Thursday 25 March 2021

शिव की अड़भंगी होली..


रंग पंचमी विशेष//
शिव की अड़भंगी होली...
    महादेव की नगरी काशी की होली भी शिव की तरह ही अड़भंगी होती है. यह दुनिया का इकलौता शहर है, जहाँ अबीर और गुलाल के अलावा धधकती चिताओं के बीच चीता भस्म की होली होती है. घाट से लेकर गलियों तक होली का हर रंग निराला होता है. तभी तो लोग गुनगुना उठते हैं-
खेले मसाने में होली दिगंबर, खेले मसाने में होली,
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर खेले मसाने में होली...

    "शमशान में होली" खेलने का अर्थ समझते हैं? मनुष्य सबसे अधिक "मृत्यु" से भयभीत होता है। उसके हर भय का अंतिम कारण, अपनी या अपनों की मृत्यु ही होती है। श्मशान में होली खेलने का अर्थ है, उस "भय" से मुक्ति पा लेना है.
    मान्यता है कि काशी की मणिकर्णिका घाट पर, भगवान शिव ने देवी "सती के शव" की दाहक्रिया की थी। तबसे वह "महाशमशान" है, जहाँ चिता की अग्नि, कभी नहीं बुझती।
    एक चिता के बुझने से पूर्व ही, दूसरी चिता में आग लगा दी जाती है।
    वह मृत्यु की लौ है, जो कभी नहीं बुझती, जीवन की हर ज्योति, अंततः उसी लौ में समाहित हो जाती है।
     शिव संहार के देवता हैं न, तो इसीलिए मणिकर्णिका की ज्योति, शिव की ज्योति जैसी ही है, जिसमें अंततः सभी को "समाहित" हो ही जाना है।
    इसी मणिकर्णिका के महाश्मशान में शिव होली खेलते हैं।
    शिव किसी शरीर मात्र का नाम नहीं है, शिव "वैराग्य की उस चरम अवस्था" का नाम है, जब व्यक्ति मृत्यु की पीड़ा,भय या अवसाद से मुक्त हो जाता है।
    शिव होने का अर्थ है, वैराग्य की उस ऊँचाई पर पहुँच जाना है, जब किसी की मृत्यु कष्ट न दे, बल्कि उसे भी, जीवन का एक    आवश्यक हिस्सा मान कर, उसे पर्व की तरह खुशी खुशी मनाया जाय।
    शिव जब शरीर में भभूत लपेट कर नाच उठते हैं, तो समस्त भौतिक गुणों-अवगुणों से मुक्त दिखते हैं।
यही शिवत्व है
शिव जब अपने "कंधे" पर, देवी सती का शव, ले कर नाच रहे थे, तब वे मोह के चरम पर थे।
वे शिव थे, फिर भी शव के मोह में बंध गए थे। "मोह" बड़ा प्रबल होता है, किसी को नहीं छोड़ता।
     सामान्य जन भी विपरीत परिस्थितियों में, या अपनों की मृत्यु के समय, यूँ ही शव के मोह में तड़पते हैं। शिव शिव थे, वे रुके तो, उसी प्रिय पत्नी की "चिता भष्म" से, होली खेल कर, युगों युगों के लिए, वैरागी हो गए।
     मोह के चरम पर ही, "वैराग्य" उभरता है न। पर मनुष्य इस मोह से, नहीं निकल पाता, वह एक मोह से छूटता है तो, दूसरे के फंदे में फंस जाता है।
    शायद यही मोह मनुष्य को, "शिवत्व" प्राप्त नहीं होने देता.
कहते हैं, काशी "शिव के त्रिशूल" पर, टिकी है। शिव की अपनी नगरी है,. "काशी", कैलाश के बाद, उन्हें सबसे अधिक काशी ही प्रिय है।
    शायद इसी कारण, काशी एक अलग प्रकार की, "वैरागी" ठसक के साथ जीती है।
    मणिकर्णिकाघाट, हरिश्चंदघाट, युगों युगों से गङ्गा के, इस पावन तट पर मुक्ति की आशा ले कर, देश विदेश से आने वाले लोग, वस्तुतः शिव की अखण्ड ज्योति में, समाहित होने ही आते हैं।*
ऊँ नमः शिवाय 🙏
(प्रस्तुति : सुशील भोले)
💐💐💐🙏🏻💐💐💐

हर हर महादेव 🙏🙏

Wednesday 24 March 2021

रंग एकादशी// शिव जी की होली लीला..

