Tuesday 26 March 2024

रंगमंच दिवस की शुभकामनाएँ.. गंवइहा

विश्व रंगमंच दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.. 
   रंगमंच पर अभिनय करने का वैसे मेरा कोई विशेष अनुभव नहीं है, फिर भी हमारे छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार रहे स्व. टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी के द्वारा लिखित नाटक 'गंवइहा' में बाजार के एक दृश्य में मात्र एक मिनट के लिए मंच पर आने का संयोग है.
   राधेश्याम बघेल एवं राकेश चंद्रवंशी के कुशल निर्देशन में 1 जनवरी 1991 को रायपुर के रंगमंदिर के मंच पर प्रस्तुत किए गये 'गंवइहा' नाटक के सभी गीत मेरे द्वारा लिखे गये थे, जिसे ग्राम बोरिया के कलाकार मित्र गोविन्द धनगर, जगतराम यादव, खुमान साव आदि के साथ मिलकर संगीतबद्ध कर गायन भी किए थे.
    रंगमंदिर रायपुर में 1 जनवरी 91 को प्रस्तुत किये गए नाटक गंवइहा को अपार सफलता मिलने के कारण इसे उसी वर्ष भिलाई में आयोजित होने वाले 'लोक कला महोत्सव' में भी मंचित किया गया था.
   गंवइहा में मुख्य पात्र थे- राधेश्याम बघेल, विष्णुदत्त बघेल, पूरन सिंह बैस, हरिश सिंह, संदीप परगनिहा, इंद्रकुमार चंद्रवंशी, अमित बघेल, राकेश वर्मा, मंजू, अंजू टिकरिहा, रमादत्त जोशी, टाकेश्वरी परगनिहा एवं साधना महावादी सहित अनेक सहयोगी कलाकार और मित्र थे.
    आप सभी को आज विश्व रंगमंच दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.

Wednesday 13 March 2024

मृतात्मा के शांति बर उरई म पानी..

विचार//
मृतात्मा के शांति खातिर दस दिन ले उरई म काबर रितोथन पानी? 
    हमर छत्तीसगढ़ म तइहा बेरा ले ए परंपरा चले आवत हे, के जेन कोनो हमर लाग-मानी मन अपन नश्वर देंह के त्याग कर के अपन देवलोक के रद्दा चल देथें, वोला अंत्येष्टि या कहिन काठी के दिन ले दसगात्र तक रोज कोनो तरिया या नदिया म घाट बना के पॉंच पसर पानी जरूर देथन.
    ए परंपरा ह इहाँ के हर जाति समाज म देखे म आथे. जेन तरिया या नदिया म मृतात्मा ल पानी दे खातिर घाट बनाए जाथे, वोमा 'उरई' नामक एक जलीय पौधा ल गड़िया दिए जाथे, तहाँ ले वो जगा मृतात्मा खातिर एक ठन मुखारी मढ़ा दिए जाथे. जेन गाँव या घाट म उरई के पौधा नइ मिलय उहाँ दूबी ल गड़िया दिए जाथे, काबर ते दूबी ल घलो उरई बरोबर अम्मर माने जाथे, फेर उरई ल प्राथमिकता दिए जाथे. 
   हमर जिनगी म जनम ले मरण तक कतकों नेंग-जोग अउ रीति-रिवाज हे, जेला हमन पुरखौती बेरा ल पूरा निष्ठा अउ नियम के साथ मनावत आवत हावन. आप सब जानथौ के हमर छत्तीसगढ़ ह मूल रूप ले प्रकृति के उपासक समाज आय. एकरे सेती हमर इहाँ प्रकृति ले जुड़े हर जिनिस, जइसे जीव-जंतु, रुख-राई, कांदी-कुसा आदि सबोच ल इहाँ के नेंग-जोग अउ रीति-रिवाज म संघारे गे हावय.
   नदिया, नरवा, तरिया, ढोड़गा जम्मोच पानी के तीर म पाए जाने वाला जलीय पौधा 'उरई' घलो अइसने एक प्राकृतिक जिनिस आय, जे ह कभू मरबे नइ करय, माने एक किसम ले अम्मर होथे. ए उरई ह कतकों खड़खड़ ले सूखा जाय राहय, फेर जब कभू थोर-बहुत पानी मिल जाथे, तहाँ ले फेर हरिया के मुस्काए लगथे. माने वापिस पुनर्जीवित हो जाथे.
