Tuesday 28 December 2021

भारत में नववर्ष..

भारत में कई बार मनाया जाता है नववर्ष..

    भारत एक ऐसा देश है, जहां अलग-अलग जगह पर अलग-अलग समय में अपनी संस्कृति और परंपराओं के साथ नए साल का उत्सव मनाया जाता है. यहाँ केवल 1 जनवरी को ही नहीं बल्कि कई अलग-अलग समय पर नववर्ष का जश्न मनाया जाता है.

   लगभग पूरी दुनिया में 1 जनवरी को नया साल के तौर पर मनाया जाता है, जो कि वास्तव में ईसाई धर्म का नया साल है. 1 जनवरी को नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई थी. इसकी तारीख ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार चलती है.

    चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है तो यहां हर क्षेत्र में नये साल का उत्सव कृषि आधारित होता है. हमारे छत्तीसगढ़ में वैसाख माह के शुक्ल पक्ष तृतीया को अक्ती पर्व के दिन कृषि का नववर्ष मनाया जाता है, इस दिन कृषि कार्य से जुड़े कामगारों की नई नियुक्ति करने के साथ ही अन्य श्रमजीवी वर्ग की भी, जिन्हें यहाँ की भाषा में पौनी-पसारी कहा जाता है, उनकी नियुक्ति की जाती है. यहाँ की मुख्य खरीफ फसल धान की बुवाई का कार्य भी इसी दिन से प्रारंभ किया जाता है, जिसे यहाँ मूठ धरना कहा जाता है.

   तो आइए जानते हैं भारत में कब, कहाँ और किस मौसम में नया साल मनाया जाता है...

नवसंवत्सर-
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नवसंवत्सर कहते हैं. फसल पकने का प्रारंभ, किसानों की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है. भारतीय कैलेंडर की गणना, सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है. माना जाता है कि विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले भारत में कैलेंडर अथवा पंचाग का चलन शुरू हुआ. इसके अलावा 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में 7 दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है.

उगाडी- तेलगू न्यू ईयर
यह नया साल कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है. तेलगू न्यू ईयर हिन्दी के चैत्र महीने और अंग्रेजी के मार्च-अप्रैल के बीच में पड़ता है.

गुड़ी पड़वा-
चैत्र महीने के पहले दिन यह त्योहार मनाया जाता है. मराठी और कोंकनी लोग इसे नए साल के रूप में मनाते हैं. इस दिन गुड़ी को घरों के द्वार पर लगाया जाता है.

बैसाखी- पंजाबी न्यू ईयर
बैसाखी 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है. मुख्य त्योहार खालसा के जन्म स्थान और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में मनाया जाता है. यह त्योहार अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड में भी लोग आयोजित करते हैं.

पुथंडु- तमिल न्यू ईयर
तमिल माह Chithirai के पहले दिन यानी अप्रैल के मध्य में तमिल न्यू ईयर मनाया जाता है. इस मौके पर लोग एक दूसरे को Puthandu Vazthukal बोलते हैं. कच्चा आम, गुड़ और नीम के फूलों से त्योहार का खास डिश तैयार किया जाता है.

बोहाग बिहू- असामी न्यू ईयर
बोहाग बिहू अप्रैल के मध्य में मनाया जाता है. यह असम का सबसे खास त्योहार है.

बंगाली नववर्ष-
बंगाली नववर्ष अप्रैल महीने के मध्य में मनाया जाता है.  बंगाल में इसे पोहला बोईशाख कहा जाता है. यह बैशाख महीने का पहला दिन होता है. पोहला का अर्थ है पहला और बोइशाख बंगाली कैलेंडर का पहला महीना है. बंगाली कैलेंडर हिन्दू वैदिक सौर मास पर आधारित है. पश्चिम बंगाल के अलावा त्रिपुरा के पहाड़ी इलाकों में भी पोहला बोईशाख मनाया जाता है.

गुजराती नववर्ष-
गुजराती नववर्ष को बेस्तु वर्ष कहा जाता है. यह दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है. मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में तेज बारिश को रोकने के लिए गोर्वधन पूजा की थी. गोर्वधन पूजा के दिन से गुजराती नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है.

