Saturday 30 April 2022

वो बोरे-बासी के दिन... सुरता

सुरता//
वो बोरे-बासी के दिन..
    छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डाॅ. खूबचंद बघेल जी के एक मयारुक कविता के आज सुरता आवत हे-
  बासी के गुण कहुँ कहाँ तक,
  इसे न टालो हाॅंसी में.
  गजब बिटामन भरे हुये हैं,
  छत्तीसगढ़ के बासी में..
    पहिली उंकर ए कविता ल हमन अपन लइकई बुद्धि म परंपरा के संरक्षण-संवर्धन खातिर लिखे गे मयारुक रचना होही समझत रेहेन. वइसे खाए बर पहिली घलो बासी ल ससन भर आवन अउ आजो खाथन, फेर वोकर पौष्टिक महत्व ल समझत नइ राहन. हाँ, डोकरी दाई अतका जरूर काहय- बासी के पसिया ल घलो पीना चाही, एकर ले चूंदी बने जल्दी-जल्दी बाढ़थे अउ घन होथे. फेर अब जब ले वैज्ञानिक मन बासी उप्पर शोध कारज करिन हें अउ बताइन हें, के बासी खाए ले ब्लडप्रेशर ह कंट्रोल म रहिथे, गरमी के दिन म बासी खाए ले लू घलो नइ लगय, एकर ले हाइपर टेंशन घलो कंट्रोल म रहिथे. गरमी के दिन म बुता करइया मन के  देंह-पाॅंव के तापमान ल घलो बने-बने राखथे. संग म पाचुक होए के सेती हमर पाचन तंत्र ल घलो बरोबर बनाए रखथे. जब ले ए वैज्ञानिक शोध ल जानेन तबले अपन पुरखा मन के वैज्ञानिक सोच अउ अपन परंपरा ऊपर गरब होए लागिस.
    आज अचानक ए सब बात मनके सुरता एकर सेती आवत हे, काबर ते हमर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ह 1 मई 2022 ले श्रमिक दिवस के अवसर म श्रमिक मनके श्रम ल सम्मान दे खातिर ए दिन जम्मो छत्तीसगढ़िया मनला बोरे-बासी खाए खातिर आव्हान करे हे. बोरे-बासी के महत्व ल जन-जन म बगराए अउ एला अपन पारंपरिक गरब के रूप म जनवाए खातिर 'बोरे-बासी' डे के रूप म मनाए के अरजी करे हे.
    ए तो बने बात आय, काबर ते हम आधुनिकता अउ शहरी जीवन शैली के नांव म अपन कतकों परंपरा अउ खान-पान मनला भुलावत जावथ हन. अउ वोकर बदला म पौष्टिक विहीन खान-पान अउ परंपरा म बोजावत जावत हन. एकर बर जरूरी हे, हमर तइहा के परंपरा अउ वोकर महत्व ल नवा पीढ़ी ल बताए अउ वोकर संग जुड़े खातिर कोनो न कोनो उदिम होवत रहना चाही.
    वइसे हमर संस्कृति म 'बासी' खाए के एक रिवाज तइहा बेरा ले हे. भादो के महीना म 'तीजा' परब म जब बेटी-माई मन अपन-अपन मइके आए रहिथें, तब उपास रहे के पहिली दिन करू भात खाये के नेवता दिए जाथे अउ तीजा के बिहान दिन बासी खाये के नेवता देथें. फेर ए नेंग ह सिरिफ तीजहारिन मन खातिर ही होथे. आज बासी के महत्व ल समझे के बाद मोला अइसे लागथे, के अभी जेन 'बोरे-बासी' डे मनाए के बात सरकार डहार ले होए हे, वोला 'बासी उत्सव' के रूप म मनाए जाना चाही. जइसे आने उत्सव के बेरा जगा-जगा म वो उत्सव ले संबंधित आयोजन करे जाथे, ठउका वइसनेच जगा-जगा बासी पार्टी या बासी खवाये के भंडारा आयोजन करे जाना चाही.
    अब तो बासी खवई ह सिरिफ परंपरा या रोज के पेट भरई वाले भोजन ले आगू बढ़के सेहत अउ रुतबा के घलो प्रतीक बनत जावत हे, तभे तो फाइवस्टार होटल मन म घलो एला बड़ा शान के साथ उहाँ के  मेनू म शामिल करे जाथे, अउ लोगन वतकेच शान ले एला मंगा के खाथें घलो.
     वइसे तो हमर घर म आज घलो बारों महीना बासी के उपयोग होवत रहिथे. तभो मोला अपन लइकई के वो दिन के सुरता जरूर आथे, जब हमन मही डारे बिना बासी ल छुवत घलो नइ राहन. तब डोकरी दाई के सियानी राहय. गाँव घर म तो रोज दही-मही के व्यवस्था घलो हो जावय, फेर जब ले शहर के हवा म सांस लेवत हन, तब ले दही-मही संग बासी खवई ह अतरगे हे. बस सादा-सरबदा ही चलथे.
    आज मोला अपन लिखे कविता के चार डांड़ के जबर सुरता आवत हे-
  दिन आवत हे गरमी के, नंगत झड़क ले बासी
  दही-मही के बोरे होवय, चाहे होवय तियासी
  तन तो जुड़ लागबेच करही, मन घलो रही टन्नक
  काम-बुता म चेत रइही, नइ लागय कभू उदासी
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 28 April 2022

गजब बिटामन भरे हे बासी म..

