Thursday 29 July 2021

प्रारब्ध भोग...

💐प्रारब्ध भोग

एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था। धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।

जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे।

धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे।

अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है। अब ये रोज का नियम हो गया।

एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये  तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है।

एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं।

अभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआ और उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।

वह व्यक्ति रोते हुये कहता है : हे प्रभु!! आप स्वयं मेरे निवृत्ति के कार्य कर रहे है। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना।

प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध है। आप मेरे सच्चे साधक है; हर समय मेरा नाम जप करते है इसलिये मै आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ।

व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है; क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है।

प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा सर्वोपरि है; ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है; लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा । यही कर्म नियम है । इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ।

ईश्वर कहते है: प्रारब्ध तीन तरह के होते है :

मन्द,तीव्र तथा तीव्रतम

मन्द प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते है। तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते है। पर तीव्रतम प्रारब्ध भुगतने ही पडते है।

लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं; उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ।

अध्यात्म के रद्दा अड़बड़ बिच्छल झट मिलय च नहीं छोर
एकरे सेती भटक जाथें कतकों जिनला मिलय नहीं सत्-अंजोर
कतकों तो तभो उठाथें अंगरी जब साधक ल धरथे कोनो रोग
कइसे समझय उन मोक्ष तभे मिलही जब पूरा होही प्रारब्ध भोग

-सुशील भोले-9826992811

छत्तीसगढ़ शब्द के चलन..

'छत्तीसगढ़' शब्द के चलन...
  आज छत्तीसगढ़ राज बने कोरी भर बछर ले आगर होगे हे. फेर ए छत्तीसगढ़ शब्द ह कहाँ ले आइस, लोगन के जुबान म कइसे चढ़िस, एकर खातिर इतिहास के जुन्ना पन्ना मनला टमड़थन त आरो मिलथे, के सबले पहिली छत्तीसगढ़ शब्द ल खैरागढ़ के चारण कवि दलराम राव के रचना म पाए जाथे, जे अपन राजा लक्ष्मीनिधि राय ले सन् 1497 म एक प्रशस्ति म कहे हे-
लक्ष्मी निधि राय सुनौ चित्त दै, गढ़ छत्तीस म न गढ़ैया रही
मरदुमी रही नहिं मरदन के, फेर हिम्मत से न लड़ैया रही
भय भाव भरे सब कांप रहे, भय है नहिं जाय डरैया रही
दलराम भनै सरकार सुनौ, नृप कोउ न ढाल अड़ैया रही
   इहाँ के साहित्य म छत्तीसगढ़ शब्द के प्रयोग दुसरइया बेर रतनपुर के कवि गोपाल मिश्र ह 'खूब तमाशा' नामक किताब म करे हे, जेकर रचना वो मन सन् 1689 माने संवत् 1746 म करे रिहिन हें-
छत्तीस गढ़ गाढ़े जहाँ बड़े गढ़ोई जानि
सेवा स्वामिन को रहैं सकें ऐंड़ को मानि
   तब ले चालू होए छत्तीसगढ़ शब्द के चलन ह धीरे- धीरे करत एक स्वतंत्र राज के रूप म चिन्हारी पाए के उदिम करे लागिस. शुरुआत म जेन छत्तीसगढ़ राज के कल्पना करे गे रिहिसे वोमा शिवनाथ नंदिया के उत्तर अउ दक्षिण म वो बेरा म रहे 18-18 गढ़ के समिलहा रूप ल एकर खातिर जोंगे गेइस, अइसे इतिहासकार मन के कहना हे.
  कहे जाथे, के इहाँ जब कलचुरी मन के शासन रिहिसे तब वो मन शिवनाथ के उत्तर म रतनपुर शाखा अउ दक्षिण म रायपुर शाखा बनाए रिहिन हें, जेमा 18-18 गढ़ रिहिसे.
   रतनपुर शाखा के अन्तर्गत - रतनपुर, विजयपुर, खरोद, मारो, कोटगढ़, नवागढ़, सोंधी, ओखर, पडरभठ्ठ, सेमरिया, मदनपुर, लाफा, कोसागाई, केंदा, मातीन, उपरौरा, पेंड्रा, कुरकुट्टी.
   रायपुर शाखा के अन्तर्गत- रायपुर, पाटन, सिमगा, सिंगारपुर, लवन, अमीर, दुर्ग, सारधा, सिरसा, मोहदी, खल्लारी, सिरपुर, फिंगेश्वर, सुवरमाल, राजिम, सिंगारगढ़, टेंगनागढ़, अकलवाड़ा.
  फेर ए सब ह तब तक सिरिफ एक कल्पना मात्र रिहिसे. छत्तीसगढ़ के ए कल्पना म अभी के मध्यप्रदेश के बालाघाट अउ शहडोल तक के भाग ले लेके ओडिशा राज के खरियार रोड तक ल संघारे जावत रिहिसे. काबर ते ए जम्मो विस्तारित भाग ल प्राचीन दक्षिण कोसल राज के भू-भाग माने जावत रिहिसे. हमन जब छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म संघरे राहन त ए जम्मो क्षेत्र के लोगन हमर मन के आन्दोलन म समर्थन करे खातिर आवंय अउ अलग छत्तीसगढ़ राज बनही तेमा हमूं मनला, माने वो जम्मो क्षेत्र ल छत्तीसगढ़ म शामिल करे जाय काहंय.
   देश ल अंगरेजी शासन ले आजादी मिले के बाद सन् 1956 म भाषाई आधार म जम्मो राज मन के पुनर्गठन करे खातिर 'राज्य पुनर्गठन आयोग' के स्थापना करे गे रिहिसे. तब 28 जनवरी 1956 के नांदगांव म डा. खूबचंद बघेल के गुनान म 'छत्तीसगढ़ी महासभा' के पहिली बेर आयोजन करे गिस. इही आयोजन ह छत्तीसगढ़ राज खातिर आन्दोलन के नेंव के बुता करिस, जेकर चलत 1 नवंबर सन् 2000 के हमन ल अलग छत्तीसगढ़ राज के चिन्हारी मिलिस. एकर पहिली ए क्षेत्र ह सीपी एण्ड बरार अउ फेर वोकर बाद मध्यप्रदेश के अन्तर्गत आवत रिहिसे.
जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी
-सुशील भोले-9826992811