विषु- मलयालम नववर्ष
विषु केरल में नववर्ष का दिन है. यह मलयालम महीने मेदम की पहली तिथि को मनाया जाता है. केरल में विषु उत्सव के दिन धान की बुआई का काम शुरू होता है. विषु पर्व के अहम पहलुओं में से एक है- 'विषुकनी' की रस्म, जो घर के सभी लोग निभाते हैं. इसमें घर के लोग सुबह सबसे पहले अपने ईष्ट देवी-देवता के दर्शन करते हैं.

नवरेह- कश्मीरी नववर्ष
कश्मीर में नवरेह नव चंद्रवर्ष के रूप में मनाया जाता है. यह चैत्र नवरात्र के पहले दिन मनाया जाता है. नवरेह का त्योहार कश्मीरी पंडित बड़े उत्साह से मनाते हैं. नवरेह की सुबह लोग सबसे पहले चावल से भरे पात्र को देखते हैं. इसे समृद्धशाली भविष्य का प्रतीक माना जाता है.

हिजरी-इस्लामिक नववर्ष
इस्लामिक वर्ष मुहर्रम के पहले दिन से शुरू होता है. हिजरी एक चंद्र कैलेंडर है. इस्लामिक धार्मिक त्योहार को मनाने के लिए हिजरी कैलेंडर का ही इस्तेमाल किया जाता है.

नया वर्ष हो नया हर्ष हो, नव प्रभात का नव उजियारा
कलुषित भेदभाव मिटे, हरो मनुज मन का अंधियारा
नव वर्ष की स्वर्ण रश्मियों से आल्हादित हो गगन-धरा
नई दृष्टि पाये जग सारा, स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

* सुशील भोले- 98269-92811
संजय नगर, रायपुर

भारत में नववर्ष..

भारत में 1 जनवरी नहीं, कई बार मनाया जाता है नववर्ष..

    भारत एक ऐसा देश है, जहां अलग-अलग जगह पर अलग-अलग समय में अपनी संस्कृति और परंपराओं के साथ नए साल का उत्सव मनाया जाता है. यहाँ केवल 1 जनवरी को ही नहीं बल्कि कई अलग-अलग समय पर नववर्ष का जश्न मनाया जाता है.

   लगभग पूरी दुनिया में 1 जनवरी को नया साल के तौर पर मनाया जाता है, जो कि वास्तव में ईसाई धर्म का नया साल है. 1 जनवरी को नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई थी. इसकी तारीख ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार चलती है.

जहां 1 जनवरी को दुनियाभर में नया साल मनाया जाता है, वहीं भारत एक ऐसा देश है जहां अलग-अलग जगह पर अलग-अलग समय में अपनी संस्कृति और परंपराओं के साथ नए साल का उत्सव मनाया जाता है. चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है तो यहां हर क्षेत्र में नये साल का उत्सव कृषि आधारित होता है. हमारे छत्तीसगढ़ में वैसाख माह के शुक्ल पक्ष तृतीया को अक्ती पर्व के दिन कृषि का नववर्ष मनाया जाता है, इस दिन कृषि कार्य से जुड़े कामगारों की नई नियुक्ति करने के साथ ही अन्य श्रमजीवी वर्ग की भी, जिन्हें यहाँ की भाषा में पौनी-पसारी कहा जाता है, उनकी नियुक्ति की जाती है. यहाँ की मुख्य खरीफ फसल धान की बुवाई का कार्य भी इसी दिन से प्रारंभ किया जाता है, जिसे यहाँ मूठ धरना कहा जाता है.

   तो आइए हम आपको बताते हैं भारत में कब, कहाँ और किस मौसम में नया साल मनाया जाता है...

नवसंवत्सर-
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नवसंवत्सर कहते हैं. फसल पकने का प्रारंभ, किसानों की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है. भारतीय कैलेंडर की गणना, सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है. माना जाता है कि विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले भारत में कैलेंडर अथवा पंचाग का चलन शुरू हुआ. इसके अलावा 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में 7 दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है.

उगाडी- तेलगू न्यू ईयर
यह नया साल कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है. तेलगू न्यू ईयर हिन्दी के चैत्र महीने और अंग्रेजी के मार्च-अप्रैल के बीच में पड़ता है.