    हमन तइहा बेरा ले सुनत अउ पढ़त आवत हावन के आत्मा रूपी जीव ह कभू मरय नहीं, मरथे कहूँ त ए पॉंच तत्व ले बने शरीर ह. एकरे सेती एला आत्मा के शरीर बदलना घलो कहे जाथे. कहे जाथे के आत्मा ह जर्जर होवत शरीर ल बदल के दूसर नवा शरीर म प्रवेश कर जाथे. इहू मान्यता हावय के वो आत्मा ह अपन तात्कालिक देंह के माध्यम ले करे गे कर्म के मुताबिक कोनो आने चोला धारण करथे या फेर मोक्ष या सद्गति के प्रक्रिया म कोनो देवमंडल म थिरावत रहिथे, आनंद भोगत रहिथे.
   एकरे सेती जब वो ह अपन तात्कालिक देंह के त्याग करथे, तब हम सब ओकर सगा-संबंधी मन कोनो तरिया या नदिया म घाट बना के दस दिन ले ओकर नॉव म नाहवन नहाथन अउ उरई खोंच के तिलि जवां संग पॉंच पसर पानी देथन, अउ मने मन अरजी करथन के हे पुण्य कर्म करने वाला आत्मा जा  तुंहला शांति मिलय, जेन कोनो योनि म या देवजगत म ठउर पावस, उहाँ इही उरई के पौधा बरोबर सुघ्घर हरियर मुस्कावत राहस, अम्मर राहस.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

कोंदा भैरा के गोठ-16

कोंदा भैरा के गोठ-16

-स्कूल म पढ़इया लइका मनला अभी जेन मध्याह्न भोजन दे जाथे ना.. वोमा तहूं ह अपन कोनो पुरखा के सुरता या अपन जनमदिन, बिहाव बछर के सुरता म बढ़िया पुष्टई जेवन खवा सकथस जी भैरा.
   -अच्छा.. स्कूल के लइका मनला जी कोंदा? 
   - हव अभी स्कूल शिक्षा विभाग ह अइसन आदेश जारी करे हे.. एला न्योता भोजन योजना के नाम दे गे हवय. 
   -ए तो बढ़िया बात आय संगी.. जब हमन कोनो परब तिहार या उत्सव के बेरा म पूरा गाँव भर के लोगन ल नेवतथन त लइका मनला घलो एमा संघारे जा सकथे.
   -हव जी.. एमा पुष्टई वाले जिनिस ही शामिल रइही, जेला स्कूल के शिक्षक अउ रसोइया मन बने जॉंच करहीं. जेन दिन अइसन नेवता भोजन बांटे जाही, वो दिन मध्याह्न भोजन नइ दे जाय, अइसन म वो बांचे मध्याह्न भोजन के पइसा ल आने दिन के भोजन म जादा पुष्टई वाले जेवन के रूप म परोसे जाही.
   -ए तो बने बात ए जी.. एकर ले लइका मनला जादा पुष्टई के जेवन मिल पाही.
🌹
-आजकाल कुछू धरम परंपरा के अंते-तंते तर्क-विर्तक कर के विरोध करई ह ज्ञानी कहाए के नवा रिवाज बनत जावत हे जी भैरा.
   -कइसे ढंग के जी कोंदा? 
   -अब कालीच एक झन काय चंदोर कहिथे तेन ह काहत रिहिसे के नदिया नरवा मन के जयंती नइ होवय, जे मन अइसन कहिथें वो ह प्रकृति संग खेलवाड़ आय. 
   -मतलब..? 
   -अरे.. जइसे गंगा जयंती, नर्मदा जयंती आदि मनाए के परंपरा हे, ए ह गलत हे.. तर्क संगत नइए.. अइसन कोनो नदिया नरवा मन के जयंती नइ हो सकय. 
   -फेर ए ब्रम्हांड म जेन कुछू भी जिनिस हे, सब के कभू न कभू तो जनम होएच हे ना.. आखिर ए पूरा दृश्य जगत ह तो पहिली अदृश्य रिहिसे, शून्य रिहिसे त फेर वोकर मन के जनम के परब मनाना ह कइसे अतार्किक हो सकथे? 
   -आजकाल ए ह ज्ञानी कहाय के नवा चलागन बनत हे.. भले वोकर तर्क ह नादानी अउ मूर्खता के चारी करत दिखत जनावय, फेर वो ह रेंधियई करबे करथे.
   -ले अइसन ज्ञान के अंधरा मनला अंधियारी खोली म अंजोर के पासा ढारत बइठे राहन दे संगी.
🌹
-जिनगी के संझौती बेरा म मुंहाचाही बर एक संगी के होना बहुते जरूरी होथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा सिरतोन आय.. अब कालेच देखना हमर रायपुर के शहीद स्मारक भवन म एक समाज के युवक युवती परिचय सम्मेलन होइस, तेमा एक साठ बछर के विधुर सियान घलो अपन परिचय दिस.. अउ कहिस के मोला अपन जिनगी के ए संझौती बेरा म दुख सुख के गोठ ल गोठियाए बर एक संगी चाही. ए आखिरी उमर के जिनगी ल अकेल्ला पहवाना बहुते दुखदायी जनाथे.
