Friday 31 January 2014

नाट्य मंचों की कलाकार ममता अहार

छत्तीसगढ़ नाट्यमंच की जन्मभू्मि है। दुनिया की प्रथम नाट्यशाला यहां के जिला सरगुजा स्थित रामगढ़ पर्वत पर है, जिसे इतिहास प्रसिद्ध भरतमुनि ने पहाड़ की एक गुफा को तराश कर विकसित किया था। स्थानीय लोग इसे सीताबेंगरा के नाम से भी जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम अपने वनवास काल में यहां आये थे, तथा सीता इसी गुफा में रुकी हुई थीं, इसीलिए इस गुफा को सीताबेंगरा कहा जाता है। महाकवि कालिदास से भी इस स्थान का संबंध बताया जाता है। उनकी प्रसिद्ध कृति मेघदूत की सर्जना इसी स्थान पर होना बताया जाता है।

छत्तीसगढ़ में भरतमुनि के साथ प्रारंभ हुए इस नाट्यप्रयोग में यहां के कई प्रसिद्ध व्यक्तित्वों ने इस विधा को आगे बढ़ाया है, इसी के चलते यहां की लोकपरंपरा में अनेक प्रकार के नाट्य रूप देखे जाते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जन्मी और पली-बढ़ी ममता अहार भी इसी नाट्यश्रृंखला की एक कड़ी है, जो अपने नाट्य लेखन, निर्देशन और अभिनय के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सीमा को लांघकर पूरे देश और विदेशों में भी अपनी सफलता का परचम लहरा रही हैं।

अंतर्राष्ट्रीय कलाकार के रूप में पहचान बना चुकी ममता अहार ने श्रीया आर्ट के सचिव के पद पर रहते हुए अपने निर्देशन में सन् 2009 में अखिल भारतीय सांस्कृतिक संघ पुणे एवं युनेस्को के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय बहुभाषीय नाट्य स्पर्धा में *कलियुग लीला* छत्तीसगढ़ी नाटक में बेस्ट प्रोडक्शन का पुरस्कार जीता था।


संपन्न कृषक परिवार में जन्मी ममता पेशा से शिक्षिका हैं। उनका पैतृक ग्राम-टोर और मेरा पैतृक ग्राम-नगरगांव (धरसींवा, जिला-रायपुर) आपस में जुड़ा हुआ है। हम दोनों के गांव को मुंबई-कोलकाता रेलमार्ग बीच से विभाजीत करता है, यही रेलमार्ग हम दोनों के गांव की सीमारेखा है। ममता श्रेया आर्ट के बैनर पर छोटे-छोटे बच्चों और बड़ों को लेकर तो मंचन करती ही हैं, इनका मीरा, द्रौपदी और यशोधरा जैसे ऐतिहासिक पात्रों पर आधारित एकाभिनय भी देखने योग्य होता है।

रायपुर में इनका जब भी कोई मंचन होता है, तो मुझे जरूर याद करती है। फोन करके कहती है- भैया आपको आना ही है। 31 जनवरी 2010 को एकपात्रीय मीरा का प्रथम मंचन किया गया था, तब से लेकर अब तक इसका करीब 54 बार मंचन हो चुका है। इसी तरह द्रौपदी का 8 बार और यशोधरा का 4 बार।

नाट्य विधा को पूर्णत: समर्पित ममता अपनी हर एकपात्रीय प्रस्तुति के प्रथम मंचन के पूर्व उसका अंतिम रिहर्सल अपने घर पर ही आयोजित करती है, और हमारे जैसे कुछ कला और साहित्य से जुड़े लोगों को आमंत्रित कर उससे संबंधित टिप्पणी भी लेती है। यही ममता की सफलता का प्रमुख कारण भी कि उसे मंच के पर जाने के पश्चात केवल तारीफ ही तारीफ मिलती है। अन्य कलाकारों को भी इसका अनुसरण करना चाहिए।

भरतमुनि के साथ प्रारंभ हुआ छत्तीसगढ़ का नाट्य-संसार ममता अहार जैसे समर्पित कलाकारों के सद्प्रयास से निरंतर समृद्ध होता जा रहा है। हमारी शुभकामना है कि वे निरंतर सफलता की सीढिय़ां पार करती रहें, और अपने साथ ही साथ छत्तीसगढ़ और पूरे देश का नाम रौशन करती रहें।

सुशील भोले
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Thursday 30 January 2014

मेरा बचपन....


