Friday 22 September 2023

हमर रायपुर के महादेव घाट

हमर रायपुर के महादेव घाट
    छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर के गोठ निकलते च महादेव घाट अउ हटकेश्वरनाथ महादेव मंदिर के सुरता अपनेच अपन आ जाथे. आज तो महादेव घाट ह रायपुर शहर म जुड़े अस जनाथे. इहाँ-उहां ले एको ठउर अइसे नइ जनावय के कोनो मेर थोर-बहुत जगा के आड़ होही. फेर जब हमन लइका राहन त कभू छुट्टी के दिन संगी-संगी मिल के हटकेश्वरनाथ जी के दरस करे बर महादेव घाट जावन त देखन वो बखत रायपुर के लाखेनगर चौक ले महादेव घाट ह हरहिंछा दिख जावत रिहिसे.

    वो बखत रायपुर शहर के आखिर म बसे लाखेनगर चौक ले महादेव घाट तक हरियर-हरियर खेत-खार ही राहय, एकरे सेती हटकेश्वरनाथ मंदिर ह धरम के ध्वजा लहरावत जगजग ले लाखेनगर चौक ले ही दिख जावत रिहिसे.

    तब हमन ल हटकेश्वरनाथ महादेव घाट ह रायपुर शहर ले कोस भर रेंगे असन जनावय. रेंगत-रेंगत कभू लथरे असन घलो हो जावत राहन. फेर लइकई उमंग अउ हटकेश्वरनाथ जी के दरस के उछाह म रेंगतेच चले जावन.

    खारुन नदिया के खंड़ म बिराजे महादेव घाट के संबंध म सियान मन कई ठिन कहानी बतावंय. उन बतावंय के महादेव घाट म बने इहाँ के सबले जुन्ना अउ ऐतिहासिक मंदिर हटकेश्वरनाथ जी के संबंध ह त्रेतायुग संग जुड़े हावय. हटकेश्वर महादेव ल नागर ब्राह्मण मन के संरक्षक बताए जावय. हटकेश्वर नाथ मंदिर के गर्भगृह म जेन शिव लिंग बिराजित हें, वोकर सुंदरई देखतेच बनथे. हटकेश्वरनाथ जी के तिरेच म राम जानकी लक्ष्मण अउ बरहादेव के घलो मूर्ति हावय.
    आज तो महादेव घाट म बहुते अकन मंदिर-देवाला बन गे हावय. ए मंदिर मन के सेती इहाँ हर बछर कातिक पुन्नी के भरइया मेला ठउर ह अब नान्हे असन सुंदुंर-गुंदुंर होगे हे. हमन लइकई म उहाँ मेला देखे ले जावन त चारों मुड़ा चउंक-चाकर हेल-मेल जगा राहय. लोगन के भीड़ सैमो-सैमो करय.

    अइसन मान्यता हे के महादेव घाट के हटकेश्वर नाथ मंदिर के शिव लिंग के स्थापना ह लक्ष्मण जी के हाथ ले होए हे. मान्यता हे के भगवान राम अपन वनवास काल म इहाँ ले नाहके रिहिन हें. उही बेरा हटकेश्वर नाथ जी के  शिव लिंग ह लक्ष्मण जी के हाथ ले स्थापित होए रिहिस हे.

     आजकाल तो अब  महादेव घाट म पिंडदान आदि के पूजा घलो होथे. लोगन जइसे काशी अउ गया जी म जाके विशेष पूजा करवाथें वइसने महादेव घाट म घलो खारुन नदिया के बीच म जाके अपन-अपन पुरखा खातिर विशेष पूजा  करवाथें.

    छत्तीसगढ़ म विवेकानंद भावधारा के प्रचार करइया स्वामी आत्मानंद जी महाराज के समाधि स्थल घलो हटकेश्वर नाथ मंदिर जाए के रद्दा के एक बाजू म महादेव घाट म बने हावय, जिहां स्वामी आत्मानंद जी के जयंती अउ पुण्यतिथि के बेरा म भजन-कीर्तन के कार्यक्रम होवत रहिथे.

   अब तो हटकेश्वर नाथ जी के दर्शन करे बर जवइया दर्शनार्थी मन महादेव घाट म नौका विहार के आनंद घलो लेथें. एकर खातिर इहाँ बढ़िया-बढ़िया डोंगा-डोंगी सजे-धजे अगोरा करत रहिथे. अभी-अभी नवा बने लक्ष्मण झूला ह महादेव घाट के सुघरई म चार चांद लगा दिए हे. लोगन घूमे-बुले बर, हटकेश्वरनाथ जी के दरस करे बर महादेव घाट आथें, त लक्ष्मण झूला के आनंद घलो लेथें.

    इतिहासकार मन के कहना हे के कलचुरी राजा मन खारुन नदिया के ए महादेव घाट क्षेत्र म सबले पहिली अपन राजधानी बनाए रिहिन हें. राजा ब्रम्हदेव के सन् 1402 म मिले पखरा लेख ले जानबा होथे, के महादेव घाट के हटकेश्वरनाथ मंदिर ल हाजीराज ह बनवाए रिहिसे. महादेव घाट म वो बखत के बने अउ अबड़ अकन छोटे छोटे मंदिर हे, जे मनला अभी घलो हटकेश्वरनाथ मंदिर के एक बाजू म खारून नदिया के तीरे-तीर देखे जा सकथे.
    आज हटकेश्वरनाथ मंदिर ह पूरा छत्तीसगढ़ राज के बड़का तीरथ ठउर के रूप म अपन चिन्हारी बना डारे हावय. वइसे तो हटकेश्वरनाथ मंदिर अउ महादेव घाट म बारों महीना लोगन के अवई-जवई, दरस करई लगेच रहिथे, फेर कातिक महीना के पुन्नी परब म इहाँ जबर मेला भराथे. सावन महीना के सोम्मारी म घलो हटकेश्वरनाथ जी के दरस म लोगन उमड़ परथें. बोलबम के नारा लगावत कांवर धरे कांवरिया मन महादेव म जल चढ़ाए बर जाथें. एकर पहिली इतवार के संझौती बेरा सहस्त्र धारा के स्नान घलो करवाथें.

