Tuesday 31 August 2021

लोक आस्था के आठे..

लोक आस्था के 'आठे'
   पूरा देश अउ दुनिया म मनाए जाने वाला कोनो परब-तिहार जब लोक के डेहरी म पहुंचथे, त वो अपन एक अलगेच अउ मौलिक रूप धर लेथे. हमर छत्तीसगढ़ म एक अइसने परब देखे बर मिलथे, जेला हम सब 'आठे' या 'आठे कन्हैया' के नांव ले जानथन.
   योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के परब ल पूरा दुनिया म भादो महीना के अंधियारी पाख म आठे (अष्टमी) तिथि म मनाए जाथे. ए अष्टमी तिथि के सेती ही एला आठे कहिथे. एकर संबंध म एक मान्यता इहू हवय- भगवान कृष्ण ह अपन महतारी देवकी के गरभ ले जनम लेवइया आठवाँ संतान रिहिसे, तेकर सेती एला आठे कहे जाथे. 
   हमन जब लइका राहन गाँव म राहत रेहेन, त ए आठे के दिन बिहनिया ले बारी अउ बियारा मन म जाके सेमी पान टोर के लावन अउ वोला कुचर के हरियर रसा ल निकालन. गाँव के भांठा ले भेंगरा पान घलो लानन, वोमा जादा रस निकलय. महतारी बहिनी मन के पांव म रचाए के माहुर ले लाली रंग बनावन अउ बमरी के दतवन ल कुचर के लिखे/पेंटिंग करे खातिर कुची बनावन. कभू-कभू स्कूल-कापी म लिखे खातिर पहिली जेन कांच के दवात म स्याही राहय वोकरो उपयोग पेंटिंग खातिर कर लेवन.
   इहाँ ए बात जानना जरूरी हे, पहिली भगवान कृष्ण के मूर्ति या फोटो आदि आज अतका सहज उपलब्ध नइ रिहिसे. खास करके गाँव-गंवई म तो बिल्कुल नहीं. तेकर सेती उंकर पूजा खातिर अपन घर के पूजा ठउर म भिथिया म भित्ति चित्र बनाए जावय. हमर मन के बिहनिया ले रंग कुचरई के बुता ह उही भित्ति चित्र के रेखांकन खातिर राहय.
   पूजा घर के कोठ म दू-तीन फीट के ऊंच म डमरू असन आकार वाले आठ ठन लइका के पुतरा बनाए जाय. लोगन एला अपन- अपन कल्पना के अनुसार बना लेवंय. कोनो सिरिफ आठ झन लइका भर के छापा, त कोनो बड़का असन डोंगा म आठ लइका मनला खड़े कर देवंय. कतकों झन ऊपर म आठ लइका के छापा अउ तरी म नंदिया घलो बना लेवंय, जेमा डोंगा, सांप, मछरी सब के छापा उकेर देवय. तहाँ ले इही सब ल भगवान के अवतरण के प्रतीक मान के एकरे पूजा कर लेवंय.
    हमर इहाँ के परंपरा म कृष्ण जन्म ले जुड़े एक अउ परंपरा देखे ले मिलथे. जब ककरो घर लइका के जनम होथे, त वोला धान ले भरे सूपा म बइठारे के नेंग करे जाथे. बाद म वो सूपा भर धान ल जचकी कराने वाली दाई ल दे दिए जाथे. ए परंपरा ल भगवान कृष्ण संग जोड़े जाथे. सियान मन के कहना हे- भगवान जब जनमिस त जेल म रिहिसे. वोकर सियान वासुदेव जी तब वोला कंस के हाथ लगे ले बचाए खातिर वो जगा रखाए सूपा (साहित्य के अध्ययन ले टोकरी के जानकारी मिलथे) म बइठार के नंद बाबा के इहाँ अमराए रिहिसे. एकरे सेती हमर इहाँ नवा अवतरे लइका ल धान ले भरे सूपा म बइठारे के नेंग करे जाथे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 26 August 2021

कमरछठ और महुआ.. (संशोधित)