गजब बिटामन भरे हे छत्तीसगढ़ के बासी म...
    छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डाॅ. खूबचंद बघेल जी के एक मयारुक कविता हे-
  बासी के गुण कहुँ कहाँ तक,
  इसे न टालो हाॅंसी में.
  गजब बिटामन भरे हुये हैं,
  छत्तीसगढ़ के बासी में..
    पहिली उंकर ए कविता ल हमन अपन परंपरा के संरक्षण-संवर्धन खातिर लिखे गे मयारुक रचना समझत रेहेन. फेर जब ले वैज्ञानिक मन बासी उप्पर शोध कारज करिन हें अउ बताइन हें, के बासी खाए ले ब्लडप्रेशर ह कंट्रोल म रहिथे, गरमी के दिन म बासी खाए ले लू घलो नइ लगय, एकर ले हाइपर टेंशन घलो कंट्रोल म रहिथे. गरमी के दिन म बुता करइया मन के  देंह-पाॅंव के तापमान ल घलो बने-बने राखथे. संग म पाचुक होए के सेती हमर पाचन तंत्र ल घलो बरोबर बनाए रखथे. जब ले ए वैज्ञानिक शोध ल जानेन तबले अपन पुरखा मन के वैज्ञानिक सोच अउ अपन परंपरा ऊपर गरब होए लागिस.
    आज अचानक ए बात के सुरता ए सेती आवत हे, काबर ते हमर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ह अब ले 1 मई श्रमिक दिवस ल बोरे-बासी के महत्व ल जन-जन म बगराए अउ एला अपन पारंपरिक गरब के रूप म जनवाए खातिर 'बोरे-बासी' डे के रूप म मनाए के अरजी करे हे.
    वइसे हमर संस्कृति म 'बासी' खाए के एक रिवाज हे. भादो महीना के तीजा परब म जब बेटी-माई मन अपन-अपन मइके आए रहिथें, तब उपास रहे के पहिली दिन करू भात खाये के नेवता दिए जाथे अउ तीजा के बिहान दिन बासी खाये के नेवता देथें. फेर ए नेंग ह सिरिफ तीजहारिन मन खातिर ही होथे. आज बासी के महत्व ल समझे के बाद मोला अइसे लागथे, के अभी जेन 'बोरे-बासी' डे मनाए के बात सरकार डहार ले होवत हे, वोला 'बासी उत्सव' के रूप म मनाए जाना चाही. जइसे आने उत्सव के बेरा जगा-जगा वो उत्सव ले संबंधित आयोजन करे जाथे, ठउका वइसनेच जगा-जगा बासी पार्टी या बासी खवाये के भंडारा आयोजन करे जाना चाही.
    अब तो बासी खवई ह सिरिफ परंपरा या रोज के भोजन ले आगू बढ़के सेहत अउ रुतबा के घलो प्रतीक बनत जावत हे, तभे तो फाइवस्टार होटल मन म घलो एला बड़ा शान के साथ उहाँ के  मेनू म शामिल करे जाथे, अउ लोगन वतकेच शान ले एला मंगा के खाथें घलो.
मोला अपन चार डांड़ के सुरता आवत हे-
  दिन आगे हे गरमी के, नंगत झड़क लव बासी
  दही-मही के बोरे होवय, चाहे होवय तियासी
  तन तो जुड़ लागबेच करही, मन घलो रही टन्नक
  काम-बुता म चेत रइही, नइ लागय कभू उदासी
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Tuesday 26 April 2022