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

आस्था संग प्राकृतिक दरस बोहरही धाम

आस्था संग प्राकृतिक दरस के ठउर बोहरही धाम
    हमर छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर के विधानसभा भवन ले उत्तर दिशा म दू कोस के दुरिहा म एक सुघ्घर अउ मयारुक देव ठउर हे बोहरही धाम. रायपुर ले बिलासपुर जवइया रेलवाही म मांढर अउ सिलयारी रेवले स्टेशन के बीच कोल्हान नरवा के खंड़ म बसे हे ए बोहरही धाम ह.
    बोहरही धाम ल लोगन बोहरही दाई के नॉव ले जादा चिन्हारी पाथें. फेर जइसे हमन ईश्वर ल 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' के रूप म महतारी अउ ददा दूनोच मानथन, ठउका अइसनेच बोहरही दाई ल घलो महतारी अउ ददा दूनोच रूप म सुमरन करे जाथे, एकरे सेती एला 'जय ठाकुर देव.. जय बोहरही दाई' समिलहा रूप म  कहे जाथे.
    कोल्हान नरवा के खंड़ म बसे बोहरही धाम ह वइसे तो पटवारी हल्का के मुताबिक गाँव पथरी म हावय, फेर ए ठउर ले गाँव पथरी ह जतका दुरिहा म हावय, वतकेच दुरिहा म गाँव नगरगाँव, गाँव टोर अउ गाँव तरेसर घलो हावय, एकरे सेती ए तीर के जम्मो च गाँव वाले मन बोहरही धाम ल अपनेच मानथें अउ वतकेच मान-गौन अउ आस्था घलो राखथें.
   बोहरही दाई के ए ठउर म आए अउ स्थापित होय के संबंध म बड़ गुरतुर अउ मयारुक किस्सा हे. हमर सियान मन बतावंय- बोहरही दाई ह कोनो दूसर गाँव ले रिसा के कोल्हान नरवा म बोहावत ए जगा आए रिहिसे. अउ ए जगा आए के पाछू गाँव पथरी के एक पोठहा किसान ल सपना दे के कहिस के मैं ए ठउर म हावौं, तुमन कहूँ चाहथौ के मैं इहिच मेर आसन पावौं, त तुमन मोर रहे खातिर एको ठन मंदिर उवे बनवा देवौ.
   पथरी वाले वो किसान ह अपन सपना म आए बात ल गाँव वाले मन जगा बताइस, त गाँव वाले मन चलव तो जी सपना म बताए जगा के आरो लेथन कहिके कोल्हान नरवा के खंड़ म गिन. उहाँ गाँव वाले मन देखिन ते सपना म बताए जगा सिरतोन म एक ठन मूर्ति माढ़े पाइन. तहाँ ले वो मूर्ति ल सब गाँव वाले मन के कहे म कोल्हान नरवा के खंड़ ले उचा के थोरिक दुरिहा म लान के एक ठन चौंरा असन जगा बना के स्थापित करिन. आज उही जगा ल हम सब बोहरही दाई या बोहरही धाम के रूप म जानथन.
    बोहरही दाई के नामकरण के संबंध म सियान मन बतावंय, के वो देवी दाई ह नदिया म बोहा के आए रिहिसे, तेकर सेती वोला बोहरही दाई कहे जाथे.
   पहिली ए ठउर म बोहरही दाई के नॉव य सिरिफ एक ठन चौंरा असन मंदिर भर रिहिसे, वोकर पाछू फेर एक ठन छोटकन शिव जी के मंदिर रेलवे विभाग ह बनवाइस.
   रेलवे वाले मन के द्वारा ए जगा मंदिर बनवाए के संबंध म सियान मन बतावंय के अंगरेज शासन काल म जब मुंबई-हावड़ा रेलवाही बनीस तेन पइत इही बोहरही धाम तीर के एक ठन नान्हे बानी के नरवा म बनत पुलिया ल घेरी-भेरी भरभरा के भोसक जावय. तेकर सेती रेलवाही बनाए के बुता ह अटके असन हो जावय.
    सियान मन बतावंय के वो पुलिया ल एक बंगाली इंजीनियर के देखरेख म बनाए जावत रिहिसे. एक रतिहा उही बंगाली इंजीनियर के सपना म आइस के बोहरही दाई के मंदिर के तीर म रेल विभाग ह एक अउ मंदिर बनवा देही, त ए पुलिया ल बनाए के कारज ह बने-बने सिध पर जाही.
   सपना के बात ऊपर भरोसा करत फेर वो बंगाली इंजीनियर ह बोहरही दाई के जेवनी मुड़ा म एक शिव जी के मंदिर बनवाइस, तब जा के वो नरवा म पुलिया बनाए के कारज ह सिध परिस. वो पुलिया ल आज घलो लोगन वो बंगाली इंजीनियर के सुरता म बंगाली पुलिया ही कहिथें.
   बोहरही धाम ह आज पूर्ण रूप ले विकसित एक धार्मिक अउ पर्यटन ठउर बनगे हावय. इहाँ कतकों अलग-अलग समाज के लोगन अपन-अपन श्रद्धा अउ आस्था के मुताबिक अलग-अलग मंदिर अउ देव ठउर बनवा डारे हें. अब बोहरही धाम म पर्यटन के एक मयारुक ठउर बनगे हावय जिहां लोगन के रोज दिन आना-जाना लगे रहिथे. महाशिवरात्रि के बेरा म इहाँ तीन दिन के जबर मेला भराथे, जेमा दुरिहा-दुरिहा के लोगन गंज संख्या म जुरियाथें.
   बोहरही धाम म अब दूनों नवरात म मनोकामना जोत घलो जलाए जाथे. कतकों श्रद्धालु मन अपन मनोकामना पूरा होय म बोकरा आदि के पूजवन घलो देथें. इहाँ के पूजवन प्रथा म रोक लगाए खातिर तीर-तखार के कतकों समाजसेवी मन रैली आदि निकाल के जनजागरण के कारज करत रिहिन हें, फेर जनआस्था के सेती ए पूजवन परंपरा ह अभी घलो चलतेच हे.
    बोहरही धाम जाए बर आजकाल राजधानी रायपुर के रेलवे स्टेशन ले रोज सिटी बस जाए लगे हे. रेलवे के रद्दा ले जवइया मन मांढर या सिलयारी रेवले स्टेशन ले उतर के जा सकथें. जे मन अपन साधन ले उहाँ जाना चाहथें, वो मन विधानसभा भवन ले बोहरही धाम होवत सिलयारी रेवले स्टेशन तक सड़क गे हवय, तेमा आसानी के साथ जा सकथें.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा 9826992811