कमरछठ और महुआ का उपयोग?
कार्तिकेय जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला पर्व "कमरछठ" को बलराम जयंती के रूप में "हलषष्ठी" कहकर प्रचारित किया जाना कितना तर्क संगत और सत्य है? इस पर विचार किया जाना आवश्यक लगता है।
वैसे यह कहना भी सही लगता है, कि हलषष्ठी और कमर छठ (कुमार षष्ठ) दो अलग-अलग संदर्भ से जुड़े पर्व हैं. लेकिन हमारी अज्ञानता के कारण दोनों गड्ड-मड्ड कर एक कर दिए गये हैं. जैसे कई और पर्वों के संदर्भ में देखने में आता है. उदाहरण के रूप में छेरछेरा को ले सकते हैं. इसे आदिवासी वर्ग के लोग गोटुल की शिक्षा पूर्ण होने पर मनाते हैं. हमारे इधर मैदानी क्षेत्र में खरीफ फसल की मिंसाई के पश्चात खुशहाली के रूप में, तो सब्जी उत्पादक मरार समाज शाकंभरी जयंती के रूप में. जबकि मुझे शिव जी के द्वारा विवाह पूर्व पार्वती की परीक्षा लेने के लिए नट बनकर भिक्षा मांगने के संबंध में ज्ञान प्राप्त हुआ था.
    कमरछठ के संबंध मेरे द्वारा पूर्व में किये गये लेख में संस्कृत भाषा के "कुमार षष्ठ" शब्द को छत्तीसगढ़ी अपभ्रंश के रूप में "कमरछठ" बनना बताया गया था। इस पर अनेक मित्रों ने प्रश्न किया था।
मित्रों, यहां की मूल संस्कृति, जिसे मैं "आदि धर्म" कहता हूं, वह वास्तव में शिव परिवार पर आधारित संस्कृति है। इसीलिए यहां के हर एक पर्व का संबंध किसी न किसी रूप में शिव और उनके परिवार पर आधारित होता है।
आप सभी जानते हैं, कि यहां के मूल निवासियों के जीवन में "महुआ" का कितना महत्व है? जन्म से लेकर मृत्यु तक यह (महुआ) इनके जीवन का अनिवार्य अंग है। तब आपको क्या लगता है, कि जिस "कमरछठ" पर्व में महुआ पत्ते की पतरी, महुआ डंगाल का दातून और पसहर को पकाने (खोने) के लिए चमचा (करछुल) के रूप में महुआ-डंगाल का उपयोग और सबसे बड़ी बात, इसकी पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में (लाई के साथ) सूखे हुए महुए के फूल उपयोग में लाया जाता है, वह "आदि संस्कृति" के बजाए किसी अन्य संस्कृति का अंग होगा?
मित्रों, यह़ा के मूल धर्म और संस्कृति के ऊपर मनगढंत किस्सा-कहानी गढ़कर जिस तरह भ्रमित किया जाता रहा है, जो बहुत ही चिंतनीय है।
  बहुत जरूरी है, कि हम अपनी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिए अन्य कहे जाने वाले लोगों के पीछे भटकने के बजाय इसके नेतृत्व का ध्वज अपने ही हाथों में धारण करें। आइए "आदि धर्म जागृति संस्थान" के मिशनरी कार्य में हाथ से हाथ मिलाकर जुड़़ें।

आदिवासी समाज का यह मानना है.....

*खम्मर दाई पनमेश्वरी दाई दुल्हिन दाई ना सेवा जोहार*

कोयतुर समाज में गण जीवधारी अपने विशिष्ट संस्कृति, देवी देवता और प्रक्रति पर आधारित रीति रिवाज प्रथा परंपरा अनुसार प्रक्रति के देवी देवता और पुरखा पुरखा के देवी देवता हमेशा याद करने पर *संकट काल की घड़ी में अपने वंशज और फसल व संपत्ति की रक्षा करते हैं*

कमरछठ पूजा पद्धति मांझी समाज की कुल देवी पनमेश्वरी दाई पानी गुसाईन की याद में वर्तमान में हलषष्टी के रुप में मनाई जाती है

माता शक्ति हमेशा कृपालु होतीं हैं और अपने बाल बच्चों का ख्याल रखती हैं बच्चों की खुशहाली के लिए कमरछठ भादोमास अंधियारी षष्टी के दिन ताल सगुरिया बनाकर किनारे पर साजा सरंई महुआ डूमर गस्ती आम और काशी लगाते है तालाब में ही प्रक्रति जन्य पर आधारित उत्पन्न होने वाला धान पसहर का खीर बनाकर भोग कराया जाता है