रंग एकादशी पर...
शिवजी की होली लीला..
  एक समय कैलाश पर्वत पर तप साधना में लीन भगवान शिव का ध्यान अचानक से भंग हो गया. उनके मन में पार्वती के संग होली खेलने की तीव्र इच्छा जागृत हो उठी.
   मायके गई हुई माँ गौरी के पास शीघ्र अतिशीघ्र पहुंचने की उत्कंठा में प्रभु नंदी एवं अन्य गणों को साथ लिए बिना ही पैदल अकेले ससुराल के लिए चल पड़े.
    होली का पर्व आने में अभी कुछ ही दिन शेष रह गये थे, परंतु भोलेनाथ की जिद के आगे माता गौरी को अबीर गुलाल लेकर आना ही पड़ा, जिसके बाद दोनों ने दिव्य होली खेली.
    इस पर प्रभु के कंठ पर लिपटे सर्प घबराकर फुफकार मारने लगे. उनकी फुफकार से शीश पर विराजित चंद्र से अमृत की धारा बह निकली. जिसका पान कर भगवान का बाघम्बर जीवित सिंह बन गर्जना करने लगा.
   परिणामस्वरूप भोलेनाथ को दिगम्बर अवस्था में देख माता पार्वती अपनी हंसी रोक न सकीं. पुराणों में वर्णित उस अलौकिक दिवस को भविष्य में रंगभरी एकादशी की संज्ञा मिली, जिसे देव होली के रूप में सभी फागुन शुक्ल एकादशी के दिन श्रद्धा भाव से मनाते हैं. (संकलित)

Monday 22 March 2021

छत्तीसगढ़ राजगीत..

छत्तीसगढ़: सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए राज्य गीत "अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार" की अवधि एक मिनट 15 सेकंड होगी
By: Ashutosh Kumar

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Published: 04 Feb 2020, 07:50 PM IST

छत्तीसगढ़़ी गीत 'अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार' को राज्य गीत घोषित किया गया है

रायपुर. सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जारी आदेश के तहत सार्वजनिक कार्यक्रमों में गायन हेतु राज्य गीत "अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार" का मानकीकरण करते हुए इसकी अवधि एक मिनट 15 सेकंड कर दी गई है। सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से इस संबंध में अध्यक्ष राजस्व मंडल छत्तीसगढ़ बिलासपुर, समस्त विभागाध्यक्ष, समस्त संभागायुक्त और कलेक्टर को निर्देश जारी किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि राज्य शासन द्वारा डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा द्वारा लिखित छत्तीसगढ़़ी गीत 'अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार' को राज्य गीत घोषित किया गया है। राज्य गीत का गायन सभी शासकीय कार्यक्रमों के प्रारंभ में किए जाने का निर्देश भी जारी किया गया था।
मंत्री परिषद में लिए निर्णय के अनुसार सार्वजनिक कार्यक्रमों में गायन हेतु राज्य गीत का मानकीकरण किया गया है, जो जनसम्पर्क Www.Dprcg.Gov.In एवं सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइट Http://Gad.Cg.Gov.In/Notice_display.Aspx में अपलोड किया गया है।

मानकीकरण के पश्चात गाए जाने वाला राज्य गीत

''अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार,
इन्द्राबती ह पखारय तोर पइँया।
महूँ पाँव परँव तोर भुइँया,
जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।।
सोहय बिन्दिया सही घाते डोंगरी, पहार
चन्दा सुरूज बने तोर नयना,
सोनहा धाने के संग, लुगरा के हरियर रंग
तोर बोली जइसे सुघर मइना।
अँचरा तोरे डोलावय पुरवइया।।
(महूँ पाँव परँव तोर भुइँया, जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।।)

Wednesday 17 March 2021

पंडवानी पुरोधा.. (संशोधित)

रजसुरता//
पंडवानी के पुरोधा नारायण प्रसाद वर्मा
      आज के नवा छत्तीसगढ़ म पंडवानी गायन ल एक बड़का विधा के रूप म देखे जाथे, माने जाथे अउ गाये घलोक जाथे। एकरे सेती आज एकर गायक-गायिका मनला पद्मश्री ले लेके कतकों अकन राष्ट्रीय अउ राज्य स्तर के सम्मान मिलत रहिथे। फेर ये बात ल कतका झन जानथें के ये विधा के जनमदाता कोन आय, ए विधा ल गावत कतका बछर बीत गये हे?

