Sunday 20 December 2020

कौशल्या जन्मभूमि...???

कौशल्या जन्मभूमि...???
  भगवान राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि के नाम पर इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीति गरमा गई है. कांग्रेस जहाँ राजधानी रायपुर  के पूर्व दिशा में लगभग 25 कि. मी. की दूरी पर स्थित ग्राम चंदखुरी, जहाँ विश्व का एकमात्र "कौशल्या मंदिर" है, जिसमें माता कौशल्या की गोद में भगवान राम बालक रूप में विराजित हैं, उसे ही जन्मभूमि के रूप में मानकर उस स्थल का विकास करना चाहती है, वहीं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता और और पूर्व संस्कृति मंत्री अजय चंद्राकर इस स्थल को केवल कौशल्या मंदिर होने और जन्मभूमि बिलासपुर जिला के ग्राम कोसला में होने का दावा कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह भी अजय चंद्राकर के बयान के साथ खड़े हो गये हैं. इधर जोगी कांग्रेस ने भी इन दोनों ही पार्टियों को एक सप्ताह के अंदर प्रमाण प्रस्तुत करने की चेतावनी दे दी है.
   यहाँ यह जानना आवश्यक है, कि कौशल्या जन्मभूमि के रूप में यहाँ के विद्वान एकमत नहीं हैं. चंदखुरी को जन्मभूमि मानने वालों की संख्या तो ज्यादा ही है. इसके साथ ही ग्राम कोसला को मानने वाले भी कम संख्या में नहीं हैं. वहीँ कुछ विद्वान जांजगीर जिला के ग्राम कोसिर को भी कौशल्या जन्मभूमि होना मानते हैं. वहाँ स्थित "कोसिर माता" के मंदिर को कौशल्या बताने का प्रयास करते हैं. इनके अतिरिक्त कुछ विद्वानों का यह भी मत है, कि कौशल्या चूंकि दक्षिण कोसल की राजकन्या थी, तो उसका जन्म राजभवन में हुआ होगा, और चूंकि उस समय यहाँ की राजधानी श्रीपुर (सिरपुर) थी, तो कौशल्या का जन्म भी सिरपुर में ही हुआ होगा.
   जितने मत उतनी मान्यता. पर किसी के पास सर्व स्वीकृत प्रमाण नहीं है. किन्तु एक बात अवश्य है, कि चंदखुरी को स्वीकार करने वालों की संख्या निश्चित रूप से अधिक है. पूर्व के सरकार के समय बनी "राम वन गमन पथ शोध समिति" के सदस्य भी चंदखुरी को ही जन्मभूमि मानकर उस स्थल के विस्तार के लिए प्रयास करने का अनुरोध सरकार से किए थे.
  जहाँ तक मेरा व्यक्तिगत विचार है. मैं भी चंदखुरी को ही कौशल्या जन्मभूमि के रूप में स्वीकार करता हूँ. मैं उस समय से चंदखुरी स्थित कौशल्या मंदिर जा रहा हूँ, जब वह स्थल उजाड़ टापू की तरह दिखाई देता था. तब वहाँ तक जाने के लिए आज की तरह कोई पक्का मार्ग नहीं था, लोग तालाब में तैरकर वहाँ तक पहुंचते थे. नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की बाहुल्यता को देखते हुए लकड़ी और बांस बल्लियों से चैलीनुमा अस्थायी मार्ग बना दिया जाता था.
   ग्राम चंदखुरी को देखकर एक बात तो स्पष्ट हो जाता है कि यह कोई ऐतिहासिक गाँव है. वहाँ पुरातात्विक महत्व के मंदिर और मूर्तियां, कारीगरी युक्त पत्थर अनेक स्थानों पर बिखरे हुए दिख जाते हैं, जो इस बात का अहसास कराते हैं, कि भले ही यह किसी राज्य की राजधानी न रहा हो,   किन्तु कोई प्राचीन ऐतिहासिक स्थल तो अवश्य ही है.
   कौशल्या मंदिर के संबंध में मेरा एक आलेख कुछ वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हुआ था. मेरे ब्लाग और फेसबुक पर भी रिलीज़ हुआ था. उसे पढ़कर राम जन्मभूमि समिति अयोध्या से जुड़े एक सदस्य मुझसे चंदखुरी मंदिर स्थल से जटायु समाधि की फोटो खिंचकर भेजने के लिए अनुरोध किए थे. तब तक मैं जटायु समाधि स्थल के संबंध में अपरिचित था. हाँ इतना अवश्य है कि जिस स्थल को जटायु समाधि बताया गया, वहाँ पर पहले एक बेर का पेड़ था, जिसके सहारे से लगा हुआ एक बड़ा सा पत्थर गड़ा हुआ था, जिसमें जटायु की आकृति अंकित थी. अभी दो-तीन वर्ष पूर्व और जाना हुआ, तब वहाँ रावण के राजवैद्य सुषैन की समाधि होने का भी ज्ञान हुआ. इसके संबंध में बताया गया कि लक्ष्मण जी को मूर्छा से बचाने के पश्चात सुषैन वैद्य वापस लंका न जाकर इधर आ गये थे, उन्हें डर था कि लक्ष्मण जी को मूर्छा से जागृत करने के कारण रावण या उसके अन्य कोई अनुयायी इन्हें जान से मार डालेंगे. इसलिए यहाँ आकर राजाश्रय मांगकर रहने लगे. कौशल्या मंदिर परिसर में एक लम्बा सा पत्थर का रखा हुआ है, इसे  ही सुषैन वैद्य का समाधि बताया जाता है. उसके संबंध में यह जन आस्था है कि उस स्थल की मिट्टी को लगाने से अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल जाती है.
  एक प्रश्न मन में बार-बार उठ जाता है कि पंद्रह वर्षों तक यहाँ भाजपा की सरकार थी. अजय चंद्राकर जी स्वयं संस्कृति मंत्री रहे हैं, तब इस कौशल्या जन्मभूमि के विवाद को स्पष्ट कर ऐतिहासिक सच्चाई को प्रमाणित क्यों नहीं किया गया? अब विपक्ष में जाने के पश्चात ज्ञान चक्षु अचानक कैसे जागृत हो गया?
  आप इस पर क्या कहते हैं...???
-सुशील भोले-9826992811
संजय नगर, रायपुर

