Sunday 21 April 2019

बड़े जतन म बनथे अपन घर...

बड़े जतन म बनथे संगी अपन घर
सुग्घर निरमल छइयां होथे अपन बर
दूसर के कतकों महल हो फेर होथे दूसर
स्वाभिमान इहें जागथे होथे गुजर बसर
-सुशील भोले 9826992811

Sunday 14 April 2019

जंवारा विसर्जन....

कइसे के जोरंव जोरा छूटत हे दाई तोर कोरा ओ,
रोवत रोवतअंतस भितरी फूटत हे दाई फोरा ओ...

Tuesday 9 April 2019

सतबहिनिया माता की पूजा परंपरा...

सतबहिनिया माता की पूजा परंपरा...
छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति इस देश में प्रचलित वैदिक या कहें शास्त्र आधारित संस्कृति से बिल्कुल अलग हटकर एक मौलिक और स्वतंत्र संस्कृति है। पूर्व के आलेखों में इस पर विस्तृत चर्चा की जा चुकी है।  इसी श्रृंखला में अभी नवरात्रि  के अवसर पर माता की पूजा-उपासना और उनके विविध रूपों या नामों पर भी चर्चा करने की इच्छा हो रही है।

आप सभी जानते हैं, कि नवरात्र में वैदिक मान्यता के अनुसार माता के नौ रूपों की उपासना की जाती है। जबकि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति में माता के सात रूपों की पूजा-उपासना की जाती है,  जिन्हें हम सतबहिनिया माता के नाम से जानते हैं। यहाँ की संस्कृति प्रकृति पर आधारित संस्कृति है, इसलिए यहाँ प्रकृति पूजा के रूप में जंवारा बोने और उसकी पूजा-उपासना करने की परंपरा है।

हमारे यहाँ सतबहिनिया माता के जिन सात रूपों की उपासना की जाती है,  उनमें मुख्यतः - शीतला दाई,  मावली दाई,  बूढ़ी माई,  ठकुराईन दाई, कुंवर माई,  मरही माई, दरश माता आदि प्रमुख हैं।  इनके अलावा भी अलग- अलग लोगों से और कई अन्य नाम ज्ञात हुए हैं,  जिनमें -कंकालीन दाई,  दंतेश्वरी माई,  जलदेवती माता,  कोदाई माता या अन्नपूर्णा माता आदि-आदि नाम बताए जाते हैं।
हमारे यहाँ सतबहिनिया माता की पूजा-उपासना आदि काल से होती चली आ रही है, इसीलिए यहाँ के प्राय: सभी गाँव,  शहर और मोहल्ले में शीतला माता,  मावली माता, सतबहिनिया माता आदि के मंदिर देखे जाते हैं।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान
संजय नगर,  रायपुर
मो/व्हा.9826992811

Monday 8 April 2019

चुनी के रोटी...

सील-लोढ़ा म घंस के पीस ले पताल चिरपोटी
संग म वोकर परोस दे तैं तो  चुनी के रोटी
एला जे खा लेही रात-दिन तोरेच  गुन गाही
कब्ज होय नहीं संग पाइल्स-मोटापा ले बचाही
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Sunday 7 April 2019

जन्म दिवस पर...

एक छंद है आज समर्पित,
प्रिय तुम्हारे जन्म दिवस पर
जीवन खुशियों से भर जाये
ज्यूं जल भरता ऋतु-पावस पर
रिद्धि-सिद्धि सब मंगल गावें,
नृत्य करें देव-अप्सरा
स्वर्ग लोक मुदित हर्षावे,
देख-देख कर यह वसुंधरा
हर मौसम के रंग निराले,
छाये तुम्हारे मानस पर
प्रिय तुम्हारे जन्म दिवस पर...
प्रिय तुम्हारे...
-सुशील भोले
मो. 98269-92811

प्रेम में.....

प्रेम नि: स्वार्थ होता है,
वो केवल देना जानता है,
मांगता कुछ भी नहीं।
स्वार्थ से परे होता है,
प्रेम में वाणी का नहीं,
मन का निरंतर
संवाद होता है।
प्रेम असीम है,
बिन बोले ही,
सबकुछ बोलने का
उदाहरण है।
प्रेम में अधिकार
होता ही नहीं,
सिर्फ त्याग होता है,
कल्याण होता है, 
और समर्पण होता है।
-सुशील-9826992811

Wednesday 3 April 2019

गंगा मैया, झलमला....


