Thursday 25 August 2022

तीजा उपास अउ करू भात

तीजा उपास अउ करू भात
    हमर इहाँ के तीजहारिन मन तीजा उपास के बिहान भर घरों घर किंजर किंजर के बासी खाये ले जादा, उपास के पहिली दिन करू भात खाये म जादा रुचि लेथें. वइसे तीजा उपास संग करू भात खाये के कोनो आध्यात्मिक कारण तो नइहे, फेर एकर आयुर्वेदिक महत्व जरूर हे.
    जानकर मनके कहना हे- करू भात के रूप म खाये जाने वाला करेला के साग म कतकों किसम के आयुर्वेदिक गुण होथे, जेकर ले उपसनिन मनला, जेन कटकर ले 24 घंटा के निरजला उपास रहिथें, वोमा जादा पियास नइ जनाए के संगे-संग अउ कतकों किसम के लाभ होथे. शायद इही सबला चेत करके हमर पुरखा मन उपास के पहिली करू भात के रूप म करेला खाये के नेंग बनाए होही.
    वैज्ञानिक मनके कहना हे- करेला म विटामिन A, B अउ C पाए जाथे. एकर छोड़े कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आयरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम अउ मैगजीन आदि घलो पाए जाथे. जेकर सेती उपास रहे के सेती होइवया जलन या गरमी ले बचाथे. पित्त, कफ रुधिर विकार ले बचाथे. पाण्डुरोग, प्रमेह अउ कृमि के नास घलो करथे.
    आजकल बजार म बड़े बड़े हाइब्रिड करेला जादा देखे म आथे, फेर जानकर मनके कहना हे- अइसन बड़का बड़का करेला के बदला छोटे छोटे करेला, जेला हमन अपन घर बारी म मिलने वाला देशी किसम घलो कहि देथन, वोकर उपयोग करना चाही. ए छोटे करेला मन म पौष्टिक तत्व बड़े करेला के अपेक्षा जादा होथे. वइसे करेला के बजार भाव अभी ले तमतमाये बर धर लिए हे. तभे तो कतकों झन अभी ले फ्रीज आदि म सकेले बर धर लिए हें.
-सुशील भोले-9826992811

Tuesday 23 August 2022

पेउस म सौ गुना जादा होथे पोषक तत्व

सामान्य दूध ले सौ गुना जादा फायदा करथे 'पेउस'
    जेकर मन के घर म गाय-गोरू पोंसे जाथे, वोमन उंकर लइका जनमे के तुरंत बाद निकलने वाला पिंयर गाढ़ा दूध ल बने चुरो जमा के 'पेउस' जरूर खाए होहीं. अपन हितु-पिरितु मन घर अमराए अउ खवाए घलो होही.
    गाय या भइंस के जनमे के बाद के पहला अउ दूसरा दिन के दूध म पोषक तत्व के मात्रा विशेष रूप ले जादा होथे. चिकित्सा वैज्ञानिक मन के कहना हे- सामान्य दिन के दूध म जतका मात्रा म पोषक तत्व होथे, वोकर ले लगभग सौ गुना तक जादा पोषक तत्व ए बखत होथे. वइसे तो एमा एक सप्ताह तक पोषक तत्व के मात्रा म बढ़ोतरी पाए जाथे, फेर वोमा धीरे धीरे कमी आए लगथे. शुरू शुरू के दूध ह तो बने जमथे घलो, वोकर बाद के ह खुजरी असन होए लागथे. खुजरी माने जइसे फटे दूध ह दिखथे, तइसे बरोबर हो जाथे. तभो एमा मिठास अउ पोषक तत्व रहिथेच. जबकि फटे दूध तो अमसुर बानी के जनाथे.
    चिकित्सा वैज्ञानिक मन के कहना हे- पहला अउ दूसरा दिन के दूध म कुछ विशेष किसम के एंटीबॉडीज होथे, जेहा गाय के थन ले निकलथे. जेकर सेवन ले शरीर ल कई किसम के फ्लू अउ इंफेक्शन ले  बचाए जा सकथे. संग म वो ह शरीर के मांसपेशी ल मजबूत करथे अउ वजन घलो ल घटाथे.
    शायद लइका जनमे के बाद के महतारी मन के दूध म अइसने अद्भुत विशेषता होए के सेती हमरो महतारी मनला अपन लइका मनला तुरंत स्तनपान कराए के सलाह डॉक्टर मन देथें.
    गाय-गोरू के दूध के पेउस जमाए के बारे म जानकर मन के कहना हे- एमा मिठास बढ़ाए बर शक्कर के बदला गुड़ के उपयोग करना आयुर्वेदिक दृष्टि ले जादा लाभकारी होथे.
    गाँव म राहन त अबड़ पेउस खाए बर मिलय. दूध के दुहना ल करो के करौनी घलो गजब खाए हावन, फेर अब शहर म ए सब सपना बरोबर जनाथे. वइसे कभू-कभार इहों दर्शन हो जाथे, फेर वो ह अंगरी म गिनउ कस हे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Wednesday 17 August 2022

