Wednesday 28 April 2021

आमा तिहार..

मरका पंडूम (आमा तिहार)
     बस्तर में नदी नालों के किनारे आम के पेड़ लगाने वाले अपने पूर्वजों को याद कर मरका पंडूम मनाया गया। इस मरका पंडूम द्वारा पेड़ लगाकर सदा के लिए अमर होने की बात बस्तर में अक्षरशः सिद्ध हो रही है। गोंडी में आम को मरका कहा जाता है और पंडुम एक उत्सव या तिहार है।
     अपने पूर्वजों के सम्मान में मरका पंडूम जैसा उत्सव आपको और कहीं भी दिखाई नहीं देगा। मरका पंडूम में किसी एक आम पेड़ के नीचे सभी ग्रामीण एकत्रित होते हैं। उस पेड़ की पूजा करते हैं। फिर पहली बार उस पेड़ से आम तोड़े जाते हैं। वहीं पूजा स्थल पर महिलाएँ आम की फाकियां बनाकर इसमें गुड़ मिलाती हैं। फिर सभी को आम की फांकियां प्रसाद स्वरूप वितरित की जाती है।
    बस्तर मे ऐसी परंपरा है कि जब तक आम, महुआ या ईमली जैसे फलों के तोड़ने लिये ऐसे तिहार (त्यौहार) ना मना लिया जाये तब तक पेड़ों से इन फलों को तोड़ा नहीं जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि बिना पूजा किये फल तोड़ने से ग्राम देवता नाराज हो जायेंगे। महामारी फैल जायेगी। सारे पशु मर जायेंगे। इसलिए पहले पूर्वजों को फल अर्पित करने एवं ग्राम देवता की पूजा के बाद ही पेड़ो से फल तोड़ा जाता है।
    गांव के सभी लोग किसी नाले के पास एकत्रित होकर पूर्वजों की याद में वहां आम की फांकियां नाले में विसर्जित करते हैं। फिर वहां जामून की लकड़ी गाड़कर उसके नीचे धान से भरे दोने रखते हैं। उन दोनों पर दीपक जलाये जाते हैं। फिर अपने पितरों को याद करते हुए सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
    दूसरे दिन ग्राम के युवा मुख्य मार्गों पर नाका लगाकर मुसाफिरों से उपहार स्वरूप पैसे लेते हैं, यहां लेन देन की प्रतिबद्धता नही होती है जो मिल जाए उसी में खुशी के तर्ज पर संतोष कर लिया जाता है। आमा पंडुम की खुशियां, मिले पैसे से गोठ बनाकर बांटी जाती है।
    बस्तर के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग  समाजों द्वारा विभिन्न तिथियों को मरका पंडूम मनाते हैं। सामान्यतः मरका पंडूम के लिए अक्षय तृतीया (अक्ती परब) अंतिम दिन होता है। इस दिन जो ग्रामीण मरका पंडूम नहीं मना पाते हैं वे पूरे साल भर आम नहीं खा पाते हैं। मरका पंडूम को आमा जोगानी के नाम से भी जाना जाता है.
( साभार  वीर बघेल,  केशकाल )
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**मरका पण्डुम (आमा तिहार) **
    बस्तर के संस्कृति दुनिया भर म प्रसिद्ध हे । इहाँ के तिजतिहार के  अलग पहिचान हे जेमे मरका पण्डुम  आदिवासी समाज  के खास तिहार में जाने जाथे।
     आमा ह कतको लट-लट ले फरे रहय  या हवा गरेर में गिर जाय फेर तब तक नइ उठाय, नइ खाय जब तक  मरका पण्डुम नइ मना लेय । जब प्रकृति  ह फल फूल के रूप मे कोन्हो नवा चीज देथे त सब ले पहली  ये मन अपन पेन ( देवी-देवता ) पुरखा  ल हुम जग देके वोमे चढाथे । केहे के मतलब ये हे  कि  प्रकृति  ले पाय चीज ल पहली प्रकृति ल लहुटाथे  ये बहुत बड़े बात आय।
     आमा  तिहार म गाँव के हर घर से एक एक आदमी  शिकार करे बर  तीर धनुष, टंगिया, फरसा  धरके जंगल में जाथे । जंगल में बरहा, खरगोश, पडकी, परेवा जो मिल जाय  शिकार करके लाथे । साथ में लकडी के खोल म चमडा के चादर ल ढ़ाक के  पेड के छाल के  रस्सी से बांध के  ढोल बनाय जाथे । शिकार मिले मे इंकर खुशी दिखत बनथे काबर कि शिकार ह ये तय करथे कि अवइय्या  समय म गाँव म धान पान कइसे रही।
    शिकार ल पूरा गाँव म घुमाथे सबो गाँव के मनखे मन येमे शामिल  होके नाचथे गाथे अउ सबो मन वो शिकार ल मिल बांट के खाथें ।
     जे गाँव म आमा तिहार होथे वो गाँव के सियार ल दूसर गाँव के मनखे मन पार करके नइ जा सकय ।येकर बर नाका बनाय जाथे यदि कोन्हो आदमी ल जानच परगे तब नेंग नियम के तौर म कुछ दण्ड के रूप म पइसा कौडी़ देय के जाय ल परथे  येकर ले गाँव के देवी के अपमान नइ होय.
     आमा तिहार म एक गाँव के आदमी
दूसर दिन गाँव के कुल देवी म अपन- अपन घर ले सियाड़ी पेड़ के पत्ता के दोना म धान अउ  साथ म कुकरी, मंद, चउर दार धर के जाथे । कुल देवी म धान आमा के फर अउ कुकरी, मंद चढाके हुम जग देथे अउ सब झन भात साग रांध के आमा तिहार मनाथें। नान-नान पुड़िया म हुम जग देय धान ल घर में लाथे । बाद में खेत म अउ धान मिलाके  छिच देथें.
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सुरता// नरेंद्र देव वर्मा