मेरे बचपन की यह एकमात्र तस्वीर उपलब्ध है। यह तब की है, जब मैं करीब तीन वर्ष का था। तस्वीर में बायें से- हमारी माताजी श्रीमती उर्मिला देवी, मैं सुशील, मेरे बड़े भाई सुरेश और छोटी बहन प्रभा पिताजी श्री रामचंद्र जी की गोद में....

Tuesday 28 January 2014

हमारी बेटियाँ...


ये हम चार भाइयों की सात बेटियाँ हैं। बायें से- ममता, सोनम, प्रतिभा, वंदना, नेहा, पायल और रीता...
बेटी बचाओ के नारे लगाने वालों को इन पर कुछ कहना है.... 

Monday 27 January 2014

चिल्लर पार्टी...


ये हमारे परिवार के बच्चे हैं। सुबह इनके उठने से लेकर सो जाने तक घर में शांति का अभाव रहता है। इन्हें एकसाथ खड़ा कर फोटो खिंचना उतना ही चुनौती भरा होता है, जितना उछल-कूद करने वाले मेढकों को इकट्ठा कर तराजू में तौलना। इनके नाम भी जान लें- बांये से- गरिमा, वाटिका, अनिकेत उर्फ किट्टू, विनय उर्फ बिट्टू और इन सबके पीछे राहुल।

Friday 24 January 2014

शुभकामनाएं....

गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर सभी मित्रों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं....

गणतंत्र दिवस पर कविता पाठ

रायपुर के सिविल लाईन स्थित वृन्दावन हाल में 24 जनवरी की संध्या छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य मंडल द्वारा गणतंत्र दिवस पर आधारित कार्यक्रम में मेरा कविता पाठ...

Thursday 23 January 2014

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की स्मारिका...

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की वार्षिक स्मारिका शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है। आप छत्तीसगढ़ तथा छत्तीसगढ़ी एवं आयोग के उद्देश्यों के अनुरूप अपना आलेख नीचे लिखे पते पर भेज सकते हैं।
नोट - केवल छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखित रचनाएं ही स्वीकृत की जाएंगी।

पता-1. सुशील भोले
सदस्य, संपादक मंडल
41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर
(टिकरापारा), रायपुर (छत्तीसगढ़)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

2. सचिव, 
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग
शहीद स्मारक भवन,
रायपुर (छत्तीसगढ़)

Wednesday 22 January 2014

छत्तीसगढ़ी जलसा 22 एवं 23 फरवरी को...

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का प्रदेश स्तरीय वार्षिक सम्मेलन आगामी 22 एवं 23 फरवरी को छत्तीसगढ़ होटल, रायपुर में आयोजित किया गया है। इस सम्मेलन में छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य, संस्कृति, कला एवं इतिहास आदि पर आधारित विभिन्न चर्चा गोष्ठी होगी, जिसमें संबंधित विषयों के विशेषज्ञ अपना विचार रखेंगे। रात्रि में कवि सम्मेलन एवं अन्य कार्यक्रम होंगे।
इस सम्मेलन में छत्तीसगढ़ प्रदेश सहित देश और विदेशों से भी छत्तीसगढ़ी भाषा एवं अस्मिता प्रेमी उपस्थित रहेंगे। सभी प्रतिभागियों के लिए भोजन एवं आवास की व्यवस्था आयोग द्वारा की जायेगी।
मेरे फेसबुक के सभी मित्र भी इस आयोजन में सादर आमंत्रित हैं। कृपया दिन एवं तारीख अपनी डायरी में नोट कर लें।

सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

Monday 20 January 2014

अब छेरी चराथन गांव म...


















ममता माया जया अउ सुषमा, सब रहिथन एकेच ठांव म
सोनिया घलो संघरगे हावय, अब छेरी चराथन गांव म...