कौशल्या जन्मभूमि...???

कौशल्या जन्मभूमि...???
  भगवान राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि के नाम पर इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीति गरमा गई है. कांग्रेस जहाँ राजधानी रायपुर  के पूर्व दिशा में लगभग 25 कि. मी. की दूरी पर स्थित ग्राम चंदखुरी, जहाँ विश्व का एकमात्र "कौशल्या मंदिर" है, जिसमें माता कौशल्या की गोद में भगवान राम बालक रूप में विराजित हैं, उसे ही जन्मभूमि के रूप में मानकर उस स्थल का विकास करना चाहती है, वहीं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता और और पूर्व संस्कृति मंत्री अजय चंद्राकर इस स्थल को केवल कौशल्या मंदिर होने और जन्मभूमि बिलासपुर जिला के ग्राम कोसला में होने का दावा कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह भी अजय चंद्राकर के बयान के साथ खड़े हो गये हैं. इधर जोगी कांग्रेस ने भी इन दोनों ही पार्टियों को एक सप्ताह के अंदर प्रमाण प्रस्तुत करने की चेतावनी दे दी है.
   यहाँ यह जानना आवश्यक है, कि कौशल्या जन्मभूमि के रूप में यहाँ के विद्वान एकमत नहीं हैं. चंदखुरी को जन्मभूमि मानने वालों की संख्या तो ज्यादा ही है. इसके साथ ही ग्राम कोसला को मानने वाले भी कम संख्या में नहीं हैं. वहीँ कुछ विद्वान जांजगीर जिला के ग्राम कोसिर को भी कौशल्या जन्मभूमि होना मानते हैं. वहाँ स्थित "कोसिर माता" के मंदिर को कौशल्या बताने का प्रयास करते हैं. इनके अतिरिक्त कुछ विद्वानों का यह भी मत है, कि कौशल्या चूंकि दक्षिण कोसल की राजकन्या थी, तो उसका जन्म राजभवन में हुआ होगा, और चूंकि उस समय यहाँ की राजधानी श्रीपुर (सिरपुर) थी, तो कौशल्या का जन्म भी सिरपुर में ही हुआ होगा.
   जितने मत उतनी मान्यता. पर किसी के पास सर्व स्वीकृत प्रमाण नहीं है. किन्तु एक बात अवश्य है, कि चंदखुरी को स्वीकार करने वालों की संख्या निश्चित रूप से अधिक है. पूर्व के सरकार के समय बनी "राम वन गमन पथ शोध समिति" के सदस्य भी चंदखुरी को ही जन्मभूमि मानकर उस स्थल के विस्तार के लिए प्रयास करने का अनुरोध सरकार से किए थे.
  जहाँ तक मेरा व्यक्तिगत विचार है. मैं भी चंदखुरी को ही कौशल्या जन्मभूमि के रूप में स्वीकार करता हूँ. मैं उस समय से चंदखुरी स्थित कौशल्या मंदिर जा रहा हूँ, जब वह स्थल उजाड़ टापू की तरह दिखाई देता था. तब वहाँ तक जाने के लिए आज की तरह कोई पक्का मार्ग नहीं था, लोग तालाब में तैरकर वहाँ तक पहुंचते थे. नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की बाहुल्यता को देखते हुए लकड़ी और बांस बल्लियों से चैलीनुमा अस्थायी मार्ग बना दिया जाता था.
