Saturday 30 October 2021

शिक्षा संग सेवा के अलख .. सीमा वर्मा

प्रेरक कारज//
शिक्षा संग सेवा के अलख जगावत सीमा वर्मा
    बिना कोनो समिति या संस्था संग जुड़े बिना या संस्था बनाए के उदिम ले बांचे बिना घलो कइसे जनसेवा के कारज करे जा सकथे, एकर एक अच्छा अउ ठउका उदाहरण हे सीमा वर्मा.
    बिलासपुर शहर के कौशलेन्द्र राव काॅलेज म एलएलबी अंतिम बछर के पढ़ई करत सीमा ल अपन संग पढ़ई करत दिव्यांग नोनी सुनीता यादव ल देख के वोकर खातिर इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसाईकिल के विचार आइस.
   बात दिसंबर 2015 के आय तब तक सुनीता यादव हाथ ले चलइया ट्राईसाईकिल म लट्टे-पट्टे काॅलेज आ पावत रिहिसे. वोकर ए दशा ल देख के सीमा के मन म वोला इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसाईकिल देवाए के भाव जागिस. अइसने किसम वो ह पाछू पांच बछर म 13 हजार ले जादा पढ़इया लइका मन ल कापी-किताब देवा डारे हे. अभी 12 वीं तक के 34 पढ़इया लइका मन के पूरा पढ़ई के खरचा उठवत हे, संगे-संग 50 अउ लइका मनला बिना पाइसा लिए शिक्षा के अंजोर म संघारत हे.
   एक भेंट म सीमा बताइस के दिसंबर 2015 म अपन संग पढ़त दिव्यांग नोनी सुनीता यादव ल इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसाईकिल देवाय के जब मन म भाव जागिस, त काॅलेज के प्रिंसिपल जगा ए बात ल रखिस. प्रिंसिपल वोला हफ्ता भर बाद आए बर कहिस. तब सीमा गुनिस के बाजार म घलो पूछ लिए जाए के ट्राईसाईकिल कतका म मिल जाथे, तेमा काॅलेज के अउ सब पढ़इया संगी मन संग चंदा बटोर के सुनीता बर ट्राईसाईकिल लिए जा सकय.
    सीमा अपन काॅलेज ले निकल के ट्राईसाईकिल के जानबा करे खातिर निकलिस. शहर के साइकिल दुकान मन म गेइस त बताइन, के मेडिकल काम्प्लेक्स म मिलही. उहाँ ले वोला जानकारी मिलिस के 35 हजार रु. म मिलथे, फेर एकर पहिली आर्डर दे बर लागथे. दिल्ली के आवत ले छ: महीना असन लाग जाथे.
    उहाँ ले निकल के सीमा एक साइकिल पंचर बनइया के दुकान गेइस, त वोकर ले जानकारी मिलिस के सरकार ह तो अइसन किसम के लोगन ल नि:शुल्क देथे. एकर खातिर जिला पुनर्वास केन्द्र जाना चाही उहाँ कुछ जरूरी कागजात जमा करे बर लागथे, फेर ए प्रक्रिया म 6 महीना या साल भर तो लागिच जाही.
