संगीत रत्न, संगीत मर्मज्ञ, दाऊ महासिंग चंद्राकर जैसे कई सम्मान से विभूषित ग्राम चीचा पाटन के संगीतज्ञ कृष्ण कुमार पाटिल छत्तीसगढ़ी भाषा में शास्त्रीय संगीत को ढालकर छत्तीसगढ़ी भाषा को राष्ट्रीय पहचान देने के लिए संकल्पबद्ध हैं।
28 सितंबर 1969 को जगतराम एवं खोरबाहरीन बाई पाटिल के पुत्र के रूप में ग्राम चीचा (पाटन) जिला-दुर्ग में जन्में कृष्ण कुमार पाटिल का मानना है कि जिस राज्य की भाषा और संगीत शास्त्र सम्मत होता है वह भाषा और संगीत समृद्धता की श्रेणी में आ जाता है। कृष्ण कुमार कहते हैं छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत में प्रचलित गांजा पीने, बीड़ी पीने के संदर्भ संस्कृति नहीं बल्कि अपसंस्कृति के परिचायक हैं। इस लिहाज से छत्तीसगढ़ भाषा की गरिमा के लिए इसे शास्त्रीय संगीत में रूपान्तरित किए जाने की जरुरत है। हिंदुस्तानी संगीत में जबकि कई प्रादेशिक बोलियों का समायोजन है छत्तीसगढ़ी को इससे वंचित नहीं रखना चाहिए। छत्तीसगढ़ी भाषा शास्त्रीय संगीत के लिए न सिर्फ अनुकूल है वरन इसमें माधुर्य भी है।
आकाशवाणी और दूरदर्शन के लोक संगीत एवं सुगम संगीत के कलाकार कृष्ण कुमार पाटिल ने बताया कि उनके पिता लोक संगीत के जानकार हैं। उन्होंने अपने पिता से हारमोनियम बजाना सीखा। संगीत सीखने की लालसा से वह संगीत विद्यालय जरुर गए लेकिन वहां की शिक्षण पद्धति उन्हें रास नहीं आई। गुरु शिष्य परंपरा में उन्होंने प्रारंभ में पं. जगन्नाथ भट्ट से ठुमरी तथा लहरा बजाना सीखा। संगीत में उन्हें पं. अभयनारायण मलिक (दिल्ली) का मार्गदर्शन भी मिला। पंडित प्रभाकर धाकड़े (नागपुर) से हारमोनियम की शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ उन्होंने ठाकुर रघुनाथ सिंह (भिलाई) से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। वर्तमान में उनकी संगीत साधना जारी है। वे प्रतिदिन छ: से सात घंटे तक रियाज करते हैं।
छत्तीसगढ़ी में लगभग 30 छोटा ख्याल और ठुमरी की रचना करने वाले भिलाई इस्पात संयंत्र में कार्यरत कृष्ण कुमार पाटिल कहते हैं शास्त्रीय राग में छत्तीसगढ़ी छोटा ख्याल और ठुमरी की रचना करके मैं चाहता हूं कि छत्तीसगढ़ी भाषा देश की दूसरी भाषाओं की तरह सर्वव्यापी हो जाए।
राग यमन, भीमपलासी, देस, गूर्जरी तोड़ी, जोगिया जैसे रागों में छोटा ख्याल की रचना करने वाले कृष्ण कुमार ने मिश्र खमाज जैसे राग में ठुमरी की रचना भी की है। रायगढ़ से छत्तीसगढ़ी शास्त्रीय प्रस्तुति की शुरूआत करने वाले कृष्ण कुमार बिलासा महोत्सव, संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम और राज्योत्सव में छत्तीसगढ़ी ख्याल की प्रस्तुति दे चुके हैं।
कृष्ण कुमार कहते हैं सरल और रंजक प्रस्तुति ही संगीत का मापदंड है और मैं इसी दिशा में प्रयास कर रहा हूं। शासन अगर छत्तीसगढ़ नाद संस्थान की स्थापना के लिए सहयोग करे तो मेरा सपना साकार हो सकता है।
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