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*आधुनिक छत्तीसगढ़ी कविता :दशा अउ दिशा*
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*( भाग -4 )*
छत्तीसगढ़ी कविता के थोरकिन पीछू के समय ल हमन हरि ठाकुर जी के आइकन गीत- गोंदा फूलगे के तरज म 'गोंदा फूल' कह सकत हन तब आगू के समय ल हमन 'चंदैनी गोंदा' काल कह ली ।
देश हर पाए रहिस हे नवा- नवा आजादी अउ मनखे मन के इच्छा चाहत हर बाढ़ गय रहिस । वोमन सोन के दिन अउ चांदी के रात के कल्पना करत रहिन । आजादी आए के बाद फदके आर्थिक- विषमता हर, ए आजादी के प्रति मनखे मन के मोह ल भंग कर दिस । येहर मोह भंग होय के काल रहिस । गरीबी , बेकारी, भुखमरी, बाढ़त जनसंख्या , आर्थिक असमानता जईसन जिनिस मन ल मनखे मन पाय आजादी के संग जोड़ के देखे बर विवश होवत रहिन ।तब अपन समय के यह सब चुनौती मन ल कवि मन अपन अक्षर अपन स्वर दिन।
यह समय म हिंदी कविता के प्रभाव म आके बहुत अकन छंद मुक्त कविता मन के रचना होइस । ए कविता मन के ये विशेषता रहिस कि छत्तीसगढ़ी परंपरागत शब्द अउ शिल्प ले के कवि मन अपन -अपन ढंग ले नावा मुहावरा गढ़े के शुरू कर देय रहिन । ये समय के कुछ प्रमुख कवि मन के थोर- थोर बानगी भर इहां रखे जात हे -
*डॉ. बलदेव*-
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कंडिल के ओहरत बाती कस
दिखत हे चंदा
रखियावत हे अंजोर
*प्रभंजन शास्त्री*
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गरम चहा पिये सही लागत हे घाम
धरती के ब्यारा म सुपा ल धरके
सुरुज किसनहा ओसावत हे धान।।
*डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा*
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अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार
इँदिरावती हा पखारय तोर पईयां
महूं पांवे परंव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
सोहय बिंदिया सहीं, घाट डोंगरी पहार
चंदा सुरूज बनय तोर नैना
सोनहा धाने के अंग, लुगरा हरियर हे
रंग
तोर बोली हावय सुग्घर मैना
अंचरा तोर डोलावय पुरवईया
महूं पांवे परंव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
रयगढ़ हावय सुग्घर, तोरे मउरे मुकुट
सरगुजा अउ बिलासपुर हे बइहां
रयपुर कनिहा सही घाते सुग्घर फबय
दुरूग बस्तर सोहय पैजनियाँ
नांदगांव नवा करधनिया
महूं पांवे परंव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया ।
*डॉ. नन्दकिशोर तिवारी*
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जरत परसा जंगल के
साखी मैं ।
मही हर तो टोरेंव पाना
पाना के ही डसना बनायेंव
फुले -फूल म वोला सजा के
मुरझात फूल के दुख के
साखी मैं ।
उही पेड़ के नीचे जेवन
दार-भात मही रनधवाएंव
सजाए वोला थारी म अगोरत
कठिन समय के
साखी मैं ।
परसा म झुमरत
टेसू म
तोला मोला मंय देखेंव
सबो जर गय
अनदेखनई के आगी म
जरत परसा जंगल के
साखी मैं ।
*श्री लक्ष्मण मस्तुरिया*
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मोर संग चलव रे
ओ गिरे थके हपटे मन
अऊ परे डरे मनखे मन
मोर संग चलव रे
अमरैया कस जुड छांव मै
मोर संग बईठ जुडालव
पानी पिलव मै सागर अव
दुःख पीरा बिसरालव
नवा जोत लव नव गाँव बर
रस्ता नवा गढव रे
मोर संग चलव रे
मै लहरी अव
मोर लहर मा
फरव फूलो हरियावअ
महानदी मै अरपा पैरी
तन मन धो हरियालव
कहाँ जाहु बड दूर हे गँगा
मोर संग चलव रे
विपत संग जूझे बर भाई
मै बाना बांधे हव
