Friday 31 March 2023

जबर पुष्टई के जेवन बासी

बासी काबर खावन..?
आय ए ह जबर पुष्टई जेवन
    जे मनखे मन हमर छत्तीसगढ़ के पारंपरिक जेवन 'बासी' ल सरहा पदार्थ  मानथें, वोला खाये ले छिनमिनाथें या खाये ले मना करथें, असल म अइसन मनखे मन ए अतिउत्तम खाद्य पदार्थ के गुन अउ पौष्टिकता ले अनजान हें.
    आयुर्वेद के जानकर डॉ. सुरेन्द्र यदु जी के कहना हे- "मेरे जीवन भर के अनुभव से यह सिद्ध हुआ है कि बासी सड़ा हुआ भोजन नहीं, अतिउत्तम खाद्य प्रसंस्करण है."
    वैज्ञानिक शोध ले ए जानकारी मिले हे के चॉंऊर म-
कार्बोहाइड्रेट  79•2-- 78℅,
खनिज पदार्थ  0•5--0•7℅
फाइबर   0--0℅
कैल्शियम   0•01-- 0•01℅
फॉस्फोरस   0•11--0•17℅
प्रति 100 ग्राम में-----
लौह तत्व    1•0--2•8mg
विटामिन बी   20--60 lU
प्रति 300 ग्राम में--
विटामिन A -- 0--4  IU
कैलोरी प्रति 100 ग्राम- 348- 351
     ए ह चाॅंउर के वैज्ञानिक विश्लेषण आय. फेर हमन सोज्झे चाॅंउर ल नइ खावन, भलुक वोला रांध के खाथन. ए रंधई-चुरोई ह एक किसम के प्रसंस्करण क्रिया आय।
प्रसंस्करण ले वो पदार्थ के गुण-धर्म बदल जाथे. एकरे सेती चाॅंउर के उपरोक्त वैज्ञानिक निर्धारण ल व्यवहारिक नइ माने जा सकय।
    चाॅंउर ल रांध के या पका चुरो के कतकोंअकन  खाद्य पदार्थ बनाये जाथे। उन सबो के गुण, स्वाद अउ पुष्टई म अन्तर होथे । एकरे सेती चाॅंउर ले बने जम्मो किसम के  व्यंजन या कहिन खाये के जिनिस मन के पौष्टिकता के वैज्ञानिक निर्धारण अभी करे जाना बांचे हे।
      डाॅ. यदु के कहना हे- आयुर्वेद म अलग-अलग  रोग मन म पथ्य के रूप में चाॅंउर के अलग अलग प्रकल्प दिए जाथे. जइसे-
    भात-- चाॅंउर ल पानी म डबका के या भाप म चुरो के भात बनाए जाथे, एला दार-साग आदि खाये के जिनिस मन संग खाये जाथे। ए ह एक स्वस्थ मनखे खातिर पूर्ण आहार होथे।

    खिचरी- चाॅंउर, दार, कुछ साग-भाजी, नून, मिरचा, हरदी आदि ल एके संग मिंझार के थोरिक पानी संग चुरोए जाथे, उही ल खिचरी कहिथन. जेन रोगी के जठराग्नि मन्द या शिथिल हो जाथे, वोला सुपाच्य अउ पूर्ण पौष्टिक आहार के रूप म इही खिचरी या कृशरा ल दिए जाथे.

