Saturday 27 February 2021

कहानी// मन के सुख..



छत्तीसगढ़ी कहानी.. 

* मन के सुख *

भोला... ए...भोला.. लेना अउ बताना अंजलि के कहिनी ल-जया फेर लुढ़ारत बानी के पूछिस।

भोला कहिस- अंजलि जतका बाहिर म दिखथे न, वोतके भीतरी म घलोक गड़े हावय। एकरे सेती एला नानुक रेटही बरोबर झन समझबे। एकर वीरता, साहस, धैर्य, अउ संघर्ष ह माथ नवाए के लाइक हे, तभे तो सरकार ह नारी शक्ति के पुरस्कार दे खातिर एकर नांव के चिन्हारी करे हे।

-हहो जान डरेंव भोला, फेर सरकार के बुता म तोरो योगदान कमती नइए। आज अंजलि ल जेन सब जानीन-गुनीन, सरकार जगा सम्मान खातिर वोकर नांव पठोइन, सब तोरे सेती तो आय। तैं कहूं वोकर बारे म लिख-लिख के पेपर मन म नइ छपवाए रहिते, त खादन के हीरा कस उहू कोनो मेर लुकाए-तोपाए रहितीस।

-तोर कहना सही हे जया, फेर लिखे-पढ़े वोकरे बारे म जाथे, जेन वोकर योग्य होथे। कोनो भी अयोग्य मनखे खातिर कुछु लिखबे, त एकर ले लेखनी के अपमान होथे, एकर सेती ए कहई ह सही नइए के अंजलि ल नारी शक्ति के पुरस्कार मोर सेती मिल हे। अरे भई मैं वोकर बारे म नइ लिखतेंव त कोनो अउ लिखतीस, आखिर हीरा के चमक अउ फूल के खुशबू ल कोनो रोके-तोपे सकथे का, आज नहीं ते काल वोकर चमक दिखतीस, फेर दिखतीस जरूर।

- एकरे सेती तो मैं तोर मेर केलौली करत हौं, बताना अंजलि के कहिनी ल। जया फेर गोहराइस।

-त कहिनी ल सुन के कइसे करबे?

-  अई कइसे करबो, हमूं मन वोकरे सहीं आत्म निर्भर बने के उदिम करबो। कब तक पर भरोसील रहिबो, अपन जांगर म कमाबो अउ अपन जांगर म खाबो।

भोला ल जया के ए बात अच्छा लागीस।

वो कहीस- मैं चाहथौं जया, के जम्मो नारी परानी मन आत्मनिर्भर बनयं, अपन पांव म खड़ा होवयं। आज हमला जेन नारी शोषण अउ अत्याचार के किस्सा सुने ले मिलथे, वोकर असल कारण आय बेटी मनला पढ़ा-लिखा के आत्मनिर्भर नइ बनाना। मोला समझ म नइ आवय आज के पढ़े लिखे जमाना म घलो पर के धन कहिके वोकर शिक्षा अउ रोजगार खातिर काबर धियान नइ दिए जाय।

भोला लंबा सांस लेवत कहिस- अंजलि संग घलोक तो पहिली अइसने होए रिहीसे। दाई-ददा मन जइसे खेती-मजूरी करइया रिहीन हें तइसने उहू ल बना दिए रिहीन हें। ददा छोटे किसान रिहीसे तेकर सेती वोकर दाई ल घलोक गृहस्थी के गाड़ी तीरे खातिर अपने खेती-किसानी के छोड़े आने बुता करे ले घलो लागय।

- अच्छा आने बुता घलोक करय, कइसन ढंग के। जया अचरज ले पूछ परीस।

भोला कहिस- हां, अपन खेत के बुता ल करे के बाद वोकर दाई ह जंगल ले लकड़ी अउ कांदी-कुसा लान के तीर के शहर में बेचे ले जावय। अइसने वोकर ददा ह खेती के बुता के बाद घर-उर बनाय के ठेका लेवय, कुली-मिस्त्री संग खुदो राजमिस्त्री के बुता करय। अइसन म तैं खुदे सोच सकथस जया तब अंजलि अउ वोकर भाई-बहिनी मन कतका अकन पढ़त रिहीन होहीं?