मकर संक्रांति म सुक्खा लहरा शक्ति लहरी धाम

मकर संक्रांति म सुक्खा लहरा लेथें शक्ति लहरी धाम म..
    हमर छत्तीसगढ़ राज के शक्ति पीठ मन म शक्ति लहरी सतधरा धाम के सोर घलो अब चारों मुड़ा बगरत हे, जिहां हर बछर मकर संक्रांति के दिन भागमानी श्रद्धालु मन सुक्खा लहरा लेथें.
   सात नदिया मन के धारा के एकमई जुरियाए के सेती ए ठउर ल सतधरा या सप्तधरा के नॉव ले जाने जाथे, जे ह गरियाबंद जिला, महासमुंद जिला अउ रायपुर जिला के सीमारेखा म गाँव हथखोज के सियार म बसे हे.
    मान्यता हवय के ए जगा महानदी, सोढुल अउ पैरी नदिया के तीन धारा ह सूखा नदिया, सरगी नदिया, केशवा नदिया अउ बगनई नदिया के धारा संग एकमई होए हे. एकरे सेती ए गजब चउंक-चाकर धारा ल सतधरा या सप्तधरा कहिथें. वइसे तो मैं छत्तीसगढ़ के नदिया मन के जम्मोच संगम ठउर ल देखे हावौं, फेर अतका चउंक-चाकर जगा म उन मा के एकोच ल नइ देखे हौं.
    सतधरा के खंड़ म बिराजे शक्ति लहरी दाई के ए जगा ठउर पाए के संबंध म बताए जाथे के मातारानी के ए बिन मुड़ के मूर्ति ह नदिया के धार म बोहा के आए रिहिसे, जेला एक भंइसा चरवाहा पहाटिया ल पाये रिहिसे.
   सियान मन बताथें के वो चरवाहा ह अपन भइंसा मनला लेके संगम ठउर म रोज जावय, उहाँ एक जगा वोकर भंइसा ह झझक जावय. चरवाहा ल अचरज लागय के ए जगा वोकर भंइसा ह झझकथे काबर?
    वो ह वो जगा ल बने खोधिया खोधिया के देखिस के आखिर ए जगा का हवय? तब वोला माता जी के ए मूर्ति ह मिलिस.
    बताथें के वो चरवाहा ल तब माता जी ह सपना देइस अउ कहिस के मोला ए जगा ले निकाल के कोनो आने जगा स्थापित करवा दे. माता जी वोला बताइस के मोला ए मेर ले लेगे के बेरा हर एक कदम म एक-एक नरियर रखत जाबे, अउ जेन जगा नरियर ह अपने-अपन फूट जाही, उहिच जगा मोला स्थापित कर देबे.
    बताथें के अभी जेन जगा मातारानी के मंदिर हावय, उहिच जगा नरियर ह अपने-अपन फूटे रिहिसे. आज ए जगा ह देवी उपासना के प्रमुख पीठ के रूप म विकसित होगे हावय. छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक ठउर राजिम ले महासमुंद शहर ल जोड़इया सड़क के ए रद्दा म अवइया सुक्खा नदिया म अब जबर पुलिया बनगे हावय, तेकर सेती ए मुड़ा ले जवइया लोगन मन म बढ़ोत्तरी होए हे. एकरे सेती मंदिर के दरस करइया श्रद्धालु मन के संख्या म घलो गजब बढ़ोत्तरी होए हे.
   ए शक्ति लहरी सतधरा धाम म हर बछर मकर संक्रांति के बेरा तीन दिन के जबर मेला भराथे. इही बखत इहाँ सुक्खा लहरा लिए जाथे. बताथें के संगम ठउर म लोगन रेती म घोलंड-घोलंड के लहरा लेथें. जेकर भाग म माता जी के आशीष बरसथे, वो मनखे ह हाथ के एक अंगरी के छुए मात्र ले ही तिनका बरोबर उनडत गजब दुरिहा चल देथे, अउ जब थक-थुका के अल्लर पर जाथे तभेच वो ह ठाढ़ होथे.
   शक्ति लहरी सतधरा धाम म दूनों नवरात्र के बेरा ज्योति घलो जलाए जाथे. लोगन अपन श्रद्धा के मुताबिक इहाँ मातारानी के सेवा बजाथें.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 14 September 2023

पोरा या पोला?