महतारी के सपना अउ साधना अंजोर

सुरता//
महतारी के सपना अउ साधना काल के 'अंजोर'..
    दुनिया म अइसन कोनो मनखे नइ होही, जेला कभू सपना नइ आय होही या वो ह सपना नइ देखे होही. ए बात अलग हे, के हम वो देखे सपना के माध्यम ले भविष्य के गरभ के बारे म आरो देवत इशारा ल समझ नइ पावन या वोला कुछू अलगेच रूप म समझ जाथन. कतकों लोगन तो एला हॉंसी-ठट्ठा म घलो उड़ा देथें. फेर जे मन अइसन सपना ऊपर गहन चिंतन-मनन अउ शोध कारज करे हें, उन एला भविष्य के आरो के रूप देखथें. एकर अलग-अलग बेरा अउ अलग-अलग दृश्य के अलग-अलग व्याख्या घलो करथें.
    अइसने एक सपना जेन हमर महतारी उर्मिला देवी जी देखे रहिन हें, वो ह मोला तब समझ आइस, जब मैं अपन जिनगी के लगभग आधा उमर ल पहा डारे रेहेंव. मोर जनम के समय के बारे म हमर महतारी ह हमेशा ए बतावय- 'तैं जब मोर कोंख म आएस त सांप बनके आएस.
    ए बात ल हमर परिवार वाले मन के संगे-संग अउ सबो तीर-तखार के जानकर मन घलो बतावंय. उन बतावंय- हमर घर हमर बड़े भाई के जनम के बाद अउ कोनो लइका नइ होवत रिहिसे. तेकर सेती परिवार के मन भारी पूजा-पाठ, उपास-धास अउ तिरथ-बरत करंय. आखिर सात-आठ साल के अंतराल म मोला गरभ म आएस काहंय. हमर महतारी बतावय- जब तैं मोर गरभ म आएस, त सांप बनके आएस अउ मोला कहेस- 'बेटी मोला अबड़ भूख लागत हे, कुछू खाए बर दे. अब मैं तोरे घर म रइहौं. बस अइसे कहेस अउ फेर सांप ले एक ज्योति के रूप म बदल के मोर पेट म समा गेस.'
    बिहनिया जब उठ के ए सपना के बारे म आस-परोस के मनला बताएंव, त वोमन हमर घरेच जगा एकठन भिंभोरा रिहिसे, तेमा दूध अउ लाई चढ़ाए बर कहिन. मैं सबो झन के बात ल मान के वो भिंभोरा म कटोरी भर दूध अउ दोना म लाई चढ़ाएंव. देखतेच देखते वो भिंभोरा ले एक ठन सांप निकलिस अउ हम सबके आगूच म वो दूध अउ लाई ल कूद-कूद के खाए लागिस. खाए के बाद फेर भिंभोरा म खुसरगे.
    हमर महतारी काहय- 'ए घटना अउ सपना के सेती मैं तोला हमेशा अपन ददा (हमर नाना) ह मोर घर आए हे काहंव'. वो बतावय के हमर नाना जी अपन बेरा के नामी जादूगर रिहिन हें. वो अपन छोटे भाई संग जादू के कार्यक्रम देखाए बर दुरिहा-दुरिहा तक जावंय. अइसने एक कार्यक्रम देखावत बेरा उनला उंकरेच पोंसे एक सांप ह चाब दिए रिहिसे, तेकर सेती उंकर निधन होगे रिहिसे.
    ए घटना ल सुरता करत हमर महतारी मोला भारी मया करय. एक तो अपन ददा ल अपन घर लहुट के आगे हे सोचय, ऊपर ले आठ बछर के अंतराल म घर म लइका होए के खुशी. हमर महतारी के संगे-संग पूरा परिवार अउ आस-परोस सबके अबड़ दुलार मिलय. वो बतावय- तैं अबड़ उतलइन घलो रेहे. तोर जंवरिहा जतका लइका राहंय, सबला मार देवस, ढपेल के गिरा देवस नइते कटकटा के उंकर हाथ-गोड़ ल चाब देवस. तेकर सेती उंकर महतारी मन तोर अबड़ शिकायत घलो करे बर आवंय- 'देख ले मास्टरिन तोर लइका ह मोर लइका ल चाब दिस कहिके.'
    तभो हमर महतारी ह मोला कभू मारत-पीटत नइ रिहिसे. एक तो अपन ददा आय समझय अउ ऊपर ले आठ साल बाद होए हे कहिके सोग मरय. वो ह माईलोगिन मनला लेवौ न वो लइका-लइका के खेल म हो जथे कहिके मना लेवत रिहिसे.
    हमर महतारी ह अपन जिनगी के अंतिम बेरा तक ए बात ल बतावय अउ मोला अपन ददा च आय समझ के मया करय. फेर मोला ए सपना वाले बात के असलियत के तब जानकारी होइस, जब मैं साधना म आएंव अउ मोला वोकर माध्यम ले 'ज्ञान-अंजोर' मिले लागिस. तब समझ पाएंव के वो सपना असल म का रिहिसे?
बस वोकर बारे म अतके- जय भोले.. ऊँ नमः शिवाय 🙏
(संलग्न फोटो म अपन महतारी संग मैं सुशील)
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 21 April 2022