     आप मनला ये जान के सुखद आश्चर्य होही के नवा बने जिला बलौदाबाजार के गांव झीपन (रावन) के किसान मुडिय़ा राम वर्मा के  सुपुत्र के रूप म जनमे नारायण प्रसाद वर्मा ला ये पंडवानी विधा के जनमदाता होय के गौरव प्राप्त हे। वोमन गीता प्रेस गोरखपुर ले छपे सबल सिंह चौहान के किताब ले प्रेरित होके वोला इहां के लोकगीत मन संग संझार-मिंझार के पंडवानी के रूप म विकसित करीन।

    मोला नारायण प्रसाद जी के झीपन वाला घर म जाये अउ उंकर चौथा पीढ़ी के सदस्य संतोष अउ नीलेश के संगे-संग एक झन गुरुजी ईनू राम वर्मा के संग गोठबात करे के अवसर मिले हे। ईनू राम जी ह नारायण प्रसाद जी के जम्मो लेखा-सरेखा ल सकेले के बड़ सुघ्घर बुता करत हवय। संग म गांव के आने सियान मन संग घलोक मोर भेंट होइस, जे मन नारायण प्रसाद जी ल, उंकर कार्यक्रम ल देखे-सुने हवयं। उन बताइन के धारमिक प्रवृत्ति के नारायण प्रसाद जी सबल सिंह चौहान के संगे-संग अउ आने लेखक मन के किताब मनके घलोक खूब अध्ययन करयं, अउ उन सबके निचोड़ ल लेके वोला अपन पंडवानी के प्रस्तुति म संघारंय।

    पंडवानी शब्द के प्रचलन
नारायण प्रसाद जी ल लोगन भजनहा कहंय, ये हा ये बात के परमान आय के वो बखत तक पंडवानी शब्द के प्रचलन नइ हो पाये रिहिस हे।  पंडवानी शब्द के प्रचलन उंकर मन के बाद म चालू होय होही। काबर के आज तो अइसन जम्मो गायक-गायिका मनला पंडवानी गायक के संगे-संग अलग-अलग शाखा के गायक-गायिका के रूप म चिन्हारी करे जाथे। जइसे कापालिक शैली के या फेर वेदमती शाखा के गायक-गायिका के रूप म।

    नारायण प्रसाद जी अपन संग म एक सहयोगी घलोक राखयं, जेला आज हमन रागी के रूप म जानथन। रागी के रूप म उंकरेच गांव के भुवन सिंह वर्मा जी उंकर संग म राहंय, जउन खंजेरी बजा के उनला संग देवयं। अउ नारायण प्रसाद जी तबूंरा अउ करताल बजा के पंडवानी के गायन करंय। उंकर कार्यक्रम ल देख के अउ कतकों मनखे वइसने गाये के उदिम करंय, एमा सरसेनी गांव के रामचंद वर्मा के नांव ल प्रमुखता के साथ बताये जाथे। फेर उनला वो लोकप्रियता नइ मिल पाइस जेन नारायण प्रसाद जी ला मिलिस।

    रतिहा म गाये बर प्रतिबंध
नारायण प्रसाद जी के लोकप्रियता अतका जादा बाढग़े रिहिस हवय के उनला देखे-सुने खातिर लोगन दुरिहा-दुरिहा ले आवंय। जिहां उंकर कार्यक्रम होवय आसपास के गांव मन म खलप उजर जावय। एकरे सेती चोरी-हारी करइया मन के चांदी हो जावय। जेन रतिहा उंकर कार्यक्रम होवय वो रतिहा वो गांव म या आसपास के गांव म चोरी-हारी जरूर होवय। एकरे सेती उनला रतिहा म कार्यक्रम दे खातिर प्रतिबंध के सामना घलोक करना परीस। एकरे सेती उन पुलिस वाला मनके कहे म सिरिफ दिन म कार्यक्रम दे बर लागिन।

     एक मजेदार घटना के सुरता गांव वाले मन आजो करथें। बताथें के महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र म उंकर कार्यक्रम चलत रिहिसे। उहों ले चोरी-हारी के शिकायत मिले लागिस। अंगरेज शासन के पुलिस वाले मन उनला ये कहिके थाना लेगें के वो ह कार्यक्रम के आड़ म खुद चोरी करवावत हे। बाद म असलियत ल जाने के बाद उनला छोड़ दिये गेइस। उन 18 दिन तक जेल (थाना) म रहिन, अउ पूरा 18 दिन उहाँ पंडवानी सुनाइन. तहाँ ले उनला छोड़ दिए गिस. जानबा राहय के उंकर पंडवानी के कार्यक्रम ह चारोंमुड़ा होवय, उन सबो डहर जावयं।

