Saturday 22 October 2022

अन्न तेरस.. धान तेरस..

अन्न तेरस.. धान तेरस..
    अन्न तेरस .. धान तेरस.. ए ह तइहा जमाना ले चले आवत पूर्ण रूप ले कृषि संस्कृति अउ किसानी सभ्यता के प्रतीक स्वरूप पवित्र तिहार आय.
    फसल उत्सव ले पहली अन्न पूजा (अन्न तेरस, धान तेरस) के अब्बड़ अकन बधाई...
    अन्न तेरस म अन्न पूजा ल महत्व प्रदान करव संगी हो, इही हमर कृषि संस्कृति के मूल रूप आय।
   क्षअनावश्यक खर्चा अउ व्यापारी मनके शुभ मुहूर्त के नाम म भरमई-भटकई ले बांचव.
     धान तेरस के असली उत्सव इही फेर अब ए अन्न उत्सव ल व्यापार उत्सव के रूप म खड़ा कर दे गे हे।
    अन्न तेरस धान्य यानी धान 🌾🌾तेरस में खेत मन के पूजा, अन्न के पूजा प्रकृति पेड़ पौधा मन  के पूजा करे तिहार आय। जुन्ना बेरा म हर किसान आज के दिन  अपन खेत के मेड़ म पौधा लगावत रिहिसे अउ धान संग्रह करके उत्सव मनावत रिहिसे,  के अब हमन जम्मो जीवजगत बर, प्राणिजगत बर अन्न उपजाय के रूप म जीविकोपार्जन के व्यवस्था कर डरेन । असली म ए परब ह प्रकृति ल धन्यवाद दे के परब आय ..
धान्य तेरस के  मंगल कामना  .. गाड़ा-गाड़ा बधाई.. जोहार ..🌾🌾

Friday 21 October 2022

हेमनाथ वर्मा 'विकल' सुरता..

10 अप्रैल पुण्यतिथि म सुरता//
परमानंद भजन मंडली के त्रिमूर्ति गुरु म शामिल रहिन 'विकल' जी
    वो बेरा म जब जनरंजन के साधन बहुते कम रिहिसे, तब इहाँ के गाँव गाँव म बगरे छोटे छोटे भजन मंडली मन ही एकर पूरक के सबले बड़े माध्यम रिहिस. ए मंडली वाले मन न सिरिफ राम, कृष्ण  शंकर, दुर्गा या अउ देवी-देवता मनले संबंधित आध्यात्मिक भजन के गायन-प्रदर्शन करॅंय, भलुक बेरा-बखत के गीत, जस, सोहर, फाग संग विविध गायन-वादन करॅंय वो बखत इंकर मनके रचनाकार जेला ए मंडली वाले मन उस्ताद या गुरु कहंय. उनमा तीन नॉंव प्रमुख रिहिस- बद्रीविशाल यदु 'परमानंद', सूरजबली शर्मा अउ हेमनाथ वर्मा 'विकल'.

    छत्तीसगढ़ के चारों खुंट करीब 120 भजन मंडली जे परमानंद भजन मंडली के नाम ले चलय, एमा के कतकों मंडली म मैं इन तीनों गुरु रचनाकार मनके फोटो ल एकसाथ फ्रेम कराए वाले देखे रेहेंव. आमतौर म लोगन इंकर लिखे रचना मनला तो सुनंय, फेर वोकर रचनाकार कोन आय, ए बात ल नइ जान पावत रिहिन हें, एकरे सेती वो मनला लोकगीत या लोकभजन के रूप म चिन्हारी मिल जावत रिहिसे.

    हेमनाथ वर्मा 'विकल' के किताब 'चुरुवा भर पानी' के भूमिका लिखत वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. विमल पाठक जी अइसने बखत के सुरता करत लिखे हें- मैं गाँव गाँव म भजन मंडली वाले मन के द्वारा रामचरितमानस के विविध प्रसंग ल छत्तीसगढ़ी म बड़ा तन्मयता के साथ सुनंव, फेर वोकर मनके रचनाकार कोन आय ए बात ल नइ जानत रेहेंव. फेर अब जब 'विकल' जी के रामचरितमानस के छत्तीसगढ़ी भावानुवाद 'चुरुवा भर पानी' के भूमिका लिखत बेरा उंकर रचना मनला पढ़ेंव, त जानेंव के वो सब तो विकल जी के लिखे आय. तब मोला खुशी होइस, के मोर कवि मित्र के ए सब रचना आय, जेमन ल मैं लोकभजन अउ लोककवि के रूप भर म समझत रेहेंव.

