Monday 27 February 2023

कपिलनाथ कश्यप के काव्य रस म परिपाक

6 मार्च जयंती विशेष//
महाकवि कपिलनाथ कश्यप के काव्य म रस परिपाक
      
                     - सुशील भोले
                             
       डाॅ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा ह छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य के विवेचना करत लिखे हें- कपिलनाथ कश्यप छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रथम महाकवि हें। ओमन महाकाव्य, खंडकाव्य, मुक्तक काव्य के संगे-संग गद्य साहित्य म कहिनी, निबंध, एकांकी, आत्मकथा आदि लिख के छत्तीसगढ़ी साहित्य ला गजब ऊँचहा ठउर दिए हें। पं. मुकुटधर पाण्डेय जी कहंय- उनकर भाषा मंजे हुये, मुहावरेदार अउ प्रवाहयुक्त हे। त्रिभंगी छंद के छत्तीसगढ़ी म पहली बार प्रयोग देखे ला मिलिस।
      महाकवि कपिलनाथ कश्यप के जनम 06 मार्च 1906 के पौना गाँव म होइस अउ 02 मार्च 1985 के दिन छत्तीसगढ़ के भागीरथी कवि पंचतत्व म विलीन हो गइन।   वोमन तीन महाकाव्य- श्री राम कथा, श्री कृष्ण कथा, अउ श्री महाभारत के सृजन कर के छत्तीसगढ़ी साहित्य म अमर हो गइन।
        महाकवि कपिलनाथ कश्यप जी के काव्य प्रायः छंदबद्ध हे। ओमा रस अउ अलंकार के प्रयोग भाषा-भाव के अनुरूप लोकोक्ति अउ मुहावरा ला समाए हुए हे।

  # करूण रस के एक उदाहरण श्री कृष्ण कथा ले-

मांगिस जब लइका बहिनी सो,
रोये लगिस धर के गोड़।
कोख पोंछनी आये हे ये,
एला अब तो भइया छोड़।
कोख पोंछनी अपन-
बतावत हस तैं जेला।
मोर काल ह आये हे,
देखव तो एला।
अइसन कहिके कंस-
तुरत लइका ला झटकिस।
हाथ उठा उपर ले,
पथरा उपर पटकिस।

# वीर रस के उदाहरण-

अबला नहीं नारी कतका,
सबला होथे ये दिख जाही।
झूठा बंधना टोर-टार के,
नारी मन बाहिर आहीं।

# रौद्र रस के उदाहरण-

केस धरिस देवकी बहिनी के,
गुस्सा भरके एक हाथ म।
कूदिस रथ ले थरथरावत ओ,
धरे हाथ तरवार दूसर मा।

# वीभत्स रस के उदाहरण-

भुजा कटे ले लहु धार के,
राजन! पिचका फूटिस कइसे!
होरी मा भर रंग पिचक्का,
जुर-जुर लइकन मारय जइसे!

# अद्भूत रस के उदाहरण-

माटी खावत देख एक दिन,
जसुदा साँटी धर के आइन।
नइ खाँयें कहके मुँह फारिन,
भीतर अद्भूत दृष्य देखाइन।
जसुदा देख कृष्ण के मुँह मा,
चंदा सुरूज चंदैनी कतको।
बन पहार घर महल हबेली,
सागर नदिया नरवा जतको।

# भक्ति रस के उदाहरण-

तोर चरन मा ग्यानी पंडित,
अरपन करिन महमई फूल।
अड़हा ' नाथ ' चढ़ाये मोहन,
अहिलाये ये बासी फूल।