कलावंत दाऊ महासिंह चंद्राकर

28 अगस्त पुण्यतिथि म सुरता//
सोनहा बिहान के सपना ल जीवंत करइया कलावंत दाऊ महासिंह चंद्राकर
    हमर इहाँ जब कभू  छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच के सोनहा बेरा के सुरता करे जाही, त सन् 1970 अउ 80 के दशक ल हमेशा गौरव काल के रूप म चिन्हारी करे जाही. 'चंदैनी गोंदा' अउ 'कारी' के माध्यम ले जिहां दाऊ रामचंद्र देशमुख जी एकर नेंव रचे के बुता करिन, उहें दाऊ महासिंह चंद्राकर जी 'सोनहा बिहान' अउ 'लोरिक चंदा' के माध्यम ले वो नेंव म जबर महल-अटारी बनाए के कारज ल सिध पारिन. मैं इन दूनों पुरखा ल गंगा-यमुना के पवित्र संगम बरोबर इहाँ के सांस्कृतिक मंच ल उज्जर-निरमल करइया के रूप म देखथौं. एक बेर मैं उनला ए बात ल कहे घलो रेहेंव. मोर भेंट इंकर मन संग पहिली बेर तब होए रिहिसे, जब छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन खातिर पहुना के रूप म बलाए बर दूनों झन के सहमति लेना रिहिसे.
    बात सन् 1987 के नवंबर-दिसंबर महीना के आय. तब मोर सलाहकार रहे वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी के रद्दा बताय म दूनों पुरखा के इहाँ जाना होवत राहय. तब घंटो चर्चा घलो चलय. छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत, कला अउ साहित्य के संगे-संग छत्तीसगढ़ी समाज के दशा-दिशा ऊपर घलो गोठबात होवय. दूनों आरुग छत्तीसगढ़ी सांचा म ढले राहयं, तब मैं उनला काहवं- आप दूनों मोला गंगा-यमुना के संगम बरोबर जनाथव. दाऊ रामचंद्र देशमुख जी जिहां गंगा बरोबर तेज-तर्रार जनाथें, उहें दाऊ महासिंह चंद्राकर जी यमुना बरोबर धीर-गंभीर लागथें. उन दूनों मुस्कुरा देवत राहयं.
    वइसे मोर बइठकी तो दूनों संग होवय, फेर जादा गोठबात दाऊ महासिंह चंद्राकर जी संग जादा होवय. कतकों बखत तो उन अपन कोनों आदमी ल भेज के घलो मोला बलवा लेवत रिहिन हें. एक पइत तो 'लोरिक चंदा' के प्रदर्शन देखाय खातिर अपन संग बिलासपुर जिला के एक गाँव लेगे रिहिन हें, जिहां वरिष्ठ साहित्यकार श्यामलाल चतुर्वेदी जी के सम्मान करे रिहिन हें. उंकर मनके ए बुता मोला गजब सुग्घर लागय. वो मन अपन हर मंच म कोनो न कोनो साहित्यकार के सम्मान जरूर करयं, तेकर पाछू फेर कार्यक्रम के प्रस्तुति देवयं.
    दाऊ रामदयाल चंद्राकर के सुपुत्र के रूप म गाँव आमदी म 19 मार्च 1919 के जनमे दाऊ महासिंह चंद्राकर के जुड़ाव कला डहार बचपन ले रिहिसे. उंकर प्राथमिक शिक्षा तो आमदीच म होइस. आगू के पढ़ई खातिर दुरुग भेजे गइस. उहाँ के स्कूल म उंकर पढ़ाई होए लागिस, फेर उंकर चेत कला डहार जादा जावय. अपन संगी मन संग रात-रात भर जाग के नाचा-गम्मत देख देवयं. लेद-बरेद छठवीं कक्षा पास करिन अउ पढ़ेच बर छोड़ दिन. सियान मन घलो थक-हार के वोला कुछु बोले बर छोड़ दिन.
    पढ़ई छोड़े के बाद तो महासिंह जी पूरा के पूरा कला खासकर के लोककला के विकास खातिर समर्पित होगें. कलागुरु मनके संगति करना अउ लोककला ल उजराना, नवा-नवा कलाकार मनला मांजना उनमा निखार लाना इही सब उंकर मिशन बनगे राहय. वोमन खुद सरवन केंवट ले तबला अउ बालकृष्ण ले हारमोनियम बजाए बर सीख लेइन. जब 40 बछर के रिहिन तब पं. जगन्नाथ भट्ट के मार्गदर्शन म तबला म शास्त्रीता के ज्ञान लेइन अउ फेर 1964 म प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद ले तबला म डिप्लोमा प्राप्त करिन.
    दाऊ जी हमेशा गुनिक कलाकार मनके सम्मान करयं. जब कभू कोनो बड़का कलाकार के छत्तीसगढ़ आना होवय, त उन दाऊ जी के पहुनई म जरूर राहयं. नवा कलाकार मनला तो अपन घरेच म राख के खवाना-पियाना, कपड़ा-लत्ता सबो के ब्यवस्था ल कर देवत रिहिन हें.
    वोमन बीसवीं सदी के 70 के दशक म एक नाचा पार्टी के गठन कर के पारंपरिक कला के संरक्षण के बुता के नेंव रखिन. इही दौरान उंकर भेंट छत्तीसगढ़ के यशस्वी साहित्यकार रहे डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा संग होइस. दूनों के गोठ-बात म फेर 'सोनहा बिहान' के सपना गढ़े गिस. जे हा 7 मार्च 1974 के ग्राम ओटेबंद म पहला प्रदर्शन के रूप म साकार होइस. ए लोकनाट्य ह डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा के उपन्यास 'सुबह की तलाश' ऊपर आधारित रिहिस. इही म आज छत्तीसगढ़ राज के 'राजगीत' बन चुके गीत 'अरपा पइरी के धार' के सिरजन अउ प्रस्तुति होइस. ए गीत ल सुनते लोगन भाव-विभोर होके सुने लागयं.
    डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा ल दाऊ महासिंह चंद्राकर जी 'नरेंद गुरुजी' काहयं. दाऊ जी संग मोर जब कभू भेंट होवय त उन डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा के संबंध म जरूर गोठियावयं, अउ काहयं- 'नरेंद तो मोर गुरु, सलाहकार अउ बोली-भाखा सब रिहिसे. वो ह जब ले ए दुनिया ले गये हे, तब ले मैं कोंदा-लेड़गा बरोबर होगे हौं. न बने ढंग के कुछु बोल सकौं न बता सकौं.'
    दाऊ महासिंह चंद्राकर जी सोनहा बिहान के संगे-संग लोरिक चंदा अउ लोक रंजनी कार्यक्रम के माध्यम ले लगभग तीन दशक तक छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहारबिहार अउ ओडिशा आदि के जम्मो प्रमुख जगा मन म छत्तीसगढ़ी लोककला के झंडा लहराईन. एक पइत मोला एकर संबंध म कहे रिहिन हें- 'सुशील, मैं एक हाथ म सरस्वती अउ एक हाथ म लक्ष्मी ल लेके चलथौं, तब जाके अतका बड़ बुता ल कर पाथौं.'
    जिनगी के आखिरी बेर तक उन शारीरिक रूप ले चुस्त दुरूस्त रिहिन. 28 अगस्त 1997 के उन न ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले लेइन. आज बिदागरी तिथि के बेरा म उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी... सादर जोहार...
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Monday 18 April 2022

