Friday 31 July 2015

सवनाही के सोर.....











गांव-बस्ती म मचगे हावय, सवनाही के सोर
झमाझम बरखा नाचय रे, संग देवय पवन झकोर....
कड़कड़-कड़कड़ बिजुरी कड़कथे आंखी फरकाथे
ठढ़बुंदिया पानी म सरबस, धरती ल हरसाथे
तब अइसे जनाथे रे, जइसे सम्हर गे हे गली-खोर.....
तरिया-नंदिया घाठ-घठौंदा, गाभिन कस हो जाथे
कब के छोड़े बिरहिन घलो, मंद-मंद मुसकाथे
पिया संग जोड़े खातिर रे, जइसे लमा दिए हे डोर...
गस्ती खाल्हे के शिव-मंदिर म, लोगन के रेला रहिथे
धरे बेल-पाती कंवरिहा, बम-बम भोले कहिथे
तब मया बरसथे रे, शिव-शंकर के घनघोर....

सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269-92811
ब्लॉग -http://www.mayarumati.blogspot.in/
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Thursday 30 July 2015

बादल कब इठलायेगा....









अपनी बांहों में चांद छुपाकर बादल कब इठलायेगा
प्रेम तराने गाने वाला, वो सावन कब आयेगा...

कहीं खामोशी है अधरों पर और जे़हन में है तृष्णा
बन-बन डोलती गोपी के, जैसे हृदय में है कृष्णा
प्रेमी सपनों को सरगम देने, मेघ मल्हार कब गायेगा...

कब से आस लगा बैठा है, चातक अपनी प्यास बुझाने
चंद्र किरण संग चंचल बन, अपने हृदय को हर्षाने
विरह वेदना को स्वर देने, कब प्रेमी पपीहरा गायेगा...

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

ज्ञान-सार....


* ज्ञान और आशीर्वाद चाहे जहां से भी मिले उसे अवश्य ग्रहण करना चाहिए।

* दुनिया का कोई भी ग्रंथ न तो पूर्ण है, और न ही पूर्ण सत्य है। इसलिए सत्य को जानने के लिए साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करें।

* जहां तक सम्मान की बात है, तो दुनिया के हर धर्म और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए, लेकिन जीयें सिर्फ अपनी ही संस्कृति को। क्योंकि अपनी ही संस्कृति व्यक्ति को आत्म गौरव का बोध कराती है, जबकि दूसरों की संस्कृति गुलामी का रास्ता दिखाती है।

* महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप कितना अच्छा लिखते या बोलते हैं... महत्वपूर्ण यह है कि क्या आप सत्य लिखते और सत्य ही बोलते हैं?

* सब उनकी ही संतान हैं, इसलिए न तो कोई छोटा है न बड़ा... न कोई ऊँच है न ही कोई नीच...

* सुशील भोले *

ज्ञान-सार .... गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं....


* ज्ञान और आशीर्वाद चाहे जहां से भी मिले उसे अवश्य ग्रहण करना चाहिए।
* दुनिया का कोई भी ग्रंथ न तो पूर्ण है, और न ही पूर्ण सत्य है। इसलिए सत्य को जानने के लिए साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करें।
* जहां तक सम्मान की बात है, तो दुनिया के हर धर्म और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए, लेकिन जीयें सिर्फ अपनी ही संस्कृति को। क्योंकि अपनी ही संस्कृति व्यक्ति को आत्म गौरव का बोध कराती है, जबकि दूसरों की संस्कृति गुलामी का रास्ता दिखाती है।
* महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप कितना अच्छा लिखते या बोलते हैं... महत्वपूर्ण यह है कि क्या आप सत्य लिखते और सत्य ही बोलते हैं?
* सब उनकी ही संतान हैं, इसलिए न तो कोई छोटा है न बड़ा... न कोई ऊँच है न ही कोई नीच...


                                                                                                                             * सुशील भोले *

Wednesday 29 July 2015

कलाम तुझे सलाम...

(दैनिक नवप्रदेश में कलाम साहब को संबोधित मेरी कविता...)


















हमारी पीढ़ी ने
गाँधी और सुभाष तो
नहीं देखा है
लेकिन
कलाम जरूर देखा है
वो कलाम
जो किसी भी ऊँचाई से ऊँचा है
उस
नन्हे कद के
ऊँचे व्यक्ति को
अंतिम सलाम....

