Sunday, 28 January 2024

कोंदा भैरा के गोठ-14

कोंदा भैरा के गोठ-14

-आजकाल के लइका मन ठकठक ले अकेल्ला जाथें अउ अपन सुवारी ल बिदा करा के लान लेथें जी भैरा.
   -भइगे काला कहिबे जी कोंदा.. हमर पाहरो म तो बरात जाए ले जादा लेठवा जाए म निक जनावय.
   -सिरतोन कहे संगी.. बरात म तो चारेच घंटा के आनंद फेर लेठवा जवई तो चार-छै दिन के मजा राहय. जतका उंकर लाग-मानी ततका घर एकक दिन नेवता परय. होली परब ल देखत राहन.. काबर ते एकरे बाद पठौनी के नेंग होवय.
   -हव ना.. नवा बहुरिया ल नवरात बर लवई ल शुभ माने जावय.. अब तो जादा उमर म बिहाव होथे तेकर सेती बहुरिया ह तुरतेच ससुरार म रेहे लगथे.
    -हव जी.. पहिली लइकई उमर म बिहाव होवय, तेकर सेती सज्ञान होय के पाछू फेर गौना या कहिन पठौनी होवय. अब तो ए गवन के नेंग ल होली बखत कर दिए जाथे. नवा बहुरिया ह पहला होली ल अपन मइके म मानथे तेकर रूप म. 
   -हाँ.. नेंग तो हो जाथे, फेर लेठवा कहाँ कोनो ल लेगथे.
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-सबो गाँव म अपन देवता-धामी मन के मान-गौन के परंपरा ल अलगेच देखे बर मिलथे जी भैरा.
   -हाँ ए बात तो हे जी कोंदा.. अब देखना अभी बुलकिस हे तेने बिरस्पत के ए हमर रइपुर-भांठागांव म ठाकुर देव के पूजा करिन हें.. उहाँ के सियान मन बताइन के अइसन हर पॉंच बछर म करथें, अउ दिन म करथें.
   -ठाकुर देव के पूजा तो हमन रोजेच करथन संगी.
   -हव गा.. उहू मन रोजेच करथें, फेर जमीन भीतर जेन कोनो मरकी-करसी म भर के गड़ियाए रहिथें, तेन ल हेर के पॉंच बछर म एक पइत करथें.. ओकर ठउर म भुइयॉं के ऊपर ले तो रोजेच करथें.
   -अच्छा... अइसे हे.. हमर गाँव म तो जे दिन गाँव बनाथें तेन दिन भुइयॉं ले हेर के पूजा करथें.. हर बछर.. रतिहा बेरा.
   -हाँ ए तो हे.. फेर कतकों गाँव म तो भुइयॉं के ऊपरेच म आसन दिए रहिथें ठाकुर देव ल जी.
   -सबके अपन-अपन मान्यता अउ परंपरा हे संगी.
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-आज भगवान राम ह अयोध्या म पॉंच सौ बछर के पाछू बालरूप म बिराजत हे जी भैरा.. एकरे सेती ए पबरित बेरा म इहाँ के उंकर ममियारो 'चंदखुरी' के गजब सुरता आवत हे, के एकर नॉव 'चंदखुरी' कइसे धराइस होही? 
   -ठउका बात ल जाने के विचार उठत हे तोर मन म जी कोंदा.. कतकों गुनिक मन के कहना हे के चंदखुरी नॉव ह भगवान राम के बालपन म इहाँ के धुर्रा-माटी म खेले के सेती ही धराए हे.
   -कइसे भला? 
   अरे भई.. जब लइकई म माता कौशल्या संग भगवान तीजा-पोरा माने बर इहाँ आवय, त बिहनिया ले लेके संझौती गरुवा धरसत बेरा ले उंकर मन के खुर म उड़त धुर्रा-माटी म खेलत राहय.
   -अच्छा..! 
   -हव.. रामचंद्र के चंद्र अउ गरुवा के खुर ले उड़ियावत धुर्रा जेला खुरी कहे जाथे.. ए दूनों ले मिल के होगे- चंद्रुखुरी... इही चंद्रखुरी ह लोकरूप धरत 'चंदखुरी' होगे.