    पेज- एक सामान्य मनखे जतका चाॅंउर खाथे, वोकर पाव भर या एक चौथाई भाग ल चार गुना पानी म चुरोए जाथे, उही ल पेज या यवागू कहे जाथे। ए ह अल्प पौष्टिक अउ जादा सुपाच्य होथे। कमजोर अउ कम जठराग्नि वाले रोगी ल अइसने पेज दे के  नियम हे।

    घोटो- थोरकुन चाॅंउर ल दस गुना पानी म बनेच बेर ले चुरोए जाथे। चाॅंउर के दाना मन कहूँ दिखत राहय, त उनला घोटनी म बने घोट के पीए के लइक बना लिए जाथे। इही ल घोटो या पेया कहे जाथे। ए ह थोरकुन अन्न म घलो पेट भरे के अच्छा साधन आय। ए ह सुपाच्य घलो जादा होथे।

    पसिया-- कुछ लोगन चाॅंउर ल जादा पानी म रांध के वोकर पानी जेला पसिया कहिथन, वोला निथार दथें। निथारे के ए  प्रक्रिया पसाना कहे जाथे, अउ ए पसाये ले निकले मण्ड ल पसिया कहे जाथे। ये ह सबले जादा सुपाच्य होए के संगे-संग पौष्टिक घलो होथे ।
      घोटो अउ पसिया म नून डार दिए जाय त ए ह  Oral  rehydration खातिर अति उत्तम कार्य करथे। डॉ. यदु कहिथें- 'मैं अपने चिकित्सा अभ्यास में इसका प्रयोग करता हूँ। अतिसार वमन (उल्टी) के रोगी शरीर का जलीय अंश निकल जाने से अत्यधिक दुर्बल हो जाते हैं साथ ही उनकी अंतड़ियों से पाचक रस मल के साथ निकल जाने के कारण जठराग्नि अत्यन्त क्षीण हो जाती है। तब oral rehydration अथवा intraveinous rehydration दिया जाता है। इस प्रकार दिए जाने वाले rehydration में पौष्टिकता अत्यल्प होती है। यदि रोगी मुख मार्ग से ले सकता हो तो पेया या मण्ड नमक डालकर देने से रोगी की स्थिति से  शीघ्र सुधार होता है और पाचन की समस्या भी नहीं होती।'
       आवश्यकता के मुताबिक ही आविष्कार होथे-
     छत्तीसगढ़ उष्ण कटिबंधीय राज्य आय, इहाँ के निवासी मन जादा करके खेती-किसानी ले जुड़े हें। आदर्श विधि ले जेवन बनाना अउ वोकर उपयोग करना इहाँ के जीवन शैली संग मेल नइ खावय। बिहनिया ले संझा तक खेत खार म खटने वाला मनखे ताजा गरमा-गरम जेवन के व्यवस्था कइसे कर सकथे, एकरे सेती वोहा अपन जीवन पद्धति के अनुरूप वैकल्पिक व्यवस्था कर लेइस। बोरे अउ बासी ह वोकर वैकल्पिक व्यवस्था बनिस. सैद्धांतिक रूप ले बासी अन्न के खवई ल निषिद्ध माने जाथे, फेर ए सिद्धांत ह बोरे अउ बासी म लागू नइ होवय। भात ल गरम ही खाना चाही। ठण्डा हो जाय के बाद वोकर स्वाद अउ पौष्टिकता दूनों कम हो जाथे, काबर ते उंकर जलीय अंश सूख जाथे। कहूँ भात ठण्डा होय लागे उही बेरा म वोमा बने अकन पानी डार दिये जाय त वोमा विशिष्ट स्वाद अउ पौष्टिकता के निर्माण होथे। एमा नून, गोंदली डार के अचार, चटनी या साग-भाजी संग खाये म गजबेच स्वादिष्ट होथे अउ एकर पौष्टिकता घलो बने रहिथे। एमा दही या मही डार के खाए ले अउ स्वादिष्ट हो जाथे।
     भात ल पानी म बोरे ले वो हा बोरे बनथे अउ छः घंटा ले जादा बेरा बीत जाय म इही बोरे ल ही बासी कहे जाथे। बासी म चाॅंउर के fermentation होए के सेती खमीर उठथे, तब वोमा थोकन खट्टापन आ जाथे। तब ए हा अउ जादा सुपाच्य अउ ऊर्जादायक बन जाथे। एकरे सेती छत्तीसगढ़ म बासी खवई ल प्राथमिकता दिए जाथे।
       बोरे या बासी खाये ले प्यास कम लागथे। एकर ले सिद्ध होथे के बासी पुनर्जलीकरण के उत्तम साधन आय. लू म गोंदली (प्याज ) के उपयोगिता  ले सबो झन परिचित हावन। हमन देखे हावन के बासी खवइया कमइया या श्रमिक के कार्यक्षमता जादा च होथे।
    ए ह अनुभव सिद्ध सत्य आय के, 'बासी ह सड़े होय जेवन नहीं, भलुक अति उत्तम खाद्य प्रसंस्करण आय।'
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Sunday 26 March 2023