      महाकवि कपिलनाथ कश्यप के जयंती दिवस म 1997 ले हर बछर एक साहित्यिक आयोजन बिलासपुर म करे जाथे, जेमा गुनिक साहित्यकार मन ला ' महाकवि कपिलनाथ कश्यप विभूति अलंकरण ' अउ ' महाकवि कपिलनाथ कश्यप साहित्य सम्मान ' दिए जाथे। बछर 1997 ले अब तक  27 विभूति मन ला ' विभूति अलंकरण ' दिये गे हे, ओमा चंदैनी गोंदा के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख, पूर्व कुलपति डाॅ. रामलाल कश्यप, महंत रामसुंदर दास, डाॅ. पालेश्वर शर्मा, पद्म श्री पं श्यामलाल चतुर्वेदी, स्वामी कृष्णा रंजन, नारायण लाल परमार, पवन दीवान, डाॅ. संतराम देशमुख, डाॅ. कोमलसिंह सार्वा, डाॅ. संजीव बख्शी, पद्मश्री डाॅ. सुरेन्द्र दुबे, पं दानेश्वर शर्मा, पद्म श्री डाॅ. ममता चंद्राकर, उपन्यासकार डाॅ. परदेशी राम वर्मा, व्याकरणविद् डाॅ. विनोद कुमार वर्मा शामिल हें।
   ये बछर 2023 म डाॅ. रवि प्रकाश दुबे, कुलपति रमन विश्वविद्यालय ला ' विभूति अलंकरण ' दिए जाही, अउ छत्तीसगढ़ी के दू गुनिक साहित्यकार ला ' महाकवि कपिलनाथ कश्यप साहित्य सम्मान ' दिए जाही, ओमा छत्तीसगढ़ी के चर्चित कवयित्री वसन्ती वर्मा अउ डाॅ. विवेक तिवारी शामिल हें।

            # वसन्ती वर्मा

       पं. श्याम लाल चतुर्वेदी के परंपरा के पोषक चर्चित कवयित्री वसन्ती वर्मा के काव्य म रस, छंद अलंकार के अति सुग्घर उदाहरण मिलथे। वसन्ती वर्मा के गीत ' बेटी इस्कूल जाही ' अउ प्रलंब काव्य ' बस्तर ' के चर्चा पी-एच. डी. के दू अलग-अलग शोधप्रबंध म विस्तार ले किये गे हे। उनकर काव्य संग्रह ' मोर अँगना के फूल ' ला विमर्श के साथ प्रकाशित छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य के प्रथम कृति माने गे हे जबकि विधिक साक्षरता अभियान म शामिल छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी  के प्रथम कवयित्री हें।  उनकर काव्य संग्रह ' मितानीन ' के प्रकाशन विधिक साक्षरता अउ महिला सशक्तीकरण अभियान के अन्तर्गत प्रकाशित कर ओकर हजारों कापी निःशुल्क वितरित किये जा चुके हे। वसन्ती वर्मा के अब तक तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हे अउ तीनों चर्चित हे। अभी हाले म 26 फरवरी 2023 के छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर के प्रांतीय  सम्मेलन म वसन्ती वर्मा ला डाॅ. निरूपमा शर्मा स्मृति साहित्य सम्मान प्रदान किये गइस हे।

           # विवेक तिवारी

    ' छत्तीसगढ़ी राजभाषा के क्रियान्वयन' विषय म  अति महत्वपूर्ण शोध कार्य के बाद डाॅ. सी व्ही रमन विश्वविद्यालय ले पी-एच. डी. डिग्री प्राप्त करिन। छत्तीसगढ़ी के आठवीं अनुसूची म शामिल करे के कोशिश म ये शोध कार्य प्रकाश स्तंभ के काम करिही।

  - सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा.98269 92811

Tuesday 21 February 2023

बरोबरी के चिन्हारी

//बरोबरी के चिन्हारी//

नेता जी
आज नंगत के गदकत रिहिसे
वो बतावत रिहिसे-
हमन कोरी भर लोगन के
घर वापसी करवाए हन.
एती-तेती के संगत म चल दिए रिहिन हें
उन जम्मो के पांव धोवा के
उंकर खांध म पिंयर पंछा मढ़ा के
वापस अपन संगत म संघारे हन.
मोला वोकर गोठ सुन के गजब सुग्घर लागिस.
त पूछ परेंव-
अच्छा ए तो बतावौ
जेन भेदभाव, ऊँच-नीच
अउ हीनमान के सेती
उन तुंहर संगत ल छोड़ के
दूसर मन के संगत म हमागे रिहिन हें,
अब वो जम्मो भेदभाव ल
तुमन सिरवा डारेव का?
का अब तुमन
वो घर वापसी वाले लोगन मन संग
रोटी-बेटी अउ जम्मो किसम के
रिश्ता-नता ल
जोड़ लिए हौ?
नेता जी,
ए बात के जवाब नइ दे पाइस.
त मैं मने मन म गुनेंव-
त फेर का बात के होइस
घर वापसी?
फेर कभू इन धर लेहीं
उंकरेच मन के संगत
जेन इनला
देहीं बरोबरी के चिन्हारी.
-सुशील भोले-9826992811

बहुमुखी प्रतिभा पुनूराम साहू राज'

17 मई हीरक जन्मोत्सव//
बहुमुखी प्रतिभा के धनी कर्मयोगी पुनूराम साहू 'राज'
    जब कभू मैं ग्रामीण क्षेत्र म संचालित साहित्यिक- सांस्कृतिक समिति के माध्यम ले ठोसहा बुता करइया मन के गोठ करथंव, त वोमा सबले पहिली गिनती तहसील मुख्यालय मगरलोड, जिला-धमतरी के 'संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति' के सबले पहिली करथौं. चाहे कोनो मंच म होवय या फेर पत्र-पत्रिका म संदर्भ लिखे म, जम्मोच ठउर म मगरलोड के ए संस्था के गोठ जरूर करथौं. सबो जगा बताथौं- ग्रामीण क्षेत्र म रहिके घलो साहित्य, कला अउ संस्कृति खातिर जतका समर्पित भाव ले सरलग, बिना कोनो नागा अउ बहाना के ए समिति ह जुन्ना बेरा ले बुता करत हे, ए ह आने क्षेत्र के लोगन मन खातिर प्रेरणा के रद्दा देखा सकथे. उन एकर ले प्रेरणा ले के अपनो इहाँ कला, साहित्य अउ संस्कृति खातिर पोठहा बुता कर सकथें.
    इही 'संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति' के, जेन 13 अक्टूबर 1996 ले लोगन के बीच सरलग जनजागरण के बुता करत हे, एकर संस्थापक सदस्य अउ अभी के बेरा के अध्यक्ष पुनूराम साहू 'राज' जी ल आज अपन जिनगी के अमृत बेला ल अमरे खातिर बधाई संग शुभकामना देवत गजब निक जनावत हे.
    17 मई सन् 1948 के महतारी सुहेला देवी अउ सियान धनाजी राम साहू के घर जनमे पुनूराम जी बहुमुखी प्रतिभा के कर्मयोगी मनखे आय. वइसे तो मैं इनला सन् 1980 के दशक ले जानथौं, जब एमन के नाम ल आकाशवाणी के श्रोताओं के पत्र के संगे-संग तब के लोकप्रिय छत्तीसगढ़ी फरमाइशी कार्यक्रम 'सुर सिंगार' म इंकर नाम ल सुनत राहंव. छत्तीसगढ़ी भाषा के मासिक पत्रिका 'मयारु माटी के जब मैं प्रकाशन-संपादन करत रेहेंव तभो इंकर पाती मोरो जगा आवत राहय. फेर एक गुणी लेखक अउ पोठ साहित्यकार के रूप म तब चिन्हारी होइस, जब सन् 1990 के दशक म लगातार साहित्यिक गतिविधि मन म संघरे लगेन. सन् 1996 म डाॅ. दशरथ लाल जी निषाद 'विद्रोही' संग वो क्षेत्र के जम्मो गुणीजन मन मिल के 'संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति' के गठन करीन तेकर पाछू तो फेर लगातार मिलना-जुलना, एक-दूसर के कार्यक्रम म आना-जाना बाढ़िस. तब मैं इंकर लेखक के संगे-संग अउ तमाम कला प्रतिभा मन ले घलो चिन्हारी पावत गेंव.
    एक पइत 'राज' जी बतावत रिहिन- लइकई उमर म जब मैं 12, 13 बछर के रेहेंव तब गाँव के लीला मंडली अउ नाटक, ड्रामा आदि मन म महिला पात्र के भूमिका निभावौं. उंकर रूप-रंग तो सिरतो के नोनी बरोबर जुगजुग ले चिक्कन-चांदन दिखथे, एकरे सेती उनला सीता, सावित्री, रूक्मिणी, सती विन्दा, मैना, दमयंती आदि के अभिनय करवाए जाय. राज जी बतावंय- उनला पुरुष पात्र के घलो भूमिका निभाए के अवसर मिलय. उन बताथें, जब उन 22 बछर के होइन तब उनला राम लीला के रावण वध प्रसंग म विभीषण के भूमिका निभाए बर मिलय. विभीषण के भूमिका वो मन 52 बछर के होवत ले सरलग निभाइन.
    अइसने उन 18 बछर के उमर म 'डंडा नृत्य' ल ए नृत्य-गीत के ज्ञाता बीरसिंह पटेल जी जगा विधिवत शिक्षा लेइन. वो मन बताथें- डंडा नृत्य के 10 प्रकार वोमन सीखे रिहिन हें, जेला आज घलो भुलाय नइहें. अपन ए कला खातिर समर्पित भावना ल प्रदर्शित करे खातिर वो मन सन् 1975 म अपन खुद के प्रयास ले विकास खंड स्तरीय लोककला महोत्सव के आयोजन करे रिहिन हें. 'संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति' के गठन होए के बाद ए समिति द्वारा दू  बछर डंडा नृत्य गीत प्रतियोगिता अउ दू बछर सुआ नृत्य गीत प्रतियोगिता के आयोजन करे गे रिहिसे. सुआ नृत्य गीत प्रतियोगिता म एक बछर महूं ल संघरे के अवसर मिले रिहिसे.
    राज जी गाँव-गंवई के रहइया आय, एकरे सेती उंकर जम्मो रचनात्मक बुता म गाँव माटी के महक दिखाई देथे. गाँव के परब-तिहार, बोली-भाखा उंकर साहित्य लेखन के संगे-संग पत्रकारिता म घलो दिखथे. एक डहार उन गाँव-गंवई के गोठ ल साहित्य म रचथें त दूसर डहार पत्रकारिता के माध्यम ले ए सब जिनिस ल जन-जन तक बगराए म घलो पाछू नइ राहंय. उंकर छत्तीसगढ़ी गीत संकलन 'गावत माटी नाचत गाँव' के ए शीर्षक गीत ल देखव-