*प्राकृतिक रूप से उपजे भाजी पाला:--चरोटा भाजी, कांटा भाजी, केना भाजी, कुर्रु भाजी, गुमी भाजी, सुनसुनिया भाजी, करमोत्ता भाजी*

ढेंस कांदा, रतालु कांदा, पोखरा, कमल फूल, खोखमा एवं केऊ कांदा
भैसी का दूध इस्तेमाल करतें हैं

*पेनमड़ा शक्ति के रूप में विराजमान
जैसे:-- *साजा झाड़ मे बुढादेव
           सरई झाड़ में सरना देव
           महुआ में दुल्हा देव
           डुमर मे दुल्हिन दाई
           आम झाड़ में संभू बाबा
            कांशी पेड़ देव तर्पण साक्षी के लिए उपयोग करते हैं**

आदि एवं समस्त प्राकृतिक शक्तियों का सेवा पूजा किया जाता हैं एवं पानी के लहरा को खम्मर दाई भी कहते हैं दुसरा अर्थ है खम माने शक्ति शाली एवं मर्र्री मानें बाल बच्चा होता है इसलिए दुल्हिन दाई पन्ने रानी पानी गुसाईन पनमेश्वरी दाई हल षष्टी कमरछट पूजा माताएं उपवास रहकर बाल बच्चों के खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं

*सामग्री:--6 महुआ पान के पतरी एवं महुआ का दातुन  
              6 प्रकार के भाजी
              महुआ फूल, पसहेर चांवल, लाई
              6 प्रकार के अन्न के दाना
              6 चुकी
              भैंस के दूध दही घी
              एक सफेद धजा
               पान, सुपारी बंदन ईलाइची पंच मेवा
               कुआंरी धागा एक माई कलश रख कर विधि विधान से
कमरछट पूजा किया जाता है!*

