Wednesday 31 July 2013

हमर मूल परब-तिहार

* सावन अमावस - हरेली (मांत्रिक शक्ति प्रागट्य दिवस)
* सावन अंजोरी पंचमी - नाग पंचमी (वासुकी जन्मोत्सव)
* सावन पुन्नी - परमात्मा के शिवलिंग रूप म अवतरण दिवस
* भादो अंधियारी छठ - कमरछठ (कार्तिकेय जन्मोत्सव)
* भादो अमावस - पोरा (नंदीश्वर जन्मोत्सव)
* भादो अंजोरी तीज - तीजा (पार्वती द्वारा शिव प्राप्ति खातिर करे गए तप दिवस)
* भादो अंजोरी चौथ - गणेश जन्मोत्सव
* कुंवार अंधियारी पाख - पितर पाख
* कुंवार अंजोरी नवमी - नवरात (माता शक्ति के पार्वती रूप म अवतरण दिवस)
* कुंवार अंजोरी दशमी - दसहरा (समुद्र मंथन ले निकले विष के हरण दिवस)
* कुंवार पुन्नी - शरद पुन्नी (अमरित पाए के परब)
कातिक अंधियारी पाख - कातिक नहाए अउ सुवा नाच के माध्यम ले शिव-पार्वती बिहाव के तैयारी पाख
* कातिक अमावस्या - गौरा-गौरी पूजा (शिव-पार्वती बिहाव परब)
* कातिक पुन्नी ले शिवरात्रि तक - मेला-मड़ई के परब
* अगहन पुन्नी - परमात्मा के ज्योति स्वरूप म प्रगट दिवस
* माघ अंजोरी पंचमी - बसंत पंचमी (शिव तपस्या भंग करे बर कामदेव अउ रति के आगमन के प्रतीक        स्वरूप अंडा पेंड़ गडिय़ाना, नाचना-गाना, सवा  महीना के परब मनाना)
* पूस पुन्नी - छेरछेरा (शिव जी द्वारा पार्वती के घर नट बनके जाके भिक्षा मांगे के परब)
* फागुन अंधियारी तेरस - महाशिवरात्रि (परमात्मा के जटाधारी रूप म प्रगटोत्सव पर्व)
* फागुन पुन्नी - होली या काम दहन परब (तपस्या भंग करे के उदिम रचत कामदेव ल क्रोधित शिव द्वारा तीसरा नेत्र खोल के भस्म करे के परब)
* चैत अंजोरी नवमी - नवरात (माता शक्ति के सती रूप म अवतरण दिवस)
* बइसाख अंजोरी तीज - अक्ति (किसानी के नवा बछर)

( सिरिफ अपन धरम अउ संस्कृति ह मनखे ल आत्म गौरव के बोध कराथे, जबकि दूसर के संस्कृति ह गुलामी के रस्ता देखाथे।)

सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269 92811    
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com                                     

Monday 29 July 2013

डॉ. बघेल जयंती पर मेरा वक्तव्य एवं कविता पाठ

शंकर नगर, दुर्ग के कुर्मी भवन में रविवार 28 जुलाई 2013 को डा. खूबचंद बघेल जयंती कार्यक्रम संत कवि पवन दीवान के मुख्य आतिथ्य एवं पूर्व मंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस अवसर पर विधायक बदरुद्दीन कुरैशी, पूर्व महापौर आर.एन. वर्मा विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में डा. परदेशी राम वर्मा, मुकुंद कौशल एवं सुशील भोले को आमंत्रित किया गया था। इस अवसर पर कल्याण महाविद्यालय, भिलाई के पूर्व प्राचार्य एवं संस्थापक सदस्य श्री टी.एस. ठाकुर को डा. बघेल सम्मान से सम्मानित किया गया।
इस गरिमामय आयोजन में समाज के केन्द्रीय अध्यक्ष श्यामाचरण बघेल, महामंत्री रामसेवक  वर्मा, साहित्यकार संजीव तिवारी, दुर्गा प्रसाद पारकर, अर्जुन पेड़ीडीहा, प्रदीप वर्मा सहित बड़ी संख्या में समाजसेवी एवं साहित्यकार उपस्थित थे। ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डा. खूबचंद बघेल की जयंती के कार्यक्रम को आजकल पूरे प्रदेश में अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है। इस तरह यह जयंती कार्यक्रम लगभग एक माह तक अयोजित होता रहता है।


Sunday 28 July 2013

सवनाही के सोर...