गुड़ी पड़वा-
चैत्र महीने के पहले दिन यह त्योहार मनाया जाता है. मराठी और कोंकनी लोग इसे नए साल के रूप में मनाते हैं. इस दिन गुड़ी को घरों के द्वार पर लगाया जाता है.

बैसाखी- पंजाबी न्यू ईयर
बैसाखी 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है. मुख्य त्योहार खालसा के जन्म स्थान और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में मनाया जाता है. यह त्योहार अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड में भी लोग आयोजित करते हैं.

पुथंडु- तमिल न्यू ईयर
तमिल माह Chithirai के पहले दिन यानी अप्रैल के मध्य में तमिल न्यू ईयर मनाया जाता है. इस मौके पर लोग एक दूसरे को Puthandu Vazthukal बोलते हैं. कच्चा आम, गुड़ और नीम के फूलों से त्योहार का खास डिश तैयार किया जाता है.

बोहाग बिहू- असामी न्यू ईयर
बोहाग बिहू अप्रैल के मध्य में मनाया जाता है. यह असम का सबसे खास त्योहार है.

बंगाली नववर्ष-
बंगाली नववर्ष अप्रैल महीने के मध्य में मनाया जाता है.  बंगाल में इसे पोहला बोईशाख कहा जाता है. यह बैशाख महीने का पहला दिन होता है. पोहला का अर्थ है पहला और बोइशाख बंगाली कैलेंडर का पहला महीना है. बंगाली कैलेंडर हिन्दू वैदिक सौर मास पर आधारित है. पश्चिम बंगाल के अलावा त्रिपुरा के पहाड़ी इलाकों में भी पोहला बोईशाख मनाया जाता है.

गुजराती नववर्ष-
गुजराती नववर्ष को बेस्तु वर्ष कहा जाता है. यह दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है. मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में तेज बारिश को रोकने के लिए गोर्वधन पूजा की थी. गोर्वधन पूजा के दिन से गुजराती नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है.

विषु- मलयालम नववर्ष
विषु केरल में नववर्ष का दिन है. यह मलयालम महीने मेदम की पहली तिथि को मनाया जाता है. केरल में विषु उत्सव के दिन धान की बुआई का काम शुरू होता है. विषु पर्व के अहम पहलुओं में से एक है- 'विषुकनी' की रस्म, जो घर के सभी लोग निभाते हैं. इसमें घर के लोग सुबह सबसे पहले अपने ईष्ट देवी-देवता के दर्शन करते हैं.

नवरेह- कश्मीरी नववर्ष
कश्मीर में नवरेह नव चंद्रवर्ष के रूप में मनाया जाता है. यह चैत्र नवरात्र के पहले दिन मनाया जाता है. नवरेह का त्योहार कश्मीरी पंडित बड़े उत्साह से मनाते हैं. नवरेह की सुबह लोग सबसे पहले चावल से भरे पात्र को देखते हैं. इसे समृद्धशाली भविष्य का प्रतीक माना जाता है.

हिजरी-इस्लामिक नववर्ष
इस्लामिक वर्ष मुहर्रम के पहले दिन से शुरू होता है. हिजरी एक चंद्र कैलेंडर है. इस्लामिक धार्मिक त्योहार को मनाने के लिए हिजरी कैलेंडर का ही इस्तेमाल किया जाता है.
-प्रस्तुति - सुशील भोले

Sunday 26 December 2021

दिसम्बर ले आस..

मया के डोरी ले
अउ एक मोती झरत हे
सरग निसैनी ले
दिसम्बर उतरत हे..

बांचे हे भइगे
थोरके घड़ी, पल छिन
फेर हो जाही
अंगरी म वो तो गिन-गिन.

कुनकुनवत रउनिया
अउ दमोरत रतिहा के
गोरसी तापत सियान के
सोझियावत कनिहा के

कोनो बियारा म दौंरी
अउ बेलन के रेंगना
कोनो मेर के रास ल
सकेलना अउ धुंकना

नवा दिन-बादर ह
फेर परघाही नवा मौसम
बसंत के सुवागत म
करही दमादम

नवा बिहान ले बस
अतकेच हे आस
झन बोरबे तैं ह जी
ककरोच बिसवास
-सुशील भोले-9826992811

Tuesday 21 December 2021

हाना..

