Friday, 14 January 2022

छत्तीसगढ़ी काव्य.. खैरझिटिया-3

*छत्तीसगढ़ी साहित्य के उड़ान काल(2000 - अबतक)*

सन 2000 मा छत्तीसगढ़ राज बने के बाद कविमन के कविता मन ठेठ छत्तीगढ़िया पन दिखे बर लगिस, छत्तीसगढ़ी भाषा मा सृजन के संख्या वइसने बाढ़िस जइसे फ़िल्म जगत मा छत्तीसगढ़ी फिलिम। पर छत्तीसगढ़ राज बने के पहली घलो  कवि मन के संख्या ला कही पाना सम्भव नइ हे, फेर राज बने के बाद का कहना। जन जन के अन्तस् मा छत्तीसगढ़ राज बनाय के सपना पलत रिहिस ,ओला कवि मन बखूबी ले सामने लाइन, अउ उंखर सपना रंग घलो लाइस। राज बने के बाद छत्तीसगढ़ के कवि मनके कविता मा उछाह के संगे संग छत्तीसगढ़ के सृजन के आरो वइसने दिखे लगिस, जैसे कोनो परिवार नवा घर बनाय के बाद ओमा रहे बर जाथे ता वो घर ला सजाथे सँवारथे। अपन घर ला अपन इच्छानुसार बनाय के उदिम करत कवि मन मनमुताबिक कलम चलाइन अउ आम जन के देखे सपना ला स्वर दिन। *माटी ले लेके घाटी अउ पागा-पाटी ले लेके भँवरा-बाँटी तक के आरो कवि मनके गीत कविता मा रचे बसे लगिस।* उछाह के स्वर के संगे संग आँखी मा दिखत अभाव ला घलो कवि मन समय समय मा कलम मा उकेरत गिन।
                  *आधुनिक काल के प्रारभिक काल के कवि मन छत्तीसगढ़ी साहित्य गढ़के आसा विश्वास के जोती जलावत साहित्यिक जमीन तैयार करिन ता 1950 के बाद के कवि मन वो जमीन मा धीरे धीरे रेंगत, दौड़े लगिन अउ 2000 के बाद उड़े। फेर वो उड़ान मा 80, 90 के दशक के विज्ञ कवि मन मीनार कस जमीन अउ आसमान दूनो मा दिखिन ता नवा जमाना के नवा रंग मा रंगे नवकवि मन पतंग बरोबर उड़ावत।* यदि छत्तीसगढ़ महतारी के हाथ मा भाव के डोर धरा के उड़ाय ता येमा कोनो बुराई घलो नइहे, महिनत अउ मार्गदर्शन के मॉन्जा वो डोर ला एक दिन जरूर मजबूती दिही,अउ अइसने होवत घलो हे।  ये काल मा पत्र पत्रिका, रेडियो,टीवी, गोष्ठी अउ कवि मंच मा कविता के प्रस्तुति के अलावा एक नवा सहारा सोसल मीडिया के मिलिस।