कोंदा भैरा के गोठ... एक प्रयोग

सोशलमीडिया म कॉलम लेखन के प्रयास//
      ** कोंदा-भैरा के गोठ **

    वइसे तो मैं रायपुर ले निकलइया दैनिक अखबार नव भास्कर, तरुण छत्तीसगढ़, अमृत संदेश मन म साप्ताहिक स्तंभ या कॉलम गजब लिखत रेहे हौं. साप्ताहिक छत्तीसगढ़ी सेवक, इतवारी अखबार अउ मासिक 'मयारु माटी' म घलो थोर-बहुत लिखे के उदिम होय रिहिसे, फेर सोशलमीडिया म रोज के लिखना ह नवा अनुभव अउ प्रयोग आय.
   वइसे दैनिक 'राष्ट्रीय हिन्दी मेल' म कुछ दिन तक 'तुतारी' शीर्षक ले रोज लिखे के उदिम घलो करत रेहेंव, जेन वो अखबार के पहला पृष्ठ म पहला कालम के सबले नीचे के भाग म छपय. फेर वो लिखई म अखबार के संपादक अउ मालिक के राजनीतिक विचारधारा अउ संबंध के सुरता घलो राखे बर लागय, तेकर सेती मन के बात लिखना ह मुश्किल कस जनावय. एकरे सेती तीन-चार महीना के पाछू लिखना बंद कर दिए रेहेंव.
    जबकि सोशलमीडिया ह तो 'अपन हाथ जगन्नाथ' बरोबर हे. जस मन म विचार आवय, लिख लौ, फेर एहू मा मोर संग हर वर्ग के लोगन जुड़े हें. राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, व्यवसायी, गृहस्थ, छात्र आदि सबो किसम के लोगन.
    वइसे तो मैं सोशलमीडिया म रोज के चार डांड़ के एक नान्हे कविता संग संदर्भित फोटो पोस्ट करे के उदिम घलो करत रेहेंव, जेला लोगन गजब सॅंहरावत रिहिन हें, फेर एकर मन के विषय कोनो परब, तिहार या विषय विशेष ही राहत रिहिसे. कतकों अइसन विषय अउ घटना हे, जे मन एमा संघर नइ पावत रिहिसे.
    एक दिन अखबार म पढ़े बर मिलिस, के हमर इहाँ के एक प्रतिष्ठित राजनीतिक मनखे ह दूसर राज्य म जाके उहाँ के महतारी भाखा के मान बढ़ावत हे. मोला सुरता हे, ए उही मनखे आय, जेकर जगा हमन हमर महतारी भाखा ल आठवीं अनुसूची म शामिल करे खातिर संसद म बात रखे खातिर वोकर जगा गोहराए रेहेंन, तब वो ह हमन ल लंदर-फंदर जवाब दे के टरका दिए रिहिसे. तब हमन वो बखत वोकर ए व्यवहार के निंदा करत रायपुर के अखबार मन म नंगत के समाचार छपवाए रेहेन. आज जब अखबार म वोकर दूसर राज्य के महतारी भाखा खातिर उमड़त मया ल देख के मोला थोक गुस्सा असन लागिस. गुनेंव- अइसन राजनीतिक दुमुंहा मन बर कुछू सोंटा वाले गोठ घलो होना चाही. तब मन म विचार आइस, के सोशलमीडिया म एकाद कुछ शब्द म अपन बात कहे वाले गोठ लिखना चाही.
    गूगल महराज के कृपा ले एक ठन कार्टून मिलिस, जेमा  अइसे-तइसे कर के लिखेंव -'कोंदा-भैरा के गोठ' अउ वोमा अपन मन म उठत बात ल लिख के सोशलमीडिया के जम्मो प्लेटफार्म म ढील दिएंव.
   संयोग ले वो दिन (26 फरवरी 2023) छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के वार्षिक जलसा रायपुर के दूधाधारी संत्सग भवन म होवत रिहिसे. चारों मुड़ा के छत्तीसगढ़ी प्रेमी मन जुरियाए रिहिन हें. मोर वो पोस्ट के गजब तारीफ करीन अउ ए उदिम ल लगातार लिखे के बात कहीन. कतकों झन फोन अउ मैसेज घलो करीन. आज ए उदिम ल एक महीना पूरगे. चारों मुड़ा ले लोगन के सुग्घर-सुग्घर प्रतिक्रिया आवत हे, तेकर सेती जनावत हे, के ए ह अभी अउ लिखाही. फेर के दिन लिखाही तेकर भरोसा नइए. काबर ते सोशलमीडिया के प्लेटफार्म म विविध आचार-विचार के लोगन जुड़े हें, सबो के मन के अनुरूप विषय खोजई अउ एकरो ले जादा कमती ले कमती शब्द म अपन बात रखना थोरिक मुश्किल जनाथे. काबर ते लोगन ए प्लेटफार्म म लंबा-चौड़ा पोस्ट ल पढ़े बर ढेरियाथें.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Friday 17 March 2023

