Tuesday 29 January 2019

कुंभ स्नान.....

प्रेरक प्रसंग:-
"कुंभ स्नान".......
कुंभ  स्नान चल रहा था। राम घाट पर भारी भीड़ लग रही थी।
शिव पार्वती आकाश से गुजरे। पार्वती ने इतनी भीड़ का कारण पूछा - आशुतोष ने कहा - कुम्भ पर्व पर  स्नान करने वाले स्वर्ग जाते है। उसी लाभ के लिए यह स्नानार्थियों की भीड़ जमा है।
पार्वती का कौतूहल तो शान्त हो गया पर नया संदेह उपज पड़ा, इतने लोग स्वर्ग कहां पहुंच पाते हैं ?
भगवती ने अपना नया सन्देह प्रकट किया और समाधान चाहा।
भगवान शिव बोले - शरीर को गीला करना एक बात है और मन की मलीनता धोने वाला स्नान जरूरी है। मन को धोने वाले ही स्वर्ग जाते हैं। वैसे लोग जो होंगे उन्हीं को स्वर्ग मिलेगा।
सन्देह घटा नहीं, बढ़ गया।
पार्वती बोलीं - यह कैसे पता चले कि किसने शरीर धोया किसने मन संजोया।
यह कार्य से जाना जाता है। शिवजी ने इस उत्तर से भी समाधान न होते देखकर प्रत्यक्ष उदाहरण से लक्ष्य समझाने का प्रयत्न किया।
मार्ग में शिव कुरूप कोढ़ी बनकर पढ़ रहे। पार्वती को और भी सुन्दर सजा दिया। दोनों बैठे थे। स्नानार्थियों की भीड़ उन्हें देखने के लिए रुकती। अनमेल स्थिति के बारे में पूछताछ करती।
पार्वती जी रटाया हुआ विवरण सुनाती रहतीं। यह कोढ़ी मेरा पति है। गंगा स्नान की इच्छा से आए हैं। गरीबी के कारण इन्हें कंधे पर रखकर लाई हूँ। बहुत थक जाने के कारण थोड़े विराम के लिए हम लोग यहाँ बैठे हैं।
अधिकाँश दर्शकों की नीयत डिगती दिखती। वे सुन्दरी को प्रलोभन देते और पति को छोड़कर अपने साथ चलने की बात कहते।
पार्वती लज्जा से गढ़ गई। भला ऐसे भी लोग  स्नान को आते हैं क्या? निराशा देखते ही बनती थी।
संध्या हो चली। एक उदारचेता आए। विवरण सुना तो आँखों में आँसू भर लाए। सहायता का प्रस्ताव किया और कोढ़ी को कंधे पर लादकर  तट तक पहुँचाया। जो सत्तू साथ में था उसमें से उन दोनों को भी खिलाया।
साथ ही सुन्दरी को बार-बार नमन करते हुए कहा - आप जैसी देवियां ही इस धरती की स्तम्भ हैं। धन्य हैं आप जो इस प्रकार अपना धर्म निभा रही हैं।
प्रयोजन पूरा हुआ। शिव पार्वती उठे और कैलाश की ओर चले गए। रास्ते में कहा - पार्वती इतनों में एक ही व्यक्ति ऐसा था, जिसने मन धोया और स्वर्ग का रास्ता बनाया।  स्नान का महात्म्य तो सही है पर उसके साथ मन भी धोने की शर्त लगी है।
पार्वती तो समझ गई कि स्नान  महात्म्य सही होते हुए भी... क्यों लोग उसके पुण्य फल से वंचित रहते हैं?
************(संकलित)**""""""******

Friday 25 January 2019

गणतंत्र दिवस......

गणतंत्र दिवस....
भारत गणराज्य द्वारा  मनाया जाने वाला गणतंत्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है, जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। 26 जनवरी को इसलिए चुना गया था, क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई.एन सी.) ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था।

जय हिन्द..... वन्दे मातरम्....