गांव-बस्ती म मचगे हावय, सवनाही के सोर
झमाझम बरखा नाचय रे, संग देवय पवन झकोर....

कड़कड़-कड़कड़ बिजुरी कड़कथे आंखी फरकाथे
ठढ़बुंदिया पानी म सरबस, धरती ल हरसाथे
तब अइसे जनाथे रे, जइसे सम्हर गे हे गली-खोर.....

तरिया-नंदिया घाठ-घठौंदा, गाभिन कस हो जाथे
कब के छोड़े बिरहिन घलो, मंद-मंद मुसकाथे
पिया संग जोड़े खातिर रे, जइसे लमा दिए हे डोर...

गस्ती खाल्हे के शिव-मंदिर म, लोगन के रेला रहिथे
धरे बेल-पाती कंवरिहा, बम-बम भोले कहिथे
तब मया बरसथे रे, शिव-शंकर के घनघोर....

सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269-92811
ब्लॉग -http://www.mayarumati.blogspot.in/
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Thursday 25 July 2013

एक प्रश्न....

   एक राष्ट्र, एक भाषा और एक धर्म की बात करने वाले... एक जाति, एक वर्ण और एक विश्व की बात क्यों नहीं करते..?
   आप क्या कहते हैं...?

Monday 22 July 2013

ये भोले तोर बिना....

(आज से श्रावण मास प्रारंभ हो रहा है...ऐसे में छत्तीसगढ़ी भाषा का एक गीत साझा करना प्रासंगिक हो जाता है...)












जिनगी के चार दिना, कटही कइसे मोर जोंही,
गुन-गुन मैं सिहर जाथौं, ये भोले तोर बिना...

हांसी हरियावय नहीं, पीरा पिंवरावय नहीं
जिनगी के गाड़ी, तोर बिन तिरावय नहीं
श्रद्धा के गांजा-धथुरा, ले के तैं हमरो ल पीना... ये भोले...

उमंग अब उवय नहीं, संसो ह सूतय नहीं
बिपदा के बैरी सिरतोन, छोरे ये छूटय नहीं
तुंहरे हे आसा एक्के, घुरुवा कस झन तो हीना... ये भोले...

तन ह तनावय नहीं, आंसू अंटावय नहीं
मया के कुंदरा जोहीं, छाये छवावय नहीं
भक्ति म भगवान बिना, मुसकिल हे हमरो जीना... ये भोले...
                                           सुशील भोले
                                    संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
                                      मो.नं. 098269 92811

सुराजी वीर अनंतराम बर्छिहा

सत् मारग म कदम बढ़ाके, देश-धरम बर करीन हें काम।
वीर सुराजी वो हमर गरब आय, नांव जेकर हे अनंतराम।।

देश ल सुराज देवाय खातिर जे मन अपन जम्मो जिनिस ल अरपन कर देइन, वोमन म अनंतराम जी बर्छिहा के नांव आगू के डांड़ म गिनाथे। वो मन सुराज के लड़ाई म जतका योगदान देइन, वतकेच ऊँच-नीच, छुआ-छूत, दान-दहेज आदि के निवारण खातिर घलोक देइन, एकरे सेती एक बेरा अइसे घलोक आइस के अनंतराम जी ल अपन जाति-समाज ले अलग घलोक रहे बर लागिस। अछूतोद्धार के कारज खातिर गाँधी जी ह छत्तीसगढिय़ा गाँधी के नांव ले विख्यात पं. सुंदरलाल जी शर्मा के संगे-संग जम्मो छत्तीसगढ़ ल अपन गुरु मानिन, त एमा अनंतराम बर्छिहा जइसन मन के घलोक योगदान हवय।

