो सिपाही.
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-गोवर्धन पूजा के जोहार जी भैरा.
   -जोहार संगी कोंदा.. तुमन गरुवा मनला लोंदी खवा डारेव गा?
   -हव जी.. हमन तो बिहनियच ले ए बुता ले उरक जाथन.
   -बने आय संगी गौवंश संरक्षण संवर्द्धन के ए बुता ल जतका जल्दी सिध पारबे वतके बने हे.. त अब चलना भाँठा डहार जाबो गोवर्धन खूँदाय के तइयारी देखे बर.
   -हव चलना.. अच्छा तैं जानथस भगवान कृष्ण ह इंद्रदेव के पूजा ल बंद करवा के गोवर्धन पहाड़ के पूजा करवाए के परंपरा काबर चालू करवाए रिहिसे?
   -वाह.. नइ जानबो गा.. भगवान कृष्ण ह गोवर्धन पूजा के माध्यम ले ए संदेश दिए रिहिन हें के हमला दुरिहा ले चकाचक दिखत जिनिस के आकर्षण म परे के बलदा अपन तीर-तखार के उपयोगी जिनिस या मनखे मन के महत्व ल समझना चाही.
   -ठउका कहे.. दूर के ढोल सिरिफ सुहावन होथे.. एकरे सेती तो महूँ कहिथौं- हमला बाहिर ले दुनिया भर के सँवाँगा खाप के आवत गुरुघंटाल किसम के लोगन मन के झाँसा म नइ आके अपन पुरखौती परंपरा, जीवन पद्धति, उपासना विधि अउ लोक देवता मन के ही पूजा उपासना म मगन रहना चाही.
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अभी धरम-करम के नॉव म हमर छत्तीसगढ़ म जइसन-जइसन खबर देखे सुने ले मिलत हे ते ह उजबक बानी के जादा जनावत हे जी भैरा.
   -सही म जी कोंदा.. अउ तैं आकब करे हावस ए मन म बाहिर ले अवइया गुरुघंटाल किसम के लोगन ही जादा हें.
   -गुरुघंटाल मन ही तो अतलंग करथें संगी बने मनखे मन आगू-पाछू, तरी-उप्पर जम्मो ल टमड़ के कुछू भी कारज करथें.. अब देख लेना दाई बमलेश्वरी के धाम डोंगरगढ़ ले जेन खबर आय हे तेला.. योग के नॉव म भोग के आश्रम चलाए जावत रिहिसे.
   -हव भई.. कांती अग्रवाल नॉव के तथाकथित बाबा ह प्रज्ञागिरी पहाड़ी जगा कुल 42 एकड़ भुइयाँ बिसाय रिहिसे तेमा के पाँच एकड़ म योग आश्रम बनवावत रिहिसे अउ वोकर आड़ म चुकता भोग के धंधा चलावत रिहिसे.. उहाँ जेन बोर्ड टँगाय रिहिसे तेमा 'कांति योग' लिखाय रिहिसे बताथें.
   -हव भई पहिली बेर कांति योग के नॉव सुने हन.. बीस बछर ले गोवा म घलो अइसने करत रिहिसे कहिथें.. गोवा म विदेशी पर्यटक मन जादा आथें उही मन ले वोकर विदेशी चेला मन के संख्या बाढ़े लागिस, जे ह वोकर धन-दौलत अउ चेला-चपाटी सबो के संख्या म बढ़ोत्तरी करे लागिस.
   -हमन ल अइसन जम्मो किसम के बाबा उबा मन ले बाँच के रेहे के जरूरत हे.
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-उत्तर प्रदेश के इटावा जिला के गाँव दाँदरपुर म 22-23 जून के रतिहा म कथावाचक मुकुटमणि यादव अउ वोकर संगी संत सिंह यादव के मुड़ ल मुड़वा के एक माईलोगिन के पाँव म नाक रगड़वाए अउ वोकर पिशाब ल उँकर मूड़ी ऊपर छींचे के जेन घटना होय रिहिसे न जी भैरा एकर संबंध म काशी विद्वत परिषद ह कहे हे के भागवत कथा कहे के अधिकार जम्मो हिंदू मनला हे.. एमा कोनो किसम के ऊँच-नीच या छोटे-बड़े के भेदभाव नइ करे जा सकय.
   -सही आय जी कोंदा.. जब भगवान के कथा सुने के सबला अधिकार हे.. अपन घर म उँकर पूजा ठउर बना के राखे अउ पूजा करे के सबो ल अधिकार हे त वोकर कथा कहे के अधिकार कइसे नइ हो सकही?
