Wednesday 22 July 2015

पुस्तक चर्चा - सब वोकरे संतान ये संगी


छत्तीसगढ़ के मान, छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति बर सरलग काम अउ चिन्ता करइया साहित्यकार, पत्रकार श्री सुशील भोले के नवा प्रयोग रचना आय 'सब वोकरे संतान ये संगी" - छत्तीसगढ़ी के चार डांड़ी।

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के आर्थिक सहयोग अउ वैभव प्रकाशन ले प्रकाशित 'सब वोकरे संतान ये संगी" हिन्दी उर्दू के मुक्तक परंपरा म छत्तीसगढ़ी भाखा म नवा प्रयोग आय केहे जा सकत हे। मात्र चार पंक्ति म, बिना छंद बंधन के सरल, सहज अउ हिरदे के साथ मन ल घलो प्रभावित करे के क्षमता हाबे सुशील भोले के 'चार डांड़ी" म।

हिरदे के भाव अउ शब्द के रंेगाव सरलग होगे हे, तेकर सेती बिना लाग-लपेट के कवि भोले ह अपन बात कहिथे। येला यहू कहे जा सकत हे कि इनकर म बनावटी पन या दिखावा या अनावश्यक वाक्-शब्द लालित्य नइये। येखर से शब्द ह भाव के साथ माला गूथे भर चलथे। सुशील भोले के ज मो चार डांड़ी म साहित्यिक अउ सात्विक परंपरा दिखाई देथे।

'सब वोकरे संतान ये संगी' म चार डांड़ी युक्त कुल साठ रचना सकलाय हे। ज मो रचना मन ल सात संदर्भ म बांटे जा सकथे, जइसे- छत्तीसगढ़ी सामाजिक परंपरा, ऋतु प्रभाव, संस्कार-पर्व, अध्यात्म, प्रदूषण, कायाखण्डी, अउ शिक्षा संदेश।

छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति के संरक्षण खातिर प्रखर चिंतन करइया कवि सुशील भोले ह आत्मकथ्य में सीधा कहिथे कि-
"मोर लेखनी के छापा ये आय जिनगी के दरपन"

छत्तीसगढ़ी म सोच के छत्तीसगढ़ी म लिखना सुशील भोले के ये रचना ह अप्रतिम उदाहरण आय।
सोन पांखी के फांफा-मिरगा या बिखहर हो जीव
सब के भीतर बन के रहिथे एकेच आत्मा शिव
तब कइसे कोनो छोटे-बड़े या ऊँचहा या नीच
सब वोकरे संतान ये संगी जतका जीव-सजीव

इही कारन से कवि सीधा कहना पसंद करथे कि-
सच के सुजी ह बस नानेकुन होथे
फेर लबराही फुग्गा ल फुस ले कर देथे।

इही सरलग म 'सेंदूर" के नवा किन्तु परंपरागत बानगी घलो चार डांड़ी म दिखथे-
मइके छूटगे मया बिसरगे महतारी के अंगना
नान-नान बहिनी-भाई के संग म खेलना-कूदना 
कइसे मोह बनाये विधाता तैं चुटकी बर सेंदूर के
कुल-गोत्र सबो तो छूटगे ददा के किस्सा कहना

ये प्रसंग म ये कहना जरूरी हे के अनुभवी साहित्यकार के दृष्टि / परख ह सूक्ष्म लेकिन अधिक प्रभावकारी होथे, छोटे नान नान शब्द म बड़ भाव छिपे रहिथे। मूलत: किसान परिवार के साथ जुड़े गांव घर के सरल किसान के दर्द ल कवि मानो अपन म समेटना चाहथे-
* करजा तो रोज बाढ़त हे जस बेसरम के झाड़ी
* कभू बाढ़ कभू सूखा या भूमि अधिग्रहण के सेती 
* बिलबिलावत भूख करजा म देवत हे अपन परान
* देख विकास के चिमनी घलो लेवत हावय परान 
* अलहन होगे तरिया-नंदिया मुश्किल हे निस्तारी 
* नवा बहुरिया के रेंगना कस लागे मौसम के चाल

समग्र चार डांड़ी के समवाय म कवि सुशील भोले ह ज मो उपमा ल प्रकृति के साथ जोड़ के  बनाये बर उदिम करे हे जइसे-
उमर उडिय़ावत हे बनके फुरफुंदी। सावन के ठढ़बुंदिया असन हावय तोर बोली। बादर भइया बड़ा भुलक्कड़।
'सब वोकरे संतान ये संगी" के शब्द चयन म नंदाये शब्द या कम प्रचलित शब्द के प्रयोग नीक लागथे, काबर भाव के साथ जुड़ के चलइया शब्द ह कवि के मौलिकता के साथ सावचेत रहे के घलो पहिचान आय, जइसे ये छत्तीसगढ़ी भाखा के शब्द- खनगी, बदरा, ठोसहा, पोगराबे, बुलक, केंवची, कमइलीन, दहरा, कुलकाथे, खिरगे, गुरतुर, अलहन, लुड़बुड़, दंदोरन, छहेल्ला, चानी-चानी, पोगराही, सर्राथे, अदियावन, गोड़ी दिया, नंगत, झड़कबोन इत्यादि।

कवि सुशील भोले के रचना म छत्तीसगढ़ी संस्कृति के साथ वोकर बचाव के घलो संदेश जुड़े हे। ताकि जन-जन सावचेत हो अथवा स्वयं सुधार के उपाय ढूंढ लेना चाही। समय के साथ चलना घलो जरूरी हे। इही कारन हे के सुशील के चार डांड़ी ह शब्द चित्र बनाये अपन बात ल सहजता से कहिथे-
लुड़बुड़ ले रेंगत देख धक ले करथे छाती
फेर मंडिय़ा के खेल देथे वो तो उलानबाटी
घर के जतका बर्तन-भांड़ा तेला नंगत ठठाथे
रार मचा देथे दिन भर मोर उतियाइल नाती

नारी सशक्तिकरण बर सुशील भोले आह्वान करथे कि-
कतकों जी-हजुरी करले नइ मिलय अधिकार
थोर-बहुत भले मिल जाही चटनी के चटकार
एक बात तो गांठ बांध ले तैं भोले के बानी
जब लड़बे तैं भीरे कछोरा होही तभे उजियार

'सब वोकरे संतान ये संगी" के चित्रांकन बड़ सुघ्घर हे, नवापन हे, मौलिक घलो हे। चित्र ल देख के खुदेच का शीर्षक या नाव होना चाही बन जाथे काबर कि कोनो अंत: रचना म कोनो चार डांड़ी म नाव नइ लिखे हे।
'सब वोकरे संतान ये संगी" संस्कृति चिन्तक, साहित्यकार सुशील भोले के छत्तीसगढ़ी भाखा म बोधगम्य, स्वाभाविक अउ पठनीय चार डांड़ी आय। भोले जी ल हिरदे ले बधाई, छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति बर अइसनेच अउ उदिम करत रहे तेकर कामना। शुभकरोति।

डॉ. सुखदेव राम साहू 'सरस"
 समाज गौरव प्रकाशन
अमीनपारा, पुरानीबस्ती, रायपुर (छ.ग.)
मोबा नं. 9617241315

 लेखक-
सुशील भोले
54/191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मो. नं. 80853 05931, 98269 92811

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