   फेर सीमा चाहत रिहिसे, के ए कारज जतका जल्दी हो जावय वतके बने हे. त फेर वो पंचर बनाने वाले ह जिला के कलेक्टर या कमिश्नर संग भेंट करे के सुझाव दिस अउ इहू बताइस, के कमिश्नर साहब गजब कोंवर दिल अउ भावना वाला मनखे आयं, वो मन तुंहला झट मदद कर देहीं. तब सीमा कमिश्नर कार्यालय पहुंचिस अउ उहाँ के संबंधित अधिकारी मनला सुनीता के संबंध म पूरा जानकारी दिस. तब उहाँ आवश्यक कागजात जमा करे बर कहे गिस. अइसे किसम तब के कमिश्नर सोनमणि बोरा के हाथ ले सुनीता यादव ल इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसाईकिल मिल पाइस.
    सीमा बताइस, के ए पूरा घटनाक्रम म वोहा तीन बात सीखिस- पहला, कहूँ वो ह घरेच म बइठे रहितिस त वोकर सहेली ल ट्राईसाईकिल नइ मिल पातिस. दूसरा, कहूँ पंचर बनइया ह वोला नइ बतातिस त वोला सरकार के अइसन योजना के जानकारी नइ मिलतिस, जेमा दिव्यांगजन खातिर अइसन योजना चलथे. तीसरा अउ खास बात, सरकार के कतकों जनकल्याणकारी योजना हे, जेकर हमला जानकारीच नइ राहय. अइसन जानकारी आम लोगन तक पहुंचना चाही, जेकर बर हर जागरूक मनखे ल अपन तीर-तखार के जरूरी मनखे ल वोकर बारे म बताए जाना चाही.
    पढ़इया लइका मनला कापी-किताब देवाय के बारे म सीमा बताइस- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना खातिर एक-एक पइसा सकेल के वोला बनाए गे रिहिसे. मोला जब एकर जानकारी मिलिस, तब महूं 10 अगस्त 2016 ले एक रुपया अभियान चालू करेंव, जेकर चलत आज 13 ले जादा पढ़इया लइका मनला उंकर पढ़ई-लिखई के जरूरी जिनिस देवा पाएन. सीमा बताइस, अभी तक वो ह करीब 2 लाख 34 हजार रु. सकेल डारे हे, जेकर ले लइका मन के फीस भरथे. हमर ए अभियान ले प्रभावित होके कतकों अधिकारी अउ लोगन लइका मन ल गोद लेके उंकर शिक्षा के जम्मो व्यवस्था ल करथें.
   एकर संगे-संग लइका मनला अउ कतकों किसम के उपयोगी अउ कानूनी जानकारी देवत रहिथें. उन बताइन- अभी विश्वव्यापी महामारी कोरोना के सेती जेन लाॅकडाउन चलत रिहिसे, तेकर सेती स्कूल- काॅलेज बंद होगे रिहिन हें. अइसन बेरा म घलो हमन लइका मनला योग क्लास, वार्षिक समारोह के तर्ज म डांस प्रतियोगिता, ड्राइंग प्रतियोगिता के संगे-संग अउ कतकों गतिविधि म संलग्न राखन.
   ए सब गतिविधि मन के चलत सीमा वर्मा ल चारों मुड़ा ले लोगन के दुलार अउ सराहना के संगे-संग कतकों किसम के राष्ट्रीय अउ प्रादेशिक पुरस्कार मिलत रहिथे. शुभकामना हे, उंकर ए मुहिम आगू बढ़ते राहय. लोगन उंकर ले प्रेरणा लेके अपन अपन क्षेत्र म जरूरी लोगन मन के सेवा, सहयोग अउ मार्गदर्शन करत राहंय.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्ह. 9826992811