सरग ला पृथ्वी मा ला देहूं
प्रण अइसन ठाने हव
मोर सुमत के सरग निसेनी
जुर -भरमिल सबव चढ़व रे
मोर संग चलव रे ।
*पं. दानेश्वर शर्मा*
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चल मोर जंवारा मंड़ई देखे जाबो,
संझकेरहा जाबो अउ संझकेरहा आबो।
रेसमाही लुगरा ला पहिर के निकर जा,
आंखी मां काजर रमा के निकर जा,
पुतरी जस लकलक सम्हर के निकर जा,
हंसा के टोली मां हंसा संधर जा,
रहा ला ठट्ठा मा नान्हे बनाबो।।
छोटे बाबू बर तुतरु लेइ लेतेन,
नोनी बर कान के तितरी बिसातेन
तोर भांटो बर सुग्धर बंडी बिसातेन
अपन बर चूरी अउ टिकली मोलासेन,
पाने ला खाबो अउ मुंह ल रचाबो।।
रइपुरहिन बहिनी कहूँ आये होही,
अंचरा मां बांधे मया लाये होही,
मिल भेंट लेबो दूनों जांवर जाही
आमा के आमा अउ गोही के गोही
मइके कोती के आरो लेके आबो।।
के दिन के जिनगी अउ के दिन के मेला
के दिन के खेड़ाभाजी के दिन करेला
के दिन खटाही पानी के बूड़े ढेला
पंछी उड़ही पिंजरा हो ही अकेला
तिरिथ बरत देवधामी मनावो।।
*पवन दीवान*
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टघल -टघल के सुरुज
झरत हे धरती ऊपर
डबकत गिरे पसीना
माथा छिपिर -छापर।
झाँझ चलत हे चारों कोती
तिपगे कान, झँवागे चेथी
सुलगत हे आँखी म आगी
पाँव परत हे ऐती-तेती ।
भरे पलपला , जरे भोंभरा
फोरा परगे गोड़ म
फिनसेंगर ले रेंगत-रेंगत
पानी मिलिस पोंड़ म ।
नदिया पातर- पातर होगे
तरिया रोज अँटावत हे
खँड म रुखवा खड़े उमर के
टँगिया ताल कटावट हे ।
चट-चट जरथे अँगना बैरी
तावा बनगे छानी
टप-टप टपके कारी पसीना
नोहर होगे पानी ।
साँय-साँय सोखत हे पानी
अब्बड़ मुँह चोपियावे
कुँवर ओठ म पपड़ी परगे
सिट्ठा-सिट्ठा खावे ।
चारों कोती फूँके आगी
तन म बरगे भुर्रा
खड़े मँझनिया बैरी लागे
सबके छाँडिस धुर्रा ।
डामर लक -लक ले तीपे हे
लस-लस लस-लस बइठत हे
नस-नस बिजली तार बने हे
अँगरी-अँगरी अईंठत हे ।
लकर-लकर मैं कइसे रेंगव
धकर -धकर जी लागे ।
हँकर-हँकर के पथरा फोरेंव
हरहर के दिन आगे ।
लहर-लहर सबके परान हे
केती साँस उड़ाही
बुड़बे जब मन के दहरा म
तलफत जीव जुड़ाही ।
*श्री मेहत्तर राम साहू*
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घर बइठे वृंदावन गोकुल,
घर बइठे हे कांसी।
ऐ माटी ल तिरथ जानौ,
नइ मानौ त माटी ।।
राम रहीम हे पोथी-पतरा,
आवय खेती-खार ह।
तुलसी के दोहा चौपाई,
बाहरा अउ मेड़-पार ह।।
नांगर जोंतत राम लखन ह,
हो गे हे बनवासी.....
ऐ माटी ल तिरथ जानौ,
नइ मानौ त माटी......!
नरवा नदिया के पानी ह,
सरजू सही बोहावत हे।
पंचवटी बन डोंगरी भीतर,
कुंदरा गजब सुहावत हे।।
सीता आवत हावै धरके,
चटनी रोटी बासी......
ऐ माटी ल तिरथ जानौ,
नइ मानौ त माटी....!
धरती ह एक मंदिर जइसन,
दिखत हावै नजर म।
दाई ददा हे देवी-देवता,
अपन-अपन के घर म।।
राधा रुखमिन माला फेरत,
हावय तोर मुहाटी।
ऐ माटी ल तिरथ जानौ,
नइ मानौ त माटी......
*रघुवीर अग्रवाल 'पथिक'*
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अरे गरीब के घपटे अंधियार
गांव ले कब तक जाबे,
जम्मो सुख ला चगल-चगल के
रूपिया तैं कब तक पगुराबे?
हमर जवानी के ताकत ला
बेकारी तैं कब तक खाबे?
ये सुराज के नवा तरक्की
हमर दुवारी कब तक आबे?
हमर कमाए खड़े फसल ल
गरकट्टा मन कब तक चरहीं?
कब रचबो अपनों कोठार म
सुख-सुविधा के सुग्घर खरही?
कब हमरो किस्मत के अंगना
सुख के सावन घलो मा कब तक
उप्पर ले खाल्हे मा कब तक
नवा सुरूज ह घलो उतरही?
