Tuesday, 21 February 2023

बहुमुखी प्रतिभा पुनूराम साहू राज'

17 मई हीरक जन्मोत्सव//
बहुमुखी प्रतिभा के धनी कर्मयोगी पुनूराम साहू 'राज'
    जब कभू मैं ग्रामीण क्षेत्र म संचालित साहित्यिक- सांस्कृतिक समिति के माध्यम ले ठोसहा बुता करइया मन के गोठ करथंव, त वोमा सबले पहिली गिनती तहसील मुख्यालय मगरलोड, जिला-धमतरी के 'संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति' के सबले पहिली करथौं. चाहे कोनो मंच म होवय या फेर पत्र-पत्रिका म संदर्भ लिखे म, जम्मोच ठउर म मगरलोड के ए संस्था के गोठ जरूर करथौं. सबो जगा बताथौं- ग्रामीण क्षेत्र म रहिके घलो साहित्य, कला अउ संस्कृति खातिर जतका समर्पित भाव ले सरलग, बिना कोनो नागा अउ बहाना के ए समिति ह जुन्ना बेरा ले बुता करत हे, ए ह आने क्षेत्र के लोगन मन खातिर प्रेरणा के रद्दा देखा सकथे. उन एकर ले प्रेरणा ले के अपनो इहाँ कला, साहित्य अउ संस्कृति खातिर पोठहा बुता कर सकथें.
    इही 'संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति' के, जेन 13 अक्टूबर 1996 ले लोगन के बीच सरलग जनजागरण के बुता करत हे, एकर संस्थापक सदस्य अउ अभी के बेरा के अध्यक्ष पुनूराम साहू 'राज' जी ल आज अपन जिनगी के अमृत बेला ल अमरे खातिर बधाई संग शुभकामना देवत गजब निक जनावत हे.
    17 मई सन् 1948 के महतारी सुहेला देवी अउ सियान धनाजी राम साहू के घर जनमे पुनूराम जी बहुमुखी प्रतिभा के कर्मयोगी मनखे आय. वइसे तो मैं इनला सन् 1980 के दशक ले जानथौं, जब एमन के नाम ल आकाशवाणी के श्रोताओं के पत्र के संगे-संग तब के लोकप्रिय छत्तीसगढ़ी फरमाइशी कार्यक्रम 'सुर सिंगार' म इंकर नाम ल सुनत राहंव. छत्तीसगढ़ी भाषा के मासिक पत्रिका 'मयारु माटी के जब मैं प्रकाशन-संपादन करत रेहेंव तभो इंकर पाती मोरो जगा आवत राहय. फेर एक गुणी लेखक अउ पोठ साहित्यकार के रूप म तब चिन्हारी होइस, जब सन् 1990 के दशक म लगातार साहित्यिक गतिविधि मन म संघरे लगेन. सन् 1996 म डाॅ. दशरथ लाल जी निषाद 'विद्रोही' संग वो क्षेत्र के जम्मो गुणीजन मन मिल के 'संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति' के गठन करीन तेकर पाछू तो फेर लगातार मिलना-जुलना, एक-दूसर के कार्यक्रम म आना-जाना बाढ़िस. तब मैं इंकर लेखक के संगे-संग अउ तमाम कला प्रतिभा मन ले घलो चिन्हारी पावत गेंव.
    एक पइत 'राज' जी बतावत रिहिन- लइकई उमर म जब मैं 12, 13 बछर के रेहेंव तब गाँव के लीला मंडली अउ नाटक, ड्रामा आदि मन म महिला पात्र के भूमिका निभावौं. उंकर रूप-रंग तो सिरतो के नोनी बरोबर जुगजुग ले चिक्कन-चांदन दिखथे, एकरे सेती उनला सीता, सावित्री, रूक्मिणी, सती विन्दा, मैना, दमयंती आदि के अभिनय करवाए जाय. राज जी बतावंय- उनला पुरुष पात्र के घलो भूमिका निभाए के अवसर मिलय. उन बताथें, जब उन 22 बछर के होइन तब उनला राम लीला के रावण वध प्रसंग म विभीषण के भूमिका निभाए बर मिलय. विभीषण के भूमिका वो मन 52 बछर के होवत ले सरलग निभाइन.
    अइसने उन 18 बछर के उमर म 'डंडा नृत्य' ल ए नृत्य-गीत के ज्ञाता बीरसिंह पटेल जी जगा विधिवत शिक्षा लेइन. वो मन बताथें- डंडा नृत्य के 10 प्रकार वोमन सीखे रिहिन हें, जेला आज घलो भुलाय नइहें. अपन ए कला खातिर समर्पित भावना ल प्रदर्शित करे खातिर वो मन सन् 1975 म अपन खुद के प्रयास ले विकास खंड स्तरीय लोककला महोत्सव के आयोजन करे रिहिन हें. 'संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति' के गठन होए के बाद ए समिति द्वारा दू  बछर डंडा नृत्य गीत प्रतियोगिता अउ दू बछर सुआ नृत्य गीत प्रतियोगिता के आयोजन करे गे रिहिसे. सुआ नृत्य गीत प्रतियोगिता म एक बछर महूं ल संघरे के अवसर मिले रिहिसे.
    राज जी गाँव-गंवई के रहइया आय, एकरे सेती उंकर जम्मो रचनात्मक बुता म गाँव माटी के महक दिखाई देथे. गाँव के परब-तिहार, बोली-भाखा उंकर साहित्य लेखन के संगे-संग पत्रकारिता म घलो दिखथे. एक डहार उन गाँव-गंवई के गोठ ल साहित्य म रचथें त दूसर डहार पत्रकारिता के माध्यम ले ए सब जिनिस ल जन-जन तक बगराए म घलो पाछू नइ राहंय. उंकर छत्तीसगढ़ी गीत संकलन 'गावत माटी नाचत गाँव' के ए शीर्षक गीत ल देखव-