एक ले जादा परब म होवथे भरम

एक ले जादा परब अउ संदर्भ के सेती होवत हे भरम...
    आज इंटरनेट के माध्यम ले सोशलमीडिया के चलन संग कतकों अइसन परब अउ उंकर मनले जुड़े संदर्भ मन के आने-आने जुड़ाव देखे बर मिलत हे. एकेच दिन म दू अलग अलग परब के जुड़ना ह सिरिफ संयोग के बात आय, फेर हमर मन के अज्ञानता अउ दूसर मनके देखे बताए संदर्भ ह लोगन म भरम के बीजा बोवत हे. एकर सेती लोगन आपस म ही बहसबाजी अउ तर्क वितर्क करे बर धर लिए हें.
    आवव छत्तीसगढ़ ले जुड़े कुछ अइसने परब मन के मूल स्वरूप अउ आज लोगन ल देखाए जावत आने स्वरूप ल थोरिक टमड़ के देखथन.
    अभी हमन कमरछठ परब मनाए हावन. एला आजकल हलषष्ठी के रूप म बताए जावत हे. आज ले दस पंदरा साल पहिली तक हमन ए हलषष्ठी नाम ल सुने तक नइ रेहेन. छत्तीसगढ़ पुरखौती बेरा ले कमरछठ ही मनावत अउ सुनत आए हे. कमरछठ जेन संस्कृत भाषा के 'कुमार षष्ठ' के अपभ्रंश ले बने शब्द आय. ए ह कुमार अर्थात कार्तिकेय आय. पूरा देवमंडल म कार्तिकेय ल ही कुमार कहे जाथे. एकरे सेती आज के दिन महतारी मन उंकर माता पिता के सगरी बनाके पूजा करथें. तेमा उंकरो लइका मन कार्तिकेय जइसे श्रेष्ठ, योग्य अउ दीर्घायु हो सकय. फेर सोशलमीडिया के संगे-संग अउ आने मीडिया मन के माध्यम ले अन्य प्रदेश ले अवइया ग्रंथ अउ लोगन के बताए बात के सेती एला बलराम जयंती के रूप म प्रचारित करे जाय लगे हे. एक बात तो आप मन स्पष्ट जान लेवव, इहाँ के मूल निवासी समाज ह आदिकाल ले जेन परब ल जीयत आए हे, वो ह बलराम ऊपर आधारित तो बिल्कुल नइ हो सकय.
    अभी अवइया महीना म 'दशहरा' अवइया हे. इहू म अइसने झिंकातानी असन बात हो सकथे. काबर ते 'दंसहरा' ल विजयादशमी के रूप म ही प्रचारित करे जाथे. असल म दशहरा अउ विजयादशमी दू अलग अलग पर्व आय, जेन हमर मनके अज्ञानता के सेती गड्डमड्ड होके एक होगे हे. विजयादशमी ल सबो जानथें. भगवान राम द्वारा आततायी रावण ऊपर विजय प्राप्त करे के परब आय. फेर दशहरा ह असल म 'दंसहरा'आय. दंस अर्थात विष अउ हरा अर्थात हरण के परब. मतलब ए ह विषहरण के परब आय. उही विषहरण जेला शिव जी ह समुद्र मंथन ले निकले विष के करे रिहिसे. एकरे सेती उनला 'नीलकंठ' घलो कहे जाथे. काबर ते उन वो विष ल अपन कंठ माने टोटा म रख लिए रिहिन हें, जेकर सेती उंकर टोटा नीला अर्थात नीलकंठ होगे रिहिसे. दंसहरा के दिन नीलकंठ पक्षी ल देखना शुभ माने जाथे. काबर ते वोला ए दिन शिव जी के प्रतीक माने जाथे. फेर हम ए दू अलग अलग परब ल एकमई कर डारे हावन.
    हमर इहाँ एकर पाछू एक अउ परब आथे, जेला हम सब 'छेरछेरा' के नाम ले जानथन. एकरो संदर्भ म लोगन के अलग अलग मान्यता हे. इहाँ के मैदानी भाग म एला खरीफ फसल के मिंजाई कुटाई के पाछू उत्सव के रूप म दान दे के परब के रूप म मनाए जाथे. जबकि इही ल इहाँ के सब्जी उत्पादक मरार समाज के मन शाकंभरी जयंती के रूप म मनाथें. इहाँ के मूल निवासी समाज एला गोटुल/घोटुल के शिक्षा म पारंगत होए के पाछू तीन दिन के परब के रूप म मनाथें. मोला जेन ज्ञान मिले रिहिसे, तेकर अनुसार ए ह भगवान शंकर द्वारा बिहाव के पहिली पार्वती के परीक्षा ले खातिर नट के रूप म नाचत गावत जाके भिक्षा मांगे के प्रतीक स्वरूप मनाए जाथे. एकरे सेती ए दिन लोगन बने सज-सम्हर के नाचत गावत कुहकी पारत भिक्षा मांगे बर जावंय. अब अइसन नजारा देखई ह नहीं के बरोबर होगे हे. फेर हमन जब गाँव म राहन त छेरछेरा म हमर गाँव के कलाकार टोली वाले मनला ए दिन पूरा रौ म देखन.