   सोसल मीडिया के आय ले कवि के संख्या अउ कविता के संख्या जनमानस तक जादा ले जादा पहुँचे लगिस। ये काल मा सियान मनके सियानी गोठ अउ लइका मनके लड़कपन दुनो प्रकार के साहित्य देखे बर मिलिस। *नेकी कर दरिया मा डार* के हाना, सोसल मीडिया के आय ले बदलत दिखिस, *कुछु भी कर- फेसबुक, वाट्सअप, ब्लाग या अन्य नवा माध्यम मा डार* ये चले लगिस अउ अभो चलत हे, येमा कवि मन घलो पीछू नइ हे। सोसल मीडिया के लाइक कमेंट ला कवि मन कविता के सफलता मानत दिखिन। रोज लिखे अउ दिखे के चलन बाढ़गे। साहित्य के सेवा अउ समर्पण मा स्वान्तः सुखाय अउ स्वार्थ के स्वर सुनाय लगिस। कविता कहूँ करू हे, ता वो साहित्य कइसे? फेर बैरी जे लात के भूत ए वो बात मा कहाँ माने। तेखरे सेती पदोवत पाकिस्तान बर आन बैरी बर अइसने सुर घलो देखे बर मिलिस। भाव रूपी डोर मा बंधाय आगास मा उड़ावत सतरंगी पतंग ला बछर 2016 मा छ्न्द के छ नामक एक अइसन आंदोलन रूपी माँजा डोर मिलिस, जे वोला छत्तीसगढ़ी भाँखा महतारी ले बाँध के रखिस। जुन्ना शास्त्रीय विधा छ्न्द खूब जोर पकडिस, सबे के रचना मा छंद के विविधता दिखे लगिस, ऐसे नही कि छत्तीसगढ़ी मा पहली पँइत छंद दिखिस, एखर पहली घलो धनी धरम दास जी, पं सुन्दरलाल शर्मा,सुकलालपाण्डेय, प्यारेलाल गुप्त, कपिलनाथ मिश्र, नरसिंह दास,जनकवि कोदूराम दलित, लाला जगदलपुरी, विमल पाठक, विनय पाठक, केयर भूषण, दानेश्वर शर्मा, मुकुन्द कौशल, लक्ष्मण मस्तुरिया, हरि ठाकुर नरेन्द्र वर्मा,बुधराम यादव आदि कवि मन घलो कुछ चर्चित छ्न्द मा काव्य सिरजाइन। फेर दुनिया ला छन्द प्रभाकर अउ काव्य प्रभाकर जइसे हजारों छन्दमय पुस्तक संग्रह देवइया छत्तीसगढ़ के छन्दविद जगन्नाथ प्रसाद भानू जी, छ्न्द के छ के माध्यम ले,वो दिन मान पाइस, जब छत्तीसगढ़ी भाषा मा छ्न्द के विविधता दिखिस। ये काल मा सौ ले आगर छंद मा कवि मन कविता रचिन, अउ रचते हें। छ्न्दमय रचना के साथ कवि मनके कविता के कला पक्ष बेजोड़ होय लगिस। शब्द के सही रूप, वर्णमाला के बावन आखर, यति गति के संगे संग काल,वचन,लिंग अउ पुरुष जइसे व्याकरण पक्ष मा सुधार आइस। कविता नवा कलेवर लिए, जमीन ले जुड़े दिखिस। तात्कालिकता के स्वर प्रखर होइस, नवा नवा आधुनिक जिनिस अउ जुन्ना कुरीति के विरोध के स्वर घलो गूँजे लगिस। छ्न्द अतका जोर पकड़े लगिस कि हिंदी के लिखइया मन घलो नाना छ्न्द मा हिंदी मा रचना करिन। छत्तीसगढ़ के लगभग सबे कोती छन्द गुंजायमान दिखिस, चाहे कवि मंच, पत्र, पत्रिका, रेडियो, टीवी होय या फेर फेसबुक या वॉट्सप। सोसल मीडिया के सदुपयोग करत छत्तीसगढ़ के लगभग सबे जिला के कवि मन छंदविधा के ऑनलाइन क्लास ले जुड़के, छ्न्द सीखत अउ सिखावत हे, ये आंदोलन मा जुड़े छंदकार मनके काव्य रचना घलो देश काल के दशा दिशा ला  इंगित करत दिखथे। नवा छन्दक्रांति मा समसामयिकता के स्वर के संग परम्परा संस्कार अउ सँस्कृति के पाग समाये हे। मन के उड़ान ला मात्रा मा बाँधत भले भाव मा कुछ कसर दिख जही, पर विधान के बगिया बरोबर सजे दिखथे, महज चार पांच साल मा छ्न्द के गति देखते बनथे, जमे छ्न्दकार मन अनुभव  अउ महिनत के सांचा मा ढलत ढलत कविता सृजन ला नया आयाम दिही। आज  निमगा छन्दबद्ध कविता संग्रह छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत मा होय के चालू होगे हे। दर्जन भर ले आगर साहित्य लोगन के हाथ मा पहुँच चुके हे अउ दर्जन भर पुस्तक छपे के कगार में हे,जनकवि दलित जी के छ्न्द बर देखे सपना ला उंखर सुपुत्र अरुण निगम जी साक्षात करत हे। छ्न्द के छ के प्रभाव ले छत्तीसगढ़ी साहित्य मा शब्द लेखन के एकरूपता सहज दिखत हे।

