Friday 29 July 2022

नंदावत परंपरा अखाड़ा के..

नंदावत परंपरा अखाड़ा के..
    हमन कक्षा चौथी म रेहेन त पाठ 18 म एक कविता पढ़न-
सूरज के आते भोर हुआ,
लाठी लेझिम का शोर हुआ
यह नागपंचमी झम्मक-झम,
यह ढोल-ढमाका ढम्मक-ढम
मल्लों की जब टोली निकली,
यह चर्चा फैली गली-गली
दंगल हो रहे अखाड़े में,
चंदन चाचा के बाड़े में.

    ठउका कक्षा तीसरी के पाठ 17 म घलो एक कविता पढ़न-
इधर उधर जहाँ कहीं,
दिखी जगह चले वहीं
कमीज को उतार कर,
पचास दंड मारकर
अजी उठे अजब शान है,
अरे ये पहलवान है.
सफेद लाल या हरा,
लंगोट कस झुके जरा
अजब की शान है,
अरे ये पहलवान हैं.

     अइसन नजारा तब वाजिब म जगा-जगा देखे बर मिल जावत रिहिसे. लोगन अपन लइका मनला अखाड़ा म भेजना अउ उहाँ के दांवपेंच सिखवाना ल गरब के संगे-संग लइका के शारीरिक अउ मानसिक विकास खातिर बहुत जरूरी मानत रिहिन. फेर अब जइसे-जइसे आधुनिकता अउ वैज्ञानिकता के नाव म शारीरिक कौशल के पारंपरिक तरीका ले दुरिहावत जावत हन, वइसे-वइसे शारीरिक सुदृढ़ता के संगे-संग अपन परंपरा अउ संस्कृति ल घलो बिसरावत जावत हन.
    हमर पारा म हरदेव लाल मंदिर हे. इहाँ हर बछर नागपंचमी के दिन पूरा छत्तीसगढ़ स्तरीय कुश्ती के आयोजन होवय, जेमा रायपुर के सबो नामी पहलवान मन तो आबे च करंय. दुरुग, भेलई, नांदगांव, बिलासपुर, धमतरी, महासमुंद जइसन शहर के पहलवान मन घलो आवंय अउ बिहनिया ले रतिहा के होवत के अपन-अपन जोड़ के पहलवान मन संग शारीरिक कला-कौशल के प्रदर्शन करंय. लोगन खवई-पियई ल छोड़ के दिन भर उंकर मन के कुश्ती के मजा लेवत राहंय. फेर ए सब अब सिरिफ 'सुरता' के विषय बनके रहिगे हे. अइसने अउ कतकों जगा आयोजन होवय.
    एकर खातिर माटी ल कोड़-खान के विशेष रूप ले तैयार करे जाय. कतकों जगा के अखाड़ा मन तो मंदिर बरोबर पवित्र अउ सुरक्षित रहय, जिहां हनुमान जी के विशेष रूप ले पूजा-पाठ होवय. पहलवान मन जेन माटी म कुश्ती लड़थें, वोला महतारी के रूप म सम्मान देथें अउ मानथें. विशेषज्ञ मन बताथें- कुश्ती के अखाड़ा के माटी म दूध, मही, सरसों के तेल, हल्दी अउ लिमउ घलो मिंझारे जाथे. जेकर ले वो माटी ह एकदम कोंवर अउ फुरहुर हो जाथे.
    इहाँ ए जानना जरूरी हे, हमर छत्तीसगढ़ म पहिली इही अखाड़ा के पवित्र माटी ल नागपंचमी परब के कुश्ती संपन्न होए के बाद भोजली बोवइया मन अपन-अपन घर लेगंय अउ उही म भोजली बो के भोजली दाई के सेवा करंय. अब तो कुश्ती अउ अखाड़ा के परंपरा ह लट्टे-पट्टे दिखथे, त अइसन म वोकर माटी म भोजली बोए के परंपरा घलो देखे म नइ आवय.
    आजकल तो लोगन अखाड़ा जाए के बलदा जिम जाए लगे हें. उहाँ सिंथेटिक कपड़ा के बने मैट म कुश्ती के अभ्यास करथें. देश विदेश म आयोजित होने वाला कुश्ती प्रतियोगिता मन घलो अइसने मैट म होए लगे हे. फेर जानकर मन बताथें, जेन आनंद अउ माटी संग जुड़ाव के अनुभुति माटी के मैदान म होवय, वो ह मैट म नइ होवय.
    हमर गाँव म कुश्ती वाला अखाड़ा तो मैं नइ देखे रेहेंव, फेर अस्त्र-शस्त्र चलाए के संग अउ आने शारीरिक कला-कौशल के प्रदर्शन करने वाला अखाड़ा जरूर देखन. एमा पारंगत लोगन पर्व विशेष के दिन अपन ए कला के जबरदस्त प्रदर्शन गाँव के मैदान म करंय. गाँव म कभू बरात आवय या हमर गाँव ले बरात कोनो आने गाँव जावय, त एकर मन के अद्भुत कला-कौशल के दर्शन बरात परघनी के बेरा रात भर देखे ले मिलय. सब अपन-अपन कला के प्रदर्शन करंय. ए ह लोगन ल अतेक भावय, ते लोगन दुल्हा बाबू संग जेवनास घर म जाए अउ दूधभत्ता म शामिल होए के बलदा अखाड़ा के आनंद म ही बूड़े रहि जावंय. अब तो बर-बिहाव ह घलो एक दिन अउ कभू-कभू तो एके जुवर म संपन्न हो जाथे, त अइसन म भला वो रात-रात भर के परघनी अउ अखाड़ा के करतब कहाँ देखे ले मिलही?
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा.9826992811