    भिलाई 3 के सियान इतवारी राम वर्मा अउ महतारी थनवारिन देवी घर 2 सितम्बर 1937 के जनमे हेमनाथ वर्मा 'विकल' के आमतौर म चिन्हारी भजन मंडली खातिर आध्यात्मिक रचनाकार के रूप म रिहिसे. फेर वोमन कवि मंच के लोकप्रिय हास्य कवि घलो रिहिन. मैं जब 'मयारु माटी' निकाले के चालू करेंव, अउ उंकर जगा गद्य साहित्य म बहुत कम लेखन होए के गोठ करेंव, त उन गद्य म हास्य-व्यंग्य घलो लिखत रिहिन हें, जेला हमन सरलग 'मयारु माटी' म छापत रेहेन. विकल जी गीत विधा के घलो जबर हस्ताक्षर रिहिन. उंकर गीत मनला चंदैनी गोंदा, आमामऊर, माटी के देवता, नवा अंजोरी पखरा फूल, मोर गंवई गाँव, तुलसी चौरा, नवा बिहान, अमरबेल, उवत किरन जइसन सांस्कृतिक मंच वाले मन तो गाबेच करंय कतकों पंडवानी लोककला मंच वाले मन घलो गावंय.

    उंकर रचना मन हमर 'मयारु माटी' म तो छपबेच करय. एकर संगे-संग अउ कतकों पत्र-पत्रिका मन म घलो छपत राहय. वइसे उंकर दू किताब घलो छपे रिहिसे-1- पसर भर फूल, अउ 2- चुरुवा भर पानी. एकर मनके छोड़े श्रीकृष्ण चरित्र ऊपर आधारित 'मनमोहना', गद्य व्यंग्य मनके संग्रह, बालगीत संग्रह आदि आदि मन अउ छपे के अगोरा म रिहिसे. भरोसा हे, उंकर सांस्कृतिक विरासत ल आगू बढ़इया मन ए मुड़ा चेत करहीं अउ उंकर जम्मो रचना मनला प्रकाशन के अंजोर देखाहीं.

   हेमनाथ वर्मा जी आकाशवाणी के घलो लोकप्रिय कवि रिहिन हें. उंकर रचना मन उहाँ ले सरलग प्रसारित होवत राहय. आवौ तिरिया जनम के दुख ल बतावत उंकर रचना के डांड़ देखिन-

होथे तिरिया जनम जी के काल ओ बहिनी लटपट पहाथे..
लाज रहिथे रहत अंहिवाल ओ बहिनी सुख दुख पहाथे
लेते जनम दुख दाई ददा ल
जवानी कांटा कस गड़े भाई ल
आरापारा चारी चले चाल ओ बहिनी घर-घर सुनाथे...

    विकल जी राधा कृष्ण के लीला ऊपर गजबेच कलम चलाए हें. मुरली के जादू ऊपर उंकर डांड़ देखव-

तोर मुरली म का जादू भरे मोहना
सुध बुध हरागे ना
गाय गरू गेरुवा टोर भागे, चरत धेनु चारा तियागे
गोप गुवानिन बही बन दउड़े नंदलाला बंसी बट पउड़े
टोटका करे कस तंय जादू करे टोनहा
तोर मुरली म का जादू भरे मोहना..

    विकल जी के किताब 'चुरुवा भर पानी' म तो रामचरितमानस के हर प्रसंग के सुग्घर सुग्घर चित्रण अउ लेखन हे. आवव देखिन वोमा के शिव जी के बरात म भड़ौनी वाले प्रसंग ल-

दाई ददा के नइए ठिकाना
फूटे भिंभोरा कस पिहरी हो
बन बन फिरे भभूत रमाए
नइये घर दुवार अउ डेहरी हो

गंजहा भंगहा दिखथस दुलरू
सांप बिच्छी ओरमाए हो
जकहा भूतहा कस रूप तुंहर हे
धर चिमटा हलाए हो

नाव बड़े हे दरसन छोटे
देवन म महादेवा हो
सउहे काल खड़े दिखथव
दुलहा देव जीवलेवा हो.