अनंतराम जी बर्छिहा के जनम छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर ले करीब 24 कि.मी. दूरिहा म बसे गाँव चंदखुरी म 28 अगस्त सन् 1890 म होए रिहिसे। ए मेर ये जानना जरूरी हवय के रायपुर के उत्ती दिशा म बसे ये चंदखुरी ह उही ऐतिहासिक गाँव आय, जेला हमन दुनिया के एकमात्र कौशिल्या मंदिर खातिर जानथन। अनंतराम जी के माता के नांव यशोदा बाई अउ पिता के नांव हिंछाराम जी बर्छिहा रिहिसे।

अनंतराम जी के लइकई उमर के नांव नंदा रिहिसे। उंकर सियान हिंछाराम जी कुल 15 एकड़ खेती के जोतनदार रिहिन हें, एकरे सेती घर के आर्थिक स्थिति थोरुक कमजोर रिहिसे। बाबू नंदा ल चौथी कक्षा के बाद अपन पढ़ाई ल छोड़े बर परगे, अउ एकरे संग वो ह नांगर-बक्खर अउ खेती-किसानी म भीडग़े। इही बीच उंकर सियान सरग के रस्ता चल देइन। अब अतेक बड़ परिवार के जोखा-सरेखा नंदा के खांध म आगे, तेमा अकाल-दुकाल के मार। वो अइसे सुने रिहिसे के व्यापार करे म लछमी के आवक जल्दी होथे, एकरे सेती वो खेती के संगे-संग छोटकुन दुकान घलोक चालू करीस। तीर-तखार के गाँव मन म काँवर म समान धरके घलोक जावय। वोकर मेहनत अउ ईमानदारी ह रंग लाइस, अउ देखते-देखत वो बड़का बैपारी के रूप म अपन चिन्हारी बना डारिस। सिरिफ तीरे-तखार के गाँवेच भर म नहीं भलुक दुरिहा के गाँव मन म घलोक वोकर नांव के डंका बाजे लागिस।

सन् 1920 के बात आय। जब गाँधी जी रायपुर आइन त उंकर दरस करे के साध कर के बर्छिहा जी रायपुर आइन, अउ गाँधी जी के वाणी ल सुन के वो गाँधी जी के अनुयायी बनगें। वो बेरा ह तो स्वतंत्रता संग्राम के बेरा रिहिसे। पूरा देश म एकर लहर चलत रिहिसे, तेकरे सेती जम्मो मनखे के मन म कोनो न कोनो किसम ले सुराज के भावना मन रहिबे करय, त भला अनंतराम वो लहरा ले कइसे बांचे सकत रिहिसे। छत्तीसगढ़ अंचल लोकमान्य तिलक के आंदोलन ले प्रभावित हो चुके रिहिसे। पं. माधवराव सप्रे ह सन् 1900 म 'छत्तीसगढ़ मित्रÓ के प्रकाशन चालू कर डारे रिहिसे। 1903 म भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्थापना रायपुर म होगे रिहिसे। सन् 1907 म स्वदेशी जिनिस मनके दुकान खुलगे रिहिसे। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती 'सामाजिक असमानताÓ के खिलाफ संघर्ष करत बिलासपुर तक आगे रिहिन हें।

एकर प्रभाव पूरा छत्तीसगढ़ म परत रिहिसे। अइसन म युवा अनंतराम के मन म ए सबके प्रभाव कइसे नइ परतीस? बर्छिहा जी के अपन कुर्मी जाति समाज तो पहिलीच ले ए मारग म आगू बढ़ चुके रिहिसे। गाँधी जी के आगमन तो ये सुलगत आगी म घीव के कारज करीसे। अइसन म बर्छिहा जी भला कहाँ पाछू रहितीन, उहू मन अपन दुकानदारी के जम्मो काम-काज ल अपन छोटे भाई सुखराम बर्छिहा के खांध म सौंप के राष्ट्रीय आंदोलन म कूद गें।

