Tuesday 30 April 2013

अइसन होथे काबर...?


(श्रमिक दिवस पर छत्तीसगढ़ी में लिखा गीत)

अइसन होथे काबर संसार म
मेहनत करइया जीथे उधार म....

हटर-हटर बुता करथे जांगर पेराथे
घाम-पानी चिन्हय नहीं लहू अंटाथे
तभो लांघन मरते हंडिय़ा वोकरे तिहार म.....

कुंवा खोद पानी ओगराथे बंजर-पहार म
गंगा ल परघा के लाथे जे मन चतवार म
कइसे मीठ पानी रिसाय रथे वोकरे दुवार म.......

कोइला कोड़ के बड़े-बड़े भ_ी सिपचाथें
गडिय़ा के खंभा चारों खुंट बिजली बगराथें
फेर बूड़े रहिथे वोकरे घर भंइसा-अंधियार म.......

बड़े-बड़े कारखाना म लोहा जेन गलाथें
सबके रेहे खातिर महल-अटारी टेकाथें
तभो वोकरे परिवार बसथे निच्चट उजार म........


सुशील भोले
डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269 92811
ई-मेल -  sushilbhole2@gmail.com

Thursday 25 April 2013

माटी के पीरा...


(छत्तीसगढ़ में चुनावी डुगडुगी बजना प्रारंभ हो गया है। सभी पार्टी वाले अपनी ढपली अपना राग गाने लग गये हैं। इन सबके बीच मैं आप लोगों से लोगों से आव्हान करता हूं कि आप लोग सभी प्रकार की दलगत भावना से ऊपर उठकर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की अवधारणा को पूर्ण करने के लिए कार्य करें। केवल ऐसे उम्मीदवारों को विजयी बनाने के लिए कार्य करें, जो वास्तव में यहां की अस्मिता के लिए निष्ठापूर्वक समर्पित हो, इसके लिए हमेशा कार्य करता रहा हो, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो। व्यक्ति के आधार पर अपना प्रतिनिधि बनायें, पार्टी के आधार पर नहीं। जय छत्तीसगढ़... छत्तीसगढिय़ा... सबले बढिय़ा... )

माटी के पीरा...
ए माटी के पीरा ल कतेक बतांव,
कोनो संगी-संगवारी ल खबर नइए।
धन-जोगानी चारों खुंट बगरे हे तभो,
एकर बेटा बर छइहां खदर नइए।।...

कोनो आथे कहूं ले लांघन मगर,
इहां खाथे ससन भर फेर सबर नइए।...

दुख-पीरा के चरचा तो होथे गजब,
फेर सुवारथ के आगू म वो जबर नइए।...

अइसन मनखे ल मुखिया चुनथन काबर,
जेला गरब-गुमान के बतर नइए।...

लहू तो बहुतेच उबलथे तभो ले,
फेर कहूं मेर कइसे गदर नइए।...

सुख-शांति के गोठ तो होथे गजब,
फेर पीरा के भोगइया ल असर नइए।...

सुशील भोले
डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811
ईमेल- sushilbhole2@gmail.com

Wednesday 24 April 2013

साहित्यिक-यात्रा


अनेक साहित्यिक आयोजनों और कवि सम्मेलनों के दौरान आसपास के प्राकृतिक और धार्मिक स्थलों का अवलोकन भी हो जाता है। ये कुछ ऐसे ही चित्र हैं, जो साहित्यिक-यात्रा के दौरान धटित हुए।
1-भुकर्रा महादेव, गरियाबंद। 2-महानदी उद्गम, सिहावा पहाड़। 3-जतमई धाम, राजिम-गरियाबंद।