Tuesday 26 July 2022

गेंड़ी प्रसंग...

गेंड़ी प्रसंग...
    हमर छत्तीसगढ़ म हरेली एक अइसे परब आय, जेला लइका मन गजब उत्साह के साथ अगोरा करथें. काबर ते ए दिन वोमन ल बांस के बने गेंड़ी म चघे अउ नंगत किंजरे के अवसर मिलथे. एकरे सेती लइका मन ए हरेली परब ल 'गेंड़ी परब' के रूप म घलो चिन्हारी करथें.
    वइसे तो ए परब म गेंड़ी काबर बनाए जाथे, एकर ए परब ले संबंधित का महत्व हे, ए बात कोनो ठोस कारण नइ मालूम होवय. अउ ते अउ एकर कोनो आध्यात्मिक कारण घलो समझ म नइ आवय. फेर चेतलग सियान मन के कहना हे, एला चम्मास के गहीर बरसा के सेती किचिर-काचर माते चिखला ले लइका मनला बचा के रेंगाए खातिर बनाए गे होही. तेमा वोमन चिखला-पानी ल नाहकत घलो स्कूल, कोनो तरिया या अपन संगी-साथी मन संग मेल-भेंट करे बर आसानी के साथ जा सकय. एकरे सेती ए हरेली परब के बहाना गेंड़ी बनाए के नेंग ल घलो कर दिए जाथे.
    ठउका अइसने एकर विसर्जन खातिर घलो कोनो अलग से परब नइ मनाए जाय, तभो ले एला नरबोद परब के दिन टोर-टुरा के विसर्जित कर दिए जाथे. ए नरबोद परब ल वनांचल क्षेत्र म बहुतायत म मनाए जाथे. ए परब ल 'पोरा तिहार' के बिहान दिन मनाए जाथे.
    ए नरबोद परब म सबो गाँव वाले मन पोरा के दिन के बांचे रोटी-पीठा अउ घर म जतका सदस्य होथे, वो सबो के नाव ले जुन्ना खटिया के डोरी ल गांठ बांध के, घर के जम्मो परेशानी-समस्या, रोग-राई, खाज-खजरी ल प्रतीक स्वरूप एक ठन पोतका म बांध के सकलाथें. गांव के बइगा ह सांहड़ा देव के पूजा-पाठ करथे. तहाँ ले सबो गाँव वाले मन संग सियार म पहुँचा देथे. ए तिहार म हरेली के दिन बनाए गेंड़ी ल घलो टोर-टुरा के सरोय के परंपरा ल पूरा करे जाथे. गेंड़ी ल गांव के सियार म एक पेंड़ जगा सात भांवर गोल घूम के टोरे जाथे. बइगा ह इही जगा हूम-धूप देके सबो गाँव भर के लाए पोतका मनला बार के रोग-राई ल छोड़ देथे.
    एकर बाद लइका मन गाँव के सबो रोग-राई, बीमारी-परेशानी, दुख-दरद ल ले जा रे नरबोद कहिके चिल्लावत सियार म नहका देथे. बाद म बेलवा डारा, कर्रा डारा ल खेत, घर, बारी-बखरी, कोठार आदि म खोंचे जाथे. एकर मानता हे, के एकर ले जम्मो किसम के परेशानी दुरिहा रहिथे.
    आज गेंड़ी ह प्रतियोगिता के संगे-संग कला के प्रदर्शन के रूप घलो धर लिए हे, एकरे सेती अब एला बारो महीना कोनो न कोनो रूप म देखे जा सकथे.
    अभी हमर छत्तीसगढ़ सरकार ह हरेली के दिन सबो स्कूल मन म लइका मन खातिर गेंड़ी दौड़ के प्रतियोगिता आयोजित करे बर आदेश निकाले हे, तेनो ह गजब सहराय के लाइक हे. काबर ते एकर माध्यम ले लइका मन अपन परंपरा अउ  भाखा संग जुड़त जाही.
-सुशील भोले-9826992811