दाई-ददा मन स्कूल के बदला, भेजीन हमला खार म
बरदिहा के पाछू किंजरत, कभू जावन नदी-कछार म
हर्रो-हर्रो चिचियावत गोई, कांटा गड़ जावय पांव म.....

हमूं कहूं थोरको पढ़तेन त, राजनीति म अव्वल रहितेन
हमरे सहीं नांव वाली कस, अलग-अलग झंडा धरतेन
तब छेरी-भेंड़ी कस मनखे के रेला, गिरतीन हमरो पांव म....

सुशील भोले 
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मो.नं. 080853-05931, 098269-92811
ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com

Friday 17 January 2014

शिव कुमार पाण्डेय

हिन्दी और छत्तीसगढ़ी के सुमधुर कवि शिव कुमार जी पाण्डेय ने रायगढ़ प्रवास के दौरान मुझे अपना काव्य संकलन*युगाक्षर*सस्नेह प्रदान किया। ज्ञात रहे 80 वर्षीय शिव कुमार जी प्राख्यात इतिहासकार एवं पुरातत्वविद् पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय के प्रपौत्र हैं।

मधु और उसका करतब...

यह मधु है.. रेल के डिब्बों में अपना करतब दिखाकर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रही है। हम जिस गाड़ी से रायपुर से रायगढ़ जा रहे थे, वहां अचानक प्रगट हुई और गले में लटकाये लोहे के गोले के साथ करतब दिखाने लगी। कुछ देर बाद मां के दिये गये कटोरे में पैसा मांगने लगी। बेहद चुलबुली मधु से मैंने चुहलबाजी करने का प्रयास किया तो वह चुहलबाजी में मुझसे आगे निकल गयी....सरकार को एेसे बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए भी कुछ करना चाहिए....

Wednesday 15 January 2014

डॉ. बलदेव

डॉ. बलदेव हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ कवि, कहानीकार, कला समीक्षक, शास्त्रीय नृत्य संगीत और ललित कलाओं पर बेबाक, पिछले 50 वर्षों से लेखन एवं पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय, रायगढ़ नरेश राजा चक्रधर सिंह और पं. सुन्दर लाल शर्मा पर मैथिली शरण गुप्त, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर द्वारा प्रकाशित छायावाद का पुर्नमूल्यांकन एवं शंकरदयाल सिंह द्वारा संपादित *नालकंठ* के लेखक मंडल के सदस्य हैं।
उनका जन्म 27 मई 1942 को ग्राम-नरियरा, जिला-चांपा-जांजगीर (छत्तीसगढ़) में हुआ था, लेकिन शिक्षकीय कार्य में होने के कारण वे पिछले अनेक वर्षों से उत्तरी चक्रधर नगर, रायगढ़ में निवासरत हैं। अभी तक उनकी करीब 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। देश के तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं।
पिछले 12 जनवरी 2014 को हमें उनके निवास पर जाने और उनके साथ   अन्य अनेक कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके पूर्व भी मैं सन 1990 में रायगढ़ प्रवास के अवसर पर उनके निवास पर तब गया था, जब हम छायावाद के प्रर्वतक कवि मुकुटधर पाण्डेय का सम्मान करने अपनी समिति की ओर रायगढ़ गये हुए थे।
 डॉ. बलदेव के साथ मैं सुशील भोले, डॉ. सुखदेव राम साहू, चेतन भारती, दिनेश चौहान, अंजनी कुमार अंकुर एवं भागवत प्रसाद साहू उपस्थित थे। हमारे अनुरोध पर डॉ. बलदेव जी की धर्मपत्नी भी इस चित्र में सम्मिलित हुई थी।  




Tuesday 14 January 2014

दान देने और लेने का पर्व छेरछेरा


छत्तीसगढ़ में पौस माह की पूर्णिमा तिथि को  *छेरछेरा* का जो पर्व मनाया जाता है, वह भगवान शिव द्वारा पार्वती के घर जाकर भिक्षा मांगने के प्रतीक स्वरूप मनाया जाने वाला पर्व है।

आप सभी को यह ज्ञात है कि पार्वती से विवाह पूर्व भोलेनाथ ने कई किस्म की परीक्षाएं ली थीं। उनमें एक परीक्षा यह भी थी कि वे नट बनकर नाचते-गाते पार्वती के निवास पर भिक्षा मांगने गये थे, और स्वयं ही अपनी (शिव की) निंदा करने लगे थे, ताकि पार्वती उनसे  (शिव से) विवाह करने के लिए इंकार कर दें।