*** पोरा या पोला ***
काली जुवर पोरा परब के दिन अबड़ झन लोगन 'पोला' के बधाई देवत रिहिन हें.
आजकाल ए देखे म जादा आवत हे, के हमर इहाँ के लोगन अपन परंपरा-संस्कृति ल जाने-समझे ल छोड़ के पर के पाछू भेड़िया धसान बरोबर किंजरई ल जादा गरब के मान डरथें.
     छत्तीसगढ़ म मनाए जाने वाला परब ह 'पोरा' आय.

    छत्तीसगढ़ी भाखा म पोला शब्द छेदा, भोंगरा या पोलपोला खातिर उपयोग करे जाथे. जबकि हमर इहाँ पोरा के परब मनाए जाथे, वो ह धान म पोर फूटना, पोटरी या पोठरी पान धरे के अवस्था, जेला गर्भधारण के अवस्था कहे जाथे, तेकर सेती मनाए जाथे. एकरे सेती ए दिन किसान मन अपन अपन खेत म पोरा म रोटी पीठा चढ़ाथें, जे ह धान के फसल ल गर्भधारण करे के सेती सधौरी खवाए के प्रतीक स्वरूप होथे. जइसे हम अपन बेटी-माई मनला पहिली बेर गर्भधारण करे म सधौरी खवाथन.

अब बतावौ ए परब ह असल म पोरा आय या पोला?

Friday 8 September 2023

छत्तीसगढ़ी भाखा के खासियत

छत्तीसगढ़ी भाखा के जबर खासियत//
शब्द ल एक बार उचारे म आने अरथ अउ दू पइत संघरा उचारे म उहिच शब्द के  आनेच अरथ...
   हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के ए जबर खासियत आय, के एमा कुछ अइसनो शब्द हे, जेला एक पइत उचारे म वोकर अरथ आने जनाथे, त उचिह शब्द ल सरलग दू पइत उचारे म वोकर अरथ बदल जाथे. आवौ देखथन अइसने एकाद शब्द मनला-
   हमर इहाँ एक शब्द हे- गाड़ा. गाड़ा ल सबो जानथें, एकर छोटे रूप ल गाड़ी कहिथन, जे बइला फांद के कहूँ आए-जाए या कुछ समान डोहारे के काम आथे. हमन लइका राहन त भॅंइसा गाड़ा अउ बइला गाड़ी दूनों च म बरात जावन. कभू-कभू धान लुवई के सीजन म सीला बीने बर घलो वो खार म जवइया गाड़ा या गाड़ी म बइठ के चल देवत राहन.
  
गाड़ा शब्द के दूसर अरथ इहाँ धान नापे के एक इकाई के रूप म घलो होथे. सियान मन धान मिंजाई के सीजन म पूछ परथें- ए बछर तुंहर घर के गाड़ा धान लुएव गा?. ए जगा इही गाड़ा शब्द ह कतका बोरा या कतका क्विंटल धान होइस एकर रूप म बउरे जावत हे. तब इहाँ नापे खातिर बड़े काठा अउ छोटे काठा के उपयोग करे जावय. बड़े काठा म लगभग तीन  तीन किलो असन धान आवय त छोटे काठा म दू किलो के पुरती. इही काठा ल जब बीस बार नापे जावय, त वो एक खॉंड़ी कहावय अउ फेर बीस खॉंड़ी हो जावय त वोला एक गाड़ा कहे जावय.
   अब देखौ इही गाड़ा शब्द के दू पइत संघरा उचरई ल. गाड़ा-गाड़ा बधाई कहे म एकर अरथ ह एकदम बदल जाथे. अब एकर अरथ ह सैकड़ों अउ हजारों गुना बधाई देवई हो जाथे. अनंत अउ अनगिनत बधाई देना हो जाथे.

    ठउका अइसने एक अउ शब्द देखन- झारा. झारा शब्द ल सुनते मन म बरा-सोंहारी बनाए के बेरा तेलहा कराही ले चुरे-पके बरा-सोंहारी ल निकाले के काम आने वाला एक औजार के सुरता आ जथे.
   अब इहीच झारा शब्द ल दू पइत संघरा कर के देखन, त ए ह रांधे-चुरोए के अपन औजार वाले रूप ल छोड़ के जेवन-पानी खातिर नेवता देवइया शब्द बन जाथे- आज फलाना मंडल घर कुल देवता पूजा के नेवता हे गा, तुमन ल उॅंहचे जेवन खातिर झारा-झारा नेवता हे. अब ए नेवता खातिर इही झारा शब्द ह दू पइत संघरा उचारे म जम्मो परिवार ल संघरा नेवता देवइया शब्द बनगे हे.
   ए आय हमर छत्तीसगढ़ी भाखा के महानता अउ मौलिकता. जय हो छत्तीसगढ़.. जय हो छत्तीसगढ़ी.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Friday 1 September 2023

संस्कृति के दरपन म छत्तीसगढ़

संस्कृति के दरपन म छत्तीसगढ़
    हमर देश संस्कृति के देश आय. इहाँ के हर भाग के, हर राज के अउ हर गाँव के अपन संस्कृति हे. वोकर अपन मौलिक संस्कृति हे. इही मौलिक संस्कृति ह वोकर असल म चिन्हारी के माध्यम बनथे. हमर छत्तीसगढ़ राज के घलो अपन मौलिक संस्कृति हे, जेला हम इहाँ के मूल संस्कृति या कहिन पारंपरिक संस्कृति के रूप म जानथन, एकर चिन्हारी करथन. आवव आज इही मूल संस्कृति, जेन आने राज अउ देश के चलागन ले अलग दिखथे, तेमा झॉंके के उदिम करथन.