    साहित्य के हर लगभग हर विधा म अपन कलम चलाइया हेमनाथ वर्मा 'विकल' पेशा ले शिक्षक रिहिन हें, जे ह उंकर बोली-बचन म जगजग ले दिखय. आध्यात्मिक रचना मन के माध्यम ले अध्यात्म के रद्दा धरे विकल जी 10 अप्रैल 2007 के ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले के परमधाम म आसन पागें.
आज उंकर बिदागरी तिथि म उंकर सुरता ल पैलगी-जोहार.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Wednesday 19 October 2022

देवारी अउ जिमीकांदा के साग..

सुरता//
देवारी अउ जिमीकांदा के साग...
    वइसे तो हमर छत्तीसगढ़ म जिमीकांदा के साग खाए बर बारों महीना मिल जाथे, फेर देवरिहा सुरहुत्ती के बिहान दिन, जे दिन गरुवा मनला खिचरी खवाए जाथे वो दिन अवस करके खाए बर मिल जाथे. ए परंपरा लगभग सबो घर देखे बर मिल जाथे. हमन मैदानी भाग म एला अन्नकूट के रूप म 'नवा खाई' घलो कहिथन.
    घर के सियान ए दिन चुरे जिमीकांदा (मखना अउ कोचई मिले) के साग अउ खिचरी ल घर के देवता म चढ़ाए के बाद गरुवा मनला खवाथे, तहाँ ले खुद घलो खाथे. लइका राहन त हमर बबा हमू मनला खाए बर देवय. पहिली तो छिनमिनावन. काला-काला खवाथे कहिके बिदके असन करन, तभो ले खाएच बर लागय, काबर ते ए दिन घर के जम्मो सदस्य खातिर जिमीकांदा के साग चुरे राहय. संग म दूसर साग घलो चुरे राहय, फेर जिमीकांदा ल खाना अनिवार्य राहय.
    आज जब बड़े बाढ़ेन अउ जिमीकांदा के आयुर्वेदिक महत्व ल जानेन त लागथे, के हमर पुरखा मन कतेक वैज्ञानिक सोच के रिहिन हें, जेन विविध परंपरा के नाम म कतेक महत्वपूर्ण जिनिस मनला हमर स्वास्थ्य खातिर जोड़ दिए रिहिन हें.
    आज वैज्ञानिक शोध के माध्यम ले जानकारी पाएन, के जिमीकांदा म फास्फोरस के गजबे मात्रा पाए जाथे. सिरिफ ए देवारी के दिन ही एके पइत जिमीकांदा खा लेइन त हमर शरीर म कई महीना तक फास्फोरस के कमी नइ होही. ए ह बवासीर ले लेके कैंसर जइसन कतकों जबर रोग के बचाके राखथे. एमा फाइबर, विटामिन सी, विटामिन बी 1 अउ फोलिक एसिड होथे. संगे-संग पोटैशियम, आयरन, मैग्नीशियम अउ कैल्शियम घलो पाए जाथे.
    संगी हो आजकल बजार म हाइब्रिड वाले जिमीकांदा घलो देखे बर मिलथे, फेर एमा आयुर्वेदिक तत्व के थोर कमी होथे. अच्छा हे, के देशी किसम के ही जिमीकांदा के उपयोग करे जाय.
    हमर छत्तीसगढ़ म तो वइसे घरों घर जिमीकांदा बोए अउ खाए जाथे. एकर कनसइया (पोंगा) के घलो कतकों झन साग रांध के खाथें. कतकों झन एकर ले बरी घलो बनाथें, जे ह 'लेड़गा बरी' के रूप म जगप्रसिद्ध हे. ए सबो ल खाना चाही. कभू-कभार मुंह खजवाए असन लागथे, फेर एकर ले डर्राना घबराना या छिनमिनाना नइ चाही.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Tuesday 4 October 2022

