Wednesday 23 November 2022

अगहन बिरस्पत कहानी 4

अगहन बिरस्पत कहनी - 4

ऊँच-नीच के भेद नहीं..

    एक बखत के बात ए , अगहन के महीना रहीस , माता लक्ष्मी जी भगवान  जगन्नाथ अर्थात कृष्ण जी ले कहीन- प्रभु आज मोर नाम से धरती के नर-नारी मन पूजा पाठ करत हें । आप आज्ञा  दव तो मैं अपन भक्त मन से मिल के आतेंव ।
भगवान जगन्नाथ बोलिन - ये तो अच्छा बात हे । अवश्य जाओ फेर ध्यान रखना केवल नगर परिभ्रमण कर अउ देखके आबे ।
भगवान के आज्ञा पाके लक्षमी दाई बहुत खुस होइस अउ सोलह श्रृंगार कर एक डोकरी बम्हनीन के रूप धर के नगर म गीस ।
उहाँ ये का ? - सब सूनसान ! पूजा -पाठ के नाम म कुछु नहीं। सब नगर वासी सुते । ए देख के लक्षमी दाई बहुत दुखी होगे ।
लक्षमी दाई ल नगर के बाहिर एक छोटे से घर दिखिस । घर दुरहिया ले साफ दिखत रहीस सीढ़िया म दिया जलत रहीस ।  वो घर शहर के साफ-सफाई करइया सीरिया सहिनी के रहीस । लक्षमी दाई  वो घर के तीर पहुँच गे । देखथे -  सीरिया ह विधिपूर्वक लक्षमी जी के पूजा करत रहीस । लक्षमी दाई खुस हो के  ओखर घर म घुसरगे अउ कहीन -  बेटी सीरिया मैं तोर से बहुत खुस हंव । जो मांगना हे मांग ले ।
लक्षमी दाई सीरिया ल मनवांछित वरदान दीन अउ परसाद खा के निकलत रहीस , ओतके बेरा बलदाऊ , कृष्ण जी बन म बिचरे बर आय रहिन । सीरिया के घर ले लक्षमी माई ल निकलत बलदाऊ जी देख डरिस । बलदाऊ जी अड़बड़ गुस्सा गे। कृष्ण भगवान ल बोलिस - लक्षमी सीरिया सहिनी के घर गे हे , अब वोला घर म नई रखना हे। तैं वोला घर ले निकाल दे ।
कृष्ण भगवान बलदाऊ जी ले बहुत विनती करीन - ये दरी माफ कर दौ। फेर बलदाऊ जी टस के मस नई होइस ।
अंत में कृष्ण जी , लक्षमी दाई जब आइस तो वोला घर के भीतरी म आए से मना कर दीस अउ कहीस - तैं सीरिया सहिनी के घर गे रेहेस अब घर म नई आ सकस जिहां जाना हे चल दे ।
लक्षमी दाई बहुत विनती करीन क्षमा मांगिन फेर कृष्ण जी नई मानीस ।
अंत म लक्षमी दाई दूनों भाई ल श्राप दे दीस - यदि मोर पतिव्रत धरम में सत होही अउ चंदा सूरुज के आना-जाना सत हे त  तुमन दूनों भाई ल बारह बछर तक अन्न, वस्त्र , जल नई मिलय ।
लक्षमी दाई अइसन श्राप देके घर ले निकल गे । घनघोर बन म पहुंच गे । उहाँ विश्वकर्मा जी ल बलाइस अउ बहुत सुंदर महल बनाय ल कहीस ।
विश्वकर्मा जी सब कारीगर मन ल बलाके बहुत सुंदर महल बना दीन । लक्षमी दाई अपन सब दासी मन ल बलाके वोश्रमहल म रेहे लगीस।
अपन दूत मन ल बैकुंठपुर भेज के उहाँ के सबो जिनिस ल मंगा लीस। अउ पूछिस उहाँ का बचे हे ।
दूत मन कहीन सबो जिनीस ल ले आए हन फेर सोनहा पलंग हे । प्रभु सूते रहीस तो नई लानेंन ।
