छत्तीसगढ़ी काव्य के दशा दिशा
-जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'
साहित्य ला समाज के दर्पण केहे गेहे, काबर कि साहित्य हा वो समय के समाज के दशा अउ दिशा ला देखाथे। जब ले साहित्य सृजन होवत हे तब ले लेके आज तक के साहित्य ला देखबों ता वो समय ला, सृजित साहित्य खच्चित बयां करत दिखथे, चाहे बात आदिकाल के होय या फेर आधुनिक काल के। कवि जेन देखथे, सुनथे अउ सोचथे वोला अपन मनोभाव मा पिरोके समाज के बीच परोसथे। छत्तीसगढ़ के साहित्य घलो आन देश, राज के साहित्य कस समृद्ध अउ सशक्त हे। आदिकाल ले लेके अब तक के साहित्य के भार ला सूक्ष्म रूप ले शब्द के टेकनी बोह पाना सम्भव नइहे, काबर साहित्य के गठरी बनेच पोठ अउ रोंठ हे। आवन भाषाविद मनके करे साहित्यिक काल विभाजन के अनुसार छत्तीसगढ़ी साहित्य के दशा दिशा ला देखे के प्रयास करन।
(1) आदि काल/ वीरगाथा काल (1000 ई-1500 ई तक)-
ये समय मा गीत, कविता, कथा, कहानी के वाचिक परम्परा के जानकारी मिलथे। लिखित साहित्य अउ लेखक कवि मनके नाम ज्यादातर नइ मिले, अइसन जुन्ना साहित्य ला लिपि बद्ध बाद में करे गेहे। अहिमन रानी गाथा, केवला रानी गाथा, रेवा रानी गाथा, राजा वीर सिंह गाथा जइसन कतको काव्य मय कथा प्रचलित रहिस, जे ये बताथें कि, राजा मनके संगे संग वो समय रानी अउ दुदुषी नारी मनके घलो वर्चस्व रिहिस। वो समय चारण काव्य परम्परा घलो चरम मा रिहिस, कोनो राजा या रानी अपन गुणगान या फेर बल बुद्धि ला बढ़ाये बर अपन दरबार मा भाट कवि ला रखत रहिंन। खैरागढ़ राज के दरबारी कवि दलराम राव अपन संग दलवीर राव, माणिक राव, सुंदर राव, हरिनाथ राव, धनसिंह राव, कमलराव, बिसाहू राव आदि भाट कवि मनके वर्णन करे हे, वइसने चारण कवि मनके वर्णन रतनपुर राज के कलचुरि शासक मनके राज दरबार मा घलो सुने बर मिलथे। छत्तीसगढ़ राज के राजा मन घलो आन राज के राजा कस अपन दरबार मा चारण कवि रखें। धार्मिक, पौराणिक गाथा घलो ये काल में कहे सुने जावत रिहिस जेमा फुलबासन गाथा(सीता लखन कथा), द्रोपदी चरित आदि आदि संगे संग तन्त्र मंत्र सिद्धि के कथा(आदिवासी संस्कृति के परिचायक) घलो वो काल ला परिभाषित करथे। मूलतः ये काल के कथा राजा, रानी, विद्वान ,विदुषी व्यक्ति मनके जीवन संघर्ष अउ मिलन बिछोह ऊपर आधारित हें, पढ़त सुनत वो बेर के रीतिरिवाज, चाल चलन, सेवा सत्कार घलो देखे बर मिलथे।विविध गाथा के अधिकता के कारण ये युग ला गाथायुग घलो केहे जाथे।