    हमर इहाँ एक होली के परब घलो मनाए जाथे, जेला होलिका दहन के रूप म प्रचारित करे जाथे. ए ह छत्तीसगढ़ के संदर्भ म पूर्ण सत्य नोहय. हमर छत्तीसगढ़ म जेन परब मनाए जाथे वो ह असल म 'कामदहन' के परब आय. एकर ले संबंधित कथा सुने होहू- ताड़कासुर नाम के एक असुर ह शिव पुत्र के हाथ ही मरे के वरदान पाके भारी अतलंगी करत रहिथे. काबर ते शिव जी तो सती के आत्मदाह के बाद घोर तपस्या म लीन हो जाए रहिथे. अइसे म कहाँ ले शिव पुत्र आही अउ कोन वोला मारही? गुन के भारी अतलंगी मचावत रहिथे.
    एकरे समाधान के सेती देवता मन कामदेव जगा अरजी करथें के कइसनों कर के शिव तपस्या ल भंग कर तेमा वोहा तपस्या ले उठय, पार्वती संग बिहाव करय, तब शिव पुत्र के आगमन होवय, जेहा ताड़कासुर के अतलंगी ले मुक्ति देवावय.
    देवता मनके अरजी विनती करे ले कामदेव ह अपन सुवारी रति संग बसंत के मादकता भरे मौसम म जाके शिव तपस्या भंग करे के उदिम करथे. वोमन वासनात्मक गीत-नृत्य के प्रदर्शन करथें, तेमा शिव के मन म घलो काम के जागरण हो सकय. फेर इहाँ उल्टा हो जाथे. शिव जी अपन तीसरा नेत्र ल खोल के कामदेव ल ही भसम कर देथे.
    हमर छत्तीसगढ़ म जेन होली के परब मनाए जाथे, वोहा कुल चालीस दिन, बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक मनाए जाथे. बसंत पंचमी के दिन हमर इहाँ जेन होले डांड़ म अंडा पेंड़ गड़ियाये जाथे, वो ह असल म कामदेव के आगमन के प्रतीक स्वरूप ही होथे. वोकर साथ ही इहाँ रोज होले डांड़ म नाचे गाये के सिलसिला चालू हो जाथे. इहाँ ए बात ध्यान राखे के लाइक हे, ए होले गीत नृत्य म वासनात्मक शब्द अउ दृश्य मन के गजब चलन होथे. काबर ते कामदेव अउ रति शिव तपस्या भंग करे बर अइसन उदिम करे रहिथें.
    आपे मन गुनव- कहूँ ए परब ह सिरिफ होलिका दहन के सेती होतीस, त चालीस दिन के काबर मनाए जातीस? होलिका तो एके दिन म चीता रचवाईस, वोमा आगी ढिलवाइस अउ खुदे जल के भसम होगे. वोकर बर चालीस दिन के परब काबर? वासनात्मक गीत-नृत्य अउ शब्द ले होलिका के का संबंध? 
    संगी हो, हमर इहाँ के पूरा के पूरा परब तिहार अउ वोकर मनले जुड़े संदर्भ के नवा सिरा ले समीक्षा करे के जरूरत हे, तभे हमर मूल पहचान बांचे पाही. कहूँ आने आने क्षेत्र ले अवइया लोगन के संगत म उंकर बताए अउ देखाए रद्दा म अंखमुंदा रेंगबो त इहाँ के अस्मिता अउ सांस्कृतिक अस्तित्व के जउंहर हो जाही. अपन स्वतंत्र सांस्कृतिक चिन्हारी खातिर हमला अपन अस्मिता के पारंपरिक रूप के अनुसार लेखन, पढ़न करे बर लागही. नवा पीढ़ी ल आरूग रूप सौंपे बर लागही.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Monday 8 August 2022