सन् 1923 म नागपुर म झंडा सत्याग्रह चालू होइस। छत्तीसगढ़ के जम्मो खुंट ले सत्याग्रही मन नागपुर पहुंचे लागिन। वो सत्याग्रह म भाग लेके छै-छै महीना के सजा घलोक काट आइन। बर्छिहा जी के ये पहली जेल यात्रा रिहिसे, जेला उन नागपुर केंद्रीय जेल म काटिन। वोकर बाद तो उन घर-बार ल छोड़ के गाँव-गाँव अलख जगाये लागिन। एकर सेती उनला सन् 1930 म एक पइत फेर एक बछर के सजा होइस। सन् 1930 के आंदोलन के केंद्र चंदखुरी च गाँव ह बनगे रिहिसे, जेकर प्रसिद्धि पूरा देश भर म होए रिहिसे। वो गाँव के मन अनंतराम बर्छिहा के अगुवई म असहयोग आंदोलन म बड़का भूमिका निभाए रिहिन हें। गाँव-गाँव जाके विदेशी जिनिस मनके बहिष्कार के बात करयं, वो जिनिस मनके होरी बारयं, छुआछूत मिटाए के बात करयं, खादी ग्रामोद्योग के प्रचार करयं, सहभोज के आयोजन करयं, बीमार मनखे मन के सेवा करयं, उनला दवई बांटंयं, गाँव के साफ-सफाई करयं, नान्हें लइका मनला पढ़े खातिर  प्रोत्साहित करयं।

चंदखुरी गाँव वो बखत राष्ट्रीय आंदोलन के गढ़ बनगे रिहिसे। अइसे म  फिरंगी शासन कब तक कलेचुप बइठे रहितीस? गाँव म पुलिस के घेरा डार दिए गेइस। एक बटालियन पुलिस उहां तैनात कर दे गइस। फेर वो पुलिस वाला मनके गुजारा होतिस कइसे? सरकारी व्यवस्था के खिलाफ म तो आंदोलन होवत रिहिसे। पुलिस वाले मनला मांगे म कोनो आगी-पानी तक नइ देवत रिहिन हें। बर्छिहा जी के दुकान म बिसाए म घलोक कोनो समान नइ मिलत रिहिसे। अइसन म पुलिसवाला अउ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन के आपस म ठनना स्वभाविक रिहिसे। ए बगावत के असर आसपास के अउ आने गाँव मन म घलोक बगरत जावत रिहिसे।
एकर जानकारी जिला के अधिकारी मन जगा घलोक पहुंचीस। जिला कप्तान चंदखुरी पहुंचीस अउ उहां के लोगन ल समझाए-बुझाए के उदिम करिस। बर्छिहा जी के दुकान ले समान लेना चाहिस। उंकर जगा संदेश भेजवाइस। जेकर जवाब मिलिस- 'आप हमर इहाँ मेहमान बनके आहू त आपके सुवागत हे, फेर कहूं सरकारी अधिकारी बनके आहू, त आपला हमर असहयोग हे।Ó ए जुवाब ले अधिकारी चिढग़े, अउ पूरा गाँव म कहर मचा देइस। घुड़सवार पुलिस वाला मन पहुंचीन अउ पूरा गाँव ल रौंद डारिन। बर्छिहा जी के दुकान ल लूट डारिन। अतको म उंकर मन नइ माढि़स त घोसना कर डारिन के बर्छिहा जी के दुकान ले जेन कोनो उधारी लिए होहीं वोला वापस झन करे जाय। संग म अनंतराम बर्छिहा के संगे-संग गाँव के अउ सात झनला गिरफ्तार करके जेल भेज देइन। गिरफ्तार लोगन म रिहिन हें- बर्छिहा जी के छोटे भाई सुखराम बर्छिहा, बर्छिहा जी के बड़े बेटा वीर सिंह बर्छिहा, नन्हे लाल वर्मा, गनपतराव मरेठा, हजारीलाल वर्मा, नाथूराम साहू अउ हीरालाल साहू।
बर्छिहा जी के लाखों रुपिया के संपति नष्ट होगे, जेकर निसानी ल आजो देखे जा सकथे। उन सेठ ले फेर फकीर होगे रिहिन हें। तभो ले उनला एक साल के फेर सजा होगे, अउ संग म जुर्माना घलोक लाद देइन। जुर्माना नइ पटाए के सेती उंकर नांगर-बख्खर, गाय-बइला आदि के नीलामी कर दे गइस। बर्छिहा जी के संग ये सिलसिला सन् 1942 तक सरलग चलीस।