   -सही आय संगी.. इही उमर म तो सुख दुख के संगवारी के सबले जादा आवश्यकता होथे. पहिली वानप्रस्थ आश्रम के परंपरा रिहिसे त लोगन जंगल झाड़ी म जाके अपन डेरा बना लेवत रिहिन हें, तप जप म लीन हो जावत रिहिन हें, फेर अब तो ए परंपरा ही नंदागे, त घर के डेहरी म ही जिनगी पहवाय बर लागथे.. अइसन म मुंहाचाही के संगवारी खोजे बर तो लागहीच. समाज के संगे-संग घर परिवार के लोगन ल अइसन विधुर, विधवा अउ तलाकशुदा मन डहार जरूर चेत करना चाही-जिनगी के संझौती बेरा म मुंहाचाही बर एक संगी के होना बहुते जरूरी होथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा सिरतोन आय.. अब कालेच देखना हमर रायपुर के शहीद स्मारक भवन म एक समाज के युवक युवती परिचय सम्मेलन होइस, तेमा एक साठ बछर के विधुर सियान घलो अपन परिचय दिस.. अउ कहिस के मोला अपन जिनगी के ए संझौती बेरा म दुख सुख के गोठ ल गोठियाए बर एक संगी चाही. ए आखिरी उमर के जिनगी ल अकेल्ला पहवाना बहुते दुखदायी जनाथे.
   -सही आय संगी.. इही उमर म तो सुख दुख के संगवारी के सबले जादा आवश्यकता होथे. पहिली वानप्रस्थ आश्रम के परंपरा रिहिसे त लोगन जंगल झाड़ी म जाके अपन डेरा बना लेवत रिहिन हें, तप जप म लीन हो जावत रिहिन हें, फेर अब तो ए परंपरा ही नंदागे, त घर के डेहरी म ही जिनगी पहवाय बर लागथे.. अइसन म मुंहाचाही के संगवारी खोजे बर तो लागहीच. समाज के संगे-संग घर परिवार के लोगन ल अइसन विधुर, विधवा अउ तलाकशुदा मन डहार जरूर चेत करना चाही.
🌹
-अब तो ककरो मरिया हरिया म मसान घाट घलो जाय बर नइ लागय काहत हें जी भैरा.
   -कइसे गोठियाथस जी कोंदा..! अरे भई जेन कोनो अपन चिन्हार भीतर के मन सरग के रद्दा रेंग दिहीं त उनला चार खांध म मसान घाट लेग के आगी माटी तो देच बर लागही ना..? 
   -सेंट्रल रोटरी क्लब वाले मन अब घर बइठे आगी देके जुगाड़ करत हें जी संगी.
   -वाह भई..! 
   -हव.. अभी चेन्नई म ए सेवा ह चालू होगे हे.. अवइया बेरा म सबोच डहार अइसन होय लागही. वोमन ल बस एक घंव फोन करे भर बर लागथे, तहाँ ले गैस के आगी म देंह ल लेसे वाला मोटर धर के तोर घर के दुवारी म आके खड़ा हो जाही अउ घंटा भर म  सब लेस लुसा के वोकर हांड़ा ल तुंहला सौंप के वापस चल देही.
   -मोला तो ए ह सुनेच म अलकर जनावत हे संगी.. हमर परंपरा, नता-रिश्ता के व्यवहार, मान-गौन सबके फेर का होही? 
   -त एमा कोनो जोर जबर्दस्ती थोरहे हे संगी.. ए तो वोकर मन बर आय, जिंकर मन के कोनो नइए.
🌹
-अब तो धरम ह धंधा बनगे हे जी भैरा.. कहूँ जगा कथा प्रवचन करवाना हे, त कथा कहइया के संग ताली बजा के हाथ ऊंचइया मन के भीड़ लाने बर आधा-आधा के बंटनिया म ठेकादार मिल जाथे.
   -कइसे अलकरहा गोठियाथस जी कोंदा...? 
   -अरे.. अइसन मैं नइ काहत हौं जी संगी.. अभी हमर रायपुर के हिंद स्पोर्टिंग मैदान म जेन कथा चलत हे तेकर महराज ह अइसन कहे हे. 
   -वाह भई.. ताज्जुब लागथे..! 
  -एमा ताज्जुब के का बात हे संगी.. हम तो अपन गाँव गंवई म अधिया म कथा पढ़त, पूजा अउ  बर-बिहाव करवावत कब के देखत आवत हन. 
   -अच्छा.. ! 
   -हव.. जब एक झन कथा पढ़इया या पूजा करइया ल एकेच तिथि म अबड़ जगा के नेवता मिल जाथे, त वो ह आने आने सबो जगा बर अधिया बंटवारा म आने आने कथा पढ़इया अउ पूजा करइया मन के जुगाड़ कर लेथे. अइसने सबो अउ जिनिस मन म घलो होवत होही.
