Tuesday 19 December 2023

कोंदा भैरा के गोठ-11

कोंदा भैरा के गोठ-11

-ए बखत नवा मुख्यमंत्री अउ जम्मो मंत्री मन संग विधायक मन इहाँ के राजभाखा छत्तीसगढ़ी म शपथ लेहीं के नहीं जी भैरा.
   -लेना तो चाही जी कोंदा.. अरे भई जब इहाँ के विधानसभा म सर्वसम्मति ले प्रस्ताव पास कर के हिंदी के संग म छत्तीसगढ़ी ल राजभाखा के दर्जा दिए गे हवय, त वोकर पालन ल घलो तो करना चाही ना.
   -बात तो तैं सोला आना कहिथस जी संगी फेर इहाँ के अधिकारी मन कतकों बखत डेढ़ होशियारी कर देथें.
   -कइसे भला? 
   -वो मन अभी छत्तीसगढ़ी ल संविधान के आठवीं अनुसूची म संघारे नइए कहिके अटघा डारे के उदिम कर देथें.
   -अइसे कइसे हो सकथे, जब इहाँ के विधानसभा म राजभाखा के रूप म मान्यता देवत प्रस्ताव पारित हे, त वो मनला सोझबाय छत्तीसगढ़ी म शपथ देवाना चाही.
   -वो बखत के शपथ ग्रहण म तो अइसने अटघा डारे रिहिन हें.. देखव भई ए बखत कइसे करथें ते.
   -सोझबाय करना चाही जी.. एकर खातिर इहाँ के जम्मो विधायक अउ संबंधित लोगन ल चिटिक चेत घलो करना चाही.
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-हमर इहाँ बाहिरी-भितरी के मुद्दा ल लेके कई ठन पार्टी बनगे हवय जी भैरा जे मन विधानसभा ले लेके अउ आने चुनई म अपन उपस्थिति दर्ज कराए के उदिम करत रहिथें.
   -हाँ ए बात तो हे जी कोंदा.. करना घलो चाही, काबर ते ए मन राष्ट्रीय पार्टी वाले मन के सिद्धांत ले अपन अलग सिद्धांत के आधार म इहाँ राज-काज चलाना चाहथें.
   -हाँ ए बात तो हे.. हमू मन जब छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म संघरे राहन, त अइसने बानी के सिद्धांत ल लेके ही वोमा जुरे रेहेन.
   -सही आय काबर ते कोनो भी राष्ट्रीय पार्टी ह क्षेत्रीय अस्मिता के मापदंड म कारज नइ कर सकय, वोकर मन के मानक ही अलग होथे. एकरे सेती मोर ए कहना हे- जब सबो क्षेत्रीय पार्टी लगभग एके जइसे उद्देश्य ल लेके चुनावी मैदान म उतरथें, त सब अलग-अलग खेमाबंदी म काबर रहिथें.. सबो एकमई होके चुनई नइ लड़ सकंय का? कहूँ ए मन एक होके लड़तीन त अभी ले जादा लोगन के सहयोग अउ समर्थन मिलतीस.
   -हाँ ए बात तो हे संगी, फेर सब के मुखिया बने के अपन साध होथे ना.. तभे तो ए सब अपन-अपन गौंटियई म मगन रहिथें.
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-बधाई हो जी भैरा.. मूल निवासी समाज के मुड़ म इहाँ के मुखियई के पागा खाप डारेव तुमन ए बखत. 
   -हव जी कोंदा तहूं ल बधाई.. हमर मनसुभा रिहिसे के आरुग छत्तीसगढ़िया ल ही इहाँ के मुखिया बनाए जाय.. वाजिब म गजब निक जनावत हे संगी, अब भरोसा होवत हे के इंकर अगुवई म गारंटी के रूप म जेन घोषणा पत्र जारी करे गे रिहिसे वोमा के जम्मो कारज ह पूरा होही.
    -हव जी भरोसा तो हमूं मनला होवत हे के अब इहाँ के भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता के बढ़वार होही, राज्य आन्दोलन के बखत हमर पुरखा मन के ए राज के अस्मिता के स्वतंत्र चिन्हारी के जेन सपना देखे रिहिन हें, तेन ह पूरा होही, चारों खुंट छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ परंपरा के दर्शन होही.
   -हव जी अउ एकर शुरुआत ए मनला छत्तीसगढ़ी राजभाखा म शपथ ग्रहण कर के करना चाही, काबर ते भाखा अउ संस्कृति इही दूनों ह कोनो भी देश अउ राज के चिन्हारी के मानक होथे.
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-सत्ता म आए बदलाव के संग शासन-प्रशासन के कतकों काम-काज म घलो बदलाव देखे बर मिल जाथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा ए बात तो हे. दलगत राजनीति के ए ह दुखद रूप आय, जेला सबो राज अउ दल म देखे जाथे.
   -अभी देखना इहाँ गोबर खरीदी चलत रिहिसे, तेमा गरीब परिवार के कतेक माईलोगिन मनला रोजगार मिलत रिहिसे, गोबर के दीया, गोकाष्ठ, पेंट, पुट्टी सब बनत रिहिसे, फेर अब गोबर खरीदी बंद करे के आदेश के मिलते जम्मो महिला समूह मन के आगू म रोजी-रोटी के संकट जनावत हे.
   -हव जी ए बपरी मनला कांग्रेस-भाजपा से का लेना-देना.. इन तो जॉंगर भर कमाथें तब कहूँ जाके घर के चुल्हा म आगी सिपचा पाथें.
   -वइसे अभी तो इनला मौखिक आदेश भर मिले हे, लिखित आदेश के मिलते पूरा राज भर के हजारों महिला समूह के आगू म अंधियारी छा जाही.
   -सही आय जी.. अउ एकरे संग इहाँ के गोबर दीया ले भगवान के धाम ह देवारी परब म जगमगाए रिहिसे तइसने कतकों गरब करे के लाइक खबर मन घलो बुता जाहीं.
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-मूल निवासी मनला इहाँ के मुखिया बनाए हे कहिके गजब गदकत रेहेन जी भैरा.. एकरे सेती उनला ज्ञापन अउ जम्मो मिडीया मन के माध्यम ले हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म शपथ ले बर गोहराए रेहेन, फेर वो मन तो ए डहार चेते नइ करीन.
   -हव जी कोंदा इही बात ह महूं ल अलकरहा बानी के जनाइस हे. इहाँ के पढ़इया लइका मन ले लेके सियान-सामरत सबो झन छत्तीसगढ़ी म शपथ ले खातिर गोहराईन फेर सब बिरथा होगे. 
   -हव जी.. अउ तैं शपथ ग्रहण समारोह ल देखे हावस, वो मंच हमर राजगीत- 'अरपा पैरी के धार..' के गायन घलो नइ होइस.
   -अतकेच नहीं संगी, वो मंच म छत्तीसगढ़ महतारी के छापा ल घलो एक कोंटा म टिकली बरोबर चटका दिए रिहिन हें भइगे.
   -मोला तो ए सबो लच्छन ह बने नइ जनावत हे संगी.. फेर इहाँ राष्ट्रीयता के नॉव म क्षेत्रीय उपेक्षा के खेल तो नइ चालू हो जाही?
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-अभी के शपथ ह हमर चिन्हारी ऊपर गरहन धरे बरोबर होगे जी भैरा तभो ले बड़का नामधारी मन के एको प्रतिक्रिया सोशलमीडिया म देखे-पढ़े बर नइ मिलिस.
    -इही बात ल तो महूं गुनत रेहेंव जी कोंदा.. इहाँ के भाखा, राजगीत अउ छत्तीसगढ़ महतारी के एक किसम ले हिनमान बरोबर होगे तभो ले कोनोच लंबरदार मन के ए बात ऊपर आरो नइ सुनाइस.. कहूँ ए सब अपन-अपन ले दरबारगिरी म तो मगन नइ होहीं? 
   -कइसे ढंग के जी? 
   -अतको ल नइ जानस बइहा.. काकर दरबार म हाजरी बजाबोन त कोन पद ल पाबोन अउ काकर म जाबोन त काला पोगराबो अइसे ढंग के.
   -अच्छा.. पद-पदवी पाए के जोखा म भीड़े होहीं कहिदे! 
   -एदे.. अब ठउका समझे.. हमन नान-नान मन अपन भाखा-संस्कृति के मान-गौन अउ मरजाद के चिंता-फिकर म अरझे रहिथन अउ ए बड़का मन सिरिफ पद के अमरई अउ मंच म फूल-माला पहिरई के जुगाड़ म.. अतके तो फरक हे उंकर अउ हमार म.
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-गीता जयंती के जोहार जी भैरा.
   -जोहार जी कोंदा.
   -आज हमन ल गीता म भगवान ह जेन निष्काम कर्मयोग के उपदेश दिए हे, तेकर सबले जादा आवश्यकता जनाथे जी संगी.
   -हाँ.. ए बात तो महूं ल ठउका लागथे जी.. काबर ते लोगन अभी धरम-करम के नॉव म एती-तेती के छकल-बकल अउ देखावा म भीड़े जादा जनाथें.
    -उहू बपरा मन के दोस नइहे संगी.. जइसे उंकर रद्दा देखइया मन अंगरी म आरो कराथें तइसे उन बपरा मन करत रहिथें, जोगड़ा बरोबर किंजरत रहिथें.