Tuesday 19 October 2021

छत्तीसगढ़िन बेटी बुल्लेट सवारी..

छत्तीसगढ़िन बेटी के बुल्लेट सवारी
    आरुग छत्तीसगढ़ी सवांगा पहिरे प्रभा ठाकुर जब 500cc के बुल्लेट मोटर साइकल म चढ़ के दूनों हाथ ल छोड़ के पल्ला कूदाथे, त देखनी हो जाथे. अतकेच भर नहीं, वो ह एकर संगे-संग 1942 के विलीज माडल जीप म घलो स्टंट करई ल भाथे. संग म तौरई, दौड़ई अउ जम्मो आने खेल अउ कला प्रतिभा के घलो जौहर देखाथे.
      दुरुग जिला के धमधा तहसील के गाँव टठिया के पिता बिरेंद्र बहादुर सिंह राजपूत अउ महतारी चमेली सिंह राजपूत के घर 25 जून 1967 के जनमे प्रभा ठाकुर एक एथलीट के रूप म अब तक 25 ले जादा राष्ट्रीय स्तर के खेल प्रतियोगिता मन म भाग ले डारे हें. एकरे छोड़े स्थानीय स्तर के कतकों रचनात्मक उदिम मन म उन संघरते रहिथें. उंकर यूट्यूब वीडियो के 17 लाख ले जादा व्युव्स हे.
   उंकर सियान भिलाई इस्पात संयंत्र म अधिकारी रिहिन हें, तेकर सेती उंकर पढ़ना-लिखना घलो भिलाई म ही होइस. गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल सेक्टर 2 ले उन हायर सेकेंडरी पास करे के पाछू कल्याण महाविद्यालय भिलाई ले हिन्दी साहित्य म एमए करिन.
   छात्र जीवन ले ही उंकर एथलीट के रूप म जबर जुड़ाव रेहे हे, एकरे सेती 1984 म इंडियन पंजा कुश्ती (40 किग्रा) में राष्ट्रीय रैंक 1, 1986 म 21 किमी पुणे अंतर्राष्ट्रीय मैराथन म अंतर्राष्ट्रीय रैंक 5 वां रैंक, 1989 म 21 किमी दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मैराथन म अंतर्राष्ट्रीय रैंक 2, 1985 म पावर लिफ्टिंग म राष्ट्रीय रैंक छठवां, 1985 अउ 1987 म दिल्ली म गणतंत्र दिवस परेड म घलो भागीदारी निभाइन. 1987 म दिल्ली म दिवस परेड म 3 किमी मैराथन म राष्ट्रीय रैंक दूसरा स्थान पाइन.
    प्रभा जी एक भेंट म बताइन के खेल के संग-संग कला डहार घलो उंकर झुकाव रिहिसे. कक्षा 11 वीं तक उन सितार वादन के कोर्स करे हें. एकर संगे-संग स्कूल म होवइया सामूहिक गीत अउ नृत्य के कार्यक्रम मन म घलो बढ़ चढ़ के हिस्सा लेवंय. उन बताइन, अभी रायपुर के फिलिम बनइया जसबीर कोमल के एक फिलिम "मोला उहिच लड़की चाहिए बात खत्म" म चरित्र अभिनेत्री के रोल करत एक अपहृत होवइया लड़की ल बचाए के भूमिका निभाही, जेमा उन जबरदस्त फाइट करत नजर आहीं.
    आज 54 बछर के उमर म घलो उंकर कला अउ जम्मो खेल मन के प्रति लगन ल देख के गजब खुशी होथे. उंकर उज्जवल भविष्य के शुभकामना संग बधाई..

छत्तीसगढ़िन बेटी के देख ले बुल्लेट सवारी
प्रभा ठाकुर के अब तो इही बनगे हे चिन्हारी
जीप संग कतकों खेल म वो करतब देखाथे
दूनों हाथ ल छोड़ के जंउहर फटफटी कूदाथे
देश-राज जम्मो डहर वोकर सोर होगे भारी
छत्तीसगढ़िन बेटी के देख ले बुल्लेट सवारी

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 14 October 2021

विजयादशमी और दंसहरा

दशहरा या दंसहरा...?
क्वांर मास की शुक्लपक्ष दशमी तिथि को मनाये जाने वाला पर्व दशहरा है या दंस+हरा = दंसहरा है ..?

ज्ञात रहे कि विजया दशमी और दशहरा दो अलग-अलग पर्व हैं। लेकिन हमारी अज्ञानता के चलते इन दोनों को गड्ड-मड्ड कर एक बना दिया गया है।

जहां तक विजया दशमी की बात है, तो इसे प्राय: सभी जानते हैं कि यह भगवान राम द्वारा आततायी रावण पर विजय प्राप्त करने के प्रतीक स्वरूप मनाया जाने वाला पर्व है। लेकिन दशहरा वास्तव में दंस+हरा=दंसहरा है। दंस अर्थात विष हरण का पर्व है। सृष्टिकाल में जब देवता और दानव मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे, और समुद्र से विष निकल गया था, जिसका पान (हरण) भगवान शिव ने किया था, जिसके कारण उन्हें नीलकंठ कहा गया था। इसीलिए इस तिथि को नीलकंठ नामक पक्षी को देखना आज भी शुभ माना जाता है। क्योंकि इस दिन उन्हें शिव जी (अपने कंठ में विषधारी नीलकंठ) का प्रतीक माना जाता है।

आप लोगों को तो यह ज्ञात ही है कि समुद्र से निकले विष के हरण के पांच दिनों के पश्चात अमृत की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए हम आज भी दंसहरा के पांच दिनों के पश्चात अमृत प्राप्ति का पर्व शरद पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं।