गुरु के बाना अउ पुरखा के हाना
दूनों के मरम ल एके बरोबर जाना
-सुशील भोले

🌹

जवान जोगी बइद रोगी सूर के पीठ म घाव
हाथी म चढ़के भीख मांगय तेला झन पतियाव

* यदि योगी युवा हो और वैद्य रोगग्रस्त हो, शूरवीर की पीठ में घाव हो और यदि कोई हाथी पर चढ़कर भीख मांगता हो, तो ये सब विश्वास करने योग्य नहीं हैं.

🌹
पियास न चीन्हे धोबीघाट, भूख न चीन्हे बासी-भात
नींद न चीन्हे मरघट-घाट, मया न चीन्हे जात-कुजात

* प्यास सिर्फ पानी को ही पहचानता है, वह किस घाट का है इससे कोई मतलब नहीं. भूख अपनी क्षुधापूर्ति के लिए कुछ भी उदरस्थ कर लेता है. नींद के वश में होने पर आदमी श्मशान घाट नहीं देखता, ठीक उसी तरह प्रेम हो जाने पर आदमी जाति अथवा कुजाति के चक्कर में नहीं पड़ता.

🌹
अड़हा मारय टेनपा त मुंड़-कान फूट जाय
सियान मारय बात त अंतस म धंस जाय

* मूर्ख व्यक्ति लाठी से मारता है तो सामने वाले का सिर फूट जाता है, लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति जब उससे मर्मभेदी बात करता है, तो उसे कई दिनों तक सालता रहता है.

🌹
बिन आदर के पहुना, बिन आदर घर जाय
टेंड़वा मुंह कर भात परोसे, कुकुर बरोबर खाय

* बिना बुलाए या बिना आदर के किसी के घर मेहमान बनकर जाता है, तो गृहस्वामिनी उसे टेढ़ा मुंह करके भात परोसेगी और उसका खाना कुत्ते के जैसा खाना होगा.

🌹
फोकट फोदा पाइन त बाप-पूत धाइन
कौड़ी लागिस त बलाए घलो म नइ आइन

* अगर मुफ्त में मिले तो बाप-बेटा दोनों चले आए, लेकिन अगर कौड़ी खर्च करना पड़ जाए तो बुलाने से भी नहीं आएंगे.

🌹
खेती रहिके परदेस म खाय
तेकर जनम अकारथ जाय

* जिनके पास अन्नपूर्णा जैसी खेती हो, तब भी उसे छोड़कर अन्य देश में कमाना-खाना पड़ रहा है, तो ऐसे लोगों का जन्म लेना व्यर्थ है.

🌹
आमा बोवय अमली बोवय बोवय पेड़ बमूर
आन के लइका का सेवय, न कंतर न मूर

* चाहे आम का पेड़ लगाओ या इमली का या फिर बबूल का, दूसरे के लड़के की सेवा से न लागत मिलती है, न ब्याज और न ही मूलधन.

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छत्तीसगढ़)
मो/व्हा. 9826992811

Monday 13 December 2021

मोक्षदा एकादशी गीता जयंती की बधाई


मोक्षदा एकादशी : गीता जयंती विशेष..

🐚 सृष्टि का आदि धर्मशास्त्र गीता है। ‘इमं विवस्वते योगं’ (गीता, 4/1)- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि “इस अविनाशी योग को मैंने आदि में सूर्य से कहा। सूर्य से मनु, मनु से इक्ष्वाकु और इक्ष्वाकु से राजऋषियों तक पहुँचते-पहुँचते यह इस पृथ्वी में लुप्त हो गया था। वही पुरातन अविनाशी योग मैं तेरे प्रति कहने जा रहा हूँ।” इस प्रकार लगभग 5200 वर्षों पूर्व उसी आदिज्ञान का पुनः प्रसारण मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी ‘मोक्षदा एकादशी’ को कुरुक्षेत्र (भारत) में हुआ।

🐚 परमात्मा ही सनातन है। उस सनातन का उपासक होने से ही आर्य सनातनधर्मी कहलाये। सनातन एकमात्र परमात्मा सबके हृदय में निवास करता है- ‘हृद्देशेर्जुन तिष्ठति’ (गीता, 18/61) -हृदयस्थ उस परमात्मा का उपासक होने से वही हिंदू कहलाये। तीनों शब्दों (आर्य, सनातनी व हिंदू) का अर्थ एक है और इनका आदिशास्त्र गीता है।