Saturday 24 July 2021

मातृभाषा और महात्मा गाँधी

मातृभाषाओं के बारे में महात्मा गांधी के विचार...
                    
   हिन्दुस्तान की महान भाषाओं की जो अवगणना हुई है और उसकी वजह से हिन्दुस्तान को जो बेहद नुकसान पहुंचा है, उसका कोई अंदाजा या माप आज हम नहीं निकाल सकते, क्योंकि हम इस घटना के बहुत नजदीक हैं ।
   मगर इतनी बात तो आसानी से समझी जा सकती है कि अगर आज तक हुए नुकसान का इलाज नहीं किया गया, यानी जो हानि हो चुकी है, उसकी भरपाई करने की कोशिश हमने न की तो हमारी आम जनता को मानसिक मुक्ति नहीं मिलेगी। वह रूढ़ियों और वहमों से घिरी रहेगी।
     मेरी मातृभाषा में कितनी ही खामियां क्यों न हो, मैं उससे उसी तरह चिपका रहूँगा, जिस तरह अपनी माँ की छाती से। वही मुझे जीवनदायी दूध दे सकती है ।
    मैं अंग्रेजी को भी उसकी जगह प्यार करता हूँ, लेकिन अगर अंग्रेजी उस जगह को हडपना चाहती है, जिसकी वह हकदार नहीं है, तो मैं उससे सख्त नफरत करूँगा।
     यह बात मानी हुई है कि अंग्रेजी आज सारी दुनिया की भाषा बन गयी है, लेकिन विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में, स्कूलों में नहीं। वह कुछ लोगों के सीखने की चीज हो सकती है, लाखों-करोड़ों की नहीं।
    रूस ने बिना अंग्रेजी के, विज्ञान में इतनी उन्नति की है।आज अपनी मानसिक गुलामी की वजह से ही हम यह मानने लगे हैं कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम नहीं चल सकता। मैं इस चीज को नहीं मानता।
(उनकी पुस्तक 'मेरे सपनों का भारत'  से साभार )