सन् 1930-32 के जेल यातना ह आज कस सहज नइ रिहिसे। उंकर मन जगा चक्की चलवायं, घानी म बइला के जगा उनला फांद के तेल पेरवायं, पानी के रहट चलवायं। उनला लोहा के बरतन म खाना देवयं, तेल-साबुन के तो नामे नइ रिहिसे। पहिने खातिर एक जांघिया अउ एक बंडी, कनिहा म बांधे खातिर एक ठन पंछा अउ एक ठन टोपी। बिछाए अउ ओढ़े खातिर दू ठन कमरा अउ एक ठन टाटपट्टी। फेर सत्याग्रही मन म कतकों अइसे राहयं, जेन खादी के छोड़ अउ कोनो जिनिस के उपयोगेच नइ करत रिहिन हें। अनंतराम जी घलोक वइसने खादी धारी रिहिन हें, उन दूसर कपड़ा मनला उपयोग नइ करत रिहिन हें, तेकरे सेती जेल म उन नग्न अवस्था म राहयं। सिरिफ लोक मर्यादा खातिर उन एक ठन कमरा ल लपेट ले राहयं। अइसन खादी व्रतधारी रिहिन हें बर्छिहा जी।

अब चिटिक उंकर सामाजिक क्रांतिकारी रूप के चरचा। सन् 1933 ह अस्पृश्यता निवारण के इतिहास म बहुते महत्वपूर्ण बछर आय। बाबा साहेब अंबेडकर अउ गाँधी जी के बीच होए पुना पेक्ट के अनुसार अस्पृश्यता के कलंक ल मिटाए खातिर पूरा देश म अभियान चालू करिन। छुआछूत के संगे-संग, कुरीती, गरीबी, अज्ञानता, अशिक्षा ल मिटा के स्वावलंबन के रद्दा देखाइन। ये जम्मो बात बर्छिहा जी के अंतस म उतर आइन। अउ ये जम्मो कारज के शुरुवात उन अपनेच घर ले चालू करीन।

वो बखत जम्मो गाँव-घर म छुआछूत के चलन भारी मात्रा म होवत रिहिसे। उन अपनेच गाँव के अइसन जाति कहाने वाला लोगन ल सामाजिक अधिकार देवाए खातिर आंदोलन चलाइन। अइसन जाति-समाज के लोगन मन सार्वजनिक कुंआ ले पानी नइ ले सकत रिहिन हें, वोकर मन खातिर उन अपन घर के कुंआ ल खोलवाइन। मरदनिया मन उंकर हजामत नइ बनावत राहंय, त उन खुद उंकर मनके हजामत बनावयं। धोबी के कारज ल घलोक उन खुदे करयं। उन अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन चलाइन तेकर सुफल ये होइस के उंकर गाँव के मंदिर ह सबो मनखे खातिर खुलगे। गाँव के वातावरण तो उंकर अनुकुल होगे, फेर वोकर खुद के जाति-समाज के मुखिया मनला ये सब बात नइ सुहाइस, अउ उन बर्छिहा जी के परिवार ल अपन जाति ले बाहिर के रद्दा देखा देइन।