...सुशील भोले...


सावन जब झुलना-झुलाथे...















मइके बर चेत चले जाथे,
सावन जब झुलना-झुलाथे...
लइकई के संगी सुरता म आथे
फुगड़ी, घरघुंदिया, बिल्लस बलाथे
फेर हरेली के गेंड़ी मुचमुचाथे.... सावन...
जम्मो गड़ी भिभोंरा पूजे जावन
बेलपत्ती, फूल अउ दूध ल चढ़ावन
नांगदेवता के सुरता अभो आथे... सावन ...
नवमीं अंजोरी म भोजली जगावन
जम्मो टूरी मनला डड़इया झूपावन
फेर पुन्नी के राखी चढ़वाथे... सावन...
सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Monday 27 July 2015

छत्तीसगढ़ का सोमनाथ










विश्व प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिगों में शामिल गुजरात राज्य के सोमनाथ महादेव का अपना ही महत्व और स्थान है। लेकिन इससे अलग छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिला में भी एक सोमनाथ मंदिर है, जहाँ श्रद्धालु देवाधिदेव महादेव की आराधना कर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
राजधानी रायपुर से बिलासपुर सड़क मार्ग पर भूमिया-सांकरा नामक ग्राम से पश्चिम दिशा की ओर ग्राम लखना स्थित है। इसी ग्राम की सीमा में छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदियों में से एक शिवनाथ नदी एवं खारुन नदी का संगम स्थल है। इसी संगम स्थल पर स्थित है सोमनाथ मंदिर।
प्रकृति की गोद में बसा सोमनाथ मंदिर काफी प्राचीन एवं पुरातत्वीय महत्व का है, जहाँ श्रद्धालु वर्ष भर आते हैं और भगवान सोमनाथ के साथ ही साथ अन्य अनेकों मंदिरों में विराजित देवताओं का दर्शन लाभ पाते हैं।
यहाँ महाशिवरात्रि एवं सावन सोमवार जैसे विशेष अवसरों पर लोगों की उपस्थिति देखते ही बनती है। रायपुर के महादेव घाट एवं तिल्दा-नेवरा तथा सिमगा जैसे क्षेत्रों से जल लेकर कांवरिये श्रवण मास में बाबा के जयकारे लगाते पूरे वातावरण को शिवमय बना देते हैं।
सोमनाथ मंदिर न केवल श्रद्धालुओं का श्रद्धास्थल बन चुका है, अपितु ऐसे लोगों को भी अपनी ओर अकर्षित करता है, जो लोग धर्म-कर्म से परे केवल प्राकृतिक स्थलों पर पिकनिक आदि के उद्देश्य से जाना पसंद करते हैं।
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Friday 24 July 2015

हुए बेगाने सब अपने...

(किन्नरों के पीड़ादायी जीवन पर एक गीत - फोटो-किन्नर वीणा सेंदरे)


हुए बेगाने सब अपने जो कांधों पर ढोते थे
मेरे नन्हें हाथों को थामे जो खुशियों में खोते थे....

बचपन ऐसा मेरा बीता ज्यों फूलों की डाली हो
घर की रौनक मुझसे होती जैसे किरणों की लाली हो
पिता प्रशस्ती-पत्र सरीखा छाती में मुझको बोते थे.....

बहन-भाई सभी खेलने  को आतुर रहते संग मेरे
जो अब खड़े हुए हैं देखो अपना-अपना मुंह फेरे
अनजाने से सभी हुए जो संग में जगते-सोते थे....

कोई नहीं अब अपना सा जिसको दुखड़ा कह पायें
जीवन पूरा सूना-सूना जहां कोई नहीं अब रह पाये
घनघोर अंधेरा पसर चुका है जहाँ चाँद-सितारे होते थे....