कला संस्कृति रखवार मन्तराम यादव

1 जुलाई जनमदिन//
छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति के जोखा करइया डाॅ. मन्तराम यादव
    छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति खातिर जबर बुता करइया डाॅ. मन्तराम जी यादव के पूरा जिनगी भर के जीवन-दर्शन अउ कारज ल देखथौं त मोर मुंह ले ये चार डांड़ अपनेच अपन निकल परथे-

बिन घिसाए लगय नहीं माथ म ककरो चंदन
न होवय पूरा एकर बिन 'भोले' के पूजा-वंदन
अइसनेच होथे जिनगी घलो महके खातिर
धरथे जे संघर्ष के रद्दा होथे वोकरे अभिनंदन

     गाँव देवरहटा (लोरमी) जिला मुंगेली के सियान बइहा राम जी यादव अउ महतारी बतसिया देवी के घर 1 जुलाई सन् 1951 के जनमे डाॅ. मन्तराम जी यादव बहुआयामी व्यक्तित्व के कर्मयोगी मनखे आय. मैं जेन किसम के लोगन ल पसंद करथौं, आगू के डांड़ म सुरता, सरेखा करत गिनथौं ठउका वइसने. मोर मानना हे- 'हम अपन कला-संस्कृति के उज्जर रूप के रखवारी करत वोकर बढ़ोत्तरी करे के उदिम करीन, त एकर बर सिरिफ कागज-कलम भर म लिखे ले जादा भुइयॉं म उतर के ठोसहा बुता करे बर लागही.' मोर ए मानक म डाॅ. मन्तराम  जी ठउका फिट बइठथें. उन कागज-कलम म जतका लिखीन, वोकर ले जादा मैदान म उतर के बुता करीन. चारों खुंट, चाहे सामाजिक बुता होय, सांस्कृतिक बुता होय या फेर जनजागृति के आने अउ कुछू बुता. उन सबोच म कर्मयोगी के भूमिका म भुइयॉं म भीड़े दिखीन.
    मैं जब दैनिक छत्तीसगढ़ के साप्ताहिक पत्रिका 'इतवारी अखबार' के संपादन कारज करत रेहेंव तभे ले उंकर संपादन म हर बछर छपइया पत्रिका 'रऊताही' के संग्रहणीय अंक मनला देखत अउ पढ़त रेहेंव. मन्तराम जी के अनन्य सहयोगी साहित्यकार कृष्ण कुमार भट्ट 'पथिक' जी के माध्यम ले उंकर जम्मो कारज अउ गतिविधि मन के जानकारी घलो मिलत राहय. फेर उंकर संग प्रत्यक्ष भेंट तब होइस, जब मैं शारीरिक अस्वस्थता के सेती घर म ही रहे लगेंव. उन वरिष्ठ साहित्यकार चेतन भारती जी संग खुद मोर ठीहा म पधारे रिहिन.
    उंकर संग मेल-भेंट अउ गोठबात ले मन-अंतस जुड़ाय कस लागिस. काबर ते आज अइसन निष्काम कर्मयोगी मनखे बिरले देखब म आथे, जेन बिना कोनो स्वारथ के अपन उदिम म सरलग भीड़े रहिथे. मन्तराम जी संग गोठबात म उंकर अउ कई रुचि मन के जानबा घलो होवत गिस. जइसे उन अपन निजी समाज, जेन एक किसम के परंपरा के रूप म बंधुआ प्रथा के अंग बने राहय, वोकर ले मुक्ति के अंजोर बगराईन, उनला बंधुआ प्रथा ले मुक्त कराइन. अंचल के पिछड़ा कहे जाने वाला लोगन ल एकफेंट करे खातिर सम्मेलन करवाईन, अपन जनमभूमि गाँव देवरहटा म सन् 1993 ले सरलग अहीर नृत्य अउ शौर्य प्रदर्शन के कारज इहाँ के प्रसिद्ध परब 'छेरछेरा' के दिन करवावतेच हें, एमा उन साहित्यिक अउ सांस्कृतिक प्रतिभा मन के हर बछर सम्मान घलो करथें. उन व्यक्तिगत रूप ले आध्यात्मिक परानी आयॅं, तेकर सेती कतकों किसम के धार्मिक आयोजन घलो करवातेच रहिथें.
    आज उंकर जनमदिन के बेरा म उंकरेच लिखे  ए चार डांड़ के सुरता करत उनला गाड़ा-गाड़ा बधाई संग शुभकामना पठोवत हौं, के उन अपन सोनहा अउ प्रेरणादायी जिनगी के शतक पूरा करॅंय-

काॅंटे ना हो राहों में
ताकत ना हो बाहों में
सपने ना हो आंखों में
तो क्या जाने जीने का मजा.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Wednesday 8 March 2023