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-ए ह कतका बड़ संजोग आय जी भैरा के काली जे दिन भगवान राम के अयोध्या म प्राणप्रतिष्ठा होइस, ठउका उहिच दिन हमर इहाँ के रामनामी समाज के मन के मेला घलो रिहिसे, जे ह बछर भर म एकेच दिन भराथे.
    -इही ल तो भगवान के सच्चा भक्ति अउ वोला स्वीकार करना कहिथें जी कोंदा. जे मनला कभू मंदिर म खुसरे बर तक मना कर दिए रिहिन हें, आज भगवान उनला सउंहे स्वीकार कर लिस.
   -हव भई.. जॉंजगीर-चांपा के एक नान्हे गाँव चारपारा के परशुराम ल दलित होए के सेती मंदिर म जावन नइ दे गे रिहिसे, तेकर सेती ए ह बछर 1890 के आसपास रामनामी समाज के स्थापना करे रिहिसे, ए कहिके के भगवान तो सबो जगा हे वोला पाए बर कोनो मंदिर जाए के जरूरत हे ना उहाँ पूजा करे के. अउ मंदिर म नइ जावन दे के विरोध स्वरूप अपन पूरा देंह म ही राम राम गोदवा डरिस. आज ए ह एक पूरा संप्रदाय के रूप धर ले हे, एकर अनुयायी मन अपन शरीर के संगे-संग घर के कोठ मन म घलो राम राम लिखवाए रहिथें. हर बछर भजन मेला के आयोजन करथें, जेमा नवा दीक्षा लेवइया मनला दीक्षा घलो देथें.
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-छेरछेरा पुन्नी के जोहार जी भैरा.
   -जोहार संगी कोंदा.. हमर पुरखा मन कतेक सुंदर परब अउ ओकर ले जुड़े परंपरा बनाए हवय ना.
   -हव जी अब ए छेरछेरा ल ही देख ले छोटे बड़े सबके भेद ल भुलावत समरसता के कतेक सुघ्घर संदेश देथे.
   -हव जी.. सबो झन एक-दूसर घर छेरछेरा मॉंगे बर जाथें अउ देथें घलो.. अउ एकर माध्यम ले कतकों लोककल्याण के बुता घलो हो जाथे.
   -हव सिरतोन आय.. हमर गाँव के मिडिल स्कूल के भवन ल छेरछेरा मॉंग के ही बनवाए रेहेन, फेर हर बछर छेरछेरा म सकेले पइसा ले ही स्कूल म खेलकूद के सामान घलो लेवन.
   -कतकों गाँव म रामकोठी घलो तो छेरछेरा के सेती ही लबालब भरे रहिथे.
   -कुहकी पारत अउ डंडा नाचत छेरछेरा मॉंगे बर जावन त कतेक निक लागय ना.
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-हमर इहाँ एक परंपरा हे जी भैरा के जब काकरो घर कोनो लइका के जनम होथे त किन्नर मनला वो लइका के नजर उतारे अउ बलैया ले बर विशेष रूप ले बलाए जाथे.
    -हाँ ए बात तो हे जी कोंदा.. एला बहुते शुभ माने जाथे, तेकरे सेती किन्नर मनला अइसन बेरा म बढ़िया दान-दक्षिणा देके बिदा करे जाथे.
   सही आय संगी.. अइसने अभी 22 जनवरी के जब अयोध्या म भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा होइस हे ना.. त ओकर सबले पहिली नजर उतार के बलैया लिस हमर रायपुर शहर के किन्नर सौम्या ह. 
   -अच्छा.. हमर रायपुर के सौम्या ह..! 
  -हव जी सौम्या ल एकर खातिर विशेष रूप ले नेवता भेज के बलवाए गे रिहिसे. प्राण प्रतिष्ठा म 5 हजार साधु संत अउ साध्वी मन सकलाय रिहिन हें, जेमा सौम्या घलो शामिल रिहिसे. सौम्या ह प्राण प्रतिष्ठा के बाद सबले पहिली अपन नृत्य के प्रस्तुति दिस, तहाँ ले फेर भगवान के नजर उतार के बलैया लिस. एकर खातिर हमर रायपुर के सौम्या ल इतिहास म सुरता करे जाही, के वो ह पहला किन्नर रिहिस जे ह भगवान के नजर उतार के बलैया लिस.