उंकर ले रोटी-बेटी के संबंध, पौनी-पसारी के संबंध, घाट-घटौंदा के संबंध जम्मो ल बंद कर दिए गेइस। वो बखत के स्थिति के चित्रण करत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अउ सामाजिक नेता डॉ. खूबचंद बघेल ह लिखे हवयं- 'गाँव के परिस्थिति विस्फोटक होगे रिहिसे। पांचों पवनी माने- नाऊ, धोबी, राउत, मेहर अउ लोहार मन उंकर जम्मो काम-धाम ल छोड़ दिए रिहिन हें। उंकर समाज उंकर संग जम्मो किसम के व्यवहार ल बंद कर दिए रिहिसे, तभो ले बर्छिहा गाँधी जी के आदर्श म चलत मगन राहयं।Ó

वो समय तक मनवा कुर्मी समाज म प्रगतिशीलता आए ले धर लिए रिहिसे। बर्छिहा जी के ही विचार ल मानने वाला एक परिवार उंकर बेटी ल अपन बहू के रूप म ले के समाज ले बहिष्कृत होए बर तइयार होगे। फेर बात अतकेच म नइ बनिस। काबर ते बर्छिहा जी के एक ठन अउ संकल्प रिहिसे के 'न तो वो दहेज लेवय, अउ न दहेज देवय।Ó वो ककरो समझाए म घलोक नइ समझत रिहिन हें। तब वो परिवार वाले मन अइसनो खातिर मानगें।

बर्छिहा जी के जम्मो शर्त ल मानने वाला परिवार दुरुग जिला के सिलघट नामक गाँव के टिकरिहा परिवार रिहिसे। ये बिहाव के जुराव ल मनवा कुर्मी समाज ल दो भाग म बांट देइस। जुन्ना पीढ़ी ए मन ल सबक सिखाए खातिर त नवा पीढ़ी ए नवा सामाजिक सुधार ल लागू करे खातिर। नवा पीढ़ी के वो बखत मुखियाई करत रिहिन हें- डॉ. खूबचंद बघेल, जगन्नाथ बघेल, दुर्गासिंह सिरमौर, प्रेमतीर्थ बघेल, जयसिंह वर्मा, वीरसिंह बर्छिहा के संगे-संग आने समाज के वो समय के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन, जे मन वो बिहाव के पतरी उठाए ले लेके जम्मो किसम के नेंग-जोंग सबो ल करीन।

बर्छिहा जी के बेटी राधबाई ह खादी के साड़ी पहिन के मंडप म बइठिस। भांवर के बाद दहेज के रूप म सिरिफ एक ठन सूत काते के चरखा अउ पानी दे गेइस। अइसन आदर्श बिहाव ये छत्तीसगढ़ अंचल म एकर पहिली कभू नइ होए रिहिसे। आज घलोक अइसन आदर्श के चरचा न तो कहंू सुने ल मिलय अउ न देखे ल। बर्छिहा जी अइसन महापुरुष रिहिन हें, जेन सामाजिक क्रांति के शुरुआत अपनेच घर ले करे रिहिन हें।

बर्छिहा जी म संघर्षशीलता के संगे-संग प्रशासनिक क्षमता घलोक रिहिस हे। उन कई बछर तक तहसील कांग्रेस के अध्यक्ष रिहिन। सन् 1937 म अपन अंचल ले विधायक घलोक बनीन। उन जब तक जीइन दीया बनके जीइन, लोगन बर अंजोर करीन। छत्तीसगढ़ महतारी के ये सपूत ह अपन पूरा जीवन ल देश खातिर समरपित कर देइस। 22 अगस्त सन् 1952 के उन ये नश्वर दुनिया ले बिदा ले लेइन।

