Thursday, 13 January 2022

छत्तीसगढ़ी दशा.. रामनाथ साहू-6

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*आधुनिक छत्तीसगढ़ी कविता:दशा अउ दिशा*
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                *( भाग- 6 )*

      संयमित - असंयमित काम , प्रेम ,वासना ,देह हर घलव छत्तीसगढ़ी काव्य म अपन ठउर बनात रहिस । वइसे दानलीलाकार हर तो ये बुता म बड़ आगु रहिस , फेर उहाँ कोई लौकिक प्रेम अउ राग नई होके सब कुछ हर कृष्णार्पण रहिस । लौकिक प्रेम अउ राग के स्वर ल देखव -

*अनिरुद्ध नीरव*
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मया                 म बूड़ी-बूड़ी जांव रे
मोर                        एहिच्च बूता ।।

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जबले निहारें तोला सलका बजार म
आंखी            नई                   लूमें
फिफली      के पाछू  -   पाछू धांव रे
मोर                        एहिच्च बूता ।।

*अशोक नारायण बंजारा*
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लागथे वोकर संग हवय
मोर    पुराना लागमानी
पीरा   एहू  कोती होवय
जभे   चोंट  ओती परय

*बद्री विशाल 'परमानन्द'*
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का तैं       मोहिनी डॉर दिए गोंदाफूल
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तोर     होगे आती अउ मोर होगे जाती
रेंगत -रेंगत आंखी मार दिये गोंदा फूल

*सीताराम साहू*
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तोर सुरता के   पीरा कटोरी
कइसे बाढ़ के   धमेला होगे

*ठाकुर जीवन सिंह*
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छोड़        गिरस्ती     के चिंता
ए जिनगी    फोटका पानी रे।।
धर       लाज लिहाज पठेरा म
जूरा     भींजय भिंज जावन दे।
अंचरा खिसकय, कजरा धूलय
मुड़    छाती   उघरय उघरन दे ।

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*पं.शेषनाथ शर्मा 'शील'*
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(बरवै छंद )
सुसकत आवत होही ,  भइया  मोर,
छइहा मा डोलहा,       लेहु अगोर।

बहुत पिरोहिल ननकी , बहिनी मोर,
रो-रो खोजत होही   खोरन- खोर ।

तुलसी चौरा म देव ,    सालिग  राम,
मइके ससुर पूरन,      करिहौ काम।

अंगना- कुरिया  खोजत, होही  गाय,
बछरू मोर बिन कांदी, नइच्च खाय।

मोर सुरता म भइया।   दुख झन पाय
सुरर सुरर  झन दाई,     रोये     हाय।

तिया जनम के पोथी ,म       दुई पान,
मइके ससुरार बीच म,     पातर प्रान।

*रमेश अधीर*
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तोर बिन सुन्ना        परे झन अंगना
कांटा गड़ के झन रहि जाही सपना

*मुकुंद कौशल*
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छत्तीसगढ़ी गजल के सशक्त हस्ताक्षर कौशल के अपन अलग रचना संसार हे-
ठोमहा भर घाम धरे आ गइस बिहान
रच रच ले टुटगे अंधियार के मचान।।

*निशीथ पाण्डेय*
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ओंठ म सज गय  मया के राग रे
ए मोर सुते-सुते सपनाजाग रे ।।

*पुरुषोत्तम अनासक्त*
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सूजी गोभत हे मंझनिया के घाम...

*सन्तोष कश्यप*
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मया म मिंयारी के होगे मरन...

*आनंद तिवारी पौराणिक*
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बिहनियां हर बांचत हे सुरुज के लिखे ।।

*राजेंद्र प्रसाद तिवारी*
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गर          मुरकेटवा मेघराज  के
भोग काल कुछू अइसे बुलकिस
हाय पेल दिस    नस नस भीतर
धान कटोरा के    दिल कर दिस

*देवेन्द्र नारायण शुक्ल*
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कहाँ पा बे खोखमा पोखरा
अउ           पुरइन के पतरी
पंचायत          हर डारे हावे
तरिया म    अब      मछरी।।

*रूपेंद्र पटेल*
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सुघ्घर मुसकी असीस देवत सुरुज बुड़ती म
काली फेर आये के किरिया  लेके जावत हे।

*रविन्द्र कंचन*
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धुंका -कोटवार
गली- गली हाँक-पारे
खिड़की दुआर
फूंक -फूंक उघारे
आगी बरत हे
कोन
दिया बुताए ।।

*लाला जगदलपुरी*
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पेट   सिकंदर    होगे हे ,
मौसम  अजगर होगे हे ।
निच्चट सुक्खा परगे घर
आंखी  पनियर होगे हे ।

*द्वारका यादव*
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करले  चिन्हारी मितान
खायले  एक बीरा पान
आंखी कर नइए क़सूर
हइये हस लोभ लोभान

         आयातित छंद विधान हाइकू, सायली,तांका म घलव छत्तीसगढ़ी कवि मन बढ़िया हाथ आजमाइन -

*नरेंद्र वर्मा*
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पापी रावन
हर साल जरथे
कभू मरथे ?

*डॉ.राजेन्द्र सोनी*
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कोलिहा हर
पहिने बाघी छाल
पहिचानव

*डॉ. रामनारायण पटेल*
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चार ठी बेटी
कब तक झेलही
दाइज डोर

        अउ कतेक न कतेक सर्जक मन छत्तीसगढ़ी कविता कामिनी ल सजाय समहराय बर लगे रहिन हे, एमे तो बनेच झन आज हमर बर अब दरस -नोहर स्मृति -शेष होगिन हें, फेर जउन मन हें वोमन के कलम ले छत्तीसगढ़ी महतारी के चरण बर लगातार फूल झरत हे।

सरलग

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