Tuesday 19 July 2022

राज्य आन्दोलन ऐतिहासिक पाती

छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन ले जुड़े ऐतिहासिक पाती...
    छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन के इतिहास म 28 जनवरी 1956 के राजनांदगाँव म होए 'छत्तीसगढ़ी महासभा' के बइठका अउ गठन ल सदा दिन सुरता करे जाही, काबर ते इही दिन छत्तीसगढ़ ल अलग राज्य के चिन्हारी मिले खातिर करे गे आन्दोलन के नेंव रचे गे रिहिसे.
    छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डाॅ. खूबचंद बघेल के चिंतन-मनन ले उपजे ए जबर बुता के परिणाम आज हम ए देश के नक्शा म छत्तीसगढ़ राज्य के स्वतंत्र अस्तित्व देखत हावन.
    वो बखत 'छत्तीसगढ़ी महासभा' के लोकप्रियता अउ लोगन के ओकर संग जुड़ाव कतेक जबर रिहिस होही, ए ह ए 'पाती' ले प्रमाणित होथे. ए पाती ह छत्तीसगढ़ी महासभा के अध्यक्ष डॉ. खूबचंद बघेल के नाॅंव ले जारी होए हे, जेहा प्रिंटेड माने प्रेस म छपे वाला आय. वो बेरा म प्रेस म कोनो पाती ल छपवाय के मतलब होथे, वोहा हजारों के संख्या म छपे अउ लोगन ल भेजे गे रिहिस होही.
    ए संलग्न पाती, जेन पुरखा साहित्यकार कोदूराम जी दलित ल भेजे गे रिहिसे, ए ह उंकर सपूत साहित्यकार अरुण निगम जी के माध्यम ले मिले हे. ए पाती म दुर्ग पोस्ट विभाग के जेन ठप्पा लगे हे, वोमा 19-3-1957 के तारीख छपे हे. पाती म 'छत्तीसगढ़ी महासभा' के गठन के साल भर बाद होए बइठका अउ वोकर खातिर निर्धारित विषय के जानकारी हवय. पाती भेजइया के रूप म अध्यक्ष डॉ. खूबचंद बघेल अउ व्यवस्थापक के रूप म केयूर भूषण जी के नाॅंव छपे हे.
-सुशील भोले-9826992811

