Saturday, 4 February 2023

हमर परंपरा.. गवन के संदेशा..

हमर परंपरा//
गवन के संदेशा..
    हमर संस्कृति म कतकों अइसन परंपरा हे, जेन ह देश, काल अउ बेरा-बखत ल देखत अपन रूप म थोर-बहुत बदलाव कर लेथे. गवन, गौना या पठौनी घलो उही म के एक परंपरा आय, जेन बेरा के चलत अपन रूप म बदलाव करत हे. वइसे कतकों जगा अभी घलो अपन मूल रूप म ए ह दिख जाथे, फेर बहुते कम जगा दिखथे. आज के नवा पीढ़ी म तो कतकों झन अइसे घलो हो सकथें, जे मन ए परंपरा ले अनजान घलो होहीं.
    पहिली हमर इहाँ 'बाल विवाह' के गजबे चलन रिहिसे. कतकों नान्हे लइका मन के तो पर्रा भाॅंवर (साल डेढ़ साल के लइका जेन बिहाव के मतलब तो दुरिहा जाय, बने गतर के रेंगे घलो ले नइ सीखे राहय तइसनो मन के पर्रा म बइठार के) भॉंवर पार दिए जावत रिहिसे.
    अइसने नान्हे उमर म होवत बर-बिहाव के सेती नवा बने बहुरिया नोनी ल ओकर मइकेच म राहन देवत रिहिन हें. अउ जब दुल्हा-दुल्हीन दूनों जब घर-गृहस्थी ल जाने-समझे के उमर म पहुँच जावत रिहिन, त फेर गौना या पठौनी के रूप म नवा दुल्हीन के फेर बिरादरी करे नेंग ल पूरा करे जावत रिहिसे.
    अब ए गवन या पठौनी के जुन्ना परंपरा कमतीच देखे म आथे, फेर एकर एक बदले हुए रूप ह चारों मुड़ा दिख जाथे. अब नवा बहुरिया ह बिहाव होय के तुरते च बाद भले अपन ससुरार म रहि जाथे, तभो बिहाव होय के बाद के पहला होली परब ल अपन मइकेच म मनाथे. इही परंपरा ह गवन या पठौनी के बदले रूप आय.
    फागुन पुन्नी ले लेके चैत अंजोरी के एकम तिथि तक के बीच के जेन पंदरही होथे इही ह गवन या पठौनी के असली बेरा होथे. हमर संस्कृति म फागुन महीना ह बछर के आखिरी महीना होथे, अउ चैत अंजोरी एकम ले नवा बछर चालू होथे, जे ह माता के उपासना के घलो बेरा होथे. एकरे सेती नवा बहुरिया ल नवरात्र के इही शुभ बेरा म अपन घर लनई ल घलो शुभ माने जाथे.
    हमर इहाँ के लोकगीत मन म ए गवन या पठौनी परंपरा ले जुड़े गजब सुग्घर सुग्घर गीत सुने ले मिलय-

ये दे लाल लुगरा ओ पिंयर धोती गवन के लाल लुगरा..

कहंवा ले आथे तोर लाली-लाली लुगरा,
कहंवा ले आथे पिंयर धोती गवन के लाल लुगरा...

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    एक गीत बहुतेच लोकप्रिय होए रिहिसे-
जरगे मंझनिया के घाम रे आमा तरी डोला ल उतार दे..

पहिली गवन बर देवर मोर आए हो..
देवर के संग नहीं जाॅंव रे, आमा तरी डोला ल उतार दे..
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    एक गीत म नवा दुल्हनिया ह अपन डोकरी दाई ल काहत हे- मोर उमर तो अभी केंवची बानी के हे, तेकर सेती ए बछर भर अउ गवन झन देबे-

एसो गवन झन देबे ओ बूढ़ी दाई, मैं बांस-भिरहा कस डोलत हौं ओ...

    ए विषय म एक गीत महूं लिखे के उदिम करत रेहेंव-

महर-महर महके अमराई फागुन के संदेशा ले के
बारी म कुहके कारी कोइली सजन के संदेशा ले के...

कतका बसंत बीत गे हे जोहीं
देखत तोर रस्ता हो जाथंव बही
अब सगुन संग भेज दे पाती, गवन के संदेशा ले के...
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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