                              80,90 के दशक मा लिखइया  दशरथ लाल निषाद विद्रोही, लक्ष्मण मस्तूरिहा,रामेश्वर शर्मा, रामेश्वर वैष्णव,डॉ पीसी लाल यादव, जीवन यदु,सुशील यदु, सुशील वर्मा भोले,मुकुण्दकौशल,गोरेलाल चंदेल,बंधुवर राजेश्वर खरे, परदेशी राम वर्मा, बिहारी लाल साहू, बलदेव भारती, चेतन भारती, शिवकुमार दीपक, गणेश सोनी प्रतीक, डुमनलाल ध्रुव, दुर्गाप्रसाद पारकर, सीराराम साहू श्याम, विशम्भर दास मरहा, फागूदास कोसले,नूतन प्रसाद शर्मा, बोधनदास साहू, केशव सूर्यवानी केसर,दादूलाल जोसी, रेवतीरमण सिंह, दुकालूराम यादव,  राधेश्याम सिंह राजपूत, कौशल कुमार साहू,स्वर्णकुमार साहू, लतीफ खान लतीफ, स्वराज करुण, शिवकुमार अंगारे, वीरेंद्र चन्द्र सेन,गौरव रेणु नाविक,केदारसिंह परिहार, मैथ्यू जहानी जर्जर, प्यारेलाल देशमुख, सनत तिवारी, अजय पाठक, बदरीसिंह कटरिहा, रामरतन सारथी, डाँ शंकर लाल नायक, रमेश सोनी, सीताराम शर्मा,नेमीचंद हिरवानी, आचार्य सुखदेव प्रधान, गिरवर दास मानिकपुरी, आनंद तिवारी पौराणिक, पुनुराम साहू, राकेश तिवारी,हबीब समर, टिकेश्वर सिन्हा, रनेश विश्वहार, शिवकुमार सिकुम, देवधर दास महंत, लखनलाल दीपक, धर्मेंद्र पारख,सन्तराम देशमुख, गणेश साहू,राघवेंद्र दुबे, महेंद्र कश्यप राही, गणेश यदु, के आलावा अउ कतको वरिष्ठ कवि मन नवा राज बने के बाद वो समय के नव कलमकार मन संग साहित्यिक सृजन ला गति दिन। जिंखर कविता मा सुख के आहट के संगे संग वो सुख ला पाय बर करे उदिम सहज झलकत रिहिस।
                राज बने के बाद छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी रचना ला गति देवत केशवराम साहू, सुरेंद्र दुबे, रामेश्वर गुप्ता, मोहन श्रीवास्तव, अशोक आकाश, अरुण कुमार निगम, डॉ एन के वर्मा, नरेंद्र वर्मा,कुबेरसिंह साहू, ऋषि वर्मा बइगा, कृष्णा भारती, सन्तोष चौबे, कान्हा कौशिक, चैतराम व्यास,चन्द्र शेखर चकोर, लोकनाथ आलोक,प्रवीण प्रवाह, वीरेंद्र सरल, नन्दकुमार साकेत, वैभव बेमेतरिहा, दिनेश चौहान, डॉ अनिल भतपहरी, बलदाऊ राम साहू, महल्ला बन्धु, कृष्ण कुमार दीप, शंभूलाल शर्मा बसंत, टी आर कोसरिया, गया प्रसाद साहू,लोकनाथ साहू, डॉ दीनदयाल साहू, डॉ मानिक विश्वकर्मा नवरंग, इकबाल अंजान,उमेश अग्रवाल, भागवत कश्यप, महावीर