Sunday 17 July 2022

छत्तीसगढ़ी मंच के पहला कवयित्री डाॅ. निरूपमा शर्मा

31 मई जयंती म सुरता//
छत्तीसगढ़ी मंच के पहला कवयित्री डाॅ. निरूपमा शर्मा
    छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के मंच म सबले पहिली कवयित्री के रूप म अपन उपस्थिति देवइया डाॅ. निरूपमा शर्मा जी के घर अउ मोर घर एके पारा म दू कदम के फासला म रिहिसे फेर दीदी संग मोर चिन्हारी तब होइस, जब मैं सन् 1983 ले रायपुर के साहित्यिक गतिविधि मन संघरे लगेंव. खासकर के छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के साप्ताहिक गोष्ठी जेन पुरानी बस्ती के टिल्लू चौक के देवबती सोनकर धरमशाला म होवय. तब हमन दूनों अमीनपारा म राहन. मैं नवदुर्गा चौक म अउ दीदी हमर आगू के गली म. उंकर ठीक तीन घर के आड़ म डॉ. सुखदेव राम साहू जी घलो राहत रिहिन, तेकर सेती जब कभू मैं उंकर घर बइठे-उठे बर जावंव, त दूनों घर सरलग हमावत आवंव.
    महतारी सुरूजकुंवर अउ सियान बागेश्वर गोस्वामी घर 31 मई 1944 के जनमे निरूपमा दीदी हमन ल अपन सग छोटे भाई बरोबर मया करय. एक बेर सावन के महीना म वोमन हमन ला अपन मइके घुमाए बर घलो लेगे रिहिन हें. तब रायपुर ले हमन दीदी संग शोभादेवी शर्मा, डॉ. सुखदेव राम साहू, सुशील यदु अउ मैं कवर्धा म उंकर घर गये रेहेन. सावन के महीना फेर उप्पर ले सोमवार घलो तेकर सेती भोरमदेव मंदिर के दर्शन करे बर घलो चलदे रेहेन. तब कवर्धा के कवि संगी कौशल साहू 'लक्ष्य' ह हमन ल रायपुर ले पांच साहित्यकार आए हें कहिके हमर मनके सम्मान म एक कवि गोष्ठी के आयोजन कर डारे रिहिसे. हमन उहाँ जानेन के दीदी के मइके म कबीर साहेब ल जबर माने जाथे. दीदी बताए रिहिन हें- कबीर साहेब जब छत्तीसगढ़ भ्रमण म आए रिहिन हें, तब हमर ए घर म घलो पधारे रिहिन हें,  एकरे सेती उहाँ कबीर जी के खड़ाऊ माढ़े हवय, जेकर उंकर बड़े भैया सेवादार हें, उही मन वोकर सेवा करथें. वो डहार के जम्मो कबीर पंथी मन मिलके उहाँ हर बछर विशेष कार्यक्रम के आयोजन करथें. दीदी बताए रिहिन हें, ए कवर्धा वाले कबीर चौंरा ह दामाखेड़ा वाले कबीर आश्रम ले अलग हे. इहाँ के जम्मो देखरेख अउ व्यवस्था इहाँ अलग से करे जाथे.
    निरूपमा दीदी के लेखन संसार बहुतेच बड़े हे. उंकर छत्तीसगढ़ी म लिखे पहला कविता संकलन पतरेंगी ले लेके हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के- बूंदों का सागर, रितु बरनन, हमर चिन्हारी, दत्तात्रेय के चौबीस गुरु, मूल्यजनक पुराख्यान, इंद्रधनुषी छत्तीसगढ़, चिंतन के बिंदु/विचार के हीरा, दाई खेलन दे, छत्तीसगढ़ का ददरिया ( इहाँ ए जानना जरूरी हे, ए कृति ह दीदी के शोध ग्रंथ आय, जिनमा उन पीएचडी करे रिहिन हें), सामयिक गीत. इंकर छोड़े एक अउ संकलन छपे के अगोरा म रिहिसे- जिनगी के रूप.
    निरूपमा दीदी के जतका सुग्घर लेखनी रिहिसे वतकेच सुग्घर उंकर आवाज अउ प्रस्तुति घलो रिहिसे. उंकर एक गीत बहुत लोकप्रिय होए रिहिसे-