   -हव जी इहू बात सही हे.. फेर आज के ए लोकतांत्रिक ढाँचा अउ भागमभाग के बेरा म कर्मयोग ही सबले श्रेष्ठ रद्दा हो सकथे संगी, एकरे माध्यम ले हम अपन जिनगी के सबो सांसारिक कर्तव्य ल पूरा करत मोक्ष के आसन म बिराज सकथन. 
   -सिरतोन आय संगी.. हम अपन जम्मो किसम के करम ल भगवान ल अर्पित कर के निश्चिंत भाव ले हर कारज ल करत जाइन त सिरतोन म ए जिनगी सुफल हो जाही.
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-हमन ए पढ़त-सुनत रहिथन के जब-जब धरम के हानि होथे तब-तब देवता मन आवत रहिथें.. का सिरतोन म अइसन होथे जी भैरा? 
   -गुनिक सुजन मन कहिथें तो अइसने जी कोंदा. हाँ.. ए बात अलग हे भई के हमर असन माया-मोह अउ अहंकार म बूड़े मनखे उनला चिन्हे नइ पावन.
   -वो कइसे? 
   -अरे भई.. जे मन अइसन गढ़न के आथें वो मन सिरिफ अपन काम-बुता म मगन रहिथें.. कोनो किसम के बाजा-रूंजी बजा के नइ बतावत राहंय के देखौ.. चिन्हौ.. मैं कोन आॅंव कहिके.
   -अच्छा..! 
   -हहो.. उन तो कर्मयोग  के जिनगी जीयत अपन कारज ल करथें अउ कलेचुप चले जाथें घलो.. उनला जाने-समझे बर तो हमला लागथे.. फेर का करबे हमर मन के टकर तो चिक्कन-चॉंदन अउ लीपे-पोते मनला देखे-टमड़े परगे हे न.. त सीधा-सरल अउ बिन चुपरे-पोते मनखे ल कहाँ आकब कर पाथन.. अउ पाछू जब सबके बताए-गुनाए म गम पाथन त तरूवा धर के पछताए के छोड़ अउ कुछू नइ कर पावन.
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-नवा बछर के बधाई जी भैरा.
   -तहूं ल बधाई जी कोंदा.. फेर ए नवा बछर ह हमर देश के पुरखौती परंपरा नोहय संगी.
   -हाँ ए बात तो हे, फेर आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर म इही वाले नवा बछर के चलन देखे म जादा आवत हे.
   -हाँ जी ए बात तो हे, हमरो देश के संसद अउ जम्मो शासन-प्रशासन ह एकरे मुताबिक अपन दिन-बादर ल जोंगथे, त बता भला हमन एकर ले कइसे बोचक सकथन? 
   -सही आय संगी.. देश के जेन संवैधानिक व्यवस्था हे, तेकर संग तो रेहेच बर लागही.. वइसे हमर देश म चैत महीना के अंजोरी पाख के एकम तिथि ल जादा कर के माने जाथे.
   -हमर देश के कतकों भाग म कृषि ऊपर आधारित नवा बछर के घलो चलन म हे, जइसे- हमर छत्तीसगढ़ म बैशाख महीना के अंजोरी पाख के तीज तिथि जेला अक्ती परब के रूप म जानथन वोला नवा बछर के रूप म मनाए जाथे.
   -हव जी अक्ती परब के दिन ही हमन खेती-किसानी के शुरुआत करथन. अपन-अपन खेत म बॉंवत के मूठ धरथन संगे-संग पौनी-पसारी अउ आने बनिहार-भूतिहार मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति करथन.
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-हमर बस्तर म आजो अइसन कतकों परंपरा हे जे मन अउ अन्ते देखब म नइ आवय जी भैरा.
    -हव जी कोंदा ए बात तो हे, तभे तो इहाँ के संस्कृति अउ सभ्यता के खोज-खबर आजो लोगन करत रहिथें.
   -हव जी.. अइसने एक परंपरा हे इहाँ के जिला मुख्यालय जगदलपुर ले 70 किमी दुरिहा बसे गाँव बिंता म. इहाँ के लोगन अपन सरग सिधारे नता-रिश्ता मन खातिर मसानघाट म नान्हे-नान्हे मचान असन कुंदरा बनाथें.
   -अच्छा.. अइसे! .. वइसे ए ह अपन पुरखा मन के ऋण ले मुक्त होए के ठउका उदिम आय, जइसे हमन उंकर मन के पिंड दान अउ पितर पाख म सुरता करथन तइसे गढ़न.
   -हव जी.. अपन नता-रिश्ता के मठ जगा उंकर आत्मा के बसेरा खातिर अइसन बनाए जाथे. वइसे ए परंपरा ह बहुतेच कमती जगा देखे म आथे. तोला कभू बिंता बजार जाए के मौका मिलय, त उहाँ के मरघट्टी जरूर जाबे अइसन कतकों कुंदरा देखे बर मिल जाही.
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-बधाई हो जी भैरा.. तुंहर मन के मॉंग अउ जनभावना के मुताबिक विधायक अउ प्रोटेम स्पीकर मन छत्तीसगढ़ी भाखा म शपथ लिन हें.
   -मुख्यमंत्री अउ उप मुख्यमंत्री मनला घलो पहिली अइसने छत्तीसगढ़ी भाखा म शपथ देवाय रहितीन त जादा निक जनाय रहितीस जी कोंदा.
   -चलो आखिर छत्तीसगढ़ी के चेत तो आईस राजभवन ल.. देर आए दुरूस्त आए ही सही.
   -ए ह देर आए दुरूस्त आए वाले बात नोहय संगी.. असल म ए ह लहुट के भोकवा ठउर म हबरिस वाले बात आय. 
   -वो कइसे? 
   -काबर ते जे अधिकारी मन पहिली आठवीं अनुसूची के अटघा डार के छत्तीसगढ़ी भाखा के हिनमान करे के चरित्तर रचत रिहिन हें, उनला अब समझ आगे के इहाँ के विधानसभा म सर्वसम्मति ले राजभाखा के रूप म पारित छत्तीसगढ़ी म शपथ देवाय ले कोनो किसम के संवैधानिक उलंघन नइ होवय.
    -अच्छा.. अइसे.
   -हहो.. पहिली ले अधिकारी मन ए महत्वपूर्ण बात ल समझ जाए रहितीन त लोगन के नाराजगी संग इहाँ के महतारी भाखा के हिनमान के आरोप ल काबर पाए रहितीन.. एकरे सेती काहत हौं.. ए ह लहुट के भोकवा ठउर म हबरिस वाले बात आय.
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-दुनिया भर के लोगन लोकसभा या विधानसभा जइसन संवैधानिक सदन म अपन महतारी भाखा म शपथ लेबोन कहिके सरकार जगा गोहरावत रहिथें जी भैरा, फेर इहाँ के सदन म अइसनो लोगन देखे म आइन जे मन संस्कृत जइसे अइसन भाखा म शपथ लिन हें, जेकर इहाँ कोनो किसम ले सामान्य व्यवहार म आरो घलो नइ मिलय.
   -हमर संविधान ह सबो लोगन ल अपन पसंद के भाखा म शपथ ले के अधिकार दिए हे जी कोंदा.. त लोगन अपन मनपसंद के भाखा म शपथ ले सकथें, एमा हीने अउ गुने के का बात हे? 
   -जे मन चापलूसी के डोंगा म सवार होके मंत्री पद पाना चाहथें, तेकर मन के तो अइसन उदिम ह समझ म आथे, फेर वो मनखे के अइसन करई ह अलकर जनाइस, जेकर पुरखा ल हमन अपन महतारी भाखा म आध्यात्मिक दर्शन दे हे कहिके गरब करथन. 
   -अब ए तो वोकर सोच अउ चिंतन ऊपर हे. वइसे ए बात जरूर हे, के काकरो कुल म जनम धरे भर म ही वो मनखे म अपन पुरखा के ज्ञान अउ संस्कार के संचार नइ हो जाय, एकर खातिर वोला खुद तप-साधना के भट्ठी म तपे बर लागथे.
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-अब तो छत्तीसगढ़ी भाखा म पोठ लिखे जावत हे जी भैरा.
    -हव जी कोंदा ए बात तो हे. खासकर के नवा पीढ़ी के रचनाकार मन सबोच विधा म अपन कलम रेंगावत हें.
   -कतकों झन तो बड़का-बड़का ग्रंथ मन के अनुवाद तो घलोक करत हें कहिके सुनाथे जी.
   -हाँ अनुवाद तो होवत हे, फेर मोला लागथे के हमला मौलिक लेखन म ही जादा चेत करना चाही.
   -अइसे का..? 
   -हहो.. हमर इहाँ के कतकों अइसन ऐतिहासिक व्यक्तित्व हें, जिंकर ऊपर अभी तक कोनो लिखे नइए, जबकि उंकर मन ऊपर खंचित लिखे जाना चाही. हमन सिरिफ अनुवाद के नॉव म आने क्षेत्र अउ राज के ऐतिहासिक लोगन ल ही अमरत रहिबोन, त अपन गौरव मनला कोन जगा ठउर देवा पाबोन? हमर भाखा तो सही अरथ म तभे पोठ होही, जब एमा हमर गौरव, हमर अस्मिता अउ हमर इतिहास संघरत जाही.
   -हाँ ए बात तो सिरतोन आय संगी.. अपन भाखा ह अपन चिन्हारी मन के माध्यम ले ही सही मायने म पोठ अउ रोठ बनथे.
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Wednesday 13 December 2023

माटी पुत्र या माटी के पुतला?

