सुरता के संसार :यादों की गठरी में छत्तीसगढ़ी रत्नों का अनमोल खज़ाना
(आलेख - स्वराज करुण )
साहित्य में संस्मरण लेखन एक रोचक विधा है ,जिसमें लेखक अपने अनुभवों के माध्यम से माध्यम से पाठकों को ज्ञान और विचारों का अनमोल खज़ाना सौंपने की कोशिश करते हैं।हर इंसान के जीवन यात्रा में उतार चढ़ाव के साथ कई तरह के पड़ाव आते -जाते हैं ,जिनमें अच्छे लोगों से मुलाकात और अच्छी संस्थाओं से जुड़े कई यादगार प्रसंग भी होते हैं। संस्मरण लेखन एक ऐसी विधा है ,जिसमें लेखक अपनी स्मृतियों के साथ अपने विचार भी पाठकों से साझा करते हुए आगे बढ़ता है। यात्रा वृत्तांत भी यादों का एक दिलचस्प दस्तावेज होता है। छत्तीसगढ़ी साहित्य में संस्मरण लेखन की विधा को आगे बढ़ाने वाले गिने-चुने रचनाकारों में सुशील भोले भी शामिल हैं ।
भोले जी छत्तीसगढ़ी कविता ,कहानी और निबंध विधाओं के भी जाने -माने रचनाकार हैं। वे छत्तीसगढ़ी साहित्य के लिए समर्पित हस्ताक्षर हैं। उन्होंने हिन्दी में भी खूब लिखा है। अस्वस्थ होने के बावज़ूद उनका लेखन निरन्तर जारी है। अपने लिखे हुए को वे इन दिनों सोशल मीडिया में साझा कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा में उनके संस्मरणो का संकलन 'सुरता के संसार' (यानी यादों का संसार) हाल ही में प्रकाशित हुआ है।इसमें उनके 39 संस्मरणात्मक आलेख शामिल हैं। उनकी यादों की इस गठरी में साहित्य ,कला और संस्कृति से जुड़े एक से बढ़कर एक रत्नों के व्यक्तित्व और कृतित्व का अनमोल खज़ाना है। मैं ग्राम खम्हरिया नगरी -सिहावा ,जिला -धमतरी की साहित्यकार श्रीमती अमिता दुबे के साथ कल सुशील भोले से मिलने और उनकी सेहत का हालचाल लेने टिकरापारा रायपुर स्थित उनके निवास गया था।उन्होंने बड़े स्नेह से दोनों को अपनी इस पुस्तक की सौजन्य प्रतियाँ भेंट की। घर आकर मैं भोले के 'सुरता के संसार 'में विचरण करने लगा। पुस्तक पढ़ने लगा तो बस ,उनकी प्रवाहपूर्ण छत्तीसगढ़ी भाषा के सागर में तैरता ही चला गया।
पुस्तक में पहला आलेख छत्तीसगढ़ में स्वर्णिम विहान का स्वप्न देखने और दिखाने वाले कवि और लेखक डॉ. नरेन्द्र देव्वर्मा को समर्पित है। इस आलेख का शीर्षक है --'छत्तीसगढ़ म सोनहा बिहान के सपना देखइया डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा । उल्लेखनीय है कि डॉ. वर्मा एक बड़े भाषा विज्ञानी भी थे। वे छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच 'सोनहा विहान ' के भी कुशल उदघोषक हुआ करते थे।उन्हें वर्ष 1973 में 'छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास' विषय पर अपने शोध प्रबंध के लिए पण्डित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से पी-एच.डी. की उपाधि मिली थी । इसके पहले उन्होंने 'प्रयोगवादी काव्य और साहित्य चिन्तन'विषय पर वर्ष 1966 में सागर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट किया था। डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के लोकप्रिय छत्तीसगढ़ी गीत 'अरपा पैरी के धार -महानदी हे अपार' को छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य गीत का दर्जा दिया है। यह छत्तीसगढ़ महतारी की वंदना का गीत है।