(2) मध्य काल/भक्ति काल (1500ई- 1900 ई तक)- बाहरी आक्रमण कारी मनके अत्याचार ले छत्तीसगढ़ घलो अछूता नइ रिहिस, अइसन आफत के बेरा मा मनखे मन भक्ति भाव भजन ला अपन सहारा बनाइन। ये काल मा वीर काव्य अउ भक्तिमय काव्य के बहुलता रिहिस, संगे संग ज्ञानमार्गी अउ प्रेममार्गी काव्य/गाथा घलो देखे सुने बर मिलथे। आक्रमणकारी मन ले लोहा लेवत योद्धा मनके गुणगान बर रचे काव्य ला वीर काव्य कहे जाय। अइसने काव्य मा छत्तीसगढ़ के फुलकुंवर देवी गाथा, नगेसर कयना गाथा के रचना होय हे। कल्याण साय गाथा, गोपल्ला गीत, धोलामारू गाथा, सरवन गाथा, राजा कर्ण गाथा, शीत बसंत गाथा, मोरध्वज गाथा घलो ये काल मा कहे सुने जावत रिहिस, जे वो समय के वीर काव्य के साथ साथ पौराणिक अउ धार्मिक काव्य ले सुसज्जित रिहिस। प्रेममार्गी काव्य के उदाहरण स्वरूप लोरिक चन्दा, कामकन्दला गाथा,दसमत कयना,अउ ज्ञानमार्गी भक्ति काव्य मा कबीर दास के चेला धनी धरम दास जी के काव्य सामने आथे। भक्ति भाव जब आडम्बर के रूप मा स्थापित होय लगिस ता कबीरदास जी के साथ उंखर चेला धनी धरम दास जी छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधित्व करिन। छत्तीसगढ़ी भाषा के लिखित रूप मा धनी धरमदास जी के काव्य मिलथे। गुरु घासीदास के बानी, उपदेश घलो छत्तीसगढ़ी मा सुने बर मिलथे। संगे संग गोपाल मिश्र, पहलाद दुबे, लक्छ्मण कवि, माखन मिश्र मन घलो ये काल मा काव्य सृजन करिन। ये काल के रचना समयानुसार बदलत गिस, भक्ति भाव ले चालू होके ओखर आडम्बर रूप के विरोध तक देखे बर मिलथे, संगे संग प्रेम प्रसंग, वीर काव्य अउ धार्मिक पौरानिक गाथा घलो समाहित हे।
*धनी धरम दास जी के छत्तीसगढ़ी काव्य पंक्ति*-
*खेलत रहलों बाबा चौवरिया आइ गये अनहार हो*
*राँध परोसिन भेंटहूँ न पायों डोलिया फँदाये लिये जात हो ।*
डोलिया से उतरो उत्तर दिसि धनि नैहर लागल आग हो
सब्दै छावल साहेब नगरिया जहवाँ लिआये लिये जात हो ।
भादो नदिया अगम बहै सजनी सूझै वार न पार हो
अबकी बेर साहेब पार उतारो फिर न आइब संसार हो ।
डोलिया से उतरो साहेब घर सजनी बैठो घूंघट टार हो
कहैं कबीर सुनो धर्म दासा पाये पुरुष पुरान हो ।
*धनी धरमदास जी के भाषा कबीरदास के असन पंचमेल खिचड़ी लगथे, जेमा छत्तीसगढ़ी भाषा जे बहुलता दिखथे।*
*(3) आधुनिक काल(1900 ई- अब तक)*
ये काल मा साहित्य मा विविधता देखे बर मिलिस, संगे संग काव्य के आलावा गद्य घलो सामने आइस। आवन आधुनिक काल ला घलो विभाजन करके वो समय के साहित्य ला खोधियाय के प्रयास करथन।
*शैशव काल*
- 1900 के आसपास छत्तीसगढ़ी साहित्य के जनम माने जाथे, काबर की इही समय छत्तीसगढ़ी भाषा मा रचना करइया साहित्यकार मन जादा संख्या बल मा सामने आइन। धनी धरमदास जी के काव्यमय पंक्ति के वर्णन मिले के बाद घलो भाषाविद मन छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि के रूप मा अपन अलग अलग विचार प्रकट करथें। भक्ति कालीन कवि होय के कारण, धरम दास जी के पंक्ति देखत श्री हेमनाथ जी हा धनी धरम दास जी ला ही छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि मानथे। इती आचार्य नरेंद्र देव वर्मा जी मन सुन्दरलाल शर्मा जी ला प्रथम छत्तीसगढ़ी भाषा के कवि मानथे ता नन्दकिशोर तिवारी जी पं लोचनप्रसाद पांडेय जी ला, वइसने डॉ विनय पाठक जी नरसिंह दास जी ला छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि कहिथे। खैर कोन पहली रिहिस तेला खोजे बर सबे क्षेत्र मा विवाद रथे। एखर कारण काव्य के उपलब्धता, लेखनकाल अउ प्रकाशनकाल तीनो हो सकथे।
आधुनिक काल के ये शैशव काल मा 1904 के आसपास नरसिंह दास जी के कविता शिवायन आइस। छत्तीसगढ़ के सूरदास के नाम से विख्यात जन्मान्ध कवि नरसिंह जी के काव्य मा छत्तीसगढ़ी के एक बानगी देखव---
*शिव बारात*
*आईगे बरात गांव तीर भोला बाबा जी के*
देखे जाबो चला गिंया संगी ला जगावा रे।
डारो टोपी, मारो धोती पांव पायजामा कसि,
बर बलाबंद अंग कुरता लगावा रे।
हेरा पनही दौड़त बनही, कहे नरसिंहदास
एक बार हहा करही, सबे कहुं घिघियावा रे।।
कोऊ भूत चढ़े गदहा म, कोऊ कुकुर म चढ़े
कोऊ कोलिहा म चढि़ चढि़ आवत..।
कोऊ बिघवा म चढि़, कोऊ बछुवा म चढि़
कोऊ घुघुवा म चढि़ हांकत उड़ावत।
सर्र सर्र सांप करे, गर्र गर्र बाघ करे
हांव हांव कुत्ता करे, कोलिहा हुवावत।
*कहें नरसिंहदास शंभु के बरात देखि*
*गिरत परत सब लरिका भगावत।*
1905 मा पं लोचप्रसाद पांडेय जी के रचना छपे के चालू होइस जे गद्य मा रिहिस कलिकाल के कारण छत्तीसगढ़ के पहली नाटककार केहे जाथे। पं जी के ज्यादातर काव्य मन ब्रज, हिंदी, बंगाली अउ उड़िया मा रिहिस, छत्तीसगढ़ी काव्य मा "कविता कुसुम" देखे बर मिलथे, जेखर रचना काल 1915 के बाद के जान पड़थे।
पं सुंदरलाल शर्मा जी के साहित्य मा छत्तीसगढ़ी साहित्य के दर्शन ऊपर वर्णित अन्य कवि मन ले जादा दिखथे, संगे संग दानलीला के रचना काल मा घलो एक मत नइ दिखे, कोनो 1903-04 कहिथे ता कोनो 1912-15। अलग अलग संस्करण के सेती घलो ये समस्या आय होही। सतनामी भजन माला, छत्तीसगढ़ी राम लीला घलो सुंदरलाल शर्मा जी के छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह आय। शर्मा जी के कविता के एक बानगी--
*कोनो है झालर धरे, कोनो है घड़ियाल।*
*उत्ताधुर्रा ठोंकैं, रन झांझर के चाल॥*
*पहिरे पटुका ला हैं कोनो। कोनो जांघिया चोलना दोनो॥*
कोनो नौगोटा झमकाये। पूछेली ला है ओरमाये॥
कोनो टूरा पहिरे साजू। सुन्दर आईबंद है बाजू॥
जतर खतर फुंदना ओरमाये। लकठा लकठा म लटकाये॥
ठांव ठांव म गूंथै कौड़ी। धरे हाथ म ठेंगा लौड़ी॥
पीछू मा खुमरी ला बांधे। पर देखाय ढाल अस खांदे॥
ओढ़े कमरा पंडरा करिहा। झारा टूरा एक जवहरिया॥
हो हो करके छेक लेइन तब। ग्वालिन संख डराइ गइन सब॥
सरलग....
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