छत्तीसगढ़ में जो छेरछेरा का पर्व मनाया जाता है, उसमें भी लोग नट बनकर नाचते-गाते हुए भिक्षा मांगने के लिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ के मैदानी भागों में तो अब नट बनकर (विभिन्न प्रकार के स्वांग रचकर) नाचते-गाते हुए भिक्षा मांगने जाने का चलन कम हो गया है, लेकिन यहां के बस्तर क्षेत्र में अब भी यह प्रथा बहुतायत में देखी जा सकती है। वहां बिना नट बने इस दिन कोई भी व्यक्ति भिक्षाटन नहीं करता।  

ज्ञात रहे इस दिन यहां के बड़े-छोटे सभी लोग भिक्षाटन करते हैं, और इसे किसी भी प्रकार से छोटी नजरों से नहीं देखा जाता, अपितु इसे पर्व के रूप में देखा और माना जाता है। और लोग बड़े उत्साह के साथ बढ़चढ़ कर दान देते हैं। इस दिन कोई भी व्य्क्ति किसी भी घर से खाली हाथ नहीं जाता। लोग आपस में ही दान लेते और देते हैं।

 इस छेरछेरा पर्व के कारण यहां के कई गांवों में कई जनकल्याण के कार्य भी संपन्न हो जाते हैं। हम लोग जब मिडिल स्कूल में पढ़ते थे, तब हमारे गुरूजी पूरे स्कूल के बच्चों को बैंडबाजा के साथ पूरे गांव में भिक्षाटन करवाते थे, और उससे जो धन प्राप्त होता था, उससे बच्चों के खेलने के लिए और व्यायाम से संबंधित तमाम सामग्रियां लेते थे।

मुझे स्मरण है, हमारे गांव में कलाकारों की एक टोली थी, जो इस दिन पूरे रौ में होती थी। मांदर-ढोलक और झांझ-मंजीरा लिए जब नाचते-गाते, डंडा के ताल साथ कुहकी पारते (लोकनृत्य में यह एक शैली है ताल के साथ मुंह से आवाज निकालने की इसे ही कुहकी पारना कहते हैं) यह टोली निकलती थी तो लोग उन्हें दान देने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा करते थे। उस टोली को अपने यहां आने का अनुरोध करते थे। छेरछेरा का असली रूप और असली मजा ऐसा ही होता था, जो अब कम ही देखने को मिलता है।

ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति, जिसे मैं आदि धर्म कहता हूं वह सृष्टिकाल की संस्कृति है। युग निर्धारण की दृष्टि से कहें तो सतयुग की संस्कृति है, जिसे उसके मूल रूप में लोगों को समझाने के लिए हमें फिर से प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ लोग यहां के मूल धर्म और संस्कृति को अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथों और संस्कृति के साथ घालमेल कर लिखने और हमारी मूल पहचान को समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।

मित्रों, सतयुग की यह गौरवशाली संस्कृति आज की तारीख में केवल छत्तीसगढ़ में ही जीवित रह गई है, उसे भी गलत-सलत व्याख्याओं के साथ जोड़कर भ्रमित किया जा रहा। मैं चाहता हूं कि मेरे इसे इसके मूल रूप में पुर्नप्रचारित करने के सद्प्रयास में आप सब सहभागी बनें...।

सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

मंथन साहित्यिक संध्या.....

मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर 14 जनवरी को सेक्टर-7 भिलाई स्थित कुर्मी भवन में आयोजित कवि सम्मेलन... 


Monday 13 January 2014

तपस्वी सत्यनारायण जी के दरबार में...