-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो/व्हा. 98269-92811

Friday 8 October 2021

किताब.// दिनेश चौहान.. सांच कहे

किताब के गोठ//
महतारी भाखा बर तुतारी कोंचत "साँच कहे तो..."
     छत्तीसगढ़ी म गाये-बजाए, नाचे-कूदे, लड़े-झगरे अउ जम्मो ओढ़ना-दसना बरोबर ओढ़े-बिछाए के आस लिए एकसुर्री लेखन कारज म भिड़े दिनेश चौहान जी के अभी एक नवा किताब हाथ म आए हे- "साँच कहे त़ो मारन धावै". एक फर्रा देखे म एमा के अबड़ अकन ह पहिली देखे-पढ़े बरोबर जनाइस. फेर सुरता घलो आवत गिस. दिनेश चौहान मूल रूप ले चित्रकार आय. मैं खुद उँकर जगा अपन किताब अउ कतकों आने कारज खातिर मयारुक रेखांकन करवा डारे हँव, तेकर सेती उँकर ए गुन ल ठउका चिन्हथँव. जइसे उँकर चित्र मन संबंधित विषय के भाव ल झट एक नजर म फोरिया देथे, ठउका उँकर लेखन घलो ह वइसने गढ़न के जगजग ले जना जाथे. एकर पहिली उँकर 'कइसे होही छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया', 'छत्तीसगढ़ी  बर तुतारी', अउ 'चौखड़ी जनउला' पढ़े बर मिले रिहिसे. सबो म महतारी भाखा बर पीरा अउ एकर बढ़वार के उदिम के पंदोली के आसा दिखत रिहिसे.
अभी ए जे 'साँच कहे तो मारन धावै' आए हे, ए ह वइसे तो चार अलग अलग खण्ड म खँचाय हे, फेर एकर पहला खण्ड ह पूरा के पूरा छत्तीसगढ़ी भाखा ऊपर समर्पित हे. इही वो खण्ड घलो आय, जेला ए किताब के आत्मा घलो कहि देबो त कोनो गलती नइ होही.
   वइसे खण्ड दू, तीन अउ चार घलो पढ़े अउ गुने के लाइक हे. खण्ड दू म जिहाँ कुछ महत्वपूर्ण विषय ऊपर उँकर गंभीर चिंतन देखे बर मिलथे, उहें खण्ड तीन म उँकर एक प्रखर व्यंग्यकार के रूप के आरो मिलथे. खण्ड चार आज दुनिया भर म महामारी के रूप म चिन्हें जावत 'कोरोना' खातिर एक आलोचनात्मक नजरिया के रूप आय. सोशलमीडिया म जे मन दिनेश चौहान जी के संग जुड़े होहीं, वो मन उँकर ए रूप ल ठउका देखे होहीं. अउ जानत घलो होहीं, के ए रोग ल महामारी घोषित करे ले लोगन ल कतका किसम के दुख-पीरा अउ समस्या मन  जूझना परिस. फेर आज ए किताब ल पढ़े के बाद मोर पूरा के पूरा मनसुभा खण्ड एक ऊपर ही गोठियाए के होगे हे.
   दिनेश चौहान जी के ए कहना सही आय के इहाँ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के गठन होए दशक भर ले आगर बेरा होगे हे, फेर जेन किसम ले एकर माध्यम ले ठोस बुता होना रिहिसे वो आज तक नइ हो पाइस. वोमन खुद शिक्षा माध्यम ले जुड़े हें, तेकर सेती एकर संबंध म ठउका जानथें अउ पढ़ई के माध्यम म संघरे के महत्व अउ प्रक्रिया ल घलो समझथे. एकरे सेती उन जोर देके एला कक्षा 1 ले कक्षा 10 तक कोनो न कोनो किसम ले संघारे