Sunday 7 November 2021

शीला बिनई अउ लाड़ू खवई

सुरता//
शीला बिनई अउ भक्का लाड़ू के खवई...
    जाड़ के आगमन के संग छत्तीसगढ़ के खेत-खार म धान लुवइया मन के आरो मिले लगथे. जेती देखव तेती हंसिया डोरी धरे किसान परिवार के सदस्य अपन-अपन उदिम म भीड़े दिख जाथें. कोनो ओरी धर के धान लु-लु के करपा रखत दिख जथे, त कोनो करपा मनला सकेल-सकेल के बोझा बांधत, त कोनो ओ बंधे बोझा मनला एक जगा सकेल के छोटे खरही असन रचत. इही बीच म घर-परिवार के छोटे-छोटे लइका मन किंजर-किंजर के शीला बीनत.
    ए बड़ा मोहक दृश्य होथे. हर गाँव म अउ हर खार म अइसन मनभावन नजारा देखब म आथे. हमूं मन जब गाँव म राहन, त प्रायमरी ले लेके मिडिल स्कूल के पढ़त ले ए उदिम म मगन राहन. बिहनिया स्कूल जाए के पहिली तीर-तखार के खेत म धमक देवन, अउ संझा स्कूल ले लहुटे के पाछू थोक दुरिहा के खेत मन म घलो अभर जावत रेहेन.
   धान लुवई ले लेके शीला बिनई अउ बढ़ोना बढ़ोई ले लेके धान मिंज के ओसाई अउ ओला कोठी म सहेजई तक अइसन बेरा होथे, जब इहाँ के किसान मन म औघड़दानी के रूप सहज देखे जा सकथे. हमन जब शीला बीने बर जावन त ए जरूरी नइ राहय के अपनेच खेत म जावन. जेने खेत म बोझा बांधे के बुता चलत राहय, उहिच म अभर जावन. खेत वाले मन घलो हमन ल देखय, तहाँ ले पढ़इया लइका मन आए हे कहिके जान-बूझ के बोझा ले धान ल गिरा देवंय, तेमा हमन ल आसानी के साथ जादा ले जादा शीला मिल सकय. कतकों खेत वाले मन तो हमन ल आज अपन खेत ले बोझा डोहारबो कहिके अपनेच मन संग गाड़ा बइला म बइठार के लेग जावंय, अउ शीला बीने के बाद लहुटती म गाड़ा म बइठार के बस्ती डहार लान देवंय घलो. जेन दिन बढ़ोना बढ़ोवंय, तेन दिन तो बढ़ोना के पूजा-नेंग के बाद खीर सोंहारी चघावंय, तेला खाए बर घलो देवंय.
    स्कूल के छुट्टी राहय, तेन दिन हमर मनके गदर राहय. बस बिहनिये नहाए-धोए के बाद खेत के रद्दा. हमर मन के चार-पांच लइका के टोली राहय. इतवार या छुट्टी के दिन शीला बीने के संगे-संग खारेच म पिकनिक घलो मनावन. सबो लइका अपन अपन घर ले रांधे-गढ़े के जिनिस धर के लेगन. ए सीजन म तींवरा भाजी घलो बने फोंके-फोंक ल सिलहो के रांधे के लाइक हो जाए रहिथे, तेकर चिखना तो बनाबे करन. बोइर मन घलो गेदराए ले धर ले रहिथे, वोकरो मन के पोठ मजा लेवन. हमर गाँव म खार के बीचोबीच कोल्हान नरवा बोहाथे. एकर दूनों मुड़ा के कछार म जाम के कटाकट बारी हावय. अउ इही जाड़ के दिन ह एकर सीजन आय. जम्मो बारी मन म गौंदन मता देवत रेहेन. उहाँ साग-भाजी अउ कतकों जिनिस के खेती होवय. सबके मजा ओसरी-पारी लेते राहन.
     शीला बीने ले जेन धान मिलय, तेला बने गोड़ म रमंज-रमंज के मिंजन अउ सकेलन. कमती राहय तेन दिन पसरा वाली घर जाके कभू मुर्रा, त कभू मुर्रा लाड़ू अउ कभू लाई के बने भक्का लाड़ू के सेवाद लेवन, अउ कोनो दिन शीला ह थोक जादा सकला जावय, तेन दिन वोला दुकान म बेंच के इतवार के पिकनिक खातिर जोखा करन.
     फेर अपन लइकई के ए सब बात ल गुनथन, अउ आज के दृश्य ल देखथन त एमन अब सिरिफ सपना बरोबर लागथे, काबर ते आज वैज्ञानिक आविष्कार के चलत खेतिहर मजदूर मन के जगा बड़े बड़े ट्रैक्टर अउ हार्वेस्टर ह जगा ल पोगरा लिए हे. न तो खेत म बने गढ़न के धान लुवइया दिखय, न बोझा बंधइया अउ न शीला बिनइया. हाँ कभू-कभू उहू जुन्ना दृश्य मन घलो एती-तेती दिख जाथे, फेर बहुत कम संख्या म.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Wednesday 3 November 2021