सुशील भोले
41-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269 92811

Sunday 21 July 2013

ज्ञान-सार

1- ज्ञान और आशीर्वाद चाहे जहां से भी मिले उसे अवश्य ग्रहण करना चाहिए।
2- दुनिया का कोई भी ग्रंथ न तो पूर्ण है, और न ही पूर्ण सत्य है। इसलिए सत्य को जानने के लिए साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करें।
3- जहां तक सम्मान की बात है, तो दुनिया के हर धर्म और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए, लेकिन जीयें सिर्फ अपनी ही संस्कृति को। क्योंकि अपनी ही संस्कृति व्यक्ति को आत्म गौरव का बोध कराती है, जबकि दूसरों की संस्कृति गुलामी का रास्ता दिखाती है।
                                                                                                                 सुशील भोले
                                                                                                        संस्थापक, आदि धर्म सभा
                                                                                                       संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
                                                                                                           मो.नं. 098269 92811
   

Friday 19 July 2013

शिव कुमार दीपक को डॉ. बघेल अलंकरण

छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल जयंती के अवसर पर 19 जुलाई को भिलाई के कुर्मी भवन में अगासदिया संस्था की ओर से छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध फिल्म एवं रंगमंच कलाकार शिवकुमार दीपक को डॉ. बघेल अलंकरण से सम्मानित किया गया। संत कवि पवन दीवान के मुख्य आतिथ्य एवं पूर्व मंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में आयोजित इस गरिमामय आयोजन में मेरा वक्तव्य एवं कविता पाठ हुआ।  इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय पंडवानी गायिका उषा बारले, डॉ. परदेशी राम वर्मा, मुकुंद कौशल, सुशील भोले सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, कलाकार एवं समाजसेवी उपस्थित थे।



Thursday 18 July 2013

छत्तीसगढ़ : जहां देवता कभी नहीं सोते...

छत्तीसगढ़ की संस्कृति निरंतर जागृत देवताअों की संस्कृति है। यहां की संस्कृति में  आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के चार महीनों को चातुर्मास के रूप में मनाये जाने की परंपरा  नहीं है। यहां देवउठनी पर्व (कार्तिक शुक्ल एकादशी) के दस दिन पूर्व कार्तिक आमावस्या को जो गौरा-गौरी पूजा का पर्व मनाया जाता है, वह वास्तव में  ईसर देव और गौरा का विवाह पर्व है।

यहां पर यह जानना आवश्यक है कि गौरा-गौरी उत्सव को यहां का गोंड आदिवासी समाज शंभू शेक या ईसर देव और गौरा के विवाह के रूप में मनाता है, जबकि यहां का ओबीसी समाज शंकर-पार्वती का विवाह मानता है। मेरे पैतृक गांव में गोंड समाज का एक भी परिवार नहीं रहता, मैं रायपुर के जिस मोहल्ले में रहता हूं यहां पर भी ओबीसी के ही लोग रहते हैं, जो इस गौरा-गौरी उत्सव को मनाते हैं। ये मुझे आज तक यही जानकारी देते रहे कि यह पर्व शंकर-पार्वती का ही विवाह पर्व है। खैर यह विवाद का विषय नहीं है कि गौरा-गौरी उत्वस किसके विवाह का पर्व है। महत्वपूर्ण यह है कि यहां देवउठनी के पूर्व भगवान के विवाह का पर्व मनाया जाता है।

और जिस छत्तीसगढ़ में देवउठनी के पूर्व भगवान की शादी का पर्व मनाया जाता है, वह इस बात को कैसे स्वीकार करेगा कि भगवान चार महीनों के लिए सो जाते हैंं या इन चार महीनों में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाना चाहिए...? वास्तव में छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति में यही चार महीने सबसे शुभ और पवित्र होते हैं, क्योंकि इन्हीं चारों महीनों में ही यहां के प्राय: सभी प्रमुख पर्व आते हैं।

