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*आधुनिक छत्तीसगढ़ी कविता :दशा अउ दिशा*
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*( भाग -5 )*
छत्तीसगढ़ी कविता म जउन मौज अउ लहरा -रवानगी हे , वोहर अब परगट होय के शुरू हो गय रहिस । छोटे -छोटे वर्णन म बहुत अकन गहिल गोठ ल कहे के क्षमता अब छत्तीसगढ़ी कविता म आ गय रहिस । अभिधा -लक्षणा -व्यञ्जना ले आगु ,आनन्दवर्धनाचार्य प्रणीत 'ध्वनि ' , सब छत्तीसगढ़ी कविता म दिखे लग गय रहिस । वोमे कांस के कटोरी ले उठे टन्न के आवाज आये के शुरू हो गय रहिस । ये जिनिस मन के थोरकुन बानगी देखव -
*ईश्वर शरण पांडेय*
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मन म रिस हे
रोस हे दुख हे
एकरे खातिर कहत जात हे
पान मुखारी पान मुखारी
भीख नी मांगत हे
कीमत ल आंकत हे
ये कविता म धूमिल के मोचीराम के आवाजाही असन लागथे । मेहनतकश के मेहनत के मूल्य कम आंकना हर , मनखे के फितरत आय ।
*रविशंकर शुक्ल*
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मोर गीत सांझ अउ बिहान के
मोर गीत खेत अउ खलिहान के
करमा के मांदर कस
बरसा के बादर कस
बइला अउ नागर कस
कांचा माटी के घर कस
गंगा के पानी। कस बोहावत
मोर गीत कमइया किसान के
*विद्याभूषण मिश्र*
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सुरुज किरन म भिनसरहा मुँह धोते
मोर गांव
जोंक असन पीरा आसा के
तन ल चूसत हावे ।
रोज गरीबी हर सपना के
मुँहटा बइठे हावय
संसो के धुँआ अइसन गुंगुवाथे
मोरे गांव ।।
*प्रदीप वर्मा*
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छत्तीसगढ़ म होगे संगी
अधरतिहा से नवा बिहान
चौरासी चौमास परागे,
सोन चिरैया भरे उड़ान
*मैथ्यु जहानी 'जर्जर'*
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वीर नारायण सिंह ल भज के
पैंया लागव सुंदर लाल
राज दुलारे प्यारे बेटा
जय यदुनंदन। छेदी लाल
*विठ्ठल राम साहू*
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छत्तीसगढ़ के बासी हा संगी,
कखरो ले नइहे घिनहा
कोन्हों दुरुग,कोन्हों रायगढ़
कोन्हों हे जसपुरिहा।।
*शिवकुमार पांडेय*
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मोर छत्तीसगढ़ महतारी
सुघ्घर गुरतुर बोली मा
गंवई सहर के खोली म
भुईयां के हरियर डोली मा
देखेंव मैं तोला ।।
*राघवेंद्र दुबे*
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जेवनी हाथ म हंसिया धरे
डेरी म धान के बाली ।
तँय सबके पालनहार मइया,
जय होवय तोर ।।
*डॉ. संतराम साहू*
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झिमिर -झिमिर पानी गिरय
बुढ़वा के होगे खोखी
छानी परवा के नाक बोहावत
अबड़ हांसय गोखी ।।
*उमेश अग्रवाल*
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अइसन बरसिस पानी
जग जग पानी होगे
एक घरी म धरती दाई
रानी होगे ।।
*रामेश्वर शर्मा*
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सोवथे मोर ललना
पुरवाही धीरे बहना।
तोर आये ले डोले डारा पाना।
ललना रिसाही मान मोर कहना।
झरर झरर झन बहना।। सोवथे।।
पीरा के हीरा सूतत हे ना।
निंदिया ह आंखी झूलत हे ना।
निंदिया ला नइ हरना।। सोवथे।।
झन बन बैरी तैं हिरदे जुड़ाते।
कहना अंतस के हे धीर धरिआते।
जोर ले अंते बहना।। सोवथे।।
*रामप्यारे रसिक*
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नोनी झिन जाबे तरिया अकेले
कोई बइरी आंखी म गड़ जाही गा ।
*पुरुषोत्तम अनासक्त*
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कइसे धुनिया धुनकत हे
कपास के खरही अगास में
आवत हे बादर, जावत हे बादर
गरजत हे बादर, गावत हे बादर
छिंचत हे पानी
बूंद -बूंद पहिरे जुग जुग
नाचत हे धान के पान ।।
*राम कैलास तिवारी*
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पीपर के लाल कोंवर पाना झिलमिलाए
रहि-रहि के आम सिरिस महुआ महमहाए
झूम-झूम नाच-नाच मितवा गीत गाए
मोर संगी मया झ बिसार देबे ।।
*भरत लाल नायक*
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सेमर हर फूलगे गोई,
सेमर ह फूल गे।
मोर आंखी म तोर,
चेहरा ह झूल गे ।।
*रामलाल निषाद*
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मोर उमर के आमा रुख-
कोला के मउरे हे बइरी
का दे दे मोहनी के महूँ मउर के
गंध म बगर गय हँव
छत्तीसगढ़ी कविता के अजस्त्र यात्रा बिना अवरोध के जारी रहिस । एमा, ये यज्ञ म एके संग कइठन पीढ़ी अपन आहुति नावत रहिन ।
(सरलग )
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