-सुशील भोले -9826992811
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर

Thursday 19 August 2021

हरि ठाकुर.. सुरता

🙏   पुरखा के सुरता//
क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी हरि ठाकुर
    पुरखा साहित्यकार हरि ठाकुर जी के चिन्हारी आमतौर म एक मयारुक गीतकार के रूप म जादा हे, जेकर असल कारण आय, छत्तीसगढ़ी भाखा म बने दुसरइया फिलिम "घर द्वार" म लिखे उंकर गीत मन के अपार सफलता. फेर मैं उंकर एक इतिहासकार, पत्रकार के संगे-संग  क्रांतिकारी रूप के जादा प्रसंशक हंव.
    उंकर संग मोर चिन्हारी सन् 1983 म तब होए रिहिसे जब हमन अग्रदूत प्रेस म नवा-नवा काम करत रेहेन. उहाँ पुरखा साहित्यकार अउ पत्रकार आदरणीय स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी तब सलाहकार संपादक रिहिन हें. उंकर संग मेल-भेंट करे बर आदरणीय हरि ठाकुर जी के संगे-संग अउ तमाम साहित्यकार मन आवंय. तब उंकर मन संग मोरो भेंट-चिन्हारी हो जावत रिहिसे. आगू चलके जब मैं साहित्यिक अउ सामाजिक गतिविधि के संगे-संग छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म संघरेंव, तहाँ ले घनिष्ठता अउ बाढ़त गिस.
    उंकर जनम 16 अगस्त 1927 के रायपुर म होए रिहिसे. उंकर सियान ठाकुर प्यारेलाल सिंह जी ल हम सब त्यागमूर्ति के संगे-संग लोकप्रिय महान श्रमिक नेता, आजादी के आन्दोलन के योद्धा, सहकारिता आन्दोलन के कर्मठ नेता, पत्रकार, विधायक अउ रायपुर नगर पालिका के तीन घांव रह चुके अध्यक्ष के रूप म जानथन. अपन सियान ले उन ला प्रेरणा मिले रिहिसे. एकरे सेती उन अपन छात्र जीवन म सन् 1942 म असहयोग आन्दोलन म शामिल होगे रिहिन हें. 1950 म छत्तीसगढ़ महाविद्यालय रायपुर म उन छात्र संघ अध्यक्ष बनगे रिहिन हें. इहें ले उन कला अउ विधि म स्नातक के उपाधि पाके दस बछर अकन ले वकालत घलो करे रिहिन हें.
    देश ल आजादी मिले के बाद सन् 1955 म पुर्तगाली शासन के विरुद्ध गोवा मुक्ति आन्दोलन म घलो संघरे रिहिन हें. सन् 1956 म डा. खूबचंद बघेल के संयोजन म राजनांदगाँव म होए "छत्तीसगढ़ी महासभा" घलो म उन संघरे रिहिन हें, जिहां उन ला ए संगठन के संयुक्त सचिव बनाए गे रिहिसे. ए छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन रूपी यज्ञ म फेर वो जीवन भर आहुति देवत रिहिन हें. मैं उंकर इही रूप के सबले जादा प्रसंशक रेहेंव. काबर ते ए आन्दोलन म महूं एक नान्हे सिपाही के रूप म जुड़े रेहेंव, अउ आजो वो अस्मिता आधारित राज निर्माण के कल्पना म संघरेच हावन. काबर ते अभी घलो अस्मिता आधारित राज निर्माण के सपना ह सिध नइ पर पाए हे. हमन ल एक अलग राज के रूप म चिन्हारी तो मिलगे हवय, फेर अभी घलो इहाँ के भाखा अउ संस्कृति ह स्वतंत्र पहिचान खातिर आंसू ढारत हावय. अभी तक छत्तीसगढ़ी ह शिक्षा अउ राजकाज के भाखा नइ बन पाए हे, उहें इहाँ के आध्यात्मिक संस्कृति के सबले जादा दुर्दशा देखे बर मिलत हे.
     राज आन्दोलन के बखत ठाकुर साहब इहाँ के राजनेता मन के दु-मुंहिया गोठ ले घलो भारी नाराज राहंय. एक डहार तो ए नेता मन हमर मन जगा राज आन्दोलन के समर्थन के गोठ करंय, अउ जब दिल्ली-भोपाल म अपन आका मन के आगू म जावंय, त कोंदा-लेडग़ा होगे हावंय तइसे कस मुसवा बरोबर खुसरे असन राहंय. उंकर मन के इही चाल देख के उन नाराज राहंय. मोला सुरता हे, छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के जलसा, जेन इहाँ मठपारा के दूधाधारी सत्संग भवन म होवत रिहिसे, उहाँ उन मंच ले कहे रिहिन हें-"ए नेता मन माटी पुत्र नहीं, भलुक माटी के पुतला आंय". छत्तीसगढ़ राज निर्माण के बाद घलो उन कहे रिहिन हें, जब तक इहाँ के भाखा अउ संस्कृति के स्वतंत्र चिन्हारी नइ बन जाही, तब तक ए राज निर्माण के अवधारणा ह अधूरा रइही. एकर बर मैं इहाँ के जम्मो कलमकार अउ छत्तीसगढ़ी अस्मिता के हितवा मनला आव्हान करत हंव, उन ए बुता म चेत करंय.
    हरि ठाकुर जी हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी म सरलग लिखिन. महूं घलो अपन संपादन म वो बखत रहे छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका "मयारू माटी" म घलो उन ला लगातार छापत रेहेंव. तब हमन छत्तीसगढ़ी म गद्य रचना मन के जादा ले जादा प्रकाशन के पक्ष म राहन. ठाकुर साहब काहयं घलो-हम ला छत्तीसगढ़ी के बढ़वार खातिर गद्य रचना मन डहार जादा चेत करना चाही.
   आवव, उंकर सन् 1979 म छपे छत्तीसगढ़ी रचना के संकलन "सुरता के चंदन" जेला वो मन देवीप्रसाद वर्मा 'बच्चू" अउ श्यामलाल चतुर्वेदी जी ल भेंट करे हें. उंकर कुछ अंश ला झांक लेइन-
कतका दुख सहे आदमी, बादर घलो दगा देथे
उमड़-घुमड़ के आथे अउ बिन बरसे कहाँ परा जाथे
जरत भाग के होले ला अउ बार बार बगरा जाथे
सपना खंड़हर होत, करम के अक्षर घलो दगा देथे
कतका दुख ला सहे आदमी, बादर घलो दगा देथे.
* * * * *
अटकन मटकन दही चटाकन
लउहा लाटा करै गगन
फुगड़ी खेलत हवय पवन

