Monday 26 February 2018

डाॅ. बलदेव गुरु गोरखनाथ सम्मान से सम्मानित



वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. बलदेव को समाज गौरव समिति रायपुर द्वारा गुरु गोरखनाथ सम्मान से सम्मानित किया गया।
 उनके रायगढ स्थित निवास पर आयोजित समारोह में समिति प्रमुख डा . सुखदेव राम साहू, सुशील भोले, लक्ष्मीनारायण साहू , शिव कुमार पाण्डे, शंभू शर्मा, अंजनी कुमार अंकुर, कमल बहिदार, रामनाथ साहू, श्रीमती आशा मेहर, दुर्गा बाई साहू, गायत्री साहू, नेतराम साहू, डाॅ प्रमोद सोनवानी सहित बड़ी संख्या में अंचल के विभिन्न स्थानों से पधारे कविगण उपस्थित थे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शिव कुमार पाण्डे ने इस अवसर पर कहा, डाॅ . बलदेव का सम्मान पूरे साहित्य जगत का सम्मान है। डाॅ . बलदेव साहित्य के भीष्म पितामह हैं। उनका यह निवास स्थल गुरुकुल से कम नहीं है, जहां से कितने ही साहित्यधर्मियों को ऊंचाई का शीर्ष प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

इस अवसर पर कवि गोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसमें उपस्थित कवियों ने अपनी श्रेष्ठ रचनाओं का पाठ किया।

बिदेसिया कइसे मनावंव मैं तिहार...













बिदेसिया कइसे मनावंव मैं तिहार
तोर बिन जिनगी लागथे पहार--

सावन बीतगे भादो निकलगे
माघ-पूस के दिन घलो पुरगे
माते हे फागुन मतवार---

लिख-लिख पतिया भेजेंव तोला
सोर घलो नइ दिए रे तैं मोला
अब लागत हे डोंगा मजधार--

गुन के रोथे माथा के टिकली
पंड़री परगे लाली रे फुंदरी
आंसू ढरकाथे सब सिंगार---

देखत रद्दा दूनो आंखी भरगे
ठाढे-ठाढ मोर चिता बरगे
सरपिन कस होगे निस्तार--

-सुशील भोले
डाॅ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छत्तीसगढ)
मो. 9826992811, 7974725684

गवन के संदेशा.....


हमारी लोक संस्कृति में कई ऐसी भी परंपराएं हैं, जो देश, काल और समय के अनुसार अपना रूप परिवर्तित कर लेती हैं। गवन या गौन भी उनमें से एक है। वर्तमान पीढी में अनेक ऐसे युवक-युवती हो सकती हैं, जो इस परंपरा से शायद अनजान भी हों।

पहले हमारे यहां "बाल विवाह" की परंपरा काफी प्रचलित थी, इसलिए विवाह के पश्चात नव-व्याहता को उसके मायके में ही रहने दिया जाता था। वर-वधू दोनों जब गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर लेने की उम्र में पहुंच जाते थे, तब गौना या गवन के रूप में विवाहिता की पुनः विदाई की जाती थी।

वर्तमान समय में वर-कन्या का विवाह काफी परिपक्व उम्र में किया जाता है, इसलिए गवन या गौना की परंपरा काफी कम ही देखने में आती है। लेकिन इसका एक परिवर्तित रूप आज भी प्रायः सभी जगहों पर देखने में आता है। नव-व्याहता विवाह के पश्चात भले ही तुरंत अपने पति के साथ ससुराल में रहने लगे, किन्तु विवाह के पश्चात का प्रथम होली पर्व वह अपने मायके में ही मनाती है। यह प्रथा गवन या गौना का ही परिवर्तित रूप है।

फाल्गुन पूर्णिमा से लेकर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि के बीच का जो पंद्रह दिनों का समय होता है, वही गवन या गौना का असली समय होता है। भारतीय परंपरा के अनुसार फाल्गुन माह वर्ष का अंतिम माह होता है, तथा चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से नव वर्ष माना जाता है। इसलिए नव वर्ष पर नव ब्याहता को लिवाकर लाना शुभ माना जाता था।

