Sunday 11 August 2013

माटी चंदन होगे....
























ये माटी चंदन होगे रे, हमर दुख भंजन होगे रे
सोन चिरइया.. भारत भुइयां, जग बंदन होगे रे....

राजा-परजा संग-संग रहिथें, गीत मया के गाथें
का छोटे अउ का बड़का ये, जम्मो भेद ल भुलाथें
दोगला मन के सबो चाल सिरागे, अब गठबंधन होगे रे....

ज्ञानी-ध्यानी, सत्-सत्संगी, ये धरती म आइन
ऋषि-मुनि अउ देवी-देवता, एकरेच गुन ल गाईन
जे-जे एकर चरन पखारिन, सब कंचन होगें रे.....

सावन-भादो घिड़कत आथे, कोरा ल हरियाथे
माघ-फागुन ह माथ म एकर, बसंती टिका लगाथे
जेठ-बइसाख के चिलकत भोंभरा, आंखी के अंजन होगे रे...

चलौ हमूं मन सेवा बजाइन, ये माटी महतारी के
अन-धन के भंडार बढ़ाइन, सुघ्घर राजदुलारी के
अउ कतेक पिछवाए रहिबो, गजब मंझन होगे रे...
                                         सुशील भोले
                                    41/191, डा.बघेल गली,
                                संजय नगर(टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
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