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-हमर इहाँ जब कोनो देवी-देवता के पूजा उपासना के बाद घलो जब गांव म या हमर जिनगी म आय विपदा दूरिहा नइ जाय, त वो देवता ल माई भंगाराम के अदालत म शिकायत कर के सजा दे जाथे जी भैरा.
   -अच्छा.. अइसनो होथे जी कोंदा..! 
   -हव.. केशकाल घाटी के ऊपर जेन भंगाराम माई के मंदिर हे ना उहाँ हर बछर भादो महीना के अंधियारी पाख म शनिच्चर के दिन भादो जातरा के आयोजन करे जाथे, वोमा दोष सिद्ध होय म सजा दे जाथे, जेमा दोष के छोटे बड़े के आधार म निलंबन, मान्यता समाप्ति या सजा-ए-मौत तक के सजा सुनाए जाथे.
   -वाह भई..! 
   -देवी देवता के पक्ष रखे के घलो मौका मिलथे, जेमा उंकर प्रतिनिधि के रूप म पुजारी, गायता, सिरहा, मांझी या मुखिया उपस्थित रहिथे.
   -ए परंपरा ह तो सुनेच म अद्भुत जनावत हे जी..! 
   -हाँ.. भंगाराम माई जगा जाए के पहिली सेवा समिति के सदस्य मनला देवी देवता के प्रतीक ल थाना लेगना परथे. उहाँ थाना म तैनात जवान मन देवी देवता के पूजा करथें, फेर पुलिस के सुरक्षा म देवी देवता मनला भंगाराम माई मंदिर तक लेगे जाथे.
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-अभी एक आध्यात्मिक कथावाचक के पंडाल म इहाँ के एक नामी हास्य कवि ल छत्तीसगढ़ी लोककला के प्रदर्शन करे बर केहे गिस त जानत हस जी भैरा वो का सुनाइस तेला? 
   -अरे आध्यात्मिक पंडाल आय त कोनो ज्ञान-दर्शन ऊपर आधारित लोककला के बात बताइस होही जी कोंदा.
   -नहीं संगी.. वो सुनाइस- सबके लउठी रिंगी-चिंगी, मोर लउठी कुसवा रे.. अउ झींक-पुदक के डौकी लानेंव तेनो ल लेगे मुसवा रे.. 
   -अरे ददा रे.. आध्यात्मिक पंडाल म अइसन उजबक गोठ गा...! 
   -हव भई.. मोला समझ नइ आइस, के वो तथाकथित महान हास्य कवि ह छत्तीसगढ़ के लोककला के प्रदर्शन करिस या अपन फूहड़ सोच के ते?
   -ए तो फूहड़ सोच के ही प्रदर्शन आय संगी.. राउत नाचा के दोहा ही सुनाना रिहिसे, त एक ले बढ़ के एक ज्ञान अउ दर्शन के दोहा हे तेला सुनाना रिहिसे, फेर ए हास्य वाले मन न तो कोनो स्थान के महत्व ल समझय अउ ना  मंच के ही गरिमा ल.
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-हमर पुरखा मन दान के अबड़ महात्तम बतावय जी भैरा.
   -हव सही आय जी कोंदा.. दान के अबड़ महात्तम हावयच.. अन्नदान, जलदान जइसन कतकों दान फेर ए  सबले बढ़ के गुप्त दान ल काहंय, जब कोनो विशेष अवसर म दिए जावय.
   -हव जी, फेर अब तो लोगन दान ल प्रदर्शन के जिनिस बनावत जावत हें.
   -सही आय जी.. अब तो पेपर म समाचार अउ विज्ञापन तक छपवाथें, के फलाना ल अतका दान करे हवन कहिके.
   -बहुत अकन संस्था वाले मन तो इहिच उदिम करथें. आठ-दस झन संघरा जाथें, अउ एक ठन आमा ल एकाद झन रोनहुत लइका ल धरावत फोटो खिंचवा लेथें.
   -कभू कभू तो अइसनो देखे ले मिलथे, के जतका के दान नइ दे राहंय, तेकर ले जादा पइसा देके वोकर विज्ञापन करथें. तोला का जनाथे संगी.. अइसन दान के कोनो महत्व हे.. का अइसन किसम के दान ल परमार्थ या पुण्य के भागी होय के श्रेणी म रखे जाही?
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