Thursday 17 January 2019

काया लोंदा होगे रे.....

काया लोंदा होगे रे....
(करमा शैली के इस गीत को तब लिखा गया, जब शरद पूर्णिमा २०१८ को मुझे पक्षाघात का अटैक आया था। चार महीने तक मैं बिस्तर पर रहा। उसी दौरान बिस्तर पर ही इसे लिखा गया था।)

हाय रे हाय रे काया लोंदा होगे रे
अहंकार के बूढ़ना झरगे, काया लोंदा होगे रे.....

ज्ञान-गरब के चादर ओढ़े काया फूले रिहिस
कर्म-दोष अनदेखना बनके एती-ओती झूले रिहिस
हिरना कस मेछरावत सपना तब गोंदा-गोंदा होगे रे......

शरद के वो रात रहिस, अमरित बरसा के आस रहिस
भोलेनाथ के किरपा बर मोला तो बड़ बिसवास रहिस
फेर कोन कोती ले कारी छाया आइस कवि कोंदा होगे रे.....

धूप-छांव तो जिनगी म हमेशा आगू-पाछू आथे
फेर अइसन बेरा ह लोगन ल आत्म समीक्षा करवाथे
तब जानबा होथे कोन अपन अउ कोन स्वारथ के बोंडा हे....

धन ल छोड़ जन के पाछू हमेशा भागत राहंव
एकरे सेती ताना, गारी अउ अपमान पावत राहंव
जन-भावना के समंदर पा आज वो फैसला मोर हुड़दंगा होगे रे.....
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

काया लोंदा होगे रे.....

काया लोंदा होगे रे....
(करमा शैली के इस गीत को तब लिखा गया, जब शरद पूर्णिमा २०१८ को मुझे पक्षाघात का अटैक आया था। तीन महीने तक मैं बिस्तर पर रहा। बिस्तर पर ही इसे लिखा गया था।)

हाय रे हाय रे काया लोंदा होगे रे
अहंकार के बूढ़ना झरगे, काया लोंदा होगे रे.....

ज्ञान-गरब के चादर ओढ़े काया फूले रिहिस
कर्म-दोष अनदेखना बनके एती-ओती झूले रिहिस
हिरना कस मेछरावत सपना तब गोंदा-गोंदा होगे रे......

शरद के वो रात रहिस, अमरित बरसा के आस रहिस
भोलेनाथ के किरपा बर मोला तो बड़ बिसवास रहिस
फेर कोन कोती ले कारी छाया आइस कवि कोंदा होगे रे.....

धूप-छांव तो जिनगी म हमेशा आगू-पाछू आथे
फेर अइसन बेरा ह लोगन ल आत्म समीक्षा करवाथे
तब जानबा होथे कोन अपन अउ कोन स्वारथ के बोंडा हे....

धन ल छोड़ जन के पाछू हमेशा भागत राहंव
एकरे सेती ताना, गारी अउ अपमान पावत राहंव
जन-भावना के समंदर पा आज वो फैसला मोर हुड़दंगा होगे रे.....
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Monday 14 January 2019

मूल संस्कृति के पुनर्लेखन के लिए मुख्यमंत्री को ज्ञापन

मूल संस्कृति के पुनर्लेखन को लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन.....
रायपुर। "आदि धर्म जागृति संस्थान के द्वारा छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति को यहां के मूल निवासी वर्ग के विद्विनों एवं लेखकों की देखरेख में नये सिरे से लिखवाए जाने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री माननीय भूपेश बघेल को ज्ञापन सौंपा गया।
आदि धर्म जागृति संस्थान के अध्यक्ष सुशील भोले, संगठन सचिव सत्यभामा ध्रुव, रायपुर जिला प्रभारी कृष्ण कुमार वर्मा, भोलेश्वर साहू, वेंकटेश्वर वर्मा आदि ने आज मुख्यमंत्री के निवास पर उनसे मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा।
ज्ञापन में कहा गया है कि जिस तरह कुंभ के नाम पर यहां की मेला-मड़ई की संस्कृति को बिगाड़ने का प्रयास किया गया था, ठीक ऐसा ही यहां की मूल संस्कृति और इतिहास के लेखन में भी गड़बड़ किया गया है, जिसे यहां के मूल निवासी वर्ग के विद्वानों एवं लेखकों के मार्गदर्शन में नये सिरे से लिखा जाना चाहिए।