गावत माटी - नाचत गाँव रे..
मुच मुच हांसे गली, ठमकत हे पांव रे...
बइसाख म अक्ती आइस, नवा दिन मनाइन
दोना भर के धान, ठाकुर दिया म चढ़ाइन.
आधा जेठ म होगे, धान बोये के तैयारी
खेत म चलिस नांगर बइला रापा अउ कुदारी.
घुरूर घारर बादर संग असाढ़ आइस ठांव रे..
मुच मुच हांसे गली, ठुमकत हे पांव रे...

    माटी के प्रति उंकर मया अउ लगाव ल देखव-

माटी म उपजेन माटी म बाढ़ेन, माटी हे भगवान. संगी माटी हे महान...
इहि माटी म जनम धरिन हें, बड़े बड़े पंडित ज्ञानी
अर्जुन ल उपदेश बताइन, कृष्ण ह गीता के बानी
माटी के महिमा ल रे संगी, कइसे करौं बखान...

    एक डहार जिहां राज जी गाँव के महिमा के गान करथें. उहाँ के परंपरा के गोठ करथें, उहें उन गरीबी, मंहगाई अउ साल के साल परत दुकाल के गोठ करे म घलो नइ पिछवावंय. जनभावना ल उन   अपन अंतस के माध्यम कहि देथें. उंकर अंतस के उद्गार देखव-

एक कोती गरीबी, दुसर कोती मंहगाई,
डेना ल धर के हेचकारत हे,
उपराहा म साल पुट दुकाल, घेरी बेरी चेचकारत हे.
हम घयलाहा मनखे, अपने घेंघराहा बोली म,
दुख के कहानी ल आंसू म  लिखत हन,
फेर हमर लिखे ले का होही,
कोनो पढ़इया राहय तब तो.