सुशील भोले
54/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मों. 080853 05931, 098269 92811

Wednesday 22 July 2015

पुस्तक चर्चा - सब वोकरे संतान ये संगी


छत्तीसगढ़ के मान, छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति बर सरलग काम अउ चिन्ता करइया साहित्यकार, पत्रकार श्री सुशील भोले के नवा प्रयोग रचना आय 'सब वोकरे संतान ये संगी" - छत्तीसगढ़ी के चार डांड़ी।

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के आर्थिक सहयोग अउ वैभव प्रकाशन ले प्रकाशित 'सब वोकरे संतान ये संगी" हिन्दी उर्दू के मुक्तक परंपरा म छत्तीसगढ़ी भाखा म नवा प्रयोग आय केहे जा सकत हे। मात्र चार पंक्ति म, बिना छंद बंधन के सरल, सहज अउ हिरदे के साथ मन ल घलो प्रभावित करे के क्षमता हाबे सुशील भोले के 'चार डांड़ी" म।

हिरदे के भाव अउ शब्द के रंेगाव सरलग होगे हे, तेकर सेती बिना लाग-लपेट के कवि भोले ह अपन बात कहिथे। येला यहू कहे जा सकत हे कि इनकर म बनावटी पन या दिखावा या अनावश्यक वाक्-शब्द लालित्य नइये। येखर से शब्द ह भाव के साथ माला गूथे भर चलथे। सुशील भोले के ज मो चार डांड़ी म साहित्यिक अउ सात्विक परंपरा दिखाई देथे।

'सब वोकरे संतान ये संगी' म चार डांड़ी युक्त कुल साठ रचना सकलाय हे। ज मो रचना मन ल सात संदर्भ म बांटे जा सकथे, जइसे- छत्तीसगढ़ी सामाजिक परंपरा, ऋतु प्रभाव, संस्कार-पर्व, अध्यात्म, प्रदूषण, कायाखण्डी, अउ शिक्षा संदेश।

छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति के संरक्षण खातिर प्रखर चिंतन करइया कवि सुशील भोले ह आत्मकथ्य में सीधा कहिथे कि-
"मोर लेखनी के छापा ये आय जिनगी के दरपन"

छत्तीसगढ़ी म सोच के छत्तीसगढ़ी म लिखना सुशील भोले के ये रचना ह अप्रतिम उदाहरण आय।
सोन पांखी के फांफा-मिरगा या बिखहर हो जीव
सब के भीतर बन के रहिथे एकेच आत्मा शिव
तब कइसे कोनो छोटे-बड़े या ऊँचहा या नीच
सब वोकरे संतान ये संगी जतका जीव-सजीव

इही कारन से कवि सीधा कहना पसंद करथे कि-
सच के सुजी ह बस नानेकुन होथे
फेर लबराही फुग्गा ल फुस ले कर देथे।

इही सरलग म 'सेंदूर" के नवा किन्तु परंपरागत बानगी घलो चार डांड़ी म दिखथे-
मइके छूटगे मया बिसरगे महतारी के अंगना
नान-नान बहिनी-भाई के संग म खेलना-कूदना 
कइसे मोह बनाये विधाता तैं चुटकी बर सेंदूर के
कुल-गोत्र सबो तो छूटगे ददा के किस्सा कहना

ये प्रसंग म ये कहना जरूरी हे के अनुभवी साहित्यकार के दृष्टि / परख ह सूक्ष्म लेकिन अधिक प्रभावकारी होथे, छोटे नान नान शब्द म बड़ भाव छिपे रहिथे। मूलत: किसान परिवार के साथ जुड़े गांव घर के सरल किसान के दर्द ल कवि मानो अपन म समेटना चाहथे-
* करजा तो रोज बाढ़त हे जस बेसरम के झाड़ी
* कभू बाढ़ कभू सूखा या भूमि अधिग्रहण के सेती 
* बिलबिलावत भूख करजा म देवत हे अपन परान
* देख विकास के चिमनी घलो लेवत हावय परान 
* अलहन होगे तरिया-नंदिया मुश्किल हे निस्तारी 
* नवा बहुरिया के रेंगना कस लागे मौसम के चाल

समग्र चार डांड़ी के समवाय म कवि सुशील भोले ह ज मो उपमा ल प्रकृति के साथ जोड़ के  बनाये बर उदिम करे हे जइसे-
उमर उडिय़ावत हे बनके फुरफुंदी। सावन के ठढ़बुंदिया असन हावय तोर बोली। बादर भइया बड़ा भुलक्कड़।
'सब वोकरे संतान ये संगी" के शब्द चयन म नंदाये शब्द या कम प्रचलित शब्द के प्रयोग नीक लागथे, काबर भाव के साथ जुड़ के चलइया शब्द ह कवि के मौलिकता के साथ सावचेत रहे के घलो पहिचान आय, जइसे ये छत्तीसगढ़ी भाखा के शब्द- खनगी, बदरा, ठोसहा, पोगराबे, बुलक, केंवची, कमइलीन, दहरा, कुलकाथे, खिरगे, गुरतुर, अलहन, लुड़बुड़, दंदोरन, छहेल्ला, चानी-चानी, पोगराही, सर्राथे, अदियावन, गोड़ी दिया, नंगत, झड़कबोन इत्यादि।