मातर मड़ई के जोहार

मातर मड़ई के जोहार...
  हमर छत्तीसगढ़ म देवारी परब ल तीनेच दिन के मनाए जाथे. कातिक अमावस के सुरहुत्ती अउ गौरा-ईसरदेव बिहाव परब. बिहान भर नवा खाई (अन्नकूट) अउ गोवर्धन पूजा अउ वोकर बिहान भर मातर परब. हमर  इहाँ के परंपरा म मातर के दिन ही मड़ई जगाए के परंपरा ल घलो पूरा करे जाथे, तहाँ ले एकरे संग मड़ई अउ मेला के सरलग उमंग उत्साह चालू हो जाथे, जेहा महाशिवरात्रि म जाके पूरा होथे.
    हमर गाँव म गोवर्धन पूजा के बिहान भर मातर परब मनाए के रिवाज हे. गांव भर के जतका गरुवा मन के बरदी हे, सबो ल दइहान ठउर म सकेले जाथे अउ जब गांव भर के लोगन सकला जथें, त फेर वो सकलाए सबो गरुवा मनला वो जगा आंवर-भांवर घुमाए जाथे. ए बेरा म गाँव के पहाटिया समाज डहर ले दइहान ठउर म एक पूजा स्थल बनाए जाए रहिथे, जेला कतकों झन खुड़हर देव स्थापना करना घलो कहिथें. ये खुड़हर देव स्थापना या पूजा ठउर बनाए के बुता ल गोवर्धन पूजा के दिन ही पूरा कर लिए जाए रहिथे. उही मेर बोकरा के बली दिए के नेंग ल घलो पूरा करे जाथे. कतकों बछर बोकरा के बली के बलदा कोंहड़ा ल काटत घलो देखे हावन. अपन विशेष मयारुक गाय या भइंस ल वोमन ए बेरा म सोहाई घलो बांधथें.
    इही दिन हमर इहाँ मड़ई मनाए के घलो परंपरा हे. जानकर मन के अइसन कहना हे, के मड़ई ल खरीफ फसल के लुआए के बाद वोकर उल्लास के रूप म मनाए जाथे. एला अलग- अलग गाँव म अलग-अलग दिन मनाए जाथे, तेमा आसपास के दूसर गाँव वाले मन घलो अपन अपन गाँव के मड़ई ल धर के ए उल्लास म संघर सकंय. एकरे सेती गाँव के बइगा ह पंच सरपंच अउ आने सियान मन संग दिन तिथि जोंग के तीर तखार के सबो गाँव म एकर आरो कराथे.
   हमर गाँव नौकरीपेशा वाले गाँव आय तेकर सेती मातर के दिन ही मड़ई के आयोजन करे जाथे, तेमा रोजी रोजगार वाले मन मड़ई मना के बिहान भर अपन अपन बुता म संघर सकंय.
  मड़ई म गाँव के जतका ग्राम्य देवता होथे, वोकरे मन के नांव म अलग-अलग मड़ई उठाए जाथे. ए सबमें एक माई मड़ई घलो होथे, जेला माई मड़ई या कंदई मड़ई घलो कहिथें. हमर गाँव म ए माई मड़ई ल मछिन्दर बबा ह उठावय. गाँव म हमरे पारा म उन राहंय. उंकर असली नांव ल तो कभू जान नइ पाएन, हमन तो उनला मछिन्दर बबा अउ उंकर सुवारी ल मछिन्द्रिन दाई ही काहन. वोमन जात के केंवट रिहिन. उंकर मनके सरग सिधारे के बाद उंकर वंशज मन ही ए परंपरा के निर्वाह करथें.
   अइसे कहे जाथे, के मड़ई ह अच्छा फसल होए के उल्लास म ही मनाए जाथे. अउ अच्छा फसल जब वरुण देवता प्रसन्न होके भरपूर पानी बरसाथे, त होथे. एकरे सेती मड़ई परब के माई मड़ई ल केंवट या ढीमर समाज के लोगन ही उठाथें, काबर ते एमन वरुण देवता के उपासक होथें, अइसे माने जाथे.
   मातर मड़ई के परब म राउत समाज के भागीदारी अउ उत्साह ल देखतेच बनथे. एकर मन के बिना ए परब के रौनक के कल्पना घलो अबीरथा हे. जब राउत भाई मन अपन विशेष संवागा कर के गंड़वा बाजा संग दोहा पारत नाचथें, त अद्भुत दृश्य उपस्थित हो जाथे...
पान खायेन सुपारी मालिक,
सुपारी के दुई कोर.
तुम तो बइठो रंगमहल में,
जोहार लेवव मोर.