   -सही आय.. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति बिहारी लाल शर्मा अउ काशी विद्वत परिषद के महामंत्री रामनारायण द्विवेदी ह सबो ल कथा करे के अधिकार हे कहे हे. उँकर कहना हे- हमर परंपरा म अइसन कतकों गैर ब्राह्मण होय हें, जिंकर गिनती ऋषि के रूप म होथे, चाहे वो महर्षि वाल्मीकि हो, वेदव्यास हो या रविदास सबो  ल बरोबर के सम्मान अउ आदर मिले हे अउ आगू घलो मिलत रइही.
   -हमर छत्तीसगढ़ म स्वामी आत्मानंद ह एकर बड़का उदाहरण हे.
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-देंहदानी मनला अब 'गार्ड ऑफ ऑनर' दे के आखिरी बिदागरी दिए जाही जी भैरा.
   -ए तो बहुते सँहराय के लाइक बात आय जी कोंदा.
   -फेर ए परंपरा ह अभी सिरिफ परोसी राज मध्यप्रदेश भर म रइही.. उहाँ के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ह घोषणा करे हवय के जे मन अपन देंह के या कोनो अंग विशेष के दान करहीं वो मनखे के आखिरी बिदागरी ल 'गार्ड ऑफ ऑनर' दे के करे जाही संगे-संग उँकर परिवार के सदस्य मनला स्वतंत्रता दिवस अउ गणतंत्र दिवस म आयोजित होवइया सार्वजनिक कार्यक्रम म सम्मानित घलो करे जाही.
   -देंह दान के अगोरा करत कतकों अस्पताल अउ लोगन मनला एकर ले निश्चित रूप ले लाभ मिलही संगी.. संग म देंह दान जइसन पुन्न कारज के रद्दा म लोगन प्रोत्साहन होके आगू आहीं.
   -हव जी मैं तो कहिथँव के मध्यप्रदेश सरकार के ए निर्णय के अनुसरण हमर छत्तीसगढ़ के संगे-संग पूरा देश के सरकार मनला करना चाही.
   -सही कहे संगी.. देंह दान ह हमर धार्मिक आध्यात्मिक संस्कृति म घलो जबर महत्व राखथे.. महर्षि दधीचि ल तो सिरिफ एही बात के सेती ही सुरता करे जाथे.
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-नाग-नागिन के मया अउ एक-दूसर खातिर समर्पण के गोठ ल अभी तक हमन सिरिफ किस्सा कहानी म ही सुनत रेहे हावन जी भैरा फेर परोसी राज मध्यप्रदेश के मुरैना जिला के गाँव घूरकूड़ा कालोनी विकासखंड पहाड़गंज के लोगन ल अइसन साक्षात देखे ले मिले हे.
   -वाह भई.. ए तो वाजिब म अद्भुत हे जी कोंदा.
   -खबर आय हे के वो गाँव के सड़क ल नाहकत बेरा एक नाग ह मोटर के खाल्हे म आके चपकागे.. वो नाग ल गाँव वाले मन देखिन त वोला एक तीर म लान के मढ़ा देइन.
   -गाँव वाले मन जस के कारज करिन कहिदे.
   -हव.. थोरके पाछू देखिन वो जगा एक नागिन ह आके बइठगे.. लगातार चोबीस घंटा तक वो नागिन ह उहिच जगा बइठे रिहिस.. न हालिस न डोलिस अउ उहिच जगा उहू ह अपन परान ल तियाग दिस.
   -वाह भई.. सुने म ही अद्भुत जनावत हे! हमर संस्कृति म वइसे भी नाग नागिन मनला देवता बरोबर मानत उँकर पूजा करे जाथे.
   -हव.. गाँव वाले मन बाद म वो दूनों नाग नागिन के विधिवत रूप ले अंतिम संस्कार करिन.. गाँव वाले मन निर्णय लिए हें के जेन जगा वो नाग नागिन मन अपन जीव छोड़े हें, वो जगा उँकर अमर प्रेम के प्रतीक स्थली के रूप म चबूतरा बनवाहीं।
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Saturday, 28 June 2025