Saturday 12 January 2019

छत्तीसगढ़ के 36 गढ़.।.

छत्तीसगढ़ के 36 गढ़...
छत्तीसगढ़ में कलचुरी शासन में कलचुरियों ने दो शाखाएं बनाई थीं। शिवनाथ के उत्तर में रतनपुर शाखा और दक्षिण में रायपुर शाखा। इन दोनों ही शाखाओं में 18-18 गढ़ थे। दोनों शाखाओं के संयुक्त इन्हीं 36 गढ़ों के नाम पर ही हमारे इस प्रदेश का नाम छत्तीसगढ़ प्रदेश माना जाता है।
आइए जानें उन 36 गढ़ों के नाम......
रतनपुर शाखा के अंतर्गत...
रतनपुर, विजयपुर, खरोद, मारो, कोटगढ़, नवागढ़, सोंधी, ओखर, पडरभठ्ठ, सेमरिया, मदनपुर, लाफा, कोसागाई, केंदा, मातीन, उपरौरा, पेंड्रा, कुरकुट्टी।
रायपुर शाखा के अंतर्गत.....
रायपुर, पाटन, सिमगा, सिंगारपुर, लवन, अमीर, दुर्ग, सारधा, सिरसा, मोहदी, खल्लारी, सिरपुर, फिंगेश्वर, सुवरमाल, राजिम, सिंगारगढ़, टेंगनागडझ, अकलवाड़ा।

Thursday 10 January 2019

आदि धर्म जागृति संस्थान ल सहयोग कर सकथव.....

"आदि धर्म जागृति संस्थान" ल सहयोग कर सकथव.....
छत्तीसगढ़ के मूल धर्म-संस्कृति,भाखा, इतिहास, गौरव अउ जम्मो अस्मिता के आरुग चिन्हारी खातिर जमीनी बुता म भीड़े "आदि धर्म जागृति संस्थान" संग खांध म खांध मिला के जुड़े अउ आर्थिक रूप ले सहयोग कर हमर कारज म बढ़ोत्तरी दे खातिर हमर बैंक खाता म सहयोग राशि जमा कर सकत हव।
बैंक अउ खाता के विवरण-
खाताधारी का नाम - आदि धर्म जागृति संस्थान, रायपुर
Account - aadi dharm jagriti sansthan, raipur
बैंक - बैंक ऑफ बड़ौदा
Bank of Baroda
शाखा - जी. ई. रोड, रायपुर
Branch : G E Road, RAIPUR
IFSC : BARB0GEROAD (नोट- IFSC code का पांचवां अंक 0 शून्य है)
Account Number : 31810100008718
अउ जादा जानकारी खातिर संस्था के रायपुर स्थित कार्यालय या मोबा. नं. 9826992811 म गोठबात कर सकथव😊
धन्यवाद...💐 सादर जोहार💐

Wednesday 9 January 2019

कब पोंछाही छत्तीसगढ़ी अस्मिता के आंसू..,?