नवा बछर-
वइसे तो पूरा दुनिया म अंगरेजी नवा बछर 1 जनवरी ल प्रशासनिक कामकाज के रूप म अपनाए जावत हे, तभो हर देश के अपन कालगणना पद्धति हे अउ वोकरे मुताबिक सबके अपन अपन नवा बछर हे. हमर देश म चैत्र शुक्ल एकम ल बहुत जगा नवा बछर के रूप म मनाए जाथे, फेर हमर छत्तीसगढ़ म बैशाख शुक्ल तीज जेला हम अक्ती परब के रूप म जानथन, तेला नवा बछर के रूप म मनाए जाथे. अक्ती परब के दिन ही इहाँ कृषि संस्कृति के शुरुआत होथे. गाँव के बइगा के मार्गदर्शन म नवा फसल के बोवाई के शुरुआत होथे, जेला इहाँ के भाखा म 'मूठ धरना' कहे जाथे.
    अक्ती परब के दिन ही इहाँ खेती-किसानी ले जुड़े कृषि मजदूर जेला कमइया, बनिहार अउ सौंजिया आदि के नॉव ले जाने जाथे, उंकर मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति होथे. अक्ती परब के दिन ही इहाँ पौनी-पसारी के रूप म चिन्हारी करे जाने वाला वर्ग के लोगन के घलो नियुक्ति होथे. मौसमी फल आमा, अमली आदि ल टोरे अउ खाए के चलागन घलो अक्ती के दिन ही होथे. नवा करसी म पानी भर के पीना, झुलसत गरमी ले बॉंचे खातिर घर कुरिया के खटिया ल अंगना या बाहिर म निकाल के रतिहा बेरा सूते के शुरुआत घलो अक्ती परब ले ही चालू होथे.

चातुर्मास अउ बिहाव-
हमर देश के संस्कृति म सावन, भादो, कुवांर अउ कातिक महीना के चार महीना ल चातुर्मास के रूप म मनाए जाथे अउ ए चार महीना ल बर-बिहाव जइसन शुभ कारज खातिर अशुभ माने जाथे या कहिन- आध्यात्मिक रूप ले उचित नइ माने जाय. काबर ते एकर संबंध म ए मान्यता हे के भगवान विष्णु ह ए चार महीना म सुरताय बर चल देथें.
    अब जब हम छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति ल देखथन त इही चार महीना ह सबले शुभ अउ पवित्र जनाथे. ए चातुर्मास के चार महीना म हरेली, भीमा-भीमिन के बिहाव, नागपंचमी अउ राखी परब, तीजा, पोरा, कमरछठ, आठे कन्हैया, पितरपाख, नवरात, दंसहरा, गौरा-ईसरदेव बिहाव, सुरहुत्ती, मातर-मड़ई जइसन जम्मो प्रमुख परब मन आथें.
    सबले बड़का बात इही चातुर्मास म इहाँ के दू प्रमुख देव मन के बिहाव के परब घलो मनाए जाथे. सावन महीना म भीमा-भीमिन के बिहाव के परब मनाए जाथे त कातिक अमावस के गौरा-ईसरदेव के बिहाव परब. मतलब ए के छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति म चातुर्मास के शुभ अशुभ वाले परंपरा ह मान्य नइए. इहाँ के लोक देवता मन चार महीना न तो थिरावंय अउ न सूतंय, भलुक जागृत रहिथें उहू म निरंतर.

तीजा-पोरा
देवी पार्वती द्वारा भगवान भोलेनाथ ल पति के रूप म पाए के प्रतीक स्वरूप तीजा परब ल देश के लगभग जम्मो क्षेत्र म अलग-अलग नॉव अउ तिथि म मनाए जाथे, फेर छत्तीसगढ़ म ए परब ल जेन किसम के मनाए जाथे वइसन अउ कोनो क्षेत्र म नइ दिखय.
  छत्तीसगढ़ म तीजा परब ल मनाए खातिर विवाहित बेटी-माई मन अपन-अपन मइके आथें. मइके म आके कोनो परब ल मनाए के परंपरा देश के अउ कोनो भाग म देखे म नइ आय. ए प्रसंग के संदर्भ म बताए जाथे के देवी पार्वती ह जब शिव जी ल पति के रूप म पाए खातिर कठोर तप करीस, तब वो कुवांरी रिहिसे, अर्थात अपन पिता जी के घर म रिहिस. एकरे सेती हमर इहाँ ए परब ल मनाए खातिर तीजहारीन मन अपन-अपन पिता के घर अर्थात मइके आथें.
    तीजा के संग इहाँ पोरा परब ल जोड़ के संयुक्त रूप ले तीजा-पोरा कहे जाथे. जबकि शिव जी के प्रमुख गण नंदीश्वर के जन्मोत्सव परब पोरा ह भादो अमावस अर्थात तीजा जेन भादो अंजोरी तीज के मनाए जाथे, वोकर ले दू दिन पहिली आथे.
    छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति म पोरा के घलो अबड़ेच महात्तम हे. तीजा माने बर अवइया तीजहारीन मन के कोशिश रहिथे के उन पोरा के दिन ही अपन-अपन मइके पहुँच जावंय, तेमा पोरा पटके के नेंग म उन संघर जावंय.
    पोरा परब के दिन छत्तीसगढ़ म धान के फसल ल सधौरी खवाए के नेंग करे जाथे. जइसे नवव्याहता बेटी ह पहिली बार गर्भ धारण करथे, त मइके वाले मन वोला सातवाँ महीना म सधौरी खवाथें, वइसने धान के फसल जब गर्भ धारण करथे तब उहू ल सधौरी खवाए जाथे. छत्तीसगढ़ी म धान के गर्भ धारण करना ल पोठरी पान धरना या पोठराना कहे जाथे. पोरा परब के दिन इहाँ के सब किसान मन माटी के बने पोरा म घर म बने रोटी-पीठा मनला भर के अपन-अपन खेत लेगथें अउ धान ल समर्पित करथें.
    भादो के अंधियारी पाख म इहाँ कमरछठ परब मनाए जाथे. ए परब ह शिव जी के बड़का बेटा कार्तिकेय के जन्मोत्सव परब आय. संस्कृत भाखा के कुमार षष्ठ शब्द ह अपभ्रंश होके छत्तीसगढ़ी म कमरछठ होगे हे. एकरे सेती ए दिन कमरछठ उपास रहइया महतारी मन सगरी कोड़ के शिव अउ पार्वती के पूजा करथें, अउ उंकर ज्येष्ठ पुत्र अउ श्रेष्ठ संतान बरोबर अपनो संतान के कामना करथें. फेर आजकल ए कमरछठ परब ल हलषष्ठी के रूप म प्रचारित कर के बलराम जयंती के रूप म बताए जावत हे. ए ह सही नोहय.
   देश के आने भाग ले अवइया लोगन मन अपन संग लाने पोथी-पतरा अउ संस्कृति संग सांझर-मिंझर कर के इहाँ के मूल परब ल आने रूप दे के सरलग प्रयास करत हें. हमला अइसन लोगन के चरित्तर ले बांच के अपन मूल ल जीवित रखे अउ प्रचारित करे के उदिम करत रहना हे.
    भादो अंधियारा अष्टमी के मनाए जाने वाला भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव परब जन्माष्टमी ल छत्तीसगढ़ म आठे कन्हैया के रूप म मनाए जाथे. छत्तीसगढ़ म जब नवा लइका मन अवतरथें त सबले पहिली इहाँ सूपा भर धान म वो लइका ल सूताए जाथे. ए परंपरा ह भगवान कृष्ण संग जुड़े हे. कृष्ण ह जब मथुरा के जेल म जनम लिस त वोला टोपली म धर के वोकर सियान वासुदेव ह गोकुल लेगे रिहिसे. एकरे प्रतीक स्वरूप इहाँ नवा अवतरे लइका ल धान ले भरे सूपा म सूताए जाथे.
     भादो महीना के अंजोरी पाख म चउथ के दिन भगवान भोलेनाथ के छोटका बेटा अउ सब गण मन के नायक गणेश जी के जन्मोत्सव परब मनाए जाथे. अब पूरा देश के संगे-संग छत्तीसगढ़ म घलो गणेश परब ल पूरा दस दिन के उत्सव के रूप म मनाए जाथे. जगा-जगा गणेश पंडाल सजा के कतकों किसम के सांस्कृतिक कार्यक्रम मन के आयोजन करे जाथे.
   हम पूरा भादो महीना म मनाए जाने वाला परब मनला देखिन त ए महीना ल शिव-पार्षद मन के महीना कहि सकथन.
   