माटी पुत्र या माटी के पुतला..?
   हमर इहाँ कोनो भी मनखे ल मूल निवासी के रूप म चिन्हारी कराए खातिर एक सहज शब्द के उपयोग करे जाथे- 'माटी पुत्र" खास कर के राजनीति म। चाहे कोनो पार्टी के मनखे होय, कोनो पद म बइठे नेता होय सबके एके चिन्हारी- 'माटी पुत्र'। फेर मोला लगथे के 'माटी पुत्र' कहाए के अधिकार हर कोई ल नइ मिलना चाही, भलुक वोकर 'माटी' खातिर 'मया' अउ वोकरो ले बढ़ के माटी के पहचान जेला हमन भाखा, संस्कृति या अस्मिता के रूप म चिन्हारी करथन, एमा वोकर कतका अकन योगदान हे, एहू ल देखे-टमड़े जाना चाही।

काबर ते सिरिफ इहाँ जनम भर होय म या सिरिफ इहाँ के भाखा-संस्कृति के गोठ भर कर दे म कोनो ल 'माटी पुत्र' के चिन्हारी नइ मिल जाय, भलुक एकर मन के करम ल या कहिन बुता ल घलोक देखे जाना चाही। आज छत्तीसगढ़ ल अलग राज बने कोरी भर बछर ले आगर होगे हवय। फेर इहाँ के भाखा के, संस्कृति के, इहाँ के मूलधरम के अलगे चिन्हारी अभी तक नइ बन पाए हे।

ताज्जुब तब होथे जब कोलकी-संगसी म नेतागिरी करइया मन ले लेके राज के मुखिया तक के बोली म इहाँ के भाखा, संस्कृति अउ संपूर्ण अस्मिता खातिर भारी अकन कारज करे के शेखी सुने बर मिलथे! अरे भइया.. भारी अकन कारज करे हावव त वोहर कोनो मेर दिखय काबर नहीं? आज तक इहाँ के भाखा ह, शिक्षा अउ राजकाज के भाखा काबर नइ बन पाए हे? इहाँ के संस्कृति ल आने प्रदेश ले आए मनखे मन के संस्कृति अउ ग्रंथ संग संघार के काबर लिखे अउ बताए जाथे? इहाँ के मूल 'आदि धरम' ल जाति-पाति अउ वर्ण व्यवस्था के दलदल म धंसे तथाकथित धरम के अंग के रूप में काबर चिन्हारी करे जाथे?

का इहाँ के माटी पुत्र मनला ए बात के समझ नइए, या इन समझ के घलोक अपन राजनीतिक ददा-बबा मन के जोहार-पैलगी करे के छोड़ अउ कुछ जानंय-समझंय नहीं?

मैं एकरे सेती एमन ल 'माटी के पुतला' कहिथौं! जे मन अपन भाखा-बोली, धरम-संस्कृति अउ इतिहास के गौरव ल नइ गोठिया सकंय, इंकर बढ़वार अउ रखवारी खातिर कुछु ठोस उदिम नइ कर सकंय, उन 'माटी पुत्र' कइसे हो सकथे, इन सब तो 'माटी के पुतला' ही कहाहीं न?

मैं वो तथाकथित साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार अउ अस्मिता के चारोंखुंट बगरे रखवार मनला घलोक इही श्रेणी म शामिल करथौं, जेमन भाखा-संस्कृति के बात ल, अस्मिता के गोठ ल सिरिफ मंच म माला पहिरे खातिर करथें। एकाद ठन सरकारी सम्मान ल अपन टोटा म ओरमाए खातिर करथें। जबकि ठोस भुइयां म इंकर मन के कारज शून्य होथे।

छत्तीसगढ़ी भाखा-संस्कृति खातिर कतकों अकन सरकारी-असरकारी आयोजन होवत रहिथे। फेर मोर ये प्रश्न हे- एकर मन के मंच म अतिथि-सतिथि के रूप म जेमन टोटा म माला ओरमा के बइठे रहिथें, बड़े-बड़े पदवी ले सम्मानित होवत रहिथें वोमा के कतका झन के योगदान छत्तीसगढ़ी भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता खातिर ठोस होथे?

एक बात तो ठउका जानव के जब तक ढोंगी-पाखंडी अउ फर्जी किसम के मनखे मन मंच म सम्मान पाहीं अउ ठोसहा बुता करइया मन उपेक्षित रइहीं, तब तक छत्तीसगढ़ी के न तो विकास हो सकय, न तो वोकर अस्तित्व बांच सकय।

का ये सब हमर 'माटी पुत्र' मन के आंखी म नइ दिखय? अउ नइ दिखय त उन 'माटीपुत्र' कइसे हो सकथें? जेकर मन के आंखी म अंधरौटी छागे हवय, जेकर मन के मती ल लकवा मार दिये हवय, जेकर मन के हाथ-गोड़ ह सिरिफ अपन राजनीतिक आका मन के  जोहार-पैलगी करे खातिर हालथे-डोलथे वोमन सिरिफ 'माटी के पुतला' तो हो सकथें। जेन कठपुतली नाच बरोबर नाचे के छोड़ अउ कुछु नइ कर सकंय।

एक बात मोला अउ जादा कचोटत रहिथे- अभी तक इहाँ जतका झन मुखिया पदवी म बइठे हें, वोमा के एकोच झन ह इहाँ के राजभाखा के पदवी ले सम्मानित हम सब के महतारी भाखा 'छत्तीसगढ़ी' म शपथ ग्रहण नइ करे हें. इन एकर संबंध म गोठ करबे त अभी तो छत्तीसगढ़ी ल संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल नइ करे गे हे काहत अधिकारी मन ऊपर अपन निकम्मा पन ढांके-तोपे के कोशिश करथें. ए जम्मो झन ले मोर प्रश्न हे- अंगरेजी जेन विदेशी भाखा होए के संगे-संग इहाँ के आठवीं अनुसूची म संघरे नइए तभो ले वो परदेशी भाखा म शपथ लिए जा सकथे, त फेर हमर राज के विधानसभा म सर्वसम्मति ले राजभाखा के रूप म पारित इहाँ के जनभाखा छत्तीसगढ़ी म काबर नहीं? 
  
अब तुमन खुद सोचव- तुम इहाँ के माटी पुत्र आव ते दूसर मन के हाथ म खेले खातिर बने माटी के पुतला? 
- सुशील भोले 
संजय नगर, रायपुर 
मोबा. नं 098269-92811

Friday 8 December 2023

9 दिसंबर : ऐतिहासिक बेरा के सुरता

9 दिसंबर : वो ऐतिहासिक बेरा के सुरता... 
    छत्तीसगढ़ी साहित्य के इतिहास म 9 दिसंबर 1987 के दिन ल सबर दिन सुरता राखे जाही, जे दिन छत्तीसगढ़ी भाखा के ऐतिहासिक मासिक पत्रिका 'मयारु  माटी' के विमोचन रायपुर के आजाद चौक तीर तात्यापारा के कुर्मी बोर्डिंग के सभा भवन म जम्मो छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन के उपस्थिति म संपन्न होए रिहिसे.

    ए विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच 'चंदैनी गोंदा' के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी रहिन हें. अध्यक्षता दैनिक नवभारत के संपादक कुमार साहू जी करे रिहिन हें. संग म 'सोनहा बिहान' के सर्जक दाऊ महासिंह चंद्राकर जी विशेष अतिथि के रूप म पधारे रिहिन हें. ए बेरा म छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य के जम्मो मयारुक मन उहाँ बनेच जुरियाए रिहिन.