   -तब तो जादा अच्छा ए हे संगी के हम अपनेच हाथ ले पूजा कथा कर लेवन.
🌹
-एक झन सियानीन ह महतारी वंदन योजना के नॉव ल महतारी के जगा दाई शब्द लिखे जातीस त बने रहितीस काहत रिहिसे जी भैरा.
   -महतारी घलो बढ़िया आदरसूचक शब्द आय जी कोंदा.. मोला इही शब्द ह जादा मयारुक जनावत हे.
   -वोकर कहना रिहिसे के हमन आम बोलचाल म दाई शब्द के ही प्रयोग करथन त अपन घर परिवार के दाई मनला मिलत योजना बर अइसने शब्द बने फभतीस काहत रिहिसे.
   -देख संगी.. दाई अउ महतारी दूनों शब्द के अर्थ तो लगभग एकेच होथे, फेर दूनों के भाव म जरूर अंतर होथे.
   -अइसे का? 
   -हहो.. जइसे कोनो ल माँ कहिथन अउ कोनो ल मातेश्वरी त दूनों के भाव म अंतर जनाथे नहीं.. माँ कहे म एक सामान्य भाव के बोध होथे, जबकि मातेश्वरी कहे म वोकर देवी होए के बोध होथे, ठउका अइसने दाई कहे म अउ महतारी कहे म घलो होथे. जइसे हमन छत्तीसगढ़ ल दाई नहीं महतारी कहिथन.
   -अच्छा..! 
   -हव.. इही तो शब्द मन के जगा अउ वोकर संबंध म उपयोग करे के गुन आय.. अब जइसे हम कोनो ल ए  डोकरा सुन तो काहन अउ उहिच ल सुनव तो सियान कहिके संबोधित करन त वोकर भाव म अंतर जनाही नहीं?
🌹
-दुनिया म चारों मुड़ा युद्ध होतेच रहिथे जी भैरा, अब रूस अउ यूक्रेन के युद्ध ल ही देख ले तीन बछर ले ऊपर होगे, फेर एकर थिराए के कोनो आस नइ दिखत हे.
   -हव जी कोंदा.. ए जे अमेरिका जइसन हथियार उत्पादक देश हें ना ए मन नइ चाहंय के दुनिया म शांति राहय.. काबर ते इही युद्ध मन के भरोसा तो उंकर देश के खजाना लबालब भरथे, उहाँ के लोगन ल रोजगार मिलथे अउ सबले बड़े उंकर मन के दादागिरी के जलवा बने रहिथे.
   -वाह भई.. एकरे सेती दुनिया म युद्ध चलत रहिथे..? 
   -हव.. रूस चाहय त यूक्रेन संग वोकर युद्ध तुरते सिरा सकथे, फेर वो खुद अइसन नइ चाहय.. वो असल म युद्ध के बहाना अपन हथियार खरीददार देश मनला देखाना चाहथे, के देखौ कतेक जबर जिनिस हमन बनाए हावन.. तुमन अपन देश के सुरक्षा के नॉव म ए सबला बिसावत राहव.. सबो हथियार उत्पादक देश मन के इही चरित्तर आय.. त तहीं बता अइसन म भला दुनिया म शांति कहाँ ले स्थापित हो पाही?
🌹
-नवा जमाना के 3डी जूता आवत हे कहिथें जी भैरा.. एस्सा कंपनी के ए पनही के शुरूआती कीमत 21 हजार रुपिया रइही.
    -वाह जी कोंदा.. पनही के कीमत 21 हजार..! 
   -हव.. ए 3 डी पनही म सेंसर डेटा लगे रइही काहत हें, तेकर सेती वो तोर पॉंव के मुताबिक अपन साईज़ ल कम जादा कर लेही, फेर जुड़ के दिन म तात अउ गरमी म जुड़ जनाही काहत हें.
   -जइसे माटी के घर ह जुड़ तात जनाथे तइसे गढ़न के? 
   -हव.. 
   -त एमा नवा का हे संगी.. हमर गाँव के मेहर जगा निमगा चाम के पनही अउ भंदई पहिरन तेकर सुरता हावन नहीं, उहू ह सोला आना सोहलियत जनावय, फेर वोला तो चाहे कांटा-खूंटी म पहिर ले ते पानी-बादर म.. बाउत के नांगर, बियासी के नांगर सबोच म तो चभरंग चभरंग पहिरे रेंगन. गरमी के दिन म कहूँ अंकड़े असन करय त ओंगन तेल म बोर देवन, तहाँ ले मार कोंवर कोंवर कइसे निक जनावय? 