Wednesday 21 July 2021

अगासदिया परदेशी राम वर्मा

18 जुलाई हीरक जन्मोत्सव//
साहित्य के अगासदिया डॉ. परदेशी राम वर्मा
    हमर छत्तीसगढ़ म सुरहुत्ती के रतिहा अगासदिया बारे के परंपरा हे. वइसे तो सुरहुत्ती के रतिहा गाँव बस्ती के चारों खुंट गोड़ी दिया के अंजोर टिमटिमावत रहिथे, फेर अगासदिया जेला लम्हरी बांस के टिलिंग म टांग के बारे जाथे, वो ह गाँव के बाहिर ले घलो कोस भर दुरिहा ले देखब म आ जाथे. ठउका अइसने हमर छत्तीसगढ़ के साहित्य अगास म अंजोर बगरावत दिया तो गजब दीया हें, फेर ए जम्मो के बीच म डॉ. परदेशी राम वर्मा अइसन अगासदिया ए जेन पूरा देश के चारों खुंट ले देखब म आ जाथे.
     दुरुग जिला के गाँव लिमतरा के कलावंत किसान नंदराम जी अउ महतारी हेमबती के जेठ बेटा के रूप म 18 जुलाई 1947 के जनमे परदेशी राम जी के चिन्हारी कथाकार, उपन्यासकार, संस्मरण, रिपोतार्ज, त्वरित राजनीतिक लेख, समीक्षक, निबंध, ऐतिहासिक अउ तथ्यात्मक लेखक माने लेखन के जम्मो विधा के रचनाकार के रूप म हवय. उंकर लेखन के आधार अउ केन्द्र दलित, शोषित अउ अन्याय पीड़ित समाज आय. एकरे सेती उनला लोगन छत्तीसगढ़ के प्रेमचंद घलो कहिथें.
     मोर सौभाग्य आय, उंकर संग मोर गजब जुन्ना चिन्हारी हे. एकरे सेती उंकर भिलाई वाले घर म तो जाना-आना होते रथे. उंकर गाँव लिमतरा घलो जाए के अवसर मिले हे.  उंकर गाँव खातिर मोर अंतस ले जुराव हे. काबर के ए गाँव ह कलाकार अउ साहित्यकार मन के जनमभूमि आय. परदेशी राम जी के सियान खुद एक जबर कलाकार रिहिन हें. उंकरे संस्कार ल परदेशी राम जी साहित्यकार के रूप म पाइन, फेर उंकर छोटे बेटा (परदेशी राम जी के छोटे भाई) महेश वर्मा जी घलो इहाँ के नामी कलाकार आयं. फेर मोला छत्तीसगढ़ी लेखन खातिर प्रेरित करइया पत्रकार अउ साहित्यकार रहे टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी के गाँव घलो इही लिमतरा ह आय.
    परदेशी राम जी, एक अइसे  लेखक आयं, जेन ए लेखन कारज ल मिशन के रूप म करथें. हिन्दी छत्तीसगढ़ी दूनों भाखा म संघरा. उंकर रचना देश के नामी पत्र-पत्रिका मन म लगातार छपत रहिथे. उंकर लिखे उपन्यास 'आवा' ह रविशंकर विश्विद्यालय के एम.ए. हिन्दी के पाठ्यक्रम म घलो शामिल हे. उंकर ए सब उदिम मन के सेती उनला छत्तीसगढ़ शासन के सबले बड़े साहित्य सम्मान 'पं. सुंदरलाल शर्मा' पुरस्कार के संगे-संग कतकों राष्ट्रीय अउ प्रदेश स्तर के साहित्यिक-सामाजिक पुरस्कार मिलत रहे हे. ए मिशनरी भावना उंकर मन म तबले जागे हे, जब उन आसाम राइफल्स म 1966 ले 1969 तक एक फौजी के रूप म काम करीन. एकर पाछू उन भारतीय डाक तार विभाग, डी.एम.सी. कुम्हारी अउ फेर भिलाई इस्पात संयंत्र म घलो नौकरी करीन.
     परदेशी राम जी जतका बड़का लेखक आयं वतकेच बड़का जमीनी कार्यकर्ता घलो आंय. उन अपन लेखन के संगे-संग 'अगासदिया' नांव के एक साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था के संचालन घलो करथें. एकर नांव ले एक पत्रिका के प्रकाशन संपादन तो करबेच करथें, संगे-संग बारों महीना कुछु न कुछु मैदानी आयोजन घलो करत रहिथें. 'आगमन' पत्रिका के संपादन करे के संगे-संग माता कौशल्या गौरव अभियान समिति के अध्यक्ष के बड़का बुता ल घलो करतेच रहिथें.
