Monday 31 July 2023

कला अउ साहित्य के संगम रहिस सीताराम

16 अगस्त जयंती म सुरता//
कला अउ साहित्य संगम रहिस डॉ. सीताराम
    छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत म अइसन कतकों रचनाकार आवत रेहे हें, जे मन साहित्य विधा के संगे-संग कला विधा ल घलो धर के संगे-संग रेंगत रेहे हें. डॉ. सीताराम साहू घलो अइसने रचनाकार रहिसे जे उच्च कोटि के कलाकार होए के संगे-संग मयारुक रचनाकार घलो रिहिसे.

   मोर जइसन अक्खड़ अउ तार्किक स्वभाव के जनवादी रंग म रंगे पत्रकार-साहित्यकार ल विशुद्ध अध्यात्म के रद्दा म लेग के कठोर साधना म बोरना कोनो आसान बात नोहय, फेर मोर जिनगी म सीताराम साहू जइसन एक मनखे के आगमन घलो होइस, जेन मोर असन घेक्खर मनखे ल ए बुता कराए म सबले बड़का भूमिका निभाइस.

     रायपुर ले लगे प्रसिद्ध बंजारी धाम वाले गाँव रांवाभांठा के मोर साहित्यिक संगवारी डाॅ. सीताराम साहू के मोर जिनगी म सबले अलगेच ठउर हे. 16 अगस्त 1962 के महतारी कौशिल्या देवी अउ पिता डाॅ. मोहन लाल साहू के घर जेठ बेटा के रूप म जनमे सीताराम संग मोर दोस्ती साहित्यकार के रूप म ही रहिस. मोर संपादन म वो बखत प्रकाशित होवइया छत्तीसगढ़ी भाखा के मासिक पत्रिका "मयारु माटी" के चेतलग पाठक होए के संगे-संग हमन दूनों रायपुर के छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति संग घलो जुड़े रेहेन, तेकर सेती जम्मो किसम के साहित्यिक कार्यक्रम मन म संघरत राहन. आगू चलके मोर रिकार्डिंग स्टूडियो चालू होइस. उहू म इंकर खुद के लिखे जसगीत मनला इंकर सुवारी अउ हमर छत्तीसगढ़ के मयारुक जसगीत गायिका अनसुइया साहू के आवाज म आडियो कैसेट के रूप म निकाले रेहेन, जेन गजब लोकप्रिय होए रिहिसे.

   पहिली मोर प्रिंटिंग प्रेस के घलो ठीहा रिहिसे, जिहां  ले सीताराम के कविता मन के संकलन "डोंहड़ी" के प्रकाशन होए रिहिसे. बाद म तो अइसे दिन घलो आइस जब कहूँ साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम म जाना होवय त हम दूनों ही जावन. तीर-तखार म तो मोटरसाइकिल म मसक देवन. दुरिहा रहय त बस-रेल के माध्यम ले.

   चिकित्सा पेशा ले जुड़े होय के बाद घलो सीताराम एक उच्च कोटि के लेखक होए के संगे-संग मयारुक कलाकार घलो रिहिसे. अपन गाँव रांवाभांठा म वो ह एक समिति बनाए रिहिसे "माँ बंजारी महिला मानस मंडली" के नाम ले जेकर संचालक अपन जिनगी के संगवारी अउ लोकगायिका अनसुइया साहू ल बनाए रिहिसे. आज घलो ए समिति ह पूरा क्षेत्र म एक लोकप्रिय अउ प्रतिष्ठित समिति के रूप म जाने जाथे.

  सीताराम अपन लेखन के क्षेत्र म आए के बात ल "डोंहड़ी" काव्य संकलन म लिखे हे- छत्तीसगढ़ म सांस्कृतिक मंच के जयघोष करइया "चंदैनी गोंदा" कार्यक्रम ल देखे के बाद वोमा के लक्ष्मण मस्तुरिया के जम्मो गीत मन मोर दीमाग म चौबीसों घंटा गूंजत राहय. अउ मोर संपादन म प्रकाशित 'मयारु माटी' म वो बखत  छपत रहे, बड़े-बड़े रचनाकार मन के रचना मनला पढ़के लेखन के रद्दा म आएंव.
  सीताराम के 'डोंहड़ी' संकलन के कुछ रचना के अवलोकन करिन-

साज सम्हर के आइस देवारी, लक्ष्मी धन बरसावत
माटी के दीया ह करिस अंजोरी, चंदा देख लजावत
धन, धान्य, भंडार भरपूर, भरे राहय तोर ढाबा
मांग करत हंव लक्ष्मी ले मैं, पूरा होवय तोर आसा
नवा फसल म नवा उमंग हे, नवा देवारी फलदायक हो
नवा जोत हे नवा जीवन म, सब ल देवारी मुबारक हो