   -हव जी सिरतोन कहे.. ए 21 हजारी पनही तो पानी बादर, चिखला माटी म थोथना ल धपोर देही.. का सेंसर फेंसर कहिथें तेनो ह जुड़ा सिता जाही.
🌹
-शिवरात्रि जोहार जी भैरा.
    -जोहार संगी कोंदा.. का बात हे ए बछर तो जतका गाँजा-भाॅंग के दुकान हे, सबो म बिक्री बाढ़गे हे कहिके पेपर मन म छपत हे.
   -अब ए तो चतुरा स्वार्थी मन के चरित्तर के करनी आय.. अपन भोभस म भरे बर भगवान के बहाना अउ बदनामी.
   -बदनामी कइसे संगी.. सबो तो भोलेनाथ म गाँजा-भाॅंग चढ़थें कहिथें.. शिवरात्रि तो एकर खातिर भारी ठउका बेरा होथे बताथें.
   -मैं तो अइसन कोनोच पोथी पतरा म नइ पढ़े औं रे भई.. न कभू अपन जिनगी म चढ़ाए हौं न कोनो ल चढ़ाए बर कहे हौं.. जब भगवान सिरिफ बेलपान, फूल, फर अउ नरियर म मगन हो जाथे त फेर अइसन मंदहा-जकहा बरोबर चरित्तर रचे के का जरूरत हे. मोला तो लागथे संगी अइसन ढंग के चलन अउ गोठ ह इहाँ के लोकदेवता के व्यक्तित्व ल अनफभिक देखाय के एक षडयंत्र मात्र आय. 
   -अइसे..? 
   -हव.. जे मन भगवान म चढ़ा के गाँजा-भाॅंग के चिभिक म परे रहिथें, ते मन जहर के सेवन घलो काबर नइ करंय, आखिर भोलेनाथ ह समुद्र मंथन ले निकले जहर ल लोककल्याण के निमित्त पीए रिहिन हें त?
🌹
-भगवान भोलेनाथ ल काली ले तेल हरदी चढ़ाय के चालू होगे हे जी भैरा.. आज मायन भात खा के काली बरात जाबो नहीं? 
   -कोन जनी जी कोंदा.. मोला उंकर ए परंपरा ह थोकिन अनभरोसिल असन जनाथे.
   -अइसे काबर? 
   -अब अभी पेपर मन म समाचार पढ़े बर मिलत हे, तेकर मुताबिक तो महाशिवरात्रि के दिन उंकर बिहाव होय रिहिस हे तइसे जनाथे, फेर मैं कुछ पोथी म पढ़े रेहेंव के शिवरात्रि के दिन ओमन जटाधारी रूप म प्रगट होए रिहिन हें.
   -अच्छा... अइसे..? 
   -हव.. अब ए ह सुनती बात आय भई के सावन पुन्नी के शिवलिंग रूप म अउ शिवरात्रि के जटाधारी रूप म उन प्रगट होए रिहिन हें, एकरे सेती सावन महीना के संगे-संग शिवरात्रि ल घलो उंकर विशेष पूजा परब के रूप म मनाए जाथे.
   -अइसनो तो हो सकथे संगी, के उंकर बिहाव ह दू पइत होए रिहिसे.. पहिली सती संग अउ पाछू पार्वती संग, त ए दूनों बखत म के एकाद के तिथि ह शिवरात्रि परे रिहिस होही? 
   -कोन जनी भई मैं तो उंकर प्रागट्य रूप के सुरता म ही पूजा उपासना करथौं.
🌹
-हमर छत्तीसगढ़ के इतिहास ल देख पढ़ के हमन गरब के मारे अपन पीठ ल भले थपथपावत रहिथन जी भैरा, फेर एमा के कतकों ह तर्क संगत नइ जनावय.
   -कइसे ढंग के जी कोंदा? 
   -अब शिवरीनारायण के बात ल ही देख ले, एला माता शबरी के निवास स्थान बताए जाथे, जिहां भगवान राम ह अपन भाई लक्ष्मण संग उंकर जूठा बोइर खाए रिहिन हें, फेर ए बात ह मोला सही नइ जनावय, काबर ते हमर छत्तीसगढ़ म तो भगवान राम के संग माता सीता अउ भाई लक्ष्मण घलो रिहिन हें, अउ छत्तीसगढ़ ले आगू बढ़े के बाद फेर सीता जी के हरण होय रिहिसे, अउ सीता हरण के बाद ही शबरी माता के आश्रम राम अउ लक्ष्मण गे रिहिन हें.
   -तोर बात तो वाजिब जनाथे संगी.
   -रामचरितमानस के मुताबिक सीताहरण पंचवटी ले होय रिहिसे. अउ पंचवटी ह महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिला म हे. रामचरितमानस के मुताबिक शबरी आश्रम कर्नाटक राज्य के पंपा नदी के तीर हे. तब ए बता के हमर छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण ह फेर कइसे शबरी माता के स्थान हो सकथे?