नवा खाई-
    खरीफ के नवा फसल ल अपन इष्टदेव ल समर्पित करे के परब आय नवा खाई परब ह. हमर छत्तीसगढ़ म ए नवा खाई परब ल अलग-अलग वर्ग के लोगन तीन अलग-अलग महीना अउ तिथि म मनाथें, जे ह छत्तीसगढ़ म सांस्कृतिक विविधता के ठउका उदाहरण आय.
    छत्तीसगढ़ के वो भाग जेन परोसी राज ओडिशा ले जड़े हे, ए भाग के लोगन जेन उत्कल संस्कृति ल जीथें ए मन नवा खाई परब ल भादो महीना म गणेश चतुर्थी के बिहान भर ऋषि पंचमी के दिन मनाथें.
    अइसने इहाँ के मूल निवासी आदिवासी समाज ह ए नवा खाई परब ल कुंवार महीना के अंजोरी पाख म आठे/नवमी के मनाथे.
    इहाँ के मैदानी भाग म रइहया लोगन मन नवा खाई परब ल कातिक महीना के अंजोरी पाख म एकम के दिन अन्नकूट के रूप म मनाथें.
    सबो वर्ग के लोगन अपन नवा फसल ल अपन देवता ल समर्पित करथें, फेर अलग अलग तिथि म.

दंसहरा-
    कुंवार महीना के अंजोरी पाख म दसमी तिथि के दिन मनाए जाने वाला परब दशहरा ह असल म दंस+हरा अर्थात दंसहरा आय.
    इहाँ ए जानना जरूरी जनाथे के विजयदशमी अउ दंसहरा दू अलग अलग परब आय, फेर हमर मन के अज्ञानता के सेती दूनों ह सांझर-मिंझर होके एक बनगे हे.
    विजयदशमी के संबंध म तो सबोच जानथें के ए ह भगवान राम के द्वारा आततायी रावण ऊपर विजय प्राप्त करे के परब आय. जबकि दंसहरा ह भगवान भोलेनाथ द्वारा समुद्र मंथन ले निकले विष के पान के परब आय.
    हमन सब जानथन के देवता अउ दानव द्वारा करे गे समुद्र मंथन ले जब विष निकलिस तब सबो झन एती-तेती भागे लागीन. इही बेरा म महादेव ह जगत कल्याण खातिर वो विष के पान कर के अपन कंठ म बसा लिए रिहिन हें. इही घटना के सेती महादेव ल नीलकंठ कहे गे रिहिसे. काबर के जहर ल अपन कंठ म धारण करे के सेती उंकर कंठ ह नीला परगे रिहिसे.
   कुवांर महीना के अंजोरी पाख के दसमी तिथि ह उही तिथि आय, जे दिन भोलेनाथ ह अपन कंठ म विष ल धारण करे रिहिन हें. एकरे सेती ए दंसहरा तिथि के दिन आज घलो नीलकंठ नॉव के चिरई जेला हमन छत्तीसगढ़ी म टेहर्रा चिरई कहिथन एला देखई ल शुभ माने जाथे. काबर ते ए दिन ए नीलकंठ पक्षीय ल शिव जी के प्रतीक स्वरूप माने जाथे. जानकारी रहय के ए नीलकंठ पक्षी के संबंध ह राम-रावण वाले विजयदशमी संग कोनो किसम के नइए.
    ए दंसहरा तिथि के विष हरण के पांच दिन बाद फेर समुद्र मंथन ले अमृत के प्राप्ति होए रिहिसे, एकरे सेती हमन आज घलो सब दंसहरा के पांच दिन बाद शरद पूर्णिमा के दिन अमृत प्राप्ति के परब मनाथन. खीर बना के चंदा के अंजोर म मढ़ाथन अउ अधरतिहा के पाछू फेर प्रसाद के रूप म अमरित बांटथन.