लक्षमी दाई गुस्साई अउ कहीस सबले लाने ल कहे रेहेंव न - जावव ओमन ल भुइयां म पटक दुहू फेर पलंग लानव, हांडी-फाड़ी सब ल फोड़ दुहू कुच्छू झन बांचय ।
का करय दूत मन गीस अउ लक्षमी दाई के आज्ञा अनुसार रसोई म जा के सबे हाड़ी ल पटक- फोड़ दीन अउ भगवान मन ल भुइयां में सुता के सोनहा पलंग ल ले आईन।
एती सुबेरे बलदाऊ कृष्ण जी के नींद खुलीस त अकबका गे । पलंग नई भुइयां में सूते । मुहँ धोए ल गीन तव पानी नहीं । रसोई घर म गीन त सबे हांडी-फाड़ी फूटे ।
जइसे जइसे बेर होत गीस भूख -प्यास म कलबलाए लगीन ।
आखिर म दूनों झन भीख मांगे लगीन । फेर उन दूनों ल कोनों भीख नइ दीन । भीख देवइ तो दूर दूवारी ले दुत्कार दीन । दूनों व्याकुल होंगे ।
बलदाऊ जी के अंगूरी म एकठन सोनहा मुंदरी बांच गे रहीस । ओला देख के कहीस - चल एला बेंच देथन कुछ तो मिलहि ।
ये का ? अंगूरी ले उतारते ही मुंदरी पीतल के होगे ।
दूनों भूखे -प्यासे अन्न-जल खोजत भटके लगीन । भटकत भटकत बन म पहुँच गीन ।  कृष्ण जी कहीस बड़े भाई ओ देख तो दीया जगमगावत हे महल असन लागत हे चल ओही कोती जाबो कुछ मिल जाए ।
बलदाऊ कहीस- दिखत तो हे फेर ए कोनों माया तो नोहय। यहा घनघोर बन म काखर महल हो ही ।
कृष्ण जी कहीन - जेन भी होही चल ओही कोती जाबो।
जइसे-जइसे आगू जावय महल ह दुरहिया जावेय । बलदाऊ जी कहन लगीस अब मैं नई रेंग सकौं पाँव भूंजागे हे ।
कृष्ण भगवान धीर धराइस - बस थोड़ कन अउ दाऊ भैय्या पहुँच जबो ।
जइसे-तइसे दूनों झन महल तक पहुंच गीन अउ जोर जोर से मंत्रोच्चार कर -भिक्षाम देहि! केहे लगीन ।
ऊंखर बोली ल सुन के लक्षमी दाई एक झन दासी ल कहीस देख के आतो कोन आय हे ? पूछबे काबर आय हे ?
दासी गीस अउ बड़का दरवाजा ल खोलीस अउ पूछिस - कइसे आना होय हे ? का चाही?
दासी के रूप अउ बोली भाखा ल सुनके दूनों अकबका गें ।
फेर कृष्ण जी थोड़कन सम्हल के कहीन - कुछु नहीं हमन ल थोरकन अन्न  जल चाही । भूखे प्यासे हन ।
ऊंखर  बात सुनके दासी भीतर गीस अउ लक्षमी माइ ले बोलीस -
दू झन साधु हें बहुत रूपवान हे । भूखे प्यासे हे, ओमन ल बस अन्न जल चाही ।
दासी के बात ल सुन के लक्षमी माई समझ गीस एमन हो न हो दूनो भाई ए ।
दासी ले बोलीस- जा ओमन ल आदर पूर्वक भीतर ले आन अउ ऊंखर भोजन के व्यवस्था कर ।
दासी लक्षमी दाई के आज्ञा पाके दूनों झन ल भीतर बुला लीस ।
महल भीतर आए के बाद बलराम जी ल जानकारी होइस के अभी तक जेन ऊँच-नीच के भेद करत मैं लछमी ल अपन घर ले निकाले बर कृष्ण ल कहे रेहेंव, वोकरे सेती ए बीपत के बेरा ल देखना परिस. अब समझ गेंव लक्ष्मी काकरो संग भेदभाव नइ करय. जेन वोकर श्रद्धा ले सुमरथे, वो वोकर घर जाथे.