कब पोंछाही अस्मिता के आंसू...?
छत्तीसगढ़ आज अपनी अस्मिता की स्वतंत्र पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है। जिस मानक पर राज्य निर्माण की आधारशिला रखी गई थी, उसे स्थापित करने के लिए छटपटा रहा है। प्रश्न यह है कि राज्य निर्माण के 18 वर्षों के बीत जाने के बाद भी ऐसी स्थिति क्यों है? क्या इसके लिए सरकार के तंत्र पर बैठे लोग जिम्मेदार हैं, या वे लोग जो अस्मिता के नाम धंधा कर रहे हैं, दलाली कर रहे हैं?
निश्चित रूप से यह चिंतन का विषय है। क्योंकि आज अस्मिता का अर्थ बोली-भाषा और केवल नाचा-गम्मत को ही बताया जा रहा है। इसके नाम पर काम करने वालों को केवल 'परी' जैसे 'सम्हरा' कर तमाशा करना सिखाया जा रहा है। जो इसका मूल तत्व है, उसे पूरी तरह से छिपाया जा रहा है।
मैं जिस अस्मिता की बात करता हूं, वह यहां की मूल अध्यात्म आधारित संस्कृति है। जिसे यहां पूरी तरस से कुचला जा रहा है। खासकर पूर्ववर्ती सरकार में जो लोग यहां की सत्ता पर काबिज थे, वे लोग यहां की अस्मिता को रौंदने, उसे बिगाड़ने, भ्रमित करने में जितनी तत्परता दिखाई, उतना इतिहास में कभी नहीं हुआ था।
जिस तरह से राष्ट्रीयता के नाम पर यहां के मूल निवासियों के हाथों से राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक अधिकारों को छीना गया, उसके ऊपर अन्य प्रदेशों से लाए गये मोहरों को बिठाया गया। ठीक उसी तरह ही कथिक हिन्दुत्व के नाम पर यहां की मूल अध्यात्म आधारित संस्कृति को रौंदा गया।
हमारी मेला-मड़ई की संस्कृति को बिगाड़ कर उसके ऊपर फर्जी कुंभ थोप दिया गया। अन्य प्रदेशों के भूखे-भिखमंगों को किराए में लाकर साधू-संत बना दिया गया है। जहां तक यहां के इतिहास की बात है, तो उसे उत्तर भारत में लिखे गये ग्रंथों के मानक पर परिभाषित किया जा रहा था।
प्रश्न यह है, कि उत्तर भारत के प्रदेशों में वहां के मापदण्ड पर लिखे गये ग्रंथ या संदर्भ साहित्य छत्तीसगढ़ के लिए मानक कैसे हो सकते हैं? जिन ग्रंथों में छत्तीसगढ़ की संस्कृति को, यहां के इतिहास और गौरव को लिखा ही नहीं गया है। वह छत्तीसगढ़ के लिए धर्म ग्रंथ कैसे हो सकता है? जबकि यहां पर अपनी स्वयं की मौलिक उपासना पद्धति है, जीवन शैली है। फिर इसे किसी उधारी की विधियों से क्यों परिचित करा कर भ्रमित किया जाता रहा है?
जहां तक यहां की राजनीति से जुड़े, खासकर कथित राष्ट्रीय पार्टियों से जुड़े लोगों को कभी भी यहां की अस्मिता के लिए ईमानदार राजनीतिज्ञ की भूमिका में नहीं देखा गया। सरकार के पिछलग्गू बने कथित संस्कृति कर्मियों, साहित्यकारों, पत्रकारों और बुद्धीजीवियों को भी सत्य के पैमाने पर ढुलमुल ही देखा गया। यही वजह है, आज छत्तीसगढ़ अपनी अस्मिता की स्वतंत्र पहचान के लिए आंसू बहा रहा है। अपनी धरती पर अपने लोगों के बीच उसकी स्वतंत्र पहचान के लिए छटपटा रहा है।
नई सरकार के वर्तमान कार्यों को देखकर, इनसे काफी उम्मीद बढ़ गई है, कि अब अस्मिता की आंखों से आंसू पोंछा जाएगा। छत्तीसगढ़ी में कहावत है ना- "घुरूवा के दिन बहुरथे, त हमरो अस्मिता अउ गौरव के दिन बहुरही'"।
जय हो छत्तीसगढ़ी चिन्हारी🙏🌷
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान
संजय नगर, रायपुर
मो.व्हा. 9826992811

आदि धर्म जागृति संस्थान का उद्देश्य.....