मंझली तोर बहुरिया ममादाई, मंझली तोर बहुरिया ह वो
रांधे-गढ़े के नइए ठिकाना, मांजथे पइरी अउ बिछिया ममादाई...
मइके के बड़ई म चलावथे चरखा, अड़बड़ हावय चटरही
कांदी लूवथे, पीयथें पसिया, मइके म संझा बिहनिया ममादाई...
लाली कोर लुगरा अउ गहना पहिर के मटकथे अंगना दुवारी
भुइयां म सुत के सरग के हे सपना देखत हवै अपनसुर्री
मुंह ल फुलोथे अउ नखरा देखाथे आथे जब ओकर नंगरिहा ममादाई...
ननंद देरानी के चारी ला करके दिन रात झगरा लड़ाथे
एकर ओकर बद्दी ल सुनसुन के मन ह घलो बगियाथे
अइसन पतोहिया के आगी लगे गुन म तहीं हस रद्दा बतइया ममादाई...
    ए गीत ल हमन कवि सम्मेलन के मंच म तो सुनबेच करन, आकाशवाणी ले घलो संगीतबद्ध सुने ले मिलय. निरूपमा दीदी एक हास्य कवि के रचना 'नोनी बेंदरी' जेमा एक किसम ले महिला मनके उपहास उड़ाए के कोशिश करे गे रिहिसे, वोकर  जवाब म घलो एक रचना लिखे रिहिन हें- 'टूरा बेंदरा'. ए दूनों रचना मन के ऊपर तब गजब चर्चा होए रिहिसे.  दीदी संग तो हमन कवि गोष्ठी, कवि सम्मेलन के संगे-संग आकाशवाणी म घलो कतकों बेर संगति करत राहन. हमर मन के छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' म उन शुरू ले जुड़े रिहिन. 'मयारु माटी' के हर अंक म दीदी के कविता, कहानी या लेख आदि रहिबे करय.
    निरूपमा दीदी छत्तीसगढ़ के महिला साहित्यकार मनला एक मंच म लाए खातिर घलो जबर बुता करे रिहिन हें. वोमन एकर खातिर एक किताब 'छत्तीसगढ़ की महिला साहित्यकार' छपवाए घलो रिहिन हें. मोरो जगा बहुत झन के नाम, पता अउ संपर्क नंबर मांगे रिहिन हें. उन काहयं- तैं प्रेस लाईन के मनखे अस तेकर सेती तोर जगा गजब झन के नाम पता रहिथे. ए किताब के छपवाए म मैं दीदी ल प्रूफ रिडिंग आदि के घलो सहयोग करे रेहेंव. उंकर एक दू अउ किताब मन म घलो.
    एक बात मैं ए जगा विशेष रूप ले कहना चाहथौं. निरूपमा दीदी के कवि सम्मेलन के मंच म जेन गरिमापूर्ण उपस्थिति अउ प्रस्तुति हमन देखे रेहेन, आज के मंच म वो कोनो मेर देखब म नइ आवय. आज तो कवि सम्मेलन के मंच ह गम्मत के रूप धारण करत दिखथे, जे हा बहुत चिंता अउ दुख के बात आय. वरिष्ठ मनला एती चेत करना चाही.
    निरूपमा दीदी ल 5 सितम्बर 2001 के राष्ट्रपति द्वारा मिले शिक्षक सम्मान सहित हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य अउ सामाजिक काम खातिर गजब सम्मान मिले हे. पं. रविशंकर वि. वि. रायपुर ह एक छात्रा ल छत्तीसगढ़ के पहला महिला साहित्यकार के रूप म एमफिल के उपाधि घलो दिए हे. वोमन प्राथमिक ले लेके उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम निर्धारण अउ पाठ्य विषय वस्तु के विषय समिति के मानद सदस्या घलो रहे हें.
    जिनगी के हर क्षेत्र म सफलता अउ सम्मान के शिखर ल अमरत 78 बछर के उमर म 7 जून 2022 के उन ए नश्वर दुनिया ले बिरादरी ले लेइन. उंकर सुरता ल पैलगी जोहार.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Friday 1 July 2022