चन्द्रा, कृष्ण कुमार चन्द्रा, फत्ते लाल जंघेल, रामनाथ साहू,फकीरप्रसाद फक्कड़ राजीव यदु, आत्माराम कोसा, गिरीश ठक्कर, चोवाराम वर्मा बादल,शशिभूषण स्नेही,  अशोक चौधरी रौना, श्रवण साहू,लखनलाल दीपक, वीरेंद्र तिवारी,,धर्मेंद्र पारख, डॉ विनयशरण सिंह,हेमलाल साहू, रमेश कुमार सिंह चौहान, सुनील शर्मा नील, सूर्यकांत गुप्ता कांत, मिथिलेश शर्मा, लोचन देशमुख, देवेंद्र हरमुख,शकुंतला शर्मा, मिलन मिलरिया, चोवाराम वर्मा बाद, गजानंद पात्रे, दिलीप कुमार वर्मा, कन्हैया साहू अमित, आसकरण दास जोगी, सुखन जोगी, वासंती वर्मा,रश्मि गुप्ता, आशा देशमुख, रेखा पालेश्वर, ग्यानुनू दास मानिकपुरी, मनीराम साहू मिता,जीतेन्द्र वर्मा खैरटिया, मोहनलाल वर्मा, हेमंत मानिकपुरी, दुर्गाशंकर ईजारदार, अजय अमृतांशु, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर,आर्या प्रजापति, मोहन कुमार निषाद, महेतरू मधुकर, संतोष फारिकर, तेरस राम कैवर्त, पुखराज यादव, सुरेश पैगवार,ललित साहू जख्मी, श्रवण साहू, दीपिका झा, बलराम चंद्राकर, पुष्कर सिंह राज,राजेश कुमार निषाद, अरुण कुमार वर्मा, अनिल जांगड़े गौतरिहा, जितेंद्र कुमार मिश्र, पोखन जायसवाल, दिनेश रोहित चतुर्वेदी, जगदीश कुमार साहू हीरा, कौशल कुमार साहू, तोषण चुरेंद्र, पुरुषोत्तम ठेठवार, विद्यासागर खुटे, परमेश्वर अंचल, बोधनराम निषादराज, मथुरा प्रसाद वर्मा, ज्योति गवेल, नीलम जयसवाल,प्रियंका गुप्ता, आशा आजाद, राजकिशोर धिरही,रामकुमार साहू, दीनदयाल टंडन, गुमान प्रसाद साहू,रुचि भुवि, बालक दास निर्मोही, मीता अग्रवाल, कुलदीप सिन्हा, राम कुमार चंद्रवंशी, महेंद्र कुमार माटी, अनिल पाली, धनसाय यादव, ईश्वर साहू आरुग,गजराज दास महंत,अशोक धीवर जलक्षत्री, राधेश्याम पटेल, सावन कुमार गुजराल, उमाकांत टैगोर, राजकुमार बघेल, नवीन कुमार तिवारी, निर्मल राज, योगेश शर्मा, सीमा साहू,सुधा शर्मा, केंवरा यदु मीरा, दीपक कुमार साहू, दिनेश कुमार साहू, द्वारिका प्रसाद लहरें, संदीप परगनिहा, महेंद्र कुमार बघेल, युवराज वर्मा, हीरालाल गुरुजी समय, अनुभव तिवारी, ईश्वर साहू बंधी, गीता विश्वकर्मा, चित्रा श्रीवास, तुलेश्वरी धुरंधर,दीपाली ठाकुर, शोभा मोहन श्रीवास्तव, सुनीता कुर्रे, स्नेह लता, मीणा जांगड़े, सरस्वती चौहान, रामकली