आदि धर्म जागृति संस्थान का उद्देश्य-
1- छत्तीसगढ की मूल संस्कृति एवं सम्पूर्ण अस्मिता के संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार के लिए विविध कार्यों का क्रियान्वयन करना।
2- अंचल के विभिन्न विद्वान वक्ताओं की संगोष्ठी एवं सभा के माध्यम से मूल संस्कृति एवं अस्मिता के लिए जनजागरण का कार्य करना।
3- संस्कृति से संबंधित साहित्य को स्थायित्व प्रदान करने के लिए आवश्यकता अनुरूप पत्र-पत्रिका, स्मारिका  एवं विविध आलेखों का प्रकाशन करवाना।
4- भजन मंडली जैसी संस्थाओं के माध्यम से आध्यात्मिक जागरण एवं मूल संस्कृति-परंपरा का प्रचार-प्रसार करना।
5- आवश्यकता के अनुरूप आध्यात्मिक आश्रम का संचालन करना।
6- समाज कल्याण हेतु असहायों की सहायता करना। जैसे-गरीबों, विकलांगों, निःशक्तजनों, वृद्धजनों आदि की मदद करना।
7- धर्मार्थ औषधालय, वृद्धाश्रम एवं दिव्यांजनों की सेवा के आश्रम आदि का संचालन करना।
8- विभिन्न जन-कल्याणकारी  शासकीय, अर्द्धशासकीय, अशासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में भागीदारी एवं सहयोग करना।
9- लोककला, लालित्यकला,नाट्यकला एवं लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों, लोक विधाओं तथा कलाकारों को प्रोत्साहित करना।

खुद धरव धरम के झंडा....

कतेक भटकहू पर के पाछू खुद धरौ धरम के झंडा
पुरखा मन सम्हाल रखे हें जे आदि काल के हंडा
भरे लबालब हे गुन म बस एला तुम कबिया लेवव
नइ ठगहीं फेर तुंहला कोनोच जात-धरम के पंडा
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान
संजय नगर, रायपुर
मो. 9826992811

Tuesday 8 January 2019

अस्मिता की आत्मा : संस्कृति

अस्मिता के आत्मा आय संस्कृति.....
आजकाल 'अस्मिता" शब्द के चलन ह भारी बाढग़े हवय। हर कहूँ मेर एकर उच्चारन होवत रहिथे, तभो ले कतकों मनखे अभी घलोक एकर अरथ ल समझ नइ पाए हे, एकरे सेती उन अस्मिता के अन्ते-तन्ते अरथ निकालत रहिथें, लोगन ल बतावत रहिथें, व्याख्या करत रहिथें।

अस्मिता असल म संस्कृत भाषा के शब्द आय, जेहा 'अस्मि" ले बने हे। अस्मि के अर्थ होथे 'हूँ"। अउ जब अस्मि म 'ता" जुड़ जाथे त हो जाथे 'अस्मिता" अउ ये दूनों जुड़े शब्द के अरथ होथे- 'मैं कोन आँव?", मैं कौन हूँ?, मेरी पहचान क्या है?, मोर चिन्हारी का आय? अब ये बात ल तो सबो जानथें के हर मनखे के या क्षेत्र के चिन्हारी वोकर संस्कृति होथे। एकरे सेती हमन कहिथन के जे मन छत्तीसगढ़ के संस्कृति ल जीथे वोमन छत्तीसगढिय़ा। अइसने जम्मो क्षेत्र के लोगन के निर्धारण उंकर संस्कृति संग होथे।