सुरता//
छत्तीसगढ़ म सोनहा बिहान के सपना देखइया डा. नरेन्द्रदेव वर्मा...
अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार, इंद्रावती ह पखारय तोर पइंया.
महूं पांव परंव तोर भुइंया,
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइया..
  छत्तीसगढ़ राज के ये राजगीत ह आज जन-जन के कंठ म बिराजे वतके मान-सम्मान अउ मया पाथे, जतका ए देश के राष्ट्रगान ह देश म पाथे. आज राजगीत ल हमन जेन धुन अउ ताल म सुनथन ए ह दू-तीन पइत के मंजाय म आज के रूप म हमर आगू म आय हे.
   ए गीत के सिरजनकार डा. नरेंद्रदेव वर्मा जी जब एला लिखिन, त खुदे गावंय घलो. उंकर संग म संगत करे साहित्यकार मन बताथें, डाक्टर साहब अब्बड़ सुग्घर एला गावंय. बाद म जब "सोनहा बिहान" सांस्कृतिक संस्था संग जुड़िन त उहाँ वो बखत केदार यादव गायक कलाकार रहिन. उनला उन गा के बताइन के मैं एला अइसे गाथंव कहिके. एक कवि के कंठ ले एक सीखे-पढ़े गायक के कंठ म जाथे, त कोनो भी गीत ह वोकर गायकी शैली म सुनाए लगथे. केदार यादव एला अपन शैली म सोनहा बिहान के मंच गाये लागिस. बाद म फेर ए गीत ह शास्त्रीय संगीत के जानकार गोपाल दास वैष्णव जी के कंठ म गइस त एमा अउ परिमार्जन होइस. ए रूप ह सोनहा बिहान के सर्जक दाऊ महासिंग चंद्राकर जी ल गजब पसंद आइस, त फेर वोमन एला केदार यादव के बदला ममता चंद्राकर जगा सोनहा बिहान के मंच म गवाए लागिन, फेर बाद म ममता के ही आवाज म रिकार्डिंग घलो होइस, जेन ह आज हम सब के कंठ म बिराजे हे.
    ए राजगीत के रचना ह इहाँ के सांस्कृतिक जागरण के प्रथम मंच कहे जाने वाला "चंदैनी गोंदा" के प्रथम मंचन के बाद म होइस. एकर संबंध म चंदैनी गोंदा के प्रथम उद्घोषक रहे प्रो. सुरेश देशमुख जी बताथें, अरे पहिली ए महत्वपूर्ण गीत ल लिखे गे रहितीस त दाऊ रामचंद्र देशमुख जी थोरहे एला छोड़तीस. फेर ए ह तो महासिंग दाऊ के भाग म रिहिसे, तेकर सेती बाद म लिखाइस.
   डा. नरेंद्रदेव वर्मा जी के गायकी के संबंध म दाऊ महासिंग चंद्राकर जी घलो बतावंय. जब मैं छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका "मयारु माटी" के प्रकाशन संपादन करत रेहेंव त बघेरा दुरुग जवई घलो होवय. बघेरा म दाऊ रामचंद्र देशमुख जी संग मिल-भेंट के आवंव त लहुटती म दुरुग म दाऊ महासिंग चंद्राकर जी जगा घलो एकाद घंटा बइठे करंव. जब भी उंकर संग बइठंव त डा. नरेंद्रदेव वर्मा जी के चर्चा जरूर होवय. वोमन बतावंव वर्मा जी खुदे हारमोनियम बजाके ए गीत ल गावंय. वोमन वर्मा जी ल "नरेंद्र गुरुजी" काहंय. जब उंकर चर्चा करंय तहांले उंकर दूनों आंखी ले गंगा- जमुना बोहाए लागय. उन कहंय-" नरेंद्र तो मोर गुरु, सलाहकार मोर बोली भाखा अउ सब कुछ रिहिसे. वो जब ले गेहे तब ले मैं कोंदा- लेड़गा होगे हंव. न बने ढंग के कुछू बोल सकंव न बता सकंव.
    डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा जी के जनम माता भाग्यवती देवी अउ पिता धनीराम वर्मा जी के इहाँ 4 नवंबर 1939 म होए रिहिसे. वो बखत धनीराम जी उच्च शिक्षा के प्रशिक्षण खातिर वर्धा म रिहिन हें. डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा के चिन्हारी एक कवि, नाटककार, उपन्यासकार, समीक्षक अउ भाषाविद के रूप म तो हावय च, उन मंच के जबर उद्घोषक घलोक रिहिन हें. वोमन सागर विश्वविद्यालय ले सन् 1962 म एम.ए. के परीक्षा पास करे रिहिन हें, अउ उहेंच ले 1966 म "प्रयोगवादी काव्य और साहित्य चिंतन" विषय म पीएचडी के उपाधि पाए रिहिन हें. सन् 1973 म उन भाषा विज्ञान म फेर एम.ए. करीन, अउ फेर 1973 म ही "छत्तीसगढ़ी भाषा का उदविकास " शोधप्रबंध म फेर पीएचडी पाइन.
   पांच भाई अउ एक बहिनी ले भरे-पूरे परिवार म नरेन्द्रदेव जी तीसरा नंबर के भाई रिहिन. उंकर सबले बड़े भाई तुलेन्द्र ल हम सब स्वामी आत्मानंद जी के नांव ले जानथन, उंकर दूसरा नंबर के भाई देवेन्द्र जी ल हम स्वामी निखिलात्मानंद जी के नांव ले जानथन, जेन नारायणपुर आश्रम के सचिव के रूप म घनघोर आदिवासी इलाका म ज्ञान अउ सेवा के जोत जलाइन. चौथा नंबर के भाई जेला राजेन्द्र/राजा भैया के नांव ले जानथन उहू म सन्यास के जीवन ल आत्मसात कर ले रिहिन, सबले छोटे भाई डा. ओमप्रकाश वर्मा जी इहाँ के रविशंकर विश्वविद्यालय म मनोविज्ञान के प्रोफेसर के संगे-संग विवेकानंद विद्यापीठ के सचिव घलो हें. इन पांचों भाई के दुलौरिन बहिनी लक्ष्मी दीदी जी हें.
    इन पांचों भाई म के चार भाई मन संग तो मोर भेंट अउ गोठबात होए हे, फेर जेन हमर भाखा- साहित्य के रद्दा ल चुने रिहिन वो डा. नरेन्द्रदेव जी के मोला कभू दर्शन नइ हो पाइस. जब मैं साहित्य जगत म आएंव, तब तक उन ए दुनिया ले प्रस्थान कर डारे रिहिन हें. मैं उनला सिरिफ उंकर साहित्य के माध्यम ले ही मिल पाएंव. जब मैं कालेज म गेंव त उहां हिन्दी विषय के अंतर्गत उंकर उपन्यास "सुबह की तलाश" पढ़ेंव. इही उंकर साहित्य संग मोर पहिली भेंट रिहिसे. बाद म उंकर मंझला सुपुत्र अन्नदेव वर्मा संग चिन्हारी होए के बाद अउ साहित्य मन संग भेंट होइस. उंकर एक नाटक "मोला गुरु बनइले" आकाशवाणी म बड़ लोकप्रिय होए रिहिसे, वोला कई पइत सुने ले मिलिस.