चित्र 1- 'मयारु माटी' के विमोचन के बेरा. डेरी डहर ले- सुशील वर्मा 'भोले', पंचराम सोनी, टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा, विमोचन करत दाऊ रामचंद्र देशमुख जी अउ नवभारत के संपादक रहे कुमार साहू जी.

चित्र 2- डेरी डहर ले- कुमार साहू जी के स्वागत होवत, स्वागत करत 'मयारु माटी' के संपादक सुशील वर्मा 'भोले', अउ बीच म कुर्सी म बइठे दिखत हें- सोनहा बिहान के सर्जक दाऊ महासिंह चंद्राकर जी.

चित्र 3- विमोचन के बेरा म उपस्थित छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन म. डेरी डहर ले-  जागेश्वर प्रसाद जी, डॉ. देवेश दत्त मिश्र जी, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी, डॉ. शालिक राम अग्रवाल 'शलभ' जी, डॉ. व्यास नारायण दुबे जी, जगदीश बन गोस्वामी जी
उंकर पाछू म डॉ. भारत भूषण बघेल जी, डॉ. राजेन्द्र सोनी जी रामचंद्र वर्मा जी संग डॉ. सुखदेव राम साहू 'सरस' अउ जम्मो छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन.

Tuesday 5 December 2023

कोंदा भैरा के गोठ 10

कोंदा भैरा के गोठ 10

-जे मन कोनो विषय म पीएचडी कर लेथें, ते मनला वो विषय के संगे-संग सबोच विषय के विद्वान मान के उंकर लिखे अउ बोले गे वाक्य मनला ही पखरा के लकीर बरोबर मान लेथन जी भैरा.
  -हाँ ए बात तो सिरतो आय जी कोंदा.. तभे तो अइसने मनला अतिथि बना के फूल-माला पहिरावत रहिथन.
   -फेर कतकों बखत इहू देखे म आथे के वो पीएचडी धारी ह नकलचोट्टई कर के या पइसा के पंदोली दे के सेती उपाधि पाए रहिथे, एकरे सेती वोकर वक्तव्य म आरुग सत्य के दर्शन नइ हो पाय.
   -अच्छा.. अइसना घलो हे? 
   -हहो.. मैं अइसन कतकों उपाधि धारी मनला जानथौं, जे मन अपन विषय म घलो अधकचरा बरोबर जनाथें.
    -वोकर मन जगा विश्वविद्यालय के डिग्री होथे न जी संगी, लोगन के नजर म वोकरे तो मान-सम्मान हे.
   -अइसने नकलचोट्टई ले बाॅंचे खातिर अभी सरकार ह स्वास्थ्य विभाग म मेडिकल शोधगंगा प्लेटफार्म बनाय हे, जेकर ले अइसन लोगन मन के असलियत आगू आ सकय.. मोला लागथे के सरकार ल सबो विभाग के शोध कारज खातिर अइसने उदिम करना चाही.
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-राजभाषा छत्तीसगढ़ी दिवस के जोहार जी भैरा.
  -जोहार संगी कोंदा.. फेर मोला जनाथे के ए जनम म हमन राजभाखा के नॉव म भइगे जोहरईच भर करत रहि जाबो तइसे लागथे.
   -अइसे काबर जनाथे संगी? 
   -देखना.. राजभाषा घोषित तो कर डारे हें, फेर कोनो च सरकार के बुता ह एला सही अरथ म राजभाषा माने बरोबर नइ जनावय. आज ले न तो ए ह पढ़ई के माध्यम बन पाए हे, न राजकाज के.
   -ए बात तो सिरतोन आय संगी केंद्र अउ राज दूनों जगा के लंबरदार मन हमरे मन असन कोंदा भैरा गढ़न के होगे हें. कतकों चिचिया हुंत करा फेर हूँ हाॅं करे कस घलो नइ जनावय.
   -सबले अचरज के बात तो ए आय संगी.. जे मन लोकसभा अउ राज्यसभा म छत्तीसगढ़ी ल आठवीं अनुसूची म संघारे खातिर गोहराए रिहिन हें, उहू मन अपन-अपन पार्टी के सरकार जगा एकर खातिर कुछू नइ करवा पाईन.
   -हाँ ए तो हे.. तभे तो सब कहिथें के ए राजनीति वाले मन सत्ता के बइठत भर ले भावनात्मक विषय ऊपर कूद फांद करथें, अउ सत्ता म आए के बाद कोंदा लेड़गा बन जाथें.
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-विधानसभा चुनाव के परिणाम अवइया हे जी भैरा.. हमर पार्टी वाले मन वोकर पहिली अच्छा तगड़ा गढ़न के हुमन जग करवाबो काहत हें.
    -अच्छा.. चुनाव म जीत के सरकार बनाए खातिर का जी कोंदा? 
   -हहो संगी.. अभी विश्व कप क्रिकेट म भारतीय टीम ह जीत जावय कहिके हुमन जग करवाए रिहिन हें ना.. उंकरे मन जगा इहू हुमन जग ल करवाबो काहत हें.
   -त तोला कइसे जनाथे संगी.. हुमन जग करवाए ले मतदाता मन जेन छापा म वोटिंग मशीन म बटन दबाए हें, ते ह तुंहर डहार लहुट जाही? 
   -अब पार्टी के लंबरदार मन तो अइसने काहत हें गा.
   -देख रे भई..  देश भर म होय हुमन जग अउ दुआ मॉंगे के बाद घलो जइसे हमर क्रिकेट टीम वाले मनला तीन धार के रोए बर लाग गे रिहिसे ना.. तइसने तुंहरो लंबरदार मन संग झन हो जावय गा.
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-जेठौनी जोहार जी भैरा.
   -जोहार जी कोंदा.. यहा काला-काला धर के जावत हस जी संगी? 
   -या.. ए सब टूटहा चरिहा, झेंझरी, सूपा-उपा मन ताय गा.. आज ले हमन इही सब जुन्ना जिनिस मनला बार के भुर्री तापे के नेंग करथन नहीं गा.. ओकरे जोखा तो आय. 
   -अच्छा.. जेठौनी के रतिहा तुलसी महारानी के पूजा पाठ करे के पाछू कुसियार चुहकत  भुर्री तापथन तेकरे नेंग खातिर? 
   -हहो संगी.. पुरखा मन के चलाय नेंग ताय गा.. रतिहा बेरा अब जुड़ जनाय के चालू तो होइच गे हे, आज भुर्री तापे के शुरुआत करबो तहाँ ले गोरसी अउ भुर्रीच ह तो हमर असन सियनहा मन के चार महीना के संगवारी बन जाथे.
   -सही आय संगी.. पहिली असन अब गहिर जाड़ तो नइ जनावय, तभो ले पुरखा मन के चलाय परंपरा ल निभा लेथन.
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-ए बछर कतेक धान-पान बनाएव जी भैरा? 
   -कोन जनी जी कोंदा.. अब तो का हार्वेस्टर कहिथें तइसने मशीन आथे अउ भकभक-भकभक धुंगिया उड़ियावत खेतेच म सबो ल काट-निमार के बोरा-बोरा करत मढ़ा देथे, तहाँ ले उहिच डहार ले वोला मंडी घलो अमरा डारथें. कतका गाड़ा होइस.. का खंगती जादा होइस तेकरो गम नइ जनावय.
   -भइगे सबोच घर के एके हाल हे संगी.. हमन तभोच ले खाए-पीए अउ पौनी-पसारी मन के पुरती ल हाथेच म लू-मिंज डारथन, फेर पहिली असन न तो रास मढ़ा के नापन अउ न वोकर ओसरती म खीर-तसमई के भोग चढ़ावन.
   -भइगे काला कहिबे.. ए मशीनीकरण ह हमर तइहा के परंपरा मनला घलो सिरवावत जावत हे जी.. अब अन्नपूर्णा महतारी ह घर अउ कोठी म पधारे के पहिलीच ले बेचरउहा बन के मंडी म अमा जाथे.
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-हमर छत्तीसगढ़ी भाखा म आने-आने भाखा मन के गजब अकन शब्द मन संघरत जावत हे जी भैरा.
   -हाँ.. बात तो सिरतोन आय जी कोंदा. एकर दू कारन  हे.. पहला ए आय के हमर मन के उठई-बइठई अउ दिनचर्या म जे लोगन मन संग मेल-भेंट होवत रहिथे, उंकर मन के भाखा के शब्द ह घलो हमर संग संघरत जाथे.
   -अच्छा.. अउ दूसर? 
   -हमर शिक्षा के माध्यम होथे. अब देखना हमन आन छत्तीसगढ़ी भाषी फेर पढ़े हावन हिंदी माध्यम ले, तेकर सेती हमन हिंदी के कतकों शब्द मनला बरपेली छत्तीसगढ़ी के बोलचाल अउ लिखई-पढ़ई म खुसेर डारथन, जबकि हमर जगा छत्तीसगढ़ी के अपन पोगरी शब्द रहिथे तभोच ले.