रायगढ़ प्रवास के दौरान रविवार 12 जनवरी 2014 को तपस्वी बाबा सत्यनारायण जी के दरबार में भी जाने का सुयोग बना।
ज्ञात रहे तपस्वी जी 16 फरवरी 1998 से कठोर साधना में हैं। निरंतर खुले स्थान पर रहकर वे साधना कर रहे हैं। उनका जन्म 12 जुलाई 1984 को  ग्राम देवरी (जिला रायगढ़) में हुआ था। उनके पिता का नाम दयानिधि एवं माता का नाम हंसामति साहू है। बाबा जी के बचपन का नाम हलधर साहू है। जब वे तेरह वर्ष की अवस्था में कक्षा सातवीं में थे तभी अचानक एक दिन समीप के कोसमनारा के जंगल में जाकर भगवान शिव को अपनी जिव्हा समर्पित कर साधना में लीन हो गये, तब से लेकर आज पर्यंत तक वे कठोर साधना में हैं।
उनकी साधना को नतमस्तक कर अपना मनोरथ सफल करने लोग दूरृ-दूर से आते हैं। उनके जन्म दिवस एवं साधना प्रारंभ करने की तिथि पर उत्साह के साथ मेला के रूप में आयोजित किया जाता है।  

सम्मान एवं काव्यपाठ

रविवार 12 जनवरी को रायगढ़ साहित्य विकास मंच द्वारा होटल आर्यन में आयोजित एक गोष्ठी में मुझे छत्तीसगढ़ी साहित्य में विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मेरा काव्यपाठ भी हुआ। वरिष्ठ साहित्यकार डा. बलदेव के मुख्यआतिथ्य एवं शिव कुमार पाण्डेय की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में संस्था के अध्यक्ष अकरम खान, कमल बहिदार, श्यामनारायण श्रीवास्तव, कन्हैया गुप्ता, अंजनी कुमार अंकुर, सुरेश सिंह, रामनाथ साहू, डा. सुखदेव राम साहू, चेतन भारती, दिनेश चौहान एवं प्रमोद दुबे सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।


Friday 10 January 2014

पीयौ बाबा भांग....


















पीयौ-पीयौ हो भोले बाबा भांग
मोर भक्ति के ये रसदार बने हे....

नागिन बारी ले लाने हौं भांग पाना
धथुरा के जड़ अउ मिले हे चार दाना
तभे तो ये हर लसदार बने हे.... पीयौ.....

हिरदे के सिल म घिस-घिस पीसेंव
सुरहिन गइया के दूध म खिंधोलेंव
देखौ चिखौ ये तो मजेदार बने हे.. पीयौ..

काली रतिहा के एला मैं बोरे रेहेंव
मया के रस म सरबस चिभोरे रेहेंव
पी लौ बाबा ये हर मयादार बने हे.. पीयौ..

सुशील भोले
म.नं. 41-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

जय हो चुनाव...










मोदी अब गोदी कोड़ही, राहुल झंउहा धरही
मुलायम माटी जोरही त लालू ओला फेंकही
जय हो लोकसभा चुनाव, अब चारोंमुड़ा ये दिखही
ममता, जया, माया के घलो, खूब तमाशा चलही




Wednesday 8 January 2014

आना बोरिंग म ....

आना गोई मोर बोरिंग म सुघ्घर अस नहाले
पलथिया के बइठ जा अउ मोर मेर टेंड़ाले...

Tuesday 7 January 2014

पहाड़ी कोरवा प्रमुख के साथ....

वनग्राम राजपुर वि.खं.बगीचा जिला-जशपुर (छत्तीसगढ़) के निवासी एवं पहाड़ी कोरवा समाज के अध्यक्ष अंधरू राम के साथ मैं सुशील भोले, बगीचा में जिनके घर पर मैं ठहरा था वे अजीत कुमार मिंज और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अनिमा मिंज जी....
ज्ञात रहे छत्तीसगढ़ की पहाड़ी कोरवा जाति भारत सरकार द्वारा संरक्षित जातियों की श्रेणी में शामिल है।

फेसबुक की चर्चा अखबारों में...

6 जनवरी 2013 को मैंने फेसबुक पर *आम औरत पार्टी* .. की संभावनाअों पर एक पोस्ट किया था, जिसे दुर्ग-भलाई के एक अखबार ने अपनी सुर्खियों में स्थान दिया है.....
मैटर इस तरह था--
आम औरत पार्टी क्यों नहीं....
मेरे एक मित्र का कहना है कि *आम आदमी पार्टी* की तर्ज पर *आम औरत पार्टी* का भी गठन किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दों को इससे बल मिलेगा, साथ ही सत्ता में इनकी भागीदारी भी बढ़ेगी, जिससे महिलाअों के साथ हो रहे पक्षपात और अत्याचारों पर अंकुश लगेगा। आप इस विषय पर क्या कहना चाहेंगे.....