-अई... अइसन म कोनो कहां पढ़े सकही।

-हां, तैं सही काहत हस जया, चार झन नान-नान भाई बहिनी म सबले बड़े अंजलि भला कइसे पढ़े सकतीस। चौथी तक पढ़े पाइस। तहां ले उहू ह अपन दाई संग जंगल जाए लागिस, लकड़ी अउ कांदी लाने खातिर। अइसने करत-करत सज्ञान होए लागिस त दाई-ददा मन तीर के गांव म वोकर बिहाव घलो कर दिन।

कांचा उमर म भला बिहाव के अरथ ल कोनो कहां जानथें। न बाबू पिला, न छोकरी पिला। एकरे सेती अंजलि ससुरार म तो चल दिस फेर जांवर-जोड़ी के सुख ल नइ जानीस। ठउका बिहाव के होते वोकर जोड़ी ल पढ़ई करे खातिर शहर भेज दिए गीस, अउ अंजलि घर के संगे-संग खेत-खार के बुता म झपो दिए गीस। ए बीच अंजलि ल अपने ससुर के गलत नीयत के तीर घलोक सहे ल परीस एकरे सेती वो ह अपन जोड़ी ल मना-गुना के मइके म आके रेहे लागीस।

दमांद बाबू जब पढ़ लिख के हुसियार होगे त नौकरी करे के उदिम करे लागीस। फेर वोकर दाई-ददा तो निच्चट अड़हा काकर तीर जाके वोकर बारे म गोहरातीस। एकरे सेती वोला अपन ससुर तीर जाए ले कहिस। वोकर ससुर माने अंजलि के ददा ह घलोक पढ़े-लिखे नइ राहय, फेर घर-उर बनाए के ठेक ादारी करत शहर के जम्मो बड़े-बड़े अधिकारी मन संग चिन्हारी कर डारे राहय। अपन इही चिन्हारी के सेती वोकर दमांद ल सरकारी ऑफिस म नौकरी लगवा दिस। अउ अंजलि के अपने ससुर के सेती ससुरार नइ जाए के जिद के सेती दमांद ल घलोक अपने घर राख लेइस।

अपन जोड़ी संग रहे के सुख अंजलि ल जादा दिन नइ मिल पाइस। काबर ते ससुर ऊपर लांछन लगाए के सेती वोहर मने-मन  म तो चिढ़ते राहय ऊप्पन ले शहर म पढ़त खानी उहें के एक झन छोकरी संग वोकर आंखी चार होगे राहय। एकरे सेती जब वो ह नौकरी म परमानेंट होइस, तहां ले ससुराल के घर ल छोड़ के शहर म रेहे लागिस, अउ वो शहरिया छोकरी संग बरे-बिहाव सही बेवहार करे लागिस। अंजलि ए सबला के दिन सहितीस? आखिर वोला मजबूर होके मइके म बइठे बर लागिस।

अब अंजलि ल अपन जिनगी अंधियार बरोबर लागे लागीस, वो सोचिस- सिरिफ भाई-बहिनी मन के सेवा अउ कांदी-लड़की बेच के जिनगी ल पहाए नइ जा सकय, तेकर ले फूफू दीदी जेन बड़का शहर म रहिथे, तेकरे घर जाके शहर म कुछु काम-बुता करे जाय।

- अच्छा... तहां ले अंजलि अपन गांव ल छोड़ के शहर आगे-जया पूछिस।

-हहो जया, इही शहर म तो मोर वोकर संग भेंट होइस। तब ले अब तक मैं वोकर जीवन के संघर्ष यात्रा ल देखत हावौं।

-वाह भोला... वो तो आखिर पढ़े-लिखे नइ रिहीसे त फेर एकदम से ए बड़का काम ल कइसे धर लिस होही?

- तैं सही काहत हस जया... अंजलि ल ए बड़का जगा म पहुंचे खातिर अड़बड़ मिहनत करे ले लागे हे। शुरू-शुरू म तो जब वो ह शहर आइस त रेजा के काम करीस। कोनो जगा घर-उर बनत राहय तिहां अपन फूफू दीदी संग माटी मताए अउ गारा अमरे बर जावय। तेकर पाछू एक झन डॉक्टर इहां झाड़ू- पोंछा के काम करे लगीस। इहें वोला पढ़े अउ आगे बढ़े के माहौल मिलिस। उहां के डॉक्टर अउ नर्स मनले मिलत प्रोत्साहन के सेती वो आया, फेर नर्स अउ फेर नर्स ले डॉक्टर के पदवी तक पहुंचगे। फेर एक दिन अइसनो आइस जब वो दूसर के अस्पताल म नौकरी छोड़ के खुद के अस्पताल चलावत हे। अब वो माटी मताने वाली अउ झाड़ू-पोंछा लगाने वाली नहीं, भलुक, डॉक्टर अंजलि हे।

-सिरतोन म भोला, लोगन के विकास के किस्सा तो सुनथन फेर एकदम से कोइला ले हीरा के दरजा पावत कमतीच झन ले देखथन।

-तैं सही काहत हस जया, तभे तो सरकार ह वोला नारी शक्ति सम्मान दे के निर्णय लिए हे। अवइया राष्ट्रीय परब म वोला हमर राज के मुख्यमंत्री ह शासन डहर ले सम्मान करही।

- फेर भोला... वोला अपन ये संघर्ष के दिन म अपन जोड़ी के सुरता नइ आइस?