🌹
-अब तो वैज्ञानिक मन घलो ए बात ले सहमत होगे हावंय जी भैरा के हमर तेल पेरे, धान कूटे अउ पिसान पीसे के जेन पारंपरिक तरीका रिहिसे वो ह स्वास्थ्य अउ सुवाद दूनोंच खातिर एकदम सही रिहिसे.
   -ए बात ल तो मैं कब के काहत हौं जी कोंदा घानी के पेरे तेल, जांता म पीसे पिसान अउ ढेंकी म कूटे चॉंउर ह हर दृष्टि ले जादा गुनकारी होथे. हमला अपन जुन्ना परंपरा डहार लहुटना चाही.
   -हव सही आय.. अभी विश्व प्रसिद्ध रिचर्स जर्नल फूड केमिस्ट्री म छपे शोध के अनुसार हमर पारंपरिक तरीका घानी ले पेरे सरसों के तेल म आॅउरेन्टियामाइड एसीटेट नॉव के एण्टी कैंसर कम्पाउंडर पाए जाथे, जे ह कतकों किसम के रोग-राई संग लड़े बर हमला ताकत देथे. ए महत्वपूर्ण तत्व ह बड़े बड़े मशीन ले निकाले तेल म वतका मात्रा म नइ पाए जाय, काबर ते मशीन मन भारी रफ्तार म चलथें, जेकर सेती वो मन एकदम गरम हो जाथे. मशीन के इही गरम होवई ह अनाज मन के भीतर म पाए जाने वाला पोषक तत्व ल जला डारथे, तेकर सेती हमला मशीन ले निकले जिनिस म वतका पोषण नइ मिल पावय, जतका पारंपरिक तरीका ले निकले जिनिस मन म मिलथे.
🌹
-शिवरात्रि ल बने-बने मनाएव जी भैरा? 
   -हव जी कोंदा.. हमूं मन मनाएन अउ संगी-साथी मन घलो.
   -बने आय संगी.. हमर देवजगत म सिरिफ भोलेनाथ ही तो हें, जेन पूरा समतावादी हें, उनमा काकरो खातिर छोटे बड़े, ऊँच-नीच के भेद नइए, तभे तो उनला देवता दानव सबोच मानथें.. उंकर उपासना करथें.
   -ए बात तो हे संगी, फेर उंकर ए शिवरात्रि तिथि के संबंध म लोगन के अलग-अलग मान्यता देखे म आथे. कोनो एला उंकर बिहाव के परब मानथें, त कोनो शिवलिंग पूजन के प्रथम दिवस के रूप म, त कोनो जटाधारी रूप म प्रागट्य दिवस के रूप म. 
   -हाँ ए तो हे संगी.. फेर ए सबले अलग इहाँ के मूलनिवासी समाज कोयतोर (गोंड) मन ए शिवरात्रि ल 'संभू शेक नरका' के रूप म मनाथें. उंकर मानना हे के समुद्र मंथन के विष ल पान करे के बाद भोलेनाथ ह बेहोशी म चल दिए रिहिन हें, तेन ह शिवरात्रि के दिन चेतन अवस्था म वापस आए रिहिन हें.
   -सबके अपन मान्यता अउ आस्था हे संगी, तभे तो इनला पोथी पतरा ले अलग हट के 'लोक के देवता' घलो कहे जाथे.
🌹
-हमर देश म आईरिस नॉव के पहला रोबोट शिक्षिका आगे हे जी भैरा.
   -खबर तो सुने म बने जनावत हे जी कोंदा, फेर का एकर ले मानव श्रम के उपेक्षा नइ होही, जइसे खेती किसानी आदि के मशीनीकरण होय ले खेतिहर श्रमिक मन के हाथ बेरोजगार होगे हे? 
   -तोर चिंता ह सही आय संगी, फेर ए रोबोट शिक्षिका के माध्यम ले शिक्षा के स्तर के संग छात्र शिक्षक संबंध म बहुत सुधार आही. तिरुवनंतपुरम के केटीसीटी स्कूल म लुगरा पहिर के चार चक्का म ढुलत आए आईरिस ह कोनो भी तीन प्रमुख भाषा म गोठिया सकथे अउ विज्ञान गणित जइसन कोनो भी विषय के कतकों कठिन सवाल के छिन भर म सही जवाब दे सकथे.
   -ए तो बने बात आय संगी.. मैं कोनो भी किसम ले विज्ञान के आविष्कार के विरोधी नइहौं, फेर एकर नॉव म मानव श्रम के कोनो किसम के उपेक्षा नइ होना चाही, तेकरो संसो करइया औं.