मानकीकरण के रद्दा म छत्तीसगढ़ी

मानकीकरण के रद्दा म छत्तीसगढ़ी..
    छत्तीसगढ़ी भाखा म साहित्य सिरजन तो सैकड़ों बछर ले होवत हे. आज हमर आगू म लोकसाहित्य मनके अथाह खजाना दिखथे, तेन ह वोकरे परसादे आय. फेर ए भाखा ल एकरूपता दिए खातिर उदिम थोर कमतिच दिखथे. एकरे सेती लोगन अपन-अपन सोच अउ उच्चारण के मुताबिक लिखत अउ बउरत रेहे हें, अभी घलो वइसने च बउरत हें.
     छत्तीसगढ़ी व्याकरण खातिर उदिम तो काव्योपाध्याय हीरालाल जी के सन् 1885 म लिखे 'छत्तीसगढ़ी बोली का व्याकरण'  किताब ले देखे बर मिलत हे. एकर पाछू अउ कतकों विद्वान मनके घलो किताब आइस, फेर सर्वस्वीकारिता कोनो ल नइ मिलिस. सन् 2000 म अलग छत्तीसगढ़ राज के गठन के बाद ए बुता म अउ जादा गति देखे बर मिलिस. खास करके 'छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग' के गठन के बाद एक भरोसा जागिस के सरकारी मंच के माध्यम ले जेन निर्णय लिए जाही, तेला सबो एक सुर म मानहीं, अउ वोकरे मुताबिक छत्तीसगढ़ी के लेखन करहीं.
    राजभाषा आयोग के पहला अध्यक्ष श्यामलाल चतुर्वेदी जी संग ए संबंध म गोठ करे गिस, त उन कहिन- 'मोला लागथे, के अभी हमन ल मानकीकरण ले जादा साहित्य के लेखन डहार जादा जोर देना चाही. जादा ले जादा साहित्य लोगन के आगू म आही. सब एक-दूसर के रचना ल पढ़हीं. वोमा के अच्छा-अच्छा शब्द मनला बउरत जाहीं, तहाँ ले अपने-अपन मानकीकरण हो जाही.
    राजभाषा आयोग के दूसरा अध्यक्ष दानेश्वर शर्मा जी संग घलो ए विषय म गोठ करेन, त उन हाँ एकर ऊपर तो ठोस बुता होना चाही, कहिन अउ सिरतोन म ए रद्दा म पाॅंव घलो राखिन. एक दिन पूरा प्रदेश भर के पोठहा साहित्यकार भाषाविद मनला सकेल के आयोग के ही हाल म एकर ऊपर चर्चा करवाइन. ए चर्चा म सबो विद्वान मन डहार ले एक बात ऊभर के आइस, के देवनागरी लिपि के जम्मो 52 वर्ण ल छत्तीसगढ़ी लेखन म बउरे जाना चाही, छत्तीसगढ़ी के लेखन म कहूँ दूसर भाखा के शब्द ल बउरथन त वोला जस के तस लेना चाही. वोमा कोनो किसम के टोर-फोर नइ करना चाही.अब शिक्षा के अंजोर के संग लोगन आने भाखा ले आने वाला शब्द मनके उच्चारण शुद्ध रूप म करथें, त लेखन म घलो शुद्ध रूप के ही उपयोग करना चाही.
    ए बइठका के पाछू एक अउ बइठका कर के वोमा मानकीकरण खातिर अंतिम निर्णय लेबोन कहे गिस, फेर दूसरइया बइठका के आरो शर्मा जी के कार्यकाल के सिरावत ले नइ मिलिस.
    हाँ, दानेश्वर शर्मा जी के कार्यकाल म राजभाषा आयोग डहार ले सलाना जलसा के बेरा एक स्मारिका छपवाए के उदिम घलो करे गिस. ए स्मारिका खातिर चार झन  साहित्यकार मनके संपादक मंडल बनाए गिस, जेमा- डाॅ. परदेशी राम वर्मा, जागेश्वर प्रसाद, रामेश्वर शर्मा अउ सुशील भोले ल संघारे गिस. वइसे तो संपादक मंडल म चार सदस्य रेहेन, फेर एकर जम्मो पोठहा बुता ल मोर जगा करवाए गे रिहिसे, तब मैं आयोग के अध्यक्ष, सचिव, जम्मो सदस्य अउ संपादक मंडल के सदस्य मनले स्मारिका के भाखा ल मानकीकरण के अन्तर्गत रखे जाय का? कहिके पूछे रेहेंव, तब कहे गे रिहिसे- जब तक मानकीकरण के बुता ह सर्वसम्मति ले पूरा नइ हो जाय, तब तक लोगन जइसे लिख के दिए हें, वइसने छापे जाय कहे गे रिहिसे.
    मानकीकरण ले रद्दा म राजभाषा आयोग के तीसरा अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक जी के कार्यकाल म पोठहा बुता होइस. 22 जुलाई 2018 के दिन बिलासपुर म डाॅ. विनोद कुमार वर्मा जी के संयोजन म आयोजित राज्यस्तरीय संगोष्ठी म सर्वसम्मति ले प्रस्ताव पारित करे गिस- "छत्तीसगढ़ के राज्यपाल द्वारा 11 जुलाई 2018 के अधिसूचित राजभाषा (संशोधन) अधिनियम 2007 (धारा 2) के संशोधन के अनुरूप छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण बर देवनागरी लिपि (वोकर 52 वर्ण मन) ल यथा-रूप अंगीकृत करे जाही, जेला केन्द्र शासन ह हिन्दी भाषा खातिर अंगीकृत करे हे.
    ए राज्यस्तरीय संगोष्ठी म छत्तीसगढ़ के जम्मो ठोसहा साहित्यकार अउ भाषाविद मन संघरे रिहिन हें. ए पूरा कार्यक्रम के लेखाजोखा राजभाषा आयोग के कार्यवाही रजिस्टर म लिखाय हे, तभो ले आज खुद राजभाषा आयोग अउ वोकर ले जुड़े लोगन काबर वोकर पालन या अनुसरण नइ करत हें? ए ह ताज्जुब के बात आय. काबर आज अध्यक्षविहिन आयोग के सचिव ह छत्तीसगढ़ी के व्याकरण अउ मानकीकरण खातिर एक-दू पइत अउ बइठका कर डारे हे. अभी राजभाषा आयोग द्वारा साहित्यकार मनला दिए जाने वाला प्रशस्ति पत्र म घलो 'जुन्ना ढर्रा' ल लिखाय शब्द मनके दर्शन होवत हे. तेन ह एकर सोर देवत हे. जबकि राजभाषा आयोग के 2018 के संगोष्ठी म पारित प्रस्ताव के मुताबिक वोकर जम्मो कारज होवत रहना रिहिस.
    मन म एक बात इहू उठथे- का सत्ता म आए बदलाव के संग पहिली के सरकार के बेरा म पारित प्रस्ताव घलो बदलगे या वोला राजनीतिक प्रस्ताव जइसन कचरा के संदूक म झपा दिए गिस? जबकि होना तो ए रिहिस, के वो प्रस्ताव ल शासन प्रशासन के संगे-संग जतका भी ठीहा म छत्तीसगढ़ी भाखा ल कोनो न कोनो रूप म बउरे जावत हे, सबो म लागू करवाय के उदिम करे जाना रिहिसे. भरोसा हे, जिम्मेदार लोगन के ए मुड़ा म चेत जाही.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