🐚 ‘गीता’ का सिद्धांत है- एक आत्मा ही सत्य है, परम तत्व है, अमृत स्वरूप है, कण-कण में व्याप्त है एवं ज्योतिर्मय है। उस आत्मा को प्राप्त करने की नियत विधि  है।

🐚 ‘यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः’ ( गीता, 3/9 ) इस योग विधि यज्ञ के अतिरिक्त अन्य जो कुछ किया जाता है,वह इसी लोक का एक बंधन है,न कि कर्म। इस नियत कर्म को करके तू अशुभ अर्थात संसार बंधन से मुक्त हो जायेगा।अस्तु ,कर्म अर्थात् आराधना, चिंतन। एक ही चिंतन कर्म को योगेश्वर ने चार श्रेणियों में बाँटा, जिनका नाम वर्ण है। यह एक ही साधना के क्रमोन्नत सोपान हैं। जिसमें साधक को प्रवेश कर क्रमशः चारों सोपानो को पार कर लक्ष्य विदित करना होता है।

🐚 “अर्जुन ! यदि तू संपूर्ण पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है तब भी गीतोक्त ज्ञान रूपी नौका द्वारा नि:संदेह पार हो जायेगा।” अतः गीता पाप का निवारण है। “अत्यंत दुराचारी भी अनन्य भाव से मुझे भजता है तो वह साधु मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय से लग गया है।” अतः गीता सदाचारी और दुराचारी में दरार नहीं डालती।

🐚 ‘गीता’ के अनुसार, मनुष्य मात्र दो प्रकार का होता है – दैव और असुर। जिसके हृदय में दैवी संपद कार्यरत है वह देवताओं जैसा है और जिसके हृदय में आसुरी संपद कार्य करती है वह असुरों जैसा है। दैवी स्वभाव परम कल्याणकारी परमात्मा की तरफ तथा आसुरी स्वभाव प्रकृति के अंधकार में भटकाता है। सृष्टि में मनुष्य की यही दो जातियाँ हैं अन्य कोई तीसरी जाति नहीं।

🐚 संसार की सभी समस्याओं का समाधान गीता से है। गीता जाति-पाँति, छुआछूत, भेदभाव से मुक्त है; क्योंकि जीव भगवान का विशुद्ध अंश है- उतना ही पावन जितना स्वयं भगवान। तो फिर अस्पृश्य कैसे? यह हीन भावनाओं से मुक्ति का शास्त्र है। यह संप्रदाय मुक्त है। इसमें किसी संप्रदाय का विरोध या समर्थन नहीं है। इसमें रूढ़ियों, परंपराओं अथवा प्रथाओं का किंचित भी समावेश नहीं है। यह इन सब से मुक्त मानव- दर्शन है।

🐚 भारत के संविधान में भारतीय संस्कृति व दर्शन के 22 उद्बोधक चित्रों में एक चित्र श्रीकृष्ण का गांडीवधारी अर्जुन को गीता उपदेश देते हुए भी था। न केवल भारत अपितु विश्व के श्रेष्ठतम विद्वानों, दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, चिंतकों तथा संतों ने इसकी मुक्त कंठ से स्तुति की है।

धरम के मारग अइसे नइहे के बस जोगड़ा बन जावन
बन के बोझा समाज ऊपर बस माँग-माँग के खावन
ए तो कोनो धरम नइ होइस न आदर्श असन जीवन
जेला कहिथन भगवान हम उंकर कर्मयोग अपनावन

मोक्षदा एकादशी गीता जयंती के गाड़ा-गाड़ा बधाई अउ जोहार 🙏
-सुशील भोले-9826992811
🙏🌹🙏🌹🙏

Saturday 11 December 2021

श्यामलाल चतुर्वेदी.. सुरता..