चौक पुराए असन घाम हर
खोर खोर म बगरे हे
जुन्ना पाना झरय
उल्होवै नावा पाना सनन सनन
फुगड़ी खेलत हवय पवन...
* * * * *

गहरी हे नदिया के धार बैरी
जिनगी परे हे निराधार बैरी
लहरा बने हे पतवार बैरी
बिजली के तने तलवार बैरी

डोंगी हवै बिच मझधार बैरी
लदे हवै पीरा के पहार बैरी
चारो कोती हवै अंधियार बैरी
सपना के होगे तार तार बैरी.
* * * * *

खुडुवा खेलत हवै गगन भर
मंझन भर चितकबरा बादर
अउर सांझ कुन हंफरत हावै
जीभ लमाए झबरा बादर

आज बरसही काल बरसही
कहिके भुइयां जोहत हावै
टुहूं देखा के आनी-बानी
कइसन मन ला मोहत हावै
माते हाथी अस उमड़त हे
भरे न तब ले लबरा बादर
खुडुवा खेलत हवै गगन भर
मंझन भर चितकबरा बादर..
* * * * *
   सन् 1956 म छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन के नेंव रचे के संग ले जुड़े रेहे हरि ठाकुर जी 1 नवंबर 2000 के बने नवा छत्तीसगढ़ राज के नवा रूप ल तो देखिन, फेर सिरिफ कुछ महीना भर ही अपन पूरा होए सपना ल देखे पाइन अउ 3 दिसंबर 2001 के ए दुनिया ले बिदागरी ले लेइन. उंकर सरग सिधारे के पाछू सन् 2011 म अनामिका पाल जी ह "हरि ठाकुर के साहित्य में राष्ट्रीय चेतना" विषय म पं. रविशंकर विश्वविद्यालय ले पीएचडी करे हावय, जेकर माध्यम ले आदरणीय हरि ठाकुर जी के जम्मो कारज ल एके जगा जाने अउ पढ़े जा सकथे.
   उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी...🙏🙏
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Friday 6 August 2021

पोथी.. चंदैनी गोंदा..