नंदावत हे परंपरा आगी माँगे के

सुरता//
नंदावत हे परंपरा आगी माँगे के..
   हमर संस्कृति म आगी माँगे  के घलो परंपरा हे, फेर ए ह अब कोनो नेंग-जोग के बेरा भले दिख जाथे, तहाँ आने बेरा म तो नंदाय बरोबर होगे हे.
    हमन लइका राहन. गाँव म राहन, त रोज संझा अरोस-परोस के चार-पांच झन माईलोगिन मन छेना धर के हमर घर आवय, हमर बूढ़ी दाई संग ससन भर के गोठियावय. साग-भाजी के गोठ होवय, संग म नान-मुन कुछू काम-बुता राहय तेनो ल सिध पार देवंय, तहाँ ले छेना म अंगरा के नान्हे टुकड़ा ल धर के चले जावंय. ए ह रोज के बुता राहय. हमरो डोकरी दाई ह गोरसी म सिपचा सिपचा के आगी राखे राहय.
    जिहां तक धर्म अउ संस्कृति के बात हवय, त एमा तो ए आगी माँगे के बहुतेच महत्व हे. नवरात्रि म होवय, होरी जइसन परब म होवय या फेर ककरो घर बर-बिहाव होवत राहय त अइसन बेरा म कोनो सिद्ध बइगा-गुनिया या फेर मंदिर के कुंड आदि ले आगी लान के आगी सिपचाए या ज्योति प्रज्वलित करे के परंपरा आजो दिखथे. बिहतरा घर के चूल ल बइगा घर ले लाने आगी ले ही सिपचाए जाथे.
    एकर पाछू सिरिफ अतके भावना होथे, के हम अपन शुभ कारज के शुरुआत अइसन मनखे या जगा के माध्यम ले करत हावन, जेकर ले मन म ए भरोसा राहय के वोकर सिद्धी के परिणाम हमरो खातिर शुभ रइही.
   कतकों लोगन एला अंधविश्वास के श्रेणी म राख सकथें. कतकों झन इहू कहि सकथें- जे मन खुदे मंत्र सिद्धी कर डारे हें, वोमन ल कोनो दूसर मनखे या जगा ले आगी लाने के का जरूरत हे? उंकर कहना वाजिब घलो आय. फेर मोला लागथे, कतकों बेरा म अपन तर्क शक्ति ल कोनो कोनहा म मढ़ा के पुरखौती परंपरा ल आगू बढ़ाय के उदिम करत रहना चाही.
    आज तो आगी बारे के कतकों जिनिस के आविष्कार होगे हावय. तभो ले अपन परोसी घर ले आगी माँग के लाने अउ इही बहाना वोकर संग सुख-दुख के बात कर ले के जेन आनंद अउ मजा हे, वोहा अद्भुत हे. खासकर आज के बिखरत संयुक्त परिवार के बेरा म तो अउ जादा.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Monday 6 March 2023

जस गायन प्रतिभा अनुसुइया साहू

4 फरवरी जनमदिन//
जस गायन के मयारुक प्रतिभा अनुसुइया साहू..