सुशील भोले ने अपनी किताब 'सुरता के संसार' में डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के साहित्यिक ,सांस्कृतिक और पारिवारिक जीवन के प्रेरक प्रसंगों को अपने आलेख में सहेजा है। संग्रह में उनका दूसरा आलेख प्रथम छत्तीसगढ़ी व्याकरण के रचयिता और धमतरी के अध्यापक काव्योपाध्याय हीरालाल चन्द्रनाहू के बारे में है। वे 'पण्डित हीरालाल काव्योपाध्याय' के नाम से भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने वर्ष 1885 में छत्तीसगढ़ी भाषा का पहला व्याकरण लिखा था ,जिसे सर जार्ज ग्रियर्सन ने छत्तीसगढ़ी और अंग्रेजी के साथ वर्ष 1890 में प्रकाशित किया था सुशील भोले ने पण्डित हीरालाल काव्योपाध्याय पर केन्द्रित अपना आलेख मानक रेखाचित्र के रूप में प्रस्तुत किया है।
भोले की कृति 'सुरता के संसार ' में छत्तीसगढ़ के महान आध्यात्मिक चिन्तक स्वामी आत्मानंद पर केन्द्रित आलेख में जानकारी दी है कि स्वामीजी छत्तीसगढ़ी लेखन को अध्यात्म से जोड़ने पर विशेष बल दिया करते थे। स्वामी जी ने भारत के महान समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद और उनके आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का आजीवन अथक प्रयास किया। रायपुर में उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन -विवेकानंद आश्रम और बस्तर अंचल के जिला मुख्यालय नारायणपुर में स्वामी विवेकानंद जी के नाम से संचालित शैक्षणिक संस्थाएं और कई सेवा प्रकल्पों से स्वामी आत्मानंद जी की भी यादेंजुड़ी हुई हैं जो सदैव जुड़ी रहेंगी। पुस्तक में चौथा संस्मरण छत्तीसगढ़ में शब्दभेदी बाण चलाने वाले कोदूराम वर्मा के बारे में है। वहीं भोले के कुछअन्य संस्मरणों के शीर्षक देखिए - पंडवानी के पुरोधा नारायण प्रसाद वर्मा ,छत्तीसगढ़ी साँचा म पगे साहित्यकार टिकेन्द्र नाथ टिकरिहा, सुराजी वीर अनंत राम बर्छिहा । इन शीर्षकों से ही स्पष्ट हो जाता है कि संस्मरण किन महान विभूतियों पर केन्द्रित है।
सुशील भोले ने वर्ष 1987 में छत्तीसगढ़ी भाषा में मासिक साहित्यिक पत्रिका 'मयारू माटी'का भी सम्पादन और प्रकाशन शुरू किया था।इसके विमोचन समारोह के संस्मरण को उन्होंने 'प्रकाशन मयारू माटी के ' शीर्षक आलेख में साझा किया है। विमोचन 9 दिसम्बर 1987 को रायपुर के कुर्मी छात्रावास में हुआ था। हालांकि कुछ कठिनाइयों के कारण उन्हें 13 अंकों के बाद इसका प्रकाशन स्थगित करना पड़ा ,लेकिन छत्तीसगढ़ी साहित्य ,कला और संस्कृति के प्रचार प्रसार और विकास में 'मयारू माटी ' का योगदान आज भी याद किया जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन में यहाँ की विभूतियों के योगदान को सुशील भोले ने अपने आलेख 'राज आंदोलन म आहुति 'शीर्षक आलेख में याद किया है। अपने गृहग्राम से जुड़ी यादों को उन्होंने 'मोर गाँव नगरगाँव'के नाम से बड़ी भावुकता के साथ प्रस्तुत किया है।।
सुशील भोले पहले सुशील वर्मा के नाम से जाने जाते थे। उनकी जीवन यात्रा में एक ऐसा भी पड़ाव आया,जब वे आध्यात्म की दिशा में मुड़ गए और भगवान शिव के भक्त बनकर उन्होंने 21 वर्षो तक साधना की। इसके बाद वे साहित्य के क्षेत्र में 'सुशील भोले 'के नाम से सक्रिय हुए। अपने इस संस्मरण को उन्होंने 'अध्यात्म के रद्दा'(आध्यात्म का रास्ता)शीर्षक आलेख में शामिल किया है।