एक बात इहाँ ध्यान दे के लाइक हे के भाषा ह संस्कृति के संवाहक होथे, वोकर प्रवक्ता होथे, एकरे सेती कोनो क्षेत्र विशेष के भाषा भर ल बोले म कोनो मनखे ल वो क्षेत्र के मूल निवासी नइ माने जा सकय। अब हमन छत्तीसगढ़ के संदर्भ म देखन। इहाँ के मातृभाषा छत्तीसगढ़ी ल आज इहाँ के मूल निवासी मन के संगे-संग बाहिर ले आके रहत लगभग अउ जम्मो लोगन थोक-बहुत बोलबेच करथें, तभो ले उनला हम छत्तीसगढ़ के मूल निवासी नइ मानन, काबर उन आजो इहाँ रहि के घलोक अपन मूल प्रदेश के संस्कृति ल जीथें।

पंजाब ले आये मनखे पंजाब के संस्कृति ल जीथे, बंगाल ले आये मनखे बंगाल के संस्कृति ल जीथे, अउ अइसने आने लोगन घलो अपन-अपन मूल प्रदेश के संस्कृति ल ही जीथें, उही संस्कृति के अंतर्गत इहाँ कतकों किसम के आयोजन  घलोक करत रहिथें। ए ह ए बात के चिन्हारी आय के वो ह आज घलोक छत्तीसगढ़ के 'चिन्हारी" ल अपन 'चिन्हारी" नइ बना पाए हे, इहाँ के अस्मिता ल आत्मसात नइ कर पाए हें। अउ जब तक वो ह इहाँ के अस्मिता ल आत्मसात नइ कर लेही तब तक वोला छत्तीसगढिय़ा नइ माने जा सकय।

हम ए उदाहरण म भारत ले जा के विदेश म बसे लोगन मनला घलोक शामिल कर सकथन। आज घलो अइसन लोगन ल हम भारतीय मूल के लोगन कहिथन, भारतीय संस्कृति ल विदेश म बगराने वाला कहिथन काबर ते उन आने देश म रहि के घलोक भारत के संस्कृति ल जीथें, भारत के तिहार-बार ल मनाथें। जबकि उहाँ बसे अइसे कतकों लोगन हें, जे मन भारत के भाषा ल भुलागे हवंय, फेर संस्कृति ल आजो धरे बइठे हावंय।

क्रिकेट खेले बर इहाँ वेस्ट इंडीज के जेन टीम आथे, वोमा अइसन कतकों झन रहिथें, जे मन भारतीय मूल के होथें, उंकर मनके नाम घलोक शिवराम चंद्रपाल जइसन भारतीय किसम के होथे, फेर उन इहाँ के भाषा ल नइ बोले सकयं। भाषा उहें के बोलथें जिहाँ अब रहिथें, तभो ले उनला भारतीय मूल के कहे जाथे, काबर ते वोकर पहिचान के या कहिन के चिन्हारी के मानक संस्कृति होथे।

अब हम छत्तीसगढ़ के संस्कृति के बात करन या कहिन के अस्मिता के बात करन। त सबले पहिली ए बात उठथे के छत्तीसगढ़ के संस्कृति का देश के आने भाग म पाए जाने वाला संस्कृति ले अलग हे? त एकर जवाब हे- हाँ बहुत अकन परब-तिहार अउ रिति-रिवाज अलग हे, अउ उही अलगे मनके सेती हम छत्तीसगढ़ ल एक अलग साँस्कृतिक इकाई मानथन, जेकर सेती ए क्षेत्र ल एक अलग राज के रूप म मान्यता दे गे हवय। वइसे कुछ अइसे घलोक तिहार-बार हे, जेला पूरा देश के संगे-संग छत्तीसगढ़ म घलोक मनाए जाथे, फेर जब अलग चिन्हारी के बात आथे त अइसन मनला अलगिया दिए जाथे।