-दगाबाज के सुरता कर के काय करतीस?

-तभो ले जिनगी म एक संगवारी के, एक परिवार के जरूरत तो घलोक होथे न, तभे तो जिनगी के आखरी घड़ी ह पहाथे।

- हां जया, तोर कहना सही हे, फेर अब वोकर परिवार तो अतेक बड़े होगे हवय के वोला एक ठन घर म सकेले नइ जा सकय। जतका झन के दवई-पानी करथे, रोग-राई ले छुटकारा देवाथे, सब वोकर परिवार के हिस्सा बनत जाथें।

- हां... ये तो भौतिक परिवार होइस। फेर अंतस के सुख तो कुछु अउ खोजथे न।

-तोर कहना सही हे जया, फेर अंजलि एकरो रस्ता निकाल डारे हे। मन के सुख अउ शांति के खातिर वो ह अपन तीर-तखार के कलाकार मनला जोर के एक ठन सांस्कृतिक समिति बना डारे हे। तैं तो सुनेच होबे के संगीत ह आत्मा ल परमात्मा तक पहुंचाए के सबले सुंदर अउ सरल रस्ता होथे, एकरे सेती एला असली सुख अउ शांति के माध्यम कहे जाथे।

- अच्छा-अच्छा त अंजलि ह डॉक्टरी के संगे-संग कलाकारी घलोक करथे।

- हां जया... तन के सुख के संगे-संग वोह लोगन ल मन के सुख घलोक बांटथे।

- सुशील भोले 

संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर 

मोबा. नं. 098269-92811

अंधविश्वास के जुआ...

अंधविश्वास के जुआ..
    बिन गुने-बिचारे ककरो भी बात ल या कोनो किताब के लेखा ल आंखी मूंद के पतिया लेना ह जिनगी बर जुआ बरोबर हो जाथे. ए अंखमुंदा मनई के रद्दा म पढ़े लिखे लोगन ल घलो अभरत देखेब म आथे. फेर एकर जादा चलागन कमती पढ़े अउ निचट निरक्षर मन म जादा देखे बर मिलथे. एमा आस्था एक अइसन रद्दा आय, जेमा एकर सबले जादा बढ़वार देखब म आथे.
    तंत्र मंत्र, जादू टोना, बिलई के रद्दा कटई जइसन कतकों किसम के टोटका मन सब एकरे अलग अलग रूप आय. मोला सुरता हे, जब हमन लइका राहन, गाँव म पढ़त राहन, त देवारी तिहार बखत जुआ म जीते खातिर किसम किसम के उपई करन. हमर मनले दू चार बछर के आगर लइका मन जइसन कहि देवंय, तइसन करन.
    देवारी आए के पंदरहीच आगू ले जुआ म जीते के जोखा मढ़ाए लागन. किसम किसम के टोटका करन. फेर अब समझ म आथे के वो सब कतका निरर्थक रिहिसे. सबले पहिली बात तो ए के देवारी म जुआ के खेलइच ह कोनो किसम के संहराय के लाइक बात नोहय, लइका ले लेके सियान तक इहिच काहंय के जुआ नइ खेलबे त वो जनम म छूछू बन जबे. घर के सियान मन घलो हमन ल समझाए ल छोड़ के ये अंधविश्वास के आगी म घी डारे के बुता करंय. भले उन अइसन ठट्ठा मढ़ा के मजा ले खातिर कहि देवत रिहिन होहीं, फेर एकरे चलते देवारी जइसन मयारुक तिहार म गाँव गाँव म जुआ अड्डा के रूप धर लेथे. लोगन अपन संगी संगवारी, रिश्ता नता संग मेल भेंट करे ले छोड़के जुआ चित्ती म बूड़े रहिथे. हार हुरा के घर परिवार म कलह करथे तेन अलगेच. कतकों झन तो एकर चक्कर म पुरखौती चीज बस ल घलो बोर डारथें. जीवन भर बर जुआड़ी अउ वोकर संग म शराबी घलो लहुट जाथें.
अइसन अंधविश्वास के जुआ ले न सिरिफ बांचना जरूरी हे, भलुक लोगन ल घलोक बंचाना जरूरी हे. देवारी के दिन जुआ नई खेलहू त न छूछू बनव न मुसवा, ए सब बिरथा के बात आय. मनखे जो भी बनथे अपन सत्करम के सेती बनथे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Thursday 25 February 2021

सुरता/ कोदूराम जी वर्मा...