     मोला सुरता हे. जब संत कवि पवन दीवान जी रहिन हें. तब उंकर संग मिलके ए मन 'माता कौशल्या गौरव अभियान' के नांव ले जब जबरदस्त अभियान चालू करे रिहिन हें. तब मैं ए आयोजन म खूबेच संघरत रेहेंव. ए मंच के माध्यम ले पवन दीवान जी एक बात हर मंच म कहयं- 'बंगाल गुजरात के मन अपन देवता धर के आइन हर उंकरो पांव परेन. उत्तर प्रदेश अउ बिहार के मन अपन देवता धर के आइन हम उंकरो पांव परेन. चारों मुड़ा के मन अपन अपन देवता धर के आइन हम सबके पांव परेन. भईगे सबके देवता के पांवे परई तो चलत हे. फेर मैं पूछथौं, अरे ददा हो, भइगे हम दूसरेच मन के देवता के पांव परत रहिबो, त अपन देवता के पांव कब परबो? देख लेवव उंकर देवता के पांव परई म हमर माथा खियागे हे, अउ ए परदेशिया मन ए
इंकरे नांव म इहाँ के जम्मो शासन-प्रशासन म छागे हें.' मोला उंकर ए बात बहुतेच अच्छा लागय. काबर ते महूं ह  इहिच सिद्धांत ल लेके एक नान्हे संस्था 'आदि धर्म जागृति संस्थान' के गठन कर के इहाँ के मूल आध्यात्मिक संस्कृति, पूजा उपासना अउ जीवन पद्धति ल लेके जानजागरण करत हंव.
    परदेशी राम जी के संग तो मैं अबड़ कार्यक्रम म संघरे हंव. फेर एक ऐतिहासिक कार्यक्रम के जबर सुरता हे. जब सन् 2017  के अक्टूबर महीना म हमन गुजरात राज्य के राजधानी अहमदाबाद म आयोजित 'गुजराती अउ छत्तीसगढ़ी भाखा के साहित्य गोष्ठी' म संघरे खातिर गे रेहेन. एकर महत्व एकर सेती जादा हे, काबर ते ए ह भारत सरकार के साहित्य अकादमी के आयोजन रिहिसे, जेमा छत्तीसगढ़ी भाखा ल पहिली बेर राष्ट्रीय आयोजन म शामिल करे गे रिहिसे. असल म अभी तक छत्तीसगढ़ी ल संवैधानिक  रूप ले भाषा के दर्जा नइ मिल पाए हे, तेकर सेती भारत सरकार के एक संस्था के राष्ट्रीय स्तर के गोष्ठी म छत्तीसगढ़ी भाखा के साहित्यकार के रूप म प्रतिभागी बनना ऐतिहासिक बात आय. जेकर हिस्सा बने के सौभाग्य मिलिस.
     परदेशी राम जी के आयोजन के वो दिन के सुरता ल घलो मैं जिनगी भर नइ भुलावंव जब मोर जिनगी म सबले बड़े शारीरिक पीरा के संचार होइस. बात सन् 2018 के आय, तब शरद पुन्नी ह 24 अक्टूबर के परे रिहिसे. छत्तीसगढ़ के नामी कलाकार अउ शब्दभेदी बाण चलइया कोदूराम वर्मा जी के सुरता म आमदी नगर, भिलाई के अगासदिया परिसर म जबर कार्यक्रम होवत रिहिसे. ए कार्यक्रम म हमन रायपुर ले बंशीलाल कुर्रे जी दूनों जाके संघरे रेहेन. बांसगीत के कलाकार मन के मयारुक प्रस्तुति के पाछू परदेशी राम जी कार्यक्रम म उद्घोषणा करत मोला कविता पाठ खातिर बलाइन. मैं शरद पुन्नी अउ महर्षि वाल्मीकि के सुरता करत - 'जब-जब पांवों में कोई कहीं, कांटा बन चुभ जाता है, दर्द कहीं भी होता हो गीत मेरा बन जाता है.' गीत के पाठ करेंव. लोगन के ताली के आवाज सुनेंव तहाँ ले अचानक गिर परेंव. बाद म जब सब झन के अबड़ उदिम करे म होश आइस त लोगन के मुंह ले सुनेंव, के मोला 'लकवा' के बड़का अटैक आगे हे. तब ले अब तक घर के रखवारी करत साहित्य सेवा म मगन हंव.
    आज 18 जुलाई के डॉ. परदेशी राम वर्मा जी अपन जिनगी के 75 बछर पूरा करत हें. उनला गाड़ा-गाड़ा बधाई अउ शुभकामना हे, छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी भाखा-साहित्य के कोठी ल लबालब भरतेच राहंय.
शुभकामना संग जोहार 🙏
 
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 15 July 2021

गुरु पूर्णिमा..