के बात करथें. आठवीं अनुसूची म शामिल करे के ठोसलग गोठ करथें. मानकीकरण के विषय म अपन विचार ल स्पष्ट करथें. अंगरेजी के हिमायती मन के अंधदौड़ म छत्तीसगढ़ी कोन मेर खड़े हे, तेकरो संसो करथें. फेर जिहाँ तक संस्कृति के बात हे, त उन अभी के नवा सरकार के उदिम ल सकारात्मक ढंग ले देखथें. फेर जिहाँ तक मोर बात हे. मैं एकर ले सहमत नइ हँव. काबर ते आज संस्कृति के नाँव म कला के मंचीय रूप ल देख के ही लोगन सांस्कृतिक विकास के मानक ल पूर्ण समझे बर धर लिए हें.
    मैं दिनेश चौहान जी के संगे-संग अउ जम्मो लेखक बिरादरी मन ले जोजियाना चाहथौं, उनला बताना चाहथौं, के संस्कृति के केवल मंचीय पक्ष ल नहीं, भलुक एकर आध्यात्मिक पक्ष ल देखे के जरूरत हे. आज मोला संत कवि पवन दीवान जी के वो बात के सुरता आवत हे, जब वो मन डा. परदेशी राम वर्मा जी संग मिलके माता कौशल्या के नाँव म जमीनी अभियान चालू करे रिहिन हें. तब वो मन एक बात हर मंच म काहँय- 'बंगाल के मन अपन देवी देवता धर के आइन हम उँकरो पाँव परेन, उत्तर प्रदेश अउ बिहार के मन अपन देवता धर के आइन हम उँकरो पाँव परेन, पंजाब अउ गुजरात के मन अपन देवता धर के आइन हम उंँकरो पाँव परेन. भइगे चारों मुड़ा के देवता मन के पाँव परई चलत हे. फेर मैं पूछथौं अरे ददा हो, भइगे दूसरेच मन के देवता के पाँव परत रहिबो त अपन देवता के पाँव कब परबो??"   ए बात ल घलो सबो लेखक बिरादरी ल समझे बर लागही, के हमला अपन पारंपरिक देवता मन के पाँव ल अपन पारंपरिक पूजा-उपासना के विधि ले अउ हमर खुद के जीवन पद्धति के अंतर्गत ही जीए बर लागही. धरम अउ संस्कृति के नाँव म कोनो भी किसम ले आने राज्य ले आने वाले मन के पाछू जाए के टकर ल छोड़े बर लागही तभे सही मायने म अलग राज निर्माण के उद्देश्य सार्थक हो पाही.
    मोला पुरखा साहित्यकार हरि ठाकुर जी के वो बात के घलो सुरता आवत हे, जब छत्तीसगढ़ राज बने के बाद छत्तीसगढ़ी साहित्य के जलसा म उन कहें रिहिन हें- "जब तक छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति के स्वतंत्र चिन्हारी नइ बन जाही, तब तक राज निर्माण के अवधारणा अधूरा रइही."  एकरे सेती मोरो जम्मो छत्तीसगढ़ी के हितवा मन ले अरजी हे, सबो झन भाखा के संगे-संग संस्कृति, खास कर के आध्यात्मिक संस्कृति खातिर घलो चेत करँय तभे अलग छत्तीसगढ़ राज निर्माण के पुरखा मन के सपना ह सही अर्थ म साकार हो पाही.
' साँच कहे तो मारन धावै' खातिर दिनेश चौहान जी ल ए अरजी संग बधाई अउ शुभकामना के अब अपन लेखनी के रद्दा ल भाखा संग संस्कृति खातिर घलो धराही.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