सुरता...
शब्दभेदी बाण संधान करइया कोदूराम जी वर्मा....
    हमन लइका राहन त हमर गाँव नगरगाँव म हर बछर नवधा रामायण के कार्यक्रम देखन-सुनन. एकर आखिरी दिन एक झन सियान के धनुस बान के कार्यक्रम देखन. उंकर आंखी म कपड़ा के टोपा बांध देवंय, तहाँ ले दू तीन भांवर किंजार देवंय. वोकर बाद एक ठन लकड़ी म  सूंत बंधे नान्हे लकड़ी ल घुमावंय, फेर एक आने मनखे ह वो सूंत बंधाय लकड़ी तीर जाके एक ठन गिलास ल बजावय. तहाँ ले आंखी म टोपा बंधाय सियान ह वो गिलास बाजे के दिशा म किंजर के अपन हाथ म धरे धनुस ले बान ल छोड़ देवंय. देखते देखत वो बान ह जेमा धारदार लोहा के एक टुकड़ा लगे राहय, तेमा वो घूमत सूंत ह कटा के गिर जावय.
    लोगन खुश होके ताली बजावंय. हमूं मन बजावन, फेर वो लइकई अवस्था म वोकर महत्व ल नइ समझत राहन. जब धीरे धीरे बड़े होवत गेन, अउ एकरे संग समझ बाढ़त गिस त जानेन के वो शब्दभेदी बाण के प्रदर्शन रहिस हे. जइसे के नवधा रामायण म सुनन के राजा दशरथ ह हिरन के भोरहा म अपन भांचा श्रवण कुमार ल मार परे रिहिसे.
      बाद म तो साहित्यिक अउ सामाजिक गतिविधि म सक्रिय होए  के बाद वो शब्दभेदी बाण के संधानकर्ता कोदूराम वर्मा जी के कार्यक्रम ल कतकों जगा देखे बर मिलिस. उंकर गाँव भिंभौरी म मोर एक साढ़ूभाई राहय, तेकरो सेती भिंभौरी जाना होवय. उहों कतकों बखत भेंट मुलाकात हो जावय.
    साहित्य के संगे संग मैं पत्रकारिता ले घलो जुड़े रेहेंव, जेमा कला साहित्य संस्कृति वाले अंक ल महीं देखंव. एमा छत्तीसगढ़ी के कलाकार मन के मुंहाचाही घलो छापन. मन म कोदूराम जी के मुंहाचाही (साक्षात्कार) छापे के विचार रिहिस. तभे मगरलोड के संगम साहित्य संस्कृति समिति के सचिव पुनूराम साहू 'राज' जी के मोर जगा फोन आइस. उन बताइन के उंकर 2015 के स्थापना दिवस कार्यक्रम जेन हर बछर 13 अक्टूबर के होथे, वोमा ए बछर आदरणीय कोदूराम जी वर्मा ल 'संगम कला सम्मान' देबोन काहत मोला कोदूराम जी ल रायपुर ले अपन संग मगरलोड लेगे के जिम्मेदारी देइन.
   मैं तुरते तइयार होगेंव, अउ उनला फोन लगाएंव त उन बताइन के मैं अभी गाँव के आश्रम म हंव, 13 के रायपुर आहूं तहाँ ले संग म चल देबोन.
  13 तारीख के बिहनिया ले कोदूराम जी के ही फोन आगे. उन कहिन के मैं तो रायपुर पहुँच गेंव, शालिक घर (शालिक राम जी वर्मा उंकर ज्येष्ठ पुत्र आंय, जेन रायपुर के डंगनिया म रहिथें) हंव. मैं उनला अपन घर संजय नगर आए बर अरजी करेंव, त उन आइन. पांच मिनट हमर घर बइठिन, तहाँ ले मगरलोड बर निकलगेन.
     रद्दा भर मैं उंकर संग मुंहाचाही करे लगेंव. मोर मन म शब्दभेदी बाण के बारे म जाने के बड़ इच्छा रिहिस, तेकर सेती सवाल इहें ले चालू करेंव, त उन बताइन के वइसे तो मैं लोककला के क्षेत्र म पहिली आएंव. जब मैं 18 बछर के रेहेंव, त आज जइसन किसम किसम के बाजा रूंजी नइ राहत रिहिसे. वो बखत सिरिफ पारंपरिक बाजा- करताल, तम्बुरा आदि ही मुख्य रूप ले राहय. एकरे सेती मैं करताल अउ तम्बुरा के संग भजन गाए बर चालू करेंव. अध्यात्म डहर मोर झुकाव पहिलीच ले रिहिसे, तेकर सेती मोर कला के शुरुआत भजन के माध्यम ले होइस.
   वोकर पाछू सन् 1947-48 के मैं नाचा डहर आकर्षित होएंव. नाचा म मैं जोक्कड़ बनंव. पहिली एमा खड़े साज के चलन रिहिसे, फेर हमन दाऊ मंदरा जी ले प्रभावित होके तबला हारमोनियम संग बइठ के प्रस्तुति दे लागेन. वो बखत ब्रिटिश शासन अउ मालगुजारी प्रथा रिहिसे तेकर सेती हमर मन के  विषय घलो एकरे मन ले संबंधित रहय.
    कोदूराम जी आकाशवाणी के घलो गायक कलाकार रहिन. उन बताइन के, सन् 1955-56 म मैं लोक कलाकार के रूप म आकाशवाणी म पंजीकृत होगे रेहेंव. फेर मैं उहाँ जादा करके भजने गावंव. मोर भजन म - 'अंधाधुंध अंधियारा, कोई जाने न जानन हारा', 'भजन बिना हीरा जनम गंवाया' जइसन भजन वो बखत भारी लोकप्रिय होए रिहिसे.