Monday 6 January 2014

रेजा...


















चंउड़ी आये हौं जांगर बेचे बर, मैं बनिहारिन रेजा गा
लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा....

सूत उठ के बड़े बिहन्चे काम-बुता निपटाये हौं
मोर जोड़ी ल बासी खवा के रिक्शा म पठोये हौं
दूध पीयत बेटा ल छोड़ाये हौं करेजा गा... लेजा बाबू....

बेरा उवत के खड़े-खड़े देखत हावंव ए मालिक
मुड़ म आगे सुरुज-नरायन लेजा तैं ह ए मालिक
जांगर भर कोड़हूं-कमाहूं, एक बेर बेरा देजा गा.. लेजा...

बनी बिना तो ए बनिहारिन रहि जाही  लांघन
मैं नइ खाहूं त मोरो पिलवा कइसे पाही जेवन
मोर जोड़ी तो अपन कमई के नइ देवय एक बीजा गा.. लेजा..

सुशील भोले
म.नं. 41-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Sunday 5 January 2014

मचान पर पैरा...

आम तौर पर पैरा (पुआल) को खलिहान या कोठार आदि में ही रखा जाता है, पर अधिकांश वन क्षेत्रों में पैरा रखने के लिए लकड़ी का मचान बनाया जाता है। कहीं-कहीं पर किसी पेंड़ को ही मचान के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा शायद इन क्षेत्रों में लकड़ी की आसानी से बहुतायत में उपलब्धता के कारण होता है। देखिये ऐसे ही दो चित्र....


Friday 3 January 2014

पहाड़ी नदी के बीच...

बगीचा (जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़) में छोटी-छोटी पहाड़ी नदियों का जाल बिछा हुआ है। आप जिस रास्ते से गुजरें कोई न कोई ऐसी नदी अवश्य मिलेगी। इसीलिए ये नदियाँ यहाँ के लोगों के जीवन का अंग बनी हुई हैं। मैं जिस घर पर ठहरा हुआ था, उसके दरवाजे पर भी एक ऐसी ही नदी बहती है। हम जब कभी कहीं से घूम-फिर कर आते तो इस नदी में जाकर आराम करते। एक ऐसी ही शाम नदी के बीच.....

Thursday 2 January 2014

सरना पूजा स्थल एवं तालाब...

पहाड़ी कोरवा समाज के अध्यक्ष अंधरू राम जी ने बताया कि उनके वनग्राम राजपुर वि.खं.बगीचा जिला-जशपुर (छत्तीसगढ़) में इसी स्थल पर वे सरना पूजा करते हैं। सरना पूजा के रूप में गौरी माता की पूजा करने की बात कही गई, जिनकी एक छोटी प्रतिमा इस तालाब के ऊपरी भाग (मेड़) पर स्थापित है। लोग अंधरू राम जी को पंडा कहकर भी संबोधित करते हैं, क्योंकि यहां के देवस्थलों के मुख्य पुजारी वे ही हैं। उन्होंने गांव के ही दो-तीन अन्य लोगों को अपना शिष्य भी बना लिया है, जिनके माध्यम से वे सभी प्रकार के आध्यत्मिक कार्यों को संपन्न करते हैं।


Wednesday 1 January 2014

नवा बछर के नवा आस....