गुरु परब के जोहार...

गुरु बनावव जान के, पानी पीयव छान के
रद्दा एकरे ले खुलथे सत्मारग अउ ज्ञान के
एकरे सेती पुरखा गढ़े हें गुरु ज्ञान के हाना
तभे फल पूरा मिलथे साधना अउ ध्यान के

   गुरु के महिमा ल दुनिया के जम्मो संत-महात्मा अउ धरमग्रंथ मन एक ले बढ़के एक किसम ले गाये अउ बताये हें. फेर सच्चा गुरु के डेहरी ल धरे खातिर इहू चेताए हे- 'गुरु बनावव जान के अउ पानी पीयव छान के'.

   हमर देश म तो वइसे एक ले बढ़के एक गुरु अउ गुनिक होए हें, फेर महर्षि वेदव्यास जी ह वो पहला गुनिक आय, जेन ह चारों वेद के व्याख्या करे रिहिन हें. एकर सेती उंकरे सम्मान म ही उंकर जनमदिन आषाढ़ पूर्णिमा ल गुरु परब या गुरु पूर्णिमा के रूप म मनाए जाथे.

  आषाढ़ पूर्णिमा ल गुरु परब के रूप म मनाए एक अउ बात ल गुनिक मन फोरियाथें. उंकर कहना हे- गुरु तो पुन्नी के चंदा कस ज्ञान के अंजोर बगरावत असन होथे, फेर चेला तो तब आषाढ़ के बादर बरोबर अंधियार म बूड़े अस रहिथें. एकरे सेती ए तिथि ल अंजोर बगरावत गुरु अउ अंधियार म बूड़े चेला के एकमई प्रतीक असन मान के गुरु परब खातिर इही तिथि ल  उपयुक्त तिथि जोंगे हें.

   वइसे इहाँ ए जानना जरूरी हे, के हमर छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति म सावन महीना के अमावस के दिन जेन हरेली के परब मनाए जाथे, उही दिन ल गुरु या चेला बनाए के दिन माने जाथे, जेला इहाँ के भाखा म "पाठ-पिढ़वा" दे या ले के रूप म मनाए जाथे. इही तिथि ल इहाँ अपन-अपन मंत्रिक ज्ञान के पुनर्पाठ या पुनर्जागरण के रूप म घलो मनाए जाथे.

   वइसे एक बात तो प्रमाणित हे, के हर मनखे ल विधिवत रूप ले एक योग्य गुरु जरूर बनाना चाही. मोला अपन साधना काल म एकर ज्ञान अउ अनुभव दूनों होइसे. गुरु बनाए के बाद ही हमर तप-साधना के फल ल पूर्ण रूप म मिलथे. हमर कर्म के फल तो ऊपर वाला ही देथे, फेर वोला गुरु के माध्यम ले देथे.

गुरु नाम के डोंगा म चढ़बे तभे उतरबे पार
नइते बस किंजरत रहिबे कांटा-खूंटी-खार
देव-कृपा पाए बर कर ले तैं कतकों उदिम
फेर पूरा फल पाबे जब गुरु बनही माध्यम

गुरु परब के जम्मो झनला बधाई अउ जोहार 🙏🙏
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Monday 12 July 2021

जगन्नतिहा गीत...

*// ठाकुर भला बिराजे हो //*
=======०००=======

     *वर्षों पहले जब हमारे गांव से जो तीर्थयात्री भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करने हेतु पैदल चलते हुए उड़ीसा राज्य के जगन्नाथ पुरी जाथे थे |*।      *जब वे तीर्थयात्री वापस गांव आते थे,तब तालाब तट में स्थित एक मंदिर में रूकते थे,और वापस आने की सूचना घर-परिवार एवं गांव वालों को देते थे*
     *तब उन्हें आदर पूर्वक"परघा कर "लाने के लिए मृदंग,झांझ मंजीरा ढोलक बजाते हुए गांव के लोग यह गीत गाते थे :-*