पोथी के गोठ//
चंदैनी गोंदा : छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक यात्रा...
     डहर चलती गोठबात म कहिन त 'चंदैनी गोंदा' एक मौसमी फूल आय, जेन पिंयर-कत्थई रंग के पंखुड़ी मन के झोप्फा म मुस्की ढारत एती-तेती जामे दिख जाथे. फेर जब इही 'चंदैनी गोंदा' के गोठ छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक अस्मिता के संदर्भ म होथे, त इहाँ के सांस्कृतिक गौरव जागरण के संगे-संग छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन के डोंगा ल रचनात्मक रूप ले आगू बढ़इया पतवार के रूप म देखथन.
   दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के सिरजन, संयोजन अउ निर्देशन म एकर पहला प्रदर्शन 7 नवंबर 1971 के उंकरेच गाँव बघेरा म होए रिहिसे. तब ले चले सांस्कृतिक आन्दोलन ह छत्तीसगढ़ के लगभग हर गाँव म आजो कोनो न कोनो नांव अउ रूप म चलतेच हे.
     ए बात अलग हे, के दाऊजी जेन मिशन अउ भव्यता के संग एकर नेंव रचे रिहिन हें, वो ह कोनोच मेर छाहित होवत नइ दिखय. आज तो लोगन एकर नांव म पद, पइसा अउ प्रसिद्धि के जुगाड़ म चिथियाए जादा दिख जथें. तब वो गौरवशाली रूप अउ वोकर संग जुड़े उद्देश्य के सुरता रहि-रहि के आथे. मन म एक तड़प उठथे, के फेर वो दिन लहुट के आ जावय. अभी एदे डा. सुरेश देशमुख जी के संपादन म छपे पोथी "चंदैनी गोंदा : छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक यात्रा..." ल देख-पढ़ के अउ जादा जनाय ले धर लिए हे. अउ भरोसा घलो होवत हे के ए पोथी ल पढ़े के बाद कोनो न कोनो देशमुख ए धान कटोरा म फेर आही, जेन सांस्कृतिक वैभव के गौरवशाली बेरा ल फेर परघाही.
    सुरेश देशमुख जी दाऊजी के पारिवारिक सदस्य होए के संगे-संग 'चंदैनी गोंदा' के सिरजन के संग ले ही वोकर व्यवस्था के देखरेख अउ उद्घोषक के रूप म जुड़े रहे हें, तेकर सेती ए पोथी के प्रमाणित अउ विस्तारित रूप ले जादा महत्व हे. अपन संपादन म छपे ए पोथी ल उन द्वितीय संस्करण (संशोधित अउ परिवर्धित) बतावत जानकारी दिए हें, एकर पहला संस्करण साहित्यिक पुरखा नारायण लाल परमार अउ त्रिभुवन पांडेय के समिलहा संपादन म 7 दिसंबर 1976 के छप के आए रिहिसे. वो बखत के पहला संस्करण म छपे संपादकीय ल घलो ए दूसरा संस्करण म संघारे गे हवय.
   ए पोथी ल दू खंड म कुल सोलह अध्याय के अन्तर्गत विस्तारित करे गे हवय. पहला खंड म - कृतित्व दाऊ रामचंद्र देशमुख. अध्याय-1 इतिहास : अतीत का पुनरावलोकन. अध्याय-2 पृष्ठभूमि और प्रेरक परिस्थितियां. अध्याय-3 कोहरे से झांकते गाँवों की ओर (संस्मरण अउ कथाभूमि). अध्याय-4 भोर की तलाश : सांस्कृतिक अध्ययन. अध्याय-5 थिरकते तन और संवैदित मन (कलाकार परिचय). अध्याय-6 चंदैनी गोंदा - गीत कुंज. अध्याय-7 चंदैनी गोंदा - मूल कथानक. अध्याय-8 सर्जनाएं ये भी हैं. अध्याय -9 अनसुनी : अधसुनी - डा. सुरेश देशमुख. अध्याय-10 दाऊ रामचंद्र देशमुख - पारिवारिक पृष्ठभूमि अउ संक्षिप्त जीवन परिचय. अध्याय-11 सामाजिक परिवर्तन के संबंध में लोककला - रामचंद्र देशमुख. अध्याय-12 सनद रहे ( वो बखत के प्रमुख व्यक्तित्व मन के पाती के संकलन). अध्याय-13 जैसा हमने उन्हें जाना (दाऊजी के व्यक्तित्व ऊपर महत्वपूर्ण आलेख). अध्याय-14 बातचीत (कुछ खास लोगन संग दाऊजी के संबंध म करे गे साक्षात्कार). अध्याय -15 आमने-सामने (दाऊ रामचंद्र देशमुख से ली गई भेंटवार्ताएं). अउ अध्याय-16 म उपसंहार अउ परिशिष्ट हवय.
    ए पोथी ल पढ़े के बाद हमला दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के पारिवारिक इतिहास के जानकारी तो मिलबेच करथे, संग म इहू जाने ले मिलथे, के चंदैनी गोंदा के पहिली उन का-का करिन अउ फेर चंदैनी गोंदा के विसर्जन के पाछू का करिन. चंदैनी गोंदा के जम्मो रचना मन के संगे-संग उंकर रचनाकार मनके फोटो संग परिचय घलो मिलथे. सांस्कृतिक मंच के परंपरा ह खड़े साज ले होवत चंदैनी गोंदा तक पहुँचे म का-का रूप परिवर्तित करिस. अउ वो सब तमाम जानकारी, जेकर आज के पीढ़ी ल जानना जरूरी हे वो सबो ए पोथी म समाए हे.
   ए बड़का बुता ल सिध पारे खातिर डा. सुरेश देशमुख जी के संगे-संग वो जम्मो हितवा मन आभार अउ जोहार के पात्र हें, जे मन ए पोथी के सिरजन म कोनो न कोनो रूप ले सहयोगी हें.
    छत्तीसगढ़ी भाखा, संस्कृति अउ गरब-गुमान खातिर जिंकर मन म मया अउ आदर भाव हे, उनला ए पोथी ल खंचित पढ़ना अउ धरोहर के रूप म संजो के रखना घलो चाही. ए पोथी ल पाए खातिर या अउ कोनो किसम के जानकारी खातिर एकर संपादक डॉ. सुरेश देशमुख जी ले उंकर मोबाइल नंबर 8889770085 म या फेर सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली या उंकर छत्तीसगढ़ के सहयोगी संस्थान वैभव प्रकाशन रायपुर ले संपर्क करे जा सकथे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Wednesday 4 August 2021

पल-पल के जिनगानी..