लोक परंपरा 'नंगमत'

लोक परंपरा के मोहक रूप 'नंगमत'
    हमर छत्तीसगढ़ म सांस्कृतिक विविधता के अद्भुत दर्शन होथे. इहाँ कतकों अइसन परब अउ परंपरा हे, जेला कोनो अंचल विशेष म ही बहुतायत ले देखे बर मिलथे. हमर इहाँ एक 'नरबोद' परब मनाए जाथे, एला जादा कर के वन्यांचल क्षेत्र म ही जादा कर के देखे जाथे. ठउका अइसने 'नंगमत' के परंपरा घलो हे, जेला क्षेत्र विशेष म ही बहुतायत ले देखे जाथे.
    'नंगमत' के आयोजन ल जादा करके नागपंचमी के दिन ही करे जाथे. वइसे कोनो-कोनो गाँव म एकर आयोजन ल हरेली के दिन घलो कर लिए जाथे. जानकर मन के कहना हे, बरसात के दिन म सांप-डेड़ू जइसन जहरीला जीव-जंतु खेत-खार आदि म जादा कर के निकलथे, अउ ठउका इही बेरा खेती किसानी के बुता घलो भारी माते रहिथे, अइसन म लोगन ल खेत-खार जाएच बर लागथेच एकरे सेती उंकर मनके प्रकोप ले बांचे खातिर एक प्रकार के पूजा-बंदना करे जाथे. उंकर मनके जस गीत गा के सुमिरन करे जाथे.
    ग्रामीण संस्कृति म बइगा कहे जाने वाला मंत्र साधक के अगुवाई म नंगमत के आयोजन होथे. एमा बइगा ह अपन अउ मंत्र साधक चेला मन संग मिलके नंगमत के जोखा मढ़ाथे. बताए जाथे, जे बइगा ह सांप चाबे के जहर ल उतारे म सक्षम होथे, तेनेच ह ए आयोजन के अगुवाई करथे, अउ ए आयोजन म जेन चेला के सबो चेला मन म श्रेष्ठ प्रदर्शन करथे, वोला ए सांप के जहर उतारे वाले बुता म या कहन बइगई करे के अनुमति देथे. बाकी चेला मनला घलो अनुमति होथे, फेर वो मनला सिरिफ छोटे-मोटे फूक-झाड़ के ही.
    इहाँ ए बात जाने के लाइक हे, हमर छत्तीसगढ़ म हरेली परब के दिन अपन-अपन मांत्रिक शक्ति के पुनर्जागरण या पुनर्पाठ करे के परंपरा हे. इही दिन गुरु-शिष्य बनाए के परंपरा हे, जेला इहाँ पाठ-पिढ़वा देना या लेना कहे जाथे. ठउका अइसने च नंगमत के आयोजन ले जुड़े परंपरा घलो हे.
    वइसे नंगमत के आयोजन ल सांप मनके पूजा-सुमरनी अउ  पुराना पीढ़ी द्वारा नवा पीढ़ी ल अपन परंपरा के पोषण अउ आगू ले जाए के जिम्मेदारी खातिर प्रेरित करे के उद्देश्य खातिर घलो करे जाथे. कतकों लोगन खातिर ए ह सिरिफ मनोरंजन के माध्यम होथे, तेकर सेती वो मन सावन महीना के लगते एकर आयोजन के जोखा म लग जाथें. एकर मनोरंजक रूप के आनंद ले खातिर आस-पास के गांव वाले मन घलो गंज संख्या म सकलाथें.
    नंगमत के शुरुआत गाँव के ठाकुर देव, मेड़ो देव अउ आने जम्मो ग्राम्य देवता मन के संगे-संग अपन-अपन ईष्ट देवता मनके पूजा-सुमरनी के साथ होथे. जइसे गौरा-ईसरदेव परब म कोनो विशेष जगा ले पवित्र माटी लान के चौंरा बनाए जाथे, ठउका अइसने च एकरो खातिर नाग मनके रेहे के ठउर जेला भिंभोरा या बांबी आदि कहे जाथे, उहाँ ले माटी लान के एकरो खातिर एक चौंरा बनाए जाथे, जेमा पूजा-अर्चना करे जाथे. जस गीत गाने वाला सेउक मन नाग देवता के मांदर-ढोलक,   झांझ-मंजीरा संग जस गान करथें.-