हमारे लोक गीतों में गवन की इस परंपरा के लिए काफी प्रचलित गीत भी हैं-
ये दे लाल लुगरा ओ पिंयर धोती गवन के लाल लुगरा...
कहंवा ले आथे तोर लाली-लाली लुगरा, कहंवा ले आथे पिंयर धोती गवन के लाल लुगरा....
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एक गीत काफी लोकप्रिय हुआ है-
जरगे मंझनिया के घाम आमा तरी डोला ल उतार दे....

इस विषय पर एक गीत मैं भी लिखा हूं-
महर-महर महके अमराई फागुन के संदेशा ले के
बारी म कुहके कारी कोइली सजन के संदेशा ले के...

-सुशील भोले
डाॅ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छत्तीसगढ)
मो. 9826992811, 7974725684

Sunday 25 February 2018

आदि धर्म....?

भारत संस्कृतियों का देश है। यहां हर राज्य की अलग संस्कृति है। हर क्षेत्र की अलग संस्कृति है। हर गांव की अलग संस्कृति है। हर समूह की अलग संस्कृति है। इसके बावजूद मैं छत्तीसगढ के संदर्भ में जिस "मूल संस्कृति" की बात करता हूं, वह केवल एक संस्कृति ही नहीं, अपितु एक संपूर्ण जीवन पद्धति है, एक संपूर्ण धर्म है, जिसे मैं "आदि धर्म" कहता हूं।

-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान
डाॅ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छत्तीसगढ)
मो. 9826992811, 7974725684

होलिका दहन या काम दहन...?


छत्तीसगढ में मनाया जाने वाला होली का पर्व वास्तव में "काम दहन" का पर्व है, न कि "होलिका दहन" का। ज्ञात रहे, यहां की मूल संस्कृति शिव की संस्कृति है, इसलिए यहां हर पर्व और संस्कृति का संबंध शिव एवं उसके परिवार से ही संबंधित होता है।

आप लोगों को एक प्रसंग ज्ञात होगा। आततायी ताड़कासुर के वध के लिए देवताओं को शिव पुत्र की आवश्यकता थी। ताड़कासुर केवल शिव पुत्र के हाथों मरने का वरदान ब्रम्हा जी से प्राप्त कर चुका था। और शिव जी सती आत्मदाह के पश्चात घोर तपस्या में लीन हो गये थे। ऐसे में शिव पुत्र कैसे आता और ताड़कासुर कैसे मरता? अतः वह अपने आप को "अमर" समझ कर अत्याचार कर रहा था। तब देवताओं ने विचार कर "कामदेव" को शिव तपस्या भंग करने की जिम्मेदारी दी। जिससे उनके अंदर काम-भाव का उदय हो और वे पार्वती के साथ पुनर्विवाह करें, जिससे उन्हें शिव पुत्र की प्राप्ति हो।

देवताओं के अनुरोध पर कामदेव वसंत के मादकता भरे मौसम का चयन कर अपनी पत्नी रति के साथ शिव तपस्या भंग करने पहुंचता है, और उनके समक्ष वासनात्मक शब्दों, दृश्यों और नृत्यों का प्रदर्शन करता है। शिव जी उनकी माया में फंसने के बजाय उल्टा क्रोधित हो जाते हैं, और अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर देते हैं।

मित्रों, छत्तीसगढ में होली का पर्व वसंत पंचमी से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक लगभग चालीस दिनों का मनाया जाता है, उसका यही कारण है। कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ मिलकर इतने दिनों तक शिव तपस्या भंग करने का उपक्रम कर रहे थे। इसीलिए इस पूरे प्रसंग को हम मदनोत्सव या वसंतोत्सव के नाम पर भी जानते हैं।

आप स्वयं विचार करें, होलिका तो केवल एक ही दिन में चिता रचवाती है, और स्वयं ही उसमें जलकर भस्म हो जाती है। तब उसके लिए चालीस दिनों का पर्व मनाने का क्या औचित्य रह जाता है? फिर इस अवसर पर यहां जो वासनात्मक शब्दों, दृश्यों और नृत्यों का प्रदर्शन होता है, उसका उससे होलिका का क्या संबंध है?

