हमर गंवई के खई-खजेना, रोटी-पीठा के अलग पहिचान
ठेठरी-खुरमी करय ठनाठन, अउ देहरउरी के गजब हे शान...
नवां चांउर के दूध-फरा ह, जब खदबद ले डबकथे
घर के ओनहा-कोनहा ह, तब महर-महर महकथे
जे चीख लेथे एक बखत, फेर जिनगी भर करथे गुनगान...
चीला-फरा अउ मुठिया ह, दमदम-दमदम करथे
अंडापान म सेंके अंगाकर, जस पेट म धमकथे
बरा-बिजौरी अउ बोबरा ह, तब घर के बढ़ाथे शान...
बरी महेरी अउ बटकर के, कभू-कभू चिखना मिलथे
झो-झो के अमसुरहा बोली, अउ खेंड़हा के पंगत चलथे
मुनगा घलोक छेवारी मन बर, आय दवई के खान....
(फोटो-गुगल से)
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
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