पल-पल के जिनगानी.
   अभी विश्वव्यापी कोरोना ह चारों मुड़ा के लोगन ल एके तीर बइठारे अस कर दिए हे. घेरी-भेरी के लाकडाउन अउ अबड़ अकन पाबंदी मन के सेती, लोगन घर ले बाहिर घलो नइ निकल सकत हें. रोजी-रोजगार के दृष्टि ले देखिन, त ए ह दुब्बर बर दू असाढ़ कस होगे हे. फेर जिंहां तक चिंतन-मनन अउ लेखन संग जुड़े लोगन के जिनगी ल देखिन, त उन ए बुता म अउ जादा सक्रिय होगे हें.
     जइसे मैं ह ए बेरा म घर म खुसरे खुसरे अपन जिनगी भर के संस्मरण मन ल सुरता कर कर के एक किताब "सुरता के संसार" लिखे के उदिम कर डारे हंव, ठउका अइसनेच साहित्यकार चेतन भारती जी ह घलो अपन नौकरी ले सेवानिवृत्त होए के पाछू साहित्य के संगे-संग पेंशनर मन के बुता म भारी बिपतियाय रिहिन हें. फेर अभी के लाकडाउन म उंकर से एक पोठ बुता होगे हे.  घर म बइठे-बइठे उन अपन पूरा जिनगी ल "पल-पल के जिनगानी" के नांव ले एक किताब के रूप दे दिए हें.
   मोर चेतन भारती संग साहित्यिक ले जादा पारिवारिक संबंध हे. तभो वो सब जिनिस ल नइ जाने पाए रेहेंव, जेला अब ए किताब ल पढ़े के बाद जान पाएंव. हमर मन के घर घलो आसपास हे. हमर परिवार म उंकर आना जाना ह मोर साहित्य जगत म आए ले पहिली के हे, फेर जिनगी के जम्मो ओना-कोना ल ए किताब के माध्यम ले ही जान पाएंव.
   भारती जी आज जेन ऊंचाई के ठउर म हें, तेला पाए बर घात संघर्ष करें. ए बात सही घलो आय, जेन संघर्ष के रद्दा अपनाथे, सफलता वोकरे माथा म मउर मुकुट पहिनाथे. भारती जी संग तो मैं अबड़ साहित्यिक कार्यक्रम मन म संघरे हंव, फेर एक पइत अइसे घलो संघरेन ते ह आज तक संस्मरण के रूप म सुरता हे. बात मजेदार घलो हे.
   मगरलोड के संगम साहित्य समिति के हर बछर 13 अक्टूबर के वार्षिक सम्मेलन होथे. हमन ल हर बछर नेवता मिलथे. जाथन घलो. सन् 2016-17 के बात होही. हर बछर कस ए बछर चार चकिया गाड़ी म नइ जा के दुवे चक्का वाले म जा परेन, कुलदीप यादव के बात मान के, उहू म तीन सवारी.
   जाए बर तो बने चल देन, फेर आए के बेरा भारी भुगतउ कस होगे. रतिहा 12 बजे असन मगरलोड ले निकलेन. अक्टूबर के महीना म वो डहार रतिहा बेरा गजब जाड़ जनाथे. महानदी के कछार होए के सेती चारों मुड़ा हरियर-हरियर खेत-खार रहिथे. ते पाय के जाड़ गंज जनाथे.
   हमन आवत रेहेन त रद्दा म एक जगा गाड़ी पंचर होगे. आधा रात के वोती गंवई म कोन पंचर बनइया मिलतीस? फेर थोरके रेंगत ले एक जगा पंचर बनइया मिलिस. फेर वोकर जगा पंचर बनाए के लोशन खतम होगे राहर. त हमन नवा ट्यूब लगवा डारेन. फेर आगू बढ़ेन त तीन सवारी देख के एक झन पुलिस वाला छेंक लिस. हमन बताएन साहित्यकार आन, मगरलोड के कविसम्मेलन ले लहुटत हन. फेर वो पतियाए असन नइ करत रिहिसे. त हमन केहेन, कविता सुनावन का?
  वो कहीस नहीं जरूरी नइए फेर कहिस- ठीक हे, मैं तुंहर बात ल पतिया लेथंव फेर असली म थोरके आगू म एक ठन एक्सीडेंट होगे हे, तेकर सेती भीड़ भाड़ हे. पुलिस वाले मन घलो हें. तीन सवारी जाहू त पुलिस वाले मन तुमन ल धर लेहीं. तेकर ले एक झन इही जगा उतर जावव, तहाँ ले एक झन ल लेग के फेर दुसरइया ल लेग जाही, त बनही. हमन वोकर कहे बात ल मानेन.
  ए घटना के सुरता जब कभू हमन ल आवय त बनेच हांस डारन.
   भारती जी के जीवन संघर्ष ल सुरता करत मोर मन म ए चारलनिया गूंजत हे-
जतका बड़का सपना होथे संघर्ष घलो वतके होथे
अलकर भुइयां पटपर रद्दा कांटाखूंटी घलो मिलथे
इही सबला चतवारत जूझत बढ़त जाबे लक्ष्य डहर
तभे सफलता के मोर मुकुट माथा म जी संगी सजथे
 