    प्रशासनिक क्षमता
नारायण प्रसाद जी एक उच्चकोटि के कलाकार अउ सांस्कृतिक कार्यक्रम  के पुरोधा होय के संगे-संग प्रशासनिक क्षमता रखने वाला मनखे घलोक रिहिन हें। उन अपन जिनगी के अखिरी सांस तक गांव पटेल के जि मेदारी ल निभावत रिहिन हें। एकर संगे-संग गांव म अउ कुछु भी बुता होवय त अगुवा के रूप म उन हमेशा आगू रहंय।

     लगातार 18 दिन तक कथापाठ
अइसे कहे जाथे के पंडवानी या महाभारत के कथा ल लगातार 18 दिन तक नइ करे जाय। एला जीवन के आखिरी घटना के संग जोड़े जाथे। फेर नारायण प्रसाद जी ये धारणा ल झूठलावत अपन जिनगी म दू पइत ले 18-18 दिन तक पंडवानी के गायन करीन हें। एक पइत जब उन शारीरिक रूप ले बने सांगर-मोंगर रिहिन हें, तब पूरा बाजा-गाजा के संग करे रिहिन हें, अउ दूसरइया बखत जब उंकर शरीर उमर के संग कमजोर परे ले धर लिये रिहिस हे, तब बिना संगीत के सिरिफ एकर वाचन भर करे रिहिन हें।

     अइसे बताये जाथे के पहिली बखत जब उन 18 दिन तक पंडवानी के गायन करे रिहिन हवयं तब ये अफवाह फैल गे रिहिस हावय के ये 18 दिन के गायन के तुरते बाद उन समाधि ले लेहीं, एकरे सेती उन 18 दिन तक गायन करत हावंय। काबर ते अइसन गायन ल जीवन के अंतिम समय के घटना संग जोड़े के बात जनमानस म रिहिस हे। एकरे सेती उनला देखे के नाम से चारोंमुड़ा ले जनसैलाब उमड़ परे रिहिस हे।  दूसरइया बखत जब उन 18 दिन तक पंडवानी के गायन करीन तेकर बाद उन खुदेच जादा दिन तक जी नइ पाइन, कुछ दिन के बाद ही उन ये नश्वर दुनिया ल छोड़ के सरग सिधार देइन।

   मठ अउ जनआस्था
हमर समाज म अइसे चलन हवय के घर-गिरहस्ती के जिनगी जीने वाला मनके देंह छोंड़े के बाद उनला मरघट्टी म  लेग के आखिरी क्रिया-करम कर दिये जाथे। फेर नारायण प्रसाद जी के संग अइसन नइ होइस । उनला मरघट्टी  लेगे के बदला गांव के तरिया पार म मठ बना के ठउर दे गइस। अउ सिरिफ अतकेच भर नहीं उनला आने गांव-देंवता मन संग संघार लिये गइस। अब गांव म जब कभू तिहार-बार होथे त गांंव वाले मन आने देवी-देवता मन के संग म उंकरो मठ म दीया-बत्ती करथें, अउ उंकर ले गांव अउ घर खातिर सुख-समृद्धि मांगथें। अइसे कहे जाथे के सन् 1974 म 4 दिसंबर के जब उन सरग सिधारीन तब उंकर उमर करीब 80 बछर के रिहिस हवय, वइसे उंकर जनम के बछर ल 1884 बताए जाथे। सियान मन बताथें के तिंवरा लुवई के बखत उन सरग लोक वासी होइन.

पारिवारिक स्थिति
नारायण प्रसाद जी के वंशवृक्ष के संबंध म जेन जानकारी मिले हे तेकर मुताबिक उंकर सियान के नांव मुडिय़ा राम वर्मा रिहिस हे। फेर नारायण प्रसाद जी, नारायण जी के बेटा होइस घनश्याम जी, अउ घनश्याम जी के बेटा होइस पदुम जी। पदुम जी के दू झन बेटा हवयं संतोष अउ निलेश जउन मन अभी घर के देखरेख करत हवंय।