   कोदूराम जी दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के 'चंदैनी गोंदा' ले प्रभावित हो के 'गंवई के फूल' नाव ले एक सांस्कृतिक दल घलो बनाए रिहिन हें, जेमा 40-45 कलाकार राहंय. तब कला अउ कलाकार मन के गौरवशाली रूप देखे बर मिलय. कोदूराम जी अब के कलाकार अउ उंकर प्रस्तुति ले भारी नाराज राहंय. उन शासन ल ए डहर चेत करे के घलो अरजी करंय, तेमा कला गौरवशाली रूप ल फिर से देखे जा सकय.
    उन शब्दभेदी बाण सीखे के बात म आइन. उन बताइन के  वो बखत मैं भजन गावंव, वोकर संगे-संग दुरुग वाले हीरालाल शास्त्री जी के रामायण सेवा समिति संग घलो जुड़े राहंव. उही बखत उत्तर प्रदेश ले बालकृष्ण शर्मा जी आए रिहिन. जब शास्त्री जी रामायण के प्रस्तुति करयं, वोकर आखिर म बालकृष्ण जी शब्दभेदी बाण के प्रस्तुति करंय. मैं उंकर ले भारी प्रभावित होएंव, तहाँ ले उही मन ले तीन महीना के कठिन अभ्यास ले महूं शब्दभेदी बाण चलाए बर सीख गेंव. उन बताइन के शब्दभेदी बाण चलई ह सिरिफ कला के प्रदर्शन नोहय, भलुक एक साधना आय. एकर बर हर किसम के दुर्व्यसन मन ले मुक्त होना परथे. उन बतावंय के बाद म उंकर जगा कतकों झन शब्दभेदी बाण सीखे खातिर आवंव फेर साधना म कमजोर रहे के सेती कोनों पूरा पारंगत नइ हो पाइन.
    मैं उंकर ले पूछेंव के ये शब्दभेदी बाण के सेती सरकार डहार ले आपला कोनों सम्मान मिलिस का? त उन बताए रिहिन के शब्दभेदी बाण के सेती तो नहीं, फेर कला खातिर जरूर मिले रिहिसे. केन्द्र सरकार द्वारा सन् 2003-04 म गणतंत्र दिवस परेड म करमा नृत्य प्रदर्शन खातिर बलाए गे रिहिसे, उहाँ हमर मंडली ल सर्वश्रेष्ठ घोषित करे गे रिहिसे, अउ मोला 'करमा सम्राट' के उपाधि ले सम्मानित करे गे रिहिसे. अइसने हमर राज के राज्योत्सव म सन् 2007 म कला क्षेत्र म विशिष्ट योगदान खातिर 'दाऊ मंदरा जी सम्मान' ले सम्मानित करे गे रिहिसे.
    1 अप्रैल 1924 के गाँव भिंभौरी, जिला दुर्ग (अब बेमेतरा) के माता बेलसिया बाई अउ पिता बुधराम वर्मा जी के घर जन्मे  कोदूराम जी के देवलोक गमन 18 सितम्बर 2018 के बिहाने ले होगे. उंकर देवलोक गमन के खबर मोला हमर समाज के सोशलमीडिया ग्रुप ले मिलिस. वोला पढ़के मोला उंकर अंतिम बिदागरी म जाए के मन होइस. मैं तुरते अपन संगवारी टुमन वर्मा जी ल फोन करके उंकर अंतिम बिदागरी के कार्यक्रम म जाए बर कहेंव. वो तइयार होगे. हम दूनों बिहनिया 10 बजे ही भिंभौरी पहुँच गेन.
  उहाँ पहुंचेन तब तक कोदूराम जी के काया उहाँ नइ पहुँच पाए रिहिसे. गाँव के मन बताइन के कोदूराम जी के बड़े बेटा शालिक राम जी उनला कार म लेके आवत हें. गाँव म चारों मुड़ा ले लोगन सकलागे राहंव. तभे मोर नजर सजे-धजे कलाकार मन ऊपर परिस. मैं गुनेंव,  यहा दुख के बेरा म एकर मन के का काम?
  मैं वोकर मन जगा गोठियाए ले धर लेंव, त वोमा के एक झन ह बताइस, के कोदूराम जी के करमा नृत्य दल के सदस्य आन. हमन अपन गुरु जी  ल अंतिम बिदागरी दे बर आए हावन. मोला बड़ा ताज्जुब लागिस. मोर फेर  सवाल करे म वो बताइस, के हमर गुरुदेव के आखिरी इच्छा इही रिहिसे के मोला 'करमा सम्राट' के उपाधि मिले हावय, तेकर सेती मोर अंतिम बिदागरी ल करमा नृत्य गीत के संग करहू.
   मैं अपन जिनगी म अइसन कभू नइ देखे रेहेंव, तेकर सेती अचरज लागत रिहिसे. शालिक राम जी उंकर देंह ल कार म लेके पहुंचिन अउ तहाँ ले अंतिम बिदागरी के जोखा चालू होगे. करमा नृत्य दल के सदस्य मन -'हाय रे... हाय रे सुवा उड़ागे न... सोन के पिंजरा खाली होगे सुवा उड़ागे न...' करमा गीत नृत्य गावत बजावत आगू आगू रेंगे लागिन, अउ तहाँ ले बाकी मन सब उंकर पाछू हो लिएन...
   उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी..

