Wednesday 20 November 2019

दैवीय उपस्थिति और ऊर्जा का अहसास.....

दैवीय उपस्थिति और ऊर्जा का अहसास
चाहे किसी भी धर्म, पंथ या सम्प्रदाय का उपासना स्थल हो सभी जगह एक जैसी ही दैवीय उपस्थिति और ऊर्जा का अहसास होता है।
मैं बचपन से ही ऐसे स्थलों पर जाता रहा हूं, तब मुझे इस बात का अहसास तो नहीं हो पाता था, लेकिन जब से विधिवत साधना के मार्ग पर आया हूं, तब से मुझे इसका स्पष्ट अहसास और अनुभव होने लगा है।
अनेक मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, मठ, साधना और तपस्या स्थल पर जाने का संयोग बनता रहा है। कई ऐतिहासिक और पुरातत्वीय महत्व के स्थलों को भी देखने-जानने का अवसर मिला। जहां भी विधिवत पूजा-उपासना होती है, सभी जगह उनकी उपस्थिति और उनसे मिलने वाली ऊर्जा का अहसास हुआ।
इस बात से एक चीज तो स्पष्ट हुआ कि हर धर्म, पंथ और सम्प्रदाय से संबंधित उपासना स्थल और पूजा-उपासना की विधि का एक जैसा ही महत्व है। सभी के माध्यम से आध्यात्मिक अनुभव और ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।
-सुशील भोले-9826992811
संजय नगर, रायपुर

तीरथ बरत कर आएन जोहीं....

तीरथ-बरत कर आएन जोहीं देव-दर्शन ल पाएन
अलग-अलग देव-ठिकाना फेर एके तत्व जनाएन
पूजा विधि सबके अलगे किस्सा घलो आनेच आन
फेर सार-तत्व ल सबके गोई सिरतोन एक्के जान
-सुशील भोले-9826992811
संजय नगर, रायपुर

Tuesday 19 November 2019

एक जनम बर होथे लिखे भाग के रेखा.....

एक जनम बर होथे पक्का लिखे भाग के रेखा
कर ले कुछू उदिम चाहे तैं कर ले कुछू सरेखा
नइ बदलय एक अंश तोर बीते करनी के लेखा
भोगना परथे निच्चट सबला इही आंखी के देखा
* सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मो. 98269 92811,

गढ़ना हे त नवा जनम के....

गढ़ना हे त गढ़ले बइहा तोर नवा जनम के रस्ता
झन बीतन दे ए जनम ल निच्चट एकदम सस्ता
परमारथ के कारज ले तैं परलोक म पाबे आसन
होही कहूं फेर दुनिया म आना मिलही सुख-रासन
* सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मो. 98269 92811,

Thursday 7 November 2019

कातिक पुन्नी स्नान...

कातिक पुन्नी स्नान....
हमारी संस्कृति में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष 12 पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर १3 हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है, क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी या अन्य पवित्र नदियों  में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो.9826992811

Tuesday 5 November 2019

पर्व और मान्यताएं.....