इहां ये बताना जरूरी लागथे के नारायण प्रसाद जी के बेटा घनश्याम घलोक ह अपन सियान सहीं कथा वाचन करे के कोशिश करयं, फेर उन बिना संगीत के अइसन करंय। उंकर बाद के पीढ़ी म पंडवानी गायन या वाचन डहर कोनो किसम के झुकाव देखे ले नइ मिलिस। आज उंकर चौथा पीढ़ी के रूप म संतोष अउ निलेश हवंय, फेर इंकर पूरा बेरा सिरिफ खेती किसानी तक ही सीमित हे। एकरे सेती हमला नारायण प्रसाद जी के संबंध म वतका जानकारी नइ मिल पाइस, जतका मिलना रिहिस हे। कहूं उंकर वारिस मन घलोक ये रस्ता के रेंगइया रहितीन या लिखने-पढऩे वाला होतीन त पंडवानी के ये आदिगुरु आज लोगन के बीच अनचिन्हार बरोबर नइ रहितीन, पूरा देश-दुनिया म उंकर सोर-खबर रहितीस।

सुशील भोले
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)

Monday 15 March 2021

दशरथ लाल निषाद 'विद्रोही'

15 जनवरी पुण्यतिथि म सुरता//
साहित्य सिरजन ल धरम कारज मानय डाॅ. दशरथ लाल निषाद
  साहित्य सिरजन ल धरम कारज मनइया डाॅ. दशरथ लाल जी निषाद के कहना रिहिसे, लोगन ल अपन जिनगी ले धन नहीं, धरम लेके जाना चाही. एकरे सेती मैं सन् 1958 ले लेके आज तक सरलग साहित्य सिरजन म लगे रइथौं. सही म उन जिनगी के आखिरी बेरा तक साहित्य के बढ़वार म लगे रिहिन.
   धमतरी जिला के गाँव मगरलोड म 20 नवंबर 1938 के महतारी बोधनी बाई अउ ददा ठाकुर राम निषाद जी के घर जन्मे दशरथ लाल जी 1958 ले लेखन कारज म भिड़े रिहिन. उंकर पहला साहित्य संकलन 1965 म 'राष्ट्रीय चेतना' के नांव ले आए रिहिसे.
   दशरथ लाल जी संग मोर भेंट पहिली बेर तब होए रिहिसे, जब मैं छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के प्रकाशन- संपादन करत रेहेंव. बात सन् 1988 के आय तब मैं छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी संग उंकर हांडीपारा रायपुर वाले कार्यालय म बइठे रेहेंव. तभे निषाद जी उहाँ पहुंचिन. उंकर संग मोर परिचय जागेश्वर जी कराइन, अउ बताइन के ए मन डाॅ. दशरथ लाल जी आंय, क्रांतिकारी साहित्यकार हें. हमन मीसा बंदी हन. दूनों झन एके संग जेल म रहेन.
    दशरथ लाल जी के शिक्षा गाँव म आठवीं तक ही हो पाए रिहिसे. एकर बाद उन भिलाई चले गेइन वो बखत डेढ़ दू रुपिया म रायपुर अउ भिलाई म रोजी मजूरी करत आईटीआई म पढ़ीन. तेकर पाछू भोपाल म एक इंटरव्यू होइस, जेमा उन पास होइन, तहाँ ले उनला भिलाई टेक्निकल इंस्टीट्यूट म नौकरी मिलगे.
    नौकरी लगे के बाद उन प्रायव्हेट म हायर सेकेण्डरी पास करीन. फेर डिप्लोमा घलो करीन. शिक्षा खातिर उंकर लगन अतेक रिहिस के आयुर्वेद रत्न, साहित्य रत्न अउ फेर कृषि रत्न के घलो उपाधि लेइन. उन भिलाई म रहिके ही अपन समाज के गतिविधि संग घलो जुड़िन. एक पाछू फेर साहित्य म आना होइस.
   साहित्य म सफा-सफा बात लिखंय तेकर सेती उन अपन उपनाम 'विद्रोही' लिखे लागिन. इही कलम के विद्रोह के सेती उनला ए देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था म काला अध्याय के रूप म चिन्हे जाने वाला 'मीसा काल' म करीब पौने दू बछर मीसा बंदी के रूप म जेल म बीताए बर लागिस. एकर एक दुष्परिणाम इहू होइस के भिलाई टेक्निकल इंस्टीट्यूट के नौकरी ले हाथ धोना परगे.  
      बाद म उन प्रायव्हेट नौकरी करत अपन परिवार के जीविका चलाए लागिन. तेकर पाछू फेर अपन जन्मभूमि मगरलोड लहुट आइन, जिहां 13 अक्टूबर 1996 म "संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति" के स्थापना करिन. ए समिति के माध्यम ले मगरलोड क्षेत्र के साहित्य प्रेमी मन ल जोड़िन. आज ए समिति के नांव पूरा प्रदेश म सम्मान के साथ लिए जाथे. एकर मन के साहित्य खातिर समर्पण अउ सक्रियता ल लोगन उदाहरण के रूप म आज तक रखथें, जे मन के  एक ग्रामीण क्षेत्र म रहि के घलो अपन खुद के भवन रिहिन.