सुशील भोले साक्षात्कार -केके अजनबी

साक्षात्कार कर्ता :- कृष्ण कुमार अजनबी
साक्षात्कार  :- श्रीमान सुशील भोले जी 

सवाल:1.आपका शुभनाम और तखल्लुस, जन्म कब, कहाँ, शिक्षा-दीक्षा, पिता-माता व पारिवारिक पृष्ठ-भूमि पर विस्तार से जानकारी दीजिएगा  ?

जवाब:1 शासकीय अभिलेख में मेरा नाम है- सुशील कुमार वर्मा
सार्वजनिक जीवन में प्रचलित नाम- सुशील भोले है , लेकिन यह साहित्य वाला या कहें तखल्लुस नहीं है. दरअसल यह आध्यात्मिक दीक्षा के पश्चात गुरु के द्वारा दिया गया नाम है।
मेरा जन्म भाठापारा शहर में 2 जुलाई सन् 1961 को हुआ था. माता जी का नाम श्रीमती उर्मिला देवी और पिताजी का नाम श्री रामचंद्र वर्मा है.
प्रारंभिक शिक्षा भाठापारा शहर में ही हुई, फिर मेरे पैतृक गाँव नगरगाँव थाना-धरसींवा, जिला-रायपुर में और फिर उसके पश्चात छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में. पिताजी शिक्षक थे साथ व्याकरण के अच्छे जानकार भी थे. उनकी लिखी हुई किताब प्राथमिक हिंदी व्याकरण एवं रचना उस समय संयुक्त मध्यप्रदेश के पाठ्यपुस्तक में कक्षा तीसरी, चौथी और पाँचवीं में पढ़ाई जाती थी. 
उनके इसी लेखकीय गुण से प्रभावित होकर ही मैं भी लेखन के क्षेत्र में आया.
   हमारी माताजी गृहिणी थीं, किंतु उन्हें छत्तीसगढ़ी लोककथाओं एवं गीतों का अद्भुत ज्ञान था. अगहन बिरस्पत, कमरछठ जैसे पर्व पर उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रम स्थलों पर आमंत्रित कर उनसे कहानी सुनी जाती थी. हमारे घर पर मोहल्ले की महिलाएँ उन्हें हमेशा घेरे रहती थीं. मोहल्ले की महिला मंडली की अध्यक्ष भी रहीं.

सवाल 2. लेखन की ओर कब कैसे आकृष्ट हुए और पहली रचना कब कैसे रची गई ? क्या किसीने प्रोत्साहित किया अथवा स्वतः आत्म प्रेरित हुए  ?

जवाब 2 पिताजी को घर पर लिखते-पढ़ते देखकर लेखन की ओर मैं भी आकर्षित हुआ.
प्रारंभिक रचनाएँ तुकबंदी के रूप में हुईं जो मिडिल और हाईस्कूल के समय से ही लिखी जाने लगी थीं.

सवाल:3. आपकी पहली रचना कब, कहाँ से प्रकाशित हुई  ? प्रसन्नता तो हुई होगी ? पहली अनुभूति  कैसी रही ? 

जवाब:3 मैं सन् 1982 के अंतिम दिनों में ही दैनिक अग्रदूत प्रेस के साथ जुड़ गया था, इसलिए 1983 से ही मेरी कविता और कहानी अग्रदूत के साहित्यिक परिशिष्ट पर प्रकाशित होने लगी थी.
   उस समय अग्रदूत प्रेस में छत्तीसगढ़ के तीन बड़े पत्रकार और साहित्यकार सर्वश्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी, विनोद शंकर शुक्ल जी और टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी कार्यरत थे, मुझे उन तीनों का ही सानिध्य, मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त हुआ.
   सन् 1984 से आकाशवाणी रायपुर से मेरी कविताओं का प्रसारण प्रारंभ हो गया था.

सवाल:4. कौन- कौन सी पत्र पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं छ्प चुकी हैं ? इस पर पाठकों की प्रतिक्रियाएं कैसी रही ?

जवाब:4 छत्तीसगढ़ के प्रायः अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।

सवाल:5. साहित्य के क्षेत्र में आप कबसे जाने-पहचाने जाने लगे ? अर्थात आपको एक नई पहचान मिली ?

जवाब:5. अखबारों में छपना तो 1983 से प्रारंभ हो गया था, लेकिन मुझे विशेष पहचान तब मिली जब मैं सन् 1987 में छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम संपूर्ण मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' का प्रकाशन संपादन करने लगा.

सवाल:6. किन किन विधाओं में आपकी रचनाएं उपलब्ध हैं ? वास्तव में किस विधा में आपको सफलता अधिक मिली  है ? 

जवाब:6. कविता, कहानी, व्यंग्य, संस्मरण आदि सभी विधाओं में लेखन हुआ. अब गद्य लिखना ज्यादा अच्छा लगता है. अभी सोशल मीडिया पर छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रथम धारावाहिक 'कोंदा भैरा के गोठ' का लेखन नियमित रूप से चल रहा है.