   -जरूर करना चाही, काबर ते हमर इहाँ बेरोजगारी के दर चिंता जनक स्थिति म जनावत हे.. हमला वैज्ञानिक आविष्कार के स्वागत करना चाही, त मानव श्रम खातिर घलो नवा-नवा रद्दा सिरजाना चाही.
🌹
-हमन अपन भाखा के लिखित/प्रकाशित साहित्य ल गजब जुन्ना देखाय खातिर एकर मिश्रित रूप ल घलो संघार डारथन जी भैरा.
   -कइसे गढ़न के जी कोंदा.. हमर लोकसाहित्य तो नंगते जुन्ना हावय ना? 
   -हव.. लोकसाहित्य तो हे, मैं लिखित/प्रकाशित साहित्य के गोठ करत हौं, जेकर लेखक मनला हमन जानथन. जइसे के छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि के रूप म ए कहि देथन के संत कबीर दास जी के बड़का चेला धनी धरमदास जी आय कहिके.
   -हव.. कतकों झन लेखक के आलेख मन म तो महूं अइसने पढ़े हावौं.
   -फेर मोला लागथे के धरमदास जी के रचना मनला आरुग छत्तीसगढ़ी के रचना नइ केहे जा सकय. 
   -अइसे का..! 
   -हव.. उंकर रचना मन म छत्तीसगढ़ी ले जादा बघेली अउ अवधि के शब्द पढ़े म आथे. काबर ते धरमदास जी छत्तीसगढ़ के मूल निवासी तो नइ रिहिन.. वो मन इहाँ बघेल खंड क्षेत्र ले आए रिहिन हें, एकरे सेती उंकर रचना मन म बघेली संग अवधि के शब्द देखे म आथे.. हाँ भई.. आरुग छत्तीसगढ़ी के गोठ करिन त हम काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के छत्तीसगढ़ी व्याकरण ल पहला प्रकाशित कृति मान सकथन.
🌹
-हमन महादेव संग बिराजे माता सती, पार्वती, उमा, गिरिजा, गौरा आदि मनला एके समझथन ना, वोला इहाँ के मूल निवासी कोया वंशी गोंड समुदाय के मन अलग अलग बताथें जी भैरा.. उंकर कहना हे के हमन जेला 'शंभू शेक' कहिथन वो ह सिरिफ एक उपाधि आय. ए शंभू शेक के उपाधि ले अलंकृत होके इहाँ 88 अलग अलग लोगन शासन करे हें. ए सबो ल उंकर पत्नी मन के नाम के संग म संयुक्त रूप ले चिन्हारी करे जाथे.
   -वाह जी कोंदा ए तो एकदम अनसुने बात आय. 
   -हव.. एकर मन के एक सामाजिक लेखक अउ चिंतक कोसो होड़ी के एक आलेख म एकर जानकारी दिए गे हवय. गण्डोदीप सतपुड़ा ले ए मन अपन शासन चलावंय.. एमा शंभू मूला ह प्रथम जोड़ी आय. शंभू गवरा मध्य के अउ शंभू गिरजा अंतिम जोड़ी.
   -वाह भई..! 
   -शंभू गवरा के बाद शंभू बेला, शंभू मूला, शंभू तुलसा, शंभू उमा, शंभू गिरजा, शंभू सति, शंभू पार्वती आदि 88 शंभू होइन. कोसो होड़ी ह अपन लेख म बताय हे के शंभू पार्वती जेन एमा के अंतिम जोड़ी रिहिसे वोकरे शासन काल ले इहाँ आर्य टोली मन के आना शुरू होइस.
🌹
-अब ले तो जी भैरा.. राष्ट्रपति ह अपन दाई के मरे के बाद मिलइया मुआवजा खातिर भटकत हे काहत हें..! 
   -राष्ट्रपति ह मुआवजा खातिर भटकत हे..! कइसे अंते-तंते गोठियाथस जी भैरा? 
   -हव जी संगी.. मनेंद्रगढ़ जिला के गाँव घुटरा के रहइया ए राष्ट्रपति ह.. असल म गाँव घुटरा के वार्ड 12 म रइहया आठवीं फेल मनखे के नॉव हे राष्ट्रपति.
   -वाह भई..! 
    -हव.. उहू म गुरुजी मन के स्कूल दाखिला म वोकर नॉव लिखे म गलती करे के सेती राष्ट्रपति लिखागे हावय, जेन ह वोकर आधारकार्ड आदि सबोच म चलथे.. असल म वोकर नॉव वोकर ददा दाई मन 'राजपति' रखे रिहिन हें, फेर गुरुजी मन के गड़बड़ी के सेती बपरा राष्ट्रपति ल कतकों जगा हांसी-दिल्लगी के संग अउ कतकों किसम के परेशानी के सामना करना परथे.. अब देखना सरगुजा ग्रामीण विकास बैंक म धन वृद्धि जमा प्रमाण पत्र के जरिए वोकर महतारी के सड़क हादसा होय मौत के बाद वोकर जमा राशि ल निकाले बर दर दर भटके बर लागत हे.