    निषाद जी के लेखन  छत्तीसगढ़ के विशेषता मन ऊपर बहुत होए हे. जइसे- छत्तीसगढ़ के बासी, छत्तीसगढ़ के मितानी, छत्तीसगढ़ के भाजी, छत्तीसगढ़ के गांधी, छत्तीसगढ़ के पान, छत्तीसगढ़ के भक्तिन, छत्तीसगढ़ के कांदा, छत्तीसगढ़ के सिंगार, एकर मन के संगे-संग राम-केंवट संवाद, मुक्तक संग्रह, जइसन अबड़ अकन विशुद्ध साहित्यिक विषय मन ऊपर घलोक लिखे हें. उंकर 30 किताब प्रकाशित हो चुके रिहिसे, अउ अतकेच अकन के पुरती ह छपे के अगोरा म रिहिसे, जेला नवा पीढ़ी शायद छपवाय के जोंग मढ़ाही.
    दशरथ निषाद जी ल साहित्यिक अउ सामाजिक मिला के करीब 82 सम्मान मिले रिहिसे. फेर एक ताज्जुब के बात आय के उनला कोनो किसम के सरकारी सम्मान नइ मिल पाए रिहिसे. एकर एक बड़का कारन मैं मानथंव, एकर चयन विधि नियम ल.  सरकारी सम्मान खातिर सबले बड़े बाधा ए आय, के जे मन अपन सम्मान करे खातिर आवेदन करथें या कोनो समिति द्वारा ककरो नांव के प्रस्ताव भेजे जाथे, सिरिफ वोकरेच भर मन के नांव के चयन सम्मान खातिर होथे. जे मन आवेदन नइ करंय, तेकर मन के नांव ऊपर कोनो किसम के विचार नइ करे जाय. जबकि ए बात ल लोगन जानथें, के कतकों स्वाभिमानी किसम के लोगन अइसन आवेदन करे ले बांचे रहिथें.
  एकर संबंध म मोला छत्तीसगढ़ के महान संगीतकार रहे स्व. खुमान लाल साव जी के वो बात के सुरता आथे, जब उन कहंय के, "कोनो भी स्वाभिमानी मनखे मोर सम्मान कर दे कहिके आवेदन करय. मैं खुद नइ करंव, एकरे  सेती मोला आज तक कोनो किसम के  सम्मान नइ मिल पाये हे."
  मोला लागथे, के सरकार ल अपन ये नियम ऊपर फिर से विचार करना चाही, अउ साठ बछर ले ऊपर हो चुके कलाकार या साहित्यकार मन के खुदे सोर-खबर लेना चाही.
  आदरणीय निषाद जी के तो अड़बड़ सम्मान होए हे. दू पइत महूं ल उंकर सम्मान करे के सौभाग्य मिले हे. एक पइत जब उन अपन जिनगी के 75 बछर पूरा करीन, त संगम साहित्य समिति द्वारा उंकर प्रकाशित साहित्य म तउल के सम्मान के गे रिहिसे, संग म  एक स्मारिका के प्रकाशन घलो करे गे रिहिसे. ए ह मोर सौभाग्य आय के, ए कार्यक्रम म मोला अतिथि के रूप म उपस्थित होके आदरणीय निषाद जी के स्मारिका के विमोचन अउ सम्मान करे के अवसर मिले रिहिसे. दूसरा पइत तब, जब हमन रायपुर म छत्तीसगढ़ी व्याकरण के सर्जक हीरालाल काव्योपाध्याय जी के सुरता म कार्यक्रम करे रेहेन, जेमा छत्तीसगढ़ के पांच साहित्य रत्न मन के सम्मान करे रेहेन, वोमा के एक रत्न आदरणीय निषाद जी घलो रिहिन हें.
   वइसे तो मैं मगरलोड हर बछर के स्थापना दिवस कार्यक्रम म जावंंव त निषाद जी संग भेंट हो जावत रिहिसे. कभू कभार उन रायपुर के कार्यक्रम म आवंय तभो भेंट हो जावय. फेर जब ले (24 अक्टूबर 2018) मोला लकवा के अटैक आए हे, तब ले कोनो डहार बंद होगे. एकरे संग निषाद जी संग भेंट होवइ घलो बंद होगे. बीच- बीच म संगम साहित्य के सक्रिय सदस्य चिंताराम सिन्हा फोन के माध्यम ले निषाद जी संग गोठबात करा देवत रिहिसे, त जानेंव के उहू मन अभी खटिया म गजब दिन ले रिहिन, अउ जइसे सुरूज नरायन ह उत्तरायण होइस, वइसने 15 जनवरी 2023 के उन अपन नश्वर शरीर ल छोड़ के परमधाम के रद्दा चल दिन.
    जावत-जावत घलो उन अपन धरम कारज ल नइ छोड़िन. उन अपन आंखी ल दान करे के घोषणा करे रिहिन हें, तेकर सेती स्वास्थ्य विभाग वाले मन उंकर उहू इच्छा ल पूरा करीन.
    उंकर सुरता ल पैलगी जोहार.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