मां गंगा मैया मंदिर,  झलमला...
छत्तीसगढ़ के बालोद जिला मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर पर स्थित ग्राम पंचायत झलमला का प्रसिद्ध देवी मंदिर है। मंदिर ऐसा कि दर्शन मात्र से ही जीवन धन्य हो जाए। माता की अदभुत प्रतिमा को देखकर ही भक्त जनों का रोम-रोम पुलकित हुए बिना नहीं रहता।

प्राचीन कथा जुड़ी देवी मां के मंदिर से..
धार्मिक स्थल मां गंगा मैया की कहानी अंग्रेज शासन काल से जुड़ी हुई है। उस समय जिले की जीवन दायिनी तांदुला नदी के नहर का निर्माण चल रहा था, करीब 125 साल पहले। उस दौरान झलमला की आबादी महज 100 के लगभग थी, जहां सोमवार के दिन ही यहां का बड़ा बाजार लगता था। जहां दूर-दराज से पशुओं के विशाल समूह के साथ बंजारे आया करते थे। उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी। पानी की कमी को पूरा करने के लिए बांधा तालाब नामक एक तालाब की खुदाई कराई गई। मां गंगा मैय्या के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है।
बार-बार जाल में फंसती रही मूर्ति...
किवदंती अनुसार एक दिन ग्राम सिवनी का एक केवट मछली पकडऩे के लिए इस तालाब में गया, लेकिन जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई, लेकिन केंवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया। इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केवट जाल लेकर घर चला गया।

स्वप्न में कहा मुझे निकालें बाहर...
देवी मां की प्रतिमा को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं। केवट के जाल में बार-बार फंसने के बाद भी केवट ने मूर्ति को साधारण पत्थर समझ कर तालाब में ही फेंक दिया। इसके बाद देवी ने उसी गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ।

माता के स्वप्न के बाद प्रतिमा को निकाला बाहर...
स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट तथा गांव के अन्य प्रमुख को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा, उसके बाद केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंसी। प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार तिवारी ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गई। जल से प्रतिमा निकली होने के कारण गंगा मैय्या के नाम से जानी जाने लगी।

जतमई माता के धाम....

जंगल के बीच जताई माता के बसेरा...

जतमई छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ आैर पर्यटन स्थलों में से एक है। ये प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। यह स्थान अब देवी का एक चर्चित तीर्थ का रूप धारण कर चुका है। जतमाई छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब  65 किमी की दूरी पर स्थित एक प्राकृतिक स्थल है आैर यह जंगल के बीचों-बीच बना हुआ है। जतमाई अपने कल कल करते प्राकृतिक सदाबहार झरनों के लिए भी प्रसिद्ध है। गरियाबंद जिले में प्रकृति की गोद में बसा, वनों से आच्छादित यह अत्यंत सुंदर स्थान है, जहां वर्षा ऋतु में कल कल करते झरने बहते रहते हैं। यही शहर के प्रदूषण से मुक्त शांत जगहों में से एक जतमई धाम है। यहां मां जतमाई का प्रसिद्घ मंदिर है जो की पहाड़ों की देवी है। माता के मंदिर के ठीक सटी हुई जलधाराएं उनके चरणों को छूकर चट्टानों से नीचे गिरती हैं। इसमें युवा नहाने से नहीं चूकते हैं। स्‍थानीय मान्‍यताओं के अनुसार, ये जलधाराएं माता की सेविकाएं हैं जो देवी मां के भक्‍तों को नहलाती हैं। यहां आने वाला हर शख्स यही कहता है कि वह जन्नत में आ गया।

बहुत मशहूर है यह स्थान

वैसे तो यहां साल भर ही भक्तों की भीड़ आती है आैर मां के दर्शनों का लाभ उठाती है, परंतु प्रतिवर्ष चैत्र और कुवांर के नवरात्र में मेला भी लगता है। जतमाई में दूर दूर से लोग माता के दर्शन करने आते हैं तथा पिकनिक का भी आनंद उठाते हैं। जतमई वनों के मध्य में स्थित होने के कारण एक खूबसूरत पिकनिक स्थल के रूप में भी प्रसिद्व है। यहां के झरने लोगों के मन मोह लेते हैं और लोग झरने में भीगने से आपने आप को रोक नहीं पाते हैं। जतमाई से लगा हुआ घटारानी भी जतमाई की तरह ही एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल है। यहां भी जतमाई की तरह ही झरने बहते हैं आैर मां घटारानी का मंदिर है, जतमाई के पास ही एक छोटा सा बांध भी है जिसे पर्यटक देखना नहीं भूलते।

Monday 1 April 2019

चितावर दाई....