   डॉ. नरेंद्र देव वर्मा जी के मन म छत्तीसगढ़ के पीरा अउ शोषण के गुबार तो भरे रिहिसे जेन ह उंकर उपन्यास 'सुबह की तलाश' म घलो दिखय. वोमन जब 'सोनहा बिहान' के संचालन करंय तभो उंकर बोली ले ये सब बात ह दमदारी के साथ सुनावय. भले उंकर भौतिक जीवन ह कमेच बछर के रिहिसे, फेर वो ह छत्तीसगढ़ खातिर एक "जागरण पुरुष" के जीवन रिहिसे. उंकर अग्रज स्वामी आत्मानंद जी अपन संस्मरण म उंकर बारे म लिखे हें- "नरेन्द्र देव वर्मा रचित 'सोनहा बिहान' की मैंने बहुत प्रशंसा सुनी थी. एक दिन मैंने नरेंद्र से कहा, अरे जरा एक बार अपना वह 'सोनहा बिहान' सुनवाओ. 1978 के अंत में एक दिन उसने सूचना दी कि महासमुंद में 'सोनहा बिहान' का प्रदर्शन है और मैं चाहूँ तो वहाँ जाकर देख सकता हूँ. हम कुछ लोग रायपुर से गए. महासमुंद पहुंचने में कुछ देर हो गई. सर्वसाधारण के साथ ही उसने मेरी भी बैठने की व्यवस्था की. किसी ने उससे कहा कि अरे स्वामी जी को यहाँ बिठा रहे हो? सबके साथ? वहाँ अलग से एक कुर्सी क्यों नहीं दे देते? नरेंद्र का उत्तर तो मैं नहीं सुन पाया, पर मुझे सबके साथ ही जमीन पर बैठना पड़ा. बाद में पता चला कि नरेंद्र नहीं चाहता था कि मेरे कारण दूसरों को किसी प्रकार की असुविधा हो अथवा कार्यक्रम में किसी प्रकार से कोई विघ्न उत्पन्न हो. उसकी भावना ने मुझे भावविभोर कर दिया और मेरी आत्मा पुकार उठी- 'नरेंद्र, सचमुच तुम मेरे अनुज हो."
    मैंने 'सोनहा बिहान' देखा और सुना. नरेंद्र कार्यक्रम का संचालन कर रहा था. सब कुछ अपूर्व था. उसकी तेजस्विता और स्वाभिमान के उस दिन मुझे दर्शन हुए. वह दबंग था, अन्याय के समक्ष वह झुकना नहीं जानता था, पर वह अविनयी नहीं था. अपनी जनमभूमि छत्तीसगढ़ के प्रति उसका आहत अभिमान उसके संचालन में मानो फूट-फूट पड़ रहा था, पर मुझे लगा कि जनसभा में एक शासकीय कर्मचारी को इतना स्पष्ट होकर अपने विचार को अभिव्यक्ति देना ठीक नहीं है. 'सोनहा बिहान' में छत्तीसगढ़ के शोषण का वर्णन है. शोषण के विरुद्ध माटी की तड़प नरेंद्र के स्वर में अभिव्यंजित हुई थी."
   छत्तीसगढ़ महतारी के ये सच्चा सपूत बहुते कम दिन ए माटी के जागरण अउ सेवा म रह पाइन अउ 8 सितम्बर 1979 के परमधाम के रद्दा धर लेइन. उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी करत उंकरेच ए अठवारी बजार के ये चार डांड़-
दुनिया हर रेती के महाल रे, ओदर जाही
दुनिया अठवारी बजार रे, उसल जाही..