अवत दिएन गारी गोढ़ा
जावत दिएन असीस.
दूधे खाव पूते बिहाव,
जीयव लाख बरीस.

  मातर परब संग मड़ई जागरण के जोहार अउ बधाई 🙏🌹😊
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

सुरहुत्ती के दीया..

सुरहुत्ती के दीया...
    कातिक अमावस के मनाए जाने वाले परब ल हमर छत्तीसगढ़ म 'सुरहुत्ती' के नॉव ले जाने जाथे. सुरहुत्ती के दिन हमर इहाँ 'दीपदान' या कहिन के दीया चघाय के परंपरा हे. गाँव के नान्हे लइका मन ए दिन अपन तीर-तखार के जम्मो लोगन, पारा-परोसी अउ नता-रिश्ता जम्मो घर जा-जा के उंकर घर के तुलसी चौरा या अउ कोनो पबरित जगा म बरत दीया ल ले जाके मढ़ाथें. ए दिन घर के सियान मन लइका मनला कुंआ, तरिया, मंदिर-देवाला, घर के जम्मो खास-खास ठउर के संगे-संग बारी-बखरी अउ खेत के मेड़ मन म घलो दीया चढ़ाय खातिर कहिथें.
    ए बेरा म पहिली जेन दीया बनाय जाय वोहा धान के नवा फसल ले निकले चांउर पिसान के बनाए जाय. अब धीरे-धीरे ए परंपरा म बदलाव देखे बर मिलत हे. अब तो लोगन माटी के बने दीया ले ही काम चला लेथे. मोला सुरता हे. हमन जब लइका राहन त पिसान के जेन दीया चघाय राहन, वोहा बाती म जल के सेंकाय असन हो जावय तेकर तेल ल झर्रा के खा घलो देवत रेहेन. ए रतिहा सियान मन हमन ल रात भर जागे बर काहय, त रात भर जागे बर कतकों किसम के उदिम करत राहन, जेमा पिसान के सेंकाय दीया मनला चारों मुड़ा किंजर-किंजर के खाना, जुआ ठउर मन म जाके जुआ खेले बर भिड़ जाना या खेलइया मनला ठाढ़ होके देखत रहना. गौरा-ईसरदेव बिहाव के बाजा गदकय तहाँ ले उहू डहार जाके 'एक पतरी रैनी- बैनी... अउ भड़भड़ बोकरा.. '  कहिके हुंत करावत लोगन मन संग संघर जाना, सब शामिल राहय.
    हमर इहाँ नवा फसल ल अपन ईष्टदेव ल समर्पित करे के परंपरा हे, जेला इहाँ 'नवा खाई' के रूप म जाने जाथे. हमर छत्तीसगढ़ म ए नवा खाई के परंपरा ल अलग अलग समाज के लोगन तीन अलग अलग बेरा म मनाथें. इहाँ के ओडिशा सीमा ले लगे लोगन जेन उत्कल संस्कृति ल जीथें वोमन एला ऋषि पंचमी के मनाथें. गोंडी संस्कृति ल जीने वाले मन एला दशहरा के पहिली अष्टमी/नवमी के मनाथें अउ मैदानी भाग के लोगन देवारी परब म अन्नकूट के रूप म नवा खाई मनाथें.
    सुरहुत्ती परब म जेन नवा फसल के पिसान के दीया बनाए जाथे, उहू ह इही परंपरा के एक किसम के निर्वहन आय.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811
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सुरहुत्ती के दीया ...
   कार्तिक अमावस्या को मनाया जाना वाला पर्व दीपावली छत्तीसगढ़ में सुरहुत्ती के नाम पर जाना जाता है। इस अवसर पर यहाँ दीपदान की परंपरा है। गांव के छोटे-छोटे बच्चे अपने आसपास और परिचितों के घरों में एक छोटा सा जलता हुआ दीपक लेकर जाते हैं, और उनके यहां के तुलसी चौंरा पर या किसी अन्य पवित्र स्थल पर उसे रख आते हैं। घर के मुखिया बच्चों को कुंआ, तालाब, मंदिर, घर के प्रमुख स्थलों और बाड़ी एवं खेतों आदि में भी दीया रखने के लिए निदेर्शित करते हैं।