मोर कहानी पुरगे.. दार-भात चुरगे.
(प्रस्तुति : सुशील भोले)
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अगहन बिरस्पत कहानी 3

अगहन बिरस्पत कहानी - 3

#सत बड़े ते लक्ष्मी..?

    एक समय के बात आय. लक्ष्मी अउ सत गोठियावत रहिन , बाते -बात में दुनों म बहस होगे। सत कहय मैं बड़े हौं , लक्ष्मी कहय मैं बड़े हौं। दूनो अड़गें। छोटे बने बर कोनों तियार नहीं। फेर दूनों झन सोचिन , अइसन म फैसला होवय नहीं. विष्णु भगवान ल पूछबो उही ह फैसला करही , कोन बड़े हे? सत अउ लक्ष्मीं दुनों पहुँचगें विष्णु -लोक। सत अउ लक्ष्मी दूनों ल संगे देख विष्णु भगवान बहुत खुश होइस। दूनों के सुंदर आव -भगत करीस। तहांले आय के प्रयोजन पूछिस। लक्ष्मी दाई कहिस हमर दूनों में बहस होगे हे, मैं कईथव मैं बड़े ,सत कइथे मैं बड़े, हमन दूनों म बड़े कोन हे? फैसला आप ही करहू।
    विष्णु भगवान सोंच म परगे. काला बड़े कहंव लक्ष्मी ल बड़े कहूँ त सत नराज ,सत ल बड़े कहूँ त लक्ष्मी रिसा जही ,दूनों बिगर काम चलय नहीं। अड़बड़ गुनिस ,फेर कहिस ए तो बड़ा कठिन प्रश्न हे. मैं हल कर नई सकौं। चलव भोले-भंडारी मेर जाबो ,उही ह टंटा टोरही. तीनों झन  चल दिन कैलास-परवत।
    सत, लक्ष्मी अउ विष्णु भगवान पहुंच गें कैलास-परवत। तीनों ल संगे देख भगवान भोले-भंडारी, अउ  माता पार्वती गदगद होगें। तीनों के सुंदर आव -भगत करीन । तहांले आय के प्रयोजन पूछिन । भगवान विष्णु कहिस इन दूनों म बहस होगे हे, लक्ष्मी कइथे मैं बड़े ,सत कइथे मैं बड़े, अउ दूनों अड़ें हें ,फैसला आप ही करहूँ , इनमा कोन बड़े हे? 
  भोले-भंडारी सोंच म परगे ,काला बड़े कहंव लक्ष्मी ल बड़े कहूँ तो सत नराज ,सत ल बड़े कहूँ त लक्ष्मी रिसा जाही ,दूनों बिगर काम चलय नहीं। अड़बड़ गुनिस ,फेर कहिस- ए तो बड़ा कठिन प्रश्न हे ,मैं हल कर नई सकौं। चलव ब्रम्हाजी मे
जगा जाबो ,उही ह टंटा टोरही। सबे के लेखा-जोखा ओखरे मेर रहिथे। चारों चलदिन ब्रम्ह्लोक।
    ब्रम्हाजी के आगू जब ये सवाल रखे गीस तव उहू असमंजस म पड़ गिस। केहे लगीस  अड़बड़ कठिन प्रश्न हे ,मैं हल कर नई सकौं।भोले-भंडारी कहिस तैं नई बता सकस तो कोन बताही ?ब्रम्हाजी कहिन पाँचों-पांडव मेर चलिन। ऊंखरे मेर हल होही। धर्मराज बड़ धर्मनिष्ठ हे ,उही सही बताही। सबे झन चलदिन पाँचों-पांडव मेर।  
    ब्रम्हा , विष्णु , महेश ,सत , लक्ष्मी सबो झन ल संघरा देख पाँचों-पांडव गदगद होगीन। सबो के आव -भगत करिन। फेर आय के प्रयोजन पूछिन। ब्रम्हाजी कहिन एक ठक सवाल के हल बर आय हन ,लक्ष्मी कइथे मैं बड़े ,सत कइथे मैं बड़े, अउ दूनों अड़े हें , फैसला तुही मन करहू। सवाल सुन के पाँचों-पांडव अकचका गिन  एक दूसर कोती  देखे लगीन तहाँ ले नहीं म मुड़ी हलाय लगीन। ब्रम्हाजी कहिन- कइसे हल निकलही। धर्मराज कहिन एहि पास एक गाँव हे, उहाँ एक भिक्षुक माँ बेटा हे , उखरमेर चलथन उहें, फैसला होही।    ब्रम्हा , विष्णु , महेश  ,सत , लक्ष्मी ल भरोसा तो नई होईस फेर का करें जाय बर तियार होगे। सबोझन भेस बद्लिन साधु के भेस धर के उंखर कुटी म पहुंचगें। दुआर में खड़े हो के कहे -लगीन -भिक्षाम् देही ,- भिक्षाम् देही , उंकर भाखा ल सुनके बेटा बाहर आइस। साधु-मन ल देख के अकबका गे , थर-थर कांपे लगीस , फेर हिम्मत कर हाथ जोड़ के कहिस महराज हमन तो  भिखारी हन आपमन ल का दे सकथो। धर्मराज कहिन हमन तोर कुटिया म कुछ दिन विश्राम करबो। लड़का कहिस - महराज कुटिया म हमरे निस्तारी बड़ मुस्किल ले होथे। त फेर.....  धर्मराज कहिस-  चिंता मतकर वत्स हमन रहि जाबो। लड़का असमंजस म परगे, फेर का करे नहीं कहूँ त साधू ए , श्राप दे दीही विचार के , सबो ल कुटिया भीतरी लेगिस।