Monday 22 April 2013

कवयित्री धोंधो बाई



छत्तीसगढ़ी व्यंग्य


माईलोगिन मन के मुँह ह अबड़ खजुवाथे कहिथें। एकरे सेती जब देखबे तब वोमन बिन सोचे-समझे चटर-पटर करत रहिथें। हमरो पारा म एक झन अइसने चटरही हे, फेर ये चटरही ह आजकल 'कवयित्रीÓ होगे हे। बने मोठ-डाँठ हे तेकर सेती लोगन वोला 'कवयित्री धोंधो बाईÓ कहिथें। वइसे नांव तो वोकर 'मीताÓ हे, फेर 'गीताÓ ह जइसे गुरतुर नइ होवय न, वइसने 'मीताÓ ह घलो मीठ नइए। एकदम करू तेमा लीम चढ़े वाला। वइसे तो माईलोगिन होना ह अपन आप म करू-कस्सा ल मंदरस चुपर के परोसने वाली होना होथे, तेमा फेर कवयित्री लहुट जाना ह सिरिफ करू-कस्सा भर ल नहीं, भलुक जहर-महुरा ल मंदरस चुपर के परोसने वाली होना होथे।
वोला कवि सम्मेलन मन म जब ले जाए के चस्का लगे हे, तबले वोहा कवि मनला लुढ़ारे अउ ठगे के चालू कर दिए हे। एक दिन अपनेच ह मोला बतावत राहय- 'का बतावौं सर, अभी तो मोला चारों मुड़ा बगरना हे कहिके ए मन ल ठगत रहिथौं। मोर आदमी 'मेहलाबानीÓ के हावय कहिके एकर मन जगा 'जालÓ फेंकत रहिथौं। अउ जब वोकर मन के माध्यम ले एकाद-दू मंच मिलगे, अउ संग म दू-चार जगा घूमे-फिरे के खरचा ल वोमन उठा डारिन, तहाँ ले चल जा रे रोगहा तोर ले जादा मोर नांव हे कहिके दुत्कार देथौं।Ó
बाते-बात म महूँ पूछ परेंव- 'फेर मंच मन म तो आदमी के नांव ले जादा रचना अउ प्रस्तुति ह मायने रखथे न?Ó
-'कहाँ पाबे सर, आजकाल के आयोजक मन रूप-रंग अउ देंह-पाँव ल जादा देखथें। जेन जतका जादा फेशन करके रहिथे, वो वतके बड़े कवयित्री।Ó
-'अच्छा...Ó मैं बड़ा अचरज ले कहेंव।
-'हाँ सर... मैं ह तो अपन गुरु के लिखे जेन किताब हे न, उही मनला कविता बानी के ढाल लेथौं अउ मंच म उही ल मेंचका बरोबर उदक-उदक के पढ़ देथौं। अरे ददा रे... तहां ले ताली बजइया मन के का कहिबे। नाचा म परी मनला मोंजरा दे खातिर बलाए बर जइसे सीटी ऊपर सीटी पारथें न, तइसने कस चारों मुड़ा ले इसारा कर- कर के ताली बजाथें।Ó
-'अच्छा...Ó मैं अचरज ले कहेंव अउ गुने लागेंव के लोगन मन के कवि सम्मेलन के पसंद ह अइसन कब ले होगे हे। हमन जब पहिली सुने ले जावन, त अपन भाखा-संस्कृति अउ अस्मिता के बात करइया, अपन गौरवपूर्ण इतिहास के चरचा करइया मन ल 'तालीÓ के सुवाद चीखे ले मिलय। फेर अब कइसेे उल्टा होगे हे, कवयित्री मन के देंह-पाँव अउ सुंदरई म 'तालीÓ बजथे कहिथें। फेर इहू सुनथंव के 'कवि सम्मेलनÓ ह 'कवि नाचाÓ के रूप धर लिए हे। 'नाचाÓ म जइसे जोक्कड़ मन लोगन ल हंसाए बर अन्ते-तन्ते गोठियावत अउ मटकावत रहिथें, वइसने 'कवि नाचाÓ  म कवि मन हा-हा, भक-भक वाला चुटकिला सुनावत रहिथें। अउ सुने ले मिलथे के 'पद्मश्रीÓ ह घलोक अइसने मनला मिल जाथे कहिके।
कवयित्री मीता उर्फ धोंधो बाई ह मोला अन्ते-तन्ते गुनत देख के, हलावत कहिस- 'सर...सर... कहाँ चल दे हस? तोला तो संपादक हे कहिथें सर, मोर कविता ल छाप देेबे का?Ó
-'कविता ल... अरे तैं कविता घलोक लिखथस... अभीच्चे तो काहत रेहेस के अपन गुरु के लिखे किताब मनला सुर म ढाल के पढ़थौं कहिके...?Ó
-'त का होगे सर... उही ल तो आजकाल कविता कहिथें। जतका झन पत्र-पत्रिका छापथें, स्मारिका निकालथें, सबो झन तो उही मनला छापथें, त तैं ह काबर नइ छापबे सर...?Ó
-'मोला दूसर मन ले कोनो लेना-देना नइए भई, के वोमन तोर 'काÓ जिनीस ल कविता मान के छापथें ते, फेर मोर जगा तो अइसन नइ चलय।Ó काहत मैं वो तीर ले आगू बढ़ गेंव।