पहले यहां होली के अवसर पर "किसबीन" नाच आयोजित कर ने का भी चलन था, जो अब लगभग बंद सा हो गया है। यह "किसबीन" नाच वास्तव में "रति" नृत्य के प्रतीक स्वरूप ही होता था।

मित्रों, छत्तीसगढ की गौरवशाली मूल संस्कृति को उसके वास्तविक रूप में पुनर्प्रचारित कर उसे जमीनी रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है। आइए हमारे इस प्रयास में आप भी सहभागी बनें।

-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान
डाॅ. बघेल गली, संजय नगर
(टिकरापारा) रायपुर (छत्तीसगढ)
मो. 9826992811, 7974725684

संस्कृति और गुलामी..?

जहां तक सम्मान की बात है, तो दुनिया के हर धर्म और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए, लेकिन जीयें सिर्फ अपनी ही संस्कृति को, क्योंकि अपनी ही संस्कृति व्यक्ति को आत्म गौरव का बोध कराती है, जबकि दूसरों की संस्कृति गुलामी का रास्ता दिखाती है।

-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान
डाॅ. बघेल गली, संजय नगर
(टिकरापारा) रायपुर (छत्तीसगढ)
मो. 9826992811, 7974725684

चल नोनी झट होजा तियार ..




















चल नोनी झट होजा तियार स्कूल जाबे हब ले
तोर जोखा हे मोर बांटा दाई बुता म जाथे तब ले
पढबे लिखबे जिनगी गढबे बढ के तैं तो सबले
हमर गाँव के नांव जगाबे आदर्श गढबे खब ले

-सुशील भोले
डाॅ. बघेल गली, संजय नगर
(टिकरापारा) रायपुर (छत्तीसगढ)
मो. 9826992811, 7974725684

ज्ञान और सत्य..?

दुनिया का कोई भी ग्रंथ न तो पूर्ण है, और न ही पूर्ण सत्य है। इसलिए यदि आप सत्य को जानना चाहते हैं, तो तप-साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करें। केवल साधना और अनुभव के द्वारा प्राप्त ज्ञान ही सत्य तक पहुंचने का एकमात्र उत्तम रास्ता है।

-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान
डाॅ. बघेल गली, संजय नगर
(टिकरापारा) रायपुर (छत्तीसगढ)
मो. 9826992811, 7974725684

फर्जी कुंभ पर हुआ प्रकृति ...

फर्जी कुंभ पर हुआ प्रकृति का प्रहार
उधारी के साधुओं को दे धोबी-पछार
अब ढोंग छोड़ दे परदेसिया सरकार
यहां की मूल संस्कृति का करो उद्धार

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो. 9826992811, 7974725684

मया के भाखा अब्बड़ अटपट नइ...




















मया के भाखा अब्बड़ अटपट नइ समझावय झटपट
बिन गुने अंतस के भाव कर लेथे जउंरिहा खटपट
रद्दा आय ए जीव-शिव के एकेच रंग म रंग जाए के
आत्मा ले आत्मा संग मिल के नवा जगत सिरजाए के

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो. 9826992811, 7974725684

कर्म योग की शिक्षा देने वाले धर्म गुरुओं....

इस देश को कर्म योग की शिक्षा देने वाले धर्म गुरुओं की आवश्यकता है, न कि किसी नदी में नहा लेने से मुक्ति मिल जाने, किसी ग्रहण पर पूजा कर लेने से दस गुना ज्यादा फल प्राप्त कर लेने या किसी फूले हुए पेट से डकार लेते मठाधीश को दान कर देने से सदगति प्राप्त हो जाने की कपोल कल्पित उपदेश देते फिर रहे मुफ्तखोर जोगड़ाओं की।

-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811