🌹
-हमर इहाँ के सियानीन ह आजकाल दार्शनिक मन बरोबर गोठियाथे जी भैरा.
   -कइसे ढंग के दार्शनिक गोठ जी कोंदा? 
   -वोकर कहना हे- सबो जिनिस तो मोर माध्यम ले आथे या मिलथे, फेर वोमा नॉव तोर काबर चलथे कहि देथे.
  -का जिनिस ह वोकर होथे अउ नॉव तोर होथे? 
   -सबोच जिनिस म.. चूरी-फुंदरी मैं पहिनथौं फेर तोर नॉव धराथे, माथा मोर फेर टिकली तोर नॉव के, माँग मोर फेर सेंदुर तोर नॉव के.. अउ ते अउ पेट मोर, छाती के दूध मोर फेर एला पी के जमनाय अउ बाढ़त लइका घलो तोर नॉव के.
   -वइसे कहे बर तो सियानीन ह सिरतोन ल कहिथे जी संगी.. फेर ए तो प्रकृति अउ समाज के बनाय व्यवस्था आय.. एमा तोर दोष तो नइए. 
   -हव जी सही आय.. फेर वोकर कहना हे- एकाद ठन तैं ह अइसने कुछू जिनिस बता दे, जेला तैं ह मोर नॉव ले धारण करत होबे?
    -अब धारण करे के बात ल तो नइ जानौं, फेर तैं ह रातदिन जांगर टोर के कमावत सकेलत रहिथस तेन ह काकर नॉव के आय कहिके पूछते.
🌹
-मोर नाती ह आज पूछ परिस जी भैरा के ककरो मरनी के पाछू हमन तरिया नदिया म घाट बनाके दस दिन ले वोला पानी देथन नहीं.
   -हाँ देथन तो जी कोंदा.. ए तो हमर पुरखौती परंपरा आय.. जेन घाट म नहाथन वोमा तरिया म जामे उरई नइते दूबी ल एका जगा गड़िया देथन तहाँ ले वोमा दतवन अउ तिली, जवा आदि संग पसर पसर पानी देथन.
   -इही जेन उरई या दूबी ल गड़िया के पानी देथन तेकरे का महत्व हे कहिके पूछत रिहिसे.
   -देख संगी, हमन तइहा बेरा ले प्रकृति के उपासक हावन, तेकरे सेती प्रकृति के अइसन जिनिस के माध्यम ले अपन भावना ल व्यक्त करथन जेन ह वोकर मुताबिक जनाथे.
   -अच्छा.. अइसे? 
   -हव.. अब देख उरई अउ दूबी ह एक अइसे किसम के अमर पौधा आय, जेन ह कतकों खड़खड़ ले सूखा के मरत असन दिखत राहय, फेर जब वोमा पानी परथे, त फेर हरिया के मुस्काए लगथे. माने फेर जी जाथे.
   -हाँ ए बात तो हे.
   -एकरे सेती हम अपन नता-रिश्ता ल ए अमर पौधा म पानी दे के ए आसा करथन, के वोकरो आत्मा ह कोनो भी जीव-जगत राहय.. उरई कस हरियर अउ अम्मर राहय.
🌹

Monday 4 March 2024

राष्ट्रीय व्याकरण दिवस..

राष्ट्रीय व्याकरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ... 

    भाषा के महत्व को समझने तथा भाषा में शुद्धता एवं एकरूपता लाने के लिए व्याकरण दिवस मनाया जाता है. पहिली बार वर्ष 2008 में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश के द्वारा 4 मार्च को व्याकरण दिवस की शुरुआत की गई थी, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी स्वीकार कर लिया है. अब प्रायः सभी देश अपनी भाषा के महत्व को समझाने के लिए 4 मार्च को राष्ट्रीय व्याकरण दिवस मनाने लगे हैं.
     हमें गर्व है कि छत्तीसगढ़ी भाषा का व्याकरण सन् 1890 में छत्तीसगढ़ी के साथ अंगरेजी भाषा में संयुक्त रूप से प्रकाशित हुआ था. 
    छत्तीसगढ़ी व्याकरण के लेखक काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी सन् 1880 से 1885 के बीच इस छत्तीसगढ़ी  व्याकरण को लिखे थे, जिसे उस समय के प्राख्यात व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन के द्वारा अंगरेजी में अनुवाद कर छत्तीसगढ़ी और अंगरेजी में संयुक्त रूप से 1890 में प्रकाशित करवाया गया था.
   आप सभी को राष्ट्रीय व्याकरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
-सुशील भोले