छत्तीसगढ़ म बसदेवा गीत..

छत्तीसगढ़ म बसदेवा गीत...
    छत्तीसगढ़ के धनहा-डोली मन म अन्नपूर्णा दाई सोनहा रूप धरे जइसे-जइसे लहराए लगथे किसान मन के मन नाचे अउ झूमे लगथे. एकरे संग वोला खेत ले परघा के बियारा अउ फेर बियारा ले मिंज-ओसा के कोठी अउ ढाबा म जतने के उदिम शुरू होथे. ठउका इहिच बेरा म इहाँ के गाँव गाँव अउ बस्ती बस्ती म ' जय हो गौंटनीन, जय हो तोर... जय गंगान' के सुर लहरी छेड़त बसदेवा मन के आरो मिले लगथे.
    हमन लइका राहन त हमर गाँव म हमरे घर तीर के पीपर पेड़ के छइहां म एकर मन के जबर डेरा देखे बर मिलय. बढ़िया छमछम करत सवारी गाड़ी अउ गाड़ा म इन तीन चार परिवार माई-पिल्ला  आवंय अउ रगड़ के तीन चार महीना असन इहें रमड़ा के रहंय. एमन अपन- अपन पूरा परिवार सहित आवंय. गाड़ी गाड़ा म आए राहंय उही गाड़ी मनके खाल्हे ल तोप-ढांक के सूते बसे के ठउर बनावंय अउ आगू के खाली जगा ल लिप-बहार के अंगना बरोबर उपयोग करंय, जेमा रंधना-गढ़ना सब हो जावय.
    लइका अउ माईलोगिन मन पीपर छइहां म ही अस्थायी बसेरा बरोबर राहंय, फेर आदमी जात मन होत बिहनिया जय गंगान के सुर लमावत घरों घर दान -दक्षिणा के जोखा म निकल जावंय. कभू कभार सियानीन माईलोगिन मन ल घलो "कांटा झन गड़य दाई, तोर बेटा के पांव म कांटा झन गड़य" गीत गावत, असीस देवत दिख जावय. जब हमर गाँव के पूरा घर म मांग-जांच डारंय, त फेर तीर-तखार के गाँव मन म घलो जावंय.
    वइसे भी लुवई-मिंजई के सीजन म छत्तीसगढ़ ह औघड़ दानी हो जाथे, तेकर सेती एमन ल धान-पान के संगे-संग नगदी अउ कभू-कभार बुढ़ावत बइला-भइंसा के संग खेत-खार घलो दान म मिल जावय. एला एमन या तो लहुटती बेरा म बेंच देवंय या फेर अधिया रेगहा म सौंप देवंय.
   एमन पूछे म बतावंय, के उन वृंदावन क्षेत्र के रहइया आंय, भगवान कृष्ण के सियान वासुदेव के वंशज. एकरे सेती वासुदेव के जीवन गाथा ल हमन गाथन. कभू-कभू कृष्ण अवतार, राम अवतार, श्रवण कुमार, हरिश्चंद्र, मोरध्वज, भरथरी, सती अनुसुइया, शिव विवाह आदि  के कथा ल घलो गावंय.
   रायपुर आए के पाछू एकर मनके बारे म अउ जाने बर मिलिस, काबर ते इहाँ विवेकानंद आश्रम के आगू रामकुंड म एकर मन के जबर बसेरा हे. इहाँ एकर मनके एक पूरा के पूरा पारा हे, जेला बसदेवा पारा के नांव ले जाने जाथे. अब ए मन इहाँ स्थायी रूप ले बस गे हावंय. छत्तीसगढ़ के निवासी बनगे हावंय. ए मन इहाँ अपन स्वतंत्र चिन्हारी के उदिम घलो कर डारे हावंय. बसदेवा पारा (बस्ती) के आगू म एक सिरमिट के बने प्रवेशद्वार हे जेमा "जय माँ काली मंदिर बसदेव पारा" लिखाए हे. एला 13 नवंबर 1879 विक्रम संवत 1936 माघ कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी दिन गुरुवार के सिपाही लाल वासुदेव द्वारा बनवाए के उल्लेख करे गे हे, जेला बाद म 1997 म फिर से जीर्णोद्धार करे गे हवय. ए मंदिर म काली माता विराजमान हें. मंदिर म बड़का असन पीपर पेंड़ घलो जामे हे, वोकर संग शिव लिंग के पूजा होथे.
   एकर मनके तब जीवकोपार्जन के मुख्य साधन इही बसदेवा गीत गा के गुजर बसर करना ही रिहिसे, फेर अब बेरा के संग नवा पीढ़ी ह अलग- अलग काम-बुता म घलो रमे बर धर लिए हे, तेकर सेती अब एकर मनके गीत गा के मंगई-जचई ह कम घलो दिखथे.
    रायपुर के बसदेवा पारा म आके बसे के संबंध म इन बताथें, के उन गंगा तीर के मूल निवासी आयं. वैदिक काल म यज्ञ के विविध अनुष्ठान के बीच बीच म आख्यान गाए के परंपरा रिहिसे, इही ह लोककथा अउ लोकगाथा के रूप म पूरा गंगा क्षेत्र म फैल गे. बाद म अइसे कई किसम के परिस्थिति आवत गिस, जेकर चलत हमन बघेलखंड ले होवत एती गोंडवाना के धरती म पहुँच गेन अउ इहें अपन गाथा मनला गाये लगेन. अइसे करत फेर भोरमदेव अउ कवर्धा होवत रायपुर पहुँच गेन. छत्तीसगढ़ के धरती हमन ल भारी निक लागिस तेकर सेती अब हमन इहाँ के स्थायी निवासी बन गेन. अउ एकरे संग हमन छत्तीसगढ़ के कतकों अउ इलाका मन म घलो बगरगे हावन.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Saturday 2 October 2021