सुरता//
श्यामलाल चतुर्वेदी : मंदरस घोरे कस झरय जेकर बानी ले छत्तीसगढ़ी
    पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी जी एक अइसन साहित्यकार रिहिन हें, जेला सरलग सुनतेच रेहे के मन लागय. मोला तो कई पइत अइसनो जनावय के उनला कविता पाठ करत सुने ले जादा एक वक्ता के रूप म सुनत रेहे जाय. अइसन कई बखत अवसर आवय जब उनला मन भर सुनई ह गजब भावय.
   मोला उनला सबले पहिली देखे अउ सुने के अवसर दिसम्बर 1987 के आखिर म तब मिले रिहिसे जब दाऊ महासिंग चंद्राकर जी के 'सोनहा बिहान' के बैनर म बिलासपुर जिला के एक गाँव म 'लोरिक चंदा' के प्रस्तुति होए रिहिसे. संयोग ले दाऊजी मोला अपन संग उहाँ अपन कार्यक्रम देखाए खातिर लेगे रिहिन हें, अउ आदरणीय चतुर्वेदी जी ल घलो उहीच मंच म सम्मान करे खातिर घलो आमंत्रित करे रिहिन हें. ठउका वोकर पंद्रहीच पहिली छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन 9 दिसम्बर के होए रिहिसे, जेकर पहला अंक ल धर के  मैं वो कार्यक्रम म संघरे रेहेंव अउ आदरणीय चतुर्वेदी जी ल उहीच मंच म सम्मान करत भेंट करे रेंहेंव. 'मयारु माटी' के ए अंक म चतुर्वेदी जी के कहानी 'जंगो के जोमर्दी' ल हमन छापे घल़ो रेहेन. चतुर्वेदी जी घलो तब मोला अपन कविता संकलन 'पर्रा भर लाई' ल भेंट करे रिहिन हें. लोगन के फरमाइश म उन तब अपन सम्मान के आभार प्रकट करत वक्तव्य संग 'बेटी के बिदा' कविता के पाठ घलो करे रिहिन हें.
   बिलासपुर जिला (अब जांजगीर-चांपा) के गाँव कोटमी म 20 फरवरी 1926 के जनमे चतुर्वेदी जी के जिनगी म एक अइसन अद्भुत संयोग घलो आए हे, जब उनला अपन खुद के लिखे कविता ऊपर परीक्षा म जुवाब लिखे बर परे रिहिसे. बिरले लोगन के जिनगी म अइसन संयोग आवत होही. बात सन् 1976 के आय. तब उन एम.ए. (हिन्दी) के परीक्षा म ऐच्छिक विषय के रूप म छत्तीसगढ़ी भाखा के रूप म छत्तीसगढ़ी भाखा के पाठ घलो संघरे रिहिसे. चतुर्वेदी जी तब अकबकागें जब उन देखिन के  उंकर प्रश्न पत्र म उंकरेच कविता के बारे म पूछे गे रिहिसे.
     चतुर्वेदी जी साहित्य अउ पत्रकारिता दूनों के माध्यम ले एक कलमकार के कर्तव्य ल पूरा करिन हें. संगे-संग उन एक निर्विरोध सरपंच के रूप म घलो आदर्श जीवन के गाथा गढ़े हें. सन् 1965 म उन अपन गाँव कोटमी के निर्विरोध सरपंच बने रिहिन हें. तब वो मन गाँव वाले मनला संगठित कर के शराब बंदी, जंगल के संरक्षण, सड़क बनई, कुआँ खनवाए के संग तरिया मन के साफ-सफाई करे के ठोसलग बुता करे रिहिन हें.
     हमन अक्सर सुनथन के आजादी के आन्दोलन के बखत पत्रकार मन के जीवन एक ऋषि तुल्य जीवन राहय. वो मन तब एकेच संग अबड़ अकन भूमिका निभा लेवंय. पत्रकारिता के संगे-संग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाज सुधारक, स्वदेशी अउ स्वावलंबन के उपासक राहंय. चतुर्वेदी जी म घलो ए जम्मो रूप के दर्शन होवय. फेर अब के पत्रकार मन म अइसन दर्शन दुर्लभ होगे हवय. चतुर्वेदी जी नई दुनिया, युगधर्म, हिन्दुस्तान समाचार के संगे-संग छत्तीसगढ़ के अउ कतकों समाचार पत्र मन म सरलग समाचार भेजत राहंय. सन् 1949 ले वोमन पत्रकारिता के श्रीगणेश करिन माखनलाल चतुर्वेदी के कर्मवीर के संवाददाता के रूप म करिन. महाकौशल, लोकमान्य, नवभारत, नवभारत टाइम्स, युगधर्म, जनसत्ता आदि समाचार पत्र मन म प्रतिनिधि के रूप म जन-समस्या मनला उठावत राहंय. सन् 1981 म हिन्दुस्तान समाचार के श्रेष्ठ संवाद लेखन खातिर तब के मुख्यमंत्री द्वारा उनला सम्मानित घलो करे गे रिहिसे.
   चतुर्वेदी जी के साहित्यिक कृति के रूप म कविता संकलन 'पर्रा भर लाई', कहानी संकलन 'भोलवा भोलाराम बनिस' अउ लघु खण्डकाव्य 'राम-बनवास' उल्लेखनीय हे. छत्तीसगढ़ी संस्कृति मन ऊपर आधारित उंकर विभिन्न विषय के लेख कतकों पत्र-पत्रिका मन म सरलग छपत राहय. आकाशवाणी केन्द्र मनले घलो बेरा-बेरा म उंकर वार्ता सुने बर मिलत राहय.
   छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सन् 2008 म गठित करे गे 'छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग'  के प्रथम अध्यक्ष बने के गौरव घलो आदरणीय चतुर्वेदी जी ल मिले हे. 2 अप्रैल 2018 के उनला तत्कालीन राष्ट्रपति जी के हाथ ले पद्मश्री के सम्मान घलो मिलिस.
   अद्भुत प्रतिभा के धनी अउ सहज-सरल स्वभाव के ऋषि तुल्य जिनगी जीयइया साहित्य पुरोधा ह 7 दिसम्बर 2018 के ए नश्वर देंह ल के त्याग कर परमधाम के रद्दा रेंग दिन.
उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी 🙏
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Monday 6 December 2021