सुशील भोले
संपर्क : 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
 डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811

Saturday 20 April 2013

राम, विष्णु के अवतार हैं या शिव के...?


मित्रों,
अभी आप सभी ने रामनवमी का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया।
आप सभी जानते हैं कि हमारी संस्कृति में त्रिदेव की व्यवस्था है, जिसके अनुसार ब्रम्हा जी निर्माण कार्य करते हैं, विष्णु जी पालन का कार्य करते हैं, और शिव जी संहार का कार्य करते हैं।
अब आप यह बताइये कि राम और कृष्ण ने अपने जीवन में कौन सा कार्य किया? पालनकर्ता का या संहारकर्ता का?
मुझे अपने साधनाकाल में यह बताया गया था कि राम और कृष्ण शिव के अंशावतार थे, इसीलिए उनका जीवन शिव की तरह संहारकर्ता के रूप में व्यतीत हुआ।
सीता का जीवन भी पार्वती की तरह त्याग और तपस्यापूर्ण व्यतीत हुआ न कि लक्ष्मी की तरह वैभवपूर्ण।
आप क्या कहते हैं?
मुझसे इस पते पर भी संपर्क किया जा सकता है-

सुशील भोले
म.नं. 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811
ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com

Wednesday 17 April 2013

मुखौटा ही मुखौटा है...














मुखौटा ही मुखौटा है, अदब के इस जमाने में
जुल्म जो करते, कृपा बरसती उनके तराने में....

कहां जायें किसे मानें, भरोसा हर पल बिखरता है
पाखंड के दौर में, जुगनू सूरज बन फुदकता है
कैसा ये बेशर्म जमाना, डरता नहीं लजाने में....

कैसा रिश्ता कैसा नाता, कैसा प्रेम का बंधन है
हर बात पर छलने वाला, पाता यहां अभिनंदन है
मक्कारों का बाजार सजा है, लगे हैं सच छिपाने में....

लुटेरों ने ग•ाब ढाया, बनाया रूप सेवक का
आवरण साधु का ओढ़ा, फैलाया भ्रम देवत्व का
फिर सेंध लगाये हौले से, जनता के खजाने में....

सुशील भोले
म.नं. 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
 डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811
 ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com

Friday 12 April 2013

बापू तेरे देश में....









सारे बंदर फुदक रहे हैं, लुटेरों के वेश में
क्या सोचे थे, क्या हो गया, बापू तेरे देश में.....

पहला बंदर आंख मंूदकर, सत्ता पर जा बैठा है
मचा हुआ है हाहाकार, पर अचेत वह लेटा है
तांडव कर रहा भ्रष्टाचार, छद्म सेवा के भेष में....

दूसरा बंदर मुंह छिपाकर, जा बैठा मंत्रालय में
सारा समाधान पा जाता, वह बैठे मदिरालय में
फिर खुशहाली का नारा गूंजता , जनता के अवशेष में....