सवाल:7. कभी साहित्य में या साहित्य से आत्मसंतोष मिला है ? अथवा  कोई गहरा अफसोस  ?

जवाब:7 मेरा साहित्य लेखन आत्मसंतुष्टि के लिए नहीं अपितु मिशन के लिए है. 
हम लोग छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन से जुड़े रहे हैं, तभी से मन में यह संकल्प लिए लेखन कर रहे हैं कि छत्तीसगढ़ी अस्मिता के लिए निरंतर लिखना है.

सवाल:8. किसे आप अपना आदर्श मानते हैं ? और किन किन साहित्यकारों का आपको सान्निध्य मिला ? किसी से मिलने की खास तमन्ना है ?

जवाब:8 मेरा आदर्श तो कोई नहीं है. चूंकि मैं पत्रकारिता से जुड़ा रहा हूँ, इसलिए साहित्यकारों का सान्निध्य स्वतः ही प्राप्त होता रहा. छायावाद के प्रवर्तक कवि पं. मुकुटधर पाण्डेय जी का सानिध्य प्राप्त होना मेरे लिए अविस्मरणीय है.
मेरे प्रथम काव्य संग्रह 'छितका कुरिया' के लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखकर अपना आशीर्वचन दिया था, और मुझसे यह कहा भी था कि सुशील तुम पहले व्यक्ति हो जिसके लिए मैं छत्तीसगढ़ी भाषा में संदेश लिखा हूँ. मैंने भी उनके लेटरपैड पर लिखे उस संदेश का  ब्लॉक बनवाकर अपने संकलन में प्रकाशित किया था.

सवाल:9. किन किन साहित्यिक संस्थान अथवा मंच से आप सम्बद्ध रहे हैं ?

जवाब:9 छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के साथ ही रायपुर की प्रायः सभी समितियों के साथ जुड़ाव रहा.

सवाल:10. अब तक कोई विशेष उपलब्धि मिली है ? ऐसा आप मानते हैं ?

जवाब:10 मेरी छत्तीसगढ़ी कहानी 'ढेंकी' को पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में एमए छत्तीसगढ़ी के द्वितीय सेमेस्टर में पढ़ाया जाता है. चूंकि मैं छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम संपूर्ण मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' का संपादक रहा हूँ, इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य में आयोजित होने वाली व्यावसायिक परीक्षाओं में इससे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. 

 सवाल:11.क्या आप पुरस्कार अथवा सम्मान में विश्वास रखते हैं ? कौन कौन से पुरस्कार या सम्मान से आप नवाजे जा चुके हैं ? कोई विशेष आकांक्षा हो तो बताइए ?

जवाब:11. पुरस्कार तो अनेक मिले हैं, लेकिन इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है, क्योंकि मेरा लेखन एक मिशन के लिए है.

सवाल:12.. अगले जनम में आप क्या बनना पसंद करेंगे और क्यों ?
इस जनम से आप संतुष्ट हैं या नहीं ?

जवाब:12 मैं पूरी तरह से आध्यात्मिक व्यक्ति हूँ, इसलिए अगले जनम के बजाय मोक्ष की आकांक्षा रखता हूँ.

सवाल:13. अब तक आपकी कितनी किताबें छ्प चुकी हैं और कौन- कौन सी व कहाँ कहाँ से ? आगामी योजना आपकी क्या है ?

जवाब:13. 1. छितका कुरिया (काव्य संग्रह 1989), 2. दरस के साध (लंबी कविता 1990), 3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संग्रह 1995), 4. ढेंकी (कहानी संकलन 2006, दूसरा संस्करण 2022), 5. आखर अँजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित आलेखों का संकलन 2006, दूसरा संस्करण 2017), 6. भोले के गोले (व्यंग्य एवं लेख संकलन 2015), 7. सब वोकरे संतान ए संगी (चार डाँड़ के संकलन 2017), 8. सुरता के संसार (संस्मरण संग्रह 2022), 9. बिहनिया के जोहार (चार डाँड़ के चित्रमय संकलन 2022), 10. कोंदा भैरा के गोठ (सोशल मीडिया का पहला धारावाहिक 2024)

सवाल:14. प्रकाशन को लेकर  कोई सुखद अनुभूति अथवा कटु अनुभव है तो बताइएगा ?

जवाब:14. छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम संपूर्ण मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' का प्रकाशन संपादन मेरे जीवन का अविस्मरणीय अनुभव है.