बुढ़ादेव के माध्यम मूल संस्कृति यात्रा

बुढ़ादेव के माध्यम ले मूल संस्कृति डहर लहुटे के यात्रा
    बीते सोमवार 18 अप्रैल 2022 ल छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक आन्दोलन के इतिहास म हमेशा सुरता रखे जाही जब पूरा छत्तीसगढ़ के गाँव-गाँव ले लाखों के संख्या म सकलाय सर्व छत्तीसगढ़िया समाज के सदस्य अपन मूल पुरखा देव बुढ़ादेव के यात्रा म संघरे खातिर जुरियाइन अउ एकरे संग छत्तीसगढ़ के जम्मो मूल संस्कृति, पूजा उपासना के विधि अउ जीवन पद्धति ल फिर से आत्मसात करे के संग एला दुनिया भर म बगराए के परन ठानिन.
    ए बात ल तो अब सबो जान-समझ डारे हें, के इहाँ राष्ट्रीयता अउ हिन्दुत्व के नांव म बाहरी संस्कृति अउ महापुरुष मनला खपले के कारज ह भारी चलत रहे हे. एकर दुष्परिणाम ह अब जगजग ले चारोंमुड़ा दिखे बर धर लिए हे. एकरे सेती आज हमर नवा पीढ़ी के लइका मन दूसर प्रदेश के संस्कृति, गौरव अउ महापुरुष मन के बारे म जतका जानथें-समझथें वतका अपन खुद के घर छत्तीसगढ़ के बारे म नइ जानंय. काबर ते इहाँ षडयंत्र पूर्वक स्कूली पढ़ाई ल घलो अइसने करवाए गे हे.
     आज मोला वो जुन्ना दिन के सुरता आवत हे, जब संत कवि पवन दीवान जी ह वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. परदेशी राम जी वर्मा के संग  मिल के 'माता कौशल्या गौरव अभियान' के मैदानी अभियान चालू करे रिहिन हें, तब एक बात ल उन हर मंच म कहंय- "बंगाल के मन अपन देवी-देवता धर के आइन, हम उंकरो पांव परेन, उत्तर प्रदेश बिहार के मन अपन देवी-देवता ल धर के आइन, हम उंकरो पांव परेन, गुजरात अउ  पंजाब के मन अपन देवी-देवता धर के आइन, हम उंकरो पांव परेन, ओडिशा अउ आंध्र के मन अपन देवता धर के आइन हम उंकरो पांव परेन. बस चारों मुड़ा के देवी-देवता मन के पांव परइ चलत हे। त मैं पूछथंव- अरे ददा हो, बस हम दूसरेच मन के देवी-देवता मन के पांव परत रहिबोन, त अपन देवी-देवता मन के पांव कब परबोन? एदे देख लेवौ उंकर मनके देवता के पांव परई म हमर माथा खियागे हे, अउ ए परदेशिया मन एकरे नांव म इहाँ के जम्मो शासन-प्रशासन म छागे हें."
     ए बात ह सोला आना सिरतोन आय अउ वोकर ले जादा अब एकर खातिर मैदानी रूप म भीड़े के हे. का हमूं मन अपन इहाँ के मूल देवी-देवता मन के पूजा के प्रचार-प्रसार ल दुनिया भर नइ बगराइन, तेमा दुनिया के लोगन, हमर इहाँ के पारंपरिक देवी-देवता, हमर पूजा विधि, हमर जीवन पद्धति ल जानंय अउ अपनावंय?
     हमन "आदि धर्म जागृति संस्थान" के नांव ले ये उदिम चलाए के जोखा मढ़ाए हावन, अउ अपन सख भर जनजागरण के बुता करत रहिथन, तेनो ह असल म अपन मूल देवी-देवता मन के पांव परे के उदिम आय। त आवव, आप सब जम्मो झन मिल के हमर अपन इहाँ के  पारंपरिक देवी-देवता के, हमर अपन जुन्ना पूजा अउ उपासना विधि ले पांव परन, उंकर अलख जगावन, हमर अपन भाखा- संस्कृति के, हमर इतिहास अउ गौरव के, हमर सम्पूर्ण अस्मिता के सोर ल पूरा दुनिया म बगरावन। तभे 'बुढ़ादेव यात्रा' जइसन आयोजन ह सही मायने म सफल हो पाही.
जय छत्तीसगढ़... जोहार छत्तीसगढ़..
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Sunday 17 April 2022