गुरुसर गुरुसर गुर नीर गुरु साहेर शंकर
गुरु लक्ष्मी गुरु तंत्र मंत्र गुरु लखे निरंजन
गुरु बिना हुम ला हो काला रचे हो नागिन

गुरु के आवत जनि सुन पातेंव
चौकी चंदन पिढ़ुली मढ़ातेंव
लहुर छोड़ के अंगना बहारतेंव
रूंड काट मुंड बइठक देतेंव
जिभिया कलप के हो....

     अनुसुइया साहू के आवाज म जब झांझ मंजीरा अउ मांदर के ताल संग ए गुरु स्थापनी मंत्र म रचे जस गीत रावांभाठा के दरबार म गूंजय तब कतकों भक्त मन के ऊपर देवता के सवारी आ जावय, कतकों मन भक्ति के धारा म बोहा जावंय, अपन चेत बिसरा के सिरिफ गायन दल ल देखत अउ सुनत राहंय. अइसन अउ कतकों जस गीत मनला अनुसुइया लगातार बिना रुके, बिना सुरताए सरलग गावत राहय.
    मोला अपन साधना काल के शुरूआती दौर म अनुसुइया साहू के जस गायन के गजब आनंद मिलत रहे हे. आगू जब वोकर गाये जस गीत मन आकाशवाणी अउ दूरदर्शन के संगे-संग आडियो कैसेट मन म आइस त फेर घर बइठे घलो उंकर गायकी के सेवाद ले बर मिल जावत रिहिसे.
      अनुसुइया साहू के जनम 4 फरवरी सन् 1967 के गाँव खर्रा (बेरला) जिला बेमेतरा के शिक्षक सहसराम जी साहू अउ महतारी कंचन देवी के घर होए रिहिसे. एकर बिहाव मोर साहित्य जगत के सबले मयारु संगी रहे डाॅ. सीताराम साहू जी संग सन् 1984 के बैसाख पुन्नी के दिन होए रिहिसे. एकरे सेती अनुसुइया संग मोर चिन्हारी एकर ससुरार गाँव रावांभाठा, बंजारीधाम, रायपुर म बहू बन के आए के संग ले ही हे. फेर एकर गायन के संगे-संग अउ जम्मो कला प्रतिभा संग चिन्हारी तब होइस, जब मैं आध्यात्मिक साधना के विधिवत दीक्षा लेंव अउ इंकर गाँव म सरलग आए-जाए लगेंव, रतिहा बीताए लगेंव. इंकर मन के रामायण अउ जस गायन मंडली संग संघरे लगेंव.
    अनुसुइया साहू जतका सुंदर जस गायन करथे, वतकेच सुग्घर रामायण मंडली म गायन, वादन अउ व्याख्या घलो करथे. अतकेच नहीं, उन अगहन बिरस्पत जइसन दिन-बादर म अपन सहेली मन घर जा-जा के अगहन बिरस्पत के कथा घलो सुनाथे. आकाशवाणी अउ दूरदर्शन म एकरे सेती उंकर जस गीत के संगे-संग सोहर, बसदेवा गीत जइसन आध्यात्मिक रचना मन के घलो रिकार्डिंग अउ प्रसारण होवत रेहे हे.
    मोला एक-दू जस गीत के सुरता आवत हे-

