Sunday 28 May 2023

छत्तीसगढ़ी म बेरा के चिन्हारी.

*छत्तीसगढ़ी में दिन-रात समय सारिणी।*

1:- भिनसरहा- लगभग 4 बजे सुबह से 5 बजे तक।
2:-झुलझुलहा- सुबह 5 बजे से लगभग 5:30 बजे तक।
3:- पँगपंगहा- सुबह सूर्योदय की लालिमा तक।
4:- बिहनिया- सूर्योदय
5:- गरुवा ढिलाती- लगभग 7 से 8 बजे तक सुबह।
5:- मंझनिया- दोपहर 12 बजे  से लगभग 2 बजे तक।
6:-बेरा ढरकत-2:30 से लगभग 4 बजे तक।
7:- संझा-4 बजे से 5:- 30 लगभग।
8:- बेरा बुड़ती- सूर्यास्त समय( यही समय लगभग आगी बारने का बेरा कहलाता है।
इसे मुंधियार भी कहते हैं)
9:-बियारी के बेरा- रात में खाने का समय।
10:- दु पेटिया बियारी- गर्भवती महिलाओं के खाने का समय जो प्रायः जल्दी होता था। घर के सियान के खा लेने के बाद गर्भवती महिलाओं को जल्दी खाने को कहा जाता है। चूंकि गर्भ में एक पेट(बच्चा) और
होता है इसलिए दु पेटिया कहा जाता है।
11:-अधरतिया- रात्रि 12 बजे से आगे।
12:- सुकवा पहाती- भिनसरहा से थोड़ा पहले ( शुक्र तारा इसे हिंदी में भोर का तारा भी कहते हैं। इसके बाद बेरा झुलझुलहा होने लगता है। ।

जोहार छत्तीसगढ़ -सुशील भोले

Tuesday 23 May 2023

कोंदा-भैरा... के सौ दिन

'कोंदा-भैरा....' के सौ दिन..
    एक बड़का राजनीतिक मनखे के दूमुंहिया चरित्तर ले उठे मन म गुस्सा के प्रदर्शन खातिर सोशलमीडिया म शुरू होय सरलगहा.. 'कोंदा-भैरा के गोठ' ल आज सौ दिन पुरगे.
     पहिली मैं एला दू-चार डांड़ म ही लिखे के कोशिश करत रेहेंव, तेमा आम लोगन घलो डहर चलती एला पढ़ सकय, फेर कतकों अकन ह आठ-दस डांड़ के घलो बाढ़ जावय.
    शुरू म तो ए गोठ-बात म लोगन के गजब प्रतिक्रिया आवत रिहिसे, फेर धीरे-धीरे कमतियाय लगिस, जे ह स्वभाविक घलो हे. रोजेच कोन ह लिखत रइही. तभो एक बात ह मोला एला सरलग लिखे बर प्रोत्साहित करत रहिथे, वो ए के लोगन भले टिप्पणी करे बर ढेरियाथें फेर एकर कतकों भाग ल अपन टाईमलाईन के संगे-संग अउ दूसर समूह मन म शेयर जरूर करत रहिथें. 
    एकर लोगन के पसंद करे के एक अउ बात इहू जनाइस के एक दू अउ लोगन एकरे असन गोठ-बात के शैली म कुछ कुछ लिखे लगिन, भले वोकर मन के लिखना ह सरलग नइ दिखत हे, फेर कोशिश तो करत हें, जे ह ए कोंदा-भैरा के सफलता के सूचक आय.
   पहिली तो एला थोरिक व्यंग्य के शैली म लिखे के उदिम होवत रिहिसे, फेर बीच-बीच म अइसनो विषय आगू म आ जावय जेमा गंभीरता अउ गुनिक लिखई जरूरी असन हो जावय एकरे सेती ए जम्मो गोठ-बात मन म शैली के विविधता आवत गिस.
    कतकों झन अब ए जम्मो गोठ-बात मनला सकेल अउ छांट-निमार के एक किताब के रूप दे के सुझाव दे बर धर लिए हें.
   देखव ए सरलगहा गोठ-बात ह अउ कतका भाग तक चल पाथे ते, काबर ते एकर खातिर रोज नवा विषय के खोजई म मोर आने संदर्भ मन म लिखई-पढ़ई अउ गुनई ह थोरिक अरझे असन होगे हे.
-सुशील भोले-9826992811