छत्तीसगढ़ तालाबों का प्रदेश रहा है।भोले ने अपनी यादों की गठरी में इसे 'छै आगर छै कोरी तरिया'शीर्षक से लिखा है। उनके कुछ आलेख छत्तीसगढ़ी नाचा और कला संस्कृति के पुरातन स्वरूप की भी याद दिलाते हैं।जैसे - रतिहा के वो अलकर नाचा,इसमें वह अपने बचपन और किशोरावस्था के दिनों में अपने पैतृक गाँव 'नगर गाँव'में हुए 'किसबिन नाच' को याद करते हैं। उन्होंने सिमगा के पास हरिनभट्टा गाँव मे एक बार हुए कवि सम्मेलन का दिलचस्प वर्णन 'सुरता वो कवि नाचा'के शीर्षक आलेख में किया है । शादी ब्याह के मौसम में जब देश के अन्य ग्राम्यांचलों की तरह छत्तीसगढ़ के गाँवों में भी बारातें बैल गाड़ियों से आती -जाती थीं ,उन बारातों से जुड़ी मधुर स्मृतियों को सुशील भोले ने 'बइला गाड़ी के बरात'में संजोया है। छात्र जीवन में फिल्में देखने की चाहत हर किसी को होती है। लेखक सुशील भोले को भी होती थी।उनका आलेख 'छात्र जीवन के मेटनी शो' में उनकी यह दिलचस्पी प्रकट होती है। अपने एक आलेख में वह किन्नर के कठिन जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनकी प्रतिभाओं को समाज में सम्मान दिलाने की मांग करते हैं।
उन्होंने अपने आलेखों में छत्तीसगढ़ी साहित्यकार डॉ. बलदेव ,डॉ. दशरथ लाल निषाद 'विद्रोही',सन्त कवि पवन दीवान,डॉ. परदेशी राम वर्मा,डॉ. सीताराम साहू ,संगीत शिल्पी खुमान साव ,छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्न दृष्टा डॉ. खूबचन्द बघेल , छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य नाचा के पुरोधा मदन निषाद और गेड़ी नृत्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का सपना देखने वाले सुभाष बेलचंदन की रचनात्मक प्रतिभा को भी रेखांकित किया है। सुशील ने अपनी प्राथमिक शाला की पढ़ाई और नदी -पहाड़ , घाम -छाँव ,रेस -टीप ,पिट्ठूल, बाँटी ,भौंरा ,डंडा -पचरंगा , गिल्ली डंडा ,केंऊ -मेऊँ जैसे बचपन के परम्परा गत खेलों से जुड़ी मधुर यादों को भी लिपिबद्ध करते हुए सुरूचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है।
उनका एक आलेख 'ममा गाँव के सुरता'को पढ़कर हर पाठक को अपने मामा के गाँव की याद अनायास आने लगेगी। सुशील ने 'जिनगी के संगवारी' शीर्षक आलेख अपनी जीवन संगिनी बसंती देवी को समर्पित किया है।वहीं अपने एक अन्य आलेख में वह साहित्यकारों के साथ गिरौदपुरी धाम की एक यात्रा को भी याद करते हैं ,जो अठारहवीं सदी के छत्तीसगढ़ के महान समाज सुधारक तपस्वी और सतनाम पंथ के प्रवर्तक गुरु घासीदास जी की जन्म स्थली और कर्मभूमि है।
पुस्तक के सभी आलेख सहज ,सरल और प्रवाहपूर्ण छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखे गए हैं । सुशील भोले की छत्तीसगढ़ी भाषा शैली में सरलता के साथ -साथ तरलता और लेखकीय तल्लीनता भी है। वैसे भी वे एक सिद्धहस्त लेखक ,सवेदनशील कवि और कहानीकार हैं। उन्हें छत्तीसगढ़ी के साथ -साथ हिन्दी लेखन में भी महारत हासिल है।साहित्य के साथ -साथ पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे हैं। उनकी नवीनतम कृति 'सुरता के संसार ' हमें छत्तीसगढ़ की सामाजिक ,साहित्यिक और सांस्कृतिक दुनिया के रंग -बिरंगे संसार में ले चलती है। लेखन और प्रकाशन के लिए सुशील भोले को हार्दिक बधाई और उनके उत्तम स्वास्थ्य के लिए अनेकानेक आत्मीय शुभकामनाएँ।
- स्वराज करुण
Tuesday, 7 February 2023
सुरता के संसार.. स्वराज करुण के समीक्षा
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