महंग लेले आरती हो माय...

कोन कोन देव मिल आवय माता
तोला शब्द सुनावय
कोन कोन मिल आवय माता देवन मंगल गाये... महंग लेले....

    मैं शिव जी के एक नान्हे उपासक असन हावंव तेकर सेती उंकर ले संबंधित जस गीत मन के सुरता जादा हावय-

अंगना म धुनी ल रमाये
रमाये हो बाबा...

गिरी पर्वत ले उतरे महादेव
अंग भभूत लमाये
हाथ के डमरू डम डम बाजे
नगरी म अलख जगाये.. हो बाबा...

    अनुसुइया के गाये जम्मो गीत, भजन अउ जस मन के रचनाकार उंकर जिनगी के संगवारी रहे साहित्यकार डाॅ. सीताराम साहू ही आय. सीताराम ह एमन ल लगातार प्रोत्साहित करत राहय. कतकों बेर तो महूं ह वोकर संग संघर जावत रेहेंव. सन् 2009 म एकर मन के एक समिति 'माँ बंजारी महिला मानस मंडली रावांभाठा बीरगांव' के नॉव ले पंजीयन करवाइस, जेमा अध्यक्ष अनुसुइया साहू, सचिव गीता राठौर, कोषाध्यक्ष मालती साहू के संगे-संग सदस्य के रूप म सेवती चंद्राकार, घसनीन साहू, अमरीका सेन, बेदमती साहू अउ तारा चंद्राकार आदि हें.
    हमर इहाँ आडियो कैसेट के एक दौर रिहिसे, जब घरों घर लोगन कैसेट सुनत रिहिन हें. वो बेरा म अनुसुइया साहू के घलो कैसेट देश के नामी कंपनी मन के द्वारा रिलीज करे जावत रिहिसे. वोकर कैसेट मन म - 1. माता जस, 2. भवानी जस, 3. माता सिंगार, 4. जस जुड़वास अउ 5. भोले बाबा जस आदि प्रमुख हे. अपन संगवारी डाॅ. सीताराम साहू संग वोमन वो बखत बहुतायत म बनत विडियो फिल्म - 1. माल हे त ताल हे, 2. टूरी मारे डंडा, 3. गंवइहा बाबू, अउ 4. बांगा लेड़ू आदि मन म चरित्र अभिनेत्री के भूमिका घलो निभाए रिहिसे. ए जम्मो विडियो फिलिम मन के कथा, पटकथा संवाद अउ गीत मन डाॅ. सीताराम साहू के ही लिखे रिहिसे.
    आकाशवाणी, दूरदर्शन, आडियो अउ विडियो कैसेट मन के संगे-संग सैकड़ों मंच मन म अपन गायन, वादन अउ व्याख्या के प्रतिभा ल सरलग देखावत रेहे के सेती अनुसुइया साहू ल सैकड़ों मंच द्वारा सम्मानित करे गे हवय. अनुसुइया अउ वोकर समिति के जम्मो सदस्य सखी मन के सक्रियता आज घलो ए पूरा क्षेत्र म लोकप्रिय हे. अपन कला प्रतिभा के संगे-संग अनुसुइया ह साहू समाज रावांभाठा धरसींवा परिक्षेत्र के महिला अध्यक्ष के पद ल घलो सुशोभित करे हवय. मैं व्यक्तिगत रूप ले उंकर हर क्षेत्र म सफलता के शुभकामना देवत उंकर आकाशवाणी म गाये माता जी के ए जस के सुरता करत शुभकामना देवत हौं-
आठों अंग सोलहों संवांगा
तोला मैं सिंगार दिहंव माँ...