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Friday 19 February 2021

राज आन्दोलन म आहुति... सुरता..

सुरता..
राज आन्दोलन म आहुति...
    अलग छत्तीसगढ़ राज बनाय खातिर जेन आन्दोलन होए हे, वोमा वइसे तो लगभग जम्मो वर्ग के लोगन के कोनो न कोनो किसम के योगदान हे, फेर मोला लागथे के ये यज्ञ म इहाँ के साहित्यकार मन के आहुति सबले जादा डराय हे. काबर ते राष्ट्रीय राजनीति ले जुड़े लोगन मन तो सिजनेबल या कहिन चुनाव वुनाव के बखत भले जादा तनियावंय, फेर साहित्य ले जुड़े लोगन बारोंमासी ए बुता म भीड़े राहंय.  छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य ले संबंधित जिहां भी कार्यक्रम होतीस, कोनो जगा कवि सम्मेलन या गोष्ठी होतीस, सबो म अलग राज के नारा जरूर बुलंद करतीन. हां, इहू बात सिरतोन  आय के क्षेत्रिय राजनीतिक दल मन घलो बारोंमासी ए उदिम ल करंय. फेर एकर मन के संख्या अंगरी गिनऊ राहय, तेमा उप्पर ले कतकों मन के उदिम ह तो सिरिफ दुकानदारी  चलाए बरोबर घलोक लागय.
    वइसे तो मोर जनम डा. खूबचंद बघेल के अगुवई म सन् 1956 ले छत्तीसगढ़ भातृसंघ के झंडा ले चले  जन आंदोलन के बखत नइ हो पाए रिहिसे, फेर  जब पवन दीवान जी पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी के बेनर म गाड़ी छाप के चुनाव चिन्ह म केयूर भूषण जी के खिलाफ रायपुर लोकसभा ले चुनाव लड़िन त  हमन पढ़त रेहेन, तभो अपन गाँव म अउ तीर तखार के गाँव मन म सइकिल म घूम घूम के वोकर चुनाव के चिनहा  'गाड़ी छाप' के छापा बना के प्रचार करन. फेर जिहां तक बड़का जलसा म शामिल होए के बात हे, त मैं चंदूलाल चंद्राकर जी के अगुवई म रायपुर के सप्रे स्कूल मैदान म होए बड़का जनसभा म जरूर शामिल होए रेहेंव.
   हमन कुर्मी समाज के सामाजिक गतिविधि अउ संग म साहित्य जगत म नान्हे उमर ले जुड़ जाए के सेती, राज आन्दोलन म जल्दी संघरगे रेहेन. रायपुर के तात्यापारा वाले कुर्मी बोर्डिंग वो पइत राज आन्दोलनकारी मन के एक प्रकार के ठीहा राहय. कोनो संगठन के लोगन होवंय, बइठका ल इहेंच राखंय. एक तो अइसन बइठका खातिर कोनो किसम के उहाँ शुल्क नइ ले जावत रिहिसे, उप्पर ले शहर के बीच म होए के सेती चारोंमुड़ा के लोगन ल उहाँ पहुंचे म सोहलियत परय, बस अउ रेल ले आने शहर ले अवइया मनला घलो सोहलियत परय.
    चंदूलाल चंद्राकर जी के अगुवई म जेन बड़का सभा होए रिहिसे, वोमा रायपुर के पूरा छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत एकमई होगे रिहिसे. काबर ते इहाँ के सियान साहित्यकार हरि ठाकुर जी वोमा खांध म खांध जोर के रेंगत रिहिन हें, अउ हमू मनला जतका झन साहित्य समिति संग जुड़े रेहेन सबला एमा संघरे बर केहे रिहिन. ए ह ऐतिहासिक जलसा होए रिहिसे, जेमा पूरा छत्तीसगढ़ के लोगन इहाँ जुरियाए रिहिन हें.