कारे,शशि साहू, अश्वनी कोशरे, चंदेश्वर सिंह दीवान, ज्वाला प्रसाद कश्यप, धनराज साहू, संतोष कुमार साहू,केशव पाल, नेमन्द्र कुमार गजेंद्र, लक्ष्मी नारायण देवांगन, कमलेश वर्मा, जितेंद्र कुमार निषाद, श्लेष चंद्राकर, अमित टंडन, योगेश कुमार बंजारे, तोरण लाल साहू, दीपक कुमार निषाद, देवेंद्र पटेल,भागवत कुमार साहू,बृजलाल दावना, लालेश्वर अरुणाभ,लीलेश्वर देवांगन, हरीश अष्ट बंधु, तेज राम नायक, अनिल सलाम, सुखमोती चौहान, धनेश्वरी सोनी गुल, विजेंद्र वर्मा, मोहनदास बंजारे, जितेंद्र कुमार साहिर, मनोज कुमार वर्मा,डमेन्द्र कुमार रौना, अमृत दास साहू, इंद्राणी साहूसाँची, एकलव्य साहू, ओम प्रकाश साहू, गोवर्धनप्रसाद परतेसी, धनराज साहू खुज्जी, नंदकुमार साहू नादान,मनीष साहू ,रमेश कुमार मंडावी ,राजकुमार चौधरी, शिव प्रसाद लहरें, शेरसिंह परतेती,अशोक कुमार जायसवाल, कमलेश मांझी, चंद्रहास पटेल, टिकेश्वर साहू, प्रिया देवांगन, दीपक तिवारी, नारायण प्रसाद वर्मा, पूरन जयसवाल, रिझे यादव,सुरेश निर्मलकर,भाग बली उइके, अजय शेखर नेताम,अनुज छत्तीसगढ़िया, अन्नपूर्णा देवांगन,चेतन साहू खेतिहर, तिलक लहरें, मेनका वर्मा, राकेश कुमार साहू, वसुंधरा पटेल, संगीता वर्मा, सुजाता शुक्ला, देवचरण धुरी, पद्मा साहू, मनोज यादव,आशुतोष साहू, डीएल भास्कर, दूज राम साहू, धर्मेंद्र डहरवार, नंद किशोर साहू, नागेश कश्यप, नारायण प्रसाद साहू, प्रदीप कुमार वर्मा, भागवत प्रसाद, रमेश चोरिया, महेंद्र कुमार धृत लहरें, रवि बाला राजपूत, राजेंद्र कुमार निर्मलकर,रोशन लाल साहू, सुमित्रा कामड़िया, डीलेश्वर साहू, दिलीप कुमार पटेल, नेहरू लाल यादव, पूनम साहू,भीज राज वर्मा, ममता हीर राजपूत, मुकेश उइके, राज निषाद, वीरू कंसारी, शीतल बैस, केदारनाथ जायसवाल, कृष्णा पारकर, अखिलेश कुमार यादव, दयालु भारती, दुष्यंत कुमार साहू, द्रोण कुमार सार्वा, भलेंद्र रात्रे, मनीष कुमार वर्मा, सैल शर्मा, सांवरिया निषाद, चूड़ामणि वर्मा, बाल्मीकि साहू के आलावा अउ कतको नवा जुन्ना जमे कवि  मनके कविता अउ रचित काव्य संग्रह मन ला पढ़ सुन के आधुनिक कालिन कविता के दशा दिशा ला देखे जा सकत हे।
                   आवन इही में के कुछ नवा अउ जुन्ना दूनो प्रकार के कवि  मन के कविता के बानगी ला देखथन--