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

हाना जिनगी के गाना..

हाना : जिनगी के गाना
    छत्तीसगढ़ी भाखा म अभी बड़ मयारुक अउ सहेज के रखे के लाइक किताब छपत हे, अउ पढ़े बर मिलत घलो हे. अभीच्चे एदे जांजगीर-चांपा के मयारुक साहित्यकार डा. रमाकांत सोनी जी के बड़का किताब "हाना : जिनगी के गाना" ल डकहार बाबू के हाथ ले झोंकेंव अउ पढ़ेंव.
   एला एक पइत तो सरसरी बानी के तुरतेच देख डारेंव. एला देखते एकर पहिली हाना के दू अउ किताब पढ़े रेहेंव तेकर मन के सुरता आगे.
    डॉ. मन्नू लाल यदु जी तो एकरेच ऊपर पीएचडी घलो करे रिहिन हें. उंकर शोध ग्रंथ "लोकोक्तियों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन" ल बने च पढ़े रेहेंव. एकर पाछू मगरलोड के साहित्यकार पुनूराम साहू 'राज' जी के घलो एक किताब "छत्तीसगढ़ी हाना" नांव ले आए रिहिसे, उहू ल बनेच पढ़े रेहेंव. एकर पाछू एदे सोनी जी "हाना : जिनगी के गाना" ल पढ़ेंव.
    तीनों झन के अपन-अपन खोज अउ मेहनत हे. तीनों के किताब म बहुत अकन नवा-नवा अउ अलग-अलग हाना संग्रहित हे. ए ह हमर छत्तीसगढ़ी के चारों मुड़ा बगरे धरोहर मनला गठिया के राखे खातिर संहराए के लाइक बुता आय.
    ए मन अपन कथ्य म लिखे हावव, के ए 11 सौ ले आगर जम्मो हाना मनला सकेले, उंकर अरथ बताए अउ वइसनेच आने भाखा मन के हाना मनला एमा संघारे म आपला दस बछर असन लागगे. ए किताब ल पढ़े के बाद मोला जनाइस के सिरतोन म लागिस होही, ए जबड़ बुता ल सिध पारे म. एकर खातिर मैं सोनी जी के बड़ई करत हंव.
इंकर ए हाना पोथी ह हमर नवा पीढ़ी के अपन महतारी भाखा म लिखइया पढ़इया मयारुक मन बर बड़ उपयोगी साबित होही. उनला अपन लोक साहित्य अउ सांस्कृतिक स्वरूप ऊपर गरब होही.
     वइसे ए कहना तो वाजिब नइए के मोला हाना ले संबंधित ए  तीनों झन के हाना पोथी मन म कोन म जादा अउ कोन म कमती आनंद आइसे. फेर अतका जरूर कइहूं के ए मन जेन बुता करे हावंय वो ह पीएचडी वाले शोधार्थी ले बढ़ के हे.
   ए जबड़ बुता खातिर सोनी जी ल फेर बधाई अउ जोहार.
    छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य म रुचि रखइया मन ए किताब ल डा. रमाकांत सोनी ले उंकर मोबाइल नंबर 9009061151 म संपर्क कर के प्राप्त कर सकथें.
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811