    भीतरी म जा के फेर विचार करे लगीस , यहा दस-दह झन के खाए पिए बर कइसे करौं। माँ बेटा भले गरीब फेर नियम के बड़ पक्का रहिन, बालक निसदिन 5 घर में भिक्षा मांगे ,5 ले छठवां घर में नई मांगे , जतका मिलगे उतके म संतोष करलें। नई मिले तेन दिन लांघन रहि जाय।लड़का ल चिंता म देख भगवान मन कहिन- बेटा फिकर मत कर जतका मिलही वोतके ल मिल- बांट के खा लेबो , तोर नियम नई टूटे। लड़का ल थोड़कुन बने लगीस , झोला ल धर के निकल गे, भिक्षा मांगे बर। यहा -का चमत्कार होगे , तीने घर म ओखर झोला भरगे। ईश्वर के महिमा अपरम्पार।  लड़का खुसी खुसी घर अइस। माँ  ल झोली  देके रांधे बर कहिस। माँ सुंदर भोजन बनाइस।तहाँ ले सबे झन ल खाए -बर बुलाइस। सबे झन खाए -बर बइठिन. लड़का परोसे लगीस , धर्मराज  कहिस तहूं बइठ हमर संग , माँ परोसही बालक -माँ परदा करथे , माँ बेटा बड़ खुद्दार अपन गरीबी ल बताना नइ चाहत रहिन। साधु मन जिद करे लगीन माँ परोसही तभे खाबो , बालक कहिस का बताओ , साधु महराज मोर माँ के लुगरा तार -तार होगे हे , बदन नई ढकाए ठीक से , आपमन के आगू म कइसे आही। साधु - माँ ह भुलागे हे का ओखर मेर सुंदर पीतांबरी हे , पहीरे ल का , बालक - कइसे मजाक करथो महराज , हम गरीब मेर कहां ले पीतांबरी आहि। साधु -ऊपर झांपी म देख। लड़का के मन देखे के तो नई होत रहीस फेर देखीस , तो का देखते सही म झापी म पीतांबरी राहय. पीतांबरी ल निकाल के अपन माँ ल दीस। माँ पीतांबरी ल पहरीस अउ झमा -झम सुंदर प्रेमपूर्वक भोजन परोसिस। सबे मन भर के खाईन, तहाँ ले बिश्राम करिन। 
    दूसर दिन फेर वइसने होइस। तीर के नगर -राजा ढिंढोरा पिटवाइस -राजकुमारी के बिहाव करे बर हे , सुयोग्य वर चाही। ये बात साधु मन के कान में चल दीस। अब का धर्मराज ह कहिस सुन बाबू राजा ल राजकुमारी बर सुयोग्य वर चाही। तोर ले योग्य कोनो नही हे , तैं दरबार म जा अउ राजकुमारी संग बिहाव के प्रस्ताव रख। लड़का घबरागे कइसन गोठियाथो साधु महराज वो राजकुमारी अउ मैं भिखारी कैसे बनबो संगवारी। अरे कुछु नई होय जा बिहाव के प्रस्ताव रख के आ। लड़का -तुंहर हाथ -पाँव जोरत हौ , नई जावंव। अरे कुछु नई होय जा, सबे के सबे केहे लगीन। लड़का असमंजस में पड़गे , एती कुआं वोती खाई का करे भाई , राजा मेंर  जात  हे तभो जी के काल नई जाही तो साधुमन के डर , का सोचत हस जा हमन काहत हन , कुछु नई होवय। अब का करय अाधा डर-बल के दरबार में गीस। महल के सिंग द्वार म पहुंचिस द्वारपाल मन दुत्कारिन , दरबार चलत हे कोनो भीख नई मिलय। लड़का -भीख बर नई आय हौं, मै बिहाव के प्रस्ताव ले के आय हवंव. बात ल सुन के सबे अड़बड़ हासींन ,अपन सकल ल देखे हस, राजकुमारी संग बिहाव करबे , चल भाग इहाँ ले।
    लड़का पल्ला भागीस अउ अपन झोपड़ी म जा के लदलद कांपे लगिस। साधु मन पूछीन का होइस , का बतावंव मोला तो द्वारपाल मन दुत्कार दीन , प्रान बचा के आय हवंव। दूसर दिन फेर ओला बिहाव के प्रस्ताव ले के भेजिन। मारे डर के फेर गिस , द्वारपाल मन दुत्कारिन, का करय पल्ला भागीस। अईसने घेरी -बेरी साधु मन भेजय, अउ वोहा  भगाय। बिचारा के जीव अधमरा होगे। ले एक बेर फेर जा हमन हन। फेर गीस। अबके मंत्री  कहिस  घेरी -बेरी आवत हस , राजकुमारी संग बिहाव करबे ! तो सुन पहली राजकुमारी बर महल बनवा  फेर आबे। लड़का सोच म पड़गे। साधु मन मेर गीस - वा ! ओमन तो महल बनवाय बर कहत हे। साधु - जा हाँ  कह दिबे। 