आखर-अंजोर

आखर-अंजोर
ज्ञान के धनहा ले बिने हौं निच्चट सिला कस आखर-अंजोर
छांट-निमार के घस-घस पखरा म जांच लेवौ हे कतेक सजोर
जिनगी सिरतो उज्जर हो जाही जे धरही एला अंतस-ढाबा म
कभू कोनो बेंझिया नइ पाही चाहे कतकों उदिम करय झकझोर

ज्ञानी मनखे होथे वो जे नवा रद्दा खुद बनाथे
विद्वान कहाथे वो जे दूसर के दर्शन बगराथे
एक सर्जक एक प्रवक्ता के बुता उन दूनों करथें
इही आय भेद दूनों के जेला गुनिक मन टमड़थें

सरहा-गलहा परंपरा ल अब तो छोड़ देवौ
अंधश्रद्धा के रद्दा ले अब तो  मुंह मोड़ लेवौ
कब तक पूजत रइहौ, बिना मुंह के जीव ल
हर जीव म शिव होथे जिनगी उहू ल दे देवौ

धरम के सांचा म लोगन ल बनाए जावत हे कर्महीन
एकरे सेती समाज के चेहरा आज दिखत हे दीनहीन
जब कतकों पाप के बोझा कहूं दरस करे म उतर जाही
तब त्याग-सद्कर्म के रद्दा कोनो ल जी काबर भाही

सबले ऊंचा अउ पबरित हे आत्म ज्ञान के ठउर
एकरे सेती कहिथें गुनिक मन, एला मुकुट-मउर
तब काबर भटकत हावस तैं पोथी-पतरा के रद्दा म
का जिनगी भर सटके रहिबे कोरा कल्पना के गड्ढा म

तर्क-वितर्क अउ भाषणबाजी ले नइ हो जाय कोनो ज्ञानी
चटर-पटर लपराही गोठ ल हम साधना कइसे मानी
जे भटकथे अइसन के पाछू उनला अज्ञानी सिरतो जान
बिना तप-साधना के बिरथा होथे कतकोंच कागजी ज्ञान

कहूं नहाले नंदिया-नरवा या तीरथ कोनो धाम
माथ म घंस ले चंदन-बंदन नइ चमकय रे चाम
छोड़ देखावा रंगे कपड़ा के बस कर्म योग अपनाले
इही रद्दा ले मिलथे मुक्ति अउ शिव बाबा के धाम

जांच-टमड़ ले बने बइहा, का हावय करू-कस्सा
ठोस ज्ञान के मारग ते आय सिरिफ जी किस्सा
झन पाछू पछताना परय, ये बात ल बने गुन ले
नइते बन जाबे तहूं बस भेंड़िया धसान के हिस्सा

आँखी उघार के मानौ धरम संस्कृति अउ परंपरा
नइ ठगाहू फेर कभू तुमन तो जी कहूं ककरो करा
आज तो बाबा-बैरागी बनके किंजरत हावंय चोर
जेमन रहिथे करम म बिल्कुल निच्चट शंख-ढपोर

जइसे-जइसे उमर बाढ़थे कर्म घलो ल बढ़ना चाही
छोड़ लइकई के खेल-कूद आदर्श नवा गढ़ना चाही
इही मानक ये बड़े होय के सरलग एला चढ़ना चाही
कथा-कहानी-पोथी छोड़त आरुग ज्ञान अमरना चाही