'ढेंकी' के समीक्षा पोखनलाल जायसवाल


      
*छत्तीसगढ़ी अस्मिता अउ स्वाभिमान के प्रतीक  :  ढेंकी*

       हमर छत्तीसगढ़ संस्कृति, बोली-भाखा, रीत-रिवाज अउ लोकसाहित्य ले अपन अलगे चिन्हारी रखथे। कोनो भी परम्परा ह एक समय के पाछू संस्कृति के रूप म बदल जथे। छत्तीसगढ़ राज बर जउन भी आन्दोलन होय हे, वो सबो शांतिपूर्ण रहे हे। राज बन भी गे, फेर अपन राज बने के अपन सुख आजो नइ मिल पावत हे। छत्तीसगढ़ी ल ओ सम्मान नइ मिल पाय हे। जे कोनो राजभाषा ल मिलथे। भाषा संस्कृति के पोषक होथे। भाषा ले ही संस्कृति के बढ़वार हे, भाषा संस्कृति के संवर्धन बर खातू-पानी जस उपयोगी होथे। संस्कृति ल मिले गौरव ले अंतस् म अभिमान जागथे। अपन अस्मिता अउ अस्तित्व बर स्वाभिमान के होना जरुरी आय। अपन अस्मिता अउ अस्तित्व बर लड़ाई लड़े ल परथे। साहित्य ले साहित्यकार मन जागरण के अलख जगाथें। जन जन म चेतना भरथें। जनजागरण लाय म कहानी मन के बड़ भूमिका होथे। कहानी कोनो घटना ल लेके जिनगी ल नवा रस्ता दिखाय के बूता करथे। निराशा के अँधियारी ल मेट आशा के अँजोर बगराथे। कहानीकार मन अपन गढ़े पात्र मन के माध्यम ले कहानी म अपन विचार ल लिखथें। मानवीय मूल्य मन ल सहेज के समाज ल नवा दिशा देथें। समाज म फइले अंधविश्वास, कुरीति अउ आडंबर ल दूर खदेड़थें त दूसर कोती शोषण, भ्रष्टाचार, भेदभाव के विरुद्ध फौज खड़ा करथें। स्वाभिमान, अस्मिता अउ अस्तित्व बर संघर्ष करे के ताकत अंतस् म जगाथें।
        छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी अस्मिता बर जिनगी भर संघर्षरत रहे सुशील भोले जी मन छत्तीसगढ़िया समाज म जनजागरण लाय के उदिम म कतको आन्दोलन म भाग लिन। इँकर अलावा उन मन साहित्य के माध्यम ले जागरण के स्वर ल जन-जन तिर पहुँचाय बर कहानी लिखिन। उही कड़ी म 13 कहानी मन के संग्रह ढेंकी निकालिन। ढेंकी छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान अउ अस्मिता के प्रतीक आय। राज बने के पहिली गँवइहाँ जिनगी म ढेंकी घरोघर पाय जावत रहिस हे। पौनी पसारी के बूता कमइया मन रोज बनी भूती ले के बनी म मिले धान ल कूटँय, तब जाके घर के चूल्हा म आगी बरै। आज के सहीं तब गाँव-गँवई के दूकान मन म चाँउर नइ बेचावत रहिस हे। काम के बलदा म धान मिलत राहय। जेन ल कूट के खावँय। सबो गाँव म मिल नइ राहत रहिस। ढेंकी गरीब मजदूर वर्ग के प्रतिनिधित्व करथे। छत्तीसगढ़ के लोकजीवन ले जुड़े एक चिन्हारी आय ढेंकी।
         ए संग्रह के कहानी मन के संवाद मन अइसे लागथे, जना मना हमरे तिर तखार के गोठ बात हरे।जम्मो जिनिस मन आँखीं के आगू म फिलिम बरोबर दिखे लगथे। पात्र मन के मुताबिक संवाद लिखाय ले कहानी मन कोनो सच्ची घटना बरोबर लागथे। जेन मन ला कहानीकार ह अपन भाषई चतुरई ले कल्पना के पाग धरे लाड़़ू बरोबर बाँध डरे हे। भाषा के मिठास म  बूड़े पाठक कब कहानी ल पढ़ डारथे पार नइ पावँय। कल्पना के पाँख लगाय बिना कहानी म विस्तार नइ लाय जा सकय अउ अपन उद्देश्य ल पूरा नइ करे जा सकय। कुल मिला के ए कहे जा सकत हे कि कहानी मन अपन शिल्प म कहूँ मेर कोनो किसम के समझौता नइ करे हे। भाषा सरल सहज हे। पठनीय हे। मुहावरा अउ हाना मन ल बउरे ले कहानी के सुघरई बाढ़ गे हे।