    राज जी के साहित्य सिरजन के संसार घलो गजब लम्हा हे. मोला उंकर सन् 2002 म छपे एक किताब देखे ले मिले रिहिसे 'हाना' एमा छत्तीसगढ़ी कहावत अउ मुहावरा मनला ल सुंदर गढ़न के संदर्भ सहित समझावत गे रिहिसे. मैं शुरू ले दैनिक अखबार संग जुड़े हौं, तेकर सेती उहाँ ले निकलइया छत्तीसगढ़ी परिशिष्ट मन म राज जी के ए हाना वाले किताब के गजब उपयोग करत रेहेंव.
    ए हाना किताब के छोड़े छत्तीसगढ़ी गीत अउ कविता संग्रह 'गावत माटी नाचत गाँव', अपन क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन ऊपर आधारित 'सुराज के सिपाही', छत्तीसगढ़ के पारंपरिक घरजिंया प्रथा ऊपर नाटक 'लमसेना', हिन्दी नाटक 'कर्मयज्ञ', भक्त माता कर्मा ऊपर आधारित छत्तीसगढ़ी कहानी 'कर्मा माता के खिचरी', वोमन 42 बछर तक बैंक म कर्मचारी के रूप म सेवा दिए हें, एकरे ऊपर संस्मरण लिखे हें -'नियुक्ति से निवृत्ति तक'. एकर मन के छोड़े छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह, निबंध संग्रह आदि मन प्रकाशन के अगोरा म हे.
    राज जी ल मिले सम्मान अउ पुरस्कार मन के श्रृंखला गजबेच लंबा हे. उनला सन् 1984 ले लेके आज तक के मिले सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, पत्रकारिताअउ आने लेखन मन के माध्यम ले मिले सम्मान मन  ल देख के उंकर खातिर गरब के अनुभव होथे.
    आज पुनूराम साहू 'राज' जी अपन जिनगी के 75 बछर पूरा करत हें. ए बेरा म मैं उनला शताब्दी मनाए के शुभकामना देवत अपन ईष्टदेवता कुलदेवता ले अरजी करत हौं, के उनला अपन जिनगी के संझौती बेरा ल घलो एक समर्पित कर्मयोगी के जिनगी प्रदान करंय...

एक छंद है आज समर्पित 'राज' जी आपके जन्मदिवस पर
जीवन खुशियों से भर जाए ज्यूं जल भरता ऋतु पावस पर
रिद्धि सिद्धी सब मंगल गावें नृत्य करे देव-अप्सरा
स्वर्ग लोक मुदित मुस्कावे देख-देख कर यह वसुंधरा
हर मौसम के रंग निराले छाए आपके मानस पर
'राज' जी आपके जन्मदिवस पर
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 16 February 2023