रुक्खा-सुक्खा अउ करू होथे सत् ज्ञान के बानी
लगथे अइसे जस कोनो पिया दिस महुरा-पानी
रोग-राई ल फेर जइसे जड़ ले मिटाथे करू-दवाई
ठउका अइसनेच अज्ञान मिटाथे इहू ज्ञान-दवाई
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

नगरमाता बिन्नी बाई सोनकर

20 अगस्त पुण्यतिथि म सुरता//
त्याग अउ करुणा के देवी रहिन नगरमाता बिन्नी बाई सोनकर
    "मैं नून चटनी म बासी खाके जी लेहूं फेर कोनो किसम के सरकारी सहायता नइ झोंकव" ए कहना रिहिस रायपुर नगर निगम द्वारा नगरमाता के उपाधि ले सम्मानित बिन्नी बाई सोनकर के.
    आज के बेरा म जब लोगन अपन अंगरी के नख ल कटा के शहीद होए के या कुछ एती-तेती के उदिम कर के समाजसेवी अउ दानदाता होए के देखावा करत सरकारी पद अउ पइसा झोंके बर लुलुवालत रहिथें, अइसन बेरा म हमन बिन्नी बाई सोनकर सहीं वइसनो देवी के साक्षात दर्शन करे हावन, जेन ह अपन पैतृक खेती-खार के संगे-संग साग-भाजी बेच-बेच के अपन जिनगी भर के सकेले पइसा ल लोककल्याण के कारज सेती दान कर दिए रिहिसे अउ जब सरकार ह बदला म उंकर बुढ़ापा ल देखत मासिक पेंशन दे खातिर घोषणा करिस त वो सोज्झे कहि दिस- "मैं नून चटनी म बासी खाके जी लेहूं फेर सरकार के कोनो किसम के सहयोग नइ झोंकौं."
     रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित सोनकर पारा म घुटरू सोनकर अउ महतारी रामबाई के घर सन् 1927 म जनमे बिन्नी बाई सोनकर ल हमन छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के सदस्य रहे रामबिशाल सोनकर के माध्यम ले जानेन. तब हमू मन साहित्य समिति के सदस्य रेहेन, अउ हर इतवार के टिल्लू चौक के देवबती सोनकर धरमशाला म होवइया कवि गोष्ठी म जावत रेहेन. रामबिशाल जी बिन्नी बाई के भतीजा रिहिस, जेकर संग जा-जा के ही बिन्नी बाई ह जम्मो किसम के दान-धरम अउ सामाजिक कारज ल करय.  रामबिशाल जी हमन ल बिन्नी बाई के समाजसेवा अउ दानशीलता के बारे म बतावंय तब हमूं मन बिन्नी बाई के घर उंकर संग भेंट करे बर चल देवत रेहेन.
    ए बात ल तो सबो जानथें, के तइहा के बेरा म सियान मन पढ़ई-लिखई ल जादा महत्व नइ देवत रिहिन हें. तेमा नोनी मनला पढ़ाए के तो चेते नइ करत रिहिन हें. एकर ले जादा उंकर मन जगा रंधना-गढ़ना अउ खेती-किसानी के बुता जादा करवाए जाय. बिन्नी बाई ल घलो स्कूल के बदला रंधनी खोली अउ पैतृक धंधा बारी-बखरी म भेज दिए गिस. संग म बारी के साग-भाजी टोरई अउ बजार लेग के बेचई म लगा दिए गिस.
    उमर के बाढ़ते उंकर बिहाव ल भांठागांव के आंधू सोनकर संग कर दिए गिस. बिहाव के दू बछर के होवत  उन एक नोनी के महतारी घलो बनगें, जेकर नांव धरिन फागन. तभो बिन्नी बाई ल ससुरार के जइसन सुख मिलना रिहिस, तइसन नइ मिलिस. उंकर जांवर-जोड़ी के संगति ह बने नइ रिहिस, तेकर सेती वो पियई-खवई अउ जुआ-चित्ती के चिभिक म बुड़गे राहय.
    ए बीच बेटी फागन ह बर-बिहाव के लाइक होगे, त फेर वोकरो बिहाव ल रायपुरे के रामकुंड म बसंत सोनकर संग कर दिस. एकर खातिर बिन्नी बाई ल अपन महतारी-ददा के सहयोग लेना परिस.
    बेटी के बिदा करे के बाद तो बिन्नी बाई के जिनगी अउ जादा पीरा म समागे, त थक-हार के वोहा अपन ससुरार ल छोड़ के अपन मइके आगे, अउ इहें अपन पुरखौती रोजगार म हाथ बटाए लागिस. रोज पुरानी बस्ती ले  रामकुंड के बारी रेंगत जावय. उहाँ कुआँ म टेड़-टेड़ के साग-भाजी के कियारी मन म पानी पलोवय अउ टोरे के लाइक साग-भाजी ल टोर के बजार लेगय अउ अपन सियान के पसरा म बइठ के उनला बेंचय. जब जमो बेचा जावय त रतिहा 8-9  के बजत घर लहुट आवय.