* छत्तीसगढ़ राज मा बिहान देख डाँ बलदेव प्रसाद जी लिखथें*

आज सुमत के बल मा संगी, नवा बिहनिया आइस हे
अंधवा मनखे हर जइसे, फेर लाठी ल पाइस हे
नवा रकम ले नवा सुरूज के अगवानी सुग्घर कर लौ
नवा जोत ले जोत जगाके , मन ला उञ्जर कर लौ
झूमर झूमर नाचौ करमा, छेड़ौ ददरिया तान रे
धान के कलगी पागा सोहै, अब्बड़ बढ़ाए मान रे
अनपुरना के भंडारा ए, कहाँ न लांघन सुर्तेय –
अपन भुजा म करे भरोसा, भाग न ककरो .लुर्टय्‌ हम
सहानदी के एं घाटी म कभू न कोनो प्यास मरँय
रिसि-मुनि के आय तपोवन, कभू न ककरो लास गिरय

*माटी के काया ला माटी महतारी के महत्ता बतावत डाँ पीसी लाल यादव जी लिखथें*

जमीन ले जे छूटगे, जर जेखर टूटगे।
तेखर का जिनगी ? करम ओखर फूटगे।।
महतारी के अंचरा,अउ माटी के मान ।
एखर आगू लबारी,दुनिया के सनमान।।
मयारु जेखर छूटगे,छंईहा जेखर टूटगे।
तेखर का जिनगी ? करम ओखर फूटगे।।

* अपन राज के आरो पावत मजदूर किसान बनिहार मन सालिकराम अग्रवाल शलभ जी के जुबानी कहिथें*

मालिक ठाकुर मन के अब तक, बहुत सहेन हम अत्याचार
आज गाज बन जावो जम्मो छत्तीसगढ़ के हम बनिहार।
बरसत पानी मां हम जवान,खेत चलावन नांगर
घर-घुसरा ये मन निसदित के, हमन पेरन जांगर
हमर पांव उसना भोमरा मां, बन जाथे जस बबरा
तभो ले गुर्रावे बघवा कस, सांप हवैं चितकबरा।
इनकर कोठी भरन धान से, दाना दाना बर हम लाचार

*बानी रूपी ब्रम्ह के महत्ता बतात,गुरतुर गोठ गोठियाय बर काहत सुकवि बुधराम यादव जी लिखथें*

सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के
अंधरा ला कह सूरदास अउ नाव सुघर धर कानी के
बिना दाम के अमरित कस ये
मधुरस भाखा पाए
दू आखर कभू हिरदे के
नई बोले गोठियाये
थोरको नई सोचे अतको के दू दिन के जिनगानी हे
सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के

*कवि समाज के दशा दिशा ला दिखइया दर्पण होथे, फेर कभू कभू जनमानस के रीस घलो सहे बर लगथे, इही ला सुशील भोले जी लिखथें*

हमन,कवि आन साहेब
कागज-पातर ल रंगथन
अउ कलम ल बउरथन
कभू अंतस के गोठ
त कभू दुखहारी के रोग
कभू राजा के नियाव
ते कभू परजा पीरा
उनन-गुनन नहीं
कहि देथन सोझ.
एकरे सेती,कोनो कहि देथे जकला
कोनो बइहा,त कोनो आतंकी
या अलगाववादी
कभू-कभू ,देश अउ समाजद्रोही घलो
फेर दरपन के कहाँ दोस होथे
वो तो बस,जस के तस देखा देथे
ठउका कवि कस
आखिर दूनों के सुभाव तो
एकेच होथे.