हां... जो लोग अन्य प्रदेशों से छत्तीसगढ़ में आये हैं और अभी तक यहां की संस्कृति को आत्मसात नहीं कर पाये हैं, ऐसे लोग जरूर चातुर्मास की परंपरा को मानते हैं, लेकिन यहां का मूल निवासी समाज ऐसी किसी भी व्यवस्था को नहीं मानता।  उनके देवता निरंतर जागृत रहते हैं, कभी सोते नहीं।

 अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथों के मापदण्ड पर यहां की संस्कृति, धर्म और इतिहास को जो लोग लिख रहे हैं, वे छत्तीसगढ़ के साथ छल कर रहे हैं. यहां के गौरव और प्राचीनता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। एेसे लोगों का हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए। उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए।

सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

Wednesday 17 July 2013

गुरु पूर्णिमा उत्सव....

त्रिमूर्ति मानस परिवार बैहार, आरंग-महानदी द्वारा श्री हीरालाल साहू के संयोजकत्व में रविवार को गुरु पूर्णिमा उत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रदेश मानस संघ के अध्यक्ष सहित सभी पदाधिकारी उपस्थित थे। इस गरिमामय आयोजन में मेरा वक्तव्य एवं कवितापाठ.....



Tuesday 16 July 2013

कवि सम्मेलन संपन्न....

छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डा. खूबचंद बघेल की स्मृति में आयोजित कवि सम्मेलन गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ। प्रदेश के ख्यातिनाम कवि श्री लक्ष्मण मस्तुरिया के मुख्यआतिथ्य में सोमवार 15 जुलाई को आजाद चौक, रायपुर स्थित कुर्मी बोर्डिग के सभा कक्ष में आयोजित इस कवि सम्मेलन में सर्वश्री उपेन्द्र कश्यप, डा. अनिल भतपहरी, राजेन्द्र पाण्डेय, राधेश्याम सिंदुरिया, शकुंतला तरार, नीता कम्बोज, सरिता बघेल, पुष्पा वर्मा आदि ने अपनी-अपनी रचनाअों के माध्यम से खूब तालियां बटोरीं। कवि सम्मेलन का सफल संचालन कवि एवं पत्रकार सुशील भोले ने किया।




Tuesday 9 July 2013

मेरी प्रकाशित कृतियां - 2


 छितका कुरिया
(छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन)
प्रथम संस्करण - अगस्त 1989
कीमत - पांच रुपये
प्रकाशक - मयारु माटी प्रकाशन, रायपुर

 दरस के साध
(छत्तीसगढ़ी लंबी कविता)
प्रथम संस्करण - अगस्त 1990
कीमत - तीन रुपये
प्रकाशक - मयारु माटी प्रकाशन, रायपुर



Friday 5 July 2013

केसेट - लहर - के सुरता

मेरे द्वारा लिखे एवं गाये छत्तीसगढ़ी गीतों का आडियो कैसेट 'लहर का विमोचन सन् 1991 में छ.ग. मनवा कुर्मी समाज के महाधिवेशन स्थल पर संपन्न हुआ था। उसी अवसर का एक चित्र।


Thursday 4 July 2013

तइहा के सुरता...

सन् 1989 में ग्राम-करेला (पाटन) में डॉ. विमल कुमार पाठक की अध्यक्षता में संपन्न कवि सम्मेलन के अवसर पर लिया गया एक चित्र। सुशील वर्मा 'भोलेÓ दाहिने से दूसरे नंबर पर।


जा बदरिया जा ले जा ये संदेश पिया मिलन....

इस गीत को यूटूब में सुनने के लिए क्लिक करें-                                                                                                      http://www.youtube.com/watch?v=--Fr5gK7eO4&feature=youtu.be  

Wednesday 3 July 2013

मोर अंगना म आबे चिरइया मया के गीत

इस गीत को यूटूब पर सुनने के लिए क्लिक करें-                                                                                          http://www.youtube.com/watch?v=XR5AB-ru1uA&feature=youtu.be