*ठाकुर भला बिराजे हो*
*उड़ीसा जगन्नाथ पुरी में भला बिराजे-२*

*ओड़िया मांगैं खिचड़ी*
*बंगाली मांगैं भात*
*साधु मांगै दर्शन महापरसाद*
    *ठाकुर भला बिराजे हो ..........|०|*

*काहे छोड़े मथुरा नगरी?*
*काहे छोड़े कांशी ?*
*झारखंड म आए बिराजे*
*वृंदावन के वासी*
    *ठाकुर भला बिराजे हो ........|०|*

*नील चक्र में धजा बिराजे*
*मस्तक सोहे हीरा*
*ठाकुर आगे दासी नाचे*
*गावैं दास कबीरा*
      *ठाकुर भला बिराजे हो .. .... ...*|०|*
***"
एक अउ गीत गाए जावय--

भजन बोलो भगवान के
तोर नइया ल लगाही वो ह पार हो..
ए भजन बोले... हो मुरली वाला के..

(इही मनला तब जगन्नतिहा गीत कहे जावय)
-सुशील भोले
👏🌷🌺🌹💐👏

Saturday 10 July 2021

डॉ. सीताराम साहू

16 अगस्त जयंती म सुरता..
मोला साधना के रद्दा धरइया डा. सीताराम साहू
   एक अक्खड़ अउ तार्किक स्वभाव के जनवादी रंग म रंगे पत्रकार-साहित्यकार ल विशुद्ध अध्यात्म के रद्दा म लेग के कठोर साधना म बोरना कोनो आसान बात नोहय, फेर मोर जिनगी म अइसन एक मनखे के आगमन घलो होइस, जेन मोर असन घेक्खर मनखे ल ए बुता कराए म सबले बड़का भूमिका निभाइस. रायपुर ले लगे प्रसिद्ध बंजारी धाम वाले गाँव रांवाभांठा के मोर साहित्यिक संगवारी डा. सीताराम साहू ह.
   16 अगस्त 1962 के महतारी कौशिल्या देवी अउ पिता डा. मोहन लाल साहू के घर जेठ बेटा के रूप म जनमे सीताराम संग मोर दोस्ती साहित्यकार के रूप म ही रहिस. मोर संपादन म वो बखत प्रकाशित होवइया छत्तीसगढ़ी भाखा के मासिक पत्रिका "मयारु माटी" के चेतलग पाठक होए के संगे-संग हमन दूनों रायपुर के छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति संग घलो जुड़े रेहेन, तेकर सेती जम्मो किसम के साहित्यिक कार्यक्रम मन म संघरत राहन. आगू चलके मोर रिकार्डिंग स्टूडियो चालू होइस. उहू म इंकर खुद के लिखे जसगीत मनला इंकर सुवारी अउ हमर छत्तीसगढ़ के मयारुक जसगीत गायिका अनसुइया साहू के आवाज म आडियो कैसेट के रूप म निकाले रेहेन, जेन गजब लोकप्रिय होए रिहिसे.
   पहिली मोर प्रिंटिंग प्रेस के घलो ठीहा रिहिसे, जिहां ले सीताराम के कविता मन के संकलन "डोंहड़ी" के प्रकाशन होए रिहिसे. बाद म तो अइसे दिन घलो आइस जब कहूँ साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम म जाना होवय त हम दूनों ही जावन. तीर-तखार म तो मोटरसाइकिल म मसक देवन. दुरिहा रहय त बस-रेल के माध्यम ले.
   चिकित्सा पेशा ले जुड़े होय के बाद घलो सीताराम एक उच्च कोटि के लेखक होए के संगे-संग कलाकार घलो रिहिसे. अपन गाँव रांवाभांठा म वो ह एक समिति घलो बनाए रिहिसे "माँ बंजारी महिला मानस मंडली" के नाम ले जेकर संचालक अपन जिनगी के संगवारी अउ लोकगायिका अनसुइया साहू ल बनाए रिहिसे. आज घलो ए समिति ह पूरा क्षेत्र म एक लोकप्रिय अउ प्रतिष्ठित समिति के रूप म जाने जाथे.
  सीताराम अपन लेखन के क्षेत्र म आए के बात ल "डोंहड़ी" काव्य संकलन म लिखे हे, के छत्तीसगढ़ म सांस्कृतिक मंच के जयघोष करइया "चंदैनी गोंदा" कार्यक्रम ल देखे के बाद वोमा के लक्ष्मण मस्तुरिया के जम्मो गीत मन मोर दीमाग म चौबीसों घंटा गूंजत राहय. अउ मोर संपादन म प्रकाशित 'मयारु माटी' म छपत रहे, बड़े-बड़े रचनाकार मन के रचना मनला पढ़के लेखन के रद्दा म आएंव.
  सीताराम के 'डोंहड़ी' संकलन के कुछ रचना के अवलोकन करिन-