    कुछ दिन बाद उंकर महतारी सियान दूनों वोला छोड़ के ये दुनिया ले बिरादरी ले लेइन. तब बिन्नी बाई निच्चट अकेल्ला रहिगे. काबर ते वोकर बेटी घलो अपन घर-परिवार म रमगे राहय, वो अपन दाई-ददा के कभू सोर नइ लेवत राहय.
    दाई-ददा के सरग सिधारे के बाद बिन्नी बाई के जिनगी  भइगे मशीन बरोबर होगे राहय, सूत के उठे ले लेके रतिहा सोवा के परत ले बस काम काम अउ काम. इही बीच वोकर मन म भाव जागिस- आखिर ए सब मैं काकर बर करत हौं? आखिर अतका पइसा ल मैं का करहूं? नता-गोता मन तो मोर ए पइसा खातिर लड़ई-झगरा  मता डारहीं. तेकर ले कुछ अइसे करे जाय जेकर ले गरीब गुरबा मन के मदद हो जाय, मैं उंकर सहारा बन जावंव.
    तब उन अपन जम्मो धन-दोगानी ल जनकल्याण के कारज म लगाए के गुनिस. सबले पहिली वो ह अपन घरे जगा के लोहार चौक म शिव मंदिर बनवाइस. अपन खुद तो पढ़-लिख नइ पाए रिहिसे, तेकर पीरा जानत 1987-88 म अपन कुशालपुर रिंग रोड के जमीन ल बेच के रामकुंड म एक प्रायमरी स्कूल खोलवाइस. ए स्कूल ल अभी बिन्नी बाई सोनकर के नांव ले ही जाने जाथे.
    सन् 1993 म जब उन इलाज खातिर इहाँ के बड़े अस्पताल पं. जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल हास्पिटल म भर्ती रिहिस, त देखिस के उहाँ इलाज करवाए बर दुरिहा-दुरिहा के लोगन आथें. फेर उंकर रूके-ठहरे खातिर उहाँ कुछुच नइए, खाए-पीए बर बने गतर के जगा नइए. ए सबला देख के उंकर मन म पीरा जागिस अउ वो उहाँ धरमशाला बनवाए के गुनिस. एकर खातिर उन अपन जिनगी भर म साग-भाजी बेंच-बेंच के जोड़े 10 लाख रुपिया ल सरकार ल दे दिए रिहिसे, वतका म धरमशाला के कारज पूरा नइ हो पाइस त बाद म पांच लाख अउ दिए रिहिन हें. जेकर ले बने धरमशाला के 1997 म बिन्नी बाई के नांव ले ही उहाँ उद्घाटन होइस. तब के मुख्यमंत्री ह वो धरमशाला के उद्घाटन करत बिन्नी बाई ल हर महीना एक हजार रुपिया पेंशन दे के घोषणा करे रिहिसे, जेला बिन्नी बाई ह 'मैं नून चटनी म बासी खा लेहूं फेर सरकार के कोनो सहायता ल नइ झोंकंव' कहे रिहिसे.
     बिन्नी बाई सोनकर के अइसने जनकल्याण के कारज मनला देखत रायपुर नगर निगम डहार ले 1998 म उनला "नगरमाता" के  उपाधि ले सम्मानित करे गे रिहिसे. छत्तीसगढ़ शासन के समाजसेवा के क्षेत्र म दिए जाने वाला प्रतिष्ठित पुरस्कार 'मिनी माता सम्मान' ले घलो बिन्नी बाई सोनकर ल सम्मानित करे गे रिहिसे. 20 अगस्त 2004 के ए दया अउ करुणा के देवी ह अपन नश्वर देंह ल छोड़ के परमधाम के रद्दा धर लिए रिहिसे.
    इहाँ ए जानना जरूरी हे, तब अभी के डाॅ. अंबेडकर अस्पताल के तब नांव नइ धरा पाए रिहिसे, तब हमन वो अस्पताल के नांव ल बिन्नी बाई के नांव म करे खातिर मांग करे रेहेन. फेर इहाँ राष्ट्रीयता के नांव म क्षेत्रीय उपेक्षा के जेन खेल चलत हे, तेन ह पहिली घलो चारों मुड़ा दिखय. आखिर हमर समिति के प्रयास ले भांठागांव के हाई स्कूल के नांव ल " नगरमाता बिन्नी बाई सोनकर शा. उ. मा. विद्यालय " करे गिस. मैं बिन्नी बाई ले बहुतेच प्रभावित रेहेंव, तेकर सेती उंकरे संदर्भ म कुछ कल्पना के सहारा लेवत एक कहानी घलो लिखे रेहेंव- 'धरमिन दाई' ए कहानी ह मोर संकलन 'ढेंकी' म संकलित हे.
    आज बिदागरी तिथि के बेरा म उंकर सुरता ल पैलगी जोहार...
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811