सवाल:15. साहित्य मनुष्य के लिए क्या आवश्यक है अथवा एक व्यसन  मात्र ?

जवाब:15. समाज को दिशानिर्देश देते रहना ही साहित्य का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए.

सवाल:16. आपकी रूचि और किन किन में है ? समय कैसे निकाल पाते हैं ?

जवाब:16 छत्तीसगढ़ी अस्मिता से संबंधित सभी विधाओं में रुचि है. सभी के लिए थोड़ा बहुत समय तो निकल ही जाता है. 

सवाल:17. जीवन यापन हेतु आप करते क्या हैं ? नौकरी,व्यापार, कृषि या फिर अन्य कोई कर्म  ?

जवाब:17. पत्रकारिता.

सवाल:18. क्या आप अपने बच्चों को भी अपने जैसे (कवि, लेखक, शायर या साहित्यकार ) बनाना चाहेंगे ? हां तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं ?

जवाब:18. ऐसा कुछ भी नहीं है, लोगों को अपनी रुचि के अनुरूप कार्य करना चाहिए.

सवाल:19. क्या आप अपने आपको सफल मानते हैं ?  हाँ तो इसका श्रेय किसे देंगे ? यदि सफल नहीं हैं तो वजह क्या है ?

जवाब:19. मैं आध्यात्मिक रूप से पूर्ण सफल हूँ. इसके लिए मेरे मार्गदर्शक की अनुकम्पा ही मुख्य वजह है.

सवाल:20. आपको नहीं लगता कि आज की पीढ़ी किताब से दूर भाग रही है ? अर्थात पढ़ने में रूचि कम हो गई है ? इसका कारण क्या हो सकता है ?

जवाब :20. अब ज्ञान और मनोरंजन के लिए अनेक साधन आ गए हैं, इसलिए स्वभाविक तौर पर लोग किताबों से दूर हो रहे हैं. 

सवाल:21. मनोरंजन के साधनों (टीवी, फेसबुक, इन्टरनेट व मोबाइल ) को आप साहित्य का सहायक मानते हैं या वाधक और कैसे ?

जवाब: मेरे लिए ये सभी आविष्कार वरदान से कम नहीं हैं. चूंकि मैं 24 अक्टूबर 2018 से लकवा ग्रस्त हूँ, ऐसे में यही आविष्कार मेरे लिए जीने, लिखने पढ़ने और मित्रों के संपर्क में रहने का मुख्य साधन है. 

सवाल:22. पाठकों और श्रोताओं
 की संख्या बढ़ाने हेतु क्या किया जा सकता है ?

जवाब: 22. श्रेष्ठ लेखन ही 
पाठकों को आकर्षित करने का एकमात्र उपाय है.

सवाल:23. साहित्य का भविष्य उज्जवल  है या अंधकार  ? क्या किया जाना  चाहिए  ?

जवाब:23. उज्जवल था है और भविष्य में भी रहेगा.

सवाल:24.अगर आप बुरा न मानें साहब तो एक निजी सवाल पूछूं ... आपको पहले  प्यार का पहला अहसास कब और कैसे हुआ ? क्या आप उस अहसास को अब भी अपने दिल में महसूस कर पा रहे हैं ? इस से कोई कालजयी रचना हो तो बताइए ?

जवाब:24. मेरे जीवन में ऐसा कुछ हुआ ही नहीं. चूंकि हम लोग गाँव के रहने वाले हैं, जहाँ कम उम्र में शादी कर दी जाती है, ऐसे में मन के भटकाव का रास्ता ही बंद हो जाता है.

सवाल:25. आगामी पीढ़ी के लिए कोई संदेश, प्रेरणा या मार्गदर्शन देना चाहेंगे ? कुछ और कहना बाकी रह गया हो तो भी कह सकते हैं ?

जवाब:25. चूंकि मैं छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन के साथ जुड़ा रहा हूँ तथा जीवन भर छत्तीसगढ़ी अस्मिता के लिए कार्य करता रहा हूँ, इसलिए चाहता हूँ कि लोग भी मेरे इस मिशन में सहभागी बनें. छत्तीसगढ़ की मूल आध्यात्मिक संस्कृति, जीवन पद्धति और उपासना विधि को पुनर्जीवित करने का भगीरथ प्रयास करें.

फोटो सहित आप अपना बायोडाटा व पता संलग्न कर मेल कर दीजिएगा ...👏

प्रस्तुति :- कृष्ण कुमार अजनबी.
मोबाइल:- 9691194953
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