       संवाद मन मन म गहिर छाप छोड़थे---"का करबे सेठईन..तुहीं मालिक मन घर ले काठा पइली पाथन, तेने ल अतके बेर कूट काट के राखथन, तभे चूल्हा बरथे....बइठे तक के फुरसुद नइ मिलय।"
       एक ठन अउ संवाद देखव, जेन म समाज के कर्ता-धर्ता मन के सुभाव म आय बदलाव ल सरेखत व्यंग्य हे अउ एक संदेश घलव हे---
" का करबे बेटी हमूँ मन तोरे जात समाज के होतेन त एती तेती कइसनो करके तोर हाड़ म हरदी चढ़ाए के बेवस्था ल करबे करतेन।फेर तोर समाज आन अउ हमर आन। कइसे ककरो घर उदुप ले चल देबे? तुँहर समाज के जतका झन हें...देखे भर के हें। ....समाज के नाँव म सिरिफ राजनीति करे...समाज के मन मरय ते बाँचय....।"
     हमर संस्कृति अउ संस्कार ल बट्टा लगइया मन ऊप्पर बरसत अपन अंतस् के पीरा ल कहिथे..." कहाँ ले दिखही बेटा कमाए-खाए ले आए रिहिन हें, फेर अब तो इही मन इहाँ के मालिक बनगे हें, हमर संस्कृति इतिहास अउ चिन्हारी के प्रवक्ता बनगे हें। ए मन लोगन ल हमर बारे म जइसन बताथें, चिन्हाथें, तइसने लोगन हम ल जानथें, चिन्हथें।"
      अब कुछ कहानी मन के स्वर के गोठ बात कर लन।
       संग्रह के नाँव ऊप्पर के कहानी ढेंकी म नियाव के बखत कोनो छोटे-बड़े नइ होवय। सब बरोबर होथे। नियाव सब ल मिलही। नियाव म भेद नइ करे जाय। इही सब बात के परछो मिलथे। अब वो जमाना गय जब गाँव पंचइत म नियाव मनखे चिन्ह के होवत रहिस। कहानी के छेवर ह मुंशी प्रेमचंद जी के पंच परमेश्वर के सुरता करा गिस।
         गुरु बनावौ जानके म विकास के लालीपाप धरा के हमर संस्कृति अउ परंपरा ल मेटत हम ल लुटइया मन ले बाँचे बर चेतवना हे।
         धरम युद्ध म राम राज के मरम अउ महत्तम ल बताय गे हे। अपन राज म अपने मनखे ल राजा के रूप म देखे के सपना पूरा होवत दिखाय गे हे। साँस्कृतिक हमला के कथानक ऊप्पर लिखे कहानी म बाहरी अउ स्थानीय म फरक करे के मूल स्वर हे।
         "धरमिन दाई" पात्र ल ही दान दे के संदेश देथे। पात्र मनखे नइ मिले ले समाज ल दान करके सामाजिक हित म धन दौलत लगाना चाही। जेकर ले समाज के उत्थान हो सकय। एकर संग कहानी म नारी शिक्षा बर बड़ संदेश हे।
      संसार के चक्र ल बनाय रखे म कन्या दान जरुरी हे। बेसहारा अउ अनाथ बेटी के बिहाव रच के पुन कमाय के नवा रद्दा दिखाय के कहानी आय "नवा रद्दा"। जेन म
       "एंहवाती" छत्तीसगढ़िया का?पूरा भारतीय समाज म विधवा के जिनगी ल सँवारे के उदिम म करे गे बेवस्था ल सही ठहरावत सुग्घर पारिवारिक अउ सामाजिक कहानी  आय। जे समाज म नारी ल हँसी खुशी के संग जिनगी जिएँ के मौका दे के रस्ता खोलथे।