    लड़का -मैं  कहां ले महल बनवाहूं , साधु -तैं काबर फिकर करथस हमन तो हन -जा हाँ  कह. लड़का गीस हाँ महराज महल बनवा हूँ। मंत्री - तो जा महल बनवाले , फेर आबे। लड़का लहुट गे। एती  रात म भगवान मन विश्वकर्मा ल बुलाइन अउ कहिन ए मेर सुंदर महल बना। रात भर म महल तइयार होगे। सुबेरे बस्ती म देखौ-देखौ होगे , बात महल तक पहुँचगे। सुन के राजा माथा पकड़ लीस। साधु मन वोला फेर भेजिन अउ चेताइन कुछु भी बनवाय ल कहीं तौ तैं हाँ कह देबे।लड़का महल  गीस. मंत्री मेर कहिस- महल बनगे , राजकुमारी के हाथ मोर हाथ में दे दो। मंत्री -सोचिस लगथे येहा कुछु जादू जानथे , महल तो बनवा लीस , ऐला सोना- चाँदी हीरा -मोती जड़े खम्भा बनवाय  ल कहिथों , कहाँ ले लानही , सुन महल तो  तैं बनवा लेस , अब इहाँ ले उहाँ तक सोना- चाँदी, हीरा-मोती जड़े खम्भा बनवा , लड़का थोड़कुन सोच म पड़गे फेर वोला साधु मन के बात सुरता आ गे , हाँ बनवाहूं। मंत्री - तो जा बनवाले फेर आबे। लड़का फेर सोचत गीस हाँ तो कहि  दें हव कइसे बनही? साधुमन ल सबे बात ल बताइस। भगवान के महिमा दूसर दिन पूरा बस्ती में इहाँ ले उहाँ तक सोना- चाँदी, हीरा-मोती जड़े खम्भा बनगे।
    सुबेरे लड़का फेर महल गइस। अबके बार मंत्री सोचीस एला बरात में भगवान मन ल लाने ल कहिथंव , भगवान ल कइसे लानही। सुन बरात म तैं सबो देवी देवता मन ल लाबे। लड़का सोच म परगे , भगवान मन बरात म कइसे आही। फेर साधुमन मेर गीस। वाह ! बरात में भगवान मन ल लाने ल कहत हे। -साधु - जा हाँ कहिदे। लड़का महल गीस , अउ कहिस बरात में सबो देवी देवता मन ल लानहुं।  अब मंत्री जुबान म फसगे। आगे कुछु शर्त नहीं।  राजकुमारी के बिहाव के तइयारी सुरु होगे। राजा -रानी दुःख म खटिया धर लीन। मंत्री ह कहय, राह न महराज देवी देवता मनला कइसे लानही। एती भगवान मन सब देवी मन -पार्वती माता , ब्रम्हाणी , सरस्वती , दुर्गा माता सबे ल बुलाइन। का पूछे -बर हे , सबो माता मन मिल के सुंदर तेल-हरदी चढ़ाईन , बिहाव के सबे नेंग- जोग ल करिन। बरात के दिन आगे। का पूछे बर हे, सुंदर दूल्हा ल तैयार करिन।आगे-आगे दूल्हा पाछू में  सबे भगवान ब्रम्हा , विष्णु -महेश , गणेश , पांचो पाण्डव , पवन , सबे परिवार सहित अपन-अपन सवारी म सवार , का पूछे बर हे, पूरा बस्ती में देखो -देखो होगे। बरात देखे बर पूरा सहर निकलगे। सुंदर ढोल -नगाड़ा , बाजा-गाजा के संग बरात महल पहुँचगे।
    एती  राजा -रानी  के रोवइ-गवई रहय , भिखारी के संग बेटी के बिहाव होत हे , कैसे होही। बरात के वर्णन राजा -रानी के कान  म गीस , वोमन पतिया बर तइयार नहीं , मंत्री जबरन राजा ल खीचीस अउ झरोखा मेर लानिस , देख महराज अब. बरात के सुंदरता ल देख के राजा-रानी हक्का -बक्का होगीन , ये का तैंतीस-कोटि देवी देवता !!!  सुंदर तइयार होइन अउ दुवार-चार पूजा करीन। सबे नेंग- जोग सहित बिहाव होइस। बरात बिदा होगे। एती सबो मैय्या मन मिल के डोला- पाइरछन करिन।
    रतिहा दूल्हा-दुल्हन ल कुरिया दिन। अब भगवान कहिन  सबे झन खास कर सत अउ लक्ष्मी,  इखर गोठ-बात ल धियान से कान लगा के  सुनव।
    राजकुमारी कहिस अब तो हमन जनम भर के संगवारी होगे , फेर एक ठन बात मोर मन म हे नाराज झन होहु।- तुमन तो सदादिन के मांग के दिन गुजारव ,  हमर छोड़े कुरता ल पहिनव। फेर का करेव के घर में सबे देवी-देवता विराजमान होगे  ,धन -धान्य आगे। लड़का कहिस- भले हमन गरीब रहेन , भिक्षा मांग के मेहनत मजदूरी करके गुजर बसर करेन , लांघन भूखन -प्यासन रेहेन फेर कभू अपन सत- ईमान ल नई छोड़ेन। भगवान हमर सत-ईमान ल चीन्हिस अउ सत के पाछु म लक्षमी मैय्या बिराजीस।
    दूल्हा-दुल्हन के  गोठ-बात ल सुन के  भगवान कहिन फैसला होगे , लक्ष्मी मइया स्वीकारिन मैं छोटे , सत कहिस मैं बड़े । टंटा निपट गे। दूसर दिन बड़े सबेरे दूल्हा-दुल्हन ल आशीर्वाद  दे के , ऊंखर ऊपर फूल बरसाईं अउ सबे देवी देवता अपन-अपन धाम चल- दिन।