हाथ बर ककनी कंगन बनुरिया
पांव बर पइरी पायल पयजनिया
टोड़वां गढ़वा दिहंव माँ..
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Sunday 5 March 2023

मिलिस भोले जी के 'सुरता के संसार'..

मोला मिलिस भोले जी के 'सुरता के संसार'

छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी अस्मिता बर अपन जीवन खपइया मन के जब भी बात होही तब जेन मन के नांव आगू डांड़ म लिखाही ओमा एक नांव होही सुशील भोले। सुशील भोले छत्तीसगढ़ के अइसे व्यक्तित्व हरँय जेखर नांव संग कवि, लेखक, पत्रकार, संपादक, संस्कृतिकर्मी, आध्यायत्ममार्गी के संगेसंग अउ कतको विशेषण जुड़े हें, जेला हम बहुमुखी प्रतिभा के धनी कहिथन। ऊँखर हाल म एक संस्मरण के संग्रह प्रकाशित होय हे। जेखन नांव हे 'सुरता के संसार'।

जब सोशल मीडिया के माध्यम ले मोला जानकारी मिलिस के भोले जी के नवा संग्रह प्रकाशित होय हे तो मोर अचरज के ठिकाना नइ रिहिस। काबर के भोले जी कई साल ले बीमारी के चलते बिस्तर म बँधा गे हवँय। बिगन सहारा के कहूँ आ-जा नइ सकँय। अइसन हालत म पुस्तक छपवा लेना कोनो हँसी-खेल नोहय। भोले जी ल ए उदीम बर जतका बधाई दे जाही कम होही।

ये पुस्तक म उन छत्तीसगढ़ के कई महान विभूति मन के संस्मरण मन ल संजोय हवँय जेमा कतको झन आजो मौजूद हवँय अउ कतको झन सरगवासी हो गे हवँय। डॉ. नरेंद्र देव वर्मा, स्वामी आत्मानंद, काव्योपाध्याय हीरालाल, कोदूराम वर्मा, नारायण प्रसाद वर्मा, टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा, दाऊ कल्याण सिंह, खूबचंद बघेल जइसे विभूति मन आज हमर बीच म नइ हें। जेखर बारे म जानना हे तौ ए किताब ल पढ़े जाना चाही। ए किताब म लेखक के अपन जिनगी के कतको सुरता ल घलो संजोय गे हे। जेला पढ़े ले इही संदेश मिलथे के जीवन संघर्ष के ही दूसर नाँव हरे अउ सोन ह तपे के बाद ही खरा कहाथे।

मैं भोले जी ल ए उपलब्धि बर अपन सक भर शुभकामना अउ बधाई देवत हँव। उन अपन सक्रियता ल बनाय रखँय अउ नवा पीढ़ी ल संदेश देवत राहँय के जिहाँ चाह हे उहाँ राह के कमी नइ होवय।
उनला अउ ऊँखर सक्रियता ल जोहार!🙏