भूमिका.. चार डांड़.. बिहनिया के जोहार

भूमिका//
"बिहनिया के जोहार"
        ( सुशील भोले के चार " डांड़")
समसामयिक जिनगी के चित्र/फोटो ल " चार डांड़" (पंक्ति) म  लिख  के उजागर कर  देना, सुशील भोले के खासियत अउ साहित्य म नवा प्रयोग बनगे। आज सोशल मिडिया के मोबाइल संस्कृति म ये कमाल के बात ये  होगे कि हमर गोठ बात, बिन कागज म लिखे, लोगन तक पहुंचत हे। बिहनिया बेरा म "जोहार","जय जोहार"," सुप्रभात", अंग्रेजी म "गुडमॉर्निंग"--हमर
तक पहुंच जथे।  तहां ले मन "हरियर"जो जथे,
"गदगद" हो जथे।   "चार डांड़ " के कवित्त म हम चित्र के इतिहास, सामयिक जिनगी,
संस्कृति, खेती बाड़ी, तीज-तिहार, जिनगी के संघर्ष, सुख-दुख, मय-मितान, मरनी-हरनी, धरम-करम, प्रेम-वियोग, सिंगार, नता-गोता, व्यवहार,
श्रद्धा, अंधविश्वास--- सबके कहिनी जान डरथन! ये सब "चार डांड़" के कवित्त म उतर जथे।
"जोहार","सुप्रभात"---कहत-कहत, सुशील भोले-- दार्शनिक बन जथे। पूरा जीवन दर्शन "चार डांड़ " म उंडेल देथे।
सुशील भोले ह पत्रकार घलो रहिस। उहि पत्रकारिता म    ये चित्रमय कवित्त, अखबार के एक  कोंटा म डारे के/छापे के--आदत बनगे रहिस। उहि आदत आजो ले बने हे। आज सुशील ह शरीर से अशक्त होगे हे, लकवा ग्रस्त होगे हे।फेर एक अंग हाथ अउ अंगरी ह चलथे--त  सोशल मीडिया ह ओखर बर वरदान बनगे हे।मन चलथे, बुध चलथे, सपना   देखई , अउ चिंतन  चलथे। ये " चार डांड़'"-ओखर प्रमाण आय। जिनगी जिये के , समय बिताये के, एक सहारा बनगे सोशल मीडिया ह!सकारात्मक ऊर्जा से भरे सुशील के लेखनी  सरलग चलथे।
छत्तीसगढ़िया मनखे के जीवनचर्या  के विविध रूप सुशील  के "चित्रमय चार डांड़" म  उजागर होथे, ओखर उदाहरण देवथंव---
1---   मनखे अउ नीति के बात----
अ--     "सत के साधक, लुलुवा हो जाय, फेर रद्दा ले टरय नहीं।," (सच्चा साधक मनखे ह सत के रद्दा म चलथे)।
ब-- "सरी मंझनिया साथ देवइया केवल बिरला होथे,
रिश्ता नाता कहत  भर के, भाई भतीजा बोचकथे,
तब बिन मुंह के अईसन साथी, रिश्ता के लाज बचाथे।(चित्र-बनिहारिन संग कुकुर ह लउठी धर के चलत हे)!
स--आज के लईका मन दाई ददा ल बंटवारा म बांट लेथें,
कोन काकर संग रइही, अपन हिस्सा म छांट लेथे
तब बज्जुर  छाती करना परथे ये विपत ल सहे के।(माता पिता के बंटवारा)
द---- "हर उमर के जोश निराला, कभु खेलौना, कभु भाला,
मयारु बर चूरी फुंदरी, त मोक्ष बर मिरगा छाला,
जइसे-जइसे उमर बढ़थे, मन के लोभ घलो बदलथे,
इहि ल तो संगी गुनिक मन, जीवन के गति कहिथे!" (जीवन के गति अउ परिवर्तन)
क--- "बिन घिसाए लगय नहीं माथ म ककरो चंदन,
जो धरथे संघर्ष के रद्दा, होथे ओखर अभिनन्दन।" (संघर्ष के बात)
ख-- "बिना मंजाय कोनो गहना म चमक आ नई सकय"!  (संघर्ष )
ग-- हीरा उगलत धरती छोड़ के , कोन देस तंय जाबे,
करबे चाकरी पर के, अउ बोझा लेबे डोहार",
(पलायन बर नीति के बात)
