Saturday, 24 July 2021

मातृभाषा और महात्मा गाँधी

मातृभाषाओं के बारे में महात्मा गांधी के विचार...
                    
   हिन्दुस्तान की महान भाषाओं की जो अवगणना हुई है और उसकी वजह से हिन्दुस्तान को जो बेहद नुकसान पहुंचा है, उसका कोई अंदाजा या माप आज हम नहीं निकाल सकते, क्योंकि हम इस घटना के बहुत नजदीक हैं ।
   मगर इतनी बात तो आसानी से समझी जा सकती है कि अगर आज तक हुए नुकसान का इलाज नहीं किया गया, यानी जो हानि हो चुकी है, उसकी भरपाई करने की कोशिश हमने न की तो हमारी आम जनता को मानसिक मुक्ति नहीं मिलेगी। वह रूढ़ियों और वहमों से घिरी रहेगी।
     मेरी मातृभाषा में कितनी ही खामियां क्यों न हो, मैं उससे उसी तरह चिपका रहूँगा, जिस तरह अपनी माँ की छाती से। वही मुझे जीवनदायी दूध दे सकती है ।
    मैं अंग्रेजी को भी उसकी जगह प्यार करता हूँ, लेकिन अगर अंग्रेजी उस जगह को हडपना चाहती है, जिसकी वह हकदार नहीं है, तो मैं उससे सख्त नफरत करूँगा।
     यह बात मानी हुई है कि अंग्रेजी आज सारी दुनिया की भाषा बन गयी है, लेकिन विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में, स्कूलों में नहीं। वह कुछ लोगों के सीखने की चीज हो सकती है, लाखों-करोड़ों की नहीं।
    रूस ने बिना अंग्रेजी के, विज्ञान में इतनी उन्नति की है।आज अपनी मानसिक गुलामी की वजह से ही हम यह मानने लगे हैं कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम नहीं चल सकता। मैं इस चीज को नहीं मानता।
(उनकी पुस्तक 'मेरे सपनों का भारत'  से साभार )

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