सुशील भोले... परिचय..

वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
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प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ)
पिता – स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता – स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी– श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान – 1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम – नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता – 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा – हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा
मोबाइल – 98269-92811 
प्रकाशित कृतियां- 
1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह) 
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

कालम लेखन- 
1. तरकश अउ तीर (दैनिक नवभास्कर सन-1990)
2. आखर अंजोर (दैनिक तरूण छत्ती‍सगढ़ 2006-07)
3. डहर चलती (दैनिक अमृत संदेश- 2009)
4. गुड़ी के गोठ (साप्ताहिक इतवारी अखबार 2010 से 2015)
5. बेंदरा बिनास (साप्ताहिक छत्तीसगढ़ सेवक 1988-89)
6. किस्सा कलयुगी हनुमान के (मासिक मयारू माटी 1988-89)

अन्य लेखन-
1.प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविता, कहानी, समीक्षा, साक्षात्कार आदि का नियमित रूप से प्रकाशन।
2. ‘लहर’ एवं ‘फूलबगिया’ ऑडियो कैसेट में गीत लेखन एवं गायन।
3. अनेक सांस्कृतिक मंचों द्वारा गीत एवं भजन गायन।

सम्मान- 
1. छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग द्वारा सन 2010 में प्राप्त ‘भाषा सम्मान’ सहित अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा सम्मानित।

संपादन एवं प्रकाशन-
1. मयारु माटी (छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम संपूर्ण मासिक पत्रिका)

सह संपादन-
1. दैनिक अग्रदूत
2. दैनिक तरूण छत्तीगढ़
3. दैनिक अमृत संदेश
4. दैनिक छत्तीसगढ़ ‘इतवारी अखवार’
5. जय छत्तीसगढ़ अस्मिता (मासिक)
6. अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं में

विशेष-
1. छत्तीसगढ़ के मूल आदिधर्म एवं संस्कृति के लिए विशेष रूप से लेखन, वाचन, प्रकाशन एवं जमीनी तौर पर पुनर्स्थापना के लिए कार्यरत। इसके लिए सन 1994 से 2008 तक (करीब 14 वर्ष) साहित्य, संस्कृति कला एवं गृहस्थ जीवन से अलग रहकर विशेष आध्यात्मिक साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया।

2. गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में 8 अक्टूबर 2017 को भारत सरकार के सहित्य अकादमी द्वारा गुजराती एवं छत्तीसगढ़ी साहित्य का आयोजन किया गया। जिसमें मैं प्रतिभागी के रूप में कवितापाठ किया। छत्तीसगढ़ी के अन्य प्रतिभागियों में डॉ. केशरीलाल वर्मा, डॉ. परदेशी राम वर्मा, रामनाथ साहू एवं मीर अली मीर प्रतिभागी थे।

वर्तमान में-
24 अक्टबूर 2018 से लकवा रोग से पीडि़त होने के कारण घर पर ही रहकर साहित्य साधना।

प्रेरणा-
पिताजी स्व. श्री रामचंद्र वर्मा, जिनके द्वारा लिखित प्राथमिक हिन्दी  व्याकरण एवं रचना (प्रकाशक- अनुपम प्रकाशन, रायपुर) संयुक्त मध्यप्रदेश के समय कक्षा तीसरी, चौथी एवं पांचवीं में पाठ्य पुस्तक के रूप में चलती थी, से प्रेरित होकर लेखन क्षेत्र में आया।