अस्मिता के दूनों अंग के बढ़वार

अस्मिता के दूनों अंंग के बढ़वार हे जरूरी...
     कोनो भी क्षेत्र या राज के चिन्हारी उहाँ के भाखा अउ संस्कृति दूनों के माध्यम ले होथे। एकरे सेती ए दूनों ल ही उहाँ के चिन्हारी या अस्मिता कहे जाथे।
      छत्तीसगढ़ी अस्मिता के अलग चिन्हारी खातिर जब ले अलग राज खातिर आन्दोलन चालू होए रिहिसे, तब ले मांग चलत रिहिसे। जिहां तक भाखा के बात हे, त ए ह इहाँ के गुनिक साहित्यकार मन के माध्यम ले सैकड़ों बछर ले चले आवत हे, एकरे परसादे आज छत्तीसगढ़ी भाखा देश के आने कोनो भी लोकभाखा के मुकाबला म कमती नइए। फेर जिहां तक संस्कृति के बात हे, त एकर अलग चिन्हारी के बुता ह आजो ढेरियाए असन दिखथे। जब भी छत्तीसगढ़ी संस्कृति के बात होथे, खासकर आध्यात्मिक संस्कृति के त आने राज ले लाने गे संस्कृति अउ ग्रंथ ल ही छत्तीसगढ़ के संस्कृति के रूप म माने अउ जाने के बात करे जाथे। गुनिक साहित्यकार मन घलो ए मामला म थथमराए असन जुवाब दे परथें।
      जबकि ए स्पष्ट कहे जाना चाही, के दूसर राज ले लाने गे संस्कृति छत्तीसगढ़ के मूल या कहिन इहाँ के मौलिक संस्कृति नइ हो सकय। मौलिक या मूल संस्कृति उही होथे, जेन इहाँ तइहा तइहा ले चले आवत हे। हमन अपन पहिली के लेख मन म एकर उप्पर घात चरचा कर डारे हावन।
    अभी सिरिफ अतके गोठियाना हे, अस्मिता के अपन दूनों अंग के बढ़वार के बुता ल संगे संग करन। अस्मिता के नांव म सिरिफ भाखा भाखा करत रहिबो त संस्कृति संग पहिलिच जइसे अनियाय होतेच रइही। अउ जब तक संस्कृति संग अनियाय होवत रइही, तब तक हमर अस्मिता के भरपूर बढ़वार कभू नइ दिखय।
कोनो मनखे के एक आंखी मूंदाए रइही अउ एक आंखी भर ले वो देखही त भला वोकर छापा ह जगजग ले कइसे दिखही? ठउका इही बात हमर अस्मिता उप्पर घलो लागू होथे। एकर एक अंग पिछवाए रइही त विकास के रद्दा वो कइसे रेंगे पाही? भाखा आन्दोलन चलत इहाँ कतकों बछर होगे हे, फेर संस्कृति ल वोकर ले अलग रखे के सेती वो मंजिल तक पहुँच नइ पावत हे।
संगी हो बहुते जरूरी हे, भाखा संग इहाँ के मूल संस्कृति के आन्दोलन ल घलो संघारिन, तभे हमला सफलता के सिढ़िया चघे बर मिलही, अउ तभेच हमर अस्मिता ह सही मायने म चारोंखुंट जगजग ले दिखही।
      आज मोला पुरखा साहित्यकार हरि ठाकुर जी के वो बात के सुरता आवत हे, जब उन छत्तीसगढ़ राज बने के बाद छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के एक जलसा म कहे रिहिन हें- "जब तक छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति के अलग चिन्हारी नइ बन जाही, तब तक छत्तीसगढ़ राज निर्माण के अवधारणा अधूरा रइही." हमला राज निर्माण के अवधारणा ल पूरा करना हे त भाखा अउ संस्कृति दूनों खातिर समिलहा उदिम करे ल परही.
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो/व्हा. 9826992811