घ-- "आ संगी जोर खांध म खांध, रहिबों सब मिलजुर के,
आ एक ले एक ग्यारा हो जाइन, दिन बितहि मुसकुल के"! (एकता के सन्देश)
घ--- छत्तीसगढ़ म 36 नदियां, फेर 36 गति हो जाथे"! (पानी के अकाल, व्यवस्थित नहीं)
च--- "सबले ऊंचा पबरित हे आत्मज्ञान के ठउर, तब काबर भटकत हाबस तैं पोथी पतरा के रद्दा म।"  (आत्मज्ञान)
छ-- "कोनो काम करे के पहिली। ,मन म थोरिक गन लेवव,
कोन कहात हे   का-का, इहू बात ल गुनना चाही।
   ( मन की सीख-नीति के बात)
ज-- "सोन पांखी के फांफ़ा--मिरगा या बिखहर हो जीव,
सबके भीतर बनके रहिथे, एकेच आत्मा शिव,
तब कइसे  कोनो छोटे बड़े, ऊंचहा या नीच,
सब ओकरे सन्तान हे संगी, जतक़ा जीव सजीव" (मनखे मनखे एक समान)!
सुशील भोले ह आदिधर्म, सनातन धर्म के रद्दा म चलथे। तभे मनखे मनखे एक समान  के बात करथे ।
2--प्रकृति, ऋतु, पर्व, तिहार, खेती बाड़ी के चरचा कवित्त म चित्र सहित करथे। कोनो व्याख्या करे के जरूरत नई पड़य---
क- (ऋतु)-"माघ महिना आगे संगी लगगे आमा म मउर।"
(वर्षा) "नांगर म खेत जोतत नंगरिहा बर मया के बादर
झम ले आके रतो दिस हे धार, धरती दाई के गरभ ले अब अन्नपूर्णा दाई लेहि अवतार।"
ख-- (किसानी)- "चार महीना खूब कमाएन अभी माते हे मिंजाई,
अन्नपूर्णा बनके घर आये हे, हमर लक्ष्मी  दाई,"
ग-- (किसानी) -"अकती आगे, घाम ठठागे, चलव जी मूठ धरबो,
हमर किसानी के शुरुवात सम्मत ले सब करबो।"
घ-- (तिहार)- "कतेक सुग्घर हावय हमर तीजा के तिहार,
गंजमंज--गंजमंज लागत हावय ददा के दुवार!"
च- -(शीत) -"गोरसी तापे  के दिन आही, अब आवत    हावय  जाड़,
सुरुर सुरूर पुरवाही म होवत हावय नरमी के बाढ़!"
छ--(संक्रांति)---
"सुरुज नरायन के पांव लहुटगे, अब बेरा ल लहुटाही,
सुट ले बुलकत, घड़ी-पहर के चाल कदम अरझाही,
अब तिली गुड़ के लाडू सहीं सबके दिन बाद भाही,
संग सर-सर  झुमरत-नाचत पुरवाही राग बसंती गाही।"
ज-- (मौसम)-- "नवा बहुरिया के रेंगना कस लागे मौसम के चाल"!
सुशील ह हर मौसम अउ पर्व के बात करथे चित्र बनाके।छेरछेरा, हरेली, कमरछठ  के पसहर भात, अक्ति, तीजा-पोरा, भोजली, मितान, दशहरा, देवारी, होली!
झ-- नोनी जात के शिक्षा बहुत मूल्य रखथे।
रिक्शा चलावत बेटी के चित्र म लिखथे--
" घर  परिवार के जतक़ा बुता  जम्मो मोरेच हिस्सा,
कईसे भाग लिखथे  विधाता ये तिरिया  जनम के,
संउहे अनदेखी  करथे हमर जांगर  टोर करम  के!"
नारी शिक्षा के महत्व बतावत, नीति के बात कहिथे--
"चल नोनी  हो जा तियार, स्कूल जाबे  हब ले, पढई लिखई ह मोर  भरोसा, दाई बूता म जाथे तब ले,
पढ़बे  लिखबे ,जिनगी  गढ़बे, बढ़ के  तैं तो  सब ले,
हमर देश  राज के  नांव जगाबे, आदर्श गढ़बे  खब ले!"
नदिया नरवा पार करके नोनी मन पढ़े बर जाथें
उहि चित्र म--
"नदिया नरवा कतको उफनय, नई   परय  कोनो फरक,"(आज  बाधा  लांघ के नोनी मन पढ़थें।)
ट---नारी  के किसानी काम म घलो बाधा   ल लांघथे---