सुरहुत्ती-
   छत्तीसगढ़ म देवारी परब ल तीन दिन के मनाए जाथे, जबकि देश के आने भाग मन म पांच दिन के. हमर छत्तीसगढ़ म कातिक अमावस के सुरहुत्ती मनाए जाथे, इहीच दिन रतिहा बेरा गौरा-ईसरदेव के बिहाव परब घलो मनाए जाथे. सुरहुत्ती के बिहान भर कातिक अंजोरी एकम के गोवर्धन पूजा करे के संग गाय-गरुवा मनला लोंदी/ खिचरी खवाए जाथे अउ एकर बिहान भर कातिक अंजोरी दूज के मातर परब मनाए जाथे. मातर परब के संग ही इहाँ मड़ई जागरण के नेंग ल घलो पूरा करे जाथे, जेहा मड़ई-मेला के रूप म अलग अलग गाँव अउ मेला ठउर मन म फागुन अंधियारी तेरस अर्थात महाशिवरात्रि तक चलथे.
   छत्तीसगढ़ म कातिक अमावस के दिन मनाए जाने वाला सुरहुत्ती परब ह दीपदान के परब आय. ए दिन जम्मो गाँव के लइका मन अपन-अपन घर-दुवार, तरिया-नदिया, बारी-बखरी, कुआँ-बावली के संगे-संग गाँव के जम्मो देवी-देवता मन म दीया मढ़ाथें. एकर पाछू फेर अपन पारा-परोस अउ हितु-पिरितु मन घर घलो दीया मढ़ाए बर जाथें.
   सुरहुत्ती के दीया ल पहिली नवा चॉंउर के पिसान ल सान के बनाए जाय. हमन लइका राहन त ए चॉंउर पिसान के बने दीया जब तेल अउ बाती लगा के बारे के बाद बुता जावय त वो दीया ह बने सेंकाय असन हो जावय, तेला कलेचुप निकाल-निकाल के खा जावत रेहेन. आजकाल चॉंउर पिसान के दीया के चलन थोरिक कम देखे म आथे.
    सुरहुत्ती के रतिहा ही आधा रात ले गौरा-ईसरदेव के बिहाव परब ल मनाए जाथे. ए परब ल लोगन गौरा-गौरी के रूप म जादा सुरता करथें. इहाँ ए जाने के लाइक बात हे, के ए गौरा-ईसरदेव बिहाव ह देवउठनी परब ले दस दिन पहिली होथे, जबकि देश के आने भाग म ए बात प्रचलित हे के देवउठनी के पहिली बर-बिहाव जइसन कोनो शुभ कारज नइ करना चाही. फेर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति म इहाँ के मुख्य देवता के ही बिहाव देवउठनी ले पहिली हो जाथे, जे हा सांस्कृतिक विविधता के एक सुंदर उदाहरण आय.

छेरछेरा-
   संभवतः पूरा देश अउ दुनिया म छत्तीसगढ़ एकमात्र अइसन राज आय जिहां दान देवई अउ दान लेवई ल परब के रूप म मनाए जाथे. ए दिन अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, ऊँच-नीच सबके भेद मिट जाथे. सबो मनखे दान मॉंगे बर जा सकथें अउ दान पा सकथें. कतकों कलाकार किसम के लोगन तो नाचत-गावत कुहकी पारत छेरछेरा मॉंगे बर जाथें, छेरछेरा के डंडा नाच तो इहाँ गजबे लोकप्रिय हे. ए दिन छत्तीसगढ़ के एक भी घर या व्यावसायिक संस्थान अइसे नइ राहय, जेन दान मॉंगे बर अवइया ल दान दे ले मना करय.
    सामाजिक समरसता के अद्भुत परब छेरछेरा ल मनाए के इहाँ अलग-अलग वर्ग समाज म अलग-अलग कारण ले मनाए के मान्यता हे. आमतौर म ए छेरछेरा परब ल लोगन खरीफ फसल के कटाई अउ मिसाई के बाद एक उत्सव के रूप म मनाए के मान्यता देखब म आथे, जबकि इहाँ के मूल निवासी आदिवासी समाज ह छेरछेरा ल गोटुल/घोटुल के शिक्षा म पारंगत होए के पाछू तीन दिन के परब के रूप म मनाथे. उहें इहाँ के सब्जी उत्पादक मरार समाज ह ए छेरछेरा परब ल शाकंभरी जयंती के रूप म मनाथे. मोला अपन साधना काल म जेन ज्ञान मिले रिहिसे वोकर मुताबिक ए छेरछेरा परब ह शिव जी द्वारा बिहाव के पहिली पार्वती के परीक्षा ले खातिर नट बन के जा के भीक्षा माॅंगे के प्रतीक स्वरूप आय. एकरे सेती ए दिन नट जइसन विविध संवांगा कर के लोगन नाचत गावत कुहकी पारत दान माँगे बर जाथें.
    अलग-अलग वर्ग के छेरछेरा मनाए के मान्यता भले अलग-अलग हे, फेर सबोच झन एला पूस पुन्नी के दिन ही मनाथें. छेरछेरा के माध्यम ले बहुत अकन लोककल्याण के कारज घलो हो जाथे.
   छत्तीसगढ़ के बहुत अकन गाँव मन म रामकोठी भरे के परंपरा हे. छेरछेरा के दिन ही ए रामकोठी म सकेले धान अउ रुपिया आदि के हिसाब-किताब होथे, अउ जे मनखे एमा के सकलाए धन ल उधारी म लेना चाहथें, उनला दिए जाथे. जे मन उधार लेगे रहिथें उंकर मन जगा धन वापस जमा करवाए जाथे.
    हमर गाँव नगरगाँव म प्रायमरी शाला तो अंगरेज मन के जमाना ले रिहिसे, फेर मिडिल स्कूल नइ रिहिसे. हमन जब पांचवीं पढ़त रेहेन तभे मिडिल स्कूल खोले के आदेश आइस, फेर शर्त ए रहिस के मिडिल स्कूल खातिर भवन ल गॉंव वाले मन बना के देवय. तब हमर गुरु जी मन हमन ल गाँव भर बेंड बाजा बजवावत छेरछेरा मंगवाए रिहिन हें. गाँव वाला मन घलो बढ़-चढ़ के दान दिए रिहिन हें, तब मिडिल स्कूल खातिर भवन घलो बने रिहिसे अउ कक्षा लगे के शुरुआत घलो होए रिहिसे. मोर जिनगी म छेरछेरा के ए गौरवशाली रूप के हमेशा सुरता म रइही. हमन गाँव भर घूम-घूम के छेरछेरा तो माँगे रेहेन संग म भवन निर्माण के बेरा श्रमदान घलो करे रेहेन.