   -जइसे के? 
   -अब हमर 'भाखा' शब्द ल ही देख लेवव ना.. 'भाख' माने 'बोलना' शब्द ले बने 'भाखा' शब्द हमर पोगरी शब्द आय, तभो ले हमन हिंदी ले पढ़े-लिखे रहे के सेती ओकरे ले प्रभावित रहि के 'भाषा' शब्द के उच्चारण करथन. अइसने अउ बहुत अकन शब्द हे, जे मनला हम जाने-अनजाने बउरत रहिथन.
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-राजनीति वाले मन घलो कहाँ-कहाँ ले नवा-नवा शब्द खोज-ढूंढ के लावत रहिथें जी कोंदा.. कभू-कभू ताज्जुब घलो लागथे.
   -कइसे का खोज डारे हें जी भैरा? 
   -अरे काला कहिबे संगी.. अभी वो दिन वो बपरा ह मोर शहर म क्रिकेट मैच होवत हे, त चल बुजा ल महूं देखे लेथौं कहिके गिस, त वो क्रिकेट वाले बाबू मन उहिच दिन हार गें गा! 
   -ले.. रोज-रोज जीतइया मनला उहिच दिन हारे बर रिहिसे कहिदे! 
   -हव भई.. तब ले वो बपरा ल आने दल वाले मन 'पनौती' काहत हें.
   -अच्छा.. ए पनौती ह हमर डहार के शब्द नोहय तइसे जनावत हे जी संगी.
   -हहो.. भंडार मुड़ा के भाखा आय.. हमर एती इही ल 'गिरहा' कहिथन. 
   -अच्छा.. गिरहा.. एला कोनो-कोनो अशुभहा घलो कहि देथें का? 
   -बेरा-बखत देख के खर छॉंव वाले, दोखहा, नछत्तर जइसन कतकों शब्द बउरे जा सकत हे जी.
   -अच्छा ठीक हे.. हमर भाखा समृद्ध हे, एमा कतकों वैकल्पिक शब्द हे, फेर मोला संसो ए बात के होवथे के वो खेल के असर ह इहाँ के चुनई परिणाम म तो नइ अभर जाही.
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-ए एक्जिट पोल वाले मन कइसे अलकरहा बानी के बताथें जी भैरा.. मोला तो माथा धरे बरोबर होगे हे.
   -कइसे का काहत हें जी कोंदा? 
   -अरे काला बताबे.. एको ठन पार्टी के आरो ल स्पष्ट नइ बतावत हें, मोला थथमरई असन लागत हे.
   -त तोला का बात के थथमरई होगे भई.. कोनो पार्टी वाले मन जीतंय हमला का करे बर. 
   -वाह.. स्पष्ट होना चाही ना के फलाना पार्टी के सरकार बनत हे कहिके, तब तो उंकरे मन के रंग के कपड़ा खिलवा के उंकर जीते विधायक के परघनी करे बर जातेंव जी.
   -सबले बढ़िया तो ए हे संगी.. तैं ह सबो पार्टी वाले मन असन डरेस सिलवा डार, जे पार्टी के मन सरकार बनावत दिखहीं, उही पार्टी के डरेस ल पहिर के फूल-माला धर के निकल जाबे जी.
    -तोर कहना तो वाजिब जनावत हे संगी.. आजकाल के चलन तो अइसनेच हे.. जेती बम तेती हम.
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-तोला वो बेरा के सुरता हे जी भैरा.. जब पेट्रो तेल के विकल्प के रूप म इहाँ रतनजोत नॉव के पेड़ लगाए के भारी नारा चलत रिहिसे.
   -हाँ सुरता कइसे नइ रइही जी कोंदा.. तब जगा-जगा लिखाय राहय- अब तेल नहीं आएगा खाड़ी से, हमको मिलेगा अपने घर की बाड़ी से.
    -हाँ उही रतनजोत जेला हमन इहाँ के देशी किस्म ल बगरंडा/बगरंडी कहिथन. एकर बीजा ले तेल निकाले के एको ठन फैक्टरी अभी तक नइ खुल पाए हे का? 
    -कोन जनी संगी आरो तो नइ पाए हौं.. हाँ भई फेर एकर बीजा ल खा के अबड़ झन लइका मन के बीमार परे के खबर जरूर सुने हावंव.
    -कतकों जगा ले तो मरे के खबर घलो आ धमकथे, फेर एकर बीजा ले तेल निकाले के फैक्टरी के सोर हमर एती तो नइ सुनाए हे.
    -वइसे ए अच्छा उदिम रिहिसे, फेर कोन जनी कइसे अरझे असन होगे ते? 
    -सरकार के बहुत अकन उदिम मन लोक हितकारी होथे, फेर कोन जनी काबर वो ह बेरा ले पहिली अल्लर पर जाथे?
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-मनखे-मनखे एक बरोबर के उद्घोष करइया गुरु बाबा घासीदास जी के आज जयंती आय जी भैरा.
   -हाँ जी कोंदा.. सही म सब जीव-जंत परमात्मा के नजर म एक बरोबर ही होथे.. तभे ते हर जीव म शिव के वास हे कहिथें.
   -सही आय संगी.. बस हमी मन ह आज तक उंकर ए समरसता के संदेश ल समझ नइ पाए हन, अउ फोकटे-फोकट म छोटे-बड़े ऊँच-नीच के अंधरौटी ल आॉंखी म आॅंजे रहिथन.
   -हमन तो जेला अपन जात-समाज कहिथन तेनो म गरीबहा-बड़हर के नॉव म खंचका खन डारथन.. अउ जब अपनेच समाज म छोटे-बड़े के भेद कर डारेन, तब आने वाले मन संग तो पूछबेच झन कर. 
   -हव जी एकेच समाज के पंगत म बड़का खातिर आने जगा आसन अउ छोटे खातिर आने जगा देखे बर मिल जाथे.
    -गुरु-ग्रंथ मन के जतका संदेश हे सब किताब म पढ़े अउ भाषण म गोठियाए भर के होगे हे.. चरित्तर म सब अन्ते-तन्ते जनाथे.
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-बधाई हो जी भैरा तुंहर सरकार फेर लहुट आइस. 
   -तहूं ल बधाई संगी कोंदा.. अब लागथे फेर इहाँ के भाखा साहित्य के दिन बहुरही.
   -महूं ल अइसने जनावत हे संगी.. छत्तीसगढ़िया के नारा लगाने वाले मन छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पॉंच बछर म घलो गठन नइ करे पाईन न शिक्षा के माध्यम बनाइन.. अउ बाकी अपेक्षा मन के तो बाते ल छोड़ दे, तब लोगन उंकर मन ऊपर अउ कतका भरोसा करतीन.
   -सही आय जी.. सिरिफ सोंटा मरवाए अउ गेंड़ी चघे भर म छत्तीसगढ़ी अस्मिता के बढ़वार नइ हो जाय, जेन भाखा संस्कृति के नेंव के ठोस कारज होथे, तेन ल तो ए मन छुईन तक नहीं, तब जनता अउ कतका अगोरा करतीन.. चलव.. कोनो राजा बनय, हमला का नफा ते का नुकसान हे.. बस लोगन के मनसुभा फलित होवत राहय.. उंकर सपना अउ कारज पूरा होवत राहय ए जरूरी हे.
    -सही आय संगी.. अब तो बस न्याय, विकास अउ अस्मिता के बढ़वार के  बुलडोजर चले के अगोरा हे.
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-अब राजा-महाराजा मन के मोहजाल ले लोगन सिरतोन म निकले ले धर लिए हें जी भैरा.
   -कइसे का होगे जी कोंदा? 
    -अभी हमर इहाँ जेन विधानसभा के चुनई होय हे ना, एमा राजपरिवार के एको सदस्य मन जीत नइ पाए हें.
   -अच्छा.. मतलब अब सिरतोन म लोकतंत्र माने आम जनता के राज आवत हे का? 
   -हव जी.. पहिली ए देश म कहे बर तो लोकतंत्र आगे रिहिसे, फेर संसद अउ विधानसभा मन म इहिच खानदान के मन दिखत राहंय. लोगन घलो आॅंखी-कान मूंद के उहिच मनला वोट दे देवत रिहिन हें, फेर अभी पहिली बार हमर छत्तीसगढ़ विधानसभा म एको राजपरिवार के सदस्य नइ दिखंय. अलग-अलग पार्टी ले राजपरिवार के सात झन चुनई म खड़े रिहिन हें, फेर सातों के सातों अभी के चुनई म हार गे हें. एमा कांग्रेस ह तीन, भाजपा ह तीन अउ आम आदमी पार्टी ह एक झन ल प्रत्याशी बनाए रिहिसे.
   -माने अब सिरतोन म राजशाही ले मुक्ति मिलत हे.. बढ़िया हे संगी.. लोकतंत्र के जय हो.
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Wednesday 29 November 2023