*बेटी जनम होय मा समाज के मायूसी ला देखावत दुर्गाप्रसाद पारकर जी लिखथें*

घर म नोनी अँवतरे ले
रमेसर रिसागे
अब तोला घर ले निकालहूँ
कहिके
अपन गोसइन बर खिसियागे
रमेसर के रिसई ल देख के
ओकर संगवारी किहिस -
सुन रमेसर
रिस खाय बुध
अउ बुध खाय परान,
तँय अतेक
काबर होवत हस हलाकान ?
माँगे म बेटा अउ
हपटे म धन नइ मिलय
माँगे म बेटा मिल जतिस त
दुनिया म बेटिच नइ रहितिस
अब तिहीं बता
जब बेटिच नइ रहितिस
त ए दुनिया ह
आगू कइसे बढ़तिस

*लाला फूलचंद श्रीवास्तव द्वारा रचित काव्य पंक्ति*

अइसन जनितेंव मंय चंदैनी जनम होईहंय चदैनिन हो
ललना कारी कलोरिया दुहवइतेंव मंय चंदैनी नहवइतेंव हो
मक्खन उबटन चंदन केसर चंदन हो
ललना जुरमिल सजाबो फूल सेज
मंय ललना झुलइतेंव हो...

* कथे कि गोदना धन बरोबर अमर लोक जाथे, गोदना परम्परा ला अपन कविता मा लेवत राम रतन सारथी जी कथें*

तोला का गोदना ला गोदंव ओ,
मोर दुलउरिन बेटी
नाक गोदा ले नाक मा फूली,
माथ गोदा ले बिंदिया।
बांह गोदा ले बांह बहुटिया,
हाथ गोदा ले ककनी।
तोला का गोदना...

*गेंदराम सागर जी द्वारा आसाढ़ महीना के चित्रण अउ छानी टपरे के एक बानगी देखव*

ओगरम गय हे करियेच करिया पल्हरा हे बउछाए।
खुमरी ओढ़े चढ़ गए डोकरा छानी म कउवाए।।
तरिया भर-भर पानी भर गय मेड़ पार म पोहे,
गगन-मगन हो हांसय नरवा-नरवा ल मोहे,
खेत-खार सब कुलकय नदिया सन्नाए बउराए।
खुमरी ओढ़े चढ़ गए डोकरा छानी म कउवाए।।

*सीताराम शर्मा जी नवा राज पाय जे बाद गाँव गँवई मा घलो नवा बिहान के आरो लेवत, जैविक खातू बनाये बर प्रेरित करत कहिथें कहिथें*

हम अपन गांव ल स्वर्ग बनाबो।
सुत उठ धरती ल शीश नवाबो
बड़े बिहान ले कमाये बर जाबो
कचरा घुरवा सबै ल जोरिके
गहिरा डबरा गांव बाहिर म खनिके
गोबर खाद बनाबो, अपन गांव ल स्वर्ग बनाबो।।

*छत्तीसगढ़ राज मा सुमता के आरो लेवत
सुखनवर हुसैन ' रायपुरी ' जी लिखथें*-

आंखी मिचका के मनखे ह मुंह फेरथे,
कोनो बछ्छर त ओ गोठ सुनही हमर।
हल चलाबो पछीना बहाबो अपन,
देखहू खेत सोनहा उगलही हमर।
ए हमर राज हे छत्तीसगढ़ राज हे,
सच कहंव अब इहां मान होही हमर।

*गीतकार,व्यंग्यकार रामेश्वर वैष्णव जी अपन अंदाज मा शब्द संजोवत कहिथें*

असली बात बतांव गिंया।
घाम मं होथे छांव गिंया।।
लबरा जबड़ गियानी हे,
मैंहर नइ पतियांव गिंया।
दुनिया मं मोर नांव हवय,
न इ जानय मोर गांव गिंया।
हें उकील उठलंगरा मन,
कैसे होय नियाव गिंया।
टेड़गामन सब झझकत हें
सिधवा मोर सुभाव गिंया।
पीठ पिछू गारी देथंय, 
आगू परतें पांव गिंया।
कांव कांव मांचे हावय,
अब मैं कइसे गांव गिंया।
मोला जिंहा बुलांय नहीं,
उंहा कभू नइ जांव गिंया।

*छ्न्दमय काव्य*
*आधुनिक काव्य काल मा नारी शक्ति*
सरलग

खैरझिटिया

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