आनी बानी के हावय खेलवना, खेलव जम्मो खेल
रकम रकम के बिंदिया फुंदरा, नून बिसा लव तेल
दुनिया हर धुंगिया के पहार रे, उझर जाही
दुनिया अठवारी बजार रे, उसल जाही..
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 22 April 2021

सुरता// काव्योपाध्या मानक रेखाचित्र

सुरता//
काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू अउ मानक रेखाचित्र
   बात सन् 2010 के आय तब मैं सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ के साप्ताहिक पत्रिका 'इतवारी अखबार' के संपादन कारज ल देखत रेहेंव. एमा हर हफ्ता छत्तीसगढ़ी म एक कालम "गुड़ी के गोठ" घलो लिखत रेहेंव. एकर खातिर हर हफ्ता नवा-नवा विषय खोजे बर लागय. इही उदिम म मोला छत्तीसगढ़ी व्याकरण के प्रथम लेखक हीरालाल चंद्रनाहू "काव्योपाध्याय" जी ले संबंधित लेख पढ़े बर मिलिस. वइसे तो उंकर संबंध म पहिली घलो कतकों बेर पढ़ डारे रेहेंव. फेर वो दिन लेख ल पढ़त खानी  मन म बिचार आइस, के ए बछर ह तो छत्तीसगढ़ी व्याकरण लिखे के 125 वां बछर आय. वोमन एकर लेखन कारज ल तो 1885 म ही पूरा कर डारे रिहिन हें, भले वोकर प्रकाशित रूप ह सन् 1990 म सर जार्ज ग्रियर्सन के द्वारा छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी म शमिलहा रूप म आइस. फेर लेखन के बछर तो 1885 ही माने जाही. माने ए सन् 2010 बछर ह एकर लेखन के 125 वां बछर आय.
   मोला अच्छा विषय मिल गे रिहिसे. तब लिखेंव-  "छत्तीसगढ़ी व्याकरण के 125 बछर" ए लेख ल लोगन गजब संहराइन. लेख छपे के कुछ दिन बाद संस्कृति विभाग गेंव. उहाँ उप-संचालक राहुल सिंह जी संग बइठे गोठबात चलत रिहिसे, तभे ए लेख ऊपर घलो चर्चा होइस. त उन कहिन- "सुशील भाई एकर ऊपर कुछु कार्यक्रम करव न, हमन संस्कृति विभाग डहार ले सहयोग करबोन. हड़बड़ी नइए. साल भर के भीतर कभू भी करे जा सकथे."
  मोला जानकारी रिहिसे के अइसन किसम के शासकीय सहयोग ह पंजीकृत संस्था के माध्यम ले ही मिल पाथे. फेर मैं तो कभू समिति के झंझट म परत नइ रेहेंव. उहि बीच एक दिन  प्रेस म बइठे रेहेंव, त साहित्यकार डा. रामकुमार बेहार जी मोर संग भेंट करे बर आइन. गोठे-गोठ म संस्कृति विभाग के नियम के बात निकलगे, त उन कहिन- सुशील भाई मोर समिति हे न पंजीकृत "छत्तीसगढ़ शोध संस्थान" चल वोकरे बेनर म ए महत्वपूर्ण आयोजन ल कर लेथन.
   छत्तीसगढ़ी व्याकरण के 125 वां बछर होए के सेती मैं चाहत रेहेंव के कार्यक्रम ह गरिमापूर्ण होना चाही. संग म जेकर मन के छत्तीसगढ़ी व्याकरण अउ भाखा खातिर योगदान हे, उंकर मन के सम्मान घलो होना चाही. रायपुर के मोती बाग वाले प्रेस क्लब के ऊपर वाले बड़े हाल म ए जोखा ल पूरा करेन.