चितावर दाई....
सिमगा विकासखंड के गाँव झिरिया कामता म बस्ती ले बाहिर खेत-खार के बीच ले एक नान्हे नरवा बोहाथे,  एकरे तीर म एक प्राकृतिक जलस्रोत (झिरिया) हे। ए झिरिया ल चारों मुड़ा ले पक्का बना के एकर बीच म अर्धनारीश्वर (भगवान भोलेनाथ अउ माता शक्ति के समिलहा रूप) के एक पखरा के मूर्ति स्थापित करे गे हवय,  इसी ल लोगन "चितावर माता" के रूप म जानथें अउ मानथें। 
अब तो एक ठउर म अउ कतकों अकन मंदिर अउ पूजा के ठउर बनगे हवय।  ए जगा आज पूरा के परा एक धार्मिक पर्यटन के रूप म विकसित होगे हवय,  जिंदा साल भर लोगन के आना जाना लगे रहिथे।  साल के विशेष तिथि म इहाँ अब मेला चलो भराथे।  मैं पाछू बछर चैत नवरात के पहिली संझा दरसन करे बर गेंव,  वो दिन कुंड (झिरिया) म स्थापित अर्धनारीश्वर के मूर्ति म एक ठन करिया रंग के सांप ह वोमा आधा चढ़ के बइठे रिहिसे अउ वोकर शरीर के आधा भाग ह पानी म रिहिस हे। मोला लागिस के तीर म बोहाने वाला नान्हे नरवा संग ए झिरिया के संपर्क होही वोकरे सेती ए सांप, मछरी आदि परानी मन झिरिया म आके अर्धनारीश्वर के मूर्ति म चढ़ जाता होही। 
वइसे प्राकृतिक जगा के देखे के शौकीन मनला ए ए झिरिया दाई के नाम ले प्रचलित अर्धनारीश्वर के दर्शन जरूर करना चाही। 
-सुशील भोले

अब अंकरस के दिन नंदागे...

अब अंकरस के दिन नंदागे...
मानसून आये के पहिली जब चिलकत गरमी म बरसा होय अउ किसान मन नांगर फांदय, खेत ल एकसरी अउ कभू दू सरी घलो जोत डारंय  त वोला अंकरस के नांगर कहंय।
अब बेरा के संग खेती-किसानी के तौर-तरीका बदलगे। खुर्रा बोनी, अंकरस बोनी लगभग नंदागे। नांगर जोतत किसान के ददरिया के सर्रई अउ कमइलीन के वोला झोंक के जुवाब देवई। सब तइहा के बात होगे। अब तो  टेक्टर के धुंगिया उगलत भकभकी भाखा के सोर के छोंड़ खेत म अउ कुछु नइ सुनावय। हमर संस्कृति के सोर-संदेश टेक्टर अउ आने वैज्ञानिक आविष्कार के धुंगिया म नंदागे। 
मशीनी आविष्कार अउ औद्योगीकरण के सबले जादा नुकसान पर्यावरण के क्षेत्र म परत हे। जंगल-झाड़ी के रकबा दिन के दिन कम होवत जावत  हे। एकर असर बरखा के अन्ते-तन्ते रूप में घलो देखे बर मिलत हे।  जब पानी के जरूरत होथे,  त रगरगा के घाम उथे, अउ जब घाम के आसरा लामे रहिथे त कति मेर ले ननजतिया बादर आके दमोर  देथे। किसान बपरा मन बर दुब्बर बर दू असाढ़ कस हो जाथे।  त बताव भला अइसना म अंकरस के नांगर अउ खुर्रा बोनी के खेती कइसे देखे ले मिलही?
-सुशील भोले
9826992811,