   ग्राम चंदखुरी को देखकर एक बात तो स्पष्ट हो जाता है कि यह कोई ऐतिहासिक गाँव है. वहाँ पुरातात्विक महत्व के मंदिर और मूर्तियां, कारीगरी युक्त पत्थर अनेक स्थानों पर बिखरे हुए दिख जाते हैं, जो इस बात का अहसास कराते हैं, कि भले ही यह किसी राज्य की राजधानी न रहा हो,   किन्तु कोई प्राचीन ऐतिहासिक स्थल तो अवश्य ही है.
   कौशल्या मंदिर के संबंध में मेरा एक आलेख कुछ वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हुआ था. मेरे ब्लाग और फेसबुक पर भी रिलीज़ हुआ था. उसे पढ़कर राम जन्मभूमि समिति अयोध्या से जुड़े एक सदस्य मुझसे चंदखुरी मंदिर स्थल से जटायु समाधि की फोटो खिंचकर भेजने के लिए अनुरोध किए थे. तब तक मैं जटायु समाधि स्थल के संबंध में अपरिचित था. हाँ इतना अवश्य है कि जिस स्थल को जटायु समाधि बताया गया, वहाँ पर पहले एक बेर का पेड़ था, जिसके सहारे से लगा हुआ एक बड़ा सा पत्थर गड़ा हुआ था, जिसमें जटायु की आकृति अंकित थी. अभी दो-तीन वर्ष पूर्व और जाना हुआ, तब वहाँ रावण के राजवैद्य सुषैन की समाधि होने का भी ज्ञान हुआ. इसके संबंध में बताया गया कि लक्ष्मण जी को मूर्छा से बचाने के पश्चात सुषैन वैद्य वापस लंका न जाकर इधर आ गये थे, उन्हें डर था कि लक्ष्मण जी को मूर्छा से जागृत करने के कारण रावण या उसके अन्य कोई अनुयायी इन्हें जान से मार डालेंगे. इसलिए यहाँ आकर राजाश्रय मांगकर रहने लगे. कौशल्या मंदिर परिसर में एक लम्बा सा पत्थर का रखा हुआ है, इसे  ही सुषैन वैद्य का समाधि बताया जाता है. उसके संबंध में यह जन आस्था है कि उस स्थल की मिट्टी को लगाने से अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल जाती है.
  एक प्रश्न मन में बार-बार उठ जाता है कि पंद्रह वर्षों तक यहाँ भाजपा की सरकार थी. अजय चंद्राकर जी स्वयं संस्कृति मंत्री रहे हैं, तब इस कौशल्या जन्मभूमि के विवाद को स्पष्ट कर ऐतिहासिक सच्चाई को प्रमाणित क्यों नहीं किया गया? अब विपक्ष में जाने के पश्चात ज्ञान चक्षु अचानक कैसे जागृत हो गया?
  आप इस पर क्या कहते हैं...???
-सुशील भोले-9826992811
संजय नगर, रायपुर

Wednesday 2 December 2020

अगहन बिरस्पत....