अब प्रश्न ये उठथे के अइसन का अलग हे, जेन संस्कृति ल आने प्रदेश म नइ जिए जाय? त ए बात ल सब जानथें के मैं ह इहाँ के मूल संस्कृति ऊपर पहिली घलोक अड़बड़ लिखे हौं, अउ बेरा-बेरा म एकर ऊपर चरचा-भासन घलोक दिए हौं, तभो ले कुछ रोटहा बात ल थोक-मोक फेर करत हावंव।

सबले पहिली छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति का आय, तेला फोरिया लेथन? काबर ते आज इहां के संस्कृति के जेन रूप देखाए जावत हे, वोकर मानकीकरण ल गलत करे जावत हे। असल म कोनो भी क्षेत्र या प्रदेश के संस्कृति के मानक उहाँ के मूल निवासी मन के संस्कृति होथे, बाहिर ले आके इहाँ बस गे लोगन मन के संस्कृति ह नइ होवय, फेर कोन जनी इहाँ के तथाकथित विद्वान मनला का मनसा भरम धर लिए हे, ते उन इहाँ के मूल निवासी मनके संस्कृति ल एक डहर तिरिया दिए हें, अउ बाहिर ले आए लोगन मन के संस्कृति ल छत्तीसगढ़ के संस्कृति के रूप म लिखत-पढ़त हें।

ये ह असल म इतिहास लेखन संग दोगलागिरी करना आय, तभो ले कुछ लोगन ए दोगलागिरी ल पूरा बेसरमी के साथ करत हें। एमा वो लोगन मन के संख्या जादा हे, जे मन उत्तर भारत ले आ के इहाँ बसे हवंय, एकरे सेती उन अस्मिता के आत्मा के रूप म संस्कृति ल छोड़ के भाषा ल बतावत रहिथें। काबर ते उन ए बात ल अच्छा से जानथें के जब इहाँ के मूल संस्कृति के बात करबो तब तो हमूँ मन गैर छत्तीसगढिय़ा हो जाबो, बाहिरी हो जाबो, काबर ते छत्तीसगढ़ के संस्कृति ल तो उहू मन नइ जीययं।

अब कुछ मूल संस्कृति के बात। त सबले पहिली वो चातुर्मास के बात जेला चारोंखुंट मनाथें, फेर जे छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति म लागू नइ होय। अइसे कहिथें के चातुर्मास के चार महीना म देंवता मन बिसराम करथें या कहिन के सूत जाथें, एकरे सेती ए चार महीना (सावन, भादो, कुंवार अउ कातिक) म कोनो भी किसम के शुभ कारज (माँगलिक कार्य, जइसे- बर-बिहाव आदि) नइ करे जाय।

अब हम छत्तीसगढ़ के परब-तिहार के बात करन त देखथन के इहाँ ईसरदेव अउ गौरा के बिहाव के परब ल 'गौरा पूजा" या 'गौरी-गौरा" के रूप म इही चातुर्मास के भीतर माने कातिक महीना के अमावस्या तिथि म मनाए जाथे। अब प्रश्न उठथे, के जब इहां के बड़का भगवान के बिहाव ह देवउठनी माने  चातुर्मास सिराये के पहिली हो जाथे, त ए चातुर्मास के रिवाज ह हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति म कहाँ लागू होइस?

मोर तो ए कहना हे के छत्तीसगढ़ के संस्कृति म चातुर्मास के इही चारों महीना ल सबले जादा शुभ अउ पवित्र माने जाथे, काबर ते इही चारों महीना- सावन, भादो, कुंवार, कातिक म ही छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति के जम्मो बड़का परब मन आथें, जेमा हरेली ले लेके कातिक पुन्नी ले चालू होवइया मेला-मड़ई परब ह आथे।