"मोर कहानी पूरगे ,दार- भात चूरगे।
(प्रस्तुति : सुशील भोले)
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अगहन बिरस्पत कहानी 2

अगहन बिरस्पत कहानी 2

सियान बिना धियान नहीं..

    एक गाँव म ठाकुर -ठकुराइन रहिन। बड़ दयालु।  भगवान के कृपा ले घर म धन -धान्य भरपूर रहिस। लक्ष्मी दाई के बड़ कृपा रहीस। ठाकुर -ठकुराइन मन घलो दान - पुन करे म, जरूरतमंद के मदद करे म आगू रहय। हर महीना नियम से सोन के अवरा बना के ठाकुर -ठकुराइन दान करय। ठाकुर -ठकुराइन के सात झन बेटा -बहु रहिन। सुख से घर चलत रहीस हे। ठाकुर -ठकुराइन के दान ल देख के बहु मन खुसुर- फुसर करे। एक दिन सबले बड़े बहु से रहे नई गिस , ठाकुर -ठकुराइन ल कह दीस। अतेक दान करहु त घर के सबे सोन सिरा जही। बहु के बात ल सुन के ठाकुर -ठकुराइन दुखी होइन , फेर सोचिन ठीके कहत हे। अब ले चाँदी के अवरा दान  करबो। चाँदी के अवरा दान करे लगीन। थोर कुन समय बाद दूसरइया बहु टोक दिस। रात दिन चाँदी के दान करहु त घर के सबे चाँदी सिरा जही. वोमन फेर दुखी होइन , चाँदी ल छोड़ के कांसा के अवरा दान करे लगीन। तो तीसर बहु टोक दिस। कांसा ल छोड़ के पीतल के दान करे लगीन तो चौथइया टोक दिस , तो तांबा के करिन , पांचवा टोक दिस, लोहा के करिन तो छ्ठवैया ह टोक दिस। हार खाके माटी के अवरा बना बना के दान करिन। एक दिन सबले छोटकी कहिस रात -दिन माटी के अवरा दुहू तो सरी घर कुरिया फूट जही। छोटकी के बात ल सुन के दूनो झन अड़बड़ दुखी होइन। रतिहा ठाकुर -ठकुराइन सुनता सलाह होइन , अब घर रेहे के लाइक नई हे , चल कोनो दूसर गांव जाबो। अनसन सोच विचार के मुंधराहा उठ दुनों परानी घर ले निकल गीन।
घर ल दूनों झन मुड़- मुड़ के देखै , दुनो के आंखी ले आसू ह बोहात  रहै। बड़ भारी मन ले जात गिन। रेंगत रेंगत बड़ दुरिहा निकल गें। सांझ होगे , दुनों झन विचार करिन , आगू जंगल घना हे। इही मेर रुख के छइयां में रात ल बीता लेन। दुःख के मारे भूख -प्यास तक नई लागत रहिस ओमन ल। थके रहिन नींद परगे उंखर।  बिहनिया उठीं त अकबका गीन , उंखर चारों कोती अवरा -अवरा कोनों सोन के तो कोनो चाँदी , पीतल कासा , तांबा लोहा के। रुख ल देखिन तो आवारा के , समझ गिन लक्ष्मी -महरानी के कृपा ए। ख़ुशी -ख़ुशी सबे अवरा ल सकेलिन , उही मेर झोपडी़ बना के रहे लगीन , धीरे -धीरे उंखर घर भरगे। पहली असन फेर दान-पुन करे लगीन। झोपडी़ ह सुंदर महल बन गे। इंखर दान पुन के चर्चा दूरहिया -दूरहिया तक होय लगीस।
     ठाकुर -ठकुराइन के निकले ले बेटा -बहू मन खुश होइन। फेर ए काय धीरे-धीरे उंखर घर के सबो चीज़ -बस सिरागे। कभू घर के डेहरी म नई निकले रहिन तेन बहू मन , मेहनत -मजदूरी करे लगीन। कतकोन कमाय नई पूरय। साल बीत गे , अइसने अगहन के महीना गुरुवार के  दिन बड़े बहु लकड़ी ले बर जंगल चल दीस , प्यास लगीस ओला , पानी खोजत खोजत महल तक पहुंच गे। महल ल देख के अकबका गे। यहा जंगल म महल कोनो जादू तो नोय हे। फेर मरत रहय प्यास , मरता  क्या न करता , हिम्मत कर आरो दीस ''पानी मिलही का दाई बड़ प्यास लगत हे। भाखा ल सुन के ठकुराइन ठिठक गे , ये तो बहू के भाखा असन लगत हे  फेर सोचिस कहां आही , बाहर निकलिस तो देखिस दूबर पातर मोटियारी , भले घर के दिखत हे , काम -बूता के मारे बहू के रूप रंग , हुलिया बदल गए रहिस। चिन्हाय नई चिन्हात रहीस। सियानीन पानी दीस अउ भीतरी म बइठारिस पूछिस कोन गांव रहिथस बेटी , दूनों एक दूसर ल नई चीन सकिन। बहू बताय लगिस , का कहंव दाई - हमर सियान मन बड़ दानी रहिन , अड़बड़ दान देवय, हमन सब टोक -टोक देंन त दुखी होके घर ले निकल गिन। उंखर जाय ले सबो चीज बस सिरा गए कतकों कमाथन नई पूरे , एक लांघन एक फरहार हन। हमर सास ह लक्ष्मी रहिस। सिरतोन में दाई "सियान बिना धियान नई हे"                                               सास चिन्ह डरिस ये तो मोर बहू ए , मया के मारे बहू ल पोटार लीस। दूनों गला मिल के अड़बड़ रोइन। उखर सबे गिला सिकवा दूर होगे। लक्ष्मी -महारानी के कृपा ले सबे परिवार मिलगे। हसीं खुसी रेहे लगीन।