   ए बड़का जलसा के बाद अतका बड़का रैली अउ जलसा भूपेश बघेल के अगुवई म सरलग चले 'स्वाभिमान रैली' म देखे बर मिलिस, जेन पूरा शहर ल किंजर के गांधी चौक म जुरियावय. ए जुराव के एक खास बात ए रहय, के एमा जम्मो अलग अलग राजनीतिक दल के लोगन, एक मंच म जुरियावंय अउ खांध म खांध मिला के अलग छत्तीसगढ़ राज के मांग ल बुलंद करंय. मोला भूपेश बघेल वाले स्वाभिमान रैली के ठउका सुरता हे, जब भूपेश बघेल के संग रमेश बैस अउ अजित जोगी जइसन अलग अलग राजनीतिक धुरी के मनखे खांध म खांध मिला के रायपुर शहर म किंजरे रिहिन हें, अउ मंच म संगे म बइठे रिहिन हें. ए आयोजन म एक अच्छा बात ए होवय, के एला कोनो राजनीतिक दल या उंकर झंडा के खाल्हे म नइ करके सर्व छत्तीसगढ़िया समाज के मुखियई म करंय. जतका छत्तीसगढ़िया समाज के अध्यक्ष मन राहंय, उन मन ल पागा पहिरा के मंच म बइठारंय.
     छोटे छोटे धरना प्रदर्शन तो अबड़ होवय. कतकों अलग अलग संगठन मन अपन अपन बेनर के खाल्हे रखंय. एक बात इहाँ विशेष रूप ले उल्लेख करे के लाइक हे, के भले रायपुर ह वो बखत घोषित रूप म राजधानी नइ बने रिहिसे, तभो जम्मो धरना प्रदर्शन ल रायपुर म ही जादा करे जावय. दूसर  शहर के संगठन वाले मन घलो रायपुर म जुरियाए के कोशिश करंय.
    एक नान्हे संगठन तो हमू मन 'छत्तीसगढ़ी बहुमत' के नांव ले बनाए रेहेन. अउ अभी के राजभवन चौक, जेला वो बखत सर्किट हाउस चौक कहे जाय, उहाँ धरना प्रदर्शन करे रेहेन. हमन ल खासकर मोला तो जम्मो संगठन वाले मन अपन धरना प्रदर्शन अउ रैली म बलाते राहंय, काबर ते हमन छत्तीसगढ़िया राज ले संबंधित जोरदरहा कविता सुनावन. एकरे सेती उन काहंय- बाबू हो तुमन आथव अउ सुग्घर सुग्घर कविता सुना देथव त मंच के रौनक बाढ़ जथे. इहू बात हे, के वो बखत हिन्दी अउ उर्दू के कतकों तथाकथित राष्ट्रवादी साहित्यकार मन तब हमन ल देशद्रोही कहे म घलो लाज नइ मरत रिहिन हें. ए बात अलग हे, के आज उही मन छत्तीसगढ़िया कहाए बर सबले जादा ढोंग करत रहिथें.
   ए राज आन्दोलन म मैं एक परम समर्थक के जरूर उल्लेख करना चाहथंव, जेन भले अकेल्ला सइकिल म किंजरत राहंय, फेर रायपुर या तीर तखार के शहर म कहूंचो धरना प्रदर्शन होतीस, वोमा पहुंची जावंय. हम सब उनला बालक भगवान के नांव ले जानन. उंकर असली नाम पूर्णेन्द्र सोनी रिहिसे, जेन कंकाली पारा के मूल निवासी रहिन, फेर उन लइकई उमर ले ही संन्यास के रद्दा ल धर ले रिहिन हें, तेकर सेती सब उनला बालक भगवान ही काहंय. उंकर शरीर म कपड़ा के नांव सिरिफ एक ठन लंगोट भर राहय. उंकर जगा एक लइकुसहा सइकिल घलो राहय, जेमा उन चारों मुड़ा के दौरा करयं. उंकर सइकिल म एक नेम प्लेट टंगाय राहय, जेमा 'छत्तीसगढ़ राज लेके रहिबो' लिखाय राहय.