पर्व और मान्यताएं.....
हमारे यहां बहुत से ऐसे पर्व हैं, जिन्हें अलग-अलग समुदायों के द्वारा अलग-अलग अवसर पर या अलग-अलग संदर्भों के अंतर्गत मनाया जाता है। उदाहरण के लिए हम "नवा खाई" का पर्व ले सकते हैं।
छत्तीसगढ में "नवा खाई" का पर्व तीन अलग-अलग अवसरों पर मनाया जाता है। ओडिशा राज्य की सीमा से  लगे वे लोग जो उत्कल संस्कृति को जीते हैं ,इसे ऋषि पंचमी को, जो कि भादो मास को संपन्न होने वाले गणेश चतुर्थी के पश्चात् आता है, उस दिन मनाते हैं।
गोण्डवाना की संस्कृति जीने वाले लोग इसे कुंवार मास की शुक्ल पक्ष में अष्टमी या नवमी तिथि को मनाते हैं। इसी तरह अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के अंतर्गत आने वाले लोग जो कि मैदानी भाग में रहते हैं, इसे कार्तिक मास में मनाए जाने वाले दीपावली पर्व के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर अन्नकूट के रूप में मनाते हैं।
नवा खाई पर्व मनाने का सभी का उद्देश्य एक ही है, अपने ईष्ट को अपनी नई फसल को समर्पित करना। किन्तु अलग-अलग तिथि और अलग-अलग रूप में इसे मना लिया जाता है।
ऐसे ही बहुत से ऐसे पर्व हैं, जिन्हें अलग-अलग संदर्भ के अनुसार अलग-अलग समूह के लोग मनाते हैं।
हम "छेरछेरा" पर्व को उदाहरण के रूप में ले सकते हैं। गोंडवाना की संस्कृति को मानने वाले लोग  इसे "गोटुल/घोटुल" की शिक्षा में पारंगत हो जाने के पश्चात पूस पूर्णिमा के अवसर पर तीन दिनों का पर्व मनाते हैं।
यहां के मैदानी भाग में रहने वाले अन्य पिछड़े और सामान्य वर्ग के अंतर्गत आने वाले लोग केवल एक दिन का पर्व फसल की लुवाई-मिंजाई के पश्चात् अन्न दान के रूप में मनाते हैं। इन सबसे अलग मुझे अपने साधना काल में जो ज्ञान प्राप्त हुआ, उसके अनुसार यह पर्व शिव जी द्वारा पार्वती से विवाह पूर्व लिए गये परीक्षा के अंतर्गत नट बनकर मांगा गया भिक्षा का प्रतीक स्वरूप मनाया जाने वाला पर्व है।
मित्रों, यहां यह जानना आवश्यक है कि यहां के हर पर्व का संबंध किसी न किसी रूप में अध्यात्म से अवश्य है। आज हम उचित जानकारी के अभाव में उसे अन्य संदर्भों के अंतर्गत मनाये जाने को स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि सभी पर्वों का मूल कारण जानने के लिए कागजी प्रमाणों से ऊपर उठ कर तर्क और लोक परंपरा की कसौटी पर उसे परखना आवश्यक है।
यहां पर मैं "होली" पर्व को उदाहरण के रूप में रखना चाहूंगा। हम आम तौर पर यह जानते हैं कि "होलिका दहन" के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। जहां तक हम छत्तीसगढ की मूल संस्कृति के संदर्भ में बात करें तो यह सही नहीं है।यहां जो पर्व मनाया जाता है, वह "काम दहन" का पर्व है। इसीलिए हम इसे "मदनोत्सव" या "वसंतोत्सव" के रूप में भी मनाते हैं।
आप सभी को यह स्मरण होगा कि शिव पुत्र के हाथों मरने का वरदान प्राप्त ताड़कासुर के संहार के संहार के लिए तपस्यारत शिव की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को भेजा गया था। तब कामदेव वसंत का मादक भरे मौसम का चयन कर अपनी पत्नी रति के साथ शिव तपस्या भंग करने का प्रयास कर रहे थे। इस पर शिव जी कुपित हो गये और कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिए।
हमारे छत्तीसगढ में इसी लिए इस पर्व को वसंत पंचमी से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक लगभग चालीस दिनों का पर्व मनाया जाता है। वसंत पंचमी के दिन अरंडी नामक पौधे को होली दहन स्थल पर गड़ाया जाता है, जो कि कामदेव के आगमन के प्रतीक स्वरूप होता है। उसके पश्चात् वासनात्मक गीतों और नृत्यों के माध्यम से फाल्गुन पूर्णिमा तक इस पर्व को मनाया जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा को होली दहन स्थल पर एकत्रित लकड़ी आदि में अग्नि संचार के पश्चात यह पर्व संपन्न होता है।
आप सोचिए, होलिका तो एक ही दिन में लकड़ी एकत्रित करवा कर उसमें अग्नि प्रज्वलित करवाती है, और स्वयं ही उसमें जलकर भस्म हो जाती है। फिर उसके लिए चालीस दिनों का पर्व मनाने की क्या आवश्यकता है? इस पर्व के अवसर पर प्रयोग किए जाने वाले वासनात्कम शब्दों, दृश्यों और नृत्यों से होलिका का क्या संबंध है?
मित्रों, मैं हमेशा यह कहता हूं कि यहां की मूल संस्कृति को उसके वास्तिवक रूप में पुनः लिखने की आवश्यकता है, तो उसका यही सब कारण है।
-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान
संजय नगर, रायपुर
मो नं 9826992811