सुआ, करमा ददरिया किताब राधिका वर्मा

किताब के गोठ//
परंपरा के संरक्षण करत 'सुआ, करमा अउ ददरिया'
    हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के मयारुक रचनाकार राधिका वर्मा जी के अभी तुरते छपे किताब 'सुआ, करमा अउ ददरिया' ल पढ़ के गजबे आनंद आइस, काबर ते ए किताब ह हमर पारंपरिक गीत मन के संकलन आय, जेकर मन के संरक्षण खातिर हमन जम्मो लेखक अउ इहाँ के संस्कृति खातिर बुता करइया मनला गोहरावत रहिथन.
    राधिका वर्मा जी के अपन खुद के सिरजाय रचना मन के संग्रह 'पीरा.. मन के' पहिली पढ़े बर मिले रिहिसे, फेर अभी के संकलन ह पारंपरिक गीत मन के थाथी आय. एमा राधिका वर्मा जी अपन खुद के प्रयास ले सकेले पुरखौती गीत मन के संगे-संग रमा विश्वकर्मा, सविता सोनी, बसंती दीक्षित, पूर्णिमा वर्मा, चमेली वर्मा, लक्ष्मी वर्मा, जानकी वर्मा, कालिन्द्री, सुलक्षणा वर्मा, तुलसा वर्मा, आशालता सोनी, गीता विश्वकर्मा, श्यामा उइके, पन्ना शर्मा, केजा बाई ग्वालीन, सोनकुंवर वर्मा, उमा वर्मा आदि मन के द्वारा संचालित तीन कोरी अकन लोकगीत मनला संघारे हे.
    राधिका वर्मा जी ए किताब म लोकगीत मन के संकलन खातिर प्रेरित करइया डाॅ. निरूपमा शर्मा जी ल सुरता करत लिखे हें- छत्तीसगढ़ महिला साहित्य अउ विकास परिषद के अध्यक्ष रहत वोमन एकर मन के संकलन खातिर कहे रिहिन हें. उंकरे बताए रद्दा म ए लोकगीत मनला अपन तीर-तखार म रहइया दाई-दीदी, बहिनी, मामी, ममादाई मन जगा गिंजर-गिंजर के सकेले रेहेंव अउ सन् 2004 म एकर पांडुलिपि ल रायपुर के दादा बाड़ी जैन मंदिर म सत्यनारायण शर्मा जी जगा विमोचन करवाए रेहेंव, फेर आज 14 फरवरी 2023 के सामाजिक समरसता सम्मान समारोह जेन रायपुर के कृष्णा नगर के कर्माधाम म होइस, तिहां वो पांडुलिपि ल किताब रूप म छपवा के विमोचन करवाए  हौं.
    ए किताब के नाॅव भले 'सुआ, करमा अउ ददरिया' हे, फेर एमा एकर मन के संगे-संग सोहर गीत, शीतला माता सेवा, माता सेवा जसगीत, बारहमासी, जंवारा गीत, भोजली गीत, गौरा-गौरी गीत, जम्मो नेंग जोंग मन के बिहाव गीत, नचउड़ी गीत, लोरिक चंदा के गीत, बांस गीत, गंगोरिहा गीत, भरथरी गीत, पंथी गीत के संगे-संग कुछ हाना अउ राउत नाचा वाले दोहा मनला  संघारे गे हवय.
    कुल मिलाके ए किताब ह परंपरा अउ संस्कृति खातिर बुता करइया लोगन मन बर अनमोल खजाना बरोबर हे. मैं राधिका वर्मा जी ल ए जबर बुता खातिर बधाई देवत ए अरजी घलो करत हौं, के उन अइसने हमर दाई-काकी अउ बूढ़ी दाई मन जेन अलग अलग परब-तिहार, प्रसंग आदि म किस्सा कहानी बेरा-बखत के मुताबिक सुनावत राहंय, वोकरो मन के संकलन कहूँ हो सकय, त अउ जबड़ बुता हो जाही.
    ए ठउका उदिम खातिर राधिका जी ल एक पइत अउ बधाई.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