    रायपुर के छत्तीसगढ़िया साहित्यकार मन में बहुत झन तो सरकारी नौकरी म राहंय, वोमन ए आन्दोलन ले छटके असन राहंय, फेर वोमा एक रामप्रसाद कोसरिया जी घलो  रिहिन, जेन गुरुजी राहंय तभो ले सबो धरना प्रदर्शन म संघरंय. मैं वोकर संग बहुत हांसी मजाक करंव, काबर ते वो ह हमर सियान रामचंद्र वर्मा जी संग एके स्कूल म पढ़ावय तेकर सेती हमर घर आना जाना घलो राहय. मैं वोला काहंव- तैं छत्तीसगढ़ राज खातिर सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन म संघरथस, तोला कहूँ नौकरी ले निकाल दिहीं त? त वो काहय- निकल दिहीं त वकीली कर लेबो जी, हम वकालत घलो पढ़े हन. वोकर ए बात मोला बहुत अच्छा लागय, के छत्तीसगढ़ राज खातिर वो अपन नौकरी के घलो फिकर नइ करत रिहिसे.
     वो बखत हमर मन के कलम खाली राज आन्दोलन ले संबंधित रचना खातिर ही जादा चलय. मैं तो सिंगार फिंगार रचना कभू लिखबेच नइ करेंव. हमर मन के स्वर अउ गायकी घलो मयारुक रिहिसे तेकर सेती गीत शैली के रचना जादा लिखावय...
धर मशाल ल तैं ह संगी जब तक रतिहा बांचे हे
पांव सम्हाल के रेंगबे बइहा जब तक रतिहा बांचे हे..
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धरे मशाल फेर जाग उठे हें नारा ले स्वाभिमान के
एक न एक दिन फेर रार मचाहीं बेटा सोनाखान के...
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ये माटी के पीरा ल कतेक बतांव कोनो संगी संगवारी ल खबर नइए
धन जोगानी चारों खुंट बगरे हे तभो एकर बेटा बर छइहां खदर नइहे...
कोनो आथे कहूँ ले लांघन मगर इहाँ खाथे ससन भर फेर सबर नइए..
लहू तो बहुतेच उबलथे तभो फेर कहूँ मेर कइसे गदर नइए...
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    सबके लहू पछीना ओगराए के, सबके देवी देवता ल सुमरनी के फल आखिर 1 नवंबर सन् 2000 के सिध परीस अउ छत्तीसगढ़ ल अलग राज के स्वतंत्र चिन्हारी मिलिस. फेर आज राज बने एक कोरी अकन बछर ले आगर होगे, तभो नइ लागय, के हमन जेन आरुग छत्तीसगढ़िया राज के सपना संजोए रेहेन, वो ह पूरा हो पाइस का? आज घलो इहाँ के शासन प्रशासन म उहिच  मन जादा देखब म आथें, जिंकर ले मुक्ति के सपना सजोए रेहेन. आज घलो इहाँ के भाखा अउ संस्कृति अपन अलग चिन्हारी खातिर आंसू बोहावत हे. नवा पीढ़ी रोजगार के आस म बूढ़ावत हे. तब फेर ये गीत के बोल फूट परिस-
राज बनगे राज बनगे देखे सपना धुआँ होगे
चारों मुड़ा कोलिहा मन के देखौ हुआँ हुआँ होगे..
का का सपना देखे रहिन पुरखा अपन राज बर
नइ चाही उधार के राजा हमला सुख सुराज बर
राजनीति के परिभाषा लागथे महाभारत के जुआ होगे...
   कोनो भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल होवय उंकर चाल चरित्तर देख के अइसे नइ जनावय के इहाँ आरुग छत्तीसगढ़िया राज कभू देखे बर मिल सकही, तब क्षेत्रीय दल के सपना देखत इहू लिखाइस-
जब तक दिल्ली म बइठे हे तोर भाग के खेवनहार
तब तक बेटा छत्तीसगढ़िया कइसे पाबे तैं अधिकार..
तोर धरती अउ तोर अंगना फेर नीति वोकर चलत हे
एकरे सेती जम्मो बैरी मन तोर छाती ल मचत हे...
जतका उंकर इहाँ मोहरा हें, करथें भावना के बैपार....
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कब तक पछुवाए रइहू अब अगुवा बनव रे
नंगत लूटे हें हक ल तुंहर अब बघवा बनव रे.....
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811