  गरमी के मौसम म पछीना बोहाए के चित्रण देखव-
बहे पछीना अंग ले टप-टप, सात धार हे गंगरेल कस
अउंट गये सब लाल लहू, तन होगे मछरी भुंजवा कस
मुंह अइलाये दवना पाना, कोन डार जल हरियावय
छूटत हे जब प्रान तपन म, गोरिया काया करियावय

   'दीया फूटगे' शीर्षक के दू लाईन देखव-
दीया फूटगे अंजोर कइसे होही
तेल गिरगे अब कोन सिरजोही
मंहगाई ल देख-देख दीया ह रोये
तेल बिन बरय कइसे गजब बिटोये
बाती गुनत हे उछला कोन रितोही
दीया फूटगे अंजोर कइसे होही

  हमर भारतीय नवा बछर एक सुग्घर चित्रण देखव-
अन्न कुंवारी चुरू-मुरू जब कोठी पउला बीच बीराजे
फुरसुद होगे खेत कमइया महीना माघ अमुवा मौरागे
भरिस मड़ाई गाँव गाँव मुठिया फरा झट उसनागे
साज सवारी रेंगिस मेला तब लागिस नवा बछर आगे

   ए जम्मो रचना उंकर शुरुआती दिन के आय. एकर मन के छोड़े एक अउ कविता संकलन "खोरसी" के घलो  प्रकाशन होए रिहिसे. एकर मन के छोड़े- करिया बादर (गीत संकलन), पूजा के फूल (गीत संकलन) अउ बुधवा के बोकरा (व्यंग्य संकलन) ह छपे के अगोरा म रिहिसे. सीताराम के लिखे जसगीत मन पूरा छत्तीसगढ़ म आडियो कैसेट के माध्यम ले धूम मचावत रिहिसे. उंकर सुवारी अनुसुइया साहू के स्वर म आकाशवाणी अउ दूरदर्शन म घलो अपन ठउर बनावत रिहिसे, तभे 17 मार्च 2010 के ए बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार-साहित्यकार के अपन पाछू पुत्र डाॅ. दीपक, पुत्री किरण के संगे-संग भरेपूरे परिवार अउ साहित्यिक संगी मनला बिलखत छोड़के परलोक गमन होगे.

     छत्तीसगढ़ राज बने के पहिली अउ बने के बाद तक इहाँ छत्तीसगढ़ी भाखा म विडियो फिलिम के घलो एक अच्छा दौर चले रिहिसे. जगा-जगा विडियो थियेटर अउ छट्ठी-बरही जइसन आयोजन मन म टीवी सेट म वीसीआर लगा के छत्तीसगढ़ी विडियो फिलिम मन ल गजब देखे जावय. ए दौर म डाॅ. सीताराम ह घलो चरित्र अभिनेता के रूप म अपन अभिनय कला के जौहर देखावत रिहिसे. सरकारी गोल्लर म हवलदार के रोल, माल हे त ताल हे म भैया के रोल, टूरी मारे डंडा म बाप के रोल, लेड़गा के बिहाव म भांटो के रोल अउ झोलटूराम म बाप के रोल करे रिहिसे. एमन म के कुछ फिलिम मन म उंकर सुवारी अनसुइया साहू ह घलो अभिनय करे रिहिसे. ए फिलिम म के 'टूरी मारे डंडा' ह अभी यूट्यूब म घलो उपलब्ध हे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 13 July 2023

मोला घुनासी लागत हे..