          "अमरबेल" क्षेत्रीयता के स्वर ल मुखर ढंग ले पिरोए हे। अमरबेल प्रतीक के रूप म उपयोग करे गे हे। जउन ल परदेशिया मन बर बउरे गे हावय। परदेशिया मन हमरे आसरा लेके हमीं ल कइसे चूस डरथे? मन के बात गड़रिया जानै। इहीच भाव परदेशिया मन के अंतस् म रहिथे। जेन उजागर नइ होय। इही बात ल अमरबेल म कहानीकार मन रखे के उदिम करे हें।
       बड़े आदमी ( गाँव के धनी मनखे अउ नेता/सरपंच मन)के चतुरई अउ गाँव के विकास म भेंगराजी मारे के पोल खोलथे। संगेसंग सरकारी योजना मन के बंदरबाट कइसे होथे? एकर बढ़िया चित्रण "बड़े आदमी" म होय हे।
      डंगचगहा कहानी आस्था, विश्वास के भरोसा मया(प्रेम) के मँझधार म झूलत चंदा के एकतरफा प्रेम कहानी आय।
        "बलवा जुलूम" छत्तीसगढ़ के विकास म बाधा अउ बड़का समस्या नक्सलवाद के कथानक ले सिरजाय गे हे। नक्सली, पुलिस, सेना अउ नेतामन ले त्रस्त आम आदमी के पीरा ल परतवार खोल के रखे म कहानी सक्षम हे। कहानी म नक्सली अउ रक्षा म तैनात रक्षक मन के चरित्र (करिया मन) ल उघार के रख दे हे। कहानी म उँकर करतूत ल पढ़ के मन म आगी लग जथे। उँकर घिन बूता अउ विभत्स रूप ले सलवा जुडूम के दिशाहीन होय के सबूत मिलथे। तभे कहानीकार ह कहानी के नाँव बलवा जुलुम रखे हे।
          संग्रह के आखरी कहानी के शीर्षक मन ल सुख पहुँचाथे। किताब के समापन सुख ले होय म मन म शाँति हमाथे। शिक्षा ले जिनगी के जम्मो सुख पाए जा सकथे, जिनगी म शिक्षा बड़ जरूरी हे। इही संदेश देवत कहानी "मन के सुख" अंजलि के संघर्षमय जिनगी के राम कहानी आय। हाँ! अंजलि के डॉक्टर बने के बात थोकन अचरज लागिस। चौथी तक पढ़े अंजलि सग्यान होय ले गिरहस्थी जिनगी म पहुंचिस अउ फेर गिरहस्थी टूटे के पाछू पढ़ई करत डॉक्टर बनई ह मोर समझ नइ आइस। हाँ! लेखक ल हक हे, के पात्र ल कइसे गढ़ना हे? अउ कहानी ल कइसे मोड़ देना हे अउ कोन मेर खत्म करना हे?
           ए संग्रह के मूल स्वर तो छत्तीसगढ़िया अस्मिता अउ संस्कार ल समेटे क्षेत्रीयता ल सजोर करे के हावय। क्षेत्रीयतावाद ह राष्ट्र हित म सही नइ होवय। राष्ट्रीयता के मार्ग म क्षेत्रीयता ह बाधा आय। फेर भारत जइसन देश बर क्षेत्रीयता ह माला के एक ठन मोती सहीं होथे। जउन ल राष्ट्रीयता के सुतरी म पिरो-पिरो के माला ल पूरा गुँथे जा सकत हे। बस क्षेत्रीयता ह कट्टरता के हद ल पार झन करँय। संस्कृति अउ परंपरा लोगन ल जोर के रखे के बड़का बँधना आय। इही म बँध के ही मनखे सही मायने म अउ आने जीव मन ले श्रेष्ठ होथे। एक-दूसर के क्षेत्रीय संस्कृति, परंपरा, संस्कार अउ रिवाज ल कमजोर झन करन। नइ तो अवसरवादी मन अपन मकसद म कामयाब हो जही।
         ए संग्रह के आधा ले जादा कहानी मन बहुत पहिली लिखे गे कहानी आय, फेर इँकर प्रासंगिकता आजो हे। पाठक के मन ल जरूर हरषाही। सुग्घर-सुग्घर कहानी मन के बढ़िया संग्रह बर कहानीकार सुशील भोले जी ल बधाई अउ शुभकामना पठोवत हँव।

*संग्रह - ढेंकी (द्वितीय संस्करण)*
*कहानीकार - सुशील भोले*
*प्रकाशक - स्मृति प्रिंट हाऊस रायपुर*  
*वर्ष  - 2020*
*मूल्य - 260/-*
*पृष्ठ - 112*

✍️ *पोखन लाल जायसवाल*

पलारी (पठारीडीह)
जिला -बलौदाबाजार छग.
9977252202