अब एक अइसे बड़का तिहार के चरचा जेला पूरा देश म मनाए जाथे, फेर वोकर कारण अउ स्वरूप म बाहिर म अउ छत्तीसगढ़ म थोर-बहुत फरक होथे, वो तिहार आय होली। होली के बारे ए बात ल जानना जरूरी हे के छत्तीसगढ़ म एला 'काम दहन" के रूप म मनाए जाथे, जबकि देश के आने भाग म 'होलिका दहन" के सेती। होलिका दहन ल सिरिफ पाँच दिन के मनाए जाथे, जे ह फागुन पुन्नी ले लेके रंग पंचमी (चइत महीना के अंधियारी पाख के पंचमी) तक चलथे। छत्तीसगढ़ म जेन 'काम दहन" मनाए जाथे वोला चालीस दिन के मनाए जाथे- बसंत पंचमी (माघ महीना अंजोरी पाख के पंचमी) ले लेके फागुन पुन्नी तक।

बिल्कुल अइसने दसरहा के बारे म जानना घलोक जरूरी हे। काबर के इहू परब ल छत्तीसगढ़ म अउ देश के आने भाग म अलग-अलग कारण के सेती मनाए जाथे। जिहाँ देश के आने भाग म एला 'रावण वध"  के सेती मनाए जाथे, उहें छत्तीसगढ़ म 'विष हरण" माने 'दंस हरन" के रूप म मनाए जाथे। हमर बस्तर म जेन रथ यात्रा के परब मनाए जाथे वो असल म मंदराचल पर्वत के मंथन अउ वोकर बाद निकले विष के हरण के परब आय।

अस्मिता के जब बात होथे त भाषा अउ इतिहास के बात घलोक होथे। काबर ते इहू मन अस्मिता माने 'चिन्हारी" के अंग आयं। जिहाँ तक भाषा के बात हे त हीरालाल काव्योपाध्याय द्वारा सन् 1885 म लिखे छत्तीसगढ़ी भाखा के व्याकरण संग एकर प्रकाशित रूप हमर आगू म हवय, जेला अब इहाँ के राज सरकार ह प्रदेश म 'राजभासा" के दरजा दे दिए हवय, फेर केन्द्र सरकार के माध्यम ले संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल करे के बुता ह अभी घलोक बाँचे हवय।

आज छत्तीसगढ़ी भाखा म हर विधा के अंतर्गत रचना करे जावत हे, अउ अच्छा रचना करे जावत हे, जेला राष्ट्रीय स्तर के आने भाखा के साहित्य  मन संग तुलना करे जा सकथे। नवा पीढ़ी के रचनाकार मन म अच्छा उत्साह देखे जावत हे, जे मन ल इहां के पत्र-पत्रिका मन म प्रकाशन के अवसर घलोक अच्छा मिलत हे। सबले बढिय़ा बात ये हे के इंटरनेट के आधुनिक तकनीक के प्रयोग घलोक ह छत्तीसगढ़ी भाखा ल देश-दुनिया के चारों खुंट म पहुंचावत हे। ए सबला देख के लागथे के छत्तीसगढ़ी के आने वाला बेरा ह चमकदार रइही।

आखिरी म इतिहास के घलोक खोंची भर बात हो जाय। काबर ते इहाँ जेन किसम के इतिहास लेखन होवत हे वोकर ले मैं भारी नराज हावंव। ए देखे म आवत हे के अधकचरा जानकारी रखने वाले मन इहां इतिहासकार अउ गुन्निक बनके सबला चौपट करत हवयं। संग म इहू देखे म आवत हवय के कुछ वर्ग विशेष के मनखे मन जानबूझ के आने वर्ग के लोगन मन के बड़े-बड़े कारज मन के घलोक उपेक्षा करत हें। एमा विश्वविद्यालय मनके भूमिका घलोक ह बने नइ लागत हे। भलुक ए कहना जादा ठीक होही के आँखी मूंद के पीएचडी के डिगरी ल बांटे जावत हे। ए सब दुखद हे। भरोसा हे के ईमानदार आँखी के माध्यम ले ये सबला नवा सिरा से देखे जाही।

सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर
मो.नं. 098269-92811