सुरता//
मोला घुनासी लागत हे..
    आज जिनगी के संझौती बेरा म जब नींद ह छपक के धरे म घलो बुलक देथे, चोबिसों घंटा अलथी-कलथी मारे म लट्टे-पट्टे तीन चार घड़ी के पुरती अमा पाथे, त लइकई के वो दिन के सुरता गजब आथे जब कापी-किताब ल आगू म मढ़ाते नींद ह झुमराय लगय अउ पढ़ई-लिखई ल छोड़ के तनिया के सूत जावन.
   हमर महतारी बतावय, लइकई म रतिहा बेरा बियारी कर के जब सबो भाई-बहिनी पढ़े बर बइठन त मोला गजब उंघासी आवय. कापी-किताब आगू माढ़े राहय अउ मैं नींद म झुमरत राहंव, अउ जब कोनो मोला हुदर के पढ़े बर काहय त मैं 'मोला घुनासी लागत हे, अब सूतहूं' कहिके उहिच जगा ढलगे ले धर लेवौं. तब हमर सियान मोला गारी देवत काहय- 'जहाँ पढ़े ले बइठिस तहाँ एकर झुमरई चालू' काहत खिसिया जावय अउ फेर मोला सूते खातिर छुट्टी मिल जावय.
   अइसन घटना मोर जिनगी म कक्षा तीन के पढ़त ले घटय. जब मैं 'उंघासी' शब्द के उच्चारण ल 'घुनासी' लागत हे काहत राहंव. तब तक हमन भाठापारा शहर म राहत रेहेन. चौथी कक्षा ले मोर पढ़ई हमर पैतृक गाँव नगरगाँव म होइस, अउ हमर सियान अपन स्थानांतरण करवा के भाठापारा ले रायपुर आगे रिहिन, वोकर बाद तो अइसन दृश्य कभू नइ बनिस.
    आज जिनगी के छठवाँ  दशक म पाॅंव रखत वो दिन के सुरता गजब आथे, जब नींद ह हमन ल संगवारी बरोबर पोटारे राहय. उठत-बइठत पढ़त-लिखत मितानी के झुलना झुलावत राहय. तब खटिया देखे के जरूरत परय न बिछौना के. जेन जगा बइठे राहन उहिच जगा ढलंग जावन.
    आज जिनगी के संझौती बेरा म जब खटिया च ह जिनगी के संगवारी बन गे हावय त नींद ह बैर भाॅंजत रहिथे. लकवा के अभेरा म परे के बाद तो चोबिसों घंटा अलथी-कलथी करत रहिथौं तभो लजकुरहिन नोनी कस नींद ह एती-वोती छॅंडलत-बुलत रहिथे.
    अइसन बेरा म वो लइकई के सुरता गजब आथे, मन होथे, फेर मैं 'मोला घुनासी लागत हे' काहत निसफिक्कर होके चार घड़ी सूत लेतेंव.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Tuesday 4 July 2023

चातुर्मास म देव बिहाव..

चातुर्मास म देव-बिहाव
    हमर देश के सांस्कृतिक पटल म विविधता के गजब अकन रूप देखे ले मिलथे. जेन ह एक-दूसर के विपरीत घलो जनाथे.
    अभी हमर छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक स्वरूप ल ही देख लेवौ, एक डहार जिहां कतकों साधू बैरागी मन चातुर्मास के नियम म बंधाय एक जगा बइठ के जप-तप अउ ज्ञान चर्चा म दिन पहावत हें, त दूसर डहार इहाँ के पारंपरिक संस्कृति ल जीने वाला मन अपन-अपन देवता के बर-बिहाव के जोखा मढ़ावत हें
     सुने म अलकर जना सकथे के चातुर्मास के जेन चार महीना म बर-बिहाव जइसन बुता ल अशुभ अउ प्रतिबंधित बताए जाथे, उहिच प्रतिबंधित महीना म छत्तीसगढ़ म देवी-देवता मन के बिहाव के परब मनाए जाथे.
    ए ह सांस्कृतिक विविधता के गजबे सुग्घर रूप आय, जे ह ए बात के घलो आरो कराथे, के छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति म चातुर्मास जइसन व्यवस्था लागू नइ होवय.
   अभी बरसात के मौसम म बस्तर अंचल म बरखा के देवी देवता के रूप म चिन्हारी करइया भीमा अउ भीमिन के बिहाव के उत्सव या जगार मनाए जावत हें, त हमर एती चातर राज म कातिक अंधियारी पाख के अगोरा होवत हे, जब गौरा-ईसरदेव के बिहाव के परब ल गौरी-गौरा पूजा के रूप म मनाए जाही.
    बस्तर म भीमा भीमिन ल साल पेंड़ के लकड़ी के बनाए जाथे अउ स्थायी रूप ले स्थापित करे जाथे, जबकि एती चातर राज म गौरा-ईसरदेव ल हर बछर माटी के बनाए जाथे अउ बिहाव परब कातिक अमावस के बिहान भर कोनो तरिया नंदिया म विसर्जित कर दिए जाथे.
    जेन बछर पानी के गिरई थोकिन कमती असन जनाथे ते बछर तो गाँव गाँव म भीमा भीमिन के पूजा अउ बिहाव परब मनाए जाथे. वइसे भीमा भीमिन के पूजा तो लोगन हमेशा करत रहिथें, काबर ते इनला बरखा के देवता के संगे-संग गाँव के कुल देवता घलो माने जाथे, एकरे सेती इनला सुख समृद्धि के देवता के रूप म घलो माने-गौन करे जाथे.
    गौरा-ईसरदेव के बिहाव परब ह कातिक अंधियारी पाख के पंचमी तिथि ले फूल कुचरे के नेंग संग चालू होथे. कोनो कोनो गाँव म फूल कुचरे के नेंग ल एकादशी के दिन करे जाथे.
    पंचमी के फूल कुचरे के नेंग करे के संग इहाँ सुवा नाच के परंपरा घलो चालू हो जाथे. नोनी मन बिहनिया बेरा कातिक नहाए ले जाथें अउ संझा बेरा सुवा नाचे ले जाथें.
    मैं हमेशा ए बात ल गोहरावत रहिथौं के छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक चिन्हारी ल इहाँ के मूल संस्कृति के मापदंड म लिखे अउ बताए जाना चाही, आने अंचल ले लाने गे संस्कृति अउ ग्रंथ मन के मापदंड म नहीं, तेन ह अइसने विरोधाभासी प्रसंग मनला देख के ही आय.
     इहाँ कतकों अइसन परब तिहार हे जे मन आज बताए जावत प्रसंग मन ले अलगे रहिथे, हमला इही मनला जांच-टमड़ के छत्तीसगढ़ के वास्तविक रूप के चिन्हारी दुनिया के आगू म करवाना हे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Monday 3 July 2023