मोर कहानी पूर गे,  दार -भात चूर गे। 
(प्रस्तुति : सुशील भोले)
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अगहन बिरस्पत कहानी-1

अगहन बिरस्पत कहानी 1
 
   अन्न के करौ जतन..
         
     एक गाँव म साहूकार अउ साहूकारीन रहिन। बड़ मेहनती रहिन। स्वभाव ले दयालु सबके सुख -दुःख म खड़े होय। चीज -बस के कुछु कमी नइ रहिस। कोठी मन ले धान -पान उछलत रहय। धान के बड़ जतन होय फेर कोदो -कुटकी के पुछारी नइ रहय खेत -खलिहान, कोठार म परे रहय। ओखर भूर्री बारय।
        एक दिन के बात आय. अधरतिया के बेरा लक्ष्मी दाई मन बइठे गोठियावत रहए , कोदईया दाई कहीस -बहिनी हो इहाँ मोर बड़ अपमान होथे  रात-दिन मोला होरा भूंझत हें मोर देंह जरत हे हाथ -गोड़ कुटकुट ले पिराथे , लइका -बाला मोर ऊपर थूकथें -मूतथे। तुंहर तो अड़बड़ जतन होथे फेर मोर एक रत्ती  कदर नई हे। मैं अब इहाँ नई रहौं , इहाँ ले जाहूं। धनईया दाई कहिथे बहिनी सबले बड़े तहीं अस  तैं नई रहिबे त मैं का्य करहूं। आज जतन होत हे कोन जाने काली मोरो हाल तोरे असन होही। महूं नई रहंव तोरे संग जाहूं। दूनों के गोठ ल सोनईया दाई सुनत रहय उहू कहिस तुमन बड़े मन नइ रहू तो मैं काबर रहूँ महूं जाहूं तुहर संग , सोनईया दाई के बात ल सुन के रूपईया दाई कहिथे महीं अकेल्ला काय करहूं महूं जाहूं तुहर संग। चारों लछमी माई मन सुनता -सलाह होगें।
    दूसर दिन अधरतिया जब सबे झन सुत गें चारों लछमी माई साहूकार के घर ले निकल गिन। चारों झन जात गिन रस्ता म जंगल आ गे , एकदम घनघोर , कोदईया दाई कहिथे जंगल अड़बड़ घना हे बहिनी आगू नइ जान कोनो बने असन जगा देख के रुक जथन। कुछ दूर म एक ठन दिया बरत दिखिस। चारों झन उही कोती चल दीन।  देखिन एक ठन नानकुन  झोपड़ी भर हे , आसपास अउ घर नई हे। इहाँ जंगल म कोन रहिथें ?
  फेर आसरय तो चहिये , दरवाजा ल खटखटाईन आरो ल सुन के भीतरी ले एक सियान दाई कंडील धरे आइस  चारों माई ल देख के अकबका गे। यहा घना जंगल अधरतिया के बेरा अउ चार झन जवान -जवान सुंदर लकलक करत माई लोगिन देख के अकबका गे , फेर आधा डर -बल के पूछिस -काय बेटी हो।
    लक्षमी दाई मन पूछिस -अउ कोन-कोन रहिथे तोर संग। सियान कहिस -अकेल्ला रहीथों।
लछमी दाई- दाई हमन ल आसरा चाही।
सियान थोरकन गुनिस फेर कहिथे मोर कुरिया तो नानकुन हे बेटी हो तुमन बड़े घर के लगथो , कइसे रहू इहाँ।
लछमी दाई- ओखर फिकर झन कर हमन रहि जबो. इहाँ जंगल म अउ कहां जाबो।
सियान ल दया आगे. सिरतोन कहिथो बेटी कहां जाहु। आओ भीतरी म।
भीतरी म लछमी दाई मन गिन। सियान ओमन ल बैठे बर खटिया ल दीस। पानी लान के दीस अउ कहिस बेटी हो मैं गरीबीन छेना थाप के अउ बेच के जिनगी चलाथों खाय बर पेज -पसिया मिलही।
लछमी दाई- हमन ल परेम ले जेन खवाबे तेन ल खाबो , पेज -पसिया ल पीबो। एकठन बात हे - हमन इहाँ हन कोनो ल झन बताबे। खा- पी के सबो झन सुत गें। सियान मुधरहा ले उठ के गोबर बिनय अउ तहाँ ले छेना थोपय, बेरा उवय तो बस्ती म घूम -घूम के  छेना बेचय , बेचे से जेन पैसा मिलय तेखर खई -खजाना लेवय। रोज के ओखर यही नियम रहय। सियान भले गरीबीन रहीस फेर बहुत ईमानदार , दयालु अउ संतोसी रहीस हे।  वहु दिन सियान  मुंधरहा ले उठिस , ओखर संग संग लछमी दाई मन घलो उठ गें।