कामदहन-
   छत्तीसगढ़ म फागुन पुन्नी के होली के जेन परब मनाए जाथे, वो ह होलिका दहन के नहीं, भलुक कामदहन के परब आय. एकरे सेती इहाँ होले डांड़ ल बस्ती ले बाहिर रखे जाथे, अउ होले डांड़ तीरन माईलोगिन मन के जाना मना रहिथे. ए बात ल ठउका चेत करे के लाइक हे. काबर ते देश के आने भाग म होलिका दहन स्थल ल बस्ती के बीच म या आसपास म रखथें अउ माईलोगिन मन होलिका के पूजा करे बर घलो जाथें.
    छत्तीसगढ़ म मनाए जाने वाला परब ल समझे बर हमला शिव जी के द्वारा कामदहन करे गे रिहिसे वो प्रसंग ल सुरता करे बर लागही.
    देवी सती ह जब अपन पिता राजा दक्ष द्वारा करे गे यज्ञ म शिव जी ल आमंत्रित नइ कर के जेन अपमान करे रिहिसे, तेकर सेती सती ह यज्ञ कुंड म ही अपन देंह के त्याग कर दिए रिहिसे. एकरे सेती शिव जी ह घनघोर तपस्या म लीन होगे रिहिन हें. तब ताड़कासुर ह ब्रम्हा जी द्वारा शिव पुत्र के हाथ म ही मरे के वरदान माँग के भारी अतलंगी करत रिहिसे.
    इही ताड़कासुर ले मुक्ति पाए खातिर देवता मन शिव जी के तपस्या भंग करे बर कामदेव ल भेंजथें, तेमा शिव तपस्या ले उठय, देवी पार्वती संग बिहाव करय अउ शिव पुत्र के जनम होय, जे ह अतलंगी करत ताड़कासुर के संहार करय.
    देवता मन के अनुरोध करे म कामदेव अपन सुवारी रति संग शिव तपस्या भंग करे बर बसंत ऋतु के मादकता भरे मौसम के चयन करथे. हमर छत्तीसगढ़ म बसंत पंचमी के दिन होले डांड़ ठउर म अरंडी नॉव के पेड़/पौधा ल गड़ियाय के जेन परंपरा हे, वो ह असल म कामदेव के आगमन के प्रतीक स्वरूप ही आय. एकरे संग फेर होले डांड़ ठउर म वासनात्मक नृत्य-गीत के चलन चल परथे, जे हा फागुन पुन्नी तक सरलग चलथे. काबर के फागुन पुन्नी के ही दिन भोलेनाथ ह अपन तीसरा नेत्र ल खोल के कामदेव ल भसम करे रिहिन हें.
   आप गुनव- होले परब म वासनात्मक नृत्य-गीत के जेन चलन चलथे, एकर ले होलिका ले का संबंध हे? फेर बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक लगभग चालीस दिन के परब मनाए के घलो होलिका ले का संबंध हे? होलिका तो एक दिन म चीता रचवाइस, वोमा आगी ढीलवाइस अउ खुदे जल के भसम होगे.
   छत्तीसगढ़ के होले परब म होलिका दहन ले संबंधित कोनो चिन्हा नइ दिखय. हमर छत्तीसगढ़ म पहिली होले परब म किसबीन नचवाए के घलो चलन रिहिसे. ए किसबीन नाच ह असल म रतिनृत्य के प्रतीक स्वरूप होवत रिहिसे.
    संगी हो मैं हमेशा कहिथौं छत्तीसगढ़ के संस्कृति सृष्टि काल के संस्कृति आय, जेला हमला वोकर वास्तविक रूप म फेर से लिख-पढ़ के निमार-छांट के सबके आगू म राखे के जरूरत हे. कुछ लोगन आने आने क्षेत्र ले अवइया लोगन संग आए संस्कृति अउ ग्रंथ ल छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक चिन्हारी संग जोड़ के बताए के उदिम करत हें. हमला अइसन लोगन अउ उंकर पोथी-पथरा ले बांच के रेहे बर लागही, तभी हमर मूल सांस्कृतिक पहचान, हमर अस्मिता के उज्जर अउ सुग्घर रूप सुरक्षित रहि पाही.
जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811