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*आधुनिक छत्तीसगढ़ी कविता:दशा अउ दिशा*
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*( भाग- 6 )*
संयमित - असंयमित काम , प्रेम ,वासना ,देह हर घलव छत्तीसगढ़ी काव्य म अपन ठउर बनात रहिस । वइसे दानलीलाकार हर तो ये बुता म बड़ आगु रहिस , फेर उहाँ कोई लौकिक प्रेम अउ राग नई होके सब कुछ हर कृष्णार्पण रहिस । लौकिक प्रेम अउ राग के स्वर ल देखव -
*अनिरुद्ध नीरव*
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मया म बूड़ी-बूड़ी जांव रे
मोर एहिच्च बूता ।।
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जबले निहारें तोला सलका बजार म
आंखी नई लूमें
फिफली के पाछू - पाछू धांव रे
मोर एहिच्च बूता ।।
*अशोक नारायण बंजारा*
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लागथे वोकर संग हवय
मोर पुराना लागमानी
पीरा एहू कोती होवय
जभे चोंट ओती परय
*बद्री विशाल 'परमानन्द'*
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का तैं मोहिनी डॉर दिए गोंदाफूल
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तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती
रेंगत -रेंगत आंखी मार दिये गोंदा फूल
*सीताराम साहू*
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तोर सुरता के पीरा कटोरी
कइसे बाढ़ के धमेला होगे
*ठाकुर जीवन सिंह*
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छोड़ गिरस्ती के चिंता
ए जिनगी फोटका पानी रे।।
धर लाज लिहाज पठेरा म
जूरा भींजय भिंज जावन दे।
अंचरा खिसकय, कजरा धूलय
मुड़ छाती उघरय उघरन दे ।
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*पं.शेषनाथ शर्मा 'शील'*
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(बरवै छंद )
सुसकत आवत होही , भइया मोर,
छइहा मा डोलहा, लेहु अगोर।
बहुत पिरोहिल ननकी , बहिनी मोर,
रो-रो खोजत होही खोरन- खोर ।
तुलसी चौरा म देव , सालिग राम,
मइके ससुर पूरन, करिहौ काम।
अंगना- कुरिया खोजत, होही गाय,
बछरू मोर बिन कांदी, नइच्च खाय।
मोर सुरता म भइया। दुख झन पाय
सुरर सुरर झन दाई, रोये हाय।
तिया जनम के पोथी ,म दुई पान,
मइके ससुरार बीच म, पातर प्रान।
*रमेश अधीर*
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तोर बिन सुन्ना परे झन अंगना
कांटा गड़ के झन रहि जाही सपना
*मुकुंद कौशल*
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छत्तीसगढ़ी गजल के सशक्त हस्ताक्षर कौशल के अपन अलग रचना संसार हे-
ठोमहा भर घाम धरे आ गइस बिहान
रच रच ले टुटगे अंधियार के मचान।।
*निशीथ पाण्डेय*
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ओंठ म सज गय मया के राग रे
ए मोर सुते-सुते सपनाजाग रे ।।
*पुरुषोत्तम अनासक्त*
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सूजी गोभत हे मंझनिया के घाम...
*सन्तोष कश्यप*
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मया म मिंयारी के होगे मरन...
*आनंद तिवारी पौराणिक*
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बिहनियां हर बांचत हे सुरुज के लिखे ।।
*राजेंद्र प्रसाद तिवारी*
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गर मुरकेटवा मेघराज के
भोग काल कुछू अइसे बुलकिस
हाय पेल दिस नस नस भीतर
धान कटोरा के दिल कर दिस
*देवेन्द्र नारायण शुक्ल*
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कहाँ पा बे खोखमा पोखरा
अउ पुरइन के पतरी
पंचायत हर डारे हावे
तरिया म अब मछरी।।
*रूपेंद्र पटेल*
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सुघ्घर मुसकी असीस देवत सुरुज बुड़ती म
काली फेर आये के किरिया लेके जावत हे।
*रविन्द्र कंचन*
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धुंका -कोटवार
गली- गली हाँक-पारे
खिड़की दुआर
फूंक -फूंक उघारे
आगी बरत हे
कोन
दिया बुताए ।।
*लाला जगदलपुरी*
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पेट सिकंदर होगे हे ,
मौसम अजगर होगे हे ।
निच्चट सुक्खा परगे घर
आंखी पनियर होगे हे ।
*द्वारका यादव*
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करले चिन्हारी मितान
खायले एक बीरा पान
आंखी कर नइए क़सूर
हइये हस लोभ लोभान
आयातित छंद विधान हाइकू, सायली,तांका म घलव छत्तीसगढ़ी कवि मन बढ़िया हाथ आजमाइन -
*नरेंद्र वर्मा*
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पापी रावन
हर साल जरथे
कभू मरथे ?
*डॉ.राजेन्द्र सोनी*
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कोलिहा हर
पहिने बाघी छाल
पहिचानव
*डॉ. रामनारायण पटेल*
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चार ठी बेटी
कब तक झेलही
दाइज डोर
अउ कतेक न कतेक सर्जक मन छत्तीसगढ़ी कविता कामिनी ल सजाय समहराय बर लगे रहिन हे, एमे तो बनेच झन आज हमर बर अब दरस -नोहर स्मृति -शेष होगिन हें, फेर जउन मन हें वोमन के कलम ले छत्तीसगढ़ी महतारी के चरण बर लगातार फूल झरत हे।
सरलग
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