पूछिन बाहिर -बट्टा केती बर जाबोन दाई। सियान गुनिस यहा जवान म जंगल भीतरी कहाँ जाही , सोच के कह दिस - इही तीर में निपट लो बेटी।
चारों झन झोपडी के चारों कोती बइठ गें।
बेरा उवीस तो सियान के आंखी फटे के फटे रहीगीस , झोपड़ी के चारों कोती ल देख के। यहा का एक कोती कोदो के कुड़ही ,दूसर डहर धान , तो तीसर कोती रुपया -पैसा , अउ चौथइया कोती सोन -चांदी के ढेरी। सियान अकबका गे , सोच म परगे , कोनो जादू टोना तो नई करत हे , असिखिन -बही तो नो हे। लदलद कांपे लगीस। धाय भीतरी धाय बाहिर होय।
   लछमी -दाई मन सियान के भाव ल भांप लीन , ओला समझाईंन , दाई भगवान तोर मेहनत ल चिन्हिस अउ तोला दे हे , सकेल डर।
सियान के डर थोरकन कम होइस। मरता क्या न करता आधा डर-बल के सबे ल सकेलिस। दुसरया तिसरया दिन फेर वसनेहे होइस। सियान समझ गे एमन साधारण मनखे नई हे , हो न हो  साक्षत लछमी दाई ए।
सियान के दिन फिर गे। अब वो गोबर बीने ल , छेना बेचे ल नई जाय , झोपड़ी के जगह सुंदर महल बन गे। पूरा बस्ती म. दूर -दूर गांव म बात फ़इल गे। सियान सबके मदद घलो करेय , दान  -पून करय। सबो झन सियान ल घूमा -फिरा के , डरा -धमका के पूछय काय करेस के तोर दिन फिर गे। फेर सियान बताय नई।
        लछमी दाई मन ओला चेताय रहय। ओती साहूकार के घर धीरे -धीरे सबो धन -संपत्ति खतम होगे। कतकोन मेहनत करय खेत -खलिहान सूख्खा के सूख्खा ,धूर्रा उडियावत । मेहनत -मजदूरी करें के नवबत आगे। सियान के ख्याती साहूकार तक पहुंच गे। साहूकार ल शक होगे हो न हो लछमी दाई ओखरे घर गे हे। खोजत -खोजत साहूकार सियान के घर पहुंच गे।
   सियान  साहूकार के सुंदर आवभगत करीस।
साहूकार धीरे ले सियान ल पूछिस , का करेय दाई के तोर दिन फिर गे। झोपड़ी ले महल हो गे।  सियान टस के मस नई होइस। साहूकार डराइस -धमकइस , पुचकारीस ।
सियान डेराय -डेराय भीतरी में गीस अउ  लछमी दाई मन ल कहीस , चलव बेटी हो साहूकार आय हे तुमन ल खोजत -खोजत। तुमन ल बलावत हे। बहुत जोजियाइस। आखिर म लछमी दाई मन मिले -बर हामी भरीन अउ बाहर आइन।  लछमी दाई मन ल देख के साहूकार उखर पांव तरी गीर गे , रोय-गाय लगीस , माफ़ी मांगीस। सबे  लछमी दाई मन पसीज गे , जाय-बर तइयार होगे।
फेर कोदईया दाई  कहीस- तोर  घर म मोर बड़ अपमान होथे, नई जाव। साहूकार कहीस अब नई होय दाई , भूल हो गे माफ क़र  दे , तोर सखला-जतन करहू। आखिर म कोदईया दाई घलो मान गे  . सबे लछमी दाई मन सियान ल अड़बड़ आसिरवाद दीन अउ साहूकार के संग चल दीन।
साहूकर के दिन फेर बहूर गे। साहूकार ल समझ आगे , घर म सबोझन  ल समझाइस, भगवान दे हे तेन सबे जिनीस के  सखला-जतन करना चाही।

प्रेम से बोलो लछमी महरानी के जय।
"मोर कहानी पूरगे , दार- भात चूरगे।

(प्रस्तुति : सुशील भोले)
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