कवि सुशील भोले के रचना म छत्तीसगढ़ी संस्कृति के साथ वोकर बचाव के घलो संदेश जुड़े हे। ताकि जन-जन सावचेत हो अथवा स्वयं सुधार के उपाय ढूंढ लेना चाही। समय के साथ चलना घलो जरूरी हे। इही कारन हे के सुशील के चार डांड़ी ह शब्द चित्र बनाये अपन बात ल सहजता से कहिथे-
लुड़बुड़ ले रेंगत देख धक ले करथे छाती
फेर मंडिय़ा के खेल देथे वो तो उलानबाटी
घर के जतका बर्तन-भांड़ा तेला नंगत ठठाथे
रार मचा देथे दिन भर मोर उतियाइल नाती

नारी सशक्तिकरण बर सुशील भोले आह्वान करथे कि-
कतकों जी-हजुरी करले नइ मिलय अधिकार
थोर-बहुत भले मिल जाही चटनी के चटकार
एक बात तो गांठ बांध ले तैं भोले के बानी
जब लड़बे तैं भीरे कछोरा होही तभे उजियार

'सब वोकरे संतान ये संगी" के चित्रांकन बड़ सुघ्घर हे, नवापन हे, मौलिक घलो हे। चित्र ल देख के खुदेच का शीर्षक या नाव होना चाही बन जाथे काबर कि कोनो अंत: रचना म कोनो चार डांड़ी म नाव नइ लिखे हे।
'सब वोकरे संतान ये संगी" संस्कृति चिन्तक, साहित्यकार सुशील भोले के छत्तीसगढ़ी भाखा म बोधगम्य, स्वाभाविक अउ पठनीय चार डांड़ी आय। भोले जी ल हिरदे ले बधाई, छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति बर अइसनेच अउ उदिम करत रहे तेकर कामना। शुभकरोति।

डॉ. सुखदेव राम साहू 'सरस"
 समाज गौरव प्रकाशन
अमीनपारा, पुरानीबस्ती, रायपुर (छ.ग.)
मोबा नं. 9617241315

 लेखक-
सुशील भोले
54/191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मो. नं. 80853 05931, 98269 92811

Monday 20 July 2015

अगासदिया सम्मान, विमोचन एवं कवि सम्मेलन

18 जुलाई  को कुर्मी भवन रायपुर में आयोजित अगासदिया सम्मान समारोह, सब वोकरे संतान ये संगी का विवोचन एवं कवि सम्मेलन की चित्रमय झांकी....







सुशील भोले को अगासदिया सम्मान, कवि सम्मेलन एवं विमोचन समारोह संपन्न





छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल की जयंती के अवसर पर शनिवार 18 जुलाई को संध्या 6 बजे से वृहद कवि सम्मेलन एवं पुस्तक *सब वोकरे संतान ये संगी* के विमोचन का आयोजन किया गया । इस अवसर पर सुशील भोले को प्रतिष्ठित अगासदिया सम्मान से भी अलंकृत किया गया।
आजाद चौक रायपुर स्थित कुर्मी भवन के सभागार में आयोजित इस आयोजन में संत कवि पवन दीवान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे, जबकि अध्यक्षता छत्तीसगढ़ हिन्दी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर ने की। कवि सम्मेलन में प्रदेश के प्रतिष्ठित कवि मीर अली मीर, रमेश विश्वहार, सुशील भोले, राजेन्द्र पाण्डेय, उपेन्द्र कश्यप, बलराम चंद्राकर, शकुंतला तरार, सुनीता शर्मा नीलोफर, मोहिनी भट्टाचार्य, जागृति बघमार आदि ने अपनी कविताओं के माध्यम से रसिक श्रोताओं को भावविभोर किया।