तीसरा बंदर कान दबाकर, तौल रहा है लोगों को
जन-हित को अनसुना कर, बढ़ा रहा उद्योगों को
तब कैसे आयेगा राम राज्य, बापू इस परिवेश में....
                                         सुशील भोले 
                                    संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
                           ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com
                                     मो.नं. 098269 92811  

Monday 8 April 2013

गीत मेरा बन जाता है...


जब-जब पाँवों में कोई कहीं, कांटा बन चुभ जाता है।
दर्द कहीं भी होता हो, पर गीत मेरा बन जाता है।।

मैं वाल्मीकि का वंशज हँू, हर दर्द से नाता रखता हँू
कोई फूल टूटे या शूल चुभे, हर जख्म मैं ही सहता हूँ
क्रंदन करता क्रौंच पक्षी, पर देंह मेरा कंप जाता है.....
                                                   
मैं सावन का घुमड़ता बादल हूँ, सुख की फसलें उपजाता हूँ
कोई राजा हो या रंक सभी को, जीवन गीत सुनाता हूँ
आँखों में किसी की तिनका चुभे, तो आँसू मेरा बह जाता है..
                                                         
मैं श्रमवीरों का सहोदर हूँ, कल-पुर्जों को धड़काता हूँ
देश की हर गौरव-गाथा में, ऊर्जा बन बह जाता हूँ
सीमा पर कभी फन उठता तो, लहू मेरा बह जाता है...

                                                           सुशील भोले
                                             41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
                                         डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
                                          रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811

Friday 5 April 2013

तोर मेहनत के लागा ल.....



(महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में जो भयानक सूखा पड़ा है, और जिसके कारण लोग, खासकर किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उन्हीं किसानों के दु:ख को अभिव्यक्त करता छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखा मेरा यह गीत....)


तोर मेहनत के लागा ल, तोर करजा के तागा ल
उतार लेतेंव रे, मैं ह अपन दुवार म.........

देखत हावौं खेत-खार म जाथस तैं ह
मंझनी-मंझनिया देंह ठठाथस तैं ह
जाड़ न घाम चिन्हस, बरखा न बहार देखस
ठउका उही बेर तोला पोटार लेतेंव रे, मैं ह अपन.......

कहिथें बंजर-भांठा हरियाथे उहें
तोर मेहनत के पछीना बोहाथे जिहें
परबत सिंगार करय, नंदिया दुलार करय
ठउका इही बानी महूं दुलार लेतेंव रे, तोला अपन....

तैं तो दानी म बनगे हस औघड़ दानी
भले नइए तोर बर खदर के छानी
सुख ल तिरियाई देथस, दुख ल कबियाई लेथस
ठउका अइसनेच म तोला जोहार लेतेंव रे, मैं ह अपन....

सुशील भोले
संपर्क : 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
 डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811

Thursday 4 April 2013

चलो दीप जला दें...


चलो दीप फिर आज जला दें,श्रम के सभी ठिकानों पर
नीर बहाते कृषक-झोपड़े, और खेतों के मचानों पर......

आज दृश्य विकराल बड़ा है, मुंह बाएं आकाल खड़ा है
अन्नदाता की झोली खाली, तिस पर सेठ का कर्ज चढ़ा है
नाचे फिर खुशहाली कैसे, उमंग भरे तरानों पर......

बस्तर की सुरकंठी मैना, नक्सल-भाषा सीख गई है
घोटुल सारे उजड़ रहे हैं, इंद्रावती भी रीत गई है
सल्फी-लांदा अब नहीं सुहाते, उत्सव के मुहानों पर....

खेतों पर अब फसल सरीखे, उग रहे हैं कारखाने
गांव-गली में वीरानी पसरी, उजड़ गये हैं आशियाने
ये कैसी परिभाषा विकास की, राजनीति की दुकानों पर....

सुशील भोले
संपर्क : 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
 डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811