गोरसी तापत अंगाकर खाए के मजा

सुरता//
गोरसी तापत अंगाकर खाए के मजा
    तब जाड़ ह हमर मन बर तिहार बरोबर जनावय. अघ्घन-पूस दू महीना तो गजबे निक जनावय. हमर गाँव-गंवई म ए बेरा ह धान मिंजई के बेरा होथे. धान मिंजई माने बेलन खेदना अउ बीच-बीच म बेलन ले उतर के चारों मुड़ा बगरे पैर म उलानबाटी खेलना.
    गाँव म किसान-किसानीन, बनिहार-कमईया सबोच के दिनचर्या बियारा म पैर बगराना, बेलन फॉंदना, कलारी म खोभा मारना, धान के दाना मन झरझें, त पैरा ल झर्रावत हेरना अउ पैरावंट म गॉंजत जाना, पैर के झरे जम्मो धान मनला सकेल के एक तीर म रास मढ़ाना, फूल-पान नरियर चघा के हूम-धूप देना. तेकर पाछू फेर वोला काठा म राम ले लेके सरा (1 ले 20) तक के गिनती गिनत नापना. एक सरा माने एक खॉंड़ी पूर जाय त फेर एक बाजू म वोकर खातिर एक मुठा धान के कुढ़ेना मढ़ा देना. अइसने एकक मुठा करत बीस मुठा हो जावय, त फेर एक गाड़ा (बीस खॉंड़ी) के वो सबो कुढ़ेना ल एक तीर सकेल दिए जाय.
    घर के सियान- सियानीन मन तो अतकेच म चिथियाय राहंय, फेर हमन कूद-फॉंद अउ एती-वोती धूम-धड़ाका म राहन. सूत के उठन तहाँ ले बियारा के आगू म गड्ढा खान के बनाए कौड़ा म आगी तापना. थोकिन चरचराए असन लागिस तहाँ ले मुखारी चगलत तरिया जाना, फेर उहाँ नहाए के पहिली घठौंदा म बगरे चिरी मनला सकेल के भुर्री बारना. भुर्री के दगत ले धरारपटा तरिया म कूद के निकलना अउ झटपट कपड़ा पहिर के फेर भुर्री तापना.
   घर म आवन त घीव चुपरे अंगाकर रोटी बर झपेट्टा मारन. अउ देखन त अंगाकर के फोकला अतका मन हमर बॉंटा म राहय अउ वोकर जम्मो गुदा मनला हमर बिन दॉंत के भोभला बबा खातिर अलगिया दे राहय. हमन बस गोरसी तापत फोकला अतका ल झड़कन तहाँ फेर स्कूल के बेरा हो जावय.
    संझा स्कूल ले लहुटे के पाछू फेर बियारा म धान मिंजाय बर बगरे पैर म चलत बेलन म चढ़ना, बीच-बीच म उलानबाटी खेलना चालू हो जावय. कभू-कभू बियारा म गाड़ा ल पैरा म तोप के रतिहा के रखवारी करइया मन बर बनाए कुंदरा म खुसरना, उहाँ माढ़े जिनिस मनला देखना-हुदरना बस अतकेच म बेरा पहा जावय.
    मुंधियार अस जनावय त फेर घर कोती जाना, चिमनी अंजोर म गुरुजी मन घर म लिखे-पढ़े बर कुछू अढ़ोय राहय तेला सिध पारन. फेर रतिहा बियारी के पाछू डोकरी दाई जगा कहानी सुनना. सबो भाई-बहिनी गोरसी के आंवर-भांवर बइठ के कहानी सुनन. एक झन कोनो ह हुंकारू देवय. हमर तो कहानी सुनत ही नींद पर जावय, कतका जुवर कोन ह हमला खटिया म ढनगा दिस तेकरो गम नइ मिलय.
   इतवार के छुट्टी के दिन के दिनचर्या ह थोरिक अलगे राहय.  ए दिन बिहनिया गोरसी तापत अंगाकर रोटी दमोरे के पाछू खेत डहार जावन. कोनो मिठहूं असन बोइर के पेड़ म चढ़ना, कोनो पाके असन दिखत बोइर वाले डारा ल हलाना, फेर खाल्हे म उतर के पेंठ के दूनों खीसा म खसखस के बोइर ल भरना तहाँ ले खेत म उल्होए तिंवरा भाजी ल सुरर-सुरर के हकन के कोल्हान नरवा कोती बढ़ जावन. कभू कभू तो सबो संगी तिंवरा भाजी ल रॉंध के खाए खातिर तेल-फूल जइसे जम्मो जिनिस मनला अपन-अपन घर ले धर ले राहन अउ नरवा खंड़ म आगी सिपचा के वोला रॉंध के खावन. ए किसम वो छुट्टी के दिन हमर मन के तिंवरा भाजी अउ बटकर के पिकनिक पार्टी हो जावय.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर

Saturday 18 November 2023

कोंदा भैरा के गोठ-9

कोंदा भैरा के गोठ-9

-कतकों लोगन अभी घलो सुवा गीत ल नारी विरह के गीत कहिथें जी भैरा.
   -अइसन कहइया मन छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति ले अनचिन्हार होथें जी कोंदा.
   -अइसे का?
   -हव.. नारी विरह के गीत होतीस, त एला आने विरह गीत मन असन बारों महीना नइ गाए जातीस.. सिरिफ कातिक महीना के अंधियारी पाख म गौरा-ईसरदेव बिहाव तक ही काबर गाये जाथे? असल म ए ह गौरा-ईसरदेव बिहाव के संदेशा गीत आय.
   -अच्छा... तुंहर इहाँ कब ले चालू होथे ए सुवा गीत के चलन हा?
   -हमर गाँव म तो कातिक अंधियारी पंचमी ले चालू होथे, इही दिन गौरा-ईसरदेव परब खातिर फूल कुचरे के नेंग घलो होथे.
   -अच्छा.. हमर इहाँ तो फूल कुचरे के नेंग ह एकादशी के होथे जी.
   -कतकों जगा अलग-अलग मान्यता देखे ले मिलथे. हमन जइसे गौरा-ईसरदेव बिहाव ल कातिक के अंधियारी पाख म अमावस के मनाथन त कतकों जगा कातिक के अंजोरी पाख म पुन्नी के दिन मनाथें.
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-कातिक जोहार जी भैरा. कते डहार ले आवत हस ते?
   -जोहार जी कोंदा.. एदे लइका मनला आज ले कातिक नहाए ले जाही कहिके उठा के आवत हौं. हमन लइकई म कातिक नहाए ले जावन तेकर सुरता हे नहीं जी संगी?
   -रइही कइसे नहीं संगी.. पारा भर के नोनी मनला मुंदरहा ले उठावन तहाँ तरिया जावन.
  -हव जी उंकर मन बर फूल अउ बेलपान तो हमीं मन सकेलन, फेर उंकर मन के नाहवत ले तरिया पार के चिरी-उरी अउ सुक्खा असन दिखत लकड़ी मन ल सकेल के भुर्री बारन.
  -सही आय संगी, नोनी मन नहा-धो के थोकन भुर्री ताप लेवंय तहाँ ले महादेव के पूजा करय अउ भोग-परसाद चघावय, ते मनला तो फेर हमीं मन झड़कन ना.
    -हव जी.. अउ संझा बेरा जब नोनी मन सुवा नाचे बर जावंय, तब वो मनला मिले चॉंउर-दार ल धरे बर झोला घलो तो हमीं मन धरे राहन ना.
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-चल बजार डहार नइ जावस जी भैरा.. देवरिहा दीया बाती के लेन-देन करे बर?
   -मैं तो हमरे गाँव म बिसा डारथौं जी कोंदा.. कुम्हार पारा जाथौं अउ जतका लागथे बिसा लाथौं. फेर हमर इहाँ तो तेरस ले सुरहुत्ती तक के नेंग वाले दीया मनला नवा चॉंउर पिसान के बनाथन. तब एती-तेती कहाँ भटकबे?
   -वाह भई.. फेर बजार म तो रंग-रंग फैशन वाला आथें जी संगी.. बने छाॅंट के सुघ्घर असन जिनिस ले म निक लागथे.. चीन-ऊन जइसन आने देश ले घलो आथें कहिथें. आज के लइका मन उही मन ला भाथें.
   -मोला अपन देश-राज म बने जिनिस ही सुहाथे जी संगी.. हमरे तीर-तखार के लोगन दू पइसा कमावय बपरा मन.. कहाँ परदेशी मन के मोह म परबे? अउ ऐशन-फैशन वाले दीया-बाती चाही, त आजकाल महिला समूह वाली माईलोगिन मन एक ले बढ़ के एक गोबर के मयारुक दीया बनावत हें, एकर मन जगा बिसा लेना.. कहाँ आने देश वाले मन जगा पइसा डारे बर जाबे.
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-तुंहर इहाँ के बहुरिया मन आजकाल के नवा चलन वाला उपास-धास रहिथे नहीं जी भैरा?
   -कइसन ढंग के नवा चलन वाला जी कोंदा?
   -अरे.. काली सिनेमा उनिमा वाले मन असन करवाचौथ के नइ रिहिन जी.
   -टार बुजा ल.. कइसे गोठियाथस तैं ह.. अरे भई हमर इहाँ तो एकर ले बढ़ के तीजा के उपास रहिथे तब ए सब नवा-नवा चोचला काबर?
   -हमर इहाँ के नेवरिन मन तो जहाँ कोनो ल कुछू नवा चलागन म देखिन तहाँ उहू मन उम्हियाय परथें.
   -ए सब हीनता अउ छोटे पन के चिन्हारी आय. जे मन अपन आप ल छोटे अउ पिछड़े समझथें ना उही मन दूसर के पिछलग्गू बने म अपन गरब समझथें. फेर मोर तो कहना हे संगी- जिहां तक सम्मान के बात हे, त सबो के संस्कृति अउ परंपरा के सम्मान करना चाही, फेर जीना चाही सिरिफ अपन संस्कृति ल.. काबर ते सिरिफ अपन संस्कृति ही ह आत्मगौरव के बोध कराथे, जबकि दूसर के संस्कृति ह गुलामी के रद्दा देखाथे.
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-अब हमर सब परब-तिहार मन व्यापारी मन के चकाचौंध म बूड़े विज्ञापन के पाछू परके मॉंहगी-मॉंहगी जिनिस बिसाय भर के चिन्हारी बनत जावत हे जी भैरा.
   -तोर कहना महूं ल वाजिब जनाथे जी कोंदा. अब देखना हमर ए धनतेरस परब ल टीवी पेपर मन के विज्ञापन अउ मुहुर्त मनला देखबे त अइसे जनाथे जइसे ए ह सिरिफ देखावा, चढ़ावा अउ फैशन वाले जिनिस मन के बिसाय के मुहुर्त वाला परब भर आय.
   -सिरतोन आय संगी.. जबकि ए ह असल म हमर खेत म मुस्की ढारत खड़े अन्नपूर्णा दाई संग पेड़ पौधा अउ प्रकृति के पूजा के परब आय. धनतेरस के दिन किसान मन खेत म खड़े धान-पान ल सकेले के पहिली वोकर पूजा करथें, वो मन मानथें के अब हमन जम्मो लोगन खातिर बछर भर के जीवकोपार्जन खातिर अन्न के व्यवस्था कर डारेन. ए बेरा वो ह अपन खेत के मेड़ म पौधा घलो लगाथे. प्रकृति के आभार जताथे. अउ फेर सुरहुत्ती देवारी मान के धान लुवई के शुरुआत करथे.
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-तुंहर डहार देवरिहा लिपई-पोतई ओसरगे तइसे जनावत हे जी भैरा?
   -हव जी कोंदा.. अब मड़ई के रतिहा खातिर नाचा लगाए बर जाना हे.
   -वाह भई.. पाछू बछर वाले मन के नाचा तो बड़ मयारुक रिहिसे, फेर उही मनला नइ लगा लेतेव.
   -आजकाल के लइका मन नवा-नवा कहिके गोहराथें गा.
   -हाँ ए बात तो हे. फेर इहू बछर मातर के दिन ही मड़ई मढ़ावत हौ ना?
   -हहो.. सुरहुत्ती के दिन मड़ई बना के जलदेवता के आशीष खातिर कुआँ तीर मढ़ा देबोन, फेर मातर के दिन गाँव के सब सियान मन बाजा-रूंजी संग परघाय बर आहीं तब फेर वोला जगाए के नेंग कर के मातर ठउर म लेग जाबोन.
   -हहो.. हमरो डहार अइसने करथें, सुरहुत्ती के दिन मड़ई ल बनाए जाथे अउ मातर के दिन फेर वोला जगाए जाथे.
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-चुनावी शोर शराबा के बीच हमर अबूझमाड़ के मलखम्ब उस्ताद मन के एक सुंदर अउ गरब करे के लाइक खबर आए हे जी भैरा.
   -कइसन गढ़न के खबर जी कोंदा?
   -हमर देश के प्रतिष्ठित 'इंडिया गॉट टैलेंट' प्रतियोगिता ल जीते के. एकर पहिली घलो ए मन देश के अउ अबड़ अकन प्रतियोगिता मन म अपन कला के जौहर देखावत कतकों पदक पाए रिहिन हें.
   -वाजिब म ए ह संहराय के लाइक बात आय संगी. अबूझमाड़ जइसन क्षेत्र ले निकल के पूरा देश भर म अपन प्रतिभा के परचम लहराना अनुकरणीय हे.
   -हव जी.. अउ एकर ले इहू बात साबित होथे के हमर गाँव-गंवई के प्रतिभा मनला सही अवसर अउ मार्गदर्शन मिल जाय, त उन कोनो भी क्षेत्र के लोगन ले हर किसम के प्रतियोगिता म बीस ही साबित हो सकथें. ए मलखम्ब के प्रदर्शन म मनोज प्रसाद, पारस यादव, नरेंद्र गोटा, युवराज सोम, फूलसिंह सलाम, श्यामलाल पोटाई, सलाम, राकेश वरदा, मोनू नेताम, राजेश कोर्राम, शुभम पोटाई, अजमत फरीदी, समीर शोरी सुरेश पोटाई शामिल रहिन, जिनला 20 लाख रुपिया नगद के संग आर्टिगो कार मिलही.
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-आज हमर इहाँ विधानसभा चुनई के पहला चरण के मतदान हे जी भैरा. ए बखत तैं काकर सरकार बनावत हावस?
   -उही ल तो गुनत हौं जी कोंदा. एदे सबो पार्टी वाले मन के घोषणा पत्र मनला खंधोलत हावंव, फेर ए मन म के कोनोच म इहाँ के जनभाखा छत्तीसगढ़ी के माध्यम ले जम्मो शिक्षा दे अउ राजकाज चलाय के बात नइ लिखाय हे.
   -हव जी उही ल महूं खोजत रेहेंव.. का-का फोकट म बॉंटे जाही, काला कामे संघारे जाही ते मन तो लिखाय हे, फेर इहाँ आत्मा भाखा अउ संस्कृति खातिर काकरोच चेत नइए तइसे जनाइस.
   -मैं तो शुरू ले कहिथौं संगी- राष्ट्रीय दल मन के भरोसा हमर अस्मिता के बढ़वार ह मुसकुल जनाथे. काबर ते एकर मन के मापदंड क्षेत्रीय अस्मिता के स्वतंत्र चिन्हारी कभू नइ हो सकय. एकर बर तो एक मजबूत क्षेत्रीय दल ही चाही, फेर अभी इहाँ जतका अइसन  दल हें, बौद्धिक अउ सैद्धांतिक रूप म कोनोच ह ए विषय म पोठहा नइ जनावय.
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-सुरहुत्ती के जोहार जी भैरा.. कोन कोती के जवई होवत हे?