मुंदरहा के सुकुवा बिखहर अंधियारी रात पहाये के आरो देथे। सुकुवा के दिखथे अगास म अंजोर छरियाये के आस बंध जाथे। चिरई-चिरगुन मन चंहचंहाये लगथे, झाड़-झरोखा, तरिया-नंदिया आंखी रमजत लहराए लगथें। रात भर के खामोशी नींद के अचेतहा बेरा के कर्तव्य शून्य अवस्था ले चेतना के संसार म संघराये लगथे। तब कर्म बोध होथे, अपन धरम-करम के गोठ सुझथे, सत्-सेवा के संस्कार जागथे, अपन-बिरान अउ अनचिन्हार के पहिचान होथे।

नवा बछर घलो बीतत बछर के अनुभव के माध्यम ले लोगन ल अइसने किसम के नवा आस देथे, नवा बिसवास देथे, नवा रस्ता देथे, नवा नता-गोता, संगी-साथी अउ हितवा मन के संसार देथे। अपन पाछू के करम मन के गुन-अवगुन अउ सही गलत के पहिचान कराथे। करू-कस्सा, सरहा-गलहा मन ले पार नहकाथे, खंचका-डबरा अउ कांटा-खूंटी मन ले अलगे रेंगवाथे। तब जाके मनखे ह मनखे बनथे, वोकर छाप ह जगजग ले उज्जर अउ सुघ्घर दिखथे। लोगन ओला संहराथें, पतियाथें अउ आदर्श मान के ओकर अनुसरण करथें।

छत्तीसगढ़ अभी विकास के दृष्टि ले बालपन म हवय। कुल जमा एके दसक तो बीते हे, एकर स्वतंत्र अस्तित्व के सिरजन होये। इही अवस्था ककरो भी निर्माण के बेरा होथे। वोला सुंदर आकार, संस्कार अउ सदाचार के गुन म पागे के। आज जइसे एकर नेंव रचे जाही, तइसे काल के एकर स्वरूप बनही। सैकड़ों अउ हजारों बछर ले पर के गुलामी भोगत ये माटी के रूआं-रूआं म लूटे के, हुदरे के, चुहके के, टोरे के, फोरे के, दंदोरे के, भटकाये के, भरमाये के, तरसाये के, फटकारे के चिनहा दिखत हे।

अभी घलोक एला अपन पूर्ण स्वरूप के चिन्हारी नइ मिल पाये हे। काबर ते कोनो भी राज के चिन्हारी वोकर खुद के भाखा अउ खुद के संस्कृति के स्वतंत्र पहिचान ले होथे, जे अभी तक अधूरा हे। अउ ये स्वतंत्र स्वरूप के चिन्हारी आज के पीढ़ी ल करना परही। हमर ददा-बबा मन के पीढ़ी ह एला स्वतंत्र पहिचान देवाये खातिर एक अलग प्रशासनिक ईकाई के रूप म तो बनवाये के बुता ल पूरा कर देइन। अब एकर संवागा के जोखा हम सबके हे। कइसे एला आकार देना हे, विस्तार देना हे, पहिचान देना हे, साज अउ सिंगार देना हे, ये हमार पीढ़ी के बुता आय।

ददा-बबा मन जेन सपना ल देखे रहिन हें, वो सपना ल, वो सुघ्घर रूप ल हमन ल गढऩा हे। एकर भाखा ल, साहित्य ल, कला ल, संस्कृति ल, जुन्ना आचार-व्यवहार ल, जीये के उद्देश्य अउ धर्म-संस्कार ल हमन ल बनाना हे। एकर बर पूरा ईमानदारी के साथ हर किसम के स्वारथ ले ऊपर उठके समरपित भावना ले काम करे के जरूरत हे। ए बुता सिरिफ राजनीति के माध्यम ले पूरा नइ हो सकय, एकर बर हर वो माध्यम अउ मंच ल आगू आये के जरूरत हे, जेकर द्वारा समाज संचालित होथे।

छत्तीसगढ़ ल अपन पूर्ण स्वरूप के चिन्हारी मिलय इही आसा अउ बिसवास के साथ आप सबो झन ला नवा बछर के बधाई अउ जोहार-भेंट.....

सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

नवा बछर जब आथे....













नव-दुल्हिन कस सज-संवर के नवा-बछर जब आथे
जिनगी ल रसदार करे बर, नव-रस ल बरसाथे....

ठुडग़ा पेंड़ म जइसे बरसा, लाथे उल्हवा-केंवची पान
इही किसम के नवा-किरन ह जिनगी म लाथे नवा-बिहान
तब करू-कस्सा ह बिसराथे, अउ गुरतुर सबो जनाथे...
नवा-बछर जब आथे.....

सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
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