   कार्यक्रम तो बहुत गरिमापूर्ण होइस, जइसे सोचे रेहेन तइसे. फेर एक चीज मोर मन म घेरी-भेरी खटकय. वो ए के हमन ल काव्योपाध्याय जी के फोटो नइ मिल पाइस. अबड़ खोजे के उदिम करेन. साहित्यकार, पत्रकार, इतिहासकार, समाजसेवी चारोंमुड़ा ले आरो लेवन फेर बात नइ बनिस.
  इही बीच इतिहासकार डा. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी संग घलो चर्चा होइस, त उन सुझाव दिन-  "तुमन चाहौ त एकर एक  मानक रेखाचित्र बनवा सकत हव. फेर एकर बर मेहनत थोकन बनेच करे बर लागही". तब मैं गुनेंव के ए तो एक झन के बुता नोहय. एकर बर एक पूरा टीम होना चाही, जेन ह चारों मुड़ा जा-जा के संबंधित लोगन मन ले आरो लेवय, पूछय सरेखय.
    रायपुर के टिकरापारा म साहू समाज के एक ठन  छात्रावास हे, उहाँ एक दुकान हे. बसंत फोटो स्टूडियो तिहां हमर ए क्षेत्र के जम्मो साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार अउ एकर प्रेमी मन इहाँ बइठन. एक प्रकार ले ए ह हमर मन के ठीहा रिहिसे. मेल-भेंट करे के जगा.  इहें एक दिन चंद्रशेखर चकोर, जयंत साहू, गुलाल वर्मा, शिवराम चंद्राकर, गोविन्द धनगर, शीतल शर्मा आदि आदि हम सब  बइठे राहन. त हीरालाल जी के मानक रेखाचित्र के चर्चा चलिस. सबो झन मिलके सुनता करेन, चलव एक ठन समिति बनाथन अउ एकरे बेनर म सबो उदिम ल करबोन.
    तहांले हमन "नव उजियारा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति"  के नांव म एक ठन समिति के पंजीयन करवा डारेन. अउ निर्णय लेन के काव्योपाध्याय जी के मानक रेखाचित्र तो बनाबेच करबोन संग म हर बछर उंकर सुरता  म एक बड़का आयोजन घलोक करे करबोन.
    अब सबले पहिली मानक रेखाचित्र खातिर भीड़ेन. इतिहासकार डा. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी के ए कारज म अच्छा सहयोग मिलिस. उंकर कहे म काव्योपाध्याय जी के परिवार वाले मन के रूप-रंग अउ कद-काठी ल देख के उंकरे सहीं आकार दिए के बात तय होइस. संग म इहू बात आइस के उंकर एक हाथ म छत्तीसगढ़ी व्याकरण के किताब दिखत राहय, अउ एक हाथ म काव्योपाध्याय के जेन उपाधि मिले रिहिसे तेकर चिनहा प्रदर्शित होवय. पहिरावा-ओढ़ावा घलो वोकरे मुताबिक राहय.
   ए बुता खातिर हमर समिति के समर्पित सदस्य अउ साहित्यकार गोविन्द धनगर के सुपुत्र भोजराज धनगर ल जोंगेन. भोजराज इहाँ के प्रसिद्ध चित्रकार आय. खैरागढ़ विश्वविद्यालय ले सीखे-पढ़े हे. इहाँ के कतकों पत्र-पत्रिका अउ आने-आने व्यावसायिक बुता खातिर चित्र बनाते रहिथे. हमर मन के कहे अनुसार वो मानक रेखाचित्र बनावय, तहां ले फेर वोमा कुछु संशोधन होवय. अइसे-तइसे करत चार-छै महीना बुलकगे. भोजराज ल जे बार जइसे काहन ते बार वइसने करय. आखिर म वर्तमान म प्रचलित चित्र ह सबो झन ला पसंद आइस, त फेर इही ल मानक रेखाचित्र के रूप म प्रचार करे के निर्णय लेन.