सुआ, करमा ददरिया किताब राधिका वर्मा

किताब के गोठ//
परंपरा के संरक्षण करत 'सुआ, करमा अउ ददरिया'
    हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के मयारुक रचनाकार राधिका वर्मा जी के अभी तुरते छपे किताब 'सुआ, करमा अउ ददरिया' ल पढ़ के गजबे आनंद आइस, काबर ते ए किताब ह हमर पारंपरिक गीत मन के संकलन आय, जेकर मन के संरक्षण खातिर हमन जम्मो लेखक अउ इहाँ के संस्कृति खातिर बुता करइया मनला गोहरावत रहिथन.
    राधिका वर्मा जी के अपन खुद के सिरजाय रचना मन के संग्रह 'पीरा.. मन के' पहिली पढ़े बर मिले रिहिसे, फेर अभी के संकलन ह पारंपरिक गीत मन के थाथी आय. एमा राधिका वर्मा जी अपन खुद के प्रयास ले सकेले पुरखौती गीत मन के संगे-संग रमा विश्वकर्मा, सविता सोनी, बसंती दीक्षित, पूर्णिमा वर्मा, चमेली वर्मा, लक्ष्मी वर्मा, जानकी वर्मा, कालिन्द्री, सुलक्षणा वर्मा, तुलसा वर्मा, आशालता सोनी, गीता विश्वकर्मा, श्यामा उइके, पन्ना शर्मा, केजा बाई ग्वालीन, सोनकुंवर वर्मा, उमा वर्मा आदि मन के द्वारा संचालित तीन कोरी अकन लोकगीत मनला संघारे हे.
    राधिका वर्मा जी ए किताब म लोकगीत मन के संकलन खातिर प्रेरित करइया डाॅ. निरूपमा शर्मा जी ल सुरता करत लिखे हें- छत्तीसगढ़ महिला साहित्य अउ विकास परिषद के अध्यक्ष रहत वोमन एकर मन के संकलन खातिर कहे रिहिन हें. उंकरे बताए रद्दा म ए लोकगीत मनला अपन तीर-तखार म रहइया दाई-दीदी, बहिनी, मामी, ममादाई मन जगा गिंजर-गिंजर के सकेले रेहेंव अउ सन् 2004 म एकर पांडुलिपि ल रायपुर के दादा बाड़ी जैन मंदिर म सत्यनारायण शर्मा जी जगा विमोचन करवाए रेहेंव, फेर आज 14 फरवरी 2023 के सामाजिक समरसता सम्मान समारोह जेन रायपुर के कृष्णा नगर के कर्माधाम म होइस, तिहां वो पांडुलिपि ल किताब रूप म छपवा के विमोचन करवाए  हौं.
    ए किताब के नाॅव भले 'सुआ, करमा अउ ददरिया' हे, फेर एमा एकर मन के संगे-संग सोहर गीत, शीतला माता सेवा, माता सेवा जसगीत, बारहमासी, जंवारा गीत, भोजली गीत, गौरा-गौरी गीत, जम्मो नेंग जोंग मन के बिहाव गीत, नचउड़ी गीत, लोरिक चंदा के गीत, बांस गीत, गंगोरिहा गीत, भरथरी गीत, पंथी गीत के संगे-संग कुछ हाना अउ राउत नाचा वाले दोहा मनला  संघारे गे हवय.
    कुल मिलाके ए किताब ह परंपरा अउ संस्कृति खातिर बुता करइया लोगन मन बर अनमोल खजाना बरोबर हे. मैं राधिका वर्मा जी ल ए जबर बुता खातिर बधाई देवत ए अरजी घलो करत हौं, के उन अइसने हमर दाई-काकी अउ बूढ़ी दाई मन जेन अलग अलग परब-तिहार, प्रसंग आदि म किस्सा कहानी बेरा-बखत के मुताबिक सुनावत राहंय, वोकरो मन के संकलन कहूँ हो सकय, त अउ जबड़ बुता हो जाही.
    ए ठउका उदिम खातिर राधिका जी ल एक पइत अउ बधाई.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Wednesday 15 February 2023

फुरफुन्दी.. किताब.. कन्हैया साहू अमित

किताब के गोठ//
लइकई ल आॅंखी-आॅंखी म झुलावत 'फुरफुन्दी'

    मयारुक रचनाकार कन्हैया साहू 'अमित' के हाले म आए बाल कविता संग्रह 'फुरफुन्दी' ल हाथ म धरते अपन लइकई ह आॅंखी-आॅंखी म झुले लागिस. जब हमन फुरफुन्दी के पाछू भागत-भागत बारी-बखरी के संगे-संग स्कूल तक चल देवत रेहेन, अउ लहुटत घलो उहिच उदिम म बूड़े राहन. कभू-कभू तो फुरफुन्दी के पूछी म सुतरी बॉंध के संगी मन संग रेस घलो लड़ा देवन, के काकर फुरफुन्दी जादा उड़ियाथे.