'जोहार' अउ 'जय जोहार'

"जोहार" अउ "जय जोहार"
   एक कहावत हे- 'अड़हा बइद परान घातका'। माने अड़हा कहूं बइद ह होगे, त मरीज के मरे बिहान हे। ठउका इही किसम कहूं जे मन भाखा खातिर कारज करत हें, अउ उहू मनला भाखा अउ ओकर ले जुड़े परंपरा अउ संस्कृति के समझ नइए त उहू भाखा के मरे बिहान कस हे।
    अभी जे मन हमर भाखा के नाव म एती-वोती कूदत हें, वोमा के कतकों जब मोर संग भेंट होथे, त कहि परथें-"जय जोहार" भोले जी। मैं अतका म टमड़ डारथंव के भाखा के नाव म बिल्लस खेलइया ए लोगन के भाखा अउ संस्कृति के संबंध म कतका ज्ञान हे।
    अरे भई, 'जोहार' शब्द ह संबोधन खातिर अपन आप म पूर्ण शब्द आय, वोला अलग ले ककरो पंदोली के जरूरत नइए। जइसे- 'नमस्कार' या 'प्रणाम' ल ककरो जरूरत नइ परय। जोहार के मतलब ही नमस्कार करना, प्रणाम करना या जयकार करना होथे। जइसे हम जय नमस्कार या जय प्रणाम नइ काहन वइसने जय जोहार कहे के भी जरूरत नइए। अभिवादन खातिर सिरिफ "जोहार" कहना काफी हे।
       गांव म परंपरा हे- जब देवारी पइत पहाटिया मन मड़ई उठाए के समय सबले पहिली गांव के गंउटिया, सरपंच या सियान ल पहिली सम्मान दे के परंपरा निभाथें, त उन कहिथें- 'चलव गा पहिली दाऊ ल, मंडल ल, या सरपंच ल जोहार लेथन, तेकर पाछू दइहान या अउ कोनो आयोजन ठउर कोती जाबो'।
     असल म 'जोहार' शब्द ह 'जय' अउ 'हर' शब्द के मेल ले बने हे, जेकर अर्थ ही होथे 'हर' अर्थात शिवजी के जयकार करना. हमर ए भुइया ह जुन्ना बेरा ले बूढ़ादेव या बड़ादेव के रूप म शिव उपासक अंचल रहे हे, तेकर सेती वोकर जयकार करत ए 'जोहार' शब्द के माध्यम ले अभिवादन करत चले आवत हे.
सबो झनला जोहार🙏🌹😊
-सुशील भोले-9826992811