गावत माटी - नाचत गाँव रे..
मुच मुच हांसे गली, ठमकत हे पांव रे...
बइसाख म अक्ती आइस, नवा दिन मनाइन
दोना भर के धान, ठाकुर दिया म चढ़ाइन.
आधा जेठ म होगे, धान बोये के तैयारी
खेत म चलिस नांगर बइला रापा अउ कुदारी.
घुरूर घारर बादर संग असाढ़ आइस ठांव रे..
मुच मुच हांसे गली, ठुमकत हे पांव रे...

    माटी के प्रति उंकर मया अउ लगाव ल देखव-

माटी म उपजेन माटी म बाढ़ेन, माटी हे भगवान. संगी माटी हे महान...
इहि माटी म जनम धरिन हें, बड़े बड़े पंडित ज्ञानी
अर्जुन ल उपदेश बताइन, कृष्ण ह गीता के बानी
माटी के महिमा ल रे संगी, कइसे करौं बखान...

    एक डहार जिहां राज जी गाँव के महिमा के गान करथें. उहाँ के परंपरा के गोठ करथें, उहें उन गरीबी, मंहगाई अउ साल के साल परत दुकाल के गोठ करे म घलो नइ पिछवावंय. जनभावना ल उन   अपन अंतस के माध्यम कहि देथें. उंकर अंतस के उद्गार देखव-

एक कोती गरीबी, दुसर कोती मंहगाई,
डेना ल धर के हेचकारत हे,
उपराहा म साल पुट दुकाल, घेरी बेरी चेचकारत हे.
हम घयलाहा मनखे, अपने घेंघराहा बोली म,
दुख के कहानी ल आंसू म  लिखत हन,
फेर हमर लिखे ले का होही,
कोनो पढ़इया राहय तब तो.

    राज जी के साहित्य सिरजन के संसार घलो गजब लम्हा हे. मोला उंकर सन् 2002 म छपे एक किताब देखे ले मिले रिहिसे 'हाना' एमा छत्तीसगढ़ी कहावत अउ मुहावरा मनला ल सुंदर गढ़न के संदर्भ सहित समझावत गे रिहिसे. मैं शुरू ले दैनिक अखबार संग जुड़े हौं, तेकर सेती उहाँ ले निकलइया छत्तीसगढ़ी परिशिष्ट मन म राज जी के ए हाना वाले किताब के गजब उपयोग करत रेहेंव.
    ए हाना किताब के छोड़े छत्तीसगढ़ी गीत अउ कविता संग्रह 'गावत माटी नाचत गाँव', अपन क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन ऊपर आधारित 'सुराज के सिपाही', छत्तीसगढ़ के पारंपरिक घरजिंया प्रथा ऊपर नाटक 'लमसेना', हिन्दी नाटक 'कर्मयज्ञ', भक्त माता कर्मा ऊपर आधारित छत्तीसगढ़ी कहानी 'कर्मा माता के खिचरी', वोमन 42 बछर तक बैंक म कर्मचारी के रूप म सेवा दिए हें, एकरे ऊपर संस्मरण लिखे हें -'नियुक्ति से निवृत्ति तक'. एकर मन के छोड़े छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह, निबंध संग्रह आदि मन प्रकाशन के अगोरा म हे.
    राज जी ल मिले सम्मान अउ पुरस्कार मन के श्रृंखला गजबेच लंबा हे. उनला सन् 1984 ले लेके आज तक के मिले सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, पत्रकारिताअउ आने लेखन मन के माध्यम ले मिले सम्मान मन  ल देख के उंकर खातिर गरब के अनुभव होथे.
    आज पुनूराम साहू 'राज' जी अपन जिनगी के 75 बछर पूरा करत हें. ए बेरा म मैं उनला शताब्दी मनाए के शुभकामना देवत अपन ईष्टदेवता कुलदेवता ले अरजी करत हौं, के उनला अपन जिनगी के संझौती बेरा ल घलो एक समर्पित कर्मयोगी के जिनगी प्रदान करंय...

एक छंद है आज समर्पित 'राज' जी आपके जन्मदिवस पर
जीवन खुशियों से भर जाए ज्यूं जल भरता ऋतु पावस पर
रिद्धि सिद्धी सब मंगल गावें नृत्य करे देव-अप्सरा
स्वर्ग लोक मुदित मुस्कावे देख-देख कर यह वसुंधरा
हर मौसम के रंग निराले छाए आपके मानस पर
'राज' जी आपके जन्मदिवस पर
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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