    फुरफुन्दी किताब के भीतर म अमाते अपन लइकई के संगे-संग अपन नाती-नतुरा मन संग खेलत, उनला लुढ़ारत अउ कुछ बने बुता करे के गोठ सिखोवत जम्मो दृश्य ह चित्रमय कविता संग दिखे लागिस.

    आज के छत्तीसगढ़ी लेखन म चारों खुंट गहराई अउ चिंतन-मनन देखे म आवत हे. अब गरब होथे इहाँ के रचना संसार ल देख के अउ मन म भरोसा जागथे, के अब एला कोनो भी लोकभाषा संग सरेखा कर के देखे जा सकथे. खासकर अभी लेखन म सक्रिय नवा पीढ़ी जेन किसम ले हर विषय अउ हर विधा म कलम चलावत हे, वो ह अंतस ल आनंदित करने वाला हे.

    कन्हैया साहू जी प्राथमिक शाला म शिक्षक होए के संगे-संग एक सिद्धहस्त छंदबद्ध कविता के रचनाकार घलो आय, एकरे सेती उंकर ए संकलन म उंकर ए दूनों रूप के चिन्हारी मिलथे. नान्हे लइका मनला कक्षा म पढ़ावत-सिखावत उन उंकर मन-अंतस म झॉंके अउ टमड़े के उदिम करथें, उही मनला अपन कविता के विषय घलो बना लेथें. ठउका अइसने छंदबद्ध कविता लेखन म पारंगत होय के सेती उंकर जम्मो रचना मन म लय-ताल सउंहे दिखे लगथे. जब ए मनला पढ़बे त मन मस्तिष्क म सुर-ताल अपने-अपन गूंजे लागथे. देखव उंकर घरघुॅंदिया  खेले बर बलावत कविता ल-

आवव अघनू, अगम, अघनिया.
खेलन फुतका मा घरघुॅंदिया..
घर अॅंगना अउ कोलाबारी.
सुग्घर सबके पटही तारी..

    लइकई म फिलफिली चलाय के अपने च आनंद  होथे. देखव ए डॉंड़ ल-

चलय फिलफिली फरफर-फरफर.
अपने सुर मा सरसर-सरसर..
रिंगी-चिंगी रंग मा रंगे.
चक्कर खाय हवा के संगे..
सनन-सनन ये बड़ इतरावय.
लइका मनला पोठ लुहावय..

    ए किताब के शीर्षक रचना फुरफुन्दी ल देखव-

लइकन ला भाथे फुरफुन्दी.
सादा, लाली, छिटही बुन्दी..
पकड़े बर लइका ललचाथे.
आगू-पाछू उरभट जाथे..
फूल-फूल मा झूमे रहिथें.
कान-कान म का इन कहिथें..

    रचना मन म ओ जम्मो विषय ल संघारे के कोशिश होय हे, जेन लइका मन बर आवश्यक होथे, एकर संगे-संग जनउला अउ हाना मनला घलो संघारे गे हवय. मच्छर जेला हमन छत्तीसगढ़ी म भुसड़ी कहिथन. एकर ले संबंधित ए जनउला देखव-

बिन बलाय मैं आथॅंव जाथॅंव.
फोकट म सुजी घलो लगाथॅंव..
साफ सफाई जे नइ राहय.
वोला तुरते रोग धराथॅंव..

    पान-सुपारी खवावत एक जनउला देखव-

पॉंच परेवा पॉंचों संग.
महल भितरी एक्के रंग..
एक जगा जम्मो सकलाय.
नइ कोनो पहिचाने पाय..

    जी. एच. पब्लिकेशन, प्रयागराज ले छपे ए बाल कविता संग्रह म कुल 47 कविता मनला संग्रहित करे गे हवय. कुल 64 पेज म सकलाय ए संग्रह के कीमत 150 रु. राखे गे हवय.

    ए संकलन खातिर मैं रचनाकार कन्हैया साहू 'अमित' जी ल गाड़ा-गाड़ा बधाई संग शुभकामना देवत हौं, उन आगू घलो अइसन पोठ उदिम करत राहॅंय, छत्तीसगढ़ी के ढाबा ल भरत राहॅंय.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811