हमर भुखमरी एहवाती हे
हमर गरीबी हे लइकोरी।
जिनगी के रद्दा मा ठाढ़े
दु:ख, पीरा मन ओरी-ओरी
देख हमर दु:ख पीरा कोनो
बड़का-बड़का बात बघारै।
कागज के डोंगा म कोनो
बाढ़ पूरा पार उतारै।
नानुक कुर्सी, थोरिक पइसा
अपरिध्दा के अक्कल मारै।
सूपा हर बोलय तो बोलय
चलनी तक मन टेस बघारै।
चितकबरा हे दीन दयालू
संकट मोचन हे मतलबिया
ऊप्पर ले दगदग ले दीखै
अउ भितरी ले बिरबिट करिया।
झूठ-मूठ तो सच्ची लागै
सही बात हर लगय लबारी।
दुनिया म बहिरूपिया मन के
अड़बड़ कुसकिल हवै चिन्हारी।
दुखिया के आंसू सकेल के
दुखीराम काला गोहरावै?
वोट, नोट के जादूगर तो
किसम-किसम के खेल देखावै।
हमर पसीना भाग बनाही
जब ले चलही हमरो जांगर।
हमर खेत म सोन उगाही
हमरे बइला हमरे नांगर
अपन-अपन किस्मत बदले बर
चलौ सुकालू, चलौ समारू
मिहनत के संग आज बदे बर
गंगा जल अउ गंगा बारू॥
*सतलोकी सुकालदास भतपहरी*
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साखी-
उज्जर ओनहा पहिन पान सुपारी नित खाय ।
सतनाम भाखे बिना जीव जावे न
भवपार ।।
मुड़ पटकि पटक रोवे पथरन मं
मोर हीरा गंवागे बन कचरन मं...
पथरा मं बंदन बुक देवी देवता माने
सुवारथ बर पसु पक्षी नरबलि चढ़ाये
मंद मांस सब नखरन मं...
भूत परेत मरी मसान जगावे
सुपा बजा के माथ डोलावे
दीया नचाए मंतरन मं...
रंग बिरंग देवता बनाए
घर घर बइठे ताक लगाए
बइगा मगन जस पचरन मं...
मन के भरम तोर मन ले हटा ले
सत के महिमा ल हिरदे म लगाले
दया धरम तोर आचरन मं...
***
सतखोजी गुरु घासीदास
घरे मं मन नइ माढ़य संगी
घरे मं मन नइ माढ़य न ...
रद्दा धरिन जगन्नाथ के ,गजब सुनिस बड़ाई ,
दीन- दुखिया मन के देखिस करलाई ,
अउ देखिस पण्डा के लुटाई
बद्रीनाथ पर चरण बढाइस -2
मन के पीरा नइ हराये...
कपड़ा रंगाये मिले गोरखमुनी ,
बाबा बइठिन उंकर पास
सुनिस परवचन मुनी के गुरुजी,
पूरा न होइस मन के आस
रंगहा कपड़ा फेर मन नइ रंगाये -2
मनखे मन मं भेद बताये
देखे लहुटत चंद्रसेनी मं बली छैदत्ता
पाड़ा
मन विचलित हलाकान जीव हिंसा
गाड़ा गाड़ा
देख बाबा के मन भिरंगे तीरथ मं शांति नइ पाये,
पुन्नी के पुनवास मं सतनाम उच्चारे-2...
*श्री हेमनाथ यदु*
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ये मोर संगी सुमत अटरिया,
चढ़बोन कइसे मन ह बिरविट बादर है।
जतन के मारे बनत बिगड़थे,
आंखी आंजे काजर है।
भाई भाई म मचे लड़ाई, पांव परत दूसर के हन
फ़ूल के संग मां कांटा उपजे, अइसन तनगे हावय मन
धिरजा चिटको मन म नइये, ओतहा भइगे जांगर हे। ये मोर
बात बात म बात बढ़ाके, दूरमत ल मोलियाये हन।
परबर चारी बना बनाके, अपने आपन हंसाये हन
भाई के अब भाव नई रहिगे बनगे घुनहा खांसार हे। ये मोर
लड़त कछेरी नर नियांव म, घर ह धलोक मठावत हे
नाव नठागे गांव भठागे, सेवत करम ठठावत हे
घर ला फोरत फोर करइया हासत एक मन आगर हे। ये मोर
दाई दादा के मयां ह जागे तिरिया माया सजागे हे।
कोन ले कहिबे कइसन कहिबे, मन हा घलोक लजागे हे
कल किथवन में अंकल सिरागे, सुक्खा मयां के सागर हे मोर
*स्व0 भगवती लाल सेन*
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अजब देश के गजब सुराज
भूखन लाघंन कतकी आज
मुरवा खातिर भरे अनाज
कटगे नाक, बेचागे लाज
कंगाली बाढ़त हे आज
बइठांगुर बर खीर सोंहारी
खरतरिहा नइ पावै मान
जै गगांन...
*लखनलाल गुप्त*
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डर डरावन। अंजोर
दुरिहा म चमकत हे
अंधियार के आंखी
*भगत सिंह सोनी*
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भंदोई पहिर के अंधियारी
पाख म आथे
अंजोरी पाख हमन बर
देव सुतनी हो गय
*चेतन आर्य*
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दुनिया के कोन भाग म
रोटी के बारे में
पढ़ाए जाथे
वोकर आत्मकथा ।
(सरलग )
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