साज सम्हर के आइस देवारी, लक्ष्मी धन बरसावत
माटी के दीया ह करिस अंजोरी, चंदा देख लजावत
धन, धान्य, भंडार भरपूर, भरे राहय तोर ढाबा
मांग करत हंव लक्ष्मी ले मैं, पूरा होवय तोर आसा
नवा फसल म नवा उमंग हे, नवा देवारी फलदायक हो
नवा जोत हे नवा जीवन म, सब ल देवारी मुबारक हो

  गरमी के मौसम म पछीना बोहाए के चित्रण देखव-
बहे पछीना अंग ले टप-टप, सात धार हे गंगरेल कस
अउंट गये सब लाल लहू, तन होगे मछरी भुंजवा कस
मुंह अइलाये दवना पाना, कोन डार जल हरियावय
छूटत हे जब प्रान तपन म, गोरिया काया करियावय

   'दीया फूटगे' शीर्षक के दू लाईन देखव-
दीया फूटगे अंजोर कइसे होही
तेल गिरगे अब कोन सिरजोही
मंहगाई ल देख-देख दीया ह रोये
तेल बिन बरय कइसे गजब बिटोये
बाती गुनत हे उछला कोन रितोही
दीया फूटगे अंजोर कइसे होही

  हमर भारतीय नवा बछर एक सुग्घर चित्रण देखव-
अन्न कुंवारी चुरू-मुरू जब कोठी पउला बीच बीराजे
फुरसुद होगे खेत कमइया महीना माघ अमुवा मौरागे
भरिस मड़ाई गाँव गाँव मुठिया फरा झट उसनागे
साज सवारी रेंगिस मेला तब लागिस नवा बछर आगे
   ए जम्मो रचना उंकर शुरुआती दिन के आय. एकर मन के छोड़े एक अउ कविता संकलन "खोरसी" के घलो  प्रकाशन होए रिहिसे. एकर मन के छोड़े- करिया बादर (गीत संकलन), पूजा के फूल (गीत संकलन) अउ बुधवा के बोकरा (व्यंग्य संकलन) ह छपे के अगोरा म रिहिसे. सीताराम के लिखे जसगीत मन पूरा छत्तीसगढ़ म आडियो कैसेट के माध्यम ले धूम मचावत रिहिसे. उंकर सुवारी अनुसुइया साहू के स्वर म आकाशवाणी अउ दूरदर्शन म घलो अपन ठउर बनावत रिहिसे, तभे 17 मार्च 2010 के ए बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार-साहित्यकार के अपन पाछू पुत्र डा. दीपक, पुत्री किरण के संगे-संग भरेपूरे परिवार अउ साहित्यिक संगी मनला बिलखत छोड़के परलोक गमन होगे.

     छत्तीसगढ़ राज बने के पहिली अउ बने के बाद तक इहाँ छत्तीसगढ़ी भाखा म विडियो फिलिम के घलो एक अच्छा दौर चले रिहिसे. जगा-जगा विडियो थियेटर अउ छट्ठी-बरही जइसन आयोजन मन म टीवी सेट म वीसीआर लगा के छत्तीसगढ़ी विडियो फिलिम मन ल गजब देखे जावय. ए दौर म डाॅ. सीताराम ह घलो चरित्र अभिनेता के रूप म अपन अभिनय कला के जौहर देखावत रिहिसे. सरकारी गोल्लर म हवलदार के रोल, माल हे त ताल हे म भैया के रोल, टूरी मारे डंडा म बाप के रोल, लेड़गा के बिहाव म भांटो के रोल अउ झोलटूराम म बाप के रोल करे रिहिसे. एमन म के कुछ फिलिम मन म उंकर सुवारी अनसुइया साहू ह घलो अभिनय करे रिहिसे. ए फिलिम म के 'टूरी मारे डंडा' ह अभी यूट्यूब म घलो उपलब्ध हे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811