Monday 19 October 2020

शक्ति लहरी सप्तधरा धाम..

शक्ति लहरी सतधरा धाम : जहाँ लगता है मकर संक्रांति पर विशाल मेला.....
छत्तीसगढ की शक्तिपीठों में अब शक्ति लहरी सतधरा धाम का नाम भी प्रमुखता से जुड़ने लगा है। लगभग पिछले एक शताब्दी पूर्व से स्थापित माता के इस मंदिर में भक्तजनों का आना निरंतर बढ़ता जा रहा है।
सात नदियों के एक साथ मिलने से सतधरा या सप्तधारा के नाम से जाने जाना वाला यह स्थल गरियाबंद जिला महासमुंद जिला और रायपुर जिला की सीमारेखा पर ग्राम हथखोज के अंतर्गत स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहां महानदी, सोढुल नदी और पैरी नदी की तीन धाराओं के साथ सूखा नदी, सरगी नदी, केशवा नदी और बगनई नदी आपस में एक साथ मिलती हैं, इसीलिए इस विराट भू-भाग में फैले संगम को सप्तधारा या सतधरा कहते हैं।
यहां यह उल्लेखनीय है कि संभवतः समूचे छत्तीसगढ में नदियों का संगम स्थल इतना विस्तारित कहीं पर नहीं है, जितना विस्तारित यहां का संगम पाट है।
माता जी के यहां पर स्थापित होने के संबंध में बताया जाता है, कि माता की यह बिना शीश वाली प्रतिमा नदी में बहकर आयी है, जो एक यादव को यह प्राप्त हुई है। बताया जाता है कि वह व्यक्ति अपनी भैंसों को लेकर संगम स्थल पर जाया करता था, वहां उसकी भैंस एक स्थान विशेष पर हमेशा चमक जाती थी। यादव को आश्चर्य होता था कि आखिर भैंस यहां पर चमक या झिझक क्यों जाती है। उसने उस स्थल को ठीक से देखकर रेत में टटोलने लगा कि आखिर यहां है क्या? तब यह प्रतिमा उसके हाथों में आयी।
बताया जाता है, कि तब माता ने उस यादव को स्वप्न दिया कि मुझे यहां से निकालकर अन्य स्थल पर स्थापित करवा दो। उन्होंने बताया कि मुझे उठाकर ले जाते समय हर कदम पर एक-एक नारियल रखते जाना और जहां पर नारियल अपने आप फूट जाए उस स्थल पर मुझे स्थापित कर देना। वर्तमान में स्थापित जगह पर ही नारियल के फूटे जाने का जिक्र किया जाता है।
वर्तमान में यह स्थल देवी उपासना के प्रमुख पीठ के रूप में विकसित हो रहा है। राजिम से महासमुंद को जोड़ने वाले इस मार्ग पर स्थित सूखा नदी पर भव्य पुल बन जाने के कारण यहां से होकर गुजरने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, इसका प्रतिफल मंदिर के दर्शनार्थियों के लिए भी सार्थक रहा है, उनकी संख्या में भी वृद्धि हुई है।
यहां पर प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर तीन दिनों का मेला भरता है। मेला का स्वरूप दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। इसी अवसर पर यहां सूखा लहरा लिया जाता है। बताया जाता है, कि संगम स्थल की रेत पर लोग लोट कर लहरा लेते हैं। जिसके भाग्य में होता है, वह उंगली के स्पर्श मात्र से काफी दूर तक लुढ़कते हुए चला जाता है, और निढाल होने के पश्चात ही रूकता पाता है।
माता के इस स्थल पर  नवरात्र के दोनों ही अवसर पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है, जहां श्रद्धालु अपनी मनोकामना को लेकर ज्योति प्रज्वलित करते हैं।
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

अंगारमोती माँ...

भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली माँ अंगारमोती...
  छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 90 किमी की दूरी पर धमतरी  जिले के ग्राम चंवर में अंगारमोती माँ का मंदिर स्थापित है।
बताया जाता है कि अंगार मोती का यह मंदिर 600 वर्ष पुराना है, जो गंगरेल बाँध बनने के बाद डूब गया था। लोगों के अनुसार चंवर गांव के बीहड़ जंगल में माँ स्वयं प्रगट हुईं और अपने तेज के प्रभाव से पूरे क्षेत्र को आलोकित कर दिया, जिससेे प्रभावित होकर लोगों ने सन् 1972 में गंगरेल बाँध के पास ही माँ अंगारमोती का मंदिर पुनः स्थापित किया।इनके पास ही शीतला माता, माँ दन्तेशवरी और भैरव बाबा भी स्थापित है। इनके दर्शन के लिए लोग देश - विदेश से आते हैं।
    मान्यता है कि श्रद्धा के साथ  जो  भी भक्त नारियल बाँधता है, माँ उसकी मुराद जरुर पूरा करती है। यहाँ नवरात्र में भक्त मनोकामना ज्योति भी जलाते हैं।
    ऐसा कहा जाता है कि अंगार मोती अगारा ऋषि की पुत्री है, ये सभी वन देवियों की बहन मानी जाती हैं। इन्हें प्रकृति और हरी भरी वादियों से विशेष लगाव है, शायद इसीलिए इन्हें वनदेवी कहा जाता है.
         बताया जाता है कि माता बहुत चमत्कारी हैं, इनके आशीर्वाद से नि:संतान महिलाओं की सूनी गोद भी  हरी-भरी हो जाती है ।
    माँ विंध्यवासिनी की बहन मानी जाने वाली अंगारमोती
माँ की कृपा सदियों से भक्तों पर बरसती आ रही है. श्रध्दालु भी पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ माता की आराधना करते हैं ।।
🙏जय माँ अंगारमोती 🙏

शीतला मंदिर के बइगा...

शीतला मंदिर के बइगा मेर ले लाने हावौं आगी
जोत-जंवारा के बदना म हमूं बने हावन भागी
खुल जाही अब भाग हमरो दाई सउंहत आही
बरसाही असीस के बरसा संग खुशहाली लाही

सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 98269-92811