गुरुसर गुरुसर गुर नीर गुरु साहेर शंकर
गुरु लक्ष्मी गुरु तंत्र मंत्र गुरु लखे निरंजन
गुरु बिना हुम ला हो काला रचे हो नागिन

गुरु के आवत जनि सुन पातेंव
चौकी चंदन पिढ़ुली मढ़ातेंव
लहुर छोड़ के अंगना बहारतेंव
रूंड काट मुंड बइठक देतेंव
जिभिया कलप के हो....

    इही बीच बइगा ह अपन मंत्र शक्ति के प्रयोग ले इच्छित लोगन के ऊपर नाग या अन्य सांप मनके आव्हान करथे, जेकर ले उनमा उंकर आगमन होथे, तहाँ ले जेन सांप उंकर ऊपर आए रहिथे, वोकरे अनुसार वोमन झूमथें-नाचथें, अंटियाथें-फुफकारथें, भुइयां म घोनडइया मारथें. इही बेरा ह देखइया मन बर मोहनी हो जाथे. एक निश्चित बेरा के बाद वोकर मन के शरीर ले वो सांप ल उतारे के परंपरा ल पूरा करे जाथे.
    आखिर म वो जगा सकलाय लोगन ल परसाद बांटे जाथे. ए परसाद म नांगजरी के विशेष महत्व होथे. उहू ल लोगन ल अउ आने परसाद संग संघार के दिए जाथे. एला कोनो भी बिखहर सांप के जहर उतारे बर रामबाण माने जाथे. ए नांगजरी ल बइगा ह विशेष पूजा-पाठ कर के लाने रहिथे. हमन ल बताए जाय, रिंगनी पेंड़ के जड़ ल कोनो निश्चित दिन म निमंत्रण देके, रतिहा म पूजा-पाठ कर के लाने जाथे. नंगमत के परंपरा ल पूरा करे के बाद जेन चेला ल विशिष्ट रूप ले मंत्र दीक्षा दिए जाथे, वोला कहूँ जगा ले भी सांप चाबे के जानकारी मिलथे, उहाँ जाना जरूरी होथे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811