बछर भर के 'कोंदा-भैरा.. '
सोशलमीडिया म धारावाहिक के रूप म लिखे के उदिम करे 'कोंदा-भैरा के गोठ' ल आज 26 फरवरी'24 के एक बछर पुरगे.
एक राजनीतिक मनखे के महतारी भाखा खातिर दिखे दूमुंहा चरित्तर के सेती आक्रोश के रूप म 26 फरवरी'23 ले चालू होय 'कोंदा-भैरा के गोठ' ल शुरू-शुरू म व्यंग्य के शैली म लिखे के उदिम करे गिस, फेर धीरे-धीरे अइसनो विषय मनला एमा संघारे के मन होइस, जे मन म विशुद्ध गंभीरता अउ चिंतन-मनन जरूरी रिहिसे, तेकर सेती ए धारावाहिक के लेखन शैली अउ विषय म विविधता आवत गिस.
शुरू-शुरू म जब ए धारावाहिक ल लिखे लगेन त लोगन के गजब प्रतिक्रिया आवय, कतकों झन फोन अउ मेसेज कर के घलो प्रोत्साहित करंय, फेर धीरे-धीरे एमा कमी आवत गिस, जेन स्वाभाविक घलो हे. वइसे एक-दू लोगन कोंदा-भैरा के ही शैली म लिखे के प्रयास घलो करीन, भले उन वोला सरलग नइ चला पाईन. कतकों लोगन ए धारावाहिक के कतकोन कड़ी ल अपन टाईम लाईन के संगे-संग अउ आने समूह मन म शेयर कर देथें, ठउका अइसनेच कतकों झन तो कोंदा अउ भैरा शब्द के प्रयोग ल अपन रचना मन म उपयोग करत रहिथें. ए सबो ह ए धारावाहिक के सफलता के चिन्हारी तो आएच मोर बर प्रोत्साहन के उदिम घलो आय.
बछर 2023 के 4 सितंबर ले रायगढ़ ले दैनिक के रूप म छपत अखबार 'सुघ्घर छत्तीसगढ़' के पहला पेज के पहला कॉलम म एला सबले ऊपर म सरलग ठउर दिए जावत हे, इहू ह मोर बर प्रोत्साहन के बड़का कारण आय, एकर खातिर मैं सुघ्घर छत्तीसगढ़ के संपादक यशवंत खेडुलकर जी अउ शमीम भाई के संग जम्मो सहयोगी मन ल जोहार करत हौं.
'सुघ्घर छत्तीसगढ़' असन ही कोरबा अउ रायपुर ले संघरा छपइया अखबार दैनिक 'लोकसदन' के 'झॉंपी' अंक म घलो 'कोंदा-भैरा के गोठ' के कोनो कोनो कड़ी ल कभू-कभू व्यंग्य के रूप म ठउर दे दिए जाथे. एकरो खातिर मैं 'झॉंपी' के सरेखा करइया सुखनंदन सिंह धुर्वे 'नंदन' जी के जोहार करत हौं.
चार-छै डांड़ मन म संवाद के रूप म लिखे जावत ए धारावाहिक ल कभू छत्तीसगढ़ी साहित्य के अंग माने जाही या नइ माने जाही, ए बात के तो मोला आकब नइए, फेर हाॅं.. छत्तीसगढ़ी ल विविध शैली अउ रूप म लिखे जाना चाही, ए बात के मैं समर्थक हौं. मोर मानना हे- हम सिरिफ कविता, कहानी जइसन पारंपरिक लेखन रूप तक ही सीमित रहिबोन त ए भाखा ल सर्वग्राह्य भाखा नइ बना पावन. मैं चाहथौं के छत्तीसगढ़ी के पाठक एक इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड एकाउंटेंट, कृषि वैज्ञानिक ले लेके सामाजिक, राजनीतिक अउ आध्यात्मिक सबोच वर्ग के लोगन बनंय, अउ अइसन तभे हो सकथे जब छत्तीसगढ़ी म कविता, कहानी ले इतर अउ जम्मोच विषय अउ विधा म लिखे जाय.
'कोंदा-भैरा' इही इतर लेखन रूप के एक प्रयोग आय, अउ मोला खुशी हे के एकर पाठक वर्ग म वो जम्मोच वर्ग के लोगन हें, जिनला म मैं ऊपर म उल्लेखित करे हावौं.
सोशलमीडिया म चार-छै डांड़ ल पढ़ के लोगन आगू बाढ़ जाथें, तेकरे सेती मोर ए उदिम रहिथे, के एकर हर कड़ी ह चारेच छै डांड़ म ही उरक जाय.
आप जम्मो गुणी अउ हितवा मन के पंदोली अउ प्रोत्साहन दे के सेती 'कोंदा-भैरा के गोठ' सरलग एक बछर पूरा कर पाईस, तेकर सेती मैं जम्मोच झन के जोहार करत हौं.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
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