"एक हाथ में  हे नांगर अउ एक हाथ म तुतारी,
पीठ म बेटा ल बईठारे, नांगर जोतथे  महतारी,
एकरे भरोसा। घर के संवागा, इहि  बाहिर के रखवार,
एकरे भरोसा चूल्हा घलो सजथे, एकरेच भरोसा खार।"
सुशील ह नारी के हर क्षेत्र के संघर्ष के चित्रण करे हे।
ठ-- -आजकल "फ्रेंडशिप दिवस"के परम्परा चालू होगे हे, विदेशी तर्ज म।
सुशीलकहिथे---
"हम तो आरुग छत्तीसगढ़िया, एक पईत मनाथन,
गंगा बारु हो चाहे भोजली होय, कई जनम साथ निभाथन!"
अइसन विविध विषय म चित्र के संग " चार  डांड़ "  लिखत  सोशल मीडिया म अब्बड़ लोकप्रिय होगे हे।बिहनिया  संगी साथी मन बाट जोहत रहिथे।
मोर अन्तस्तल ले ,सुशील के तन अउ मन के स्वास्थ्य बर शुभकामना अउ असीस।ओखर कलम चलत राहय, बुध जागत रहय, मन आनन्दित  राहय।। सरस्वती  कृपा बनाय राहय।
सोशल मीडिया के माध्यम ले सुशील के चित्रमय "चार डांड़"" बिहनिया के जोहार" सबके हाथ म पहुंच जाय। सब आनन्द म भरके पढंय अउ गुंनय।
लेखनी चलत राहय,- ---असीस !
          -डॉ, सत्यभामा आडिल
     दशहरा (दंसहरा) 5--9--2022
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