Saturday, 20 January 2024

बोइर के झुंझकुर म मिलिस नवा माचिस

वो चैत नवरात के सुरता//
जब बोइर के झुंझकुर म मिलिस नवा माचिस 
    भगवान राम के ममियारो चंदखुरी के माता कौशल्या धाम तब अतका सुघ्घर रूप नइ धरे पाए रिहिसे. मोर साधना काल के चैत नवरात के बेरा आय. 
   बछर 1995 के चैत नवरात. वो बखत मैं साधना के अंतर्गत हफ्ता म एकाद दू दिन गाँव अड़सेना म शीत कुमार साहू जी के इहाँ कभू-कभार रुक के कुछू कुछू आवश्यक जप-तप कर लेवत रेहेंव. 
    एक दिन शीत कुमार कहिथे- चलव गुरुदेव चंदखुरी म कौशल्या माता के दरस कर आथन. मोर शुरू ले आदत रिहिसे- जइसे मैं सावन सोमवार के शिवजी के मंदिर दरस करे बर चल देवत रेहेंव, ठउका वइसनेच नवरात म कोनो न कोनो माता के ठउर म घलो पहुँची जावत रेहेंव. 
   शीत कुमार के बात मोला जंचीस. हव एदे लकठा के तो बात आय. सइकिल म जाबो तभो घंटा भर म अड़सेना ले चंदखुरी पहुँच जाबो. 
    हमन दू-चार मनखे सइकिल के सवारी करत चंदखुरी पहुँच गेन. वो बखत चंदखुरी के कौशल्या धाम ह अतका विकसित नइ होए रिहिसे. तब तरिया के पानी ल नहाक के मंदिर जाना परय. गाँव वाले मन नवरात के बेरा म मंदिर ले तरिया के पार तक बॉंस अउ बल्ली मन ल बॉंध के चैली के रस्ता बना दे राहय. उही रच-रच बाजत चैली म रेंगत हमन कौशल्या मंदिर गेन. 
   कौशल्या मंदिर के दरसन के ए ह मोर पहला मौका रिहिसे. चंदखुरी ले मोर गाँव जादा दुरिहा नइए, फेर शायद माता जी के दरसन के भाग पहिली नइ जोंगाय रिहिसे.
    तब पूरा मंदिर परिसर अद्दर असन दिखत राहय. गर्भगृह म माता जी के नवरात वाले जोत जलत राहय. गाँव के बइगा अउ सेउक मन उंकर सेवा म लगे राहंय. हमन जब उहाँ पहुँचेन त मंझनिया होगे राहय, तेकर सेती दर्शक के रूप म एके-दुए लोगन वो मेर रहिन. मंदिर के बाहिर म एक खप्पर माढ़े राहय, तेकरे आगी म सिपचा-सिपचा के सब हूम-धूप अउ अगरबत्ती बारत राहंय. फेर मोर गुरु ह मोला अगरबत्ती आदि बारे बर आरुग आगी के उपयोग करे के सीख दिए रिहिसे, तेकर सेती मैं वो खप्पर के आगी म अगरबत्ती नइ बारेंव.
   उहाँ जतका लोगन रिहिन सबो जगा माचिस आदि मॉंगेंव, तेमा आरुग आगी म अगरबत्ती सिपचा सकंव, फेर वो बखत ककरोच जगा माचिस नइ रिहिस.
   मैं अबड़ जुवर ले उही जगा खड़े खड़े माता कौशल्या ल सुमिरत खड़ेच रेहेंव. फेर मन म का होइस ते मंदिर के परिक्रमा करे लगेंव. वो बखत मंदिर परिसर एकदम अद्दर राहय. चारों मुड़ा कांटा-खुंटी जामे अउ बगरे राहय. उखरा पॉंव रेंगे म घलो अलहन बानी के जनावय. तभो ले मैं गुनेंव- जादा नहीं ते कम से कम एक भॉंवर तो किंजरबेच करहूं.
   हिम्मत कर के माता कौशल्या ल सुमिरत, के हे दाई तोर दरबार म मैं आज पहिली बेर आए हौं, अउ तोर ठउर म बिन अगरबत्ती जलाए चल देहूं तइसे जनाथे. परिक्रमा करत मंदिर के पाछू मुड़ा पहुंचेंव, त एक झुंझकुर बोइर के पेड़ म ओधे एक पखरा देखेंव. वो पखरा म जटायु के चित्र बने रिहिसे. आज इही स्थान ल जटायु मोक्ष स्थल के रूप म बताए जाथे. अब तो ए जगा के बोइर पेड़ अउ सब कटही झाड़ी मन कटा के चिक्कन चॉंदन ठउर बनगे हे.
   मोला उही झुंझकुर बोइर पेड़ के एक डारा म एकदम नवा माचिस टंगाय दिखिस. पहिली तो बड़ा ताज्जुब लागिस के अइसन अलकर जगा म कोन नवा माचिस ल मढ़ाय होही कहिके. मैं एती-ओती चारों मुड़ा ल देखेंव शायद ककरो होही त पूछ के अगरबत्ती जलाए बर मॉंग लेहूं कहिके. फेर वो जगा तो कोनोच नइ दिखिन.
   फेर का गुनेंव ते वो माचिस ल धर के मंदिर जगा आएंव अउ भीतरी म जाके अगरबत्ती जला के माता कौशल्या के जोहार पैलगी करेंव अउ संग व ओला धन्यवाद घलो देंव के दाई तैं मोला अगरबत्ती जलाए के ठउका अवसर दिए तेकर बर जोहार हे.
   बाद म जब अगरबत्ती जला के मैं मंदिर भीतर ले निखलेंव, त शीत कुमार ह पूछीस- काकर जगा माचिस भीड़ा डारे गुरुदेव? त वोला सबो किस्सा ल बताएंव, अउ फेर माचिस ल वापिस उही बोइर पेड़ के झुंझकुर म मढ़ाए के बात कहेंव, त शीत कुमार कहिथे- ए ह कोनो दूसर के नोहय गुरुदेव.. ए ह तोरेच आय. माता जी ह तोला अपन पूजा करे बर दिए हे, तभे तो जिहां कोनो मनखे नइ जा सकय, तिहां तोला एकदम नवा माचिस बिन सील टूटे वाला मिले हे, उहू म बोइर पेड़ के झुंझकुर म. अइसे काहत वो ह वो माचिस ल अपन पेंठ के खीसा म धर लिस अउ घर आए के बाद पूजा ठउर म चिनहा के रूप म मढ़ा दिस. शायद आज तक वो माचिस ह वोकर पूजा ठउर म माढ़े होही.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा.9826992811

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