    समिति म इहू बात आइस, के मानक रेखाचित्र के इहाँ के संस्कृति मंत्री के हाथ ले विधिवत विमोचन करवाना चाही, तेमा एला शासकीय स्वीकृति घलो मिल जाय. वो बखत इहाँ के संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जी रहिन. उंकर ले विमोचन खातिर दिन- बेरा के जोंग तय करेन. निश्चित बेरा 5अगस्त 2011 के सबो झन निर्धारित जगा संस्कृति मंत्री के निवास कार्यालय पहुंच गेन (विमोचन के संलग्न चित्र म डेरी डहर ले बृजमोहन अग्रवाल, डा. रमेन्द्रनाथ मिश्रा, दिलिप सिंह होरा, शकुंतला तरार, गोविन्द धनगर,  शिवराम चंद्राकर, सुशील भोले, चंद्रशेखर चकोर, अउ जयंत साहू आदि) तहाँ ले विमोचन के कारज ह पूरा होइस.
   ए ह खुशी के बात आय के हमन काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के जेन मानक रेखाचित्र बनाए के कारज करेन, उही ल आज  सामाजिक, साहित्यिक, शासकीय अशासकीय सबो जगा वोकरे उपयोग करे जावत हे.
  अइसने किसम के उंकर स्मरण दिवस के निर्धारण घलोक होइस. काव्योपाध्याय जी के जनम अउ पुण्यतिथि के जानकारी अबड़ उदिम करे म घलो नइ मिलिस. एक सलाह अइसनो आइस के वोमन धमतरी पालिका के अध्यक्ष रेहे हावंय, त उहों पता करे जाय, शायद कुछ रिकार्ड होही. फेर अबिरथा. आखिर तय होइस के वोमन ल काव्योपाध्याय के जेन उपाधि मिले हे 11 सितम्बर 1984 के वो  तिथि ह तो प्रमाणित हे. त सबले अच्छा हे, के इही ल उंकर स्मरण तिथि या सुरता के रूप म मनाए जाय. हमन डा. सत्यभामा आड़िल, सुधा वर्मा के संगे-संग अउ कतकों साहित्यकार अउ इतिहासकार मन ले ए विषय म चर्चा करेन. सब के इही कहना रिहिसे के कोई भी काल्पनिक तिथि जोंगे के बदला प्रमाणित तिथि ल ही उंकर सुरता के रूप म निश्चित करे जाय.
  काव्योपाध्याय जी के नांव के संबंध म घलो चर्चा होवय. काबर ते अभी उंकर नांव "हीरालाल काव्योपाध्याय" के रूप म प्रचलित हे. ए ह तकनीकी रूप म सही नइए. काबर के काव्योपाध्याय ह उंकर उपाधि आय, सरनेम नहीं. नाम के पाछू म सरनेम ल लिखे जाथे, या उपनाम ल. उपाधि ल नहीं. उपाधि ल तो नाम के आगू म लिखे जाथे. जइसे- कोनो ल भारतरत्न मिले रहिथे, त भारतरत्न फलाना, पद्मभूषण फलाना या पद्मश्री फलाना आदि लिखे के परंपरा हे. त फेर वइसने हीरालाल जी के नाम ल घलो लिखे जाना चाही - "काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू".
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Sunday 18 April 2021