प्रिय लेखक- 
अध्यात्म में – कबीर दास जी
अंतर्राष्ट्रीय में – गोर्की
राष्ट्रीय में – मुंशी प्रेमचंद
स्थानीय में – लोक जीवन एवं जन चेतना से जुड़े प्राय: सभी लेखक।
इच्छा-
छत्तीसगढ़ के मूल आदि धर्म एवं संस्कृति के मापदंड पर यहां के सांस्कृतिक-इतिहास का पुर्नलेखन हो। क्योंकि अभी तक यहां के बारे में जो भी लिखा गया, या लिखा जा रहा है, वह उत्तर भारत से आए ग्रंथों के मापदंड पर लिखा गया है। इसलिए ऐसे किसी भी ग्रंथ को छत्तीसगढ़ के धर्म, संस्कृति एवं इतिहास के संदर्भ में मानक नहीं माना जा सकता। इसलिए आवश्यक है कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति को, धर्म या इतिहास को इसके अपने संदर्भ में लिखा जाए।
पारिवारिक स्थिति-
पिताजी स्व. श्री रामचंद्र वर्मा प्राथमिक शाला में शिक्षक थे, इसलिए निम्न-मध्यम वर्गीय परिवेश में पालन-पोषण हुआ। अभी भी आर्थिक रूप से लगभग यही स्थिति है। इसके पूर्व सन् 1994 से 2008 तक के आध्यात्मिक साधना काल में सभी प्रकार के अर्थापार्जन के कार्यों से अलग रहने के कारण अत्यंत गरीबी का सामना करना पड़ा, जिसका असर बच्चों  के भरण-पोषण पर भी हुआ। पिताजी के पास पै‍तृक ग्राम नगरगांव में पैतृक संपत्ति के रूप में एक कच्चा मकान, खलिहान तथा करीब दो एकड़ खेत था। लेकिन हम चार भाइयों के बीच हुए बंटवारा के पश्चात अब स्थायी संपत्ति के नाम पर मेरे पास (सुशील भोले) संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर स्थित एक छोटे मकान के अलावा और कुछ भी नहीं है। चार भाइयों और दो बहनों में मैं दसूरे नंबर का हूं। मुझसे बड़े एक भाई हैं- सुरेश वर्मा तथा मुझसे छोटे दो भाई मिथलेश वर्मा एवं कमलेश है। इसी प्रकार दो बहनें एक श्रीमती प्रभा-कृष्ण कुमार वर्मा (प्रभा का निधन हो चुका है) तथा दूसरी श्रीमती सरोज (चित्रा)- चंद्रशेखर वर्मा है। मेरी तीन संतानों में तीनों ही लड़कियां हैं, जिनका विवाह हो चुका है। पत्नी श्रीमती बसंती देवी वर्मा मात्र प्राथमिक तक शिक्षित है, इसलिए उससे लेखन या पठन-पाठन के क्षेत्र में कोई सहयोग नहीं मिल पाता। मेरे कई महत्वपूर्ण प्रकाशनों की करतरने और किताब आदि भी उसकी अज्ञानता की भेंट चढ़ गई। खासकर उस समय जब मैं आध्यात्मिक साधना काल में था।
जीवकोपार्जन-
आई.टी.आई. से डिप्लोमा प्राप्त करने के पश्चांत कुछ प्रेस में कम्पोजिटर का करते हुए दैनिक अग्रदूत (तब वह साप्ता‍हिक था) गया। वहां मेरी साहित्यिक प्रतिभा को देखकर कम्पोजिटर से संपादकीय विभाग में लाया गया। दैनिक अग्रदूत में ही सन् 1983-84 में मेरी पहली कविता एवं कहानी का प्रकाशन हुआ। प्रदेश के यशस्वी व्यंग्यकार प्रो. विनोद शंकर शुक्ल जो अग्रदूत के साहित्यिक परिशिष्ट के संपादक थे, उन्होंने ही मेरी रचनाओं में आवश्यक संशोधन (संपादन) कर प्रकाशित किया था। इसके पश्चात फिर मेरी लेखनी सरपट दौड़ने लगी, जो अब तक (आध्यात्मिक साधना काल को छोड़कर) सरपट दौड़ रही है।
दैनिक अग्रदूत के पश्चात कुछ दिन दैनिक तरूण छत्तीसगढ़, दैनिक अमृत संदेश एवं दैनिक छत्तीसगढ़ में सह संपादक के पद पर कार्यरत रहा। बीच में सन् 1988 से 2005 तक स्वयं का व्यवसाय- प्रिटिंग प्रेस संचालन, मासिक पत्रिका ‘मयारू माटी’ का प्रकाशन-संपादन एवं ऑडियो कैसेट रिकार्डिंग स्टूडियो का संचालन किया।

- सुशील भोले
54/191, डा. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर  [ Mo- 98269-92811]