काव्य लेखन अउ खुमान साव

छत्तीसगढ़ी  पद्य लेखन अउ खुमान साव....

    दुनिया म जतका भाखा हे,  सबो के लेखन अउ उच्चारण म कोनो न कोनो किसम के मौलिकता जरूर हे, एकरे सेती वोकर सबले हट के अलग अउ स्वतंत्र पहचान बनथे।

     हमर छत्तीसगढ़ी के पद्य लेखन म घलो एक अलग अउ स्वतंत्र चिन्हारी हे, एकर लेखन स्वर अउ ताल के माध्यम ले लिखे के हे। छत्तीसगढ़ी पद्य ल स्वर अउ ताल बद्ध लिखे जाथे। महान संगीतकार स्व. खुमान लाल साव जी एकर संबंध म एक बहुत बढ़िया उदाहरण देवंय। उन बतावंय के "चंदैनी गोंदा " के रिकार्डिंग खातिर जब वोमन मुंबई गे राहंय, त एक करमा गीत - 'दिया के बाती ह वो कइसे सच बात ल कहिथे जरे के बेरा' म ताल पांच मात्रा के बाजय।

     उन बतावंय के दुनिया म अउ कहूं पांच मात्रा के विषम ताल नइ होवय। सब म दू अउ चार मात्रा के सम ताल होथे।

     उन बतावंय, बंबई के जतका संगीतकार उहाँ बइठे राहंय, सब माथा धर लिए राहंय, वोमन म के एको संगीतकार बहुत कोशिश करे के बावजूद वो पांच मात्रा के ताल ल बजा नइ पाइन।

    आज छत्तीसगढ़ी म घलो अपन मौलिक चिन्हारी ल छोड़ के दूसर भाषा मन के परंपरा ल लिखे अउ लादे के रिवाज चल गे हवय। दूसर भाषा के लेखन शैली ल थोर बहुत अपनाना तो स्वागत योग्य बात आय। फेर आरुग दूसर भाषा के लेखन शैली ल ही हमर मूड़ में खपल देना ल स्वीकार नइ करे जा सकय।

आजकाल कविता के नॉव म हिन्दी, उर्दू अउ आने-आने भाखा मन के काव्य लेखन के परंपरा के जइसन बढ़वार हमर इहाँ देखे ले मिलत हे, वो ह सोचे के बात आय।

    कोनो भी भाषा के विकास अउ सम्मान वोकर खुद के लेखन रूप के बढ़वार हो सकथे, आने के परंपरा ल अपनाय अउ थोपे म नहीं।

    खुमान साव जी जब मोर 'रिकार्डिंग स्टूडियो' रिहसे त उन जब कभू रायपुर आवयं, त मोर जगा बइठे खातिर जरूर आवयं, तहाँ ले  मंझनिया भर हमर मन के कतकों विषय ऊपर गोठबात चलत राहय. उन काहंय- सुन न सुशील, जे मन हिन्दी काव्य परंपरा के मुताबिक लघु गुरु के मात्रा ल गनत रहिथें न, ते मन मोला एक नइ सुहावय.

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो. 9826992811