   -जोहार जी कोंदा.. एदे मंडल पारा कोती देवरिहा बधई दे खातिर जावत हौं गा.
   -बधाई दे बर ते बधई दे बर?
   - तिहरहा शुभकामना देथे तइसने गा.
   -त एला शुद्ध रूप ले 'बधाई' कहना चाही. 'बधई' कहे म अलकरहा हो जाही.
  -अइसे का?
   -हहो.. हमर छत्तीसगढ़ी भाखा म बधई मतलब पूजवन देना होथे. जबकि शुभकामना बर बधाई कहे जाना चाही. वइसे बधाई ह छत्तीसगढ़ी के शब्द नोहय, फेर अइसन कतकों शब्द हे, जे मनला चलन म सरलग बउरे जावत हे. त ए मनला जस के तस बउरे जाना चाही. बरपेली छत्तीसगढ़ीकरण करे के चक्कर म अर्थ के अनर्थ हो जाही.
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-हमर देश के राजनीति म किसान मन बर कभू ठोसहा नीति बना के उनला सत्ता पाए के केंद्र म नइ राखे जावत रिहिसे जी भैरा.
   -ए बात तो वाजिब आय जी कोंदा एकरे सेती तो देश के चारों मुड़ा ले किसान मन के आत्महत्या करे के संग खेत-खार ल बेच-भांज के शहर डहर पलायन करे के खबर सरलग आवत राहय, फेर ए दरी हमर छत्तीसगढ़ म ए नजारा ह बदले असन जनावत हे.
   -हव जी संगी.. पहिली बेर छत्तीसगढ़ के राजनीति म किसान मन केंद्र बिंदु म हावंय. सबोच पार्टी वाले मन उनला खुश करे के उदिम म भीड़े हें.
  -हव जी.. पहिली किसान मन सरकारी उपेक्षा ले हलाकान होके खेती मनला बेचे के ही बुता करंय, जेमा अन्ते ले अवइया व्यापारी अउ धन्नासेठ मन काबिज हो जावत रिहिन हें, फेर अब नजारा ह आने जनाथे.
  -सही आय.. किसान मन बर अभी के नीति अउ उदारवादी बेरा ह हरित क्रांति ले बढ़ के सोनहा क्रांति कस जनावत हे.
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-हमर इहाँ सुरहुत्ती के रतिहा जेन जुआ खेले के चलन दिखथे, ए ह आय तो अंधविश्वास ही, फेर सैकड़ों बछर ले अइसन चलत आवत हे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. हमूं मनला हमर बूढ़ी दाई मन जुआ खेले बर काहंय, उन काहंय- आज के रतिहा जुआ नइ खेलबे त वो जनम म छूछु-मुसवा बन जाबे.
   -हाँ.. सबो घर के सियान मन अइसने गढ़न के काहंय, तेकरे सेती तो ए बखत के जुआ ह महामारी कस रूप बगरगे हवय. अउ तैं जानथस हमर छत्तीसगढ़ म अइसन जुआ के एक रूप जेला खड़खड़िया कहिथन एकर चलन ह अढ़ई हजार बछर पहिली ले चलत आय के प्रमाण मिले हे.
   -अच्छा!
   -हहो.. राजधानी रायपुर ले 32 किमी दुरिहा खारून नदिया के तीर म जेन तरीघाट हे ना उहाँ के जुन्ना बस्ती के डीह (टीला) के खनई म अइसने माटी के पके वाले गोटी (लुडो) मिले हे, जेला पुरातत्व विभाग ह उहेंच बने संग्रहालय म रखवाय हे.
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-ए बखत के चुनई म जे मन जीतहीं ते मनला बड़े आदमी बना देबो काहत हें जी भैरा.
   -अच्छा.. फेर हमर इहाँ तो बड़े आदमी मन के देखे सबके पलई चमकथे जी कोंदा, तब भला कोन बड़े आदमी बनइया मनला चुनहीं, फोकट म मरे बर, उंकर मार-गारी खाए बर?
   -अइसे..?
   -हहो.. हमन ला बड़े आदमी नहीं, भलुक देवता मनखे चाही जी संगी देवता मनखे.. बड़े आदमी मन तो न कुछू काम करय, न कुछू कारज.. वो मन तो लोगन संग सिरिफ गारी-गुफ्तार अउ पटकिक-पटका म मगन रहिथें. कभू काकरो काटे अंगरी तक म नइ.... देखथस नहीं हमर गाँव-गंवई के बड़े आदमी मनला, कइसे अति करथें तेला?
    -सिरतोन आय संगी.. हमला जनता के सुख-दुख म खांध म खांध जोर के रेंगइया देवता मनखे के चुनाव करना हे जी, जेन ह सही अरथ म जनता के सेवा कर सकय, लोगन के सच्चा प्रतिनिधि बन सकय.
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-हमर इहाँ लइका के जनम धरे के तुरतेच बाद ओकर संग जुड़े गर्भनाल ल तुरते काटे के परंपरा हे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. देखे तो अइसने हावन.
   -फेर आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय स्वास्थ्य अउ चिकित्सा अनुसंधान परिषद के एक शोध म ए बताए गे हवय के गर्भनाल ल तुरते काटे के बदला कम से कम दू मिनट अगोरा कर के काटे ले जनम लेवइया लइका के जीवन के संभावना ह बाढ़ जाथे.
   -अच्छा!
   -हहो.. डॉ. अन्ना लेने सीलडर अउ प्रोफेसर लिसा एस्की के शोध ले ए जानबा होए हे, के गर्भनाल ल देरी म काटे ले होवइया लइका के शरीर म रेड ब्लड सेल्स ह 60 प्रतिशत तक बाढ़ जाथे अउ वॉल्यूम म 30 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी होथे. एकर ले जनम धरे के तुरते बाद होवइया मृत्यु ल रोके के संभावना ह 91 प्रतिशत तक बाढ़ जाथे.
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- गाँव ले तिहार मान के आ गेव जी भैरा?
   -कहाँ जी कोंदा.. ए बछर शहर म घर रखवारी के बुता मोरे रिहिसे, तेकर सेती गाँव नइ जा पाएंव.
   -अइसे?
   -हहो.. अब शहर म घलो घर बनवा परे हन त इहों देवता-धामी मन के आगू म दीया-बाती करे बर लागथे ना जी.
   -हाँ ए बात तो हे संगी.. फेर परब-तिहार ह गाँवे म निक जनाथे जी. वो कहिथें ना.. हमर देश के आत्मा गाँव म बसथे कहिके तेन ह सिरतोन आय. काबर ते गाँव म ही हमर परंपरा अउ संस्कृति ह जीयत हे.
   -हव जी सही आय.. हमर परब-तिहार तो गाँवेच म जीयत हे, शहर म तो भइगे फट-फट फट-फट फटाका फोरिस तहाँ ले झर गे. अउ जादा होगे त टूरा पिला मन दारू पी के लड़ई-झगरा म माते रहिथें .. अतकेच ह शहर के तिहार आय.. न ककरो संग जोहार-भेंट न ककरो संग निक-बोल.
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-अइसने जुड़हा दिन-बादर म गोरसी तापत अंगाकर रोटी दमकाय म गजबे मजा आथे जी भैरा.
   -सिरतोन आय जी कोंदा.. मार चर्रस चर्रस सेंकाय वाले अंगाकर के फोकला ल झड़के म अउ निक लागथे.
   -हव जी.. फेर उमर के संग अब अंगाकर भीतर के गुदा ल ही खा सकथन.. फोकला ल चाबे अस करबे त दांत ह गवाही दे असन नइ करय.
   -मोरो उही हाल जनाथे संगी.. लइकई म फोकलाच फोकला ल बने घी लगा के सोंधे-सोंध झड़कन अउ बबा ल गुदा मनला देवत जावन.
   - फेर अब तइहा के बात ल बइहा लेगे असन होगे संगी.. उमर के संग सब उल्टा होगे हे. गुदा ल हमन झड़कथन अउ बने सोंधे-सोंध फोकला ल नाती डहार अमर देथन.
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-लोकतंत्र के महान परब म अपन भूमिका तो हमन निभा डारेन जी भैरा.. अब एकर परिणाम के अगोरा हे, ए बखत काकर भाग म राजयोग लिखाय हे ते.
   -हव जी कोंदा, फेर एक बात ऊपर तैं ह चेत करे हावस?
   -का बात ऊपर जी संगी?
   -अभी के चुनई म गाँव-गंवई के लोगन तो बढ़-चढ़ के मतदान करे हें, फेर शहरिया मन ढेरियाय असन दिखत हें.
   -अच्छा!
   -हहो.. अभी निर्वाचन आयोग ह मतदान प्रतिशत के जेन सूची जारी करे हे, तेकर मुताबिक शहरिया मन अल्लर परे असन वोट दिए हें. तेमा राजधानी रायपुर वाले मन तो सबले पिछवाय हें, इहाँ मतदान के सबले कम प्रतिशत हे.
   -मतलब जेन गाँव-गंवई के लोगन ल हमन पिछड़ा अउ अनपढ़ कहिथन, ते मन मतदान के जागरूकता देखाय म अगुवाय हें, अउ शहर के शेखचिल्ली मन पिछवाय हें.
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-हमर गाँव म तो मातर के दिन ही संझौती बेरा मड़ई के आयोजन हो जाथे, फेर धमतरी क्षेत्र म गंगरेल बॉंध तीर के दाई अंगारमोती के आशीष पाए के बाद ही मड़ई के उत्सव चालू होथे जी भैरा.
   -अइसे का जी कोंदा?
   -हहो.. अंगारमोती म हर बछर देवारी माने के बाद जेन पहला शुक्रवार आथे, उहीच दिन मड़ई भराथे. ए दिन इहाँ हजारों लोगन अंगारमोती दाई के आशीष पाए बर जुरियाथें. जे माईलोगिन मन संताए पाए के आस म आए रहिथें वो मन इहाँ हाथ म नरियर धरे मुड़ उघरा कर के ओरीओर सूत जाथें, तब उहाँ के पुजारी ह अंगारमोती दाई के संग अउ आने देवी देवता मन के डांग- डंगनी मनला धर के उंकर मन ऊपर ले उखरा पॉंव रेंगत नहाकथे. मान्यता हे, के एकरे ले वो जम्मो माईलोगिन मन के मनोकामना पूरा होथे. ए बेरा म आसपास के 52 गॉंव के देवी देवता मनला ल नेवता दे के अंगारमोती दाई के दरबार म बलवाए जाथे.
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