नवरात्रि में कन्या पूजन..

नवरात्रि  में कन्या पूजन का  महत्व...

   नवरात्र पूजन से जुड़ी कई परंपराएं हैं। इनमें से एक है कन्या पूजन। देवी का साक्षात स्वरुप हैं कन्याएं.

  शास्त्र कहते है कि नवरात्रि में छोटी कन्या एक तरह की अदृश्य  ऊर्जा की प्रतीक होती हैं और उसकी पूजा करने से यह ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। इनका पूजन करने वाले को समस्त ब्रह्माण्ड की देवशक्तियों का  आशीर्वाद मिलने लगता हैं।

नवरात्रों में  कन्या की संख्या के हिसाब से  शुभ फल...

  धर्म ग्रंथों में 3 वर्ष से लेकर 9 वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं।

1. कन्या की पूजा से ऐश्वर्य,
2. की पूजा से भोग और मोक्ष,
3. की पूजा करने से अर्चना से धर्म, अर्थ एवं काम,
4. की पूजा से राज्यपद,
5. कन्याओं की पूजा करने से विद्या,
6. कन्याओं की पूजा से 6 प्रकार की सिद्धि,
7. कन्याओं की पूजा से राज्य,
8. कन्याओं की पूजा से संपदा और
9. कन्याओं की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।

*नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है।*

हमारी संस्कृति में बड़ा ही अर्थ-गंभीर और महिमामय शब्द कुंवारी कन्याओं के नाम के आगे “कुमारी” और विवाहित महिलाओं के नाम में “देवी” शब्द जोड़कर स्पष्ट किया है कि प्रत्येक नारी देदीप्यमान ज्योतिर्मय सत्ता है। इस कारण अष्टमी और नवमी को घर-घर में देवी की पूजा सिर्फ कन्या के रूप में होती है। वह देवी ही हमें मां के रूप में जन्म देती है। पत्नी के रूप में सुख और पुत्री बनकर आनंद का प्रसाद बांटती है।

    नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है. नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां आदि शक्ति प्रसन्न हो जाती हैं.  विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के हृदय से भय दूर हो जाता है। साथ ही मां की कृपा से मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।

*देवी का साक्षात स्वरुप हैं कन्याएं*

*कन्या के किस रूप से किस फल की प्राप्ति*

*नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है*

*दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं*

*तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है |त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्यक आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है*

*चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है. इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है*

*पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है. रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है*

*छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है*

*सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है*

*आठ वर्ष की कन्या शाम्भूवी कहलाती है. इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है. - नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है. इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं*

*दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है |
मान्यता है कि यदि वास्तुदोष से ग्रसित भवन में पांच कन्याओं को नियमित  भोजन कराया जाए तो उस भवन के सारे दोष मिट जाते हैं*

*कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है .      कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है. यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही हैं तो कोई आपत्ति नहीं है*

*जीवन भर करें इनका सन्मान*

   नवरात्रों में भारत में कन्याओं को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है. पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते हैं. कई जगह कन्याओं का शोषण होता है और उनका अपनाम किया जाता है. आज भी भारत में बहुत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है |

   कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. देवी तुल्य कन्याओं का सम्मान करें. इनका आदर करना ईश्ववर की पूजा करने जितना ही पुण्य प्राप्त होता है.  शास्त्रों  में भी लिखा है कि जिस घर में स्त्रीयों का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं |
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