अगहन बिरस्पत म होथे लक्ष्मी दाई के बासा...
    कार्तिक पुन्नी के बिहान दिन ले अगहन महीना लगथे। अउ अगहन महीना मा जउन दिन बिरस्पत परथे उही दिन हमर छत्तीसगढ़ म घरो घर अगहन बिरस्पत के परब ल बड़ उछाह ले मनाए जाथे। गजब मान गौन के संग लक्ष्मी दाई के पूजा करथें।
   एकर तैयारी बुधवार के संझा बेरा ले घर के साफ सफाई, अँगना परछी कुरिया के लिपाई। घर के मुहाटी मा सुघर चउँक पुरके माईलोगिन  मन बने चउंक पुरथें, रंगोली बनाथें। लक्ष्मी दाई ल जेन जगा स्थापित करथें उहू जगा ला सफ्फा करके चाउँर पिसान ला घोर के चउँक पुरथें घर के चारों मुड़ा के साफ सफाई करके लक्ष्मी दाई के स्थापना करथें। सुघर आमा पान, फूल पान, नरियर, आँवला फल, आँवला पत्ती, केरा पत्ता,
अउ कंद मूल जिमी काँदा, धान के बाली मा सजा के कलश के स्थापना करथें। अउ बुधवारेच के रतिहा म सबो जूठा बरतन भाड़ा ला माँज धो के रखथें. घर मुहाटी ले लक्ष्मी दाई के वास (स्स्थापना स्थल) तक चाउँर पिसान के सुघर पांव के छापा बनाथें। राते मा माता करा दीया बार के रखथें।
    बिरस्पत के मुँधरहा ले घर के माईलोगिन मन उठ जाथें, नहा धोके घर के दुवारी, रंगोली अउ तुलसी चौंरा मा दीया बारथें। दीया बार के घर के दरवाजा ला खुल्ला राखथें। जेन हा दिन भर खुलेच रहिथे। पूजा पाठ करके माईलोगिन मन उपास घलो रहिथें अउ लक्ष्मी दाई के ध्यान मा मगन रहिथें।
    ये पूजा के एक ठन अउ खास बात हवय, बुधवारे के दिन महिला मन अपन अपन घर मा सबो मनखे ला चेता के रखे रहिथे आज चुंदी, नाखून नइ कटाना हे, साबुन से नहाना नइ हे, बाल नइ धोना हे, पइसा खरचा भी नइ करना हे, कपड़ा लत्ता धोय के मनाही हे कहिके चेताँय रहिथें। माने भारी नियम धियम माने बर परथे। माईलोगिन मन सुघर नवा नवा लुगरा पहिन के टिकली, माँहुर, काजर आँज अपन आप ला सुंदर अउ स्वच्छ बनाय रखथें। ये दिन पीला फल, पीला कपड़ा,  पीला भोग के बड़ महत्व रहिथे। दान मा केला फल, भोग मा चना के दाल ला बड़ शुभदायी मानथे।
     पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक पुन्नी के साथे मा अगहन के शुरुआत हो जथे, माईलोगिन मन अपन घर के सुख समृद्धि अउ यश, धन खातिर माता लक्ष्मी के आराधना करथें। येकर पीछू मान्यता इही हे के माता लक्ष्मी अगहन महीना मा क्षीरसागर ले निकल के पृथ्वी लोक मा विचरण करत रहिथें। जेन मन धरम करम से माता के पूजा पाठ करथें तेकर घर आके वोहा वास करथे। अउ ओकर घर मा सुख, शाँति, समृद्धि अउ ऐश्वर्य के वास हो जथे। इही मान्यता खातिर ये तिहार ला हमर छत्तीसगढ़ म घलो नियम धियम अउ पारंपरिक रूप ले मनाये जाथे। ये दिन लक्ष्मी पूजा के संगे-संग सुरुज देवता के पूजा, शंख के पूजा ल भारी फलदायी मानथें। अइसे मान्यता हावय सुरुज देव के किरण हा कीटाणु ला नष्ट कर देथे अउ शरीर ला निरोग बनाथे। तेकर सेती सब बिहनिया बिहनिया जल चढ़ाके आशीष माँगथें।
एक उछाह अउ बिश्वास के साथ अगहन बिरस्पत के परब ल महिला मन बड़ ऊर्जा अउ धरम करम अउ संयमित रहिके मनाथें।
बोलो अगहन बिरस्पत की जय
लक्ष्मी दाई के जय🙏
सुशील भोले-9826992811