  इस अवसर पर जो दीपक बनाया जाता है, वह धान की नई फसल से प्राप्त चावल के आटे से बना होता है, लेकिन नई पीढ़ी के लोग इस बात को विस्मृत करते जा रहे हैं। इसलिए वे मिट्टी से बने हुए दीपक या अन्य साधनों से बने दीए का इस्तेमाल कर लेते हैं।

  ज्ञात रहे हमारे यहां नई फसल को अपने ईष्टदेव को समर्पित कर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की परंपरा है, जिसे हम *नवा खाई* के नाम पर जानते हैं। यहां नवा खाई को तीन अलग-अलग अवसरों पर मनाने का रिवाज है। कई लोग ऋषि पंचमी के अवसर पर नवा खाई मनाते हैं, कई दशहरा के अवसर पर मनाते हैं और कई दीपावली के अवसर पर।

   सुरहुत्ती के अवसर पर नई फसल से प्राप्त चावल के आटे से बनाये जाने वाला दीपक भी इसी परंपरा का निर्वाह है। हम लोग जब गाँव में रहते थे. इसी नए चावल के बने दीये को बुजुर्गों के द्वारा निर्देशित स्थानों पर रखते थे. और जब दीया अपनी रोशनी बिखरने के पश्चात शांत हो जाते थे. तब हम लोग उस चावल आटे के दीए को, जो तेल और बाती से जलने की प्रक्रिया में एक प्रकार से रोटी की तरह सिंक से जाते थे. उसे उठाकर हम लोग बड़े चाव के साथ खा जाया करते थे.
* सुशील भोले -9826992811

Monday 1 November 2021

धनतेरस पर करें अन्नपूर्णा का स्वागत..


इस धन तेरस करें अन्नपूर्णा का स्वागत...
   आज "धन तेरस" है। शुभ मुहूर्त के नाम पर पूरा बाजार सज गया है. इसे धर्म और भावनाओं से जोड़कर व्यापारी व मीडिया के लोग आम जनता को ऐसे गुमराह करते हैं, जैसे धनतेरस के शुभ मुहुर्त में सामान खरीदने पर साल भर फिर कमाना ही नहीं पडे़गा. जैसे टी वी पर दिखाया जाता है, कि धन तेरस को सुबह दस बजे से रात ग्यारह बजे तक खरीदारी का शुभ मुहुर्त है। घंटे दो घंटे का नहीं, और आपके घर पर कोई आवश्यक काम हो तब यही लोग सिर्फ मिनटों का मुहुर्त बताते हैं, लेकिन यहाँ दिन भर का इसलिए बताते हैं ताकि व्यापारियों को अधिक से अधिक लाभ हो।
   बाजार सज गये हैं। करोड़ों की बिक्री के आसार हैं। लोगों में खरीदारी के प्रति भारी उत्साह दिख रहा है। नकली व अनुपयोगी चीजें भी बेचने का दिन है यह धन तेरस। कोई टी वी वाला यह नहीं कहता है कि बाजार में नई फसल आ गयी है- गेहूँ, मूंग, मोठ, बाजरी व चंवला आ गये हैं, इनको किसान के घर जाकर साल भर के लिए खरीदना बहुत ही शुभ है। इनका काम है धर्म के नाम पर लोगों में डर पैदा कर  व्यापारियों को लाभ पहुंचाना।
     यही कारण है कि बाजार में रिडेक्शन के सामान की दुकानें सज गई हैं. शुभ दिन को घर में सामान लाने के लिए लोगों ने पूर्ण तैयारियाँ कर रखी हैं. धनतेरस को बाजार में इतनी भीड़  रहती है कि न तो व्यापारी के पास भाव ताव करने का समय रहता है, और न ही वस्तु को दिखाने का. इसलिए आओ, खरीदो, पैसे दो और जाओ. माल कैसा है घर जाकर देखो. आप को खरीदना ही है तो दीपावली के बाद ठोक बजाकर माल खरीदो बहुत शुभ है. यह तो व्यापारियों और धर्म के नाम पर गुमराह करने वालों ने धनतेरस को अपने धन्धे से जोड़ दिया है.
    असल में तो इस दिन नये मूंग, मोठ, चावल धान, गेहूँ, बाजरी और तिल तिलहन आदि खरीद कर बारह महीने का स्टॉक करके किसान व अनाज की पूजा करनी चाहिए. घर में पेट भरने को अनाज आ जाये और अन्नदाता किसान के दर्शन हो जाये इससे अधिक शुभ और क्या हो सकता है?
     तो आइए, आज से हम कृषि उपज के रूप में अन्नपूर